एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि निकालने के प्रयोजन के लिए होता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कही जा सकती है। वाद्ययंत्र का इतिहास, मानव संस्कृति की शुरुआत से प्रारंभ होता है।
अवनध्द वाद्य मुख्यत: चमड़े के वाद्य हैं। झारखण्ड में चमड़ा निर्मित वाद्यों की संख्या सबसे अधिक है। उनको ताल वाद्य भी कहा जाता है। उनमें मांदल या मांदर, ढोल, ढाक, धमसा, नगाड़ा, कारहा, तासा, जुड़ी-नागरा, ढप, चांगु, खंजरी, डमरू, विषम ढाकी आदि आते हैं। उनमें मांदर, ढोल, ढाक, डमरू, विषम ढकी आदि मुख्य ताल वाद्य हैं। धमसा, कारहा, तासा, जुड़ी नागरा आदि गौण ताल वाद्य हैं। वे सभी वाद्य नृत्य के साथ बजाये जाते हैं।
धमसा: यह विशालकाय वाद्य है। इसका मांदर, ढोल आदि मुख्य वाद्यों के सहायक वाद्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
इसकी आकृति कड़ाही जैसी होती है। इसका ढांचा लोहे के चदरे से तैयार किया जाता है। इसे लकड़ियों के सहारे बजाया जाता है। इसकी आवाज गंभीर और वजनदार होती है। छऊ नृत्य में धमसा की आवाज से युध्द और सैनिक प्रयाण जैसे दृश्यों को साकार किया जाता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : संवाद
अंतिम बार संशोधित : 2/3/2023
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