खरवार बिहार की एक प्रमुख अनुसूचित जनजाति है, जो मुख्य रूप से पलामू प्रमंडल के लातेहार, रंका, बालूमाथ, चंदवा, बरवाडीह, भवनाथपुर, गढ़वा, उंटारी, भंडरिया, गारू, छतरपुर, डाल्टेनगंज तथा महुआडार थाना क्षेत्रों में अधिवासित है। इसकी कुछ आबादी लोहरदगा जिले के लोहरदगा तथा गुमला जिला के विशुनपुर तथा चैनपुर थाना क्षेत्र में भी निवास करती है। पुराना शाहबाद जिले के अधरूआ तथा रोहतासगढ़ थाना क्षेत्र में भी यह जनजाति रहा करती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह जनजाति अपने को सूर्यवंशी रहा हरीशचंद्र के पुत्र रोहिताश्व का वंशज मानती है तथा पहले रोहतास के अधित्यका को चोटियों तथा समतलीय भू – भाग में समूहों में रहा करती थी। खरवार पलामू में चेरो शासन के प्रांरभ के पहले से ही बसे हुए थे, किन्तु पलामू में चेरो शासन के शुरूआत के समय से खरवार लोग झून्दों में पलामू प्रवासित कर गये तथा चेरो प्रधानों को पलामू पर अधिपत्य स्थापित करने में काफी सहायता प्रदान की जिसके बदले अनेक खरवारों को जागीर इत्यादि से नवाजा गया।
खरवार एक स्थायी कृषक समुदाय है, जो जटिल ग्रामीण जीवन व्यतीत करता है। इस जनजाति का आर्थिक जीवन वन उत्पादों के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है।
बिहार के जनजातीय क्षेत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में 1930 ई. के दौरान अनके वन सत्याग्रह चलाये गये, जिसका मुख्य उद्देश्य जनजातियों के वनों पर प्रथागत अधिकार की वापसी करना था, जिन पर जनजातीय समुदाय के अधिकार सीमित कर दिए गये थे। पलामू जिले की कोयल नदी के दक्षिणी भू – भाग के जंगलों में अधिवासित खरवार समुदाय के लोग कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लिए गये थे, जिसके फलस्वरूप उनके बीच एक नई राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई थी। खरवार समुदाय के लोग उस समय तत्कालीन प्रशासन के दमन के शिकार थे। खरवार उस समय स्वराज्य की व्याख्या अपने जमीन तथा जंगलों से संबंधित अधिकार की वापसी के सन्दर्भ में किया करते थे। 1950 ई. में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के कारण खरवार कृषकों को कुछ सुकून मोला। यद्यपि सुरक्षित वन की घोषणा के समय सैद्धांतिक तौर पर जनजातियों के प्रथागत अधिकार के अनुरूप उन्हें मुफ्त जलावन, इमारती लकड़ी, पशुओं के लिए चार, लघु वन पदार्थों के संचयन की छूट दी गयी थी, किन्तु व्यवहारिक रूप से जंगल के संरक्षक उन्हें सताया करते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जनजातियों की समस्याएं बिलकूल ही समाप्त नहीं हो गयी थी। जिन जंगलों को वे अपना समझते थे तथा अपने ला भ के लिए उपयोग किया करते थे, उन जंगलों पर उनक सर्वस्व अधिकार नहीं रहा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उनकी भूमि पर भी कर आरोपित किये गये। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान कांग्रेसी नेताओं द्वारा कर समाप्त कर देने का जो वादा किया गया। बंजर भूमि पर कृषि कार्य संपादित करने पर पाबंदी लगा दी गयी, जो पहले जनजातीय परंपरागत अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता था। स्वतंत्रता का अर्थ सभी बंधनों तथा कर देने के दायित्वों से मुक्ति का जनजातीय सपना पूरा नहीं हो सका। इससे खरवारों ने भी अपने को ठगा सा महसूस किया। 1950 ई. के मध्य में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के विरूद्ध उनकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई तथा खरवारों द्वरा वन उत्पादनों का पाबंदी रहित उपयोग तथा बिना कर दिए इमारती लकड़ियों की जंगलों से कटाई के लिए सत्याग्रह प्रारंभ किया गया, जिसका नेतृत्व फेटल सिंह द्वारा किया गया।
फेटल सिंह का जन्म खरवार समुदाय के के लघु कृषक परिवार में हुआ। फेटल सिंह एक अशिक्षित किसान था, जिन्होनें बज्र भूमि का जीर्णोद्धार का ढेर सारी जमीन अधिग्रहित कर लिया था। उसने अनुभव किया की द्वितीय लोकसभा चुनाव के दरम्यान कांग्रेस सरकार द्वारा किया गया यह वादा कि जनजातियों को वनों तथा गैर – मजरूआ भूमि में बिना किसी प्रतिबन्ध के उत्पादन प्राप्त करने की अनुमति प्रदान की जायेगी तथा उन्हें भूमि कर से मुक्त कर दिया जायेगा, पूरा नहीं किया जा सकता। फेटल सिंह ने इसके विरोध में आंदोलन चलाने के लिए दिसंबर 1957 ई, खरवारों को संगठित करना प्रारंभ किया। उसने मध्यप्रदेश के खरवारों को भी अपने आंदोलन में समाविष्ट किया। फेटल सिंह के समर्थकों ने बलियागढ़ जंगल के ठीकेदारों तथा श्रमिकों को डरा धमका कर वापस जाने को विवश किया। खरवारों के बीच 1950 ई. के मध्य में एक भगत दल का अभ्युदय हुआ था। इस दल ने लोगों से राजस्व संग्रहकर्ताओं को कर देने की मनाही अता बिना कर दिए बगैर इमारती लकड़ी तथा अन्य वन उत्पादों का उपभोग करने, दंडाधिकारियों तथा वनरक्षियों की अवमानना करने तथा उन वन कानूनों की जो जनजातियों के प्रथागत अधिकार की अवहेलना करते थे, अवज्ञा करने का आह्वान किया। इस दल ने दावा किया कि जंगलों तथा गैर – मजरूआ जमीन पर जनजातियों का पूरा अधिकार है। फेटल सिंह के समर्थकों ने इस वन आंदोलन को एक मुकाम तक ला दिया। वे अपने जंगलों तथा भूमि को कर मुक्त करने के लिए कटिबद्ध थे। फेटल सिंह का मानना था कि महात्मा गाँधी ने जनजातियों को बंजर भूमि जोतने, कपास उगने, चरखा चलाने, कपड़ा बुनकर पहनने तथा ढोल बजाने के लिए कहा था। महात्मा गाँधी की दृष्टि में जमीन जोतने वाला ही ही भूमि का मालिक होना चाहिए। किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किसानों के स्वतंत्रता सीमित हो चली है। फेटल सिंह लोगों के बीक इस बात को प्रचारित किया करता था कि अभी अंग्रेजों की वापसी नहीं हुई है तथा जमींदारी पूर्व की भांति आज भी अस्तित्व में यथावत बनी हुई है। गरीब किसान कठिन श्रम करते हैं, किन्तु आनंद दुसरे लोग मना रहे हैं। समाज के बड़े लोग जनसाधारण को अपने अधिकार से वंचित करने पर आतुर हैं। जंगल हमारा है किन्तु हमलोगों को आज जगंल में प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। उसने लोगों को आह्वान किया कि हमलोग ठीकेदारों को जंगलों में लकड़ियां काटने से रोकेंगे तथा जंगल में ठीकेदारों के लिए हममें से कोई भी काम नहीं करेगा। हमलोग इस प्रकार की सरकार को स्वीकार नहीं करेंगे जो जमीन तथा जंगल पर परंपरागत अधिकार से हमें वंचित करती हो। फेटल सिंह ने अपनी अलग सरकार की स्थापना करने हेतु आहवान किया जिसके लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने का अनुनय किया। उसने लोगों से कहा कि हमें वर्तमान शासन की पुलिस तथा दंडाधिकारी स्वीकार्य नहीं है। अगर ये लोग अपना विधान हम पर थोपेंगे तो हम उसे कदापि स्वीकार नहीं करेंगे। जब पुलिस तथा दंडाधिकारी हम लोगों पर प्रहार करेंगे तो हमलोग भी उनसे बदला लेंगे ऐसा करना कोई अपराध नहीं होगा। इस प्रकार के कथनों का समावेश फेटल सिंह द्वारा संचालित अन्दोलन की सभाओं के दौरान गाये जाने वाले लोकगीतों में हुआ करता था।
मध्यप्रदेश के खरवारों द्वारा खरवार नेता चुन्नी गोद के नेतृत्व ने 1957 ई. में एक वन आंदोलन खाबीग्राम (अंबिकापुर – सरगुजा) में प्रारंभ किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य भूमि कर तथा वन कर बकाये के भुगतान से लोगों को मुक्त करना था। उनकी सभाओं में जगंल जमीन आजाद हैं इत्यादि विचार प्रसारित किये जाते थे। उसके द्वारा एक सरकार की भी स्थापना की गयी थी। चुन्नी गोद फेटल सिंह से काफी प्रभावित था। फेटल सिंह की तरह चुन्नी गोंद भी एक स्वतंत्र प्राधिकार के विषय में सोचा करता था। 12 जनवरी, 1958 ई. को चुन्नी गोंद के कुछ समर्थकों ने भूमि तथा जंगलों के मुफ्त उपयोग की मांग के समर्थन में एक पुलिस की टुकड़ी पर आक्रमण किया। लगभग 150 पुरूष तथा महिलाओं की भीड़ ने लाठी, भाला कुल्हाड़ी तथा गोफैन से लैस होकर एक पुलिस की टुकड़ी के पास जाकर उन्हें भाग जाने को कहा। जब पुलिस ने ऐसा करने से इंकार किया तो भीड़ ने उस पर पत्थर बरसाना प्रारंभ कर दिया। बचाव पक्ष, में पुलिस ने तीन चक्र गोलियां चलायी जिसके परिणामस्वरूप दो व्यक्ति की मृत्यु हो गयी तथा एक व्यक्ति घायल हो गया। फेटल सिंह ने इस घटना के कुछ सप्ताह बाद हड़ताल करने का निश्चय किया। इस संबंध में सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया। कि फेटल सिंह लड़की काटने वाले ठीकेदारों के मजदूरों पर छापा मारने के लिए संगठन तैयार करने जा रहा है। स्थानीय अधिकारीयों ने फेटल सिंह को गिरफ्तार करने पंहुचे तो लगभग 200 व्यक्ति लाठी, भाला, तलवार, टांगी तथा गुलेल से लैस होकर आक्रामक रूख के साथ अधिकारीयों को आगे न बढ़ने की चेतावनी दी। प्रतिक्रिया स्वरूप अधिकारीयों ने फेटल सिंह के घर पर भीड़ से चाव के लिए पुलिस दल को सतर्कता के अथ समुचित स्थान ग्रहण कर लेने का निर्देश दिया। दंडाधिकारियों ने भीड़ को शीघ्र बिखर जाने की चेतावनी दी। उन्होंने लोगों से कहा कि फेटल सिंग के अलावे चार अन्य लोगों को भी गिरफ्तार करने आये हैं। आरक्षी अधीक्षक ने राइटिंग केश यू/एस/47 आई. पी.सी. का हवाला देते हुए फेटल सिंह ने तथा अन्य चार जिनके विरूद्ध गिरफ्तारी का अधिपत्र जारी किया गया था, पढ़कर सुनाया तथा उन्हें शीघ्र ही आत्मसमर्पण करने को कहा तथा गिरफ्तारी का विरोध करने वाले भीड़ को बिखर जाने का आदेश दिया। जब आरक्षी अधीक्षक की इन बैटन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो अनुमंडलाधिकारी ने इस भीड़ को गैर- कानूनी घोषित कर तितर – बितर करने के लिए बल प्रयोग का आदेश दे दिया। इसकी प्रतिक्रिया में फेटल सिंह के एक समर्थक ने जोरों से यह कहना प्रारंभ किया कि उनकी अपनी सरकार है तथा वे पुलिस दंडाधिकारी तथा वर्तमान सरकार को स्वीकार नहीं करते। वे गिरफ्तारी के अधिपत्र की भी अवज्ञा करते हैं। फेटल सिंह के एक समर्थक ने अपना कानून पढ़ना शुरू कर दिया, जिसे वे स्वयं पारित किये थे। भीड़ को गिरफ्तारी के विरोध करने का आदेश जारी किया। पुलिस को आगे बढ़ते देख भीड़ ने पत्थर बरसाना शुरू कर दिया, जिसके कारण पुलिस निरीक्षक, दंडाधिकारी तथा अन्य पदाधिकारियों के अलावे 19 व्यक्ति जख्मी हो गये। स्थिति की गंभीरता को आकलित कर पुलिस को गोली चलाने का आदेश दे दिया गया। सबसे पहले पुलिस दल पर तलवार से प्रहार करने के लिए आगे बढ़ते हुए एक आक्रमणकारी पर गोली चलायी गयी। गोली लगते ही वह वहीं ढेर हो गया। फिर भी भीड़ पर इसका कोई असर नहीं हुआ तथा भीड़ लगातार पथराव करती रही। आगे बढ़ती भीड़ पर दूसरी गोली दागी गई जिसके कारण एक व्यक्ति घायल हो गया। इसके बाद फेटल सिंह जो ओट से छिप का भीड़ को निर्देशित कर रहा था, भागकर अपने घर में मजा छिपा। इसके बाद भीड़ वापस लौटने लगी। जब पुलिस जिनके विरूद्ध अधिपत्र जारी किया गया था, उनें गिरफ्तार करने के लिए आगे बढ़ी तो अधिकांश लोग भाग खड़े हुए। पुलिस ने फेटल सिंह के घर को चारों तरफ से घेर लिया तथा गिरफ्तारी के लिए कमरों की तलाशी लेना प्रारंभ किया।
पुलिस ने फेटल सिंह उसके मुख्य सलाहकार महादेव सिंह तथा एक अन्य आक्रमणकारी ठाकुर प्रसाद को गिरफ्तार कर लिए गये। फेटल सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में फेटल सिंह का स्वास्थ्य काफी गिर जाने के कारण उसके परिवार द्वारा कैद से मुक्त करने के लिए दबाव डाला जाने लगा। बाद में फेटल सिंह तथा उसके आठ साथियों की सजा माफ़ करने का निर्णय लिया गया। बाद में फेटल सिंह को जेल में विमुक्त कर दिया गया। फेटल सिंह का 1976 ई. में निधन हो गया।
फेटल सिंह के नेतृत्व में खरवारों द्वारा चलाया गया वन आंदोलन का मुख्य ध्येय जंगलों पर आदिवासी प्रथागत अधिकार की वापसी थी, जिसका वे सरकार के वन विभाग द्वारा वन संसाधनों की प्रभावकारी व्यवस्था के लिए अधिनियम लागू किये जाने के पहले तक अबाध्य रूप से उपयोग किया करते थे। 1950 ई. के मध्य में खरवारों में कांग्रेस सरकार के विरूद्ध पनपा असंतोष भूकरों में कभी यहाँ तक कि भूकरों का उन्मूलन तथा वन संपदा का मुफ्त उपयोग संबंधी प्रत्याशाओं का उपकर्ष था। किन्तु फेटल सिंह के नेतृत्व में खरवारों द्वारा चलाया गया वन आंदोलन बिना किसी वांछित उपलब्धी के समाप्त हो गया।
स्त्रोत: जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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