बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 ई. को रांची जिला के अड़की प्रखंड के उलीहातु गाँव हुआ था। उन्होंने उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध (1895 – 1900) में एक महान मुंडा उलगुलान आन्दोलन) का नेतृत्व किया था।
बिरसा मुंडा ने बिरसाईत धर्म का प्रचार कर एक नई जनजातीय जीवन पद्धति अपने अनुयायियों को प्रदान की। उनको धरती अब्बा (पृथ्वी का पिता) भी माना जाता है। अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के दौरान बिरसा मुंडा के नेतृत्व में सैंकड़ों बिरसाईत डोम्बारी पहाड़ी 8 जनवरी, 1900 को अंग्रेजों की बंदूकों के शिकार हुए। उनकी मृत्यु 9 जून, 1900 ई. को रांची केन्द्रीय कारा में हुई।
संथाल हुल (विद्रोह) का नेतृत्व संथाल परगना के भोगनाडीह निवासी चुन्नी मांझी के चार पुत्रों ने किया था। इनमें से सबसे बड़े पुत्र शहीद सिद्धू था और उसके बाद कान्हू का स्थान था। इन्होंने अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए आवाज बुलंद किया। इनके नेतृत्व में 30 जून, 1855 को भोगनाडीह में एक विशाल सभा हुई जिसमें लगभग 30 हजार लोग सशस्त्र इकट्ठे हुए। उस सभा में सिद्धू को राजा और कान्हू को मंत्री मनोनीत किया गया और नये संथाल राज्य के गठन की घोषणा कर दी गयी।
कोरवा जनजाति बैगा (पुजारी) सिंगबोंगा (सूर्य) की पूजा कर रहा है। कोरवा जनजाति के सदस्य सूर्य (सिंगबोंगा) को सर्वशक्तिमान देवता मानते हैं। सरहुल तथा करम कोरवा कोरवा जनजाति बैगा (पुजारी) सिंगबोंगा (सूर्य) की पूजा कर रहा है। कोरवा जनजाति के सदस्य सूर्य (सिंगबोंगा) को सर्वशक्तिमान देवता मानते हैं। सरहुल तथा करम कोरवा जनजाति के प्रमुख पर्व हैं। ये पर्व बैगा द्वारा क्रमश: सरना स्थल तथा अखड़ा में सम्पन्न किये जाते हैं।
असुर जनजाति झारखण्ड राज्य की प्राचीनतम जनजाति है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद, आरण्यक, उपनिषद, महाभारत आदि ग्रंथों में मिलता है। इस जनजाति को मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा सभ्यता से सम्बद्ध मन जाता है। यह जनजाति छोटानागपुर में मुंडा जनजाति के आगमन के पहले से बसी हुई थी।
वर्तमान समय असुर जनजाति मुख्य रूप से झारखंड राज्य के गुमला, लोहरदगा तथा पलामू जिलों में निवास करती है। इसकी कुछ आबादी धनबाद, सिंहभूम पुराना तथा गिरिडीह जिलों में भी पायी जाती है। नेतरहाट के पाट क्षेत्र में इस जनजाति का मुख्य संकेन्द्रण है।
1991 के जनगणना के अनुसार झारखण्ड राज्य में इनकी कुल आबादी 9,263 है।
असुर जनजाति प्रोटोऑस्ट्रोलॉयड प्रजाति से संबंधित है। इस जनजाति की बोली असुरी ऑस्ट्रो – एशियाटिक भाषा समूह से सम्बंधित है।
असुर जनजाति झारखण्ड राज्य में आदिम जनजाति के रूप में चिन्हित है। इस जनजाति का परम्परागत पेशा लौह अयस्कों को गलाकर लोहा प्राप्त करना था। इस जनजाति के लोग लौह अयस्क के कच्चे साल वृक्ष से प्राप्त कोयले (चारकोल) की भट्ठी में गलाकर लोहा प्राप्त किया करते थे। आजकल इस जनजाति का यह परम्परागत पेशा समाप्त हो चुका गई। अब वे स्थायी गांवों में रहकर स्थायी कृषि किया करते हैं। यह जनजाति अपने खेतों में मुख्य रूप से गोड़ा धन, गोंदली, माडूआ, मकई, सरसों इत्यादि उपजाती है। असुर जनजाति के लोग भैंस, भैंसा, गाय बैल, सुअर, मुर्गी, बत्तख इत्यादी का पालन का भी कार्य किया करते हैं। यह जनजाति वनों में लघु वन्य पदार्थों का भी संकलन किया करती है। असुर जनजाति के लोग जंगलों में खरगोश, गिलहरी, साहिल, लागिन, जंगली पक्षियों इत्यादि का शिकार भी करते हैं।
बिरहोर जनजाति झारखण्ड राज्य की एक अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है।
वर्तमान समय में बिरहोर जनजाति प्रमुख रूप से झारखण्ड राज्य के हजारीबाग, कोडरमा, चतरा, गिरीडीह, रांची, गुमला, सिंहभूम, (पुराना) पलामू तथा धनबाद जिले में निवास करती है। इस जनजाति के लोग टहनियों से निर्मित कूम्बों (छोटी झोपड़ी) में रहा करते हैं। बिरहोर जनजाति के दो शाखाओं में विभक्त है – 1) उथलू तथा 2) जन्घी। उथलू बिरहोर के सदस्य अभी भी कूम्बों में रहते हैं, जबकि जन्घी बिरहोर अब स्थायी गांवो में स्थायी मकान बनाकर रहने लगे हैं। उथलू बिरहोर के सदस्य भी अब सरकार द्वारा बसायी गयी कॉलनियों के मकान में रहने लगे हैं।
बिरहोर जनजाति जंगलों में उपलब्ध कंद – मूल, फल – फूल तथा अन्य वनोत्पदों व शिकार द्वारा अपना जीवन बसर करते हैं। इस जनजाति के सदस्य वृक्ष छालों से रस्सी तथा लकड़ी के कठौत, ढोल, मांदर, ओखल समाट इत्यादि भी बनाकर निकटवर्ती हाटों में बेचकर आमदनी प्राप्त करते रहे हैं। कुछ बिरहोर पशुपालन (बकरी, गाय, बैल इत्यादि पालन) भी किया हैं। कुछ बिरहोर कृषि व अकुशल श्रमिक के रूप में भी कार्य करते है। कुछ बिरहोर अब भी अर्द्ध यायावर की भांति जीवन यापन करते हैं तथा जंगलों में मधु संकलन तथा जंगली जानवरों तथा खरगोश, चूहा, वनमुर्गी व अन्य पक्षी का शिकार किया करते हैं।
1991 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड राज्य में इस जनजाति की कुल आबादी 8,803 है।
बिरहोर जनजाति प्रोटोऑस्ट्रोलायड प्रजाति से सम्बन्धित है। इस जनजाति की बोली बिरहोरी ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा समूह से सम्बन्धित हैं।
मुंडा जनजाति झारखण्ड राज्य की एक प्रमुख अनुसूचित जनजाति है। इस जनजति का छोटानागपुर में लगभग 600 ई. पू.आगमन हुआ।
मुंडा जनजाति वर्तमान समय में मुख्य रूप से झारखण्ड के रांची जिलान्तर्गत खूँटी अनुमंडल में निवास करती है। इसके अतिरिक्त यह जनजाति गुमला, लोहरदगा, पूर्वी तथा पश्चिमी सिंहभूम, हजारीबाग, सिमडेगा, लातेहार, धनबाद, खरसाँवा, सरायकेला जिलो में निवास करती है। यह जनजाति बिहार राज्य की पूर्वी चंपारण तथा रोहतास में भी पाई जाती है।
1991 की जनगणना के अनुसार अविभाजित बिहार राज्य में मुंडा जनजातियों की कुल जनसंख्या – 9,20,148 है।
मुंडा जनजाति प्रोटो ऑस्ट्रोलायड प्रजाति के तत्वों को संधारण करती है। इस जनजाति की बोली मुंडारी ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा समूह से सम्बन्धित है।
यह जनजाति मिश्रित स्थायी गांवों में निवास कर कृषि करती है। यह जनजाति अपने खेतों में धन, गेंहू, मकई, गोंदली, मडूआ, कूर्थी, अरहर, सरसों, सरगुजा इत्यादि उपजाती है। यह जनजाति पशुपालन (गाय, बैल, भैंस, बकरी, सूअर, मुर्गी, बत्तख पालन इत्यादि) भी किया करती है। मुंडा जनजाति जंगलों से लघु वन्य पदार्थों (फल – फूल, कंद – मूल, लकड़ी इत्यादि) का भी संग्रहण करती है। इस जनजाति के लोग जंगलों में खरहा, साहिल, जंगली पक्षी, गिलहरी इत्यादि का भी शिकार करते हैं। नदी – नालों, पानी भरे धान के खेतों, तालाबों इत्यादि में इस जनजाति के लोग मछली भी पकड़ते हैं।
सौरिया पहाड़िया जनजाति को झारखण्ड राज्य का संथाल परगना का आदि निवासी माना जाता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय (302 बी.पी.) यूनानी यात्री मेगास्थनीज ने पाने भारत भ्रमण के दौरान राजमहल पहाड़ियों के आधे भाग में रहने वाली जंगली आदिम जातियों का उल्लेख माल्ली (मानव) या सौरि के रूप में किया है। जो अब अपने को मत्केर या सौरिया पहाड़िया कहा करते हैं। यूनानी यात्री सेल्यूकस निकेटर तथा चीनी यात्री फाहियान तथा ह्वेनसांग के यात्रा वृतांतों में भी इस जनजाति का उल्लेख प्राप्त होता है। इतिहासकारों तथा भाषाविदों का मत है की सौरिया पहाड़िया छोटानागपुर की उराँव जनजाति की एक शाखा है।
वर्तमान समय में सौरिया पहाड़िया जनजाति की मुख्य रूप से झारखण्ड राज्य के संथाल परगना प्रमंडल के साहेबगंज तथा गोड्डा जिला के उत्तरी भाग तथा दूमका जिला में निवास करती हैं। इस जनजाति की कुछ आबादी झारखण्ड राज्य के सिंहभूम (पुराना) जिला तथा बिहार राज्य के सहरसा, कटिहार तथा भागलपुर जिलों में पायी जाती है। 1991 की जनगणना के अनुसार अविभाजित बिहार राज्य के इस जनजाति की कुल जनसंख्या 48,761 है।
सौरिया पहाड़िया प्रोटोऑस्ट्रोलायड प्रजाति से संबंधित हैं। इस जनजाति की बोली मूलत: द्रविड़ भाषा समूह से संबंधित हैं।
सौरिया पहाड़िया जनजाति झारखण्ड राज्य में आदिम जनजाति के रूप में चिन्हित है। इस जनजाति की अर्थ व्यवस्था कृषि तथा वनों पर आधारित है। यह जनजाति पहाड़ियों पर कुरवा खेती ( स्थान्तरित खेती) करती है। मकई, बाजरा, घंघरा (बरबट्टी), अरहर, सूतनी इत्यादि इस स्थानांतरित कृषि की प्रमुख फसलें हैं। सौरिया पहाड़िया जनजाति के लोग पशुपालन भी किया करते हैं। ये लोग गाय, बैल, भैंस, भैंसा, बकरी, सुअर, मुर्गी इत्यादि पालते हैं। यह जनजाति जंगलों से कंद – मूल, फल – फूल, सब्जियां इत्यादि एकत्रित करती है तथा जगंलों से खरहा, साही, जंगली मुर्गियां, जंगली सुअर इत्यादि का शिकार भी करती है।
नगाड़ा में चर्मपत्र के रूप में चमड़े को गोलाकार फैलाकर शंकुरूप खोखला धातु (लोहा) के पात्र के आधार पर लगाया जाता है। जो अनुवादक/गूंजायमान का कार्य करता है। लोहे के ढांचे के ऊपर चमड़े की रस्सी के द्वारा सही खिंचाव चारों तरफ से बांधकर रखा जाता है। इसमें टंगना रस्सी या चमड़े का बना होता है जिसे गला में लटकाकर या नगाड़ा को कहीं रखकर बजाया जाता है। इसे लोग स्थानीय बाजार या मेले से भी खरीदते हैं जिसका प्रयोग विभिन्न अवसरों पर नृत्य एवं गीत के समय करते हैं।
डिमनी बांस की पतली पट्टी से बना होता है जिसे ढंकने के लिए बांस की पतली खामाचियों से बना ढक्कन भी होता है। यह आकार में बड़ा होता है जिसका उपयोग गाँव के जनजातीय लोग घर में धान एवं छिलका सहित दाल आदि को रखने के लिए करते हैं। यह घरेलू सामान प्राय: महली जनजाति द्वारा बनायी जाती है, जो बांस कार्य में निपुण होती है।
मांदर का ऊपरी भाग मिट्टी का बना होता है। जिसके चारों तरफ लम्बवत चिपटी एवं पतली चमड़े की रस्सी बांधी रहती है जिसके किनारे में लोहे का गोल अंकूशी लगा रहता है। दोनों तरफ गोलाकार भाग के सतह से ऊपर चमड़ा लगा होता है। इसका व्यास एक तरफ से दुसरे तरफ बड़ा रहता है। इसके ऊपर बीच में मिट्टी का पतला लेप लगा रहता है जिसे काला या सफेद रंग से रंग दिया जाता है। इसे दोनों हाथ से बजाया जाता है। नृत्य एवं गीत के समय इसका उपयोग किया जाता है। इसे बच्चों द्वारा भी बजाया जाता है जिसे बाजार से खरीद जाता है।
ढोल की ऊपरी रूपरेखा (ढांचा) लकड़ी के ठोस कुन्दा को खोखला बनाकर तैयार किया जाता है। इसके लिए बहरा, हर्रा बीजा आदि लकड़ी के विशेष प्रयोग होता है। इस पर चमड़े की रस्सी (बाँधी) चारों तरफ से बांधी रहती है। दोनों तरफ गोलाकार सतह पर चर्मपत्र लगा रहता है। चर्म पत्र चमड़ा का बना होता है। इस पर बन्दर का चमड़ा (खाल) का भी बिरहोर जनजाति द्वारा उपयोग किया जाता है। इस वाद्य यंत्र का भी उपयोग नृत्य एवं गीत – संगीत के अवसर पर होता है।
यह लकड़ी का बना होता है जिसके तीन भाग होते हैं। बीच के भाग को हल कहते हैं जिसमें का फाल लगा होता है। हल के अगला भाग को सइंड कहा जाता है जो मुख्यत: साल की लकड़ी का बना होता है हल के पिछले भाग को चांदली कहा जाता है। जिसे पकड़ का कर हल चलाया जाता है।
यह भी हल चलाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसे लकड़ी का बनाया जाता है। हल चलाने के लिए बैल को जुआठ मेंरस्सी से नारा (जोड़ा) जाता है।
यह बांस का कई पतले – पतले डंठल को जोड़कर बनाया जाता है जिसमें जंगल के पक्षियों (तोता – मैना) को पकड़ कर रखा जाता है।
एक मोटी लकड़ी को बीच में खोद कर बनाया जाता है जिसके दोनों और चमड़ा चढ़ा कर ढोलक बनाया जाता है जो वाद्य यंत्रका काम करता है।
यह मोटी लकड़ी के बीच में खोद कर बनाया जाता है। इसके साथ एक समाठ होता है जिसके निचले भाग में साम्बी (लोहे का) लगा रहता है ओखली और समाठ विशेष का भिंगाया हुआ चावल या उरद दल कूट कर गूंडी बनाने के कम में लाया जाता है। इससे दाल के छिलके बगैरह भी साफ किया जाता है।
यह चार पैर वाला लकड़ी के कुर्सी आकार का बना होता है जिसे सुतली से बोने के बाद तैयार किया जाता है जो बैठने के काम में लाया जाता है।
पूर्ण पका कद्दू का तुम्बा बनाया जाता है। उसके ऊपरी भाग सिर को काटकर छिद्र करके बीज बगैरह निकाल दिया जाता है जो कृषि कार्य करते समय खेत तक पीने का पानी ले आने का काम में आता है। शिकार के समय भी जनजाति लोग तुम्बा में पीने का पानी ले जाते हैं। तुम्बा में रखा पानी गर्मी में भी ठंडा रहता है। जनजातियों के लिए यह एक थर्मस है। इसके अतिरिक्त यह अनाज बीज रखने के काम में भी आता है।
इससे कूँआ, डाड़ी या खेत में पानी के अंदर रख दिया जाता है जिसमें छोटी – छोटी मछलियाँ फंसाई जाती है। यह बांस को पतला – पतला काटकर बनाया जाता है।
कुमनी बांस की मजबूत पतली खमाचियों द्वारा शंकुरूप आकार का बना होता है। जिसे थोड़ी – थोड़ी दूर पर गोलाकार रूप सेछाल की रस्सी से बांधा जाता है। यह प्राय: महली जनजाति द्वारा बनायी जाती है जिसे अन्य लोग गाँव में स्थानीय बाजारों से खरीदते हैं। यह विभिन्न आकार का छोटा – बड़ा होता है। इसका प्रयोग जनजाति छोटी मछलियों को पकड़ने या फंसाने के लिए करते हैं जो स्वयं कार्य करता है। मछली पकड़ना इनके जीविका का अनियमित एवं सहायक पेशा है। इसे धान की खेत के ढलान एवं पोखरा, गड्ढा, तालाब आदि के छिछला या सतही पर बहते पानी के विपरीत रखा जाता है। पानी के साथ बहकर छोटी मछलियाँ इसमें जाकर फंस जाती हैं। कुमनी, मुचु, तोंडरा आदि मछली पकड़ने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
यह लकड़ी का बना होता है। इसके ऊपर ढक्कन एवं पकड़ने के लिए लकड़ी का बना होता है। इसमें रखने से नमक मिर्च दूषित नहीं होता है।
यह बांस की पतली एवं चौड़ी बित्ती से तैयार किया जाता है। जिसे जनजातीय समाज के द्वारा गर्मी एवं बरसात में धुप औरपानी से बचने के काम में लाया जाता है।
यह लकड़ी की काई टूकड़ों को मिलाकर बनाया जाता है जिससे कपास का सूत तैयार किया जाता है और सूत से कपड़ा बुना जाता है।
सूत काटने से पहले रूई को साफ किया जाता है जिसे जनजातीय समाज में रहटा कहा जाता है। यह भी चरखा की तरह लड़की की कई टुकड़ों से बनता है। जिसमें रूई (कपास) को ओटने (घूनने) के बाद सूत बनाने के लिए तैयार किया जाता है।
यह मोहलान (गंगू) पत्ता का बना होता है जिसे जनजातीय समाज के लोग वर्षा के पानी से बचने के काम में लाते हैं।
हड़िया छान कर रखने का बर्तन मिट्टी का बना होता है तथा हड़िया छकने (छानने) के लिए बांस का बड़ा कटोरानुमा तीनकोनिया आकार का बना होता है जसी हड़िया छ्कनी के नाम से जाना जाता है।
जनजातीय परम्परा के अनुसार अपने त्यौहार पर पूजा करते हुए मंगता पहना जाता है।
क्र. सं |
संग्रहित वस्तु का नाम |
संग्रहित वस्तु की संख्या |
जनजाति का नाम |
उपयोग |
1 |
विवाह कलश |
1 |
उराँव |
विवाह में उपयोग के लिए बाजार से ख़रीदा गया |
2 |
मुचो |
1 |
उराँव |
मछली पकड़ने के लिए बांस की खामच्चियों से निर्मित |
3 |
गूंगू |
1 |
उराँव |
बारिश से बचने गूंगू पत्ता से निर्मित |
4 |
माला |
1 |
उराँव |
गले में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा हुआ |
5 |
झुटिया |
2 |
उराँव |
पैर के उँगलियों के लिए बाजार से ख़रीदा हुआ |
6 |
मठिया |
2 |
उराँव |
कलाई में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा हुआ |
7 |
पड़िया कपड़ा |
1
|
उराँव |
पहनने का कपड़ा बाजार से ख़रीदा हुआ |
8 |
बांसुरी |
1 |
उराँव |
बांस से निर्मित, वाद्य यंत्र के रूप में प्रयुक्त नृत्य एवं संगीत के समय अथवा मवेशी चराने के समय |
9 |
पत्तियों के तोफ्त |
1 |
उराँव |
बारिश से बचने के लिए गूंगू |
10 |
वीणा |
1 |
उराँव |
बांस, तार एवं कागज से निर्मित, वाद्य उपकरण के रूप में |
11 |
हंसुआ |
1 |
उराँव |
धान काटने हेतु बाजार से ख़रीदा हुआ |
12 |
पिंजड़ा |
1 |
उराँव |
चिड़िया पालने के लिए, लकड़ी एवं बीड़ी के पत्ते से निर्मित |
13 |
तीर एवं धनुष |
2 |
उराँव |
बांस एवं रस्सी से निर्मित वस्तु शिकार में उपयोग के लिए |
14 |
बांसुरी |
1 |
उराँव |
नृत्य एवं संगीत से वाद्य यंत्र के रूप में उपयोग तथा बांस से निर्मित |
15 |
पिंजड़ा |
1 |
उराँव |
लकड़ी, बांस और बीड़ी के पत्ते से बना वस्तु चिड़िया पालने के लिए |
16 |
पत्तियों का छाता |
1 |
उराँव |
गूंगू पत्ता से बना छाता बारिश से बचाव हेतु |
17 |
पानी संग्रहक |
1 |
उराँव |
पानी संग्रहण के लिए |
18 |
कंघी |
1 |
उराँव |
केश – सज्जा हेतु बाजार से ख़रीदा हुआ |
19 |
छोटी टोकरी |
1 |
उराँव |
फल एवं सब्जी रखने के लिए बाजार से ख़रीदा हुआ |
20 |
चुनौटी |
1 |
उराँव |
चूना रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
21 |
बालों का क्लिप |
1 |
उराँव |
केश सज्जा में इस्तेमाल किया जाता है। |
22 |
तरपत (बड़ा) |
1 |
उराँव |
कानों में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है। |
23 |
साड़ी |
1 |
उराँव |
पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
24 |
डांडा |
4 |
उराँव |
गले में पहनने के लिए इसे बाजार से खरीदते हैं |
25 |
नारा |
12 |
उराँव |
धागों से निर्मित इसे सिक्के रखने के लिए प्रयुक्त करते हैं |
26 |
डंडा सहित छाता |
1 |
उराँव |
बारिश से बचाव के लिए बाजार से खरीदते हैं |
27 |
मांदर |
1 |
उराँव |
नृत्य गान में वाद्य यंत्र के रूप से प्रयुक्त होता है |
28 |
कुमनी |
1 |
उराँव |
बांस की पतली पट्टियों से निर्मित इस मछली पकड़ने के प्रयोग में लाते हैं |
29 |
मांदर |
1 |
उराँव |
नृत्य गान में वाद्य यंत्र के रूप से प्रयुक्त होता है |
30 |
ढूकरी |
1 |
उराँव |
छोटे पक्षियों को रखने का पिजड़ा |
31 |
ब्रह्मपूरी साड़ी |
1 |
मुंडा |
पहनने का कपड़े बाजार से ख़रीदा हुआ |
32 |
गूंगू |
1 |
मुंडा |
गूंगू पत्ता द्वारा निर्मित, बारिश से बचाव |
33 |
चोप्पी |
1 |
मुंडा |
बारिश से बचाव हेतु बांस एवं गूंगू पत्ता से निर्मित |
34 |
कुमनी |
1 |
मुंडा |
मछली पकड़ने के लिए बांस की खमच्चियों से निर्मित |
35 |
चांदब |
1 |
मुंडा |
विवाह समारोहों में सजावट के लिए प्रयुक्त होता है |
36 |
ठोंटी |
4 |
मुंडा |
शिकार में प्रयुक्त लकड़ी एवं पंख से निर्मित होता है |
37 |
धनुष |
1 |
मुंडा |
शिकार के लिए बांस एवं रस्सी से बनाया जाता है |
38 |
मुंडारी साड़ी |
1 |
मुंडा |
पहनने के लिए प्रयुक्त होता है |
39 |
चंदवा |
1 |
मुंडा |
विवाह मंडप में सजावट के लिए धागे का बना होता है |
49 |
मछली रखने का बर्तन |
1 |
मुंडा |
सामान रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
50 |
राहर रूरिक्साज |
6 |
मुंडा |
संथाल कमर में पहनने की वस्तु जिसे बाजार से खरीदते हैं |
51 |
राहर |
1 |
मुंडा |
नृत्य के समय कमर में पहनते हैं |
52 |
करसा |
1 |
मुंडा |
विवाह मंडप के लिए ख़रीदा जाता है |
53 |
धनुष एवं तीर |
2 |
हो |
शिकार में उपयोग हेतु बांस से निर्मित |
54 |
साधारण धनुष |
1 |
हो |
शिकार में उपयोग हेतु बांस से निर्मित |
55 |
कुमनी |
3 |
हो |
बांस की खमच्चियों से निर्मित मछली पकड़ने के लिए |
56 |
कंघी |
1 |
हो |
केश सज्जा के लिए बाजार से ख़रीदा हुआ |
57 |
बाला |
1 |
हो |
कलाई में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है। |
58 |
सेर |
1 |
हो |
अनाज के माप के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
59 |
घूँघरू |
10 |
हो |
नृत्य में उपयोग हेतु बाजार से ख़रीदा जाता |
60 |
कटरी |
1 |
हो |
कलाई में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
61 |
अंगूठी |
1 |
हो |
हाथ की उँगलियों में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
62 |
ताबीज |
1 |
हो |
बीमारी एवं बुरी आत्मा से बचाव के लिए पहना जाता है |
63 |
मदुला |
1 |
हो |
बीमारी एवं बुरी आत्मा से बचाव के लिए पहना जाता है |
64 |
अंगूठी (छोटा) |
1 |
हो |
हाथ की उँगलियों में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
65 |
कटरी |
1 |
हो |
कलाई में में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
66 |
बेरा |
2 |
हो |
बीमारी एवं बुरी आत्मा से बचाव के लिए पहना जाता है |
67 |
ताबीज |
1 |
हो |
बीमारी एवं बुरी आत्मा से बचाव के लिए पहना जाता है |
68 |
सिंदूरदानी |
1 |
हो |
सिन्दूर रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
69 |
झांझ |
1 |
हो |
मनोरंजन के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
70 |
घंटी |
1 |
हो |
बाजार से खरीद कर मवेशियों के गले में बांधा जाता है |
71 |
खोरहू |
2 |
हो |
कलाई पर पहना जाता है |
72 |
भोरहा |
4 |
हो |
कलाई पर पहना जाता है |
73 |
सांका |
2 |
हो |
कलाई पर पहना जाता है |
74 |
बेरा |
4 |
हो |
पैरों में पहने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
75 |
पैरू |
4 |
हो |
मवेशियों के गले में बांधने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
76 |
घंटी |
1 |
हो |
मवेशियों के गले में बांधने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
77 |
बेरा हांडी |
1 |
हो |
संग्रहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
78 |
2 |
हो |
संग्रहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
|
79 |
चुक्का |
1 |
हो |
संग्रहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
80 |
कलसी |
1 |
हो |
संग्रहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
81 |
नगाड़ा (छोटा) |
1 |
हो |
बाजार से ख़रीदा गया नृत्य एवं संगीत में प्रयुक्त वाद्य यंत्र |
82 |
नगाड़ा |
1 |
हो |
बाजार से ख़रीदा गया नृत्य एवं संगीत में प्रयुक्त वाद्य यंत्र |
83 |
मृदंग |
1 |
हो |
बाजार से ख़रीदा गया नृत्य एवं संगीत में प्रयुक्त वाद्य यंत्र |
84 |
धनुष (अग्रसर) |
1 |
हो |
बाघ से शिकार में प्रयुक्त बांस और रस्सी से बनी वस्तु |
85 |
तीर (सर) |
2 |
हो |
शिकार में प्रयुक्त लोहे, बांस और पंखों की बनी वस्तु |
86 |
चूहा |
1 |
हो |
चूहे पकड़ने के लिए लकड़ी, बांस लोहे के तार एवं काँटी से निर्मित वस्तु |
87 |
मछली |
1 |
हो |
मछली पकड़ने के लिए बांस की खमच्चियों द्वारा निर्मित |
88 |
मछली (छोटा) |
1 |
हो |
मछली पकड़ने के लिए बांस की खमच्चियों द्वारा निर्मित |
89 |
सांरगी |
1 |
हो |
लकड़ी, घोड़े के बाल और बकरी की झिल्ली से बना वाद्ययंत्र जिसका उपयोग नृत्य एवं गायन में होता है |
90 |
साड़ी (साड़ी लिजा:) |
1 |
हो |
स्त्रियों के पहनने की वस्तु जिसे बाजार से ख़रीदा जाता है |
91 |
धोती (धोती लिजा:) |
1 |
हो |
पुरूषों के पहनने की वस्तु जिसे बाजार से ख़रीदा जाता है |
92 |
मोचरा माला |
1 |
हो |
गले में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
93 |
मूंगा माला |
1 |
हो |
गले में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
94 |
बैल की ठारकी |
2 |
हो |
बैल के गले में बाँधने के लिए जनजातियों द्वारा निर्मित |
95 |
पइला सेरही |
1 |
हो |
एक सेर अनाज के माप के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
96 |
पइला ½ सेर |
3 |
हो |
आधा सेर अनाज के माप के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
97 |
कटोरा (बड़ा) |
1 |
हो |
संग्रहण के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
98 |
छिपली (छोटा) |
1 |
हो |
भोजन परोसने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
99 |
कटोरा (छोटा) |
2 |
हो |
एक पाव संग्रहण के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
100 |
पइला ¼ सेर |
4 |
हो |
अनाज के माप के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
101 |
धुपयानी |
1 |
हो |
धुप जलाने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
102 |
दीया |
1 |
हो |
रौशनी के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
103 |
मालिया (बड़ा) |
1 |
हो |
तेल रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
104 |
मालिया (छोटा) |
1 |
हो |
तेल रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
105 |
कलछुल |
1 |
हो |
खाना बनाने में उपयोग हेतु बाजार से ख़रीदा जाता है |
106 |
सिंदूरदानी |
1 |
हो |
सिन्दूर रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
107 |
कोहंडी |
1 |
हो |
सामान रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
108 |
गोरांव |
1 |
हो |
पाजेब के सामान उपयोग होता है एवं बाजार से ख़रीदा जाता है |
109 |
हंसली |
1 |
हो |
गले में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
110 |
खोरहू |
2 |
हो |
कलाई पर पहना जाता है |
111 |
भोरहा |
4 |
हो |
कलाई पर पहना जाता है |
112 |
सांका |
2 |
हो |
कलाई पर पहना जाता है |
113 |
बेरा |
4 |
हो |
पैरों में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
114 |
पेरू |
1 |
हो |
मवेशियों के गले में बांधने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
115 |
बेरा हांडी |
1 |
हो |
संग्राहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
116 |
मिट्टी के बर्तन |
2 |
हो |
संग्राहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
117 |
चुक्का |
1 |
हो |
संग्राहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
118 |
कलसी |
1 |
हो |
संग्राहक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
119 |
मूंडी |
1 |
खरिया |
सामान रखने के लिए |
120 |
बीदा |
1 |
संथाल |
मिट्टी के टूकड़ों को तोड़ने की वस्तु जो लकड़ी सेनिर्मित है |
121 |
मछली पकड़ने के जांजिद |
2 |
संथाल |
मछली पकड़ने के लिए बांस से निर्मित |
122 |
तेल संग्रहक |
1 |
संथाल |
तेल रखने के लिए बाजार से खरीदी वस्तु |
123 |
तार |
1 |
संथाल |
कलाई पर पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा गया |
124 |
कजरौटी |
1 |
संथाल |
काजल रखने की वस्तु जिसे बाजार से खरीदते हैं |
125 |
कर्णफूल |
1 |
संथाल |
कानों में पहने जाने वाले आभूषण जिसे बाजार से ख़रीदा जाता है |
126 |
ढिबरी |
1 |
संथाल |
रोशनी के लिए बाजार से खरीदते हैं |
127 |
कंघी |
9 |
संथाल |
केश सज्जा के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
128 |
पाउडर दानी |
2 |
संथाल |
पाउडर रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
129 |
नसदानी |
1 |
संथाल |
नस रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
130 |
खड़ाऊ |
4 |
संथाल |
चप्पल के समान प्रयुक्त बाजार से खरीदते हैं |
131 |
चट्टी |
2 |
संथाल |
चप्पल के समान प्रयुक्त बाजार से खरीदते हैं |
132 |
दालघोंटनी |
1 |
संथाल |
खाना बनाने में प्रयुक्त तथा बाजार से ख़रीदा जाता है |
133 |
हाथी |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
134 |
टंगनी |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
135 |
बेंच |
1 |
संथाल |
घर के बरामदे में लकड़ी का बना टेबल |
136 |
मचिया |
1 |
संथाल |
पहड़ा राजा के बैठने हेतु विशेष कुर्सी |
137 |
श्रृंगारदान |
1 |
संथाल |
महिलाओं के श्रृंगार वस्तुओं के रखने हेतु |
138 |
टेबल |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
139 |
कुर्सी |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
140 |
चारपाई |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
141 |
आदमी (टूटा हुआ) |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
142 |
संतरा का रस निकालने वाला |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
143 |
सोप |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
144 |
नरया |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
145 |
पाउडरदानी |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
146 |
बाजागाड़ी |
1 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
147 |
कठपुतली |
5 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
148 |
गुड़िया |
2 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
149 |
बाजा चिड़िया |
2 |
संथाल |
बच्चों का खिलौना जिसे बाजार से खरीदते हैं |
150 |
करनी |
1 |
संथाल |
घर बनाने के काम में प्रयुक्त जिसे बाजार से ख़रीदा जाता है |
151 |
तावा |
1 |
संथाल |
बाजार से खरीदकर खाना बनाने के उपयोग में लाया जाता है |
152 |
झांझरा |
1 |
संथाल |
खाना बनाने में प्रयुक्त वस्तु जिसे बाजार से खरीदते हैं |
153 |
धुरा |
1 |
संथाल |
शिकार में प्रयुक्त वस्तु जिसे बाजार से खरीदते हैं |
154 |
चाकु |
3 |
संथाल |
काटने के उपयोग में लाया जाता है तथा बाजार से खरीदा जाता है |
155 |
ताला |
2 |
संथाल |
लोहे का बना होता है जिसे बाजार खरीदते हैं |
156 |
बटाली |
1 |
संथाल |
लोहे का बना होता और चीजों को बांटने के काम में आता है |
157 |
माइका काटने का चाकु |
2 |
संथाल |
लोहे निर्मित तथा माइका काटने में प्रयुक्त |
158 |
कलछुल |
1 |
संथाल |
खाना चलाने में प्रयुक्त तथा इसे बाजार से खरीदते हैं |
159 |
चूहा पकड़ने का जल |
1 |
संथाल |
चूहा पकड़ने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
160 |
छूरा और उसका खोल |
1 |
संथाल |
शिकार में प्रयोग हेतु बाजार से खरीदते हैं |
161 |
टांगी |
1 |
संथाल |
बाजार से काटने हेतु ख़रीदा जाता है |
162 |
चनता |
1 |
संथाल |
घरेलू कार्य के लिए बाजार से खरीदते हैं |
163 |
बीजर |
2 |
संथाल |
बांस और लोहे से निर्मित वस्तु जिसका शिकार में प्रयोग किया जाता है |
164 |
सरौता |
2 |
संथाल |
सुपारी काटने के कार्य के लिए बाजार से खरीदते हैं |
165 |
बरछा |
2 |
संथाल |
शिकार के समय प्रयोग में लाया जाता है, इसे बाजार से खरीदते हैं |
166 |
हंसूआ (बड़ा) |
1 |
संथाल |
काटने के काम में प्रयुक्त होता है |
167 |
छंटनी |
1 |
संथाल |
छंटनी करने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
168 |
ढाल |
1 |
संथाल |
बाजार से रक्षात्मक उपयोग के लिए ख़रीदा जाता है |
169 |
ढिबरी |
1 |
संथाल |
प्रकाश करने के कार्य के लिए बाजार से खरीदते हैं |
170 |
गुप्ती |
1 |
संथाल |
शिकार में प्रयोग के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
171 |
गद्देदार रबर का खोल |
1 |
संथाल |
लोहा रखने में प्रयुक्त होता है और इसे बाजार से खरीदते हैं |
172 |
लहटी चूड़ी |
9 |
संथाल |
कलाई में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
173 |
बाह का चूड़ी |
1 |
संथाल |
कलाई में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
174 |
चूड़ी |
3 |
संथाल |
कलाई में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
175 |
तरपत (छोटा) |
1 |
संथाल |
पत्तियों से बनी कानों में पहनने की बालियाँ |
176 |
माला |
1 |
संथाल |
गले में पहनने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
177 |
तौलिया |
1 |
संथाल |
कपड़े बदलने के लिए उपयुक्त इसे बाजार से जाता है |
178 |
बातू |
2 |
संथाल |
----------- |
179 |
हिरण का सींग |
2 |
संथाल |
परिवार की प्रतिष्ठा के लिए इस सींग का प्रयोग किया जाता है |
180 |
बच्चे के साथ स्त्री (गुड़िया) |
2 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
181 |
घड़े के साथ स्त्री (गुडिया) |
3 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
182 |
मछली के साथ औरत (गुड़िया) |
2 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
183 |
टोकरी सहित औरत |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
184 |
चिड़िया के साथ औरत (गुड़िया) |
1 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
185 |
दीया सहित औरत (गुड़िया) |
1 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
186 |
औरत (गुड़िया) |
4 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
187 |
पुरूष (गुड़िया) |
2 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
188 |
घुड़सवार (गुड़िया) |
2 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
189 |
हाथी पर सवार पुरुष (गुड़िया) |
2 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
190 |
गायें |
2 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
191 |
गणेशजी |
1 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
192 |
उल्लू |
1 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
193 |
तोता |
3 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
194 |
कागज के पंख वाली चिड़िया |
1 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
195 |
शेर कार्ड बोर्ड पर |
1 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
196 |
चीलम |
7 |
संथाल |
तम्बाकू पीने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
197 |
गुलदस्ता |
2 |
संथाल |
फूलदार पौधों को रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
198 |
पइला |
3 |
संथाल |
अनाज के माप के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
199 |
अँधा चुक्का |
3 |
संथाल |
पैसा रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
200 |
कप |
1 |
संथाल |
सामान रखने हेतु बाजार से ख़रीदा जाता है |
201 |
कबूतर |
1 |
संथाल |
बच्चों के खेलने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
202 |
पौवा |
2 |
संथाल |
आनाज की माप के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
203 |
गगरा |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
204 |
कृष्ण जी |
2 |
संथाल |
संथाल बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
205 |
सेरहा |
1 |
संथाल |
अनाज की माप के लिए बाजार से खरीदते हैं |
206 |
सेरहा (1/2 सेर) |
1 |
संथाल |
अनाज की माप के लिए बाजार से खरीदते हैं |
207 |
मितिया |
1 |
संथाल |
बच्चों के खेलने की वस्तु जिसे बाजार से खरीदते हैं |
208 |
मलिया |
4 |
संथाल |
तेल रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
209 |
हुक्का |
1 |
संथाल |
तम्बाकू पीने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
210 |
चुक्का (बड़ा) |
1 |
संथाल |
बर्तन को रखने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
211 |
बोञ |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
212 |
गमला |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
213 |
पाटली |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
214 |
चमक |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
215 |
जूइं |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
216 |
सरपोस्त |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
217 |
बोय |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
218 |
चुक्का |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
219 |
सुराही |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
220 |
हरका |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
221 |
मौना |
3 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
222 |
पाउती |
5 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
223 |
तापना |
2 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
224 |
मुनी |
5 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
225 |
दस्ती पाउती |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
226 |
पंखा |
3 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
227 |
डलिया |
2 |
संथाल |
बर्तनों को रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
228 |
कुंचरी |
2 |
संथाल |
बर्तनों को रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
229 |
सुपली |
1 |
संथाल |
फटकने की कार्य के लिए बाजार से खरीदते हैं |
230 |
बट्टा |
1 |
संथाल |
माप के लिए प्रयुक्त किया जाता है |
231 |
खूचरी |
1 |
संथाल |
फटकने की कार्य के लिए बाजार से खरीदते हैं |
232 |
सुप |
1 |
संथाल |
फटकने के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
233 |
धरा तराजू |
1 |
संथाल |
आनाज के माप के लिए बाजार से खरीदते है |
234 |
तापी |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
235 |
झापली डोली |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
236 |
पिंजरा |
1 |
संथाल |
चिड़िया को रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
237 |
तापी (बड़ा) |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
238 |
छोपी |
2 |
संथाल |
वर्षा से बचाव के लिए निर्मित |
239 |
झाड़ू |
2 |
संथाल |
फर्श की सफाई के लिए बाजार से खरीदते हैं |
240 |
टोकरी |
2 |
संथाल |
बर्तन रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
241 |
दस्ती पोटी |
1 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
242 |
पैजन |
4 |
संथाल |
बच्चों के मनोरंजन हेतु बाजार से खरीदते हैं |
243 |
सिकड़ी |
1 |
संथाल |
गले में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
244 |
माला |
1 |
संथाल |
गले में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
245 |
धांकी |
1 |
संथाल |
गम्हार लकड़ी से निर्मित इसका उपयोग वाद्य के रूप में नृत्य के रूप में किया जाता है। |
246 |
हेंगारो |
1 |
संथाल |
सामान रखने के रूप में प्रयुक्त इसे बाजार से खरीदते हैं |
247 |
पवा |
1 |
संथाल |
अनाज को मापने के लिए प्रयुक्त होता है |
248 |
परि |
1 |
संथाल |
अनाज को मापने के लिए प्रयुक्त होता है |
249 |
कटली |
1 |
संथाल |
तेल रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
250 |
चूहे का जाल |
1 |
संथाल |
लकड़ी और रस्सी का बना होता है और चूहे को मारने के लिए प्रयुक्त होता है |
251 |
झीनपीर |
1 |
संथाल |
कानों में पहनने के लिए प्रयुक्त होता है |
252 |
पुटकी |
1 |
संथाल |
नाक में पहनने के लिए प्रयोग किया जाता है |
253 |
बहासूथक |
1 |
संथाल |
केश सज्जा के लिए बाजार से ख़रीदा जाता है |
254 |
मंडोली |
1 |
संथाल |
गले में पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
255 |
मर्चबाड़ा |
1 |
संथाल |
कानों में पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
256 |
सुलक |
1 |
संथाल |
बालों को सँवारने के लिए ख़रीदा जाता है |
257 |
ठाकापगडा |
1 |
संथाल |
कानों में पहनने के लिए प्रयुक्त होता है |
258 |
मुपुतकी |
1 |
संथाल |
कानों में पहनने के लिए प्रयुक्त होता है |
259 |
चुरली |
1 |
संथाल |
कलाई में पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
260 |
ओहगंब्रन |
1 |
संथाल |
नृत्य गान में पहना जाता है |
261 |
संथाली साड़ी |
1 |
संथाल |
स्त्रियों द्वारा पहना जाता है |
262 |
परहंद |
1 |
संथाल |
लड़कियां स्कर्ट के समान इसे पहनती है |
263 |
भगुआ |
1 |
संथाल |
नीचे पहनने वाले वस्त्र के रूप में प्रयुक्त होता है |
264 |
पंछी |
1 |
संथाल |
साड़ी के समान व्यवहृत होता है |
265 |
पेपरे |
1 |
संथाल |
लकड़ी और ताड़ पत्ते का बना होता है तथा नृत्य गान में इसका उपयोग होता है |
266 |
लूतुरपुतकी |
1 |
संथाल |
कानों में पहनने के लिए प्रयुक्त होता है |
267 |
तीर |
2 |
संथाल |
बांस और पंख की बनी यह चीज शिकार करने में काम आती है |
268 |
धनुष |
2 |
संथाल |
बांस और रस्सी से निर्मित इसे शिकार करने में प्रयोग करते हैं |
269 |
बांसुरी |
3 |
संथाल |
वाद्य यंत्र के रोप में प्रयुक्त होता है |
270 |
तूनूज |
1 |
संथाल |
लकड़ी और धागे से बना इससे चूहा पकड़ा जाता है |
271 |
चेरी पांसी |
1 |
संथाल |
यह लकड़ी घोड़े की बाल और बकरी की झिल्ली से बना होता है |
272 |
बानय |
1 |
संथाल |
नृत्य - गान के समय बजाया जाता है |
273 |
गूंदरी सांय |
1 |
संथाल |
गूंगू पत्ता और बैलों के बाल से बना यह चिड़िया पकड़ने के काम में आता है |
274 |
स्ट्रिंग त्रपत्र |
3 |
संथाल |
बांस और घोड़े के बाल से बना वाद्य यंत्र |
275 |
तुराई |
1 |
संथाल |
लकड़ी और तार के पत्ते से बना वाद्य यंत्र |
276 |
लाठा |
1 |
संथाल |
चिड़िया पकड़ने के काम में आता है |
277 |
लोहे की चूड़ी |
2 |
संथाल |
कलाई में पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
278 |
कंगन |
2 |
संथाल |
बांह में पहना जाता है |
279 |
कारू |
1 |
संथाल |
कलाई में पहनने का आभूषण |
280 |
करताल |
2 |
संथाल |
नृत्य गान में बजाने की वस्तु |
281 |
झीका |
3 |
संथाल |
नृत्य गान में बजाने की वस्तु |
282 |
कंगन |
2 |
संथाल |
कलाई में पहनने का आभूषण |
283 |
बोंक |
1 |
संथाल |
पैरों में पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
284 |
सकुआ |
1 |
संथाल |
भैंस के सींग से बनी वस्तु समारोहों में फूंकने के काम आती है |
285 |
लिपूर |
2 |
संथाल |
नृत्य – गान में प्रयुक्त होता है |
286 |
तुमदक |
2 |
संथाल |
नृत्य – गान में प्रयुक्त होता है |
287 |
मरक पिंचर |
1 |
संथाल |
जंगल से लाया जाता है और नृत्य – गान में प्रयुक्त होता है |
288 |
मुरब्बे |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु रेशों से निर्मित होता है |
289 |
हंसली |
1 |
बिरहोर |
गले में पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
290 |
फूदना |
1 |
बिरहोर |
बाहों पर पहनने के लिए बाजार से खरीदते है |
291 |
पगड़ा |
2 |
बिरहोर |
कानों में पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
292 |
अरापत |
1 |
बिरहोर |
मछली पकड़ने के लिए बांस से निर्मित सामान |
293 |
खूंघी |
1 |
बिरहोर |
सामन रखने के लिए |
294 |
खानरा |
2 |
बिरहोर |
छऊ नृत्य में प्रयुक्त लकड़ी का बना होता है |
295 |
बलम |
1 |
बिरहोर |
शिकार या आत्मारक्षा के लिए प्रयोग होता है |
296 |
सकम |
1 |
बिरहोर |
साल के पत्तों से बना कान में पहने जाने वाला आभूषण होता है |
297 |
चिकुआर |
1 |
बिरहोर |
ताबीज के रूप में प्रयुक्त होता है। दांतों को धागों से बांधकर गले में बीमारी दूर करने के लिए पहनते हैं |
298 |
भानुरी माला |
1 |
बिरहोर |
लू से बचने के लिए पहना जाता है |
299 |
झाली |
1 |
बिरहोर |
बिरहोर इसका प्रयोग जाल के रूप में करते हैं |
300 |
बेअर पेशा |
1 |
बिरहोर |
रस्सी बनाने के लिए कच्चा माल के रूप में करते हैं |
301 |
सिकुआ |
1 |
बिरहोर |
झोला के समान प्रयुक्त |
302 |
दोअर |
1 |
बिरहोर |
महलेन पेड़ से बनाया जाता है |
303 |
बंदर की चमड़ी |
1 |
बिरहोर |
नगाड़ा या ढोल पर इसे मढ़ा जाता है |
304 |
कुमनी |
2 |
बिरहोर |
मछली पकड़ने के लिए बांस से बना |
305 |
कुरूआ |
1 |
बिरहोर |
मछली पकड़ने के लिए बांस से बना |
306 |
तूंबा |
1 |
बिरहोर |
पानी रखने में प्रयुक्त होता है |
307 |
धनु और तीर |
2 |
बिरहोर |
बांस और रस्सी से बना शिकार करने के काम में आता है |
308 |
लुंडिक |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु गम्हार की लकड़ी का बना होता है |
309 |
ऊखल |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु साल की लकड़ी का बना होता है |
310 |
समाठ |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु साल की लकड़ी का बना होता है |
311 |
सूपत ढोलकी खोल |
3
|
बिरहोर |
विक्रय हेतु लकड़ी का बना होता है |
312 |
राबगा |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु लकड़ी का बना होता है |
313 |
कठौत |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु लकड़ी का बना होता है |
314 |
मादर जनाउ |
1 |
बिरहोर |
विक्रय के लिए बांस का बना होता है |
315 |
खखोरनी |
1 |
बिरहोर |
लकड़ी और लोहे का बना होता है तथा नगाड़ों या ढोल के खोल को चिकना किया जाता है |
316 |
बसुला |
1 |
बिरहोर |
लकड़ी और लोहे का बना जंगल में कार्य करने के लिए प्रयुक्त होता है |
317 |
टांगा |
1 |
बिरहोर |
लकड़ी और लोहे का बना जंगल में कार्य करने के लिए प्रयुक्त होता है |
318 |
टांगुला |
1 |
बिरहोर |
लकड़ी और लोहे का बना जंगल में कार्य करने के लिए प्रयुक्त होता है |
319 |
सबर |
1 |
बिरहोर |
मिट्टी खोदने के कार्य में प्रयुक्त होता है |
320 |
चोप की रस्सी |
8 बंडल |
बिरहोर |
जंगल से प्राप्त रस्सी बनाई जाती है |
321 |
सिलाई की रस्सी |
1 |
बिरहोर |
बेचने के उद्देश्य से रेशों से बनाया जाता है |
322 |
मुरब्बे की रस्सी |
1 |
बिरहोर |
विक्रय हेतु रेशों से निर्मित होता है |
323 |
काटू छूरी |
1 |
बिरहोर |
काटने एवं छीलने के कार्य में प्रयुक्त होता है |
324 |
हनौथ |
1 |
बिरहोर |
रस्सी को बराबर करने हेतु लकड़ी का बना होता है |
325 |
ताला |
1 |
लोहरा |
विक्रय के लिए इस टेल का निर्माण लोहे से होता है |
326 |
खरगोश पकड़ने का जाल |
1 |
लोहरा |
खरगोश पकड़ने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
327 |
डोरा गजिया |
1 |
लोहरा |
पैसे रखने के लिए धागों से निर्मित |
328 |
घोंघी |
3 |
लोहरा |
बांस से निर्मित मछली पकड़ने के लिए प्रयुक्त |
329 |
साड़ी |
1 |
लोहरा |
पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
330 |
मूंगा चेन |
1 |
लोहरा |
बाजार से खरीद कर गले में पहनते हैं |
331 |
तरकी |
4 |
खरवार |
कानों में पहनने के लिए बाजर से लाते हैं |
332 |
डंडकहार |
1 |
|
नृत्य के समय कमर में पहना जाता है |
333 |
मांदर |
1 |
खरवार |
नृत्य गान में वाद्य यंत्र के रूप में प्रयुक्त होता है |
334 |
झाल |
1 |
खरवार |
नृत्य में प्रयुक्त होता है |
335 |
साड़ी |
1 |
खरवार |
पहनने के उपयोग में आता है तथा बाजार से खरीदते हैं |
336 |
करया |
1 |
खरवार |
पुरूषों द्वारा पहनने के प्रयोग में आता है |
337 |
सहइया काँटा |
10 |
खरवार |
नृत्य के समय इसका प्रयोग सजने के लिए किया जाता है |
338 |
पहारिया सुलाकी |
1 |
पहाड़िया |
केश – विन्यास में प्रयुक्त होता है |
339 |
बांस गोलट |
2 |
असुर |
बांस और रस्सी से बनाया जाता है और शिकार करने में प्रयुक्त होता है |
340 |
उद का खाल |
1 |
असुर |
ढोल या नगाड़ों पर चढ़ाया जाता है |
341 |
रेवाया |
2
|
असुर |
लकड़ी का बना बच्चों के खेल के उपयोग में आता है |
342 |
सगरी |
1 |
असुर |
लकड़ी का बना बच्चों के खेल के उपयोग में आता है |
343 |
छोटा धनु |
1 |
असुर |
बांस का बना शिकार करने के काम में आता है |
344 |
सिल्ली या करधनी |
2 |
असुर |
बैल कापूंछ के बाल का बना, कमर शारीरिक सुंदरता बनाने के लिए पहना जाता है |
345 |
लगुना का सिंग |
1 |
असुर |
मूठ के समान उपयोग तथा प्रतिष्ठा का परिचायक |
346 |
बाघ दूध |
1 |
असुर |
बाघिन का दूध जिसका उपयोग दवा में होता है |
347 |
कानू या चपुआ |
2 |
असुर |
बांस की लकड़ी एवं चमड़े से निर्मित वस्तू जिसका उपयोग फूंकने में किया जाता है |
348 |
काठा दांग |
2 |
असुर |
लकड़ी का बना |
349 |
नाड़ी या |
1 |
असुर |
लकड़ी का बना |
350 |
सौरसी |
1 |
असुर |
लोहे का बना होता है तथा औजार के रूप में लोहरा इसका उपयोग करते हैं |
351 |
कूतासी या पास |
1 |
असुर |
रोजमर्रा के कम में आने वाली वस्तु जो लोहे की बनी होती है |
352 |
चूड़ी |
1 |
असुर |
मिट्टी का बना होता है और छत बनाने के काम में आता है |
353 |
मुंगरा |
2 |
असुर |
यह लकड़ी का बना होता है तथा मिट्टी के टाइल बनाने वाले सांचे के नीचे वाले भाग में प्रयुक्त होता है |
354 |
वासुकी |
1 |
असुर |
मिट्टी का बना होता है और छत बनाने के काम में आता है |
355 |
खपड़ा |
2 |
असुर |
मिट्टी का बना होता है और छत बनाने के काम में आता है |
356 |
बूलंग काठ |
1 |
असुर |
लकड़ी का बना नमक एवं मसाला रखने के काम में आता है |
357 |
कुमनी |
1 |
असुर |
बांस का बना मछली पकड़ने का काम में आता है |
358 |
नचूआ |
1 |
असुर |
बांस का बना होता है तथा मछली पकड़ने के काम में आता है |
359 |
टोंकी |
1 |
असुर |
महालियान पत्तों द्वारा निर्मित इसका उपयोग अनाज के संग्रहण में होता है |
360 |
पोतम |
1 |
असुर |
---- |
361 |
गूंगू |
1 |
असुर |
बारिश से बचाव हेतु इसका उपयोग होता है और यह गूंगू पत्ता से निर्मित होता है |
362 |
लडोरा |
1 |
असुर |
महालियन पेड़ के छाल से इस रस्सी का निर्माण होता है |
363 |
सिसिर डोरा |
1 |
असुर |
शिशिर पेड़ की छाल से इस रस्सी का निर्माण होता है |
364 |
मोराबी डोरा |
1 |
असुर |
मोराबी पेड़ की छाल से इस रस्सी का निर्माण होता है |
365 |
उदाल डोरा |
1 |
असुर |
उदाल पेड़ की छाल से इस रस्सी का निर्माण होता है |
366 |
फूतचीरा |
1 |
असुर |
झाडू बनाने के काम में इसका उपयोग होता है |
367 |
खजूर पत्ती |
1 |
असुर |
चटाई बनाने में इसका प्रयोग होता है |
368 |
जनाउ |
1 |
असुर |
एक प्रकार की घास से निर्मित यह बुहारने एवं विक्रय किया जाता है |
369 |
खजूर की चटाई |
1 |
असुर |
जमीन पर बिछाकर बैठने तथा धान सुखाने के काम में आता है |
370 |
पोपरा |
1 |
असुर |
पोपरा की गुठली के इस्तेमाल नमक रखने में होता है |
371 |
दतराम |
1 |
असुर |
लोहा एवं लकड़ी का बना होता है तथा इसका उपयोग अनाज काटने के समय होता है |
372 |
चमड़ी (बैल की) |
1 |
असुर |
इसका विक्रय किया जाता है |
373 |
थारकी |
1 |
असुर |
लकड़ी और धागे से बनी इस वस्तु को मवेशियों के गले में बांधा जाता है |
374 |
नाहेल (हल) |
1 |
असुर |
लकड़ी, बांस के तार एवं लोहे से निर्मित इसका प्रयोग हल चलाने के करते हैं |
375 |
जुअथ |
1 |
असुर |
साल की लकड़ी का बुना होता है और बैलों के गले डाला जाता है |
376 |
पट्टा |
1 |
असुर |
लकड़ी का बना होता है और हल चलाने के बाद मिट्टी बराबर करने में प्रयुक्त होता है |
377 |
सुप्तिकाठु |
1 |
असुर |
लकड़ी का बना होता है तथा सुअरों को खिलाने के लिए प्रयुक्त होता है |
378 |
रांवा |
1 |
असुर |
लकड़ी और लोहे का बना होता है तथा मिट्टी कुरेदने के काम आता है |
379 |
लकड़ी का फर्नीचर |
2 |
असुर |
लकड़ी का बना होता है तथा बैठने के काम में आता है |
380 |
पाटनी |
4 |
असुर |
लकड़ी का बना होता है तथा तेल सामान रखने के काम आता है |
381 |
पूटली |
1 |
असुर |
बांस का बना होता है और सामान रखने के काम आता है |
382 |
बेहिंगा |
1 |
असुर |
सामान ढोने के कार्य में प्रयुक्त यह लकड़ी का बना होता है |
383 |
घानु एवं चियारी |
1 |
असुर |
बांस और रस्सी का बना होता है तथा बच्चों के खेलने के काम में आता है |
384 |
मोंगरा |
1 |
असुर |
लकड़ी के निर्मित हथौड़े के रूप में व्यवहृत होता है |
385 |
मोरा |
1 |
असुर |
अनाज संग्रहण के लिए यह धान की भूंसी से बना होता है |
386 |
दारी |
1 |
असुर |
लोहा बनाने के अयस्क के रूप में व्यवहृत |
387 |
गेरा |
1 |
असुर |
लोहन गलाने के बाद बचा हुआ अयस्क |
388 |
काँटी |
1 |
असुर |
चुना बनाने के लिए इस चूने के पत्थर के प्रयोग कच्चा माल के रूप में होता है |
389 |
सफेद मिट्टी |
1 |
असुर |
सिर धोने में इसका इस्तेमाल किया जाता है |
390 |
काली मिट्टी |
1 |
असुर |
सिर धोने में इसका इस्तेमाल किया जाता है |
391 |
मिट्टी |
1 |
असुर |
सिर धोने में इसका इस्तेमाल किया जाता है |
392 |
तमुक |
1 |
असुर |
महुआ के फूल को तम्बाकू के पत्ते के साथ मिलाकर इसका इस्तेमाल महिलाओं द्वारा नशा के लिए किया जाता है |
393 |
चारी और अनगढ़ा |
1 |
असुर |
बैल के पूंछ के बाल का उपयोग कमरबंद बनाने में होता है |
394 |
माथादत राम |
1 |
असुर |
लकड़ी और लोहे का बना इसे घास निकालने में उपयोग करते हैं |
395 |
अखरनी |
1 |
असुर |
बांस और लोहे का बना यह औजार अनाज पीटने का काम आता है |
396 |
सखेस |
1 |
असुर |
अनाज ढोने में प्रयुक्त होते है |
397 |
चुनौटी |
1 |
असुर |
तम्बाकू रखने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
398 |
टड्डू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
भेलवा की लकड़ी से बना |
399 |
तोश |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
भेलवा की लकड़ी से बना |
400 |
अरतू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस और गूंगू पत्ता से बनी वस्तु जिसका उपयोग शिकार करने से होता है |
401 |
चारू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस और मयूर पंख से निर्मित, शिकार में प्रयुक्त |
402 |
छोंगे |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस से निर्मित पंखे के रूप में प्रयुक्त |
403 |
ततरू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
फसलों की कटाई में प्रयुक्त |
404 |
कड्डू |
12 |
सौरिया पहाड़िया |
कलाई पर पहनने के लिए ख़रीदा जाता है |
405 |
कदबे अंगती |
8 |
सौरिया पहाड़िया |
पैर के अंगूली में पहना जाता है |
406 |
बंसली |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
नृत्य – गान में प्रयुक्त, बांस से बना वाद्य यंत्र |
407 |
कांदो |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
जामुन की लकड़ी से बना बैठने के काम में प्रयुक्त होता है |
408 |
भासू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
लकड़ी काटने का औजार जो जामुन की लकड़ी और लोहे का बना होता है |
409 |
बाघ धानु |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बाघ के शिकार के लिए बांस और रस्सी से बना |
410 |
तुरकू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
सखूआ के लकड़ी से निर्मित चूहा पकड़ने के काम में आता है |
411 |
बंसली |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस का बना होता है और नृत्य गान में काम आता है |
412 |
जोगरी |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
साल की लकड़ी का बना होता है और मिट्टी खोदने के काम में आता है |
413 |
तुक्का |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस और मयूर पंख का बना, चिड़िया मारने के काम में आता है |
414 |
कांडवरे |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
साल की लकड़ी का बना होता है जिसमें सूअरों को खाना देते हैं |
415 |
सेरा |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस का बना, मछली पकड़ने के काम में आता है |
416 |
तोकरेन |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस का बना मवेशियों के गले में बाँधा जाता है |
417 |
कद – ब – ए’ अंगती |
16 |
सौरिया पहाड़िया |
कानों में पहनने हेतु ख़रीदा जाता है |
418 |
मूइया एन – अंगती |
2
|
सौरिया पहाड़िया |
नाक में पहनने हेतु ख़रीदा जाता है |
419 |
पइ |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
अनाज को मापने के लिए प्रयोग में आता है |
420 |
पूरसो |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
अनाज को मापने के लिए प्रयोग में आता है |
421 |
देनरू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
जामुन की लकड़ी, बांस और घोड़े के बाल से बना वाद्य यंत्र |
422 |
कनजली |
2 |
सौरिया पहाड़िया |
कचनार की लकड़ी बना वाद्य यंत्र |
423 |
नकतु |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
भेलवा की लकड़ी से बना नृत्य में पहना जाता है |
424 |
खैलू |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
आम की लकड़ी से बना वाद्य यंत्र |
425 |
गूगोरी |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
पैरों में पहनने के लिए खरीदा जाता है |
426 |
धनुष |
2 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस और रस्सी से बनी वस्तु जिसका उपयोग शिकार करने में आता है |
427 |
चिड़िया का जाल |
3 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस और रस्सी से बना होता है तथा इससे चिड़िया फंसाई जाती है |
428 |
मिट्टी कुरेदने की छड़ी |
1 |
सौरिया पहाड़िया |
बांस और कुरूम के रेशे से निर्मित होता है तथा मिट्टी कुरेदने के काम में आता है |
429 |
घोती |
1 |
पहारिया |
बांस का बना मछली रखने में प्रयुक्त होता है |
430 |
पाटनी |
1 |
माल पहाड़िया |
बीजों को रखने के लिए पत्ती से बना होता है
|
431 |
दादू |
1 |
माल पहाड़िया |
चावल पकाने में प्रयुक्त होता है |
432 |
कादू |
4 |
माल पहाड़िया |
कलाई पर पहनने के लिए बाजार से खरीदते हैं |
433 |
पूंदू |
16 |
माल पहाड़िया |
माला के रूप में व्यवहृत होता है |
434 |
झाल सूलक |
2 |
माल पहाड़िया |
बाल में लगाने वाले क्लिप के समान प्रयुक्त होता है |
435 |
कोरला फूली |
2 |
माल पहाड़िया |
नाक में पहनने के लिए खरीदते हैं |
436 |
पैजन |
2 |
माल पहाड़िया |
पैरों में पहनने हेतु खरीदते हैं |
437 |
खंता |
1 |
माल पहाड़िया |
मिट्टी खोदने के काम में आता है तथा लकड़ी और लोहे का बना होता है |
438 |
लकड़ी |
1 |
माल पहाड़िया |
कटहल की लकड़ी का बना होता है |
439 |
चूटी |
1 |
माल पहाड़िया |
काँटा निकालने में प्रयुक्त होता है |
440 |
दाओ |
1 |
माल पहाड़िया |
पेड़ काटने में प्रयुक्त होता है |
441 |
झांप (चूहा का जाल) फांस |
1 |
माल पहाड़िया |
चूहा पकड़ने के लिए लकड़ी का बना होता है |
442 |
पून |
10 |
माल पहाड़िया |
माला के रूप में व्यवहृत होता है |
443 |
बीजोती |
1 |
माल पहाड़िया |
बांह में पहना जाता है और बाजार से ख़रीदा जाता है |
444 |
बाजू |
4 |
माल पहाड़िया |
बांह में पहना जाता है और बाजार से ख़रीदा जाता है |
445 |
महुली |
2 |
माल पहाड़िया |
गले में पहनने के लिए प्रयोग होता है |
446 |
बोंक |
4 |
माल पहाड़िया |
पैर में पहनने के लिए प्रयोग होता है |
447 |
ठेक |
4 |
माल पहाड़िया |
कलाई पर पहना जाता है |
448 |
सिकड़ |
1 |
माल पहाड़िया |
गले में पहना जाता है |
449 |
खोन्सो |
4 |
माल पहाड़िया |
बाल में क्लिप के समान इस्तेमाल किया जाता है |
450 |
झालासू लक |
1 |
माल पहाड़िया |
बाल में क्लिप के समान इस्तेमाल किया जाता है |
451 |
चूटा |
1 |
माल पहाड़िया |
काँटा निकालने में प्रयुक्त होता है |
452 |
एरतु |
1 |
माल पहाड़िया |
बांस और रस्सी का बना शिकार करने में प्रयुक्त होता है |
453 |
दुलिया |
2 |
माल पहाड़िया |
चिड़िया मारने के लिए लकड़ी एवं बांस का बना होता है |
454 |
चरतु |
11 |
माल पहाड़िया |
बांस और लोहे का बना होता है और जंगली जानवरों को मारने में व्यवहृत होता है |
455 |
ततरूदू |
1 |
माल पहाड़िया |
जानवरों को मारने में व्यवहृत होता है |
456 |
टूनगा |
1 |
माल पहाड़िया |
घास और छोटे पेड़ काटने में व्यवहृत होता है |
457 |
उर्मल |
1 |
माल पहाड़िया |
बांस का बना एक तरह वाद्य यंत्र |
458 |
लीपुर |
1 |
माल पहाड़िया |
नृत्य के समय पैर में पहना जाने वाला आभूषण, नृत्यगान में इसका प्रयोग होता है |
459 |
चकमक |
1 |
माल पहाड़िया |
घर्षण से आग उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त |
460 |
जातरे |
1 |
माल पहाड़िया |
बाघ के शिकार के लिए बांस का बना होता है |
461 |
बनावे |
1 |
माल पहाड़िया |
एक प्रकार का वाद्य यंत्र |
462 |
ढाक |
1 |
माल पहाड़िया |
नगाड़ा या ढोल बनाने में प्रयुक्त लकड़ी का बना होता है |
463 |
चाहे |
1 |
माल पहाड़िया |
लकड़ी का बना मिटटी खोदने के व्यवहृत होता है |
464 |
डोले आरचापो |
1 |
माल पहाड़िया |
खुरचने के प्रयोग में आता है |
465 |
मतला |
1 |
माल पहाड़िया |
बांस और पत्तों से निर्मित बारिश से बचाव के लिये प्रयुक्त होता है |
466 |
सुरली |
1 |
माल पहाड़िया |
बांस का बना वाद्य यंत्र |
467 |
मनरली |
1 |
माल पहाड़िया |
बांस का बना वाद्य यंत्र |
468 |
आले |
1 |
माल पहाड़िया |
लकड़ी से बना हल चलाने के प्रयोग में आता है |
469 |
जोगी |
1 |
माल पहाड़िया |
लकड़ी और लोहे से बना मिट्टी खोदने के काम में आता है
स्त्रोत: कल्याण विभाग, झारखण्ड सरकार |
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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