भारत की राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए 'रु' और अंग्रेज़ी में Rs. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे है और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं।
प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि प्राचीन भारत में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।
आम आदमी के लिए मुद्रा का सामान्य अर्थ केवल करेंसी और सिक्के है । इसका यह कारण है कि भारत में, भुगतान प्रणाली जिसमें क्रेडिट कार्ड और स्वचालित (इलेक्ट्रानिक) नकदी शामिल है, आज भी, विशेष रुप से, खुदरा लेनदेनों के लिए मुख्यतः करेंसी और सिक्कों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। यहाँ भारतीय मुद्रा के संबंध में बारंबार पूछे जानेवाले कतिपय प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया गया है।
I) सिक्के
वर्तमान में भारत में, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये के मूल्यवर्गों में सिक्के जारी किये जा रहे हैं । 50 पैसे तक के सिक्के "छोटे सिक्के" और 1 रुपये तथा उसके ऊपर के सिक्कों को "रुपये सिक्के" कहते है। 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के 30 जून 2011 से संचलन से वापिस लिये गये हैं, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।
II) करेंसी
वर्तमान में, भारत में `.10, `. 20, `.50, `.100, `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं । क्योंकि ये भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये जाते हैं, इसलिए इन्हें "बैंकनोट" कहा जाता है । `.1, `.2 और `.5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी संचलन में पाये जा सकते हैं और ये नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे ।
भारतीय करेंसी को भारतीय रुपया (INR) तथा सिक्कों को "पैसे" कहा जाता है। एक रुपया 100 पैसे का होता है । भारतीय रुपये का प्रतीक है। यह डिजाईन देवनागरी अक्षर "र"(ra) और लैटिन बड़ा अक्षर "R" के सदृश है जिसमें ऊपर दोहरी आड़ी रेखा है।
यह जरूरी नहीं है। भारतीय रिज़र्व बैंक केंद्र सरकार की सिफारिश पर पाँच हजार तथा दस हजार अथवा किसी अन्य मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी कर सकता है । तथापि, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, दस हजार रुपये से अधिक उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोट नहीं हो सकते हैं। सिक्काकरण(क्वायनेज) अधिनियम, 2011 के अनुसार, `.1000 तक के मूल्यवर्ग के सिक्कें जारी किये जा सकते हैं ।
मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, जनवरी 1946 में उस समय संचलन में मौजुद `.1000 और `.10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। वर्ष 1954 में `.1000, `.5000 और `.10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया और जनवरी 1978 में इन बैंकनोटों (`.1000, `.5000 और `.10000) को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया।
सिक्काकरण(क्वायनेज) अधिनियम, 2011 की धारा 6 में प्रदत्त अधिकार के अंतर्गत जारी सिक्के भुगतान के लिए वैध मुद्रा होंगे बशर्ते कि सिक्के को विरूपित न किया गया हो और उनका वजन इस तरह से कम न हुआ हो जो प्रत्येक के मामले में निर्धारित वजन से कम हो। (क)किसी भी मूल्यवर्ग के सिक्के जो एक रुपये से कम न हो किसी भी राशि के लिए (ख) आधा रुपया सिक्का, किसी भी राशि के लिए किंतु अधिक से अधिक दस रुपये तक, वैध मुद्रा होंगे ।
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी प्रत्येक बैंकनोट (`.2, `.5, `.10, `.20, `.50, `.100, `.500 और `.1000) भुगतान के लिए अथवा उस पर अंकित मूल्य के लिए पूरे भारत में कहीं भी विधि मान्य मुद्रा होगी और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 26 की उप-धारा(2) में निहित प्रावधानों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा प्रत्याभूत होगी।
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 की धारा 26 के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोट का मूल्य अदा करने के लिए जिम्मेदार है । भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा, मांग पर यह अदायगी बैंक नोट जारीकर्ता होने के नाते है। भारतीय रिज़र्व बैंक पर बैंकनोट के मूल्य की अदायगी का यह दायित्व किसी संविदा के कारण नहीं अपितु सांविधिक प्रावधानों के कारण है ।
बैंकनोट पर मुद्रित वचन खण्ड अर्थात "मैं धारक को "क" रुपये अदा करने का वचन देता हूँ" एक वचन है जिसका अर्थ है कि वह बैंकनोट उस निर्दिष्ट राशि के लिए विधि मान्य मुद्रा है । भारतीय रिज़र्व बैंक का दायित्व है कि वह उस बैंकनोट के विनिमय में उसके मूल्य के बराबर राशि के निम्न मूल्यवर्ग के बैंकनोट अथवा भारतीय सिक्काकरण अधिनियम, 2011 के अंतर्गत विधि मान्य अन्य सिक्के दें।
करेंसी ऑर्डिनेंस 1940 के अंतर्गत जारी एक रुपये के नोट भी विधि मान्य मुद्रा हैं और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 के सभी प्रयोजनों हेतु रुपये सिक्के के रूप में माना गया हैं।
क्योंकि सरकार द्वारा जारी रुपये सिक्के भारत सरकार की देयताओं में आते हैं, इसलिए सरकार द्वारा जारी एक रुपया भी भारत सरकार की देयता है।
मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की क्या भूमिका है ?
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जानेवाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेता है । भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा(डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोटों की मूल्यवर्ग-वार संभावित आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनकी मात्रा का आकलन करता है और तदनुसार, विभिन्न मुद्रण प्रेसों को अपना मांगपत्र प्रस्तुत करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है। इसके लिए, संचलन से वापिस प्राप्त होनेवाले बैंकनोटों की जाँच की जाती हैं और पुन:जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं तथा अन्य (गंदे और कटे-फटे) बैंकनोटों को नष्ट कर दिया जाता है जिससे संचलन में बैंकनोटों की गुणवत्ता बनी रहे ।
मुद्रा प्रबंध में भारत सरकार की क्या भूमिका है?
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 25 के अनुसार, रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिशों पर केंद्र सरकार द्वारा बैंकनोटों की डिज़ाइन को अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। समय समय पर यथा संशोधित सिक्काकरण अधिनियम, 2011 के आधार पर, सिक्काकरण का दायित्व भारत सरकार पर है । भारत सरकार विभिन्न मूल्यवर्गों के सिक्कों के डिज़ाइन तथा ढलायी के कार्य के लिए भी जिम्मेदार है ।
नये नोट पर मुद्रित किये जानेवाले अंकों के संबंध में कौन निर्णय लेता है?
भारत सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से बैंकनोटों के डिज़ाइन पर निर्णय लेती है।
जब नये डिज़ाइन के नोट निकाले जाते हैं, तब पुराने डिज़ाइन के नोटों का क्या किया जाता है?
आम तौर पर, कुछ समय के लिए पुराने और नये दोनों डिज़ाइन के नोट एक साथ संचलित होते हैं। उसके बाद, पुराने डिज़ाइन के नोट जब पुनः जारी करने के लिए अयोग्य हो जाते हैं तब उन्हें धीरे-धीरे संचलन से वापिस लिया जाता है।
क्या भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी पुराने नोट मूल्यहीन हैं ?
नहीं। भारतीय रिज़र्व बैंक, पूर्व में जारी नोटों की विधि मान्य मुद्रा होने की विशेषता को वापिस नहीं लेता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के सभी नोट अपना अंकित मूल्य तब तक बनाये रखते है जब तक भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उसके विपरीत कोई विशिष्ट पत्राचार जारी नहीं किया जाता। किसी भी बैंक शाखा पर इन नोटों का विनिमय किया जा सकता है। यद्यपि, यह अनुदेश `.1000, `.5000 और `.10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के लिए लागू नहीं हैं जिन्हें 1978 में विमुद्रीकृत किया गया।
अब तक मुद्रित सबसे अधिक मूल्यवर्ग का नोट कौनसा है?
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अब तक मुद्रित सबसे अधिक मूल्यवर्ग के नोट 1938 और पुनः 1954 में जारी `.10000 के नोट थे । इन नोटों को 1946 और पुनः 1978 में विमुद्रीकृत किया गया।
सिक्कों के जारी करने में भारतीय रिज़र्व बैंक की क्या भूमिका है?
भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका सिक्कों जिसकी आपूर्ति भारत सरकार द्वारा की जाती है, के वितरण तक सीमित है| समय समय पर यथा संशोधित सिक्काकरण अधिनियम, 2011 के आधार पर, सिक्काकरण का दायित्व भारत सरकार पर है ।
समय-समय पर सिक्कों के डिज़ाइन में परिवर्तन करने का दायित्व किसका है?
विभिन्न मूल्यवर्गों के सिक्कों की रूपरेखा (डिज़ाईन) बनाने और उनकी ढलाई का दायित्व भारत सरकार का है।
करेंसी पेपर किससे बनता है?
करेंसी पेपर कॉटन(Cotton) और कॉटन रग(Cotton Rag) को मिलाकर बनता है।
मुद्रित किये जाने वाले बैंक नोटों की मात्रा और मूल्य कौन निर्धारित करता है और उसका आधार क्या है ?
रिज़र्व बैंक मांग आवश्यकता के आधार पर, प्रति वर्ष मुद्रित किए जाने वाले बैंक नोटों की मात्रा और मूल्य भारत सरकार को बताता है जिसे आपसी परामर्श के बाद अंतिम रुप दिया जाता है। मुद्रित किये जानेवाले बैंक नोटों की मात्रा मोटे तौर पर बैंकनोटों की मांग को पूरा करने की आवश्यकता, सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर, संचलन से गंदे बैंकनोटों को निकाल कर उनकी जगह नए नोट की आवश्यकता और आरक्षित स्टॉक संबंधी अपेक्षाओं आदि पर निर्भर होता हैं।
ढ़ाले जानेवाले सिक्कों की मात्रा कौन निर्धारित करता है।
रिज़र्व बैंक से प्राप्त मांग पत्रों के आधार पर ढ़ाले जाने वाले सिक्कों की मात्रा भारत सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
बैंक नोटों की मांग का आकलन रिज़र्व बैंक द्वारा कैसे किया जाता है?
रिज़र्व बैंक द्वारा सांख्यिकीय प्रणाली/तकनीक का प्रयोग करते हुए बैंकनोटों की मांग का आकलन अर्थव्यवस्था की वृध्दि की दर, मुद्रा स्फीति दर, नोटों को बदलने की मांग, आरक्षित स्टॉक की अपेक्षाओं आदि के आधार पर किया जाता है ।
नोटों और सिक्कों का उत्पादन कहां होता है?
नोटों का मुद्रण नासिक, देवास, मैसूर और सालबोनी में स्थित चार मुद्रण प्रेसों में किया जाता है। सिक्कों की ढलाई मुंबई, नोएडा, कोलकाता और हैदराबाद में स्थित चार टकसालों में की जाती है।
वर्तमान में, रिज़र्व बैंक अहमदाबाद, बेंगलूर, बेलापुर, भोपाल, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, चेन्नै, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जम्मू, कानपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, नागपुर,नई दिल्ली, पटना और तिरुवनंतपुरम में स्थित अपने 19 निर्गम कार्यालयों और कोच्ची कार्यालय की एक मुद्रा तिजोरी के साथ ही, मुद्रा तिजोरियों के व्यापक रूप से फैले नेटवर्क के माध्यम से मुद्रा प्रबंधन का कार्य कर रहा है । ये कार्यालय बैंकनोट मुद्रण प्रेसों से नये बैंक नोट प्राप्त करते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्गम कार्यालय वाणिज्यिक बैंकों की निर्दिष्ट शाखाओं को नये बैंकनोटों का प्रेषण भेजते हैं।
हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई और नई दिल्ली( मिंट से जुड़े कार्यालय) स्थित रिज़र्व बैंक के कार्यालय सर्वप्रथम, टकसालों से सिक्के प्राप्त करते हैं। उसके बाद, ये कार्यालय रिज़र्व बैंक के अन्य कार्यालयों को सिक्के भेजते हैं, जो उन्हें मुद्रा तिजोरियों और छोटे सिक्का डिपो को भेजते हैं। बैंकनोट और रुपया सिक्के मुद्रा तिजोरियों तथा छोटे सिक्के छोटे सिक्का डिपो में रखे जाते हैं। इसके बाद, जनता में वितरण हेतु, बैंकों की शाखाएं उन बैंकनोटों और सिक्कों को मुद्रा तिजोरियों और छोटे सिक्का डिपो से प्राप्त करती हैं ।
मुद्रा तिजोरी क्या है?
बैंकनोट और रुपया सिक्कों के वितरण में सुगमता लाने के उद्देश्य से, रिज़र्व बैंक द्वारा अनुसूचित बैंकों की चुनिंदा शाखाओं को मुद्रा तिजोरियां खोलने लिए अधिकृत किया गया है। ये मुद्रा तिजोरियां वास्तव में एक प्रकार के गोदाम है जिनमें रिज़र्व बैंक की ओर से बैंकनोटों तथा रुपया सिक्कों का भंडारण किया जाता है । 31 दिसंबर 2013 की स्थिति के अनुसार, 4209 मुद्रा तिजोरियों थी। मुद्रा तिजोरी शाखाओं से अपेक्षित है कि वे अपने कार्यक्षेत्र में अन्य बैंकों की शाखाओं को बैंकनोटों तथा सिक्कों का वितरण करें।
छोटे सिक्के के डिपो क्या है?
छोटे अर्थात एक रुपये से कम मूल्य के सिक्कों का भंडार रखने हेतु कुछ बैंक शाखाओं को छोटा सिक्का डिपो खोलने के लिए अधिकृत किया गया है । छोटा सिक्का डिपो भी अपने कार्यक्षेत्र में आनेवाली अन्य बैंक शाखाओं को छोटे सिक्के उपलब्ध कराते हैं। 31 दिसंबर 2013 को 3966 छोटा सिक्का डिपो थे।
बैंकनोटों और सिक्कों के संचलन से वापसी पर क्या होता है?
बैंकनोटों के संचलन से वापसी पर उन्हें रिज़र्व बैंक के निर्गम कार्यालयों में जमा किया जाता है । इसके बाद रिज़र्व बैंक, इन बैंकनोटों का प्रसंस्करण करता है, बैंकनोटों की वास्तविकता जाँची जाती है, बैंक नोटों को पुन: जारी करने योग्य और जारी न करने योग्य नोटों को निरस्त करने के लिए, अलग किया जाता है । पुन: जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं और जो पुन:जारी करने योग्य नहीं पाए जाते हैं, उन्हें परीक्षण प्रक्रिया पूरी हो जाने पर श्रेडिंग के जरिए नष्ट किया जाता है। संचलन से हटाये गये सिक्कों को छोडकर, अन्य सिक्के संचलन से वपिस नहीं आते हैं।
आम जनता बैंकनोट और सिक्के कहाँ से प्राप्त कर सकती है ?
वर्तमान में, आम जनता भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यालयों और बैंकों की सभी शाखाओं से बैंकनोट और सिक्के विनिमय में प्राप्त कर सकती हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यह कार्य वाणिज्यिक बैंकों को सौंपा जा रहा है।
गंदे, कटे-फटे और अपूर्ण बैंकनोट कौनसे हैं?
गंदा नोट उस नोट को माना जाता है जो इस्तेमाल के कारण गंदा हुआ हो, जिसमें दो टुकडों का नोट, जिसमें प्रस्तुत दोनों टुकडे एक ही नोट के हो और उससे एक पूर्ण नोट बनता हो, भी शामिल हैं।
कटा-फटा नोट वह बैंकनोट है जिसका एक हिस्सा गायब हो अथवा जो दो से अधिक टुकड़ों से बना हो ।
अपूर्ण नोट का अर्थ है कोई भी ऐसा नोट जो पूर्णतः या अंशतः विरूपित हो, सिकुड गया हो, धुल गया हो, उसमें हेर-फेर की गयी हो या अपठनीय हो, लेकिन वह कटे- फटे नोटों की परिभाषा में न आता हो।
क्या गंदे और कटे-फटे नोटों का विनिमय मूल्य मिल सकता है?
हाँ । ऐसे बैंकनोटों का विनिमय मूल्य मिल सकता है।
गंदे/कटे-फटे बैंकनोट विनिमय के लिए कहां स्वीकृत किये जाते हैं?
सभी बैंक शाखाओं को गंदे बैंकनोट पूर्ण मूल्य के लिए स्वीकारने हेतु प्राधिकृत किया गया है। उनसे यह अपेक्षित है कि वे गैर-ग्राहकों को भी, गंदे नोटों के विनिमय की सुविधा प्रदान करें। वाणिज्यक बैंकों की सभी शाखाओं को कटे-फटे बैंकनोटों का अधिनिर्णयन करने और भारतीय रिज़र्व बैंक(नोट वापसी)नियमावली, 2009 के अनुसार इन नोटों का मूल्य अदा करने हेतु प्राधिकृत किया है।
गंदे बैंकनोटों का कितना विनिमय मूल्य मिल सकता है?
गंदे बैंक नोटों का विनिमय पूरे मूल्य के लिए किया जाता है।
कटे-फटे बैंकनोटों का कितना विनिमय मूल्य मिल सकता है?
कटे-फटे बैंकनोटों का विनिमय पूरे मूल्य के लिए किया जा सकता है यदि,
`.1, `.2, `.5, `.10 और `.20 के मूल्यवर्गों के लिए, प्रस्तुत किये गये नोट के सबसे बड़े एक अविभाजित टुकडे का क्षेत्र अगले पूर्ण वर्ग सेंटीमीटर में पूर्णांकित करने पर संबंधित मूल्यवर्ग के नोट के कुल क्षेत्र से 50 प्रतिशत से अधिक हो
`.50, `.100, `.500 और `.1000 के मूल्यवर्गों के लिए, प्रस्तुत किये गये नोट के सबसे बड़े एक अविभाजित टुकडे का क्षेत्र अगले पूर्ण वर्ग सेंटीमीटर में पूर्णांकित करने पर संबंधित मूल्यवर्ग के नोट के कुल क्षेत्र से 65 प्रतिशत से अधिक हो
`.1, `.2, `.5, `.10 और `.20 के मूल्यवर्गों के बैंकनोटों का विनिमय आधे मूल्य के लिए नहीं किया जा सकता है।
`.50, `.100, `.500 और `.1000 के मूल्यवर्गों में कटे-फटे बैंकनोटों का विनिमय आधे मूल्य के लिये किया जा सकता है यदि,
प्रस्तुत नोट के सबसे बड़े एक अविभाजित टुकडे का क्षेत्र अगले पूर्ण वर्ग सेंटीमीटर में पूर्णांकित करने पर संबंधित मूल्यवर्ग के क्षेत्र के 40 प्रतिशत के समान या अधिक तथा 65 प्रतिशत से कम अथवा समान हो।
अपूर्ण बैंकनोटों का कितना विनिमय मूल्य मिल सकता है?
कटे-फटे नोटों के लिए यथा निर्दिष्ट नियमावली के तहत, अपूर्ण नोट के लिए पूरा/आधा मूल्य अदा किया जा सकता है, यदि,
(i) वह विषयवस्तु, जो नोट पर मुद्रित है, पूरी तरह से अपठनीय न हो गयी हो, और
(ख) यह प्रमाणित हो सके कि प्रस्तुत नोट वास्तविक(genuine) है ।
नोट वापसी नियमावली के अंतर्गत किस प्रकार के बैंकनोट अदायगी के लिए पात्र नहीं हैं?
भारतीय रिज़र्व बैंक(नोट वापसी) नियमावली 2009 के अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार के बैंकनोटों की अदायगी नहीं की जाती हैं -
वह बैंकनोट जिसमें:
`.1, `.2, `.5, `.10 और `.20 के मूल्यवर्गों के लिए, प्रस्तुत किये गये नोट के सबसे बड़े एक अविभाजित टुकडे का क्षेत्र 50 प्रतिशत से कम या समान हो
`.50, `.100, `.500 और `.1000 के मूल्यवर्गों के लिए, प्रस्तुत किये गये नोट के सबसे बड़े एक अविभाजित टुकडे का क्षेत्र 40 प्रतिशत से कम हो
वह बैंकनोट :
जिसकी पहचान असली नोट के रुप में निश्चित रुप से नहीं की जा सकती है जिसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक उक्त अधिनियम के अंतर्गत उत्तरदायी है।
जिसे अपूर्ण या कटा-फटा बनाया गया है, फलस्वरूप वह नोट उच्च मूल्यवर्ग का प्रतीत होता है, या उस नोट को जान-बुझकर काटा गया, फाड़ा गया या विरूपित किया गया है या उसे किसी अन्य प्रकार से बदला गया हो, जरूरी नहीं कि यह कार्य दावेदार ने किया हो, लेकिन इसके कारण, उक्त नियमावली के तहत झूठा दावा करने के लिए या अन्यथा बैंक या जनता को धोखा देने में उस नोट का उपयोग किया गया हो,
जिसमें राजनैतिक या धार्मिक स्वरूप का या किसी व्यक्ति या संस्था के पक्ष में भेजा कोई संदेश या कोई अनावश्यक शब्द या दृश्य बयान हो,
जो किसी भी कानून के प्रावधानों के उल्लंघन स्वरूप भारत के बाहर के किसी स्थान से दावाकर्ता द्वारा भारत में आयात किया गया हो।
क्षतिग्रस्त बैंकनोटों के मूल्य का आकलन करते समय क्या श्रृंखला संख्या (serial number) का आधार लिया जाता है?
क्षतिग्रस्त बैंकनोटों के मूल्य का आकलन करते समय, श्रृंखला संख्या या अन्य विशिष्ट विशेषता का होना या न होना निर्धारक घटक नहीं है।
यदि कोई बैंक नोट अदायगी के योग्य न पाया जाए तो उस स्थिति में उसका क्या किया जाता है?
प्राप्तकर्ता बैंक अदायगी के लिए अयोग्य पाये गये नोट अपने पास रख लेता है और उसे रिज़र्व बैंक के पास भेज दिया जाता है जहाँ उन्हें नष्ट कर दिया जाता है ।
क्या विशिष्ट श्रृंखला संख्याओं के साथ भारतीय बैंकनोट प्राप्त किये जा सकते हैं?
विशिष्ट श्रृंखला संख्याओं के साथ भारतीय बैंकनोट जारी करना संभव नहीं है।
भारतीय बैंकनोटों के भाषा पैनल में कितनी भाषाएं पायी जाती हैं।
बैंकनोट के मध्य में मुख्य रुप से हिंदी और पृष्ठ भाग पर अंग्रेजी के अलावा बैंकनोटों के भाषा पैनल में पन्द्रह भाषाएं दिखायी देती हैं।
i अशोक स्तंभ वाले बैंकनोट -
स्वंतत्र भारत द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1949 में `.1 का नोट जारी किया गया। पुराने डिज़ाइन को बरकरार रखते हुए, वाटर मार्क विंडो के भीतर किंग जार्ज की चित्र की जगह सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के सिंहाकृति प्रतीक के साथ नये बैंकनोट जारी किये गये।
वर्ष 1951 से नये बैंकनोटों पर नोट जारीकर्ता का नाम, मूल्यवर्ग और वचन खण्ड हिन्दी में मुद्रित किये गये। वर्ष 1954 में `.1000, `.5000 और `.10,000 मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये गये । वर्ष 1967 और 1992 के दौरान `.10 मूल्यवर्ग, 1972 और 1975 में `.20 मूल्यवर्ग, 1975 और 1981 में `.50 मूल्यवर्ग, 1967 से लेकर 1979 के बीच `.100 मूल्यवर्ग में अशोक स्तंभ वाटर मार्क श्रृंखला में बैंकनोट जारी किये गये। उपर्युक्त अवधि में जारी ये बैंकनोट विज्ञान और टेक्नालॉजी, प्रगति, भारतीय कला के उत्कर्ष को प्रस्तुत करनेवाले प्रतीकों से युक्त थे। वर्ष 1980 में “सत्यमेव जयते” अर्थात “ सत्य की जीत होती है”, इस अर्थ के वाक्य को राष्ट्रीय चिन्ह के अंतर्गत प्रथम बार समाविष्ट किया गया। अक्तूबर 1987 में महात्मा गांधी के चित्र और अशोक स्तंभ वाटर मार्क सहित `.500 मूल्यवर्ग का बैंकनोट जारी किया गया।
ii महात्मा गांधी (एमजी) श्रृंखला 1996
महात्मा गांधी श्रृंखला - 1996 में बैंक नोट `.5(नवंबर 2001 में जारी), `.10 (जून 1996), `.20 (अगस्त 2001), `.50 (मार्च 1997), `.100 (जून 1996), `.500 (अक्तूबर 1997) और `.1000 (नवंबर 2000) मूल्यवर्ग में जारी किये गये। इस श्रृंखला के सभी बैंकनोटों के अग्र भाग पर अशोक स्तंभ की सिंहाकृति प्रतीक, जिसे बरकरार रखते हुए वॉटर मार्क विंडो के पास बायीं ओर स्थानांतरित किया गया है, की जगह महात्मा गांधी का चित्र अंकित किया गया। इसका अर्थ यह है कि इन बैंकनोटों में महात्मा गांधी के चित्र के साथ महात्मा गांधी वाटर मार्क भी मौजुद है।
iii एमजी श्रृंखला – 2005 बैंकनोट
`.10, `.20, `.50, `.100, `.500 और `.1000 के मूल्यवर्ग में एमजी श्रृंखला 2005 के बैंकनोट जारी किये गये हैं और इनमें एमजी श्रृंखला 1996 की तुलना में कुछ अतिरिक्त/नयी सुरक्षा विशेषताएं हैं। `.50 और `.100 के बैंकनोट अगस्त 2005 में, उसके बाद `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के अक्तूबर 2005 में तथा `.10 और `.20 के क्रमशः अप्रैल 2006 एवं अगस्त 2006 में जारी किये गये।
एमजी श्रृंखला 2005 बैंकनोटों की सुरक्षा विशेषताएं निम्नानुसार हैं –
i. सुरक्षा धागा: `.10, `.20 और `.50 मूल्यवर्ग के बैंकनोटों में चमकीले रंग का मशीन द्वारा पठनीय सुरक्षा धागा नोट के अग्र भाग पर विंडो के भीतर और पृष्ठ भाग पर पूरी तरह से गुंथा हुआ है। यह धागा पराबैंगनी(अल्ट्रावायलेट) रोशनी में दोनों तरफ से पीले रंग का चमकीला दिखायी देता है। रोशनी के सामने पकडने पर यह धागा पीछे से एक सतत रेखा के रूप में दिखायी देता है। `.100, `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के बैंकनोटों में विंडो के भीतर विभिन्न कोणों से देखने पर हरे रंग से नीले रंग में परिवर्तित होनेवाला मशीन द्वारा पठनीय सुरक्षा धागा है। पराबैंगनी रोशनी में यह धागा पृष्ठ भाग पर पीले रंग का और अग्र भाग पर अक्षर चमकीला दिखायी देता है। इसके अलावा, `.1000 के बैंकनोटों पर सुरक्षा धागे में बारी-बारी से देवनागरी लिपि में "भारत" और "RBI" शब्द दिखायी देते हैं। `.1000 के बैंकनोट के सुरक्षा धागे में देवनागरी लिपि में "भारत", "1000" और "RBI" मौजुद हैं।
ii. उभारदार मुद्रण(इंटेग्लियो प्रिटिंग): - महात्मा गांधी का चित्र, रिज़र्व बैंक की मुहर और गारंटी तथा वचन खण्ड, अशोक स्तंम्भ का प्रतीक चिन्ह, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर और कमजोर दृष्टिवाले व्यक्तियों के लिए पहचान चिन्ह सुधारित उभारदार मुद्रण (इंटैग्लियों प्रिटिंग में अर्थात जिसे छूकर महसूस किया जा सकता है) में मुद्रित किये गये हैँ।
iii. आरपार मिलान मुद्रण(See through Register) – वॉटर मार्क विंडों के आगे बैंकनोट की बायीं ओर प्रत्येक मूल्यवर्ग के (10, 20, 50, 100, 500 और 1000) अंक का आधा हिस्सा आगे की ओर तथा आधा हिस्सा पीछे की ओर मुद्रित हैं। दोनों मुद्रित हिस्से आगे - पीछे इतने सटीक छपे हैं कि रोशनी के सामने देखने पर ऐसा लगता है कि ये एक ही हैं।
iv. वाटर मार्क और इलेक्ट्रोटाइप वाटर मार्क(Water Mark/ Electotype Watermark): बैंकनोट में वाटरमार्क विंडो में धूप छाँव के प्रभाव दर्शानेवाली बहुदिशात्मक रेखाओं के साथ महात्मा गांधी का चित्र है । प्रत्येक मूल्यवर्ग के बैंकनोट में क्रमशः 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 मूल्यवर्गीय अंक को दर्शानेवाला इलेक्ट्रोटाइप मार्क भी वाटर मार्क विंडों में दिखाई देता है और बैंकनोट को रोशनी के सामने देखने पर उसे बेहतर रूप में देखा जा सकता है ।
v. प्रकाशीय रंग परिवर्तक स्याही(Optically Variable Ink) - `.500 और `.1000 के बैंकनोटों में उनके मूल्यवर्गीय अंक 500 और 1000 ऑप्टीकली वेरियेबल इंक अर्थात् प्रकाशीय रंग परिवर्तक स्याही से मुद्रित हैं । जब इन नोटों को समतल पकड़ा जाता है तो इन अंकों का रंग हरा दिखाई देता है लेकिन जब इन्हें तिरछा कर दिया जाता है तो यह रंग बदलकर नीला हो जाता है।
vi. फ्लुऍरेसिन्स (Fluorescence)(चमकीलापन) - बैंकनोटों के संख्या पटल चमकीली स्याही से मुद्रित हैं। इनमें दोहरे रंगवाले प्रकाशीय धागे भी हैं। दोनों को अल्ट्रा वायलेट लैम्प की रोशनी में देखा जा सकता है ।
vii. लेटॅन्ट इमेज(Latent Image) `.20 और उससे ऊपर के मूल्यवर्ग के बैंकनोटों में, महात्मा गांधी के चित्र के पास में (दायीं ओर) एक खडी पट्टी हैं जिसमें मूल्यवर्ग के अनुसार 20, 50, 100, 500 या 1000 के मूल्यवर्गीय अंक को दर्शाता है । नोट को हथेली पर रखने और उस पर 45 डिग्री से रोशनी पडने पर इस मूल्य को देखा जा सकता है । अन्यथा ये विशेषता केवल एक खड़ी पट्टी जैसी दिखाई देगी।
viii. मायक्रो लेटरिंग (Micro Lettering)- महात्मा गांधी के चित्र और खड़ी पट्टी के बीच ये विशेषता दिखाई देती है। `.10 के नोट में इसमें ‘RBI’ शब्द समाविष्ट है तथा `.20 और उससे ऊपर के मूल्यवर्ग के नोटो में मूल्यवर्गीय अंक भी समाविष्ट हैं। इस विशेषता को मैग्निफाईंग ग्लास की मदद से बेहतर रूप से देखा जा सकता है।
एमजी श्रृंखला – 2005 के बैंकनोटों में कोई व्यक्ति किस प्रकार से अंतर कर सकता है?
ऊपर बतायी गयी सुरक्षा विशेषताओं के अलावा, एमजी श्रृंखला – 2005 बैंकनोटों में बैंकनोट के पृष्ठभाग पर मुद्रण वर्ष दिखाई देता है जो 2005 से पूर्व की श्रृंखला में नहीं है।
बैंकनोटों की विभिन्न श्रृंखलाएं मुद्रित करने की क्या आवश्यकता है?
पूरे विश्व में केंद्रीय बैंक अपने बैंक नोटों के डिजाईन में कतिपय परिवर्तन करते हैं और इसका प्रमुख कारण नोट के जालीकरण को कठिन बनाना तथा जालसाज़ी करनेवालों से आगे रहना है। भारत भी इस नीति का अनुसरण करता है।
`.1, `.2 और `.5 मूल्यवर्ग के बैंकनोट क्यों मुद्रित नहीं किये जा रहे हैं?
यद्यपि मात्रा के दृष्टिकोण से संचलन में उपलब्ध बैंकनोटों में इस प्रकार के छोटे मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का हिस्सा अधिक था, जबकि मूल्य की दृष्टि से उनका प्रतिशत बहुत कम होने के साथ ही, इन नोटों की औसतन आयु 1 वर्ष से भी कम थी । इन बैंकनोटों के मुद्रण और उनके प्रबंधन की लागत उनकी आयु के अनुरूप नहीं होने को ध्यान में रखते हुए इनका मुद्रण बंद कर दिया गया और इन मूल्यवर्गों का सिक्कारण कर दिया गया। तथापि, `.5 के सिक्कों की मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने के उद्देश्य से 2001 में `.5 के बैंकनोटों को पुन: जारी किया गया। वर्ष 2005 से `.5 मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का मुद्रण बंद किया गया है।
क्या रिज़र्व बैंक ने प्लास्टिक बैंकनोटों का उत्पादन करने पर विचार किया है?
भारत सरकार के परामर्श से, भारतीय रिज़र्व बैंक ने परीक्षण के आधार पर प्लास्टिक सबस्ट्रेट पर `.10 मूल्यवर्ग के 1 बिलियन नोट जारी करने का निर्णय लिया है।
"स्टार श्रृंखला" नोट किन्हें कहा जाता है?
अगस्त 2006 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी नये बैंकनोटों को क्रमानुसार नंबर दिये गये थे। प्रत्येक बैकनोट पर अंक और अक्षर/अक्षरों से बने एक उपसर्ग सहित विशिष्ट श्रृंखला संख्या होती है। बैंकनोटों को पैकटों में जारी किया जाता है, जिसमें 100 नोट होते हैं ।
बैंक ने दोषपूर्ण मुद्रित बैंकनोटों के प्रतिस्थापन के लिए, "स्टार श्रृखंला" संख्याकन प्रणाली को अपनाया है। स्टार श्रृखंला के बैंकनोट महात्मा गांधी श्रृंखला के विद्यमान बैंकनोटों जैसे ही हैं, केवल उनमें एक अतिरिक्त विशेषता है अर्थात उपसर्ग और नंबर के बीच के स्थान पर संख्या पैनेल में नीचे दर्शाये गये अनुसार एक * (स्टार) है ।
गैर-क्रमिक संख्याकन क्या है?
बैंकनोटों के मुद्रण में, परिचालनात्मक कार्यकुशलता और लागत किफायत को बढ़ाने की दृष्टि से, अंतर्राष्ट्रीय बेहतरीन पद्धतियों के अनुरुप 2011 में गैर-क्रमिक संख्याकन को अपनाया गया। गैर-क्रमिक संख्यावाले बैंकनोटों के पैकेटों में 100 नोट होते हैं परंतु उनपर क्रमानुसार संख्याकन नहीं होता है।
विभिन्न मूल्यवर्गों के बैंकनोटों की पहचान करने के लिए कमजोर दृष्टिवाले लोगों की सहायता हेतु बैंकनोट में क्या विशेषता रखी है?
प्रत्येक मूल्यवर्ग अलग-अलग आकार का है। नोट का मूल्य जितना अधिक होता है, उसके अनुसार नोट का आकार बढ़ता है । अत: `.1000 का नोट `.10 के नोट से बड़ा है और यही व्यवस्था अन्य मूल्यवर्ग के नोटों के लिए भी है। प्रत्येक नोट के अग्रभाग पर वाटर मार्क विंडो की बायीं ओर उन्नत मुद्रण (इंटेग्लियों) में एक पहचान चिन्ह है और जो विभिन्न मूल्यवर्ग के लिए अलग अलग आकार की हैं जैसे की `.1000 के बैंकनोट में हीरा, `.500 के नोट में वृत्त, `.100 के नोट में त्रिभुज, `.50 के नोट में वर्गाकार, `.20 के नोट में लम्बवत आयाताकार और `.10 के लिए कुछ भी नहीं है। इसके अलावा, उन्नत मुद्रण में नोटों के मध्य भाग में मूल्यवर्गीय अंक प्रमुखतः दिखाई देता है।
जाली नोट किसे कहते है?
जिसमें वास्तविक भारतीय करेंसी नोटों की विशेषताएँ नहीं पायी जाती हैं, ऐसा कोई भी संदिग्ध नोट, जाली नोट या नकली नोट ।
कोई नोट असली है या नहीं इसकी जांच कैसे की जाये?
किसी भी जाली नोट की पहचान वास्तविक भारतीय करेंसी नोट में मौजूद विशेषताओं के आधार पर की जा सकती है। ये विशेषताएँ नोट को देखने, स्पर्श करने और समतल से घुमाकर-हिलाकर आसानी से पहचान योग्य हैं। यह उचित होगा कि केवल किसी एक सुरक्षा विशेषता पर निर्भर न रहा जाये क्योंकि किसी भी जाली नोट में बैंकनोटों में शामिल सभी सुरक्षा विशेषताओं की सफलतापूर्वक नकल सामान्यतः नहीं हो सकती है । बैंकनोटों की जांच कैसे करनी है, इसकेविषय में पढ़ने हेतू http://www.rbi.org.in/scripts/ic_banknotes.aspx लिंक देखें।
जाली नोटों के मुद्रण और उनके संचलन के बारे में क्या कोई कानूनी प्रावधान हैं?
भारतीय दंड संहिता की धारा 489 A से 489 E के अंतर्गत बैंकनोटों का जालीकरण/जाली या नकली नोटों का असली नोटों के रूप मे उपयोग करना/ जाली या नकली नोटों को अपने पास रखना/ बैंकनोटों के जालीकरण के लिए उपकरण तथा संबंधित सामग्री बनाना या उन्हें अपने पास रखना/बैंकनोटों की सादृश्य दस्तावेज बनाना तथा उनका उपयोग करना अपराध है जिसके लिए न्यायालय जुर्माना, अथवा सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास अथवा दोनों सज़ाएं, अपराध के आधार पर, दे सकते हैं।
जाली नोट अपने पास रखने से क्या जुर्माना या कारावास का दंड मिलता है?
जाली नोट को केवल अपने पास रखने से दंड नहीं होता है। जाली नोट के बारे में ज्ञात होने पर भी उसे अपने पास रखना और वास्तविक नोट के रूप में उसका उपयोग करने का इरादा रखना या उसका वास्तविक नोट के रूप में उपयोग करना भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 489 C के अंतर्गत दण्डनीय है।
आम जनता को जाली नोट और वास्तविक बैंकनोटों में फर्क समझाने के लिए, प्रशिक्षित करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा क्या कार्रवाई की गयी है?
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिक मात्रा में नकदी का लेन-देन करनेवाले व्यक्तियों जैसे कि बैंकों/ग्राहक मंचों/व्यापारी संस्थाओं/प्रशिक्षण संस्थानों/पुलिस व्यवसायीयों के लिए बैंकनोटों की सुरक्षा विशेषताओं के प्रमाणीकरण पर प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन करता रहा है। प्रशिक्षण सत्रों के अलावा, बैंकनोटों की सुरक्षा विशेषताओं से संबंधित जानकारी रिज़र्व बैंक की वेबसाईट पर भी उपलब्ध है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2005 से पूर्व जारी श्रृंखलाओं को संचलन से वापिस लेने का निर्णय क्यों लिया है?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2005 से पूर्व जारी सभी बैंकनोटों को संचलन से वापिस लेने का निर्णय लिया है क्योंकि उनमें 2005 के बाद मुद्रित बैंकनोटों की तुलना में कम सुरक्षा विशेषताएं हैं। यह एक मानक अंतर्राष्ट्रीय पद्धति है कि पुरानी श्रृंखला के नोटों को वापिस लिया जाय। भारतीय रिज़र्व बैंक पहले से ही इन बैंकनोटों को सामान्य प्रक्रिया के अन्तर्गत बैंकों के माध्यम से वापिस लेता रहा है। यह अनुमानित है कि संचलन में इन बैंकनोटों (2005 से पूर्व) की मात्रा इतनी अधिक नहीं है जो व्यापक रुप से आम जनता को प्रभावित करे । जनता अपनी सुविधा के अनुसार बैंक शाखाओं में 2005 से पूर्व जारी बैंकनोटों का विनिमय कर सकती हैं।
रिज़र्व बैंक आम जनता को अच्छी गुणवत्ता वाले बैंकनोट उपलब्ध कराने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक और बैंकिंग प्रणाली की मदद करने के लिये आाम जनता को यह अनुरोध किया जाता है कि वे कृपया निम्नलिखित का अनुपालन करें:-
बैंक नोटों को स्टैपल न करें;
बैंक नोटों पर न लिखें /बैंकनोटों पर रबड़ की मुहर अथवा अन्य कोई चिन्ह न लगाये;
बैंकनोटों का उपयोग मालाएं/खिलौने बनाने, पंडालों या पूजा स्थलों को सजाने या सामाजिक कार्यक्रमों आदि में विशेष व्यक्तियों पर बरसाने के लिए न किया जाये।
स्रोत: रिज़र्व बैंक, भारत का वित्त विभाग, विकिपीडिया ।
अंतिम बार संशोधित : 2/13/2020
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