(1) जैसे ही विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित बालक को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तभी ऐसे बालक को विशेष किशोर पुलिस एकक या अभिहित बाल कल्याण पुलिस अधिकारी के प्रभार के अधीन रखा जाएगा, जो बालक को अविलंब, किंतु उस स्थान से, जहां से ऐसे बालक की गिरफ्तारी हुई थी, यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के भीतर बोर्ड के समक्ष पेश करेगा; परंतु किसी भी दशा में विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित बालक को, पुलिस हवालात में नहीं रखा जाएगा या जेल में नहीं डाला जाएगा।
(2) राज्य सरकार,
(i) उन व्यक्तियों के लिए उपबंध करने के लिए जिनके द्वारा (जिसके अंतर्गत रजिस्ट्रीकृत स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठन भी है) विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित किसी बालक को बोर्ड के समक्ष पेश किया जा सकेगा;
(ii) उस रीति का उपबंध करने के लिए जिससे विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित इस अधिनियम से संगत नियम बनाएगी।
ऐसे व्यक्ति की, जिसके प्रभार में विधि का उल्लंघन करने वाले बालक को रखा जाता है, जब आदेश प्रवर्तन में हो, उक्त बालक की जिम्मेदारी इस प्रकार होगी मानो उक्त व्यक्ति बालक की जिम्मेदारी इस प्रकार होगी मानो उक्त व्यक्ति बालक का माता-पिता था और बालक के भरणपोषण के लिए उत्तरदायी था; परंतु तब के सिवाय, जब बोर्ड की यह राय है कि माता-पिता या कोई अन्य व्यक्ति ऐसे बालक का प्रभार लेने के लिए योग्य है, इस बात के होते हुए भी कि उक्त बालक का माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दावा किया गया है, बालक बोर्ड द्वारा कथित अवधि के लिए ऐसे व्यक्ति के प्रभार में बना रहेगा।
(1) जब कोई ऐसा व्यक्ति, जो दृश्यमान रूप से एक बालक है और जिसने अभिकथित जमानतीय या अजमानतीय अपराध किया है, पुलिस द्वारा गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या बोर्ड के समक्ष उपसंजात होता है या लाया जाता है, तब दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे व्यक्ति को प्रतिभू सहित या रहित जमानत पर छोड़ दिया जाएगा या उसे किसी परिवीक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षाधीन या किसी उपयुक्त व्यक्ति की देखरेख के अधीन रखा जाएगा;
परंतु ऐसे व्यक्ति को तब इस प्रकार छोड़ा नहीं जाएगा जब यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार प्रतीत होते हैं कि उस व्यक्ति को छोड़े जाने से यह संभ अपराधी से होगा या उक्त व्यक्ति नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक रूप से खतरे में पड़ जाएगा या उस व्य है कि उसका संसर्ग किसी ज्ञात व्यक्ति के छोड़े जाने से न्याय का उद्देश्य विफल हो जाएगा, और बोर्ड जमानत देने से इंकार करने के कारणों को और ऐसा विनिश्चय लेने से संबंधित परिस्थितियों को अभिलिखित करेगा।
(2) जब गिरफ्तार किए जाने पर ऐसे उपधारा (1) के अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है तब ऐसा अधिकारी उस व्यक्ति को ऐसी रीति से, व्यक्ति को पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा जो विहित की जाए, संरक्षण गृह में केवल तब तक के लिए रखवाएगा जब तक ऐसे व्यक्ति को बोर्ड के समक्ष न लाया जा सके।
(3) जब ऐसा व्यक्ति, बोर्ड द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है तब वह ऐसे व्यक्ति के बारे में
जांच के लंबित रहने के दौरान ऐसी कालावधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, उसे
यथास्थिति, संप्रेक्षण गृह या किसी सुरक्षित स्थान में भेजने के लिए आदेश करेगा।
(4) जब विधि का उल्लंघन करने वाला कोई बालक, जमानत को आदेश को सात दिन को भीतर
जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ होत लिए बोर्ड के समक्ष पेश किया जाएगा।
जहां विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित किसी बालक को गिरफ्तार किया जाता है
वहां उस पुलिस थाने या विशेष किशोर पुलिस एकक का बाल कल्याण पुलिस अधिकारी के रूप में पदाभिहित अधिकारी, जिसके पास ऐसा बालक लाया जाता है, बालक की गिरफ्तारी के पश्चात्
यथाशक्यशीघ्र -
(i) ऐसे बालक के माता-पिता या संरक्षक को, यदि उनका पता चलता है, इतिला देगा और उन्हें निदेश देगा कि वे उस बोर्ड के समक्ष उपस्थित हों जिसके समक्ष बालक को पेश किया जाएगा; और ऐसे व्यक्ति की जमानत जो दृश्यमान रूप से विधि का उल्लंघन करने वाला अभिकथित बालक है।
(ii) परिवीक्षा अधिकारी को, या यदि कोई परिवीक्षा अधिकारी उपलब्ध नहीं है तो बाल कल्याण अधिकारी को, दो सप्ताह के भीतर एक सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट, जिसमें बालक के पूर्ववृत्त और कौटुम्बिक पृष्ठभूमि के बारे में तथा अन्य ऐसी तात्विक परिस्थितियों के बारे में जानकारी अंतर्विष्ट होगी, जिनके बारे में यह संभाव्य है कि वे जांच करने में बोर्ड के लिए सहायक होगी, तैयार करने और बोर्ड को प्रस्तुत करने के लिए इतिला देगा।
(2) जहां बालक को जमानत पर छोड़ दिया जाता है वहां बोर्ड द्वारा, परिवीक्षा अधिकारी या बाल
कल्याण अधिकारी को इतिला दी जाएगी।
(1) जहां विधि का उल्लंघन करने वाला अभिकथित बालक, बोर्ड के समक्ष पेश किया जाता है, वहां बोर्ड इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार जांच करेगा और ऐसे बालक के संबंध में ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह इस अधिनियम की धारा 17 और धारा 18 के अधीन ठीक समझे।
(2) इस धारा के अधीन कोई जांच, बोर्ड के समक्ष बालक को पहली बार पेश किए जाने की तारीख से चार मास की अवधि के भीतर, जब तक रखते हुए और ऐसे विस्तारण के लिए अधिकतम अवधि के लिए उक्त अवधि विस्तारित नहीं की गई हो, पूरी की जाएगी।
(3) बोर्ड द्वारा, धारा 15 के अधीन जघन्य अपराधों की दशा में प्रारंभिक निर्धारण, बोर्ड के समक्ष
बालक को पहली बार पेश किए जाने की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।
(4) यदि बोर्ड द्वारा, छोटे अपराधों के लिए उपधारा (2)पश्चात् भी अनिर्णायक रहती है तो कार्यवाहियां समाप्त हो जाएंगी; परंतु घोर या जघन्य अपराधों के लिए यदि बोर्ड, जांच पूरी करने के लिए समय और बढ़ाने की अपेक्षा करता है तो, यथास्थिति, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट लिखित में लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से उसे प्रदान करेगा।
(5) बोर्ड, ऋजु और त्वरित जांच सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपाय करेगा, अर्थात्;-
(क) जांच प्रारंभ करते समय बोर्ड अपना यह समाधान करेगा कि विधि का उल्लंघन करने वाले बालक से पुलिस द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसके अंतर्गत वकील या परिवीक्षा अधिकारी भी है, कोई दुर्व्यवहार न किया गया है; और वह ऐसे दुर्व्यवहार के मामले में सुधारात्मक उपाय करेगा;
(ख) इस अधिनियम के अधीन सभी मामलों में, कार्यवाहियां यथासंभव साधारण रीति से की जाएंगी और यह सुनिश्चित करने के लिए सावधानी बरती जाएगी कि ऐसे बालक को, जिसके विरुद्ध कार्यवाहियां आरंभ की गई हैं, कार्यवाहियों के दौरान बाल हितैषी वातावरण उपलब्ध करवाया जाए;
(ग) बोर्ड के समक्ष लाए गए प्रत्येक बालक को जांच में सुनवाई का और भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाएगा;
(घ) छोटे अपराधों वाले मामलों का निपटारा बोर्ड द्वारा, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के 1974 का 2 अधीन विहित प्रक्रिया के अनुसार बोर्ड द्वारा संक्षिप्त कार्यवाहियों के माध्यम से किया जाएगा; (ड) बोर्ड द्वारा घोर अपराधों की जांच का निपटारा, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन 1974 का 2 समन मामलों का विचारण की प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए किया जाएगा;
(च) (1) अपराध किए जाने की तरीख को सोलह वर्ष से कम आयु के बालक के संबंध में जघन्य अपराधों की जांच बोर्ड द्वारा खंड (ड) के अधीन निपटाई जाएगी;
(ii) अपराध किए जाने की तरीख को सोलह वर्ष से कम आयु के बालक के संबंध में धारा 15 के अधीन विहित रीति से की जाएगी I
(1) किसी जघन्य अपराध की दशा में, जो अभिकथित रूप से किसी ऐसे बालक द्वारा किया बोर्ड द्वारा जघन्य गया है, जिसने सोलह वर्ष की आयु पूरी कर ली है या जो सोलह वर्ष से अधिक आयु का है, बोर्ड ऐसा अपराधों में प्रारंभिक अपराध करने के लिए उसकी मानसिक और शारीरिक क्षमता, अपराध के परिणामों को समझने की योग्यता और वे परिस्थितियां, जिनमें अभिकथित रूप से उसने अपराध किया था, के बारे में प्रारंभिक निर्धारण करेगा और धारा 18 की उपधारा (3) के उपबंधों के अनुसार आदेश पारित कर सकेगा; परन्तु ऐसे निर्धारण के लिए बोर्ड, अनुभवी अन्य विशेषज्ञों की सहायता ले सकेगा।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिए,यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रारंभिक निर्धारण कोई विचारण नहीं है बल्कि उस बालक के अभिकथित अपराध के किए जाने और उसके परिणामों को समझने के सामथ्र्य को निर्धारित करना है।
(2) जहां प्रारंभिक निर्धारण करने पर बोर्ड का यह समाधान हो जाता है कि मामले का निपटारा बोर्ड द्वारा किया जाना चाहिए तो बोर्ड, यथाशक्य, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन समन मामले के विचारण से संबंधित प्रक्रिया का अनुसरण करेगा; परंतु बोर्ड का मामले का निपटारा करने क अपीलनीय होगा; परंतु यह और कि इस धारा के अधीन निर्धारण, धारा 14 के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।
(1) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, प्रत्येक तीन मास में एक बार बोर्ड
के समक्ष लंबित मामलों का पुनर्विलोकन करेगा और बोर्ड को, अपनी बैठकों की आवृत्ति बढ़ाने का निदेश देगा या अतिरिक्त बोडों का गठन करने की सफारिश कर सकेगा।
(2) बोर्ड के समक्ष लंबित मामलों की संख्या, ऐसे लंबित रहने की अवधि, लंबित रहने की प्रकृति और उसके कारणों का एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा प्रत्येक छह मास में पुनर्विलोकन किया जाएगा, जो राज्य विधि सेवा प्राधिकरण के कार्यपालक अध्यक्ष, जो उसका अध्यक्ष होगा, गृह सचिव, राज्य में इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार सचिव और अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठन के एक प्रतिनिधि से मिलकर गठित होगी।
(3) बोर्ड द्वारा, तिमाही आधार पर, ऐसे लंबित रहने की सूचना मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट को भी ऐसे प्ररूप में, जो राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाए, दी जाएगी।
(1) जहां बोर्ड का जांच करने का यह समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लाए गए बालक ने कोई अपराध नहीं किया है तो तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी तत्प्रतिकूल बात के होते हुए भी बोर्ड उस प्रभाव का आदेश पारित करेगा I
(2) यदि बोर्ड को यह प्रतीत होता है कि उपधारा (1) में निर्दिष्ट बालक को देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है तो वह बालक को समुचित निदेशों के साथ समिति को निर्दिष्ट कर सकेगा।
(1) जहां बोर्ड का जांच करने पर यह समाधान हो जाता है कि बालक ने, आयु को विचार में लाए बिना कोई छोटा अपराध या कोई घोर अपराध किया है; या सोलह वर्ष से कम आयु के बालक ने कोई जघन्य अपराध किया है तो तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी तत्प्रतिकूल बात के होते हुए भी और अपराध की प्रकृति, पर्यवेक्षण या मध्यक्षेप की विशिष्ट आवश्यकता ऐसी परिस्थितियों, जो सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट में बताई गई हैं, और बालक के पूर्व आचरण के आधार पर बोर्ड यदि ऐसा करना ठीक समझता है तो वह,-
(क) बालक को, समुचित जांच के पश्चात् और ऐसे बालक, तथा उसके माता-पिता या संरक्षक को परामर्श देने के पश्चात् उपदेश या भत्सना के पश्चात् घर जाने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा;
(ख) बालक को सामूहिक परामर्श और ऐसे ही क्रियाकलापों में भाग लेने का निदेश दे सकेगा;
(ग) बालक को किसी संगठन या संस्थान अथवा बोर्ड द्वारा पहचान किए गए विनिर्दिष्ट व्यक्ति, व्यक्तियों या व्यक्ति समूह के पर्यवेक्षणाधीन सामुदायिक सेवा करने का आदेश दे सकेगा;
(घ) बालक या बालक के माता-पिता या संरक्षण को जुर्माने का संदाय करने का आदेश दे सकेगा; परंतु यदि बालक कार्यरत है तो वह यह सुनिश्चित कर सकेगा कि तत्समय प्रवृत्त किसी श्रम विधि के उपबंधों का उल्लंघन न हुआ हो;
(ड) बालक को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने और माता-पिता, संरक्षक या योग्य व्यक्ति की देखरेख में रखने का निदेश, ऐसे माता-पिता, संरक्षक या योग्य व्यक्ति द्वारा बालक के सदाचार और उसकी भलाई के लिए बोर्ड की अपेक्षानुसार प्रतिभू सहित या रहित तीन वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए बंधपत्र निष्पादित किए जाने पर, दे सकेगा;
(च) बालक के सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने और बालक के सदाचार और भलाई को सुनिश्चित करने के लिए किसी उचित सुविधा तंत्र की देखरेख और पर्यवेक्षण में रखने का निदेश तीन वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए शिक्षा, कौशल विकास, परामर्श दे सकेगा;
(छ) बालक को तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए, जो वह ठीक समझे, विशेष गृह में ठहरने की कालावधि के दौरान सुधारात्मक सेवाएं देने के लिए, जिनके अंतर्गत शिक्षा, कौशल विकास, परामर्श देना व्यवहार उपांतरण चिकित्सा और मनश्चिकित्सीय सहायता भी है, विशेष गृह में भेजने का निदेश दे सकेगा; परंतु यदि बालक का आचरण और व्यवहार ऐसा हो गया है जो बालक के हित में या विशेष गृह में रहने वाले अन्य बालकों के हित में नहीं होगा तो बोर्ड ऐसे बालक को सुरक्षित स्थान पर भेज सकेगा ।
(2) यदि उपधारा (1) के खंड (क) से खंड (छ) के अधीन कोई आदेश पारित किया जाता है तो बोर्ड – (i) विद्यालय में हाजिर होने; या
(ii) किसी व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र में हाज़िर होने या;
(iii) किसी चिकित्सा केंद्र में हाजिर होने; या
(iv) किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर बारंबार जाने या हाजिर होने से बालक को प्रतिषिद्ध करने; या
(v) व्यसनमुक्ति कार्यक्रम में भाग लेने, का अतिरिक्त आदेश पारित कर सकेगा।
(3) जहां बोर्ड, धारा 15 के अधीन प्रारंभिक निर्धारण करने के पश्चात् यह आदेश पारित करता
है कि उक्त बालक का, वयस्क के रूप में विचारण करने की आवश्यकता है वहां बोर्ड मामले के
विचारण को ऐसे अपराधों के विचारण की अधिकारिता वा आदेश दे सकेगा।
(1) धारा 15 के अधीन बोर्ड से प्रारंभिक निर्धारण प्राप्त होने के पश्चात् बालक न्यायालय यह विनिश्चय कर सकेगा कि;-
(i) बालक का दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबंधों के अनुसार वयस्क के रूप में विचारण करने की आवश्यकता है और वह विचारण के पश्चात्, इस धारा और धारा 21 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, बालक की विशेष आवश्यकताओं, ऋजु विचारण के सिद्धान्तों पर विचार करते हुए तथा बालक हितैषी वातावरण बनाए रखते हुए समुचित आदेश पारित कर सकेगा;
(ii) वयस्क के रूप में बालक के विचारण की कोई आवश्यकता नहीं है और बोर्ड के रूप में जांच की जा सकती है तथा धारा 18 के उपबंधों के अनुसार समुचित आदेश पारित कर सकेगा I
(2) बालक न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि विधि का उल्लंघन करने वाले बालक से संबंधित अंतिम आदेश में बालक के पुनर्वासन के लिए व्यक्तिगत देखभाल योजना को सम्मिलित किया जाएगा जिसके अंतर्गत परिवीक्षा अधिकारी या जिल द्वारा की गई अनुवर्ती कार्रवाई भी है।
(3) बालक न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे बालक को, जो विधि का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है, इक्कीस वर्ष की आयु का होने तक सुरक्षित स्थान पर भेजा जाए और तत्पश्चात् उक्त व्यक्ति को जेल में स्थानान्तरित कर दिया जाएगा; परंतु बालक को, सुरक्षित स्थान पर उसके ठहरने की कालावधि के दौरान, सुधारात्मक सेवाएं जिनके अंतर्गत शैक्षणिक सेवाएं, कौशल विकास, परामर्श देने, व्यवहार उपांतरण चिकित्सा जैसी वैकल्पिक चिकित्सा और मनश्चिकित्सीय सहायता भी है, उपलब्ध करवाई जाएंगी।
(4) बालक न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि सुरक्षित स्थान पर बालक की प्रगति का मूल्यांकन करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि बालक से वहां किसी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं किया गया है, यथा अपेक्षित परिवीक्षा अधिकारी या जिला बालक संरक्षण एकक या सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा प्रत्येक वर्ष एक आवधिक अनुवर्ती रिपोर्ट दी जाए।
(5) उपधारा (4) के अधीन दी गई रिपोर्ट अभिलेख और अनुवर्तन के लिए जैसा अपेक्षित हो,बालक न्यायालय को भेजी जाएगी।
20. (1) जब विधि का उल्लंघन करने वाला बालक इक्कीस वर्ष की आयु पूरी कर लेता है और बालक, जिसने अभी भी ठहरने की अवधि पूरी करनी है तो बालक न्यायालय, इस बात का मूल्यांकन करने के लिए कि क्या ऐसे बालक में सुधारात्मक परिवर्तन हुए हैं और क्या ऐसा बालक समाज का योगदान करने वाला सदस्य हो सकता है, परिवीक्षा अधिकारी या जला बालक सरक्षण एकक या सामाजक कायकता द्वारा स्थान में ठहरने की या अपने स्वयं के द्वारा जैसा अपेक्षित हो, अनुवर्ती कार्रवाई के लिए व्यवस्था करेगा और इस प्रयोजन के विहित अवधि को लिए, धारा 19 की उपधारा (4) के अधीन सुसंगत विशेषज्ञों के मूल्यांकन के साथ बालक के प्रगति अभिलेख को विचार में लिया जाएगा
(2) उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात् बालक न्यायालय,–
(i) ऐसी शर्तों पर, जो ठीक समझी जाएं, जिनके अंतर्गत ठहरने की विहित अवधि के शेष भाग के लिए मानीटरी प्राधिकारी की नियुक्ति भी है, बालक को छोड़े जाने का विनिश्चय कर सकेगा;
(ii) यह विनिश्चय कर सकेगा कि बालक अपनी शेष अवधि जेल में पूरा करेगा; परंतु प्रत्येक राज्य सरकार मानीटरी प्राधिकारियों और ऐसी मानीटरी प्रक्रियाओं की, जो विहित की जाएं एक सूची रखेगी।
विधि का उल्लंघन करने वाले किसी बालक को इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन या आदेश, जो विधि का 1860 का 45 भारतीय दंड संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अधीन ऐसे किसी अपराध के लिए छोड़े जाने की संभावना के बिना मृत्यु या आजीवन कारावास का दंडादेश नहीं दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में या तत्समय प्रवृत्त किसी निवारक निरोध विधि में अंतर्विष्ट दंड प्रक्रिया संहिता के किसी तत्प्रतिकूल बात के होते हुए भी किसी बालक के विरुद्ध उक्त संहिता के अध्याय 8 के अधीन न अध्याय 8 के अधीन की कोई कार्यवाही संस्थित की जाएगी और न ही कोई आदेश पारित किया जाएगा।
(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 223 में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित किसी बालक के साथ किसी ऐसे व्यक्ति की, जो बालक नहीं है, संयुक्त कार्यवाहियां नहीं की जाएंगी।
(2) यदि बोर्ड द्वारा या बालक न्यायालय द्वारा जांच के दौरान विधि का उल्लंघन करने वाले अभिकथित व्यक्ति के बारे में यह पाया जाता है कि वह बालक नहीं है तो ऐसे व्यक्ति का किसी बालक के साथ विचारण नहीं किया जाएगा।
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई बालक, जिसने कोई अपराध किया है और जिसके बारे में इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन कार्यवाही की जा चुकी है किसी ऐसी निरहता से, यदि कोई हो, ग्रस्त नहीं होगा, जो ऐसी विधि के अधीन किसी अपराध की दोषसिद्धि से संलग्न हो;
परंतु उस बालक की दशा में, जिसने सोलह वर्ष की आयु पूरी कर ली है या जो सोलह वर्ष से अधिक आयु का है और बालक न्यायालय की धारा 19 की उपधारा (1) के खंड (i) के अधीन उसके बारे में यह निष्कर्ष है कि उसने विधि का उल्लंघन किया है, उपधारा (1) के उपबंध लागू नहीं होंगे।
(2) बोर्ड, पुलिस को या बालक न्यायालय या अपनी स्वयं की रजिस्ट्री को यह निदेश देते हुए आदेश देगा कि ऐसी दोषसिद्धि के सुसंगत अभिलेख, यथास्थिति, अपील की अवधि या ऐसी युक्तियुक्त अवधि, जो विहित की जाए, समाप्त होने के पश्चात् नष्ट कर दिए जाएंगे;
परंतु किसी जघन्य अपराध की दशा में, जहां बालक के बारे में यह पाया जाता है कि उसने धारा 19 की उपधारा (1) के खंड (i) के अधीन विधि का उल्लंघन किया है, ऐसे बालक की दोषसिद्धि के सुसंगत अभिलेखों को बालक न्यायालय द्वारा प्रतिधारित रखा जाएगा।
इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी विधि का उल्लंघन करने वाला अभिकथित या विधि का उल्लंघन करते हुए पाए गए किसी बालक के बारे में इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को किसी बोर्ड या न्यायालय के समक्ष लंबित सभी कार्यवाहियां उस बोर्ड या न्यायालय में वैसे ही चालू रहेंगी मानो यह अधिनियम अधिनियमित नहीं किया गया है।
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में तत्प्रतिकूल किसी बात के होते हुए भी, कोई पुलिस अधिकारी, विधि का उल्लंघन करने वाले ऐसे बालक का प्रभार ले सकेगा जो विशेष गृह या संप्रेक्षण गृह या सुरक्षित स्थान से या किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था की देखरेख से, जिसके अधीन उस बालक को इस अधिनियम के अधीन रखा गया था, भगोड़ा हो गया है।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट बालक को, चौबीस घंटे के भीतर अधिमानत; उस बोर्ड के समक्ष, जिसने उस बालक की बाबत मूल आदेश पारित किया था, यदि संभव हो, या उस निकटतम बोर्ड के समक्ष, जहां बालक पाया जाता है, पेश किया जाएगा।
(3) बोर्ड बालक के निकल भागने के कारणों को सुनिश्चित करेगा और बालक को उस संस्था या उस व्यक्ति को, जिसकी अभिरक्षा से बालक भाग निकला था, या वैसे ही किसी अन्य स्थान या व्यक्ति को, जिसे बोर्ड ठीक समझे, वापस भेजे जाने के लिए समुचित आदेश पारित करेगा; परंतु बोर्ड किन्हीं विशेष उपायों की बाबत, जो बालक के सर्वोत्तम हित में आवश्यक समझे जाएं, अतिरिक्त निदेश भी दे सकेगा।
(4) ऐसे बालक के बारे में कोई अतिरिक्त कार्यवाही संस्थित नहीं की जाएगी।
अंतिम बार संशोधित : 4/17/2023
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