एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि निकालने के प्रयोजन के लिए होता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कही जा सकती है। वाद्ययंत्र का इतिहास, मानव संस्कृति की शुरुआत से प्रारंभ होता है।
भारतीय वाद्य यंत्रों को मोटे तौर पर चार वर्गों में बांटा जा सकता है- तारयुक्त वाद्ययंत्र, हवा से बजने वाले वाद्ययंत्र, झिल्ली के कम्पन वाले वाद्ययंत्र तथा इडियोफोन।
झारखण्ड में चार प्रकार के वाद्य प्रचलित है
1. तंतु वाद्य
2. सुषिर वाद्य
3. अवनध्द वाद्य (चमड़े के बने मुख्य ताल वाद्य)
4. घन वाद्य (धातु के बने सहायक ताल वाद्य)
झारखण्ड में चारों प्रकार के वाद्य पाये जाते हैं। तंतु वाद्यों में तांत या तारों से आवाज निकलती है। उंगली, कमानी या लकड़ी के आघात से बजाये जाने वाले इन वाद्यों में केंदरी, एक तारा या गुपी यंत्र, सारंगी, टुईला और भुआंग झारखण्ड में मुख्य हैं और लोकप्रिय भी। उन्हें गीतों के साथ बजाया जाता है और उनसे धुनें भी बनायी जाती हैं।
भुआंग संथालों का प्रिय वाद्य है। दशहरा के समय दासांई नाच में वे भुआंग बजाते हुए नृत्य करते हैं। यह तार वाद्य है। इसके बावजूद इसमें ऐसे अधिक स्वर निकलने की गुंजाइश नहीं रहती। इसमें धनुष और तुम्बा होता है। इसमें तार को उपर खींच कर छोड़ देने से धनुष-टंकार जैसी आवाज निकलती है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : संवाद
अंतिम बार संशोधित : 2/3/2023
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