आदिवासियों के बीच एक बड़ा त्यौहार करमा है। इस त्यौहार को अच्छी तरह से जानने के लिए मैंने सिसई नवा टोली के भूतपूर्व शिक्षक लोहरा उराँव से पूछ – ताछ की। उन्होंने करमा त्यौहार के बारे में बतलाया कि यह त्यौहार भादो चाँद के एकादशी को मनाते हैं। प्रकृति के उपासक कुडूख जाति का करमा एक मशहूर पर्व है शुरू में यह पर्व सारे छोटानागपुर के उराँव समाज में एक ही दिन भादो सुदी एकादशी को होता था। इसीलिए इसे राजा करमा भी कहते हैं। काल क्रम में जब किसी गाँव में ठीक इसी अवसर पर किसी का निधन हो गया तो इस अवसर का पर्व नहीं फला, ऐसा विश्वास करके दूसरे अवसर पर इसे मनाने की प्रथा चली। इस प्रकार आज सारे छोटानागपुर में सात अवसरों पर अलग – अलग नाम से करमा मानते हैं लेकिन मनाने का विधि – विधान सब का एक है। सातों करम के नाम इस प्रकार है – राजी करम, ईंद करम, कडरू करम, जितिया करम, दसई करम, अधुवारी करम तथा सबसे पीछे सोहराई (कार्तिक) करम।
अब करम पर्व का मौसम तथा धरती मात्र के रूप – रंग को देखिये। समय तो रहता है बरसात का लेकिन कोई – कोई करम इसके आखरी तक जाता है। जिधर देखिए उधर ही हरयाली। धरती माता अन्न – धन से भरी लिखती है। नदी – नाले, बांध - पोखर पूर्ण जवानी में आकर मस्ती में ऐंठने लगती है। कभी पागल के सरीखे हंसते, कभी - कभी गीत में मस्त तो कभी बिलख - बिलख कर रोते – कलपते हैं। सभी प्राणी स्वस्थ्य खुशहाल दिखते हैं। सभी के घर के कोना – कूची में थोड़ा – थोड़ा अन्न के ढेर लगे रहते हैं।
अब करमा की तैयारी में लोग दो – अढ़ाई महीने से ही लग जाते हैं। कोई लड़के ने मांदर की चिंता मापना हिसाब बैठाते हैं तो कोई अपने पुराने मांदर की मरम्मती में। लड़कियां अपने श्रृंगार के लिए अपने माँ – बाप को तंग करने लगती हैं और करमा की इंतजार बड़ी उत्सुकता से करती है। इन लोगों की तैयारी देख – देखकर धरती माता भी कांसी फल को बगुले के पंख जैसा संवार कर अपने को श्रृंगार करती और मन ही मन मुस्कुराती है। जब बूढ़ी धरती माता इतनी खुश तो इसके गोद के लड़के – लड़कियाँ की खुशहाली का तो आप ही अंदाज कर सकते हैं। कभी – कभी करमा की इंतजार में हताश होकर लड़कियां अपने बड़े भाई तथा माता – पिता से पूछ बैठती है। इसका जबाव भी गीत से ही मिलता है जो निम्न प्रकार है- करम – करम करालगे बहिन,
कारम का दिन कैसे आवी रे।
कारम का दिन कैसे आवी,
सावना भादो चढ़ियो गेल।
कुवारे करामा गाड़ाबी रे,
कुवारे करामा गाड़ा वी।
करमा के अवसर पर खुशहाल तथा निरोग जिन्दगी के लिए लड़के – लड़कियाँ भगवान से प्रार्थना करती है। करम देवता का व्रत अधिकतर लड़कियाँ रखती हैं लेकिन कुछ लड़के भी रखते हैं। लडकियों के साज - समाज में नयी साड़ी, चीक बड़ाईक या जुलाहा का बिना हुआ धोती जो अनिवार्य समझी जाती थी लेकिन अब तो कपास नहीं होने के कारण इसका स्थान मील या करघे का कपड़ा ने ले लिया है। पूजा के समान में एक सुन्दर खीरा, चूड़ा, सिंदूर, हरदी, रंगा हुअ चिथड़ा, अरवा चावल, अर्पण, जावा फूल तहत एक नया डलिया या नाचुवा होते हैं। खीरा के अभाव में कुन्दरी फल भी व्यवहार में लाया जाता है। इसे लड़कियाँ बाबू (बच्चा) मानती हैं। लड़कों के लिए पूजा का कोई समान नहीं चाहिए। इन के लिए नई धोती पर्याप्त है। माँ - बाप इन सभी चीजों की व्यवस्था करमा के दो तीन के पूर्व कर लेते हैं।
अब करमा के दिन दोपहर के बाद दो तीन बजे सभी मिल – जुल कर करमा देवता को परीक्ष कर लाते हैं। अखाड़े पर मांदर, नगाड़े, घंट, झांझ के साथ आ जुटते हैं। इसके बाद सभी एक साथ प्रस्थान करते हैं। लड़कियाँ अपनी आस – पास के झरिया या दोन – दोहर से फूल तोड़ने के लिए डलिया या नचुवा लेते जाती है। फूल में लेंडा तथा पन्ना पौधे होते हैं जो किसी दलदल या पानी के स्थान पर मिलते हैं। इसकी गन्ध बड़ी खुशबूदार होती है। करम देवता को जानने वाले उसी करम वृक्ष की डालियों को लाते है जिसे हर साल लाई जाती है। वहां पहुँच कर करम देवता को दोनों हाथ जोड़कर निम्न प्रकार सुमिरण मुख्य उपासक गाँव का पाहन करता है –
हे करम देवता हमलोग आज साल भर में करमा त्यौहार मना रहे हैं। हमलोग तुमको श्रद्धा भक्ति के साथ नियम – धरम के अनुसार गाजा – बाजा के साथ लेने आयें हैं। हमलोग की प्रार्थना है कि तुम मेरे गाँव चलो।
इसके बाद मुख्य उपासक गाछ के धड़ पर तीन लपेटन सूत लपेटता है। यह करम देवता को नया कपड़ा पहनाने के नियम है तत्पश्चात वह तीन टीपा सिंदूर देता और अक्षत – चावल से गाछ को अभिषिक्त करता है। वहां जाने के बाद उपवास रखा हुआ उपासक गाछ पर चढ़ता और तीन ऐसे डालियों को काटता जिनके अगले छोर किसी प्रकार से बर्बाद नहीं होते। अब करम देवता को लेकर गाते - बजाते हुए सबके जमत के पास आते हैं। इस समय का गाना निम्न प्रकार है –
गुचय – गुचय करम देवता, पद्यनता दु:ख दंदन हे ओय,
निंगन निहोरा नंदम बाबा,
निंगन निहोरा नंदम।
चान भइर नू एम्हे करम वरचा,
जिया कयन कोड़े उड़ के बबा,
जिया कयन कोड़े उड़ के।
जिया कया कोड़े रआ,
कोड़े कोड़म पाड़ोम बेचोम बबा,
कोड़े कोड़म पाड़ोम वेचोम।
इधर लड़कियाँ भी फूल तोड़ कर वापस आती हैं और जमात में आ मिलती है। कोई – कोई लड़की भर डलिया फूल तोड़ नहीं पाती है अफ़सोस करती हुई निम्न प्रकार गाना गाती है –
पूंप तोरवता झरिये – झरिये, के रन,
नीदिम हाउड़ा।
ची बेटी पूंप बओर होले,
एन्देरन चिऔन
एन्देरन भला।
मैं फूल तोड़ने के लिए सारा झरिया छान डाली लेकिन भर डलिया तोड़ नहीं पाई, डलिया खाली ही रह गया। कोई व्यक्ति दो बेटी फूल कहेंगे तो मैं उन्हें क्या दूँगी।
इसके बाद जमात के पास से गाँव के आखाड़े के लिए प्रस्थान करते हैं। रास्ते में गाते, बजाते, खेलते और चंवर डुलाते आते है और किसी - किसी को तो भरनी भी करना पड़ता है, वे भराते और इधर – उधर दौड़ते हैं। जब गाँव पहुंचते है तब करम देवता को पाहन के जिम्मे लगाते है। पाहन बड़ी आदर – सत्कार के साथ धार्मिक रीति के अनुसार श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा – अर्चना करके इसे जिम्मा लेता है। पाहन इसकी रखवाली के लिए आदमी रखता है। इस समय पाहन का स्वागत निम्न प्रकार का है-
ई उबला करम देवता,
सोने – मोने झरियानू रचकी देवता,
सोने – मोने झरियानू रचकी,
इन्ना या नरचकी करम देवता,
चोरन धुकूरनुम ब – रचकी, देवता
विनियम धुकूरनुमब – रचकी
बरय कोर अय करम रिफ रंग नत अय,
चोरन धुकूननुम अड़सकी करम,
विनियन धुकूननुम अड़सकी।
बरथ कोर अय करम पद्यन ता दुख दंदन हो अय,
चोरन धुकूननुम अड़सकी करम,
विनियन धुकूननुम अड़सकी।
अर्थ - हे करम देवता इतने दिनों तक तुम बहुत सुन्दर झरिया के निकट वन पहाड़ों के बीच जहाँ दिन - रात झर – झर, कल – कल आवाज होती वहाँ रहता था। आज तुम चांवर और पंखा झालते हुए आया। हे करम देवता आगे गाँव में प्रवेश करो, रीझ रंग आनन्द कराओ और ग्राम परिवार के सभी आफत, बिपत, दुख – तकलीफ को हरण करो। आज तुम चांवर तथा पंखा झालते हुए तुम प्रवेश करो।
करम देवता को पाहन के जिम्मे कर सभी अपने – अपने घर जाते हैं और उपवास व्रत को रोटी खा कर तोड़ते हैं। खाने - पीने के बाद आखाड़े पर ताल – मृदंग के साथ उतर पड़ते हैं और सारी रात नृत्य - संगीत चलता है। संपूर्ण गाँव - परिवार आनंद विभोर रहते हैं। पाहन बड़े सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में धार्मिक रीतिनुसार श्रद्धा भक्ति के साथ अखाड़े के बीच में करम की तीनों डालियों को प्रतिस्थापित करता है। गीत तथा नृत्य तो रात से चलते रहता है लेकिन गीत, उसका राग तथा मांदर, नगाड़े, घंट तथा झांझ के ताल रात को चढ़ाव – उतराव के अनुसार बदलते रहते हैं। करम देवता के अखाड़े में प्रतिष्ठापन के कुछ घंटे बात करम की कहानी कही जाती हैं। किसी गाँव में करम देवता का प्रतिष्ठापन आखाड़े में रात को ही होता है और किसी – किसी गाँव में सवेरे दूसरे दिन नौ – दस बजे पूर्वाहन में और यही सबसे अच्छा रहता है क्योंकि इस समय सभी बाल – बच्चे शरीक हो पाते हैं। कहानी गाँव का पाहन या जो कहानी जानता है वही व्यक्ति सुनाता है। कहानी सुनाने वाला को सभी उपासिकाएँ अपने - अपने दोने से जांवा फूल के साथ चिउड़ा देती है।
कहा जाता है कि जिस समय कुडूख लोगों क रोहतास गढ़ लूटा गया, दुश्मनों को प्रवेश उसमें हो चला तो कुडूख राजा रानी अपने कुछ लोगों के साथ जमीन के अंदर के गुप्त रास्ते से निकल भागे और कोयल नदी के उद्गम की ओर बढ़कर प्राण रक्षा के लिए दक्षिण में छोटानागपुर के घनघोर जंगल तथा उबड – खाबड़ जमीन में आ छिपे। यहाँ उन्होंने एक झरिया के किनारे एक बहुत बड़ा करम गाछ के निचे अपना पड़ाव डाला। गाछ बहुत पुराना था जिसमें कई खंडहर थे जिसमें समय पर छिपा जा सकता था। इन लोगों की जीविका के साधन इस समय कंदमूल, फल – फूल थे। ये झरिया के स्वच्छ जल को पीते, उसमें नहाते – धोते, प्रतिदिन सबेरे झरना के निर्मल जल को करम गाछ के जड़ पर दाल कर लुंडा तथा पन्ना (पूंप) फल चढ़ा कर पूजा – पाठ करते थे। इसी करम गाछ के नीचे करम देवता के शरण में खाते – पीतेम सोते और आनंद से जीवन यापन करते थे। दुश्मनों ने इन लोगों का पीछा भी किया था। ऐसी दंत कथा है लेकिन दुर्गम घनघोर जंगल पहाड़ में प्रवेश करके खोजना काफी कठिन था। महीनों बीत गए अब इन्हें शत्रु का भय नहीं रहा। अब ये जीविकापार्जन के लिए यहाँ से दूसरी जगह जा कर काम – धंधे के बारे में सोचने लगे। भादो सुदी पक्ष चढ़ चुका था। अब इसी सुदी पक्ष की एकादशी को विदाई समारोह मनाने के लिए शुभ तिथि निश्चित किया गया। इस दिन ये अपने धार्मिक रीत्यानुसार उपवास व्रत रखे। करम देवता को श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा अर्चना की और इस खुशी में खूब खाए – पीये और रीझ – रंग किए। इन लोगों के रीझ - रंग तथा नृत्य संगीत को देख सून कर करम गाछ की डालियाँ भी मस्ती में हिलोरे मारती थी। एकादशी के दिन से दूसरे दिन तक ये मास और आनंद विभोर रहे, तीसरे दिन जब विदा होने के समय आया तो करम गाछ को सभी आरजू, विनती करने लगे, हे करम देवता आप हम लोगों को सब प्रकार से शरण दिए, इसके बदले में हमलोग आपकी क्या सेवा करेंगे? हमलोग आपसे शूभाशीर्वाद पाना चाहते हैं। करम देवता से विदाई शब्द सुनकर अफ़सोस तो अवश्य किए लेकिन जीविका का प्रश्न था। आखिर में करम देवता ने कहा, अच्छा तुम लोग आनंद से जाओ, रास्ते में कई प्रकार की आफत आएगी, लेकिन तुम लोग एक बाद को याद करना कि हर साल इसी भादो सुदी एकादशी को उपवास व्रत रखकर करम गाछ की तीन बिना नुक्स की डालियों को नियम धर्मानुसार काट कर लाना और श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा – पाठ करके खूब उत्सव मनाना। हम भी तुम लोगों के करम उत्सव को देखने आवेंगे। अब करम देवता को सभी प्रणाम करके वहां से विदा हो गये।
अब राजा - रानी अपने दल के कुछ लोगों को अपने साथ रख कर शेष सभी को कमाने – खाने के लिए जहाँ – तहां भेज दिया और हर साल भादो सुदी एकादशी को उपवास व्रत रखा कर करमा मनाने का आदेश दे दिए। यही नियम सारे छोटानागपुर राज्य में रहा, इसलिए इसे राजी – करम कहते हैं लेकिन कालक्रम में कई गांवों में करम मनाने की तिथि और अवसर में बदलाहट आ गई, जिसकी चर्चा पहले कर दी गई है। करम देवता का तिरस्कार करने संबंध में कुछ अद्भूत कहानी है।
कहा जाता है कि एक गाँव था, उसमें दो बुढ़ा – बुढ़ी रहते थे। उनके नौ संतान थे। सात लड़के तथा दो लड़कियां। लड़कों के नाम - करमा, धरमा, धनवार, रीझा, मंगरा, भंवरा, लिटा, लड़कियां के नाम – गंगी, जोनी दोनों जुडवा थी। करमाँ सबसे बड़ा और लिटा भाईयों में सबसे छोटा थी। करमा कुछ चिड़चिड़ा तथा घमंडी स्वभाव का था। धरमा बड़ा धार्मिक वाला और शेष सभी भाई बड़े भाई अच्छे स्वभाव – विचार के थे। दोनों बहनें लिटा से भी पीछे चाँद – सूरज को देखी थी। जैसे ये जुड़वा थी वैसे ही दोनों के काम – धंधे एक ही साथ चलते थी। वे एक – दूसरे से कभी विलग नहीं रहती थी।
कालक्रम में सभी जवान सयान हो गये, शादी – विवाह भी हो गया, केवल बहिनों का विवाह बचा था। कुछ दिनों के बाद बूढ़ा इस संसार से सदा के लिए चल बसा। बूढ़ा के गुजरने के बाद घर – परिवार का सारा बोझ करमा के माथे आ गिरा। अब करमा को भारी चिंता हो गई। अब करमा, धरमा, धनवा तथा रीझा के साथ चारों भाई सूखा मौसम में काम की भीड़ नहीं रहने के कारण परदेश कमाने जाने और धान बुनाई के समय जेठ माह तक वापस आ जाने का सोचे। सभी भाई – बहिनों से भी आपस में विचार किये। अंत में बुढ़िया माँ से भी सलाह विचार लिए। माँ ने कहा, सभी भाई – बहिनों से सलाह – विचार ले लो बेटा, इतने बड़े परिवार की जीविका के लिए और – और धंधा करना ही है। करमा ने कहा हम सभी से विचार ले लिए है माँ। हम, धरमा, धनवा, और रीझा चारों भाई जायेंगे, शेष भाई – बहिन तुम्हारी सेवा के लिए रहेंगे। छोटे भाई लोग भी अब काम करने के लायक हो गए। बूढ़ी माँ उनलोगों को और कुछ न कर आशीर्वाद दी, जाओ बेटे, तुमलोगों की यात्रा मंगलमय हो और काम सफल हो और काम सफल हो, अच्छा से कमाओगे, लेकिन रास्ता में खाने के लिए भात, लड्डू और मछली की तरकारी जो पोतूहू सब बनायी है लेते जाना।
अब करमा, धरमा, धनवा तथा रीझा चारों बाही व्यापार के लिए कुछ पूँजी पकड़ कर घर से सबेरे निकल पड़े। साथ में माल - असबाब (मलंग) लादने के लिए एक बरद और गोला लदना बैल को लिया। बड़े सबेरे निकले, चलते - चलते कलवा तक में बहुत दूर निकल गये। अब पेट में चूहा भी दौड़ने लगा। ठीक रास्ते में ही एक नदी मिली, उसी के एक किनारे आम का एक बहुत बढ़ा वृक्ष था। अब ये इसी गाछ की छाया में खाने – पीने तथा आराम करने को सोचे। अब चारों भाई इसी नदी में दतुवन तथा स्नान किए। बैलों को यहीं नहलाये – धोये और दाना भूसी दिए। अब चारों भाई घर से लाये हुएप पीठा, लड्डू, मच्छली की तरकारी तथा भात प्रेम के साथ खाए। कुछ देर आराम करके फिर चलना शुरू कर दिए। एक गाँव मिला ये इसी गाँव में रात ठहरने को सोचे। उस गाँव में एक बुढ़िया विधवा थीं, जिसके यहाँ ठहरने के लिए पर्याप्त जगह था। उसी के यहाँ ठहरने के लिए स्थान मिल गया। बुढ़ी सूखी – सम्पन्न तथा बड़ी दयालु थी। उसी के यहाँ ठहरने के लिए स्थान मिल गया। बुढ़ी सूखी संपन्न बड़ी होशियार और व्यवहारकुशल था। बातचीत के सिलसिले में इन लोगों ने बुढ़िया से निकटवर्ती बाजार – हाट तथा यहाँ चीज को सस्ती पाते, खरीद लेते और कुछ मुनाफे पर उसी बाजार में बेच देते, नहीं तो दूसरे बाजार ले जाते। अब इनलोगों का रोज बाजार में यही काम रहा। इस पेशे में इन लोगों की किस्मत ने खूब साथ दिया। कुछ दिनों में लोगों का भाग चमक गया। मदों लदना बैल के स्थान में अब पांच लदना बैल हो गए, जिस पर भी उनलोगों का माल असबाव संभल नहीं खाने लगा। अब वे व्यापार करते – करते इतने दूर निकलग गए कि इनलोगों को घर – परिवार का कोई समंकार नहीं मिलने लगा। व्यापार में इतना व्यस्त हो गे कि घर के काम – धंधे का भी स्मरण इन्हें नहीं हो पाटा और जब इन्हें बुढ़ी माँ तथा बाल – बच्चों की याद आती तो चिंता ज्वाला से झुलस जाते थे। वर्ष गिर गई, घर वापस आने का जेठ माह कहके निकले थे। भादो का माह चढ़ गया। दिन – रात घनघोर वारिस भी हो चली। इनलोगों का व्यापार भी कुछ मंद हो गया। चारों भाई अब विचार किए कि घर जाना चाहिए। माँ का दिल हम ही लोगों पर लगा रहता होगा। घर – परिवार भी हमलोगों को याद करते होंगे। यह विचार कर चारों भाई दूसरे दिन सब धन – दौलत को पांचों बैलों पर लाड कर लदना घंटी रंगुड़ – रंगुड़, डिंग – डिंग, ढंग – ढंग का आवाज कराते जंगल, पहाड़, नदी – नाले परा करते चल पड़े। रास्ते में कई दिन लग गए। कहीं बाजार मिलता तो बाजार भी कर लेते। इस प्रकार इनलोगों को वापस आते – आते भादो सुदी पक्ष भी चढ़ गया। किसी प्रकार ठीक भादो एकादशी को गाँव – घर पहुँच गए। गाँव प्रवेश करने के पूर्व गाँव के पास के एक बगीचे में पड़ाव डाले। इनलोगों ने सोचा कि गाँव घर के सब परिवार आयेंगे और इज्जत के साथ स्वागत कर घर ले जायेंगे। करमा अपने भाईयों के साथ गाँव पहुँचने की खबर रिझाव से भेजा। रिझवा गाँव घर जाकर देखता है कि सारा गाँव तथा घर परिवार करम देवता की पूजा – पाठ में तल्लीन है। रिझवा भी माँ तथा भाई – बंधुओं से भेंट कर करम देवता की पूजा में श्रद्धा भक्ति के साथ – साथ लग गया। रिझवा का नाम जैसा वैसा रिझवार तथा रसिका भी था। रीझ – रंग में वह लग गया और व्यापार से सभी भाईयों के साथ लौट आने का खबर देना भूल गया। उसके आने की इंतजारी में घंटों बीत गए। करमा मन ही मन कुढ़ने लगा। अब इसकी खोज – खबर करने के लिए धनवा को भेजा गया। धनवा की भी वही बात। इसके भी आने में बड़ी देर हो चली। अब करमा, धरमा का पारा धीरे – धीरे चढ़ने लगा। इस समय कमरा घर में जल्द खबर करने के लिए धरमा को भेजा। धरमा तो और धार्मिक प्रवृति का था। वह घर आया, माँ तथा घर के परिवार से स्नेह भेंट – मुलाकात करके वह भी बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ करम देवता की पूजा – पाठ में लग गया और रीझ रंग में प्रवृत हो गया और खबर करना भूल गया। करमा आशा देखते ही रह गया। उसका चाक नाक भी चढ़ गया। उसने गुस्सा को संभाल नहीं सका। वह आंखे लाल करते हुए घर आया और देखता है कि सारा परिवार करम देवता की पूजा और रीझ – रंग में तल्लीन है। करमा गुस्सा को रोक नहीं सका और करम की सभी डालियों को उखाड़ – पखाड़ कर फेंक दिया और सीधे पड़ाव के पास चला गया। इधर करमा की करनी को देखकर सभी अवाक् हो गये और तरह – तरह का मन में सोचने लगा। करमा ने बड़ी गलती की, घर तथा गांव परिवार की आगे चले कर क्या परिस्थिति होगी, तरह – तरह की चिंता करने लगे। करमा भी वापस हो कर दंग रह गया। उसने देखा कि गठिया (बोरा) का सारा कमाया हुअ धन – दौलत, घास – पुआल हो गया। पांचों बैल पूर्ववत खड़े हैं। बैल की पीठ पर लादे सभी बोरे भी जैसे के तैसे हैं। अब करमा को भारी ग्लानि हो चली। अब करमा को भूख – प्यास सताने लगी। आखिर में गाँव घर के लोग आए। वे भी यह देखकर ताज्जुब हो गये कि चारों भाई का कमाया धन सब मिट्टी में मिल गया। उसके बाद करमा एवं उसके घास – पुवाल लादे हुए बैलों को परीक्ष कर ले आये।
अब तो करमा, धरमा परिवार के लिए बड़ा खराब दिन आ गया। इन लोगों की हालत बिल्कुल दयनीय हो गई। इतने बड़े परिवार को चलाना आसान बात नहीं थी। मांगने से गाँव में कोई दान भी न देते थे। वे दाना – दाना के लिए परेशान हो गये। अब करमा, धरमा दुर्दिन आने के कारण जानने के लिए एक भगत के पास शगुन दिखने गये। उसने अपनी दैवीय शक्ति से सोच – विचार कर स्पष्ट शब्दों में कहा, देखो करमा तुमने करम देवता को उखाड़ कर फेंक दिया, उसकी बड़ी बेइज्जती हुई, करम देवता नाराज हो कर चले गये और उसे के श्राप से तुमलोगों के सारे परिवार का कर्म – किस्मत बिगड़ गया है। जब तक करम देवता को खुश नहीं करोगे, तब तक तुमलोगों की बिगड़ी हालत नहीं सुधरेगी। अब करमा का दिमाग ठनक गया, वह तो अपने किए कुकर्म के लिए पश्चताप करने लगा।
अब दूसरे दिन बड़े सबेरे करम देवता की खोज में निकल पड़ा। चलते – चलते गाँव से दूर निकल गया। रास्ते की किनारे एक बहुत बड़ा पीपल का वृक्ष मिला, जिस का एक अंग सूख गया था। करमा वहां पहुँच कर ठिठक गया। करमा को बड़ी चिंतित देख कर वृक्ष ने कहा, तुम मुरझाये हुए चेहरे में कहाँ जा रहे हो भाई। करमा ने कहा, क्या कहें हमारा कर्म किस्मत ख़राब हो गई। हमसे करम देवता रुष्ट हो गये। हम उसी की खोज में निकले हैं इसके बाद पीपल वृक्ष ने फिर कहा, अच्छा भाई, हमारे साथ भी तो एक बड़ी मुसीबत है, हमारे अंग सूख गया है, इसका कारण तथा निदान कृपया करम देवता से पुछ आना। करमा अच्छा कहा और आगे बढ़ा। अब करमा को भूख भी सताने लगी कुछ दूर आगे बढ़ने पर रास्ते के किनारे ही एक डूमर (गुलर) गाछ मिला। वह फलों से लदा था और कुछ पक कर लाल दिखते थे। करमा भूख से परेशान था। भूख क्या नहीं कराता। करमा किसी प्रकार वृक्ष पर चढ़ा और पड़े हुए फल को तोड़ा। लेकिन बड़ी अफ़सोस कि जैसे ही खाने के लिए फाड़ा तो अंदर पिल्लू भरा देखता है। करमा उसे फेंक दिया और दूसरे को तोड़ा, उसके अंदर भी पिल्लू बिलबिलाने लगा। अब करमा बड़ा आफत में पड़ गया। वह गाछ से उतरकर फिर आगे बढ़ा। चलते – चलते उसे थकावट भी महसूस हो रही थी कुछ दूर आगे बढ़कर एक सत्तु बेचने वाला मिला। करमा को भूख सहा नहीं जाने लगा। उसने सत्तु बेचने वाले से अपनी सारी कहानी कह सुनाई और खाने के लिए कुछ सत्तु माँगा। सत्तु वाला उसकी दयनीय परिस्थिति देखकर दे दिया। करमा इसे लेकर खाने के लिए पानी मिलाने आगे बढ़ा। चलते – चलते वह एक ऐसे राजा के राज्य में पहुंचा जिसके राज्य में बारह वर्ष से पानी ठीक से नहीं पड़ रहा था। जनता अन्न - पानी के बिना व्याकुल थी। लोग प्यास से कलपने लगे। जड़ - चेतन सभी जीव धारियों को बड़ा कष्ट था। राजा की भेंट करमा से हो गई। राजा ने करमा से पुछा भाई तुम इतने चिंतित और व्यग्र कहाँ जा रहे हो, तुम्हारा नाम क्या है? करमा ने बड़े कातर स्वर में जवाब दिया, ये राजन मैं दुखिया हूँ, मेरा नाम करमा है। मुझसे करम देवता नाराज जो गये हैं उनकी नाराजगी से मेरे कर्म किस्मत बिगड़ गये हैं। मैं पानी के बिना बेहाल हूँ। मैं करम देवता की खोज में निकल पड़ा हूँ। एक आदमी ने कहा जब तक करम देवता को खोज कर खुश नहीं करोगे तब तक तुम्हारा भाग्य नहीं बदलेगा। इसके बाद राजा ने कहा, भाई करमा मैं भी तो बेहाल हूँ, राज्य में बारह वर्षों से पानी नहीं पड़ रहा है। अन्न पानी के बिना सभी त्राहि – त्राहि कर रहे हैं। इसका कारण और निवारण करम देवता से पुछ आना। करमा अच्छा कहा और भूखे - प्यासे लटपटाते आगे बढ़ा। कुछ दूर आगे बढ़ने पर एक अहीर से भेंट हुई। अहीर ने करमा से पुछा, कहाँ जा रहे हो भाई, तुम इतना चिंतित और दुखी दिखते हो। करमा सारा हाल कह सुनाया। अहीर को दया आ गई, उसके करमा को पीने के लिए दूध दिया। करमा से पीने के लिए जैसे ही उठाया की सारा दूध में खून देखता है। करम और आफत पड़ा और इसे भी छोड़ - छाड़ कर भूखे प्यासे लटपटाते किसी प्रकार फिर आगे बढ़ा। कुछ दूर आगे बढ़ने पर एक नदी मिली। नदी की किनारे बालू पर बड़े कछुवे को मृत चित पड़ा हुआ देखा। कछुवा बरसों से पेट दर्द की बीमारी से परेशान था। उसने करम को देखा, करवट बदला और पुछा भाई तुम कहाँ जा रहे हो, क्यों इतना व्याकुल लगते हो। करमा ने जबाव दिया, क्या बताए करम देवता हमसे नाराज हो गये है, हमारे किस्मत बिगड़ गई है। हम अन्न पानी के बिना बेहाल हैं। हम करम देवता को खोजने चले हैं, लेकिन नदी को पार होकर कैसे आगे बढ़ेंगे। कुछ छन कछुवा चुप रहा और बड़ी सोच समझ कर कहा, भाई हम भी तो एक बड़ी आफत में पड़े हैं। हम कई साल से पेट की बीमारी से बेचैन हैं। इस बीमारी का कारण और निराकरण भी करम देवता से पुछ आना। यदि मेरी बात सुनोगे तो मैं नदी पार कर दूंगा। करमा ने कहा अच्छा। अब कछुवा अपने पीठ में बैठाकर करमा नदी पार कर दिया और उसी तट पर करमा के वापस आने की इंतजारी में ठहर गया।
करमा नदी पार हो गया, कुछ ही दूर आगे विशाल करम गाछ की छाया में सिर का समूचा बाल सफेद, जटाधारी, मूंछ - दाढ़ी बगूला की पंख जैसा, छाती तक लटका हुआ मग्न बैठा एक बूढ़ा को देखा। चेहरे से बड़ा भयंकर लगता था। लेकिन करमा को विश्वास हो गया की यही करम देवता हैं जो करम गाछ की छाया में ध्यान मग्न बैठें हैं। करमा डरते – कांपते बड़ी हिम्मत करके उसके पास किसी प्रकार पहुँच गया। बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ नतमस्तक होकर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर उनके सामने चुपचाप खड़ा हो गया। कुछ देरी में बूढ़ा सिर उठाया और आँख खोल कर करमा को एकटक देखने लगा और कहा, बेटा तुम कौन हो, क्या खोजते हो? करमा कांपते - लड़खड़ाते बड़ी गंभीर स्वर में जबाव दिया, बाबा मैं एक दोषी एवं दुखिया हूँ। मुझसे गुनाह हो गया बाबा, क्षमा कीजिए बाबा। कुछ क्षण बूढ़ा चुपचाप रहा और अपने दिव्य ज्ञान से करमा के लिए अनर्थ तथा उसका प्रतिफल भोगने को भी जान गया। बूढ़े को दया आ गई। करमा भी अपने किये कूकर्म का कुफल काफी भोग लिया था बूढ़ा ने करमा से कहा जाओ तुम्हारा कसूर माफ़ हो गया, लेकिन आगे साल भादो एकादशी को करम गाछ की तीन डालियों को श्रद्धा भक्ति सेठ धार्मिक नियमानुसार काट कर सम्मान पूर्वक अपना गाँव घर लाना और उपवास व्रत रखकर श्रद्धा भक्ति के साथ पुजा – आराधना करना और खूब उत्सव मनाना। इस उत्सव में अपनी बहनों को भी बुलाना। अब करमा की हिम्मत कुछ बढ़ी, उसने कहा, अच्छा बाबा। इसके बाद करमा पुन: करम देवता से पुछा, बाबा जब मैं आप की खोज तथा दर्शन के लिए आ रहा था, उस समय रास्ते में एक पीपल पेड़, एक राजा तथा एक कछुवे से भेंट हुई। ये सभी अपनी दुख तकलीफ के कारण तथा उनके निराकरण भी पुछ आने को कहा है, बाबा। वे बहुत तकलीफ में हैं, बाबा। कछुवा कई साल से पेट दर्द से परेशान है राजा के राज्य में बारह वर्ष से बारिश नहीं हो रही और पीपल वृक्ष का अंग सूख गया है। इनके कारणों और निदानों को कह सुनाइये बाबा, नहीं तो मैं उनके प्रश्नों के क्या जबाव दूंगा। बूढ़ा कुछ देर मौन रहे और अपने दिव्य शक्ति से सभी के कारण और निवारण के उपाय एक एक कर के बतला दिए। कछुवा के प्रश्न का जबाव दिए कि उसके पेट में मणि है, जब तक उसे नहीं निकाला जायेगा उसके पेट का दर्द नहीं मिटेगा, राजा की एक कुँवारी लड़की जो बिल्कुल सयानी है जब तक उसकी शादी किसी से नहीं होती उसके राज्य में बारिश नहीं होगी, पीपल पेड़ की जड़ों के पास साथ गगरा सोना पड़ा हुआ है। जब तक इसे नहीं निकाला जाएगा पेड़ हरा - भरा नहीं होगी। इतनी बातें सुनकर करमा ने कहा, बाबा हमें वापस सकुशल जाने के लिए शूभाशीर्वाद दें, हमें आज्ञा दीजिए बूढ़ा बाबा के यहाँ भूखा – प्यासा करमा, कंद – मूल, फल – फूल, तथा पानी पीकर शूभाशीर्वाद ले विदा हुआ।
थोड़ी दूर में नदी मिली उसी कछुवा से नदी पार हो गया और कछुवा ने अपने प्रश्न का जबाव पुछा। करमा ने कहा, देखो तुम्हारे पेट में मणि है वही पेट दर्द का कारण है। जब तक नहीं निकालोगे, तुम्हारा पेट दर्द नहीं मिटेगा। अब कछुए ने कहा, भाई करमा, यह काम तो तुम से ही हो सकता है, मैं और किसको खोजूं अब करमा अपने कमर से एक तेज धार छुरी निकाला और कछुए के पेट को फाड़ कर मणि निकाल दिया, कछुए का पेट दर्द छूमंतर जैसा भाग गया। करमा मणि लिए हुए आगे बढ़ा। चलते – चलते उसी अहीर से पुन: मुलाकात हो गई। करमा आज भी उससे दूध मांगा। ग्वाले ने उसे दूध दे दिया। करमा मन भर पिया, आज का दूध जैसा का तैसा था। अब उसमें ताजगी आ गई। और तेज चाल से चलने लगा। चलते-चलते उसी राजा के राज्य में पहुँच गया। संयोग पुन: राजा से भेंट हो गई। राजा ने करमा से कहा, क्या हाल समाचार है भाई करमा। करमा ने कहा, जब तक तुम अपनी सयानी लड़की की शादी – विवाह नहीं करते हो, तुम्हारे राज्य में वारिश नहीं होगी। यह सुनकर राजा बड़े सोच में पड़ गये। इतनी जल्दी एक एक राज कन्या की शादी कैसे संभव होगी। कुछ डेरी तक सोच तथा चिंता में पढ़ गये। तत्पश्चात उसने कहा, कमरा हम इतनी जल्दी राजकुमारी के लिए कहाँ वर खोजेंगे। चलो तुम्हारे साथ मेरी कन्या की शादी कर देते हैं। अब राजा की लड़की के साथ शादी, करमा क्यों इंकार करता। करमा की शादी राजकुमारी के साथ बड़ी धूम – धाम के साथ हो चला। इधर शादी का प्रारंभ और रिमझिम पानी बरसना शुरू हो गया। सभी जड़ चेतन खुशहाली में मंगल गान करने लगे। यहाँ तक कि पेड़ – पौधे बी हर्षोल्लास से हिलोरे लेने लगे। अब राजा हाथी - घोड़ा के साथ बहुत धन – दौलत कुछ दूर ये सत्तु वाला से पुन: भेंट हुई। करमा उससे सत्तु मांगा। आज की सत्तु बिल्कुल ठीक, दोनों प्रेम के साथ खाये – पिये और आगे बढ़े। चलते - चलते डूमर गाछ के पास हाथी – घोड़ा और उसके साथ वे आदमी गये। डूमर का फल मन में ललचाने जैसा पक कर लाल दिखता था। करमा का खाने की इच्छा भी हुई। उसके पके फल तोड़वाया, फाड़कर देखा वे बड़े रसदार थी और अंदर से सुगंध आ रहे थी। करमा खाने की इच्छा को रोक नहीं सका, अब राजकुमारी के साथ दोनों प्रेम से एक ही फल को दो हिस्सा करके खा गए। करमा मन ही मन सोचने लगा वह, करम देवता की कृपा और हमारा कर्म किस्मत। वह अब पुन: अपने दल – बल के साथ हाथी – घोड़ा में धन – दौलत लाद कर अपने गांव की और चला। चलते – चलते उसी पीपल वृक्ष के पास हाथी – घोड़ा और उसके आदमी रूक गए। करमा और राजकुमारी पालकी से उतर गए। करमा को पीपल पेड़ ने पूछा, कहो भाई करमा, क्या समाचार है, मेरे संबंध में करम देवता ने क्या कहा। करमा करम देवता की बात को कह सुनाया कि तुम्हारी जड़े के पास ही सात गगरा सोना है, उनको जब तक नहीं निकलवाते हो तुम्हारा अंग हरा – भरा नहीं होगा। अब पीपल गाछ बेचारे करे तो क्या? वह आदमी पाएगा तो कहाँ, उसके करमा को ही कहा, देखो भाई करमा, यह काम तो तुम से ही हो सका है। करमा अपने आदमियों से सोने के सातों गगरे को निकलवाया। पीपल वृक्ष ने कहा, इन सभी गगरे के सोने को तुम ही ले जाओ भाई करमा। वे हमारे दुश्मन हैं। अब करमा इन्हें अपने हाथी – घोड़े में लादकर घर की ओर बढ़ा। चलते - चलते दल - बदल के साथ करमा अपने गांव के एक बगीचे में पहुँच गया और अपना पड़ाव डाल दिया और पहुँचने की खबर घर भिजवा दिया। अब करमा पहले का करमा नहीं रहा, वह तो करमा राजा हो गया। खबर पाते हि अपने घर, गाँव, परिवार के लोग गाजा – बाजा के साथ स्वागत करने के समाज के लोग सभी सस्नेह भेंट करके उससे बातचीत करने लगे। करमा पर करम देवता की खोज में क्या – क्या बीता, उसका कैसे दर्शन प्राप्त हुआ और आदेश क्या हुआ इत्यादि सारी बातों को लोगों को सुनाते। अब करम की नव विवाहिता वधू के साथ भी घर परिवार के किसी व्यक्ति के साथ किसी प्रकार के भेदभाव नहीं था। वह शील स्वाभव तथा आचार – विचार में भी बड़ी अच्छी थी। काम- धंधों में भी बड़ी निपुण थी। सभी गोतनियाँ एक माँ – बाप की बेटियां जैसी प्रेम के साथ रहती थी। करमा की बूढ़ी माँ भी रहती थी। अब करमा – धरमा परिवार का भाग्य चमक उठा और इन लोगों की खुशहाल जिन्दगी वापस आ चली।
दूसरे साल भादो सुदी एकादशी को करमा सातो भाई, सभी गोतनियाँ के साथ गाँव परिवार के लोग उपवास व्रत किए। करमा गाछ के तीन डालियों के धार्मिक नियमानुसार काट कर श्रद्धा भक्ति के साथ करम देवता को सुमिरण करके गाँव घर लाये, उसका प्रतिष्ठापन किए, भक्तिपूर्वक पूजा अराधना किए और खूब उत्सव मनाये। इस सुभावसर पर बहिनों को आमन्त्रित किए। इस साल का उत्सव और साल की अपेक्षा अधिक उल्लसपूर्ण रहा। यही परंपरा आज भी चला आ रहा। काल क्रम में उत्सव मनाने के दिन तथा अवसर में हेर – फेर आ गया।
कहानी के पश्चात् करम देवता को सभी अक्षत, चावल तथा फूलों से परीक्षते हैं। पहले जाकर फूल का वितरण करती हैं। इसके बाद तो गीत का तांता लग जाते और मांदर, नगाड़े, घंट, झांझर की आवाज में आखाडा गूँज उठता है। इस संदर्भ में अतीत काल में पाए गये सातो भाई, सातो गोतनिहों के गीत पुण्य स्मृति में पाठक बंधुओं के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ, जो आखाड़े में आज भी रसरंग ला देती है।
सातो, सातो भइया, सातो करम गाड़े,
सातो गोतनी सेवा करे रे
भईया में मांदर टांगे, बहिन जे चावर बांधे
उड़ा पतांर भूइयां लोरे रे,
डड़ा पतांर भूइयां लोरे रे।
तीन – चार बजे अपरहण तक आखाड़े में खूब संगीत चलता है, इसके बाद करम देवता को आखाड़े से धार्मिक रीत्यानुसार उखाड़ कर घर – घर जुलूस के साथ गाते – बजाते, घुमते और अंत में किसी झरिया, बांध या तालाब में विसर्जन कर देते हैं।
जुलूस का गाना
विड़ीम पुत्ता करम उविसयन
ची आयो प पा,
ची आयो प पा,
छेंवपपन मला मोखोन, गोड़गोड़ा मोखोन
ची आयो प पा,
ची आयो प पा,
मैं दिन भर उपवास रही हूँ। हे माँ रोटी दो। मैं छिलका नहीं खाऊंगी। मैं छना हुआ खाऊंगा।
विसर्जन के समय का गाना
ई उल्ला करम गो
जोख पेल्लेन खरा रिझा बा चकी रे,
जोख येल्लेन खरा रिझा बा चकी।
अक्कूगा का करम
जोख पेल्लेन दुवारी न जकी।
जोख पेल्लेन दुवारी न जकी।
हिंदी – हे करम देवता, इतने दिनों तक लड़कियों को खूब रीझ रंग कराया, अब तो हम युवक- युवतियों को अनाथ करके जा रहे हो।
श्रद्धा भक्ति के साथ रख कर करम देवता की उपासना से 1. आधी व्याधि सभी प्रकार की बीमारियाँ का विमोचन होता है। (2) घर तथा ग्राम समाज के सभी परिवार में किसी प्रकार का दैवी प्रकोप नहीं होता। (3) लक्ष्मी की वृद्धि होती है। (4) बिगड़ी किस्मत सुधर जाती है। (5) सभी प्रकार की विध्न – बाधाएं टल जाती हैं। (6) अच्छे फल की प्राप्ति होती है। (7) परिवार सूखी – सम्पन्न होता है।
करम देवता के व्रत एवं पूजन में जावा, लेड़ा तथा पन्ना पूंप (फूल) एक नया डलिया का नाचू, एक खीरा, चूड़ा तथा हल्दी रंगे कपड़े की आवश्यकता पडती है। लेड़ा तथा पन्ना पूंप तो एकादशी दिन करम कटने जाने के समय लड़कियाँ अपने साथ डलिया लेक्ट उसमें चुन लेती है। अन्य सामान तो बाजार से माँ – बाप एकादशी के पूर्व प्रबंध कर देते हैं लेकिन जावा फल तैयार करने के लिए व्रत रखने वाली लड़कियां भादो सुदी तृतीय को किसी स्थान के स्वच्छ बालू, जिसमें मिट्टी का अंश होता है, उसे किसी ऐसे घड़े का बर्तन में जिसका मुंह बंद किया जा सके। जावा (जव), मकई तथा कुरथी के बीज को लेकर बालू में मिलाती है और पानी छिड़क कर बर्तन के मुंह को बंद कर देती है। अब बीज उग आकर बालू की उपरी सतह में आ जाती है तो उस पर हल्दी पानी छिड़काव रोज करती हैं, जिससे पौधे के रंग पीले हो जाते हैं। यह क्रम एकादशी के सबेरे तक चलता है।म एकादशी के दिन दोपहर के बाद सभी युवक – युवतियां तथा अधेड़ मिलजुल कर मांदर, नगाड़ा तथा घंट – झांझर के साथ करम काटने जाते हैं।
जिस करम गाछ की डालियाँ परंपरा से लायी जाती है उस वृक्ष को करम देवता के निवास के रूप में विश्वास किया जाता है। करमा व्रत रखे व्यक्ति गाछ के पास जा कर करम देवता को निम्न प्रकार सुमिरण कर गाछ के धड़ को तीन चक्कर लगाकर सूत लपेटता है। इसे करम देवता का कमर उत्सव के अवसर का नया पहनावा कहा जाता है। उसके बाद धड़ पर तीन टीपा तेल सिंदूर देकर गाछ पर अक्षत चावल तीन बार छिटते हैं।
ए करम देवता, एम्हें चान मइर ता करम परव वरचा, गुचय, एम्हें पद्य खंप्प ता आलर तेलर मेक्खा अरा खेती पानी ता हुरमी रोग बलायन हां अकं। पद्या – खर्रा न, इम्दारी इम, वैसे हूँ मलद्व खमके मंत आ। आर कोड़े – कोड़े कोड़ेम कंच्चर पाड़नर नेकमन। एम्हें विगड़ार कआ कपड़ेन उपजाया के। एम्हें ओहरा वितीन मंनय अरा गुचय।
हिंदी – हे करम देवता, हमलोगों के साल भर का कमरा त्यौहार आया। हम आपका अभिनंदन करते हैं, आप हमारे गांव गंजार के लोग लक्ष्मी, खेती – बारी के रोग बलाय, आफत – विपत, दु:ख – तकलीफ को दूर करें। बाल बच्चों में किसी प्रकार तकलीफ आने दें। वे सोल्लास नृत्य संगीत करें। हमलोगों के विनम्र निवेदन को स्वीकार करें और चलें।
इस पूजा – अर्चना के बाद वृक्ष पर चढ़कर ऐसी तीन डालियों को काटता है जिनके अगले छोर क्षतिग्रस्त नहीं रहते। इन डालियों को जमीन गिरने से बचाते हैं और इन्हें वही व्यक्ति पकड़ते हैं, जो उपवास व्रत रखे रहते हैं। ये सारे काम पाहन या पुजारी ही करते हैं।
जिस स्थान पर करम देवता का प्रतिष्ठापन करना होता है, पूरब मुंह करके अंदाजन सवा फीट का गढ़ा खोदा जाता है और इसमें करम की तीनों डालियों को डाल कर मिट्टी से कस दिया जाता है। इसके बाद इस स्थान को गोबर – पानी से लीप कर अर्पण से एक वृत्ताकार चित्र करके इसमें अड़ी पड़ी दो व्यास बनाया जाता है। इसके बगल में धुप – धवन जलाया जाता है, करम देवता को नया वस्त्र पहनाया जाता है। इसके पश्चात माता करम की डालियों पर स्वच्छ जल जिसमें आम पल्लव दिया जाता है, इन सभी में तीन – तीन टीपा तेल – सिंदूर देकर अक्षत – चावल तथा आम पल्लव से जल अभिषिक्त किया जाता है। तत्पश्चात बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ दोनों हाथ जोड़ कर निम्न प्रकार दंडवत करते हैं।
हे करम देवता, यह आदिकाल की तुम्हारी कही बातें हैं। हमलोग साल भर में आज करमा त्यौहार मना रहे हैं। तुमको दशों – बीसों अंगुलियाँ जोड़कर विनती कर रहे हैं। गांव गंजार के मनुष्य, पशु तथा खेती – बारी में किसी प्रकार के रोग – बलाय, आफत विपत न आने देंगे। हमलोगों की किसी प्रकार की बिगड़ी किस्मत को बनवेंगे।
हे करम देवता, तुम्हीं हमलोगों की आँखे तथा मस्तिष्क हो, तुम्हीं हमलोगों के सूख – दु:ख बताने कहने तथा उससे उबारने वाले हो। तुमलोगों के साथ हर घड़ी रहना। जान – अनजान में जो भी गलतियाँ हमलोगों से हो, सभी को संभालेंगे।
सभी उपासिकाएं करम कहानी प्रारंभ के पूर्व अपने- अपने डाली या नचूवे में पूजा की कपड़े में ढक लिए आती, करम देवता का तीन परिक्रमा करके बैठ जाती है और अपने मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए हाथ जोड़ कर निम्न प्रकार से षाष्टांग याचना करती हैं। कहानी समाप्ति पर षाष्टांग प्रणाम करती हैं।
स्त्रोत: कल्याण विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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