भारत की वयस्क महिलाओं की जनसंख्या (जनगणना 2011) के आधार पर गणना की जाए तो पता चलता है कि 14.58 करोड़ महिलाओं (18 वर्ष से अधिक की उम्र) के साथ यौन उत्पीड़न जैसा अपमानजनक व्यवहार हुआ है। सवाल उठता है कि वास्तव में कितने प्रकरण दर्ज हुए? राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2006 से 2012 के बीच आईपीसी की धारा 358 के अंतर्गत 283407, धारा 509 के तहत 71843 और बलात्कार के 154251 प्रकरण दर्ज हुए। मतलब साफ है कि बलात्कार के अलावा उत्पीड़न के अन्य आंकड़ों को आधार बनाया जाए तो साफ जाहिर होता है कि अब भी वास्तविक उत्पीड़न के एक प्रतिशत मामले भी सामने नहीं आते हैं।
इसी दौरान बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों हेतु एक अलग कानून बना। तदुपरांत यह स्थापित हो गया कि घरों में महिलाओं के साथ कई रूपों में हिंसा बदस्तूर जारी है। इसे लेकर घरेलू हिंसा रोकने के लिए कानून बना। अंतत: यह स्वीकार किया जाने लगा है कि महिलायें भी एक कामकाजी प्राणी हैं, और वे काम की जगह पर भी हिंसा की शिकार होती हैं। इसके लिए अगस्त 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में कार्यस्थल पर लैंगिक एवं यौन उत्पीड़न रोकने के लिए विशाखा दिशानिर्देश बनाए थे।
विचारणीय यह है कि क्या हमारा समाज महिलाओं के लिए एक असुरक्षित और अपमानजनक जीवन जीने का स्थान है? हम इंतजार करेंगे कि कोई विशाखा, भंवरी देवी या निर्भया आए और उनके अस्तित्व दांव पर लगने के बाद सरकार और समाज जागेगा? अब हमारे पास महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) कानून 2013 मौजूद है। दिसम्बर 2013 को इसके नियम भी जारी कर दिए गए हैं। लेकिन इन नियमों से भी सरकार के गंभीर होने का अहसास होता है।
सन् 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया था।जिन संस्थाओं में दस से अधिक लोग काम करते हैं, उन पर यह अधिनियम लागू होता है l
ये अधिनियम, 9 दिसम्बर, 2013, में प्रभाव में आया था। जैसा कि इसका नाम ही इसके उद्देश्य रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में, पीड़ित को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये कार्य करता है।
ये अधिनियम विशाखा केस में दिये गये लगभग सभी दिशा-निर्देशों को धारण करता है और ये बहुत से अन्य प्रावधानों को भी निहित करता है जैसे: शिकायत समितियों को सबूत जुटाने में सिविल कोर्ट वाली शक्तियाँ प्रदान की है; यदि नियोक्ता अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करने में असफल होता है तो उसे 50,000 रुपये से अधिक अर्थदंड भरना पड़ेगा, ये अधिनियम अपने क्षेत्र में गैर-संगठित क्षेत्रों जैसे ठेके के व्यवसाय में दैनिक मजदूरी वाले श्रमिक या घरों में काम करने वाली नौकरानियाँ या आयाएं आदि को भी शामिल करता है।
इस प्रकार, ये अधिनियम कार्यशील महिलाओं को कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के लिये युक्ति है। ये विशाखा फैसले में दिये गये दिशा निर्देशों को सुव्यवस्थित करता है और इसके प्रावधानों का पालन करने के लिये नियोक्ताओं पर एक सांविधिक दायित्व अनिवार्य कर देता है।
हांलाकि, इस अधिनियम में कुछ कमियां भी है जैसे कि ये यौन उत्पीड़न को अपराध की श्रेणी में नहीं रखता बस केवल नागरिक दोष माना जाता है जो सबसे मुख्य कमी है, जब पीड़ित इस कृत्य को अपराध के रुप में दर्ज करने की इच्छा रखती है तब ही केवल इसे एक अपराध के रुप में शिकायत दर्ज की जाती है, इसके साथ ही पीड़ित पर अपने वरिष्ठ पुरुष कर्मचारी द्वारा शिकायत वापस लेने के लिये दबाव डालने की भी संभावनाएं अधिक रहती है।
इस प्रकार, अधिनियम को एक सही कदम कहा जा सकता है लेकिन ये पूरी तरह से दोषरहित नहीं है और इसमें अभी भी सुधार की आवश्यकता है। यहां तक कि अब, पीड़ित को भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत पूरी तरह से न्याय पाने के लिये अपराधिक उपायों को तलाशना पड़ता है। और फिर, अपराधिक शिकायत धारा 354 के अन्तर्गत दर्ज की जाती है जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की विशेष धारा नहीं बल्कि एक सामान्य प्रावधान है।
इसलिये, कानून के अनुसार निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों को महिला कर्मचारियों की कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिये कानूनी अनिवार्यता के अन्तर्गत लिया गया है लेकिन समस्या इसके लागू करने और इसकी जटिलताओं में है। ये अभी अपने शुरुआती दिनों में है और अधिकांश संगठन, कुछ बड़े संगठनों को छोड़कर, प्रावधान के साथ जुड़े हुये नहीं है, यहां तक कि वो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिये बनाये गये कानून क्या है और इसके लिये क्या अर्थदंड है और क्या इसका निवारक तंत्र है, इन सब नियमों और कानूनों को सार्वजनिक करने वाले नियमों को सूत्रबद्ध भी नहीं करता। यहां तक कि वहां आन्तरिक शिकायत समिति भी नहीं है।
हाल ही का उदाहरण, तहलका पत्रिका के मुख्य संपादक पर इस तरह के दुर्व्यवहार में शामिल होने का शक किया गया था और इस खबर के प्रकाश में आने के बाद पता चला कि इसके कार्यालय में विशाखा दिशा-निर्देशन के तहत कोई भी शिकायत या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिये समिति नहीं थी।
इस प्रकार, केवल आने वाला समय ही बता सकता है कि अभी हाल ही में पारित हुआ अधिनियम, कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, उस अपराध को जो केवल महिलाओं के साथ किया जाता है, उसे रोकने और निषेध करने में सफल हो पायेगा या नहीं।
इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित व्यवहार या कृत्य ‘यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी में आता है-
शिकायत कब तक की जानी चाहिए? क्या शिकायत करने की कोई समय सीमा निर्धारित है ?
शिकायत करते समय घटना को घटे तीन महीने से ज्यादा समय नहीं बीता हो, और यदि एक से अधिक घटनाएं हुई है तो आखरी घटना की तारीख से तीन महीने तक का समय पीड़ित के पास है l
हाँ, यदि आंतरिक शिकायत समिति को यह लगता है की इससे पहले पीड़ित शिकायत करने में असमर्थ थी तो यह सीमा बढाई जा सकती है, पर इसकी अवधि और तीन महीनों से ज्यादा नहीं बढाई जा सकती l
शिकायत लिखित रूप में की जानी चाहिए। यदि किसी कारणवश पीड़ित लिखित रूप में शिकायत नहीं कर पाती है तो समिति के सदस्यों की ज़िम्मेदारी है कि वे लिखित शिकायत देने में पीड़ित की मदद करेंl
उदाहरण के तौर पर, अगर वह महिला पढ़ी लिखी नहीं हैऔर उसके पास लिखित में शिकायत लिखवाने का कोई ज़रिया नहीं है तो वह समिति को इसकी जानकारी दे सकती है, और समिति की ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे की पीड़ित की शिकायत बारीक़ी से दर्ज़ की जाए l
यदि पीड़ित शारीरिक रूप से शिकायत करने में असमर्थ है (उदाहरण के लिए,यदि वह बेहोश है), तो उसके रिश्तेदार या मित्र, उसके सह-कार्यकर्ता, ऐसा कोई भी व्यक्ति जो घटना के बारे में जानता है और जिसने पीड़ित की सहमति ली है, अथवाराष्ट्रीय या राज्य स्तर के महिला आयोग के अधिकारी शिकायत कर सकते हैं l
यदि पीड़ित शिकायत दर्ज करने की मानसिक स्थिति में नहीं है, तो उसके रिश्तेदार या मित्र, उसके विशेष शिक्षक, उसके मनोचिकित्सक/मनोवैज्ञानिक, उसके संरक्षक या ऐसा कोई भी व्यक्ति जो उसकी देखभाल कर रहे हैं, शिकायत कर सकते हैं। साथ ही कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता है,उपरोक्त व्यक्तियों के साथ मिल कर संयुक्त शिकायत कर सकता है l
यदि पीड़ित की मृत्यु हो चुकी है, तो कोई भी व्यक्ति जिसे इस घटना के बारे में पता हो, पीड़ित के कानूनी उत्तराधिकारी की सहमति से शिकायत कर सकता है l
यदि वह महिला चाहती है तो मामले को ‘कंसिलिएशन’/समाधान’ की प्रक्रिया से भी सुलझाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में दोनों पक्ष समझौते पर आने की कोशिश करते हैं, परन्तु ऐसे किसी भी समझौते में पैसे के भुगतान द्वारा समझौता नहीं किया जा सकता है l
यदि महिला समाधान नहीं चाहती है तो जांच की प्रक्रिया शुरू होगी, जिसे आंतरिक शिकायत समिति को 90 दिन में पूरा करना होगा l यह जांच संस्था/ कंपनी द्वारा तय की गई प्रकिया पर की जा सकती है, यदि संस्था/कंपनी की कोई तय प्रकिया नहीं है तो सामान्य कानून लागू होगा l समिति पीड़ित, आरोपी और गवाहों से पूछ ताछ कर सकती है और मुद्दे से जुड़े दस्तावेज़ भी माँग सकती है lसमिति के सामने वकीलों को पेश होने की अनुमति नहीं है l
जाँच के ख़त्म होने पर यदि समिति आरोपी को यौन उत्पीडन का दोषी पाती है तो समिति नियोक्ता (अथवा कम्पनी या संस्था, आरोपी जिसका कर्मचारी है) को आरोपी के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के लिए सुझाव देगी। नियोक्ता अपने नियमों के अनुसार कार्यवाही कर सकते हैं, नियमों के अभाव में नीचे दिए गए कदम उठाए जा सकते हैं :
यदि आंतरिक समिति को पता चलता है कि किसी महिला ने जान-बूझ कर झूठी शिकायत की है,तो उस पर कार्यवाही की जा सकती है।ऐसी कार्यवाही के तहत महिला को चेतावनी दी जा सकती है, महिला से लिखित माफ़ी माँगी जा सकती है या फिर महिला की पदोन्नति या वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है, या महिला को नौकरी से भी निकाला जा सकता है l
हालांकि, सिर्फ इसलिए कि पर्याप्त प्रमाण नहीं है,शिकायत को गलत नहीं ठहराया जा सकता , इसके लिए कुछ ठोस सबूत होना चाहिए (जैसे कि महिला ने किसी मित्र को भेजे इ-मेल में यह स्वीकार किया हो कि शिकायत झूठी है) l
इस क़ानून के मुताबिक संस्था या कम्पनी के निम्न श्रेणी के प्रबंधक या अधिकारी को नियोक्ता माना जाता है-
सरकारी कार्यालय/दफ्तर में
विभाग का प्रमुख नियोक्ता होता है, कभी कभी सरकार किसी और व्यक्ति को भी नियोक्ता का दर्ज़ा दे सकती है।
निजी दफ्तर में
नियोक्ता कोई ऐसा है व्यक्ति जिस पर कार्यालय के प्रबंधन और देखरेख की ज़िम्मेदारी है , इसमें नीतियां बनाने वाले बोर्ड और समिति भी शामिल हैं l
किसी अन्य कार्यालय में
एक व्यक्ति जो अपने अनुबंध/कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार एक नियोक्ता है को इस क़ानून में भी नियोक्ता माना जा सकता है।
घर में
जिस व्यक्ति या घर ने किसी घरेलू कामगार को काम पर रखा है वह नियोक्ता है (काम की प्रकृति या कामगारों की संख्या से कोई फर्क नहीं पड़ता)l
नियोक्ता को अपने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए अपनीसंस्था /कम्पनीमें 'आंतरिक शिकायत समिति'कागठनकरनाचाहिए। ऐसी समिति की अध्यक्षता संस्था या कम्पनी की किसी वरिष्ठ महिला कर्मचारी द्वारा की जानी चाहिए। इसके अलावा इस समिति से सम्बन्धित जानकारी कार्यस्थल पर किसी ऐसी जगह लगायी/चस्पाँ की, जानी चाहिए जहाँ कर्मचारी उसे आसानी से देख सकें।
नियोक्ताओं को मुख्य रूप से सुनिश्चित करना है कि कार्यस्थल सभी महिलाओं के लिए सुरक्षित है। महिला कर्मचारियों को कार्यस्थल पर आने-जाने वालों (जो कर्मचारी नहीं हैं) की उपस्थिति में असुरक्षित महसूस नहीं करना चाहिए। इसके अलावा,नियोक्ता को अपनी ‘यौन उत्पीड़न सम्बन्धी नीति’ और जिस आदेश के तहत आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना हुई है, ऐसे आदेश की प्रति, ऐसे स्थान पर लगा/ चस्पाँ कर देनी चाहिए जिससे सभी कर्मचारियों को इसके बारे में पता चल सकेl
नियोक्ता को यौन उत्पीड़न के मुद्दों के बारे में कर्मचारियों को शिक्षित करने के लिए नियमित कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए l
उन्हें अपने सेवा नियमों में यौन उत्पीड़न को भी शामिल करना चाहिए और कार्यस्थल में इससे निपटने के लिए एक व्यापक नीति तैयार करनी चाहिए।
आपके लिये यह जानना बेहद जरूरी है कि इस संबंध में नीतियां (पोलिसी) क्या कहती हैं। ताकि आप उसके अनुसार तैयारी कर पाएं। साथ ही अपने कानूनी अधिकारों को जानें। इससे संबंधिक कानूनों को पढ़ें या किसी कानूनी जानकार से विकल्पों के बारे में जानकारी लें।
उत्पीड़न के मामले में जो सबसे पहला कदम उठाना चाहिये वो ये है कि, आप सीधा जाकर उस व्यक्ति से बात करें जो आपको परेशान कर रहा है। और उसे इस बात का अंदेशा दें कि आप बर्दाश्त करने वाले या चुप रहने वालों में से नहीं हैं। उसे इस संबंध में एक लिखित चेतावनी भी दें। यदि उससे बात कर कोई फायदा न हो, तो अपने सानियर से इसकी शिकायद करें। अपने एचआर (ह्यूमन रीसोर्स) मैनेजर को भी इसमें शामिल करें, ताकि वे आपको आगे की कार्रवाई के बारे में सूचित कर सकें। इस मामले को अब लिखित बनाएं।
इस बात की पूरा संभावना है कि, आपको परेशान कर रहे व्यक्ति ने पहले भी लोगों के साथ उत्पीड़न किया हो, या वो हाल में भी और लोगों के साथ ऐसा करता या करती हो। उन लोगों से बात करें और उन्हें एक साथ जुटाने की कोशिश करें। अपने लिये किसी प्रत्यक्ष गवाह को तैयार करने की कोशिश करें। जितने हो सके सबूत जुटाएं। बाकी पीड़ितों से भी लिखित सूचना या चेतावनी देने का आग्रह करें ताकि आप सभी का केस मजबूत बन पाए। इसके बाद सीनियर मैनेजमेंट से इस संबंध में बात करें। उनके सामने सभी संभव सबूत ले जाएं।
अपने विकल्पों का मूल्यांकन करने के लिए वकील से सलाह लें। स्पष्ट रहें और सुनिश्चित कर लें कि आप बदले में क्या चाहते हैं, जैसे मुआवजा या अगर आपको नौकरी से निकाल दिया गया हो, तो अपनी नौकरी में वापसी।
याद रखें, इस तरह के कदम को उठाने पर आपको निंदकों का भी सामना करना पड़ेगा। तो खुद को मजबूत बनाएं, निंदकों की बातों को दिल से न लगाएं, आप सही काम कर रही/रहे हैं।
स्रोत: नेशनल पोर्टल ऑफ़ इंडिया न्यायअंतिम बार संशोधित : 2/1/2023
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