इंटरनेट प्रयोक्ता इंटरनेट प्राप्त करने के लिए व्यापक रुप से वाई-फाई उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। हर वर्ष लाखों वाई-फाई उपकरण बाजार बेचे जाते हैं। अधिकांश वायरलेस उपकरण डिफाल्ट कॉन्फ़िगरेशन मोड में असुरक्षित होते हैं। इसलिए अंतिम प्रयोक्ता इन उपकरणों को निर्धारित सुरक्षा स्तरों में सेट करने से अनजान होने पर असुरक्षित हो जाते हैं। आतंकवादी और हैकर्स इन वाई-फाई उपकरणों की असुरक्षा का लाभ लेकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
वाई-फाई कनेक्टिविटी से युक्त कोई भी कम्प्यूटर, लैपटॉप अथवा मोबाइल असुरक्षित एसेस प्वॉइंट (वायरलेस राउटर) से कनेक्ट हो सकते हैं। एसेसप्वॉइंट की सीमा में असुरक्षित होने से कोई भी एसेसप्वॉइंट से जुड़ सकता है। एक बार कनेक्शन होने पर हमलावर मेल भेज सकते हैं,वर्गीकृत/गोपनीय जानकारी डाउनलोड करने के साथ नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटरों पर अटैक कर सकते हैं, दूसरों को संदिग्ध कोड भेजते हैं और इंटरनेट से शिकार व्यक्ति के कंप्यूटर पर लंबे समय तक नियंत्रण बनाये रखने के लिए टॉर्जन अथवा बोटनेट को इंस्टाल कर देते हैं।
ये सभी आपराधिक कार्य स्वाभाविक रूप से एसेस प्वॉइंट (वायरलेस राउटर) के वैध प्रयोक्ता से जुड़ जाते हैं। एसेसप्वॉइंट के वैध प्रयोक्ता को इन आपराधिक कार्यों में लिप्त नहीं होने की बात साबित करनी होती है। इसलिए अपने/अपनी एसेसप्वॉइंट को सुरक्षित करना प्रयोक्ताओं की जिम्मेदारी हो गई है।
अभी हाल ही में घटित ऐसी कुछ सच्ची घटनाएं यहां प्रस्तुत हैं-
एसेसप्वॉइंट को सुरक्षित रखने के कुछ कदम इस प्रकार हैं-
वायरलेस सुविधा पर होने वाले हमलों के प्रकार
डिनाइअल ऑफ सर्विस अटैक
डिनाइअल ऑफ सर्विस अटैक का लक्ष्य प्रयोक्ता को नेटवर्क संसाधनों का उपयोग करने से रोकना। विभिन्न विधियों से वायरलेस नेटवर्क में डिनाइअल ऑफ सर्विस अटैक को अपनाया जा सकता है।
वाई-फाई उपकरणों में मेन-इन-मिडल अटैक
वायरलेस नेटवर्क में मेन-इन-मिडल अटैक करना अपेक्षाकृत आसान है, जबकि वायर से जुड़े नेटवर्क में थोड़ा कठिन। ट्रांसमिशन एसेसप्वॉइंट से ब्रॉडकास्ट होने से अनाधिकृत प्रयोक्ताओं को दूसरे वायरलेस क्लाइंट के ट्रैफिक को पकड़ना आसान होता है। पैकेट संग्रह करने की यह प्रक्रिया ईव्ज़्ड्रापिंग है। साथ ही थर्ड पार्टी प्रयोक्ता वैध प्रयोक्ता को भेजे गये पैकेट में फेर-बदल कर सकता है जिसका परिणाम मूल प्रयोक्ता की गोपनीयता खत्म हो जाना है।
इसलिए ऐसे हमलों को रोकने के लिए, वायरलेस क्लाइंट और एसेसप्वॉइंट के बीच होने वाले डेटा ट्रांसमिशन के लिए एक मजबूत ऐंक्रिप्शन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
वारड्राइविंग
किसी वाहन में जाने के दौरान हाथ में ली हुई डिवाइस अथवा लैपटॉप से स्थान विशेष में स्थित वाई-फाई हॉटस्पॉट ट्रैकिंग की प्रक्रिया वारड्राइविंग है। इसकी मदद से प्रयोक्ता को बिना ऐंक्रिप्ट किये ऐसे एसेसप्वॉइंट मिलते हैं जिन पर नियंत्रण कर नेटवर्क पर हमले के लिए इस्तेमाल किया जाता है ।
वाई-फाई ऐंवायरॉन्मेंट में हमले किस प्रकार होते हैं?
मजबूत पासवर्ड में कम से कम 15 कैरेक्टर जिसमें अपरकेस लेटर्स, लोअरकेस लेटर्स, नंबर और सिम्बल(कोई चिंह जैसे स्टार) होने चाहिएं। साथ ही क्रैकर द्वारा पासवर्ड क्रैक न कर पाने के लिए समय-समय पर ‘ऐंक्रिप्शन की’ बदलने की सलाह भी दी जाती है । ऐंक्रिप्शन के लिए WPA/WPA2 के अलावा WEP का इस्तेमाल न करें।
यदि ‘की साइज़’ पर्याप्त बड़ी है तो हैकर्स को ‘की’ को क्रैक करने में ज्यादा समय लगता है। साथ ही क्रैकर द्वारा ‘ऐंक्रिप्शन की’ को क्रैक न कर पाने के लिए समय-समय पर बदलने की सलाह भी दी जाती है।
वैध प्रयोक्ता को एसेसप्वॉइंट से जोड़ने के लिए, वायरलेस क्लाइंट को MAC ऐड्रेस पर आधारित एसेसप्रदान किया जाना चाहिए।
अधिकांश प्रयोक्ता एसेसप्वॉइंट को कॉन्फिगर करने में डिफॉल्ट यूजरनेम तथा पासवर्ड को नहीं बदलते। लेकिन सलाह दी जाती है कि पासवर्ड मजबूत रखें, क्योंकि डिफॉल्ट पासवर्ड की जानकारी उत्पाद के निर्माता से प्राप्त की जा सकती है।
नेटवर्क में एसेसप्वॉइंट की पहचान के लिए एसएसआइडी सूचना का उपयोग किया जाता है इस सूचना से वायरलेस क्लाइंट नेटवर्क से कनेक्ट होते हैं। इसलिए,अधिकृत यूजर्स को नेटवर्क से कनेक्ट कराने के लिए सूचना को सावर्जनिक रुप से ब्रॉडकास्ट नहीं करना चाहिए।
एसेसप्वॉइंट के लिए अपडेट फर्मवेयर की सलाह को अपनाने से एसेसप्वॉइंट में अनेक सुरक्षा कमियों को दूर किया जा सकता है।
वायरलेस क्लाइंट द्वारा वायर्ड नेटवर्क रिसीवर को प्रमुख सूचना भेजने की स्थिति में VPN या IPSEC आधारित कम्युनिकेशन का उपयोग किया जाना चाहिए। जिससे सूचना नेटवर्क में मौजूद स्निफर्स से सुरक्षित हो सके।
नेटवर्क में एसेसप्वॉइंट की पहचान के लिए एसएसआइडी सूचना का उपयोग किया जाता है इस सूचना से वायरलेस क्लाइंट नेटवर्क से कनेक्ट होते हैं। इसलिए,अधिकृत यूजर्स को नेटवर्क से कनेक्ट कराने के लिए सूचना को सावर्जनिक रुप से ब्रॉडकास्ट नहीं करना चाहिए।
एसेसप्वॉइंट के प्रयोक्ताओं की कम संख्या में होने पर DHCP डिसेबल कर देना चाहिये। क्योंकि हैकर्स के एसेसप्वॉइंट से जुड़ कर नेटवर्क से जुड़ने में आसानी हो जाती है।
112 डायल करें, जिससे आपका मोबाइल आपातकानील नंबर से आपको कनेक्ट करने के लिए किसी भी मौजूदा नेटवर्क को सर्च करता है। 112 नंबर को कीपैड लॉक होने की स्थिति में भी डायल किया जा सकता है।
स्टक्सनेट जून 2010 में ईरान के यूरेनियम ऐंरिचमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमला में सामने आया एक अतिपरिष्कृत कम्प्यूटर वार्म है। शुरुआत में यह वर्म यूएसबी फ्लैश ड्राइव जैसी संक्रमित रिमूवेबल ड्राइव से फैलता है। स्टक्सनेट ने अप्रत्याशित फोर जीरो-डे हमले के माध्यम से विंडोज़ सिस्टम को प्रभावित किया। इस मालवेयर से ईरान सरकार को बहुत हानि हुई।
फ्लेमर के नाम से लोकप्रिय फ्लेम एक कम्प्यूटर मालवेयर है जो वर्ष 2012 में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को उपयोग में ला रहे कम्प्यूटरों को प्रभावित करने के दौरान विश्व के सामने आया। फ्लेम यूएसबी स्टिक से दूसरे कम्प्यूटरों में फैल सकता है। यह ऑडियो, स्क्रीनशॉट, कीबोर्ड की गतिविधियां और नेटवर्क ट्रैफिक को रिकॉर्ड कर सकता है। यह डाटा लोकल सर्वर या सिस्टम में सेव डॉक्यूमेंट के साथ अटैकर्स के नियंत्रण वाले सर्वर से एक या एक से अधिक कमांड के रुप में भेजा जाता है।
स्त्रोत: सूचना सुरक्षा जागरुकता,सीडैक हैदराबाद
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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