1978-80 में उभरे विल्किंसन रूल के बारे में अब तक सब मौन हैं। कोई यह स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता कि विल्किंसन रूल अभी भी कोल्हान में लागू है या खत्म हो गया । हुआ यह कि सिंहभूम जिले के चाईबासा सदर, टोन्टो और चक्रधरपुर प्रखंडों का जो इलाका 'कोल्हान' के नाम से चर्चित है, वहां के कुछ नेताओं ने 1982-83 में कोल्हान रक्षा संघ के बैनर तले अपने संवैधानिक अधिकार के नाम पर विल्किंसन रूल, 1837 को जिंदा करार देते हुए मानकी-मुंडा प्रथा और 'कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट' की आवाज बुलंद की। इस सिलसिले में कोल्हान रक्षा संघ के नेता नारायण जोंको और उच्च न्यायालय की रांची पीठ में अधिवक्ता क्राइस्ट आनंद टोपनो ने एक दस्तावेज तैयार किया। वे वह दस्तावेज लेकर जेनेवा होते हुए लंदन पहुंच गये। वहां उन्होंने राष्ट्रकुल के तत्कालीन राज्य मंत्री डी.रिवोल्टा सहित राष्ट्रमंडल के 42 देशों के प्रतिनिधियों के हाथ में वह दस्तावेज थमा दिया। अचानक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्पफोट हुआ। वह कोल्हान राष्ट्र से सम्बंधित ज्ञापन था। उस ज्ञापन में के.सी. हेम्ब्रम सहित कोल्हान के 13 नेताओं के हस्ताक्षर थे। भारत सहित कई देशों के सत्ताधीश चौंक उठे। उस ज्ञापन में कहा गया कि 'स्वतंत्र कोल्हान राष्ट्र' की हैसियत से कोल्हान के लोग राष्ट्रमंडल और ब्रिटेन की सत्ता के साथ जुड़ना चाहते हैं। कोल्हान सरकार ब्रिटेन और राष्ट्रमंडल के प्रति वफादार है।
तब अविभाजित बिहार की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं को 'राष्ट्रद्रोही' करार दिया। उन पर राष्ट्रद्रोह के मुकदमे चलाये गये। नारायण जोंको, क्राइस्ट आनंद टोपनो और मुर्गी अंगारिया को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन कोल्हान रक्षा संघ के महासचिव के.सी. हेम्ब्रम और अन्य नेता भूमिगत हो गये। बाद में टोपनो और नारायण जोंको जमानत पर रिहा किये गये। पुलिस के.सी. हेम्ब्रम के पीछे पड़ी रही लेकिन उनको पकड़ नहीं पायी। दो-तीन साल तक कोल्हान की हवा गर्म रही। वहां खूब मारकाट मची। कोल्हान रक्षा संघ और पुलिस के बीच भिड़ंत भी हुई। मामले की जांच-पड़ताल के बाद संसद में केंद्र सरकार ने कहा कि विदेशी ताकतें बिहार के कोल्हान क्षेत्र में 'कोल्हानिस्तान' के नाम पर अलगाववादी ताकतों को हवा दे रही हैं। कोल्हान रक्षा संघ को आतंकवादी गिरोह करार दिया गया।
1986 में कोल्हान आंदोलन की असलियत का खुलासा करने का प्रयास खुद के.सी. हेम्ब्रम ने किया। उन्होंने राष्ट्रपति को फरवरी, 1986 में पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि वह भारत की भौगोलिक सीमा के बाहर न कोई कोल्हानिस्तान बना रहे हैं और न उसकी मांग करते हैं।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा -'' वस्तुत: हम ब्रिटिश राज्य से आज तक कोल्हान क्षेत्र में प्रशासन के लिए कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट नाम से प्रचलित और अविकल रूप से जारी 'मानकी-मुंडा प्रथा' की संवैधनिक एवं कानूनी स्वीकृति के लिए जनसंघर्ष कर रहे हैं।''
हेम्ब्रम ने राष्ट्रपति को सूचना दी कि भारतीय संविधान में मानकी-मुंडा प्रणाली को स्वीकृति नहीं दी गयी है, जबकि राज्य सरकार की अधिसूचनाओं में इसी प्रणाली के तहत मालगुजारी वसूलने के आदेश दिये जाते हैं। विल्किंसन रूल के नाम से जाना जाने वाला कानून आज भी कोल्हान गवर्नमेंट इस्टेट के तहत लागू है। कानून ज्यों का त्यों लागू है लेकिन संविधान में इसकी चर्चा नहीं है।
बाद में 21 मई, 1988 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कोल्हान क्षेत्र का दौरा कर हाट गम्हरिया में ऐलान किया कि उनकी सरकार कोल्हान में परम्परागत मानकी-मुंडा प्रणाली को पुनर्जीवित करेगी। राज्य की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार भी तब कुछ नरम हुई। हेम्ब्रम सहित ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य नेताओं पर चलाये जा रहे राष्ट्रद्रोह के मुकदमें वापस लेने की तैयारी शुरू हुई लेकिन मामला धरा का धरा रह गया। 1989 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस हार गयी। 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस हार गयी। कोल्हान रक्षा संघ के नेताओं ने जनता दल का दामन थामा लेकिन कोल्हान में न मानकी-मुंडा प्रथा की वैधानिकता का मामला सुलझा और न भूमिगत के.सी. हेम्ब्रम बाहर आये।
आज हेम्ब्रम फरारी के आरोप से मुक्त हैं लेकिन कोल्हान में मानकी-मुंडा प्रणाली के समानांतर पंचायत प्रणाली के नाम पर जारी बीडीओ व सीओ राज खत्म नहीं हुआ। आज भी वहां बी.डी.ओ.-सी.ओ का राज चल रहा है और मानकी-मुंडा का भी। यानी कुल मिला कर किसी का राज ही नहीं चल रहा। सिर्फ दो प्रणालियां आपस में टकरा रही हैं और आदिवासियों को यह बोध करा रही हैं कि 'यह टक्कर ही राज के चलने का प्रमाण है, भले कोई काज न हो।
स्रोत व सामग्रीदाता: संवाद, झारखण्ड
अंतिम बार संशोधित : 5/23/2023
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