संविधान (छियासीवां संशोधन) अधिनियम, 2002 ने भारत के संविधान में अंत स्थापित अनुच्छेद 21-क, ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य कानून द्वारा निर्धारित करता है, मौलिक अधिकार के रूप में छह से चौदह वर्ष के आयु समूह में सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है। निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 में बच्चों का अधिकार, जो अनुच्छेद 21क के तहत परिणामी विधान का प्रतिनिधित्व करता है, का अर्थ है कि औपचारिक स्कूल, जो कतिपय अनिवार्य मानदण्डों और मानकों को पूरा करता है, में संतोषजनक और एकसमान गुणवत्ता वाली पूर्णकालिक प्रांरभिक शिक्षा के लिए प्रत्येक बच्चे का अधिकार है।
अनुच्छेद 21-क और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ। आरटीई अधिनियम के शीर्षक में ''निशुल्क और अनिवार्य'' शब्द सम्मिलित हैं। 'निशुल्क शिक्षा' का तात्पर्य यह है कि किसी बच्चे जिसको उसके माता-पिता द्वारा स्कूल में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्चा, जो उचित सरकार द्वारा समर्थित नहीं है, किसी किस्म की फीस या प्रभार या व्यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। 'अनिवार्य शिक्षा' उचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारियों पर 6-14 आयु समूह के सभी बच्चों को प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने का प्रावधान करने और सुनिश्चित करने की बाध्यता रखती है। इससे भारत अधिकार आधारित ढांचे के लिए आगे बढ़ा है जो आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21-क में यथा प्रतिष्ठापित बच्चे के इस मौलिक अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों पर कानूनी बाध्यता रखता है।
आरटीई अधिनियम निम्नलिखित का प्रावधान करता है -
परिभाषाएं
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) ‘समुचित सरकार° से, –
(क) किसी राज्य के राज्यक्षेत्र के भीतर स्थापित किसी विद्यालय के संबंध में, राज्य सरकार;
(ख) विधान-मंडल वाले किसी संघ राज्यक्षेत्र के भीतर स्थापित विद्यालय के संबंध में उस संघ राज्यक्षेत्र की सरकार,
अभिप्रेत है;
(ख) ‘प्रति व्यक्ति फीस से विद्यालय द्वारा अधिसूचित फीस से भिन्न किसी प्रकार का संदान या अभिदाय अथवा संदाय अभिप्रेत है;
(ग) ‘बालक' से छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु का कोई बालक या बालिका अभिप्रेत है;
(घ) अलाभित समूह का बालक (कोई निःशक्त बालक या) से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सामाजिक रूप से और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग या सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, भाषाई, लिंग या ऐसी अन्य बात के कारण, जो समुचित सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट की जाए, अलाभित ऐसे अन्य समूह का कोई बालक अभिप्रेत है;
(ड) ‘दुर्बल वर्ग का बालक' से ऐसे माता-पिता या संरक्षक का बालक अभिप्रेत है, जिसकी वार्षिक आय समुचित सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट न्यनूनतम सीमा से कम है;
(डड) ‘निशक्त बालक’ के अंतर्गत निम्नलिखित हैं
(अ) निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) की धारा 2 के खंड (झ) में यथापरिभाषित ‘निशक्त’ कोई बालक
(आ) ऐसा कोई बालक, जो राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-निशक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के खंड (अ) में यथापरिभाषित निःशक्त कोई व्यक्ति हो ;
(इ) राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिषक घात, मानसिक मंदता और बहु-निःशक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के खंड (ण) में यथापरिभाषित ‘गंभीर बहु-निशक्तता से ग्रस्त कोई बालक) ;
(च) ‘प्रारंभिक शिक्षा’ से पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा अभिप्रेत है;
(छ) किसी बालक के संबंध में ‘संरक्षक से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसकी देखरेख और अभिरक्षा में वह बालक है और इसके अंतर्गत कोई प्राकृतिक संरक्षक या किसी न्यायालय या किसी कानून द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक भी है;
(ज) ‘स्थानीय प्राधिकारी’ से कोई नगर निगम या नगर परिषद् या जिला परिषद् या नगर पंचायत या पंचायत, चाहे जिस नाम से ज्ञात हो, अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत विद्यालय पर प्रशासनिक नियंत्रण रखने वाला किसी नगर, शहर या ग्राम में किसी स्थानीय प्राधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन सशक्त ऐसा अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय भी है;
(झ) राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग से बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) की धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है;
(ज) ‘अधिसूचना’ से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;
(ट) ‘माता-पिता से किसी बालक का प्राकृतिक या सौतेला या दत्तक पिता या माता अभिप्रेत है; (ठ) ‘विहित’ से, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ड) ‘अनुसूची’ से इस अधिनियम से उपाबद्ध अनुसूची अभिप्रेत है;
(ढ़) ‘विद्यालय’ से प्रारंभिक शिक्षा देने वाला कोई मान्यताप्राप्त विद्यालय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भी है
(i) समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन कोई विद्यालय,
(ii) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी से अपने संपूर्ण व्यय या उसके भाग की पूर्ति करने के लिए सहायता या अनुदान प्राप्त करने वाला कोई सहायताप्राप्त विद्यालय;
(iii) विनिर्दिष्ट प्रवर्ग का कोई विद्यालय; और
(iv) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी से अपने संपूर्ण व्यय या उसके भाग की पूर्ति करने के लिए किसी प्रकार की सहायता या अनुदान प्राप्त न करने वाला कोई गैर-सहायता प्राप्त विद्यालय,
(ण) ‘अनुवीक्षण प्रक्रिया’ से किसी अनिश्चित पद्धति से भिन्न दूसरों पर अधिमानता में किसी बालक के प्रवेश के लिए चयन की पद्धति अभिप्रेत है;
(त) किसी विद्यालय के संबंध में ‘विनिर्दिष्ट प्रवर्ग’ से, केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, सैनिक विद्यालय के रूप में ज्ञात कोई विद्यालय या किसी सुभिन्न लक्षण वाला ऐसा अन्य विद्यालय अभिप्रेत है जिसे समुचित सरकार द्वारा,
अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट किया जाए,
(थ) राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग से बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) की धारा 3 के अधीन गठित राज्य बालक अधिकार सरंक्षण आयोग अभिप्रेत है।
निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार
(1) छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बालक को, जिसमें धारा 2 के खंड (घ) या खंड (ड) में निर्दिष्ट कोई बालक भी सम्मिलित है, उसकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी आस-पास के विद्यालय में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए, कोई बालक किसी प्रकार की फीस या ऐसे प्रभार या व्यय का संदाय करने के लिए दायी नहीं होगा, जो प्रारंभिक शिक्षा लेने और पूरी करने से उसे निवारित करे।
(3) धारा 2 के खंड (डड) के उपखंड (अ) में निर्दिष्ट किसी निशक्त बालक को, निशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार सरंक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, और धारा 2 के खंड (डड) के उपखंड (आ) और उपखंड (इ) में निर्दिष्ट किसी बालक को निशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के वैसे ही अधिकार प्राप्त होंगे जो निशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के अध्याय 5 के उपबंधों के अधीन निशक्त बालकों को प्राप्त हैं
परंतु राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-निःशक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के खंड (ज) में निर्दिष्ट ‘बहु-निशक्तता से ग्रस्त किसी बालक को और खंड (ण) में निर्दिष्ट ‘गंभीर बहु-निशक्तता’ से ग्रस्त किसी बालक को भी घर-आधारित शिक्षा का विकल्प अपनाने का अधिकार हो सकेगा।
4. ऐसे बालकों, जिन्हें प्रवेश नहीं दिया गया है या जिन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की है, के लिए विशेष उपबंध-जहां, छह वर्ष से अधिक की आयु के किसी बालक को किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया है या प्रवेश तो दिया गया है किंतु उसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की है, तो उसे उसकी आयु के अनुसार समुचित कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा
परंतु जहां किसी बालक को, उसकी आयु के अनुसार समुचित कक्षा में सीधे प्रवेश दिया जाता है, वहां उसे अन्य बालकों के समान होने के लिए, ऐसी रीति में और ऐसी समय-सीमा के भीतर, जो विहित की जाए, विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने का अधिकार होगा
परंतु यह और कि प्रारंभिक शिक्षा के लिए इस प्रकार प्रवेश प्राप्त कोई बालक, चौदह वर्ष की आयु के पश्चात् भी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक निशुल्क शिक्षा का हकदार होगा।
5. अन्य विद्यालय में स्थानांतरण का अधिकार
(1) जहां किसी विद्यालय में, प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने की व्यवस्था नहीं है वहां किसी बालक को, धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (iii) और उपखंड (iv) में विनिर्दिष्ट विद्यालय को छोड़कर, अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए किसी अन्य विद्यालय में, स्थानांतरण कराने का अधिकार होगा।
(2) जहां किसी बालक से किसी राज्य के भीतर या बाहर किसी भी कारण से एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में जाने की अपेक्षा की जाती है, वहां ऐसे बालक को धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (iii) और उपखंड (iv) में विनिर्दिष्ट विद्यालय को छोड़कर, अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए किसी अन्य विद्यालय में, स्थानांतरण कराने का अधिकार होगा।
(3) ऐसे अन्य विद्यालय में प्रवेश लेने के लिए उस विद्यालय का प्रधान अध्यापक या भारसाधक, जहां ऐसे बालक को अंतिम बार प्रवेश दिया गया था, तुरंत स्थानांतरण प्रमाणपत्र जारी करेगा
परंतु स्थानांतरण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने में विलंब, ऐसे अन्य विद्यालय में प्रवेश के लिए विलंब करने या प्रवेश से इंकार करने के लिए आधार नहीं होगा
परंतु यह और कि स्थानांतरण प्रमाणपत्र जारी करने में विलंब करने वाले विद्यालय का प्रधान अध्यापक या भारसाधक, उसको लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई के लिए दायी होगा/होगी।
इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए, समुचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारी, इस अधिनियम के प्रारंभ से तीन वर्ष की अवधि के भीतर ऐसे क्षेत्र या आसपास की ऐसी सीमाओं के भीतर, जो विहित की जाएं, जहां विद्यालय इस प्रकार स्थापित नहीं है, एक विद्यालय स्थापित करेंगे।
(1) केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार का इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए निधियां उपलब्ध कराने के लिए समवर्ती उत्तरदायित्व होगा।
(2) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए पूंजी और आवर्ती व्यय के प्राक्कलन तैयार करेगी।
(3) केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों को राजस्वों के सहायता अनुदान के रूप में उपधारा (2) में निर्दिष्ट व्यय का ऐसा प्रतिशत उपलब्ध कराएगी, जैसा वह, समय-समय पर राज्य सरकारों के परामर्श से अवधारित करे ।
(4) केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रपति की अनुच्छेद 280 के खंड (3) के उपखंड (घ) के अधीन राज्य सरकार की अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता की परीक्षा करने के लिए वित्त आयोग को निर्देश देने का अनुरोध कर सकेगी, ताकि उक्त राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए निधियों का अपना अंश प्रदान कर सके।
(5) उपधारा (4) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार उपधारा (3) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की गई राशियों और उसके अन्य संसाधनों को ध्यान में रखते हुए इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए निधियां उपलब्ध कराने हेतु उत्तरदायी होगी ।
(6) केन्द्रीय सरकार,-
(क) धारा 29 के अधीन विनिर्दिष्ट शैक्षणिक प्राधिकारी की सहायता से राष्ट्रीय कार्यक्रम का ढांचा विकसित करेगी .
(ख) शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए मानकों को विकसित और लागू करेगी
(ग) नवीकरण, अनुसंधान, योजना और क्षमता निर्माण के संवर्धन के लिए राज्य सरकार को तकनीकी सहायता और संसाधन उपलब्ध कराएगी ।
(क) प्रत्येक बालक को निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगी
परंतु जहां किसी बालक को, यथास्थिति, उसके माता-पिता या संरक्षक द्वारा, समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारवान् रूप से वित्तपोषित विद्यालय से भिन्न किसी विद्यालय में प्रवेश दिया जाता है, वहां ऐसा बालक या, यथास्थिति, उसके माता-पिता या संरक्षक ऐसे अन्य विद्यालय में बालक की प्राथमिक शिक्षा पर उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दावा करने का हकदार नहीं होगा।
स्पष्टीकरण-‘अनिवार्य शिक्षा पद से समुचित सरकार की,—
(i) छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बालक को निशुल्क प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने; और
(ii) छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और उसको पूरा करने को सुनिश्चित करने की,
बाध्यता अभिप्रेत है
(ख) धारा 6 में यथाविनिर्दिष्ट आसपास में विद्यालय की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगी
(ग) यह सुनिश्चित करेगी कि दुर्बल वर्ग के बालक और अलाभित समूह के बालक के प्रति पक्षपात न किया जाए तथा किसी आधार पर प्राथमिक शिक्षा लेने और पूरा करने से वे निवारित न हों,
(घ) अवसंरचना, जिसके अंतर्गत विद्यालय भवन, शिक्षण कर्मचारियुंद और शिक्षा के उपस्कर भी हैं, उपलब्ध कराएगी
(ड) धारा 4 में विनिर्दिष्ट विशेष प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगी
(च) प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश, उपस्थिति और उसे पूरा करने को सुनिश्चित और मानीटर
(छ) अनुसूची में विनिर्दिष्ट मान और मानकों के अनुरूप अच्छी क्वालिटी की प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करेगी
(ज) प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठयाचार और पाठयक्रमों का समय से विहित किया जाना सुनिश्चित करेगी ; और
(झ) शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगी।
(क) प्रत्येक बालक को निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगा
परन्तु जहां किसी बालक को, यथास्थिति, उसके माता-पिता या संरक्षक द्वारा, समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा सारवान् रूप से वित्तपोषित विद्यालय से भिन्न किसी विद्यालय में प्रवेश दिया जाता है, वहां ऐसा बालक या, यथास्थिति, उसके माता-पिता या संरक्षक ऐसे अन्य विद्यालय में बालक की प्राथमिक शिक्षा पर उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दावा करने का हकदार नहीं होगा
(ख) धारा 6 में यथाविनिर्दिष्ट आपसपास में विघालय की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगा
(ग) यह सुनिश्चित करेगा कि दुर्बल वर्ग के बालक और अलाभित समूह के बालक के प्रति पक्षपात न किया जाए तथा किसी आधार पर प्राथमिक शिक्षा लेने और पूरा करने से वे निवारित न हों ;
(घ) अपनी अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले चौदह वर्ष तक की आयु के बालकों के ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, अभिलेख रखेगा
(ड) अपनी अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश, उपस्थिति और उसे पूरा करने को सुनिश्चित और मानीटर करेगा
(च) अवसरंचना, जिसके अंतर्गत विद्यालय भवन, शिक्षण कर्मचारेिधुंद और शिक्षा सामग्री भी है, उपलब्ध कराएगा
(छ) धारा 4 में विनिर्दिष्ट विशेष प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगा
(ज) अनुसूची में विनिर्दिष्ट मान और मानकों के अनुरूप अच्छी क्वालिटी की प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करेगा
(झ) प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठयाचार और पाठयक्रमों का समय से विहित किया जाना सुनिश्चित करेगा
(ज) शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगा
(ट) प्रवासी कुटुंबों के बालकों के प्रवेश को सुनिश्चित करेगा
(ठ) अपनी अधिकारिता के भीतर विद्यालयों के कार्यकरण को मानीटर करेगा ; और
(ड) शैक्षणिक कैलेंडर का विनिश्चय करेगा।
प्रत्येक माता-पिता या संरक्षक का यह कर्तव्य होगा कि वह आसपास के विद्यालय में कोई प्रारंभिक शिक्षा के अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य का प्रवेश कराए या प्रवेश दिलाए।
प्राथमिक शिक्षा के लिए तीन वर्ष से अधिक आयु के बालकों को तैयार करने तथा सभी बालकों के लिए जब तक वे छह वर्ष की आयु पूरी करते हैं, आरंभिक बाल्यकाल देखरेख और शिक्षा की व्यवस्था करने की दृष्टि से समुचित सरकार, ऐसे बालकों के लिए निशुल्क विद्यालय पूर्व शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सकेगी ।
(1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए,-
(क) धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (i) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय, उसमें प्रविष्ट सभी बालकों को निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्रदान करेगा
(ख) धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (ii) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय, उसमें प्रवेश कराए गए बालकों के ऐसे अनुपात को, जो इस प्रकार प्राप्त उसकी वार्षिक आवर्ती सहायता या अनुदान का, उसके वार्षिक आवर्ती व्यय से, न्यूनतम पच्चीस प्रतिशत के अधीन रहते हुए निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगा
(ग) धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (iii) और उपखंड (iv) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय पहली कक्षा में, आसपास में दुर्बल वर्ग और अलाभित समूह के बालकों को, उस कक्षा के बालकों की कुल संख्या के कम से कम पच्चीस प्रतिशत की सीमा तक प्रवेश देगा और निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, उसके पूरा होने तक, प्रदान करेगा
परंतु यह और कि जहां धारा 2 के खंड (ढ़) में विनिर्दिष्ट कोई विद्यालय, विद्यालय पूर्व शिक्षा देता है वहां खंड (क) से खंड (ग) के उपबंध ऐसी विद्यालय पूर्व शिक्षा में प्रवेश को लागू होंगे।
(2) उपधारा (1) के खंड (ग) में यथाविनिर्दिष्ट निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने वाले धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (iv) में विनिर्दिष्ट विद्यालय की, उसके द्वारा इस प्रकार उपगत व्यय की, राज्य द्वारा उपगत प्रति बालक व्यय की सीमा तक या बालक से प्रभारित वास्तविक रकम तक, इनमें से जो भी कम हो, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, प्रतिपूर्ति की जाएगी
परंतु ऐसी प्रतिपूर्ति धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (i) में विनिर्दिष्ट किसी विद्यालय द्वारा उपगत प्रति बालक व्यय से अधिक नहीं होगी , परंतु यह और कि जहां ऐसा विद्यालय उसके द्वारा कोई भूमि, भवन, उपस्कर या अन्य सुविधाएं, या तो निशुल्क या रियायती दर पर, प्राप्त करने के कारण पहले से ही विनिर्दिष्ट संख्या में बालकों को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने की बाध्यता के अधीन है, वहां ऐसा विद्यालय ऐसी बाध्यता की सीमा तक प्रतिपूर्ति के लिए हकदार नहीं होगा।
(3) प्रत्येक विद्यालय ऐसी जानकारी जो, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा अपेक्षित हो, उपलब्ध कराएगा।
(1) कोई विद्यालय या व्यक्ति, किसी बालक को प्रवेश देते समय कोई प्रति व्यक्ति फीस संगृहीत नहीं करेगा और बालक या उसके माता-पिता अथवा संरक्षक को किसी अनुवीक्षण प्रक्रिया के अधीन नहीं रखेगा।
(2) कोई विद्यालय या व्यक्ति, यदि उपधारा (1) के उपबंधों के उल्लंघन में,-
(क) प्रति व्यक्ति फीस प्राप्त करता है तो वह जुर्माने से, जो प्रभारित प्रति व्यक्ति फीस के दस गुना तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा
(ख) किसी बालक को अनुवीक्षण प्रक्रिया के अधीन रखता है तो वह जुर्माने से, जो पहले उल्लंघन के लिए पच्चीस हजार रुपए तक और प्रत्येक पश्चात्वर्ती उल्लंघन के लिए पचास हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।
(1) प्राथमिक शिक्षा में प्रवेश के प्रयोजनों के लिए किसी बालक की आयु, जन्म, मृत्यु और विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1886 (1886 का 6) के उपबंधों के अनुसार जारी किए गए जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर या ऐसे अन्य दस्तावेज के आधार पर, जो विहित किया जाए, अवधारित की जाएगी।
(2) किसी बालक को, आयु का सबूत न होने के कारण किसी विद्यालय में प्रवेश से इंकार नहीं किया जाएगा।
किसी बालक को, शैक्षणिक वर्ष के प्रारंभ पर या ऐसी विस्तारित अवधि के भीतर, जो विहित की जाए, किसी विद्यालय में प्रवेश दिया जाएगा
परंतु किसी बालक को प्रवेश से इंकार नहीं किया जाएगा यदि ऐसा प्रवेश विस्तारित अवधि के पश्चात् ईप्सित है
परंतु यह और कि विस्तारित अवधि के पश्चात् प्रवेश प्राप्त कोई बालक ऐसी रीति में, जो समुचित सरकार द्वारा विहित की जाए, अपना अध्ययन पूरा करेगा।
किसी विद्यालय में प्रवेश प्राप्त बालक को किसी कक्षा में नहीं रोका जाएगा या विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा पूरी किए जाने तक निष्कासित नहीं किया जाएगा।
(1) किसी बालक को शारीरिक दंड नहीं दिया जाएगा या उसका मानसिक उत्पीड़न नहीं किया जाएगा।
(2) जो कोई उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह ऐसे व्यक्ति को लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई का दायी होगा ।
(1) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी विद्यालय से भिन्न कोई विद्यालय, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात्, ऐसे प्राधिकारी से, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, कोई आवेदन करके मान्यता प्रमाणपत्र अभिप्राप्त किए बिना स्थापित नहीं किया जाएगा या कार्य नहीं करेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन विहित प्राधिकारी ऐसे प्ररूप में, ऐसी अवधि के भीतर, ऐसी रीति में और ऐसी शताँ के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, मान्यता प्रमाणपत्र जारी करेगा ,परंतु किसी विद्यालय को ऐसी मान्यता तब तक अनुदत्त नहीं की जाएगी जब तक वह धारा 19 के अधीन विनिर्दिष्ट मान और मानकों को पूरा नहीं करता है।
(3) मान्यता की शताँ के उल्लंघन पर, विहित प्राधिकारी लिखित आदेश द्वारा, मान्यता वापस ले लेगा, परंतु ऐसे आदेश में आसपास के उस विद्यालय के बारे में निदेश होगा जिसमें गैर-मान्यताप्राप्त विद्यालय में अध्ययन कर रहे बालकों को प्रवेश दिया जाएगा
परंतु यह और कि ऐसी मान्यता को ऐसे विद्यालय को, ऐसी रीति में जो विहित की जाए, सुनवाई का अवसर दिए बिना वापस नहीं लिया जाएगा।
(4) ऐसा विद्यालय, उपधारा (3) के अधीन मान्यता वापस लेने की तारीख से कार्य करना जारी नहीं रखेगा।
(5) कोई व्यक्ति, जो मान्यता प्रमाणपत्र अभिप्राप्त किए बिना कोई विद्यालय स्थापित करता है या चलाता है या मान्यता वापस लेने के पश्चात् विद्यालय चलाना जारी रखता है, जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा और उल्लंघन जारी रहने की दशा में जुर्माने से जो ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान ऐसा उल्लंघन जारी रहता है, दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, दायी होगा।
(1) किसी विद्यालय को, धारा 18 के अधीन तब तक स्थापित नहीं किया जाएगा, या मान्यता नहीं दी जाएगी जब तक वह अनुसूची में विनिर्दिष्ट मान और मानकों को पूरा नहीं करता है।
(2) जहां इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व स्थापित कोई विद्यालय अनुसूची में विनिर्दिष्ट मान और मानकों को पूरा नहीं करता है, वहां वह ऐसे प्रारंभ की तारीख से तीन वर्ष की अवधि के भीतर अपने खर्चे पर ऐसे मान और मानकों को पूरा करने के लिए कदम उठाएगा।
(3) जहां कोई विद्यालय, उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर मान और मानकों को पूरा करने में असफल रहता है, वहां धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन विहित प्राधिकारी, ऐसे विद्यालय को अनुदत्त मान्यता को उसकी उपधारा (3) के अधीन विनिर्दिष्ट रीति में वापस ले लेगा।
(4) कोई विद्यालय उपधारा (3) के अधीन मान्यता वापस लेने की तारीख से कार्य करना जारी नहीं रखेगा।
(5) कोई व्यक्ति, जो मान्यता वापस लेने के पश्चात् कोई विद्यालय चलाना जारी रखता है, जुर्माने से जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा और उल्लंघन जारी रहने की दशा में, ऐसे प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान उल्लंघन जारी रहता है, दस हजार रुपए के जुर्माने का दायी होगा।
केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, अनुसूची का, उसमें किसी मान या मानक को जोड़कर या उससे उसका लोप करके संशोधन कर सकेगी।
(1) धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (iv) में विनिर्दिष्ट किसी विद्यालय से भिन्न विद्यालय स्थानीय प्राधिकारी, ऐसे विद्यालय में प्रवेश प्राप्त बालकों के माता-पिता या संरक्षक और शिक्षकों के निर्वाचित प्रतिनिधियों से मिलकर बनने वाली एक विद्यालय प्रबंध समिति का गठन करेगा, परंतु ऐसी समिति के कम से कम तीन चौथाई सदस्य माता-पिता या संरक्षक होंगे I परंतु यह और कि अलाभित समूह और दुर्बल वर्ग के बालकों के माता-पिता या संरक्षकों को समानुपाती प्रतिनिधित्व दिया जाएगा, परंतु यह भी कि ऐसी समिति के पचास प्रतिशत सदस्य स्त्रियां होंगी।
(2) विद्यालय प्रबंध समिति निम्नलिखित कृत्यों का पालन करेगी, अर्थात् –
(क) विद्यालय के कार्यकरण को मानीटर करना ;
(ख) विद्यालय विकास योजना तैयार करना और उसकी सिफारिश करना ;
(ग) समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी अथवा किसी अन्य स्रोत से प्राप्त अनुदानों के उपयोग को मानिटर करना ; और
(घ) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना, जो विहित किए जाएं, परंतु,–
(क) अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी विद्यालय, चाहे वह धर्म आधारित हो या भाषा आधारित हो; और
(ख) धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (ii) में यथा परिभाषित अन्य सभी सहायता प्राप्त विद्यालयों,के संबंध में उपधारा (1) के अधीन गठित विद्यालय प्रबंध समिति केवल सलाहकार संबंधी कृत्यों का पालन करेगी।
(1) धारा 21 की उपधारा (1) के अधीन गठित प्रत्येक विद्यालय प्रबंध समिति [अल्पसंख्यक द्वारा, स्थापित और प्रशासित किसी विद्यालय, चाहे वह धर्म आधारित हो या भाषा आधारित, तथा धारा 2 के खंड (ढ़) के उपखंड (ii) में यथा परिभाषित किसी सहायता प्राप्त विद्यालय के संबंध में विद्यालय प्रबंध समिति के सिवाय,] ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, एक विद्यालय विकास योजना तैयार करेगी।
(2) उपधारा (1) के अधीन इस प्रकार तैयार की गई विद्यालय विकास योजना, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं और दिए जाने वाले अनुदानों का आधार होगी।
(1) कोई व्यक्ति, जिसके पास केन्द्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा प्राधिकृत किसी शिक्षा प्राधिकारी द्वारा यथा अधिकथित न्यूनतम अर्हताएं हैं, शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा ।
(2) जहां किसी राज्य में अध्यापक शिक्षा के पाठयक्रम या उसमें प्रशिक्षण प्रदान करने वाली पर्याप्त संस्थाएं नहीं हैं या उपधारा (1) के अधीन यथा अधिकथित न्यूनतम अहताएं रखने वाले शिक्षक पर्याप्त संख्या में नहीं हैं वहां केन्द्रीय सरकार, यदि वह आवश्यक समझे, अधिसूचना द्वारा, शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित न्यूनतम अर्हताओं को पांच वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए शिथिल कर सकेगी, जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, परंतु ऐसा कोई शिक्षक, जिसके पास इस अधिनियम के प्रारंभ पर उपधारा (1) के अधीन यथा अधिकथित न्यूनतम अहताएं नहीं हैं, पांच वर्ष की अवधि के भीतर ऐसी न्यूनतम अर्हताएं अर्जित करेगा।
(3) शिक्षक को संदेय वेतन और भत्ते तथा उसकी सेवा के निबंधन और शर्ते वे होंगी जो विहित की जाएं।
(1) धारा 23 की उपधारा (1) के अधीन नियुक्त शिक्षक निम्नलिखित कर्तव्यों का पालन करेगा, अर्थात्-
(क) विद्यालय में उपस्थित होने में नियमितता और समय पालन;
(ख) धारा 29 की उपधारा (2) के उपबंधों के अनुसार पाठयक्रम संचालित करना और उसे पूरा करना;
(ग) विनिर्दिष्ट समय के भीतर संपूर्ण पाठ्यक्रम पूरा करना;
(घ) प्रत्येक बालक की शिक्षा ग्रहण करने के सामर्थ्य का निर्धारण करना और तद्नुसार तथा अपेक्षित अतिरिक्त शिक्षण, यदि कोई हो, जोड़ना;
(ड) माता-पिता और संरक्षकों के साथ नियमित बैठकें करना और बालक के बारे में उपस्थिति में नियमितता, शिक्षा ग्रहण करने का सामथ्र्य, शिक्षण में की गई प्रगति और किसी अन्य सुसंगत जानकारी के बारे में उन्हें अवगत कराना; और
(च) ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करना, जो विहित किए जाएं।
(2) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कर्तव्यों के पालन में व्यतिक्रम करने वाला/वाली कोई शिक्षकशिक्षिका, उसे लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्रवाई के लिए दायी होगा/होगी, परंतु ऐसी अनुशासनिक कार्रवाई करने से पूर्व ऐसे शिक्षक/ऐसी शिक्षिका को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा।
(3) शिक्षक की शिकायतों को, यदि कोई हों, ऐसी रीति में दूर किया जाएगा, जो विहित की जाए।
(1) इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से 2[तीन वर्ष के भीतर] समुचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्येक विद्यालय में छात्र-शिक्षक अनुपात अनुसूची में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार बनाए रखा जाए।
(2) उपधारा (1) के अधीन छात्र-शिक्षक अनुपात बनाए रखने के प्रयोजन के लिए, किसी विद्यालय में तैनात किए गए किसी शिक्षक को किसी अन्य विद्यालय या कार्यालय में सेवा नहीं करने दी जाएगी या धारा 27 में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों से भिन्न किसी गैरशैक्षिक प्रयोजन के लिए अभियोजित नहीं किया जाएगा।
नियुक्ति प्राधिकारी, समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या उसके द्वारा प्रत्यक्षत या अप्रत्यक्षत उपलब्ध करवाई गई निधियों द्वारा भागत वित्तपोषित किसी विद्यालय के संबंध में यह सुनिश्चित करेगा कि उसके नियंत्रणाधीन किसी विद्यालय में शिक्षक के रिक्त पद कुल स्वीकृत पद संख्या के दस प्रतिशत से अधिक नहीं होंगे।
किसी शिक्षक को दस वर्षीय जनसंख्या जनगणना, आपदा राहत कर्तव्यों या, यथास्थिति, स्थानीय प्राधिकारी या राज्य विधान-मंडलों या संसद् के निर्वाचनों से संबंधित कर्तव्यों से भिन्न किसी गैर-शैक्षिक प्रयोजनों के लिए अभिनियोजित नहीं किया जाएगा।
कोई शिक्षक/शिक्षिका प्राइवेट टयूशन या प्राइवेट शिक्षण क्रियाकलाप में स्वयं को नहीं लगाएगा/लगाएगी।
अध्याय 5- प्रारंभिक शिक्षा का पाठयक्रम और उसका पूरा किया जाना
(1) प्रारंभिक शिक्षा के लिए पाठयक्रम और उसकी मूल्यांकन प्रक्रिया समुचित सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट किए जाने वाले शिक्षा प्राधिकारी द्वारा अधिकथित की जाएगी।
(2) शिक्षा प्राधिकारी, उपधारा (1) के अधीन पाठयक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया अधिकथित करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा, अर्थात्-
(क) संविधान में प्रतिष्ठापित मूल्यों से अनुरूपता;
(ख) बालक का सर्वागीण विकास;
(ग) बालक के ज्ञान, अन्तःशक्ति, योग्यता का निर्माण करना;
(घ) पूर्णतम मात्रा तक शारीरिक और मानसिक योग्यताओं का विकास;
(ड) बाल अनुकूल और बालकेन्द्रित रीति में क्रियाकलापों, प्रकटीकरण और खोज के द्वारा शिक्षण
(च) शिक्षा का माध्यम, जहां तक साध्य हो बालक की मातृभाषा में होगा;
(छ) बालक को भय, मानसिक अभिघात और चिन्तामुक्त बनाना और बालक को स्वतंत्र रूप से मत व्यक्त करने में सहायता करना;
(ज) बालक के समझने की शक्ति और उसे उपयोग करने की उसकी योग्यता का व्यापक और सतत मूल्यांकन।
(1) किसी बालक से प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक कोई बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।
(2) प्रत्येक बालक को, जिसने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर ली है, ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, एक प्रमाणपत्र दिया जाएगा।
(1) बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 (2006 का 4) की, यथास्थिति, धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग या धारा 17 के अधीन गठित राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग, उस अधिनियम के अधीन उन्हें समनुदेशित कृत्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित कृत्यों का भी पालन करेगा, अर्थात्
(क) इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उपबंधित अधिकारों के रक्षोपायों की परीक्षा और पुनर्विलोकन करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अध्युपायों की सिफारिश करना;
(ख) निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बालक के अधिकार संबंधी परिवादों की जांच करना; और
(ग) उक्त बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की धारा 15 और धारा 24 के अधीन यथा उपबंधित आवश्यक उपाय करना ।
(2) उक्त आयोगों को, उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बालक के अधिकार से संबंधित किसी विषय में जांच करते समय वही शक्तियां होंगी, जो उक्त बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की क्रमश धारा 14 और धारा 24 के अधीन उन्हें समनुदेशित की गई हैं।
(3) जहां किसी राज्य में, राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग गठित नहीं किया गया है वहां समुचित सरकार उपधारा (1)के खंड (क) से खंड (ग) में विनिर्दिष्ट कृत्यों का पालन करने के प्रयोजन के लिए ऐसी रीति में और ऐसे निबंधनों और शतों के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएं, ऐसे प्राधिकरण का गठन कर सकेगी।
(1) धारा 31 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के अधीन किसी बालक के अधिकार के संबंध में कोई शिकायत है, अधिकारिता रखने वाले स्थानीय प्राधिकारी को लिखित में शिकायत कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन शिकायत प्राप्त होने के पश्चात्, स्थानीय प्राधिकारी, संबंधित पक्षकारों को सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के पश्चात् मामले का तीन मास की अवधि के भीतर निपटारा करेगा।
(3) स्थानीय प्राधिकारी के विनिश्चय से व्यथित कोई व्यक्ति, यथास्थिति, राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग को या धारा 31 की उपधारा (3) के अधीन विहित प्राधिकारी को अपील कर सकेगा।
(4) उपधारा (3) के अधीन की गई अपील का विनिश्चय धारा 31 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन यथा उपबंधित, यथास्थिति, राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग या धारा 31 की उपधारा (3) के अधीन विहित प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा।
(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का गठन करेगी, जिसमें पंद्रह से अनधिक उतने सदस्य होंगे, जितने केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे, जिनकी नियुक्ति प्रारंभिक शिक्षा और बाल विकास के क्षेत्र में ज्ञान और व्यवहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से की जाएगी।
(2) राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के कृत्य, अधिनियम के उपबंधों के प्रभावी रूप में कार्यान्वयन के संबंध में केन्द्रीय सरकार को सलाह देना, होंगे।
(3) राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी, जो विहित की जाएं।
(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, एक राज्य सलाहकार परिषद् का गठन करेगी, जिसमें पन्द्रह से अनधिक उतने सदस्य होंगे, जितने राज्य सरकार आवश्यक समझे, जिनकी नियुक्ति प्रारंभिक शिक्षा और बाल विकास के क्षेत्र में ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से की जाएगी।
(2) राज्य सलाहकार परिषद् के कृत्य, अधिनियम के उपबंधों के प्रभावी रूप में कार्यान्वयन के संबंध में राज्य सरकार को सलाह देना, होंगे।
(3) राज्य सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी, जो विहित की जाएं।
(1) केन्द्रीय सरकार, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकारी को ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगी जो वह इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के प्रयोजनों के लिए ठीक समझे।
(2) समुचित सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के संबंध में, स्थानीय प्राधिकारी या विद्यालय प्रबंध समिति को ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगी और ऐसे निदेश दे सकेगी, जो वह ठीक समझे।
(3) स्थानीय प्राधिकारी, इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के संबंध में विद्यालय प्रबंध समिति को ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेगा और ऐसे निदेश दे सकेगा, जो वह ठीक समझे।
धारा 13 की उपधारा (2), धारा 18 की उपधारा (5) और धारा 19 की उपधारा (5) के अधीन दंडनीय अपराधों के लिए कोई अभियोजन समुचित सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जाएगा।
इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के अनुसरण में सद्धावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के संबंध में कोई भी वाद, या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग, राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग, स्थानीय प्राधिकारी, विद्यालय प्रबंध समिति या किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी।
(1) समुचित सरकार, अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या उपबंध कर सकेंगे, अर्थात - किन्हीं विषयों के लिए उपबंध सकेंगे
(क) धारा 4 के पहले परंतुक के अधीन विशेष प्रशिक्षण देने की रीति और उसकी समय-सीमा; (ख) धारा 6 के अधीन किसी आसपास के विद्यालय की स्थापना के लिए क्षेत्र या सीमाएं,
(ग) धारा 9 के खंड (घ) के अधीन चौदह वर्ष तक की आयु के बालकों के अभिलेख रखे जाने की रीति;
(घ) धारा 12 की उपधारा (2) के अधीन व्यय की प्रतिपूर्ति की रीति और सीमा
(ड) धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन बालक की आयु का अवधारण करने हेतु कोई अन्य दस्तावेज,
(च) धारा 15 के अधीन प्रवेश लेने के लिए विस्तारित अवधि और यदि विस्तारित अवधि के पश्चात् प्रवेश लिया जाता है तो अध्ययन पूरा करने की रीति;
(छ) वह प्राधिकारी, प्ररूप और रीति, जिसको और जिसमें धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन मान्यता प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया जाएगा;
(ज) धारा 18 की उपधारा (2) के अधीन मान्यता प्रमाणपत्र का प्ररूप, अवधि, उसे जारी करने की रीति और शर्ते,
(झ) धारा 18 की उपधारा (3) के दूसरे परन्तुक के अधीन सुनवाई का अवसर प्रदान की रीति; (अ) धारा 21 की उपधारा (2) के खंड (घ) के अधीन विद्यालय प्रबंध समिति द्वारा किए जाने वाले अन्य कृत्य,
(ट) धारा 22 की उपधारा (1) के अधीन विद्यालय विकास योजना तैयार करने की रीति;
(ठ) धारा 23 की उपधारा (3) के अधीन शिक्षक को संदेय वेतन और भत्ते तथा उसकी सेवा के निबंधन और शर्ते,
(ड) धारा 24 की उपधारा (1) के खंड (च) के अधीन शिक्षक द्वारा पालन किए जाने वाले कर्तव्य;
(ढ़) धारा 24 की उपधारा (3) के अधीन शिक्षकों की शिकायतों को दूर करने की रीति;
(ण) धारा 30 की उपधारा (2) के अधीन प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के लिए प्रमाणपत्र देने का प्ररूप और रीति;
(त) धारा 31 की उपधारा (3) के अधीन प्राधिकरण, उसके गठन की रीति और उसके निबंधन और शर्ते,
(थ) धारा 33 की उपधारा (3) के अधीन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और उनकी नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्ते,
(द) धारा 34 की उपधारा (3) के अधीन राज्य सलाहकार परिषद् के सदस्यों के भत्ते और उनकी नियुक्ति के अन्य निबंधन और शर्त ।
(3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम और केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 20 और धारा 23 के अधीन जारी प्रत्येक अधिसूचना, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा/रखी जाएगी। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा/होगी। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम या अधिसूचना नहीं बनाया/बनाई जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा/जाएगी । किन्तु नियम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(4) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम या अधिसूचना बनाए/बनाई जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा/रखी जाएगी।
(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबंध, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों, कर सकेगी, जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत हों परंतु इस धारा के अधीन कोई आदेश, निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2012 के प्रारंभ से तीन वर्ष के पश्चात् नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके किए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
स्रोत: विधि और न्याय मंत्रालय, भारत सरकार मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकारअंतिम बार संशोधित : 2/20/2023
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