विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों और देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालकों से संबंधित विधि का, उनके विकास की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए उचित देखरेख, संरक्षण और उपचार का उपबंध करते हुए तथा उनसे संबंधित विषयों का न्यायनिर्णयन और व्ययन करने में बालकों के सर्वोत्तम हित में, बालकों के प्रति मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हुए तथा (उनके अंतिम पुनर्वास के लिए समेकन और उससे संबंधित या उसके आनुषगिक विषयों का संशोधन करने के लिए अधिनियम) संविधान के अनुच्छेद 15 के खंड (3), अनुच्छेद 39 के खंड (ड) और खंड (च), अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 47 सहित, अनेक उपबंधों में राज्य पर यह सुनिश्चित करने का प्राथमिक दायित्व अधिरोपित किया गया है कि बालकों की सभी आवश्यकताएं पूरी की जाएं और उनके बुनियादी मानवीय अधिकारों का पूर्ण रूप से संरक्षण किया जाए; और संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 20 नवंबर, 1989 को बालकों के अधिकारों से संबंधित अभिसमय को अंगीकार किया है;और बालक के अधिकारों से संबंधित अभिसमय ने ऐसे कुछ मानदंड विहित किए हैं, जिनका बालक के सर्वोत्तम हितों को प्राप्त करने के लिए, सभी पक्षकार राज्यों द्वारा पालन किया जाना है; और बालक के अधिकारों से संबंधित अभिसमय ने न्यायिक कार्यवाहियों का सहारा लिए बिना, संभव सीमा तक पीड़ित बालकों को समाज में पुन; मिलाने के लिए बल दिया है;
और भारत सरकार ने उक्त अभिसमय का 11 दिसंबर, 1992 को अनुसमर्थन कर दिया है;
और किशोरों से संबंधित विद्यमान विधि को, बालक के अधिकारों से संबंधित अभिसमय में विहित मानकों, किशोर न्याय के प्रशासन के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम, 1985, (बीजिंग नियम), अपनी स्वतंत्रता से वंचित संयुक्त राष्ट्र किशोर संरक्षण नियम, (1990) और सभी अन्य सुसंगत अन्तरराष्ट्रीय लिखतों को ध्यान में रखते हुए पुन; अधिनियमित करना समीचीन है;
भारत गणराज्य के इक्यावनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो -
1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 है।
2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय, संपूर्ण भारत पर होगा।
3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।
4) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के उपबंध, ऐसे सभी मामलों को लागू होंगे जिनमें ऐसी अन्य विधि के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों का निरोध, अभियोजन, शास्ति या कारावास का दंडादेश अंतर्वलित है।
परिभाषाएं
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) ‘सलाहकार बोर्ड” से धारा 62 के अधीन गठित, यथास्थिति, केन्द्रीय या राज्य सलाहकार बोर्ड या जिला और नगर स्तर का सलाहकार बोर्ड अभिप्रेत है-
(कक) ‘दत्तक ग्रहण’ से वह प्रक्रिया अभिप्रेत है जिसके द्वारा दत्तक बालक अपने जैविक माता-पिता से स्थायी रूप से अलग कर दिया जाता है और अपने दत्तक माता-पिता का उन सभी अधिकारों, विशेषाधिकारों और दायित्वों के साथ जो उस नातेदारी के साथ संलग्न है, धर्मज संतान बन जाता है;
(ख) ‘भीख मांगना’ से अभिप्रेत है,-
(ग) ‘बोर्ड’ से धारा 4 के अधीन गठित किशोर न्याय बोर्ड अभिप्रेत है
(घ) ‘देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक’ से ऐसा बालक अभिप्रेत है,
(i) जिसके बारे में यह पाया जाता है कि उसका कोई घर या निश्चित निवास का स्थान और जीवन निर्वाह के दृश्यमान साधन नहीं हैं; '[(क) जो भीख मांगते हुए पाया जाता है, या जो आवारा बालक है या श्रमजीवी बालक है;]
(ii) जो किसी व्यक्ति के साथ रहता है (चाहे वह बालक का संरक्षक हो अथवा नहीं) और ऐसे व्यक्ति ने,—
(क) बालक को मारने या उसे क्षति पहुंचाने की धमकी दी है और उस धमकी को कार्यान्वित किए जाने की युक्तियुक्त संभावना है, या
(ख) किसी अन्य बालक या बालकों को मार दिया है, उसके या उनके साथ दुव्यवहार या उसकी या उनकी उपेक्षा की है और प्रश्नगत बालक के उस व्यक्ति द्वारा मारे जाने, उसके साथ दुव्यवहार या उसकी उपेक्षा किए जाने की युक्तियुक्त संभावना है,
(iii) जो मानसिक या शारीरिक रूप से असुविधाग्रस्त या बीमार बालक है या ऐसा बालक है जो घातक रोगों या असाध्य रोगों से पीड़ित है, जिनकी सहायता या देखभाल करने वाला कोई नहीं है,
(iv) जिसके माता-पिता या संरक्षक हैं और ऐसे माता-पिता या संरक्षक बालक पर नियंत्रण रखने के लिए अयोग्य या असमर्थ हैं,
(v) जिसके माता-पिता नहीं हैं और कोई भी व्यक्ति उसकी देखरेख करने का इच्छुक नहीं है या उसके माता-पिता ने उसका परित्याग "यिा अभ्यर्पण] कर दिया है या जो गुमशुदा है और भागा हुआ बालक है और जिसके माता-पिता युक्तियुक्त जांच के पश्चात् भी नहीं मिल सके हैं,
(vi) जिसका लैंगिक दुव्यवहार या अवैध कार्यों के प्रयोजन हेतु घोर दुव्यवहार, प्रपीड़न या शोषण किया जा रहा है या किए जाने की संभावना है,
(vi) जो असुरक्षित पाया गया है और उसके मादक द्रव्य के कुप्रयोग या उनके अवैध व्यापार में सम्मिलित किए जाने की संभावना है,
(viii) जिसका लोकात्मा विरुद्ध अभिलाभों के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है या किए जाने की संभावना है,
(ix) जो किसी सशस्त्र संघर्ष, सिविल उपद्रव या प्राकृतिक आपदा से पीड़ित है;
(ड) ‘बालगृह" से धारा 34 के अधीन राज्य सरकार या स्वैच्छिक संगठन द्वारा स्थापित और उस सरकार द्वारा प्रमाणित संस्था अभिप्रेत है;
(च) ‘समिति’ से धारा 29 के अधीन गठित बाल कल्याण समिति अभिप्रेत है;
(छ) ‘सक्षम प्राधिकारी’ से देखरेख और संरक्षण के जरूरतमंद बालकों के संबंध में समिति और विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों के संबंध में बोर्ड अभिप्रेत है;
(ज) ‘योग्य संस्था’ से ऐसा सरकारी या रजिस्ट्रीकृत गैर-सरकारी संगठन या स्वैच्छिक संगठन अभिप्रेत है जो किसी बालक की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है और ऐसा संगठन 1[सक्षम प्राधिकारी की सिफारिश पर राज्य सरकार द्वारा] योग्य पाया जाता है;
(झ) ‘योग्य व्यक्ति’ से ऐसा व्यक्ति, जो सामाजिक कार्यकर्ता है या ऐसा कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है जो बालक की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है और सक्षम प्राधिकारी द्वारा बालक को प्राप्त करने और उसकी देखरेख करने के लिए योग्य पाया जाता है;
(ज) बालक के संबंध में ‘संरक्षक" से उसका नैसर्गिक संरक्षक या ऐसा कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी वास्तविक देखरेख या नियंत्रण में बालक है और उसे सक्षम प्राधिकारी द्वारा उस प्राधिकारी के समक्ष कार्यवाही के दौरान संरक्षक के रूप में मान्यता दी गई है;
(ट) ‘किशोर" या ‘बालक’ से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने अठारह वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है;
(ठ) ‘विधि का उल्लंघन करने वाला किशोर" से ऐसा कोई किशोर अभिप्रेत है जिसके बारे में यह अभिकथन है कि उसने कोई अपराध किया है और ऐसा अपराध करने की तारीख को उसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है;
(ढ़) ‘स्वापक औषधि’ और ‘मन;प्रभावी पदार्थ’ के क्रमश; वही अर्थ हैं जो स्वापक ओषधि और मन;प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (1985 का 61) में हैं ;
(ण) ‘संप्रेक्षण गृह' से धारा 8 के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर के लिए राज्य सरकार द्वारा या स्वैच्छिक संगठन द्वारा स्थापित और उस राज्य सरकार द्वारा संप्रेक्षण गृह के रूप में प्रमाणित किया गया गृह अभिप्रेत है;
(त) ‘अपराध” से तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन दंडनीय कोई अपराध अभिप्रेत है;
(थ) ‘सुरक्षित स्थान’ से अभिप्रेत है ऐसा कोई स्थान या ऐसी कोई संस्था (जो पुलिस हवालात या जेल नहीं है) जिसका भारसाधक व्यक्ति किसी किशोर को अस्थायी रूप से लेने और उसकी देखरेख करने के लिए रजामंद है और जो सक्षम प्राधिकारी की राय में किशोर के लिए सुरक्षित स्थान है;
(द) ‘विहित’ से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ध) ‘परिवीक्षा अधिकारी’ से अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के अधीन परिवीक्षा अधिकारी के रूप में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी अभिप्रेत है;
(न) “सार्वजनिक स्थान” का वही अर्थ होगा जो अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (1956 का 104)में है;
(प) ‘आश्रय गृह" से धारा 37 के अधीन स्थापित गृह या मिलन केन्द्र अभिप्रेत है;
(फ) ‘विशेष गृह' से धारा 9 के अधीन राज्य सरकार द्वारा या स्वैच्छिक संगठन द्वारा स्थापित और उस सरकार द्वारा प्रमाणित संस्था अभिप्रेत है;
(ब) ‘विशेष किशोर पुलिस एकक" से राज्य पुलिस बल की ऐसी इकाई अभिप्रेत है जो धारा 63 के अधीन किशोरों या बालकों से निपटने के लिए अभिप्रेत है;
(भ) ‘राज्य सरकार’ से संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त उस संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक अभिप्रेत है;
(म) उन सभी शब्दों और पदों के जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किंतु परिभाषित नहीं हैं और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में परिभाषित हैं, वहीं अर्थ होंगे जो उस संहिता में उनके हैं।
जहां विधि का उल्लंघन करने वाले किसी किशोर या देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक के विरुद्ध जांच आरंभ कर दी गई है और उस जांच के दौरान वह किशोर या बालक,
किशोर या बालक नहीं रह गया है वहां इस अधिनियम में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी उस व्यक्ति के बारे में जांच ऐसे जारी रखी जा सकेगी और आदेश ऐसे किए जा सकेंगे मानो ऐसा व्यक्ति किशोर या बालक बना रहा है।
1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के प्रारंभ की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले के लिए] इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों के संबंध में ऐसे बोर्ड को प्रदत्त या अधिरोपित शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए एक या अधिक किशोर न्याय बोर्ड का गठन कर सकेगी ।
2) बोर्ड, यथास्थिति, महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी और ऐसे दो सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर बनेगा जिनमें से कम से कम एक महिला होगी और वह न्यायपीठ के रूप में गठित होगा और ऐसे प्रत्येक न्यायपीठ को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) द्वारा, यथास्थिति, महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी को प्रदत्त शक्तियां प्राप्त होगी और बोर्ड के मजिस्ट्रेट को प्रधान मजिस्ट्रेट के रूप में पदाभिहित किया जाएगा।
3) किसी भी मजिस्ट्रेट को बोर्ड के सदस्य के रूप में तब तक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके पास बाल मनोविज्ञान या बाल कल्याण के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या प्रशिक्षण न हो और किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता को बोर्ड के सदस्य के रूप में तब तक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि वह बालकों से संबंधित स्वास्थ्य, शिक्षा या कल्याण के क्रियाकलापों में कम से कम सात वर्षों तक न लगा रहा हो।
4) बोर्ड के सदस्यों की पदावधि और वह रीति, जिसमें ऐसा सदस्य त्यागपत्र दे सकेगा, वे होंगी जो विहित की जाएं।
5) बोर्ड के किसी सदस्य की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा, जांच किए जाने के पश्चात् समाप्त की जा सकेगी, यदि—
(1) बोर्ड ऐसे समयों पर बैठक करेगा और ऐसी बैठकों में कारबार के संव्यवहार के संबंध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा जो विहित किए जाएं।
(2) विधि का उल्लंघन करने वाले किसी बालक को, जब बोर्ड की बैठक नहीं हो रही हो, बोर्ड के व्यष्टिक सदस्य के समक्ष पेश किया जा सकेगा ।
(3) बोर्ड, बोर्ड के किसी सदस्य के अनुपस्थित रहते हुए भी कार्य कर सकेगा और बोर्ड द्वारा किया गया कोई आदेश, कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम के दौरान किसी सदस्य की अनुपस्थिति के कारण ही अविधिमान्य नहीं होगा; परन्तु किसी मामले के अंतिम निपटारे के समय प्रधान मजिस्ट्रेट सहित कम से कम दो सदस्य उपस्थित रहेंगे।
(4) अंतरिम या अंतिम निपटान में बोर्ड के सदस्यों के बीच राय की भिन्नता की दशा में बहुमत की राय अभिभावी होगी, किंतु जहां ऐसा कोई बहुमत नहीं है, वहां प्रधान मजिस्ट्रेट की राय अभिभावी होगी।
(1) जहां किसी जिले के लिए बोर्ड गठित किया गया है वहां, ऐसे बोर्ड को, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किंतु जैसा इस अधिनियम में अभिव्यक्ततः अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर से संबंधित इस अधिनियम के अधीन सभी कार्यवाहियों के संबंध में अनन्यत; कार्य करने की शक्तियां प्राप्त होंगी।
(2) इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन बोर्ड को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग उच्च न्यायालय और सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब कार्यवाही अपील, पुनरीक्षण में या अन्यथा उनके समक्ष आए।
(1) जब किसी ऐसे मजिस्ट्रेट की, जो इस अधिनियम के अधीन बोर्ड की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सशक्त नहीं है, यह राय है कि इस अधिनियम के किन्हीं उपबंधों के अधीन (उसके समक्ष साक्ष्य देने के प्रयोजन से भिन्न) लाया गया कोई व्यक्ति किशोर या बालक है तब वह उस राय को अविलंब अभिलिखित करेगा और उस किशोर या बालक को तथा उस कार्यवाही के अभिलेख को उस कार्यवाही पर अधिकारिता रखने वाले सक्षम प्राधिकारी को भेजेगा ।
(2) वह सक्षम प्राधिकारी जिसे उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही भेजी गई है, इस प्रकार जांच करेगा मानो वह किशोर या बालक मूलत; उसके समक्ष लाया गया हो।
(1) जब कभी किसी न्यायालय के समक्ष किशोरावस्था का कोई दावा किया जाता है या न्यायालय की यह राय है कि अभियुक्त व्यक्ति अपराध कारित होने की तारीख को किशोर था तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति की आयु का अवधारण करने के लिए जांच करेगा, ऐसा साक्ष्य लेगा जो आवश्यक हो (किन्तु शपथ-पत्र पर नहीं) और इस बारे में उसकी निकटतम आयु का कथन करते हुए निष्कर्ष अभिलिखित करेगा कि वह व्यक्ति किशोर या बालक है अथवा नहीं;परंतु किशोरावस्था का दावा किसी न्यायालय के समक्ष किया जा सकेगा और उसे किसी भी प्रक्रम पर, यहां तक कि मामले के अंतिम निपटान के पश्चात् भी, मान्यता दी जाएगी और ऐसे दावे का इस अधिनियम में और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार अवधारण किया जाएगा, भले ही उसकी किशोरावस्था इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को या उससे पहले समाप्त हो गई हो।
(2) यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन अपराध कारित करने की तारीख को किशोर था, तो वह उस किशोर को समुचित आदेश पारित किए जाने के लिए बोर्ड को भेजेगा, और यदि न्यायालय द्वारा कोई दंडादेश पारित किया गया है तो यह समझा जाएगा कि उसका कोई प्रभाव नहीं है।]
(1) कोई राज्य सरकार, प्रत्येक जिले या जिलों के समूह में या तो स्वयं अथवा स्वैच्छिक संगठनों के साथ करार के अधीन ऐसे संप्रेक्षण गृह स्थापित कर सकेगी और उनका अनुरक्षण कर सकेगी जो इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों को, उनसे संबंधित किसी जांच के लंबित रहने के दौरान अस्थायी रूप से रखने के लिए अपेक्षित हो।
(2) जहां राज्य सरकार की यह राय है कि उपधारा (1) के अधीन स्थापित या अनुरक्षित गृह से भिन्न कोई संस्था इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को उनसे संबंधित किसी जांच के लंबित रहने के दौरान अस्थायी रूप से रखने के लिए ठीक है, वहां वह उस संस्था को इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए संप्रेक्षण गृह के रूप में प्रमाणित कर सकेगी।
(3) राज्य सरकार, संप्रेक्षण गृहों के प्रबंध के लिए, जिसमें किशोरों के पुनर्वास और समाज में पुन; मिलाने के लिए उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का स्तर और उनके विभिन्न प्रकार भी हैं, और उन परिस्थितियों के लिए जिनमें तथा उस रीति के लिए जिससे संप्रेक्षण गृह का प्रमाणन अनुदत्त या प्रत्याहृत किया जा सकेगा, उपबंध इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा कर सकेगी ।
(4) प्रत्येक किशोर को, जो माता-पिता या संरक्षक के प्रभार में नहीं रखा गया है और संप्रेक्षण गृह में भेजा जाता है, प्रारंभिक पूछताछ, देखरेख और उसकी आयु समूह, जैसे सात वर्ष से बारह वर्ष, बारह वर्ष से सोलह वर्ष और सोलह वर्ष से अठारह वर्ष के अनुसार संप्रेक्षण गृह में आगे सम्मिलित करने के लिए किशोरों के वर्गीकरण के लिए प्रथमत; संप्रेक्षण गृह की स्वागत इकाई में रखा जाएगा जिसमें शारीरिक और मानसिक स्तर और किए गए अपराध की श्रेणी को सम्यक् रूप से ध्यान में रखा जाएगा।
(1) कोई राज्य सरकार या तो स्वयं अथवा स्वैच्छिक संगठनों के साथ करार के अधीन, प्रत्येक जिले या जिलों के समूह में ऐसे विशेष गृह स्थापित कर सकेगी और उनका अनुरक्षण कर सकेगी जो इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों को रखने और उनके पुनर्वास के लिए अपेक्षित हो।
(2) जहां राज्य सरकार की यह राय है कि उपधारा (1) के अधीन स्थापित या अनुरक्षित गृह से भिन्न कोई संस्था इस अधिनियम के अधीन वहां भेजे जाने वाले विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों को रखने के लिए ठीक है वहां वह उस संस्था को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए विशेष गृह के रूप में प्रमाणित कर सकेगी।
(3) राज्य सरकार विशेष गृहों के प्रबंध के लिए, जिसमें उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का स्तर और उनके विभिन्न प्रकार भी हैं, जो किशोरों को समाज में पुन; मिलाने के लिए आवश्यक हैं, और उन परिस्थितियों के लिए जिनमें तथा उस रीति के लिए जिससे विशेष गृह का प्रमाणन अनुदत्त या प्रत्याहृत किया जा सकेगा, उपबंध, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा कर सकेगी ।
(4) उपधारा (3) के अधीन बनाए गए नियमों में विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों का, उनकी आयु और उनके द्वारा किए गए अपराधों की प्रकृति और उसके मानसिक और शारीरिक स्तर के आधार पर वर्गीकरण और पृथक्करण के लिए भी उपबंध किया जा सकेगा ।
(1) जैसे ही विधि का उल्लंघन करने वाला कोई किशोर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तभी वह विशेष किशोर पुलिस बल एकक या अभिहित पुलिस अधिकारी के प्रभार के अधीन रखा जाएगा; जो किशोर को समय नष्ट किए बिना चौबीस घंटे के भीतर किशोर की गिरफ्तारी के स्थान से यात्रा में लिए गए आवश्यक समय को छोड़कर बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करेगा; परन्तु किसी भी दशा में, विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को पुलिस हवालात या जेल में नहीं रखा जाएगा।
(2) राज्य सरकार
(i) उन व्यक्तियों के लिए उपबंध करने के लिए जिनके द्वारा (जिसके अंतर्गत रजिस्ट्रीकृत स्वैच्छिक संगठन भी है) विधि का उल्लंघन करने वाला कोई किशोर, बोर्ड के समक्ष पेश किया जा सकेगा; और
(ii) उस रीति का उपबंध करने के लिए जिससे ऐसे किशोर को किसी संप्रेक्षण गृह में भेजा जा सकेगा, इस अधिनियम के संगत नियम बना सकेगी।
किशोर पर अभिरक्षक का नियंत्रण
ऐसे व्यक्ति का जिसके प्रभार में कोई किशोर, इस अधिनियम के अनुसरण में रखा जाता है, जब आदेश प्रवर्तन में हो, किशोर पर नियंत्रण इस प्रकार होगा जैसे कि उसका नियंत्रण उस समय होता यदि वह उसका माता पिता होता और उसके भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी होगा तथा किशोर, इस बात के होते हुए भी कि उसके माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दावा किया गया है, सक्षम प्राधिकारी द्वारा कथित अवधि के लिए प्रभार में बना रहेगा।
(1) जब कोई ऐसा व्यक्ति, जो जमानतीय या अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है और दृश्यमान रूप में किशोर है, गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है अथवा बोर्ड के समक्ष उपसंजात होता है या लाया जाता है तब दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, उस व्यक्ति को प्रतिभू सहित या रहित जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, या किसी परिवीक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षण के अधीन या किसी उपयुक्त संस्था या किसी उपयुक्त व्यक्ति की देखरेख के अधीन रखा जाएगा किन्तु इस प्रकार उसे तब नहीं छोड़ा जाएगा जब यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार प्रतीत होते हैं कि उसके ऐसे छोड़े जाने से यह संभाव्य है कि उसका संसर्ग किसी ज्ञात अपराधी से होगा या वह नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक रूप से खतरे में पड़ जाएगा या उसके छोड़े जाने से न्याय के उद्देश्य विफल होंगे।
(2) जब गिरफ्तार किए जाने पर ऐसे व्यक्ति को पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा उपधारा (1) के अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है तब ऐसा अधिकारी उसे विहित रीति से संप्रेक्षण गृह में केवल तब तक के लिए रखवाएगा जब तक उसे बोर्ड के समक्ष न लाया जा सके।
(3) जब ऐसा व्यक्ति बोर्ड द्वारा उपधारा (1) के अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है तब वह कारागार के सुपुर्द करने के बजाय उसके बारे में जांच के लंबित रहने के दौरान ऐसी कालावधि के लिए जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, उसे संप्रेक्षण गृह या किसी सुरक्षित स्थान में भेजने के लिए आदेश करेगा।
जहां कोई किशोर गिरफ्तार किया जाता है वहां उस पुलिस थाने या विशेष किशोर पुलिस एकक का भारसाधक अधिकारी, जिसके पास वह किशोर लाया जाता है, गिरफ्तारी के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र -
(क) उस किशोर के माता-पिता या संरक्षक को, यदि उसका पता चलता है, ऐसी गिरफ्तारी की इत्तला देगा और यह निदेश देगा कि वह उस बोर्ड के समक्ष उपस्थित हो जिसके समक्ष किशोर उपसंजात होगा; और
(ख) परिवीक्षा अधिकारी को ऐसी गिरफ्तारी की इतिला देगा जिससे कि वह किशोर के पूर्ववृत्त और कौटुम्बिक पृष्ठभूमि के बारे में तथा अन्य ऐसी तात्विक परिस्थितियों के बारे में जानकारी अभिप्राप्त कर सके, जिनके बारे में यह संभाव्य है कि वे जांच करने में बोर्ड के लिए सहायक होंगी।
जहां अपराध से आरोपित किशोर, बोर्ड के समक्ष पेश किया जाता है, वहां को बोर्ड इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार जांच करेगा और वह किशोर के संबंध में ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे; परन्तु इस धारा के अधीन कोई जांच इसके प्रारंभ होने की तारीख से चार मास की अवधि के भीतर जब तक कि बोर्ड द्वारा मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखने के पश्चात् और विशेष मामलों में ऐसे विस्तार के लिए लिखित में कारण लेखबद्ध करने के पश्चात् उक्त अवधि विस्तारित नहीं की गई हो, पूरी की जाएगी।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट प्रत्येक छह मास पर बोर्ड के समक्ष लंबित मामलों का पुनर्विलोकन करेगा और बोर्ड को अपनी बैठकों की आवृत्ति बढ़ाने का निदेश देगा या अतिरिक्त बोडों का गठन करा सकेगा।
(1) जहां बोर्ड का जांच करने पर यह समाधान हो जाता है कि किशोर ने अपराध किया है, वहां तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी तत्प्रतिकूल बात के होते हुए भी, वह बोर्ड, यदि वह ऐसा करना ठीक समझता है, तो,-
(क) किशोर को उसके विरुद्ध समुचित जांच करने के पश्चात् और माता-पिता या संरक्षक या किशोर की परामर्श देने के पश्चात् उपदेश या भत्सना के पश्चात् घर जाने देने का निदेश दे सकेगा;
(ख) किशोर को सामूहिक परामर्श और ऐसे ही क्रियाकलापों में भाग लेने का निदेश दे सकेगा; (ग) किशोर को सामुदायिक सेवा करने का आदेश दे सकेगा;
(घ) किशोर के माता-पिता को या स्वयं किशोर को जुर्माने का संदाय करने का आदेश दे सकेगा यदि वह चौदह वर्ष से अधिक आयु का है और धन अर्जित करता है;
(ड) किशोर को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने और माता-पिता, संरक्षक या अन्य योग्य व्यक्ति की देखरेख में रखने का निदेश, ऐसे माता-पिता, संरक्षक या अन्य योग्य व्यक्ति द्वारा किशोर के सदाचार और उसकी भलाई के लिए उस बोर्ड की अपेक्षानुसार प्रतिभू सहित या रहित, तीन वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए, बंधपत्र निष्पादित किए जाने पर, दे सकेगा;
(च) किशोर को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने और सदाचार और उसकी भलाई के लिए किसी योग्य संस्था की देखरेख में रखने का निदेश तीन वर्ष से अनधिक कालावधि के लिए दे सकेगा;
(छ) किशोर को तीन वर्ष की अवधि के लिए विशेष गृह में भेजने के लिए निदेश देने वाला आदेश कर सकेगा; परंतु यदि बोर्ड का यह समाधान हो जाता है कि अपराध की प्रकृति और मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएं, ऐसा करना समीचीन है, तो बोर्ड रोक आदेश की अवधि को ऐसी अवधि तक घटा सकेगा जो वह ठीक समझे ।
(2) बोर्ड किशोरों पर किसी परिवीक्षा अधिकारी या मान्यताप्राप्त स्वैच्छिक संगठन की मार्फत या अन्यथा सामाजिक अन्वेषण रिपोर्ट अभिप्राप्त करेगा और ऐसा आदेश पारित करने के पूर्व ऐसी रिपोर्ट के निष्कर्षों पर विचार करेगा।
(3) जहां उपधारा (1) के खंड (घ), खंड (ड) या खंड (च) के अधीन आदेश किया जाता है वहां बोर्ड, यदि उसकी यह राय है कि ऐसा करना किशोर के तथा लोकहित में समीचीन है, तो अतिरिक्त आदेश कर सकेगा कि विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर आदेश में नामित परिवीक्षा अधिकारी के पर्यवेक्षण में, तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी कालावधि के दौरान रहेगा, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, और ऐसे पर्यवेक्षण आदेश में ऐसी शर्ते अधिरोपित कर सकेगा जिन्हें वह विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर के सम्यक् पर्यवेक्षण के लिए आवश्यक समझे; परन्तु यदि तत्पश्चात् किसी समय बोर्ड को परिवीक्षा अधिकारी से रिपोर्ट की प्राप्ति पर या अन्यथा यह प्रतीत होता है कि विधि का उल्लंघन करने वाला किशोर पर्यवेक्षण की कालावधि के दौरान सदाचारी नहीं रहा है अथवा वह योग्य संस्था, जिसकी देखरेख में किशोर को रखा गया था, अब किशोर का सदाचार या भलाई सुनिश्चित करने के लिए असमर्थ है या रजामंद नहीं है तो वह ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह ठीक समझे, विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को विशेष गृह को भेजे जाने का आदेश कर सकेगा।
(4) उपधारा (3) के अधीन पर्यवेक्षण आदेश करते समय बोर्ड किशोर को तथा, यथास्थिति, माता-पिता, संरक्षक या अन्य योग्य व्यक्ति या योग्य संस्था को, जिसकी देखरेख में किशोर रखा गया है, आदेश के निबंधन और शर्ते समझा देगा और तत्काल उस पर्यवेक्षण आदेश की प्रतिलिपि, यथास्थिति, किशोर के माता-पिता, संरक्षक या अन्य योग्य व्यक्ति या योग्य संस्था को और यदि कोई प्रतिभू हों तो उन्हें और परिवीक्षा अधिकारी को देगा।
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी तत्प्रतिकूल बात के होते हुए भी, किसी विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को मृत्यु या ऐसे किसी कारावास का जिसकी अवधि आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडादेश नहीं दिया जाएगा, और न जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर या प्रतिभूति देने में व्यतिक्रम होने पर कारागार के सुपुर्द किया जाएगा; परन्तु जहां ऐसे किशोर ने, जिसने सोलह वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है, कोई अपराध किया है और बोर्ड का समाधान हो जाता है कि किया गया अपराध ऐसी गंभीर प्रकृति का है या उसका आचरण और आचार ऐसा रहा है कि यह उसके हित में या विशेष गृह में के अन्य किशोरों के हित में नहीं होगा कि उसे ऐसे विशेष गृह भेजा जाए और यह कि इस अधिनियम के अधीन उपबंधित अन्य अध्युपायों में से कोई भी उपयुक्त या पर्याप्त नहीं है वहां बोर्ड, विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को ऐसे स्थान में और ऐसे रीति से जिसे वह ठीक समझे, सुरक्षित स्थान में रखे जाने का आदेश कर सकेगा और राज्य सरकार के आदेशार्थ मामले की रिपोर्ट करेगा।
(2) बोर्ड से उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट की प्राप्ति पर राज्य सरकार, किशोर के बारे में ऐसे इंतजाम कर सकेगी जैसे वह उचित समझे और ऐसे किशोर को ऐसे स्थान में और ऐसी शतों पर, जिन्हें वह ठीक समझे, निरुद्ध रखे जाने पर आदेश कर सकेगी ; परंतु इस प्रकार आदिष्ट निरोध की कालावधि किसी भी दशा में इस अधिनियम की धारा 15 के अधीन उपबंधित की गई अधिकतम कालावधि से अधिक नहीं होगी।
(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 223 में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी कोई किशोर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जो किशोर नहीं है किसी अपराध के लिए आरोपित या विचारित नहीं किया जाएगा।
(2) यदि कोई किशोर, किसी ऐसे अपराध का अभियुक्त है जिसके लिए वह किशोर और कोई अन्य व्यक्ति, जो किशोर नहीं है, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 223 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन, उस दशा में जब कि उपधारा (1) में अंतर्विष्ट प्रतिषेध न होता, एक साथ आरोपित और विचारित किया जाता तो अपराध का संज्ञान करने वाला बोर्ड उस किशोर और अन्य व्यक्ति के पृथक् विचारणों का निदेश देगा।
(1) किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, कोई किशोर, जिसने कोई अपराध किया है और जिसके बारे में अधिनियम के उपबंधों के अधीन कार्रवाई की जा चुकी है, किसी ऐसी निरहता के, यदि कोई हो, अधीन नहीं होगा, जो ऐसी विधि के अधीन अपराध की दोषसिद्धि से संलग्न हो।
(2) बोर्ड यह निदेश देते हुए आदेश देगा कि ऐसी दोषसिद्धि के सुसंगत अभिलेख, यथास्थिति, अपील की अवधि या ऐसी युक्तियुक्त अवधि को समाप्ति के पश्चात् जो नियमों में विहित की जाए, हटा लिए जाएंगे।
इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, किसी क्षेत्र के न्यायालय में, उस तारीख को जबकि यह अधिनियम उस क्षेत्र में प्रवृत होता है, लंबित किशोर विषयक सब कार्यवाहियां उस न्यायालय में इस प्रकार चालू रखी जाएंगी, मानो यह अधिनियम पारित नहीं किया गया है और यदि न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि किशोर ने अपराध किया है तो वह उस निष्कर्ष को अभिलिखित करेगा और उस किशोर के बारे में कोई दंडादेश करने के बजाय उस किशोर को बोर्ड को भेज देगा, जो उस किशोर के बारे में आदेश इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार ऐसे करेगा मानो इस अधिनियम के अधीन जांच पर उसका समाधान हो गया है कि किशोर ने वह अपराध किया है; परंतु बोर्ड किसी ऐसे उपयुक्त और विशेष कारण से जो आदेश में वर्णित किया जाए, मामले का पुनर्विलोकन कर सकेगा और ऐसे किशोर के हित में उपयुक्त आदेश पारित कर सकेगा।
किसी न्यायालय में विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर से संबंधित सभी लंबित मामलों में जिनके अंतर्गत विचारण, पुनरीक्षण, अपील या कोई अन्य दांडिक कार्यवाहियां भी हैं, ऐसे किशोर की किशोरावस्था का अवधारण धारा 2 के खंड (ठ) के निबन्धनानुसार किया जाएगा भले ही किशोर इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को या उससे पहले किशोर न रहा हो और इस अधिनियम के उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो उक्त उपबंध सभी प्रयोजनों के लिए और सभी तात्विक समयों पर प्रवर्तन में थे जब ऐसा अभिकथित अपराध किया गया था।
(1) किसी समाचारपत्र, पत्रिका का समाचार पृष्ठ या दृश्य माध्यम में इस अधिनियम के अधीन विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर या देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालक के बारे में किसी जांच की कोई रिपोर्ट किशोर या बालक का नाम, पता या विद्यालय या कोई अन्य विशिष्टियां जिनसे किशोर या बालक का पहचाना जाना प्रकल्पित हो, प्रकट नहीं की जाएगी और न ही ऐसे किशोर या बालक का कोई चित्र ही प्रकाशित किया जाएगा; परंतु जांच करने वाला प्राधिकारी ऐसा प्रकटन ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे तब अनुज्ञात कर सकेगा जब उसकी राय में ऐसा प्रकटन किशोर या बालक के हित में हो।
(2) उपधारा (1) के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति जो ऐसी शास्ति के लिए दायी होगा, जो पच्चीस हजार रुपए तक की हो सकेगी।
तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में इसके प्रतिकूल किसी बात के होते हुए भी, कोई पुलिस अधिकारी, विधि का उल्लंघन करने वाले ऐसे किशोर का बिना वारंट के प्रभार ले सकेगा जो विशेष गृह या संप्रेक्षण गृह या किसी ऐसे व्यक्ति की देखरेख से भाग निकला है जिसके अधीन वह इस अधिनियम के अधीन रखा गया था और उसे, यथास्थिति, उस विशेष गृह या संप्रेक्षण गृह या उस व्यक्ति को वापस किया जाएगा और उस किशोर के विरुद्ध ऐसे भाग निकलने के कारण कोई कार्यवाही संस्थित नहीं की जाएगी, किन्तु विशेष गृह या संप्रेक्षण गृह या वह व्यक्ति उस बोर्ड को सूचना देने के पश्चात् जिसने किशोर के संबंध में आदेश पारित किया था, किशोर के संबंध में ऐसे कदम उठा सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन आवश्यक प्रतीत हों।
जो कोई किशोर या बालक का वास्तविक भारसाधन या उस पर नियंत्रण रखते हुए ऐसी रीति से, जिससे उस किशोर या बालक को अनावश्यक मानसिक या शारीरिक कष्ट होना संभाव्य हो उस किशोर या बालक पर हमला करेगा, उसका परित्याग करेगा, उसे उच्छन्न करेगा या जानबूझकर उसकी उपेक्षा करेगा या उस पर हमला या उसका परित्यक्त, उच्छन्न या उपेक्षित किया जाना कारित या उपाप्त करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दंडनीय होगा।
(1) जो कोई भीख मांगने के प्रयोजन के लिए किसी किशोर या बालक को नियोजित या प्रयुक्त करता है या किसी किशोर या बालक से भीख मंगवाएगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा।
(2) जो कोई, किशोर या बालक का वास्तविक भारसाधन या उस पर नियंत्रण रखते हुए, उपधारा (1) के अधीन दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा।
जो कोई, सम्यक् रूप से अहिंत चिकित्सा व्यवसायी के आदेश या बीमारी से अन्यथा किसी किशोर या बालक को लोक-स्थान में कोई मादक लिकर या कोई स्वापक औषधि या मन;प्रभावी पदार्थ देगा या दिलवाएगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा।
जो कोई, किसी परिसंकटमय नियोजन के प्रयोजन के लिए, किशोर या बालक को दृश्यमानत; उपाप्त करेगा या किशोर के उपार्जनों को विधारित करेगा या उसके उपार्जन स्वयं अपने प्रयोजन के लिए उपयोग में लाएगा वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, दंडनीय होगा।
धारा 23, धारा 24, धारा 25 और धारा 26 के अधीन दंडनीय अपराध संज्ञेय होंगे।
जहां कोई कार्य या लोप ऐसा अपराध गठित करता है जो इस अधिनियम के अधीन या किसी केन्द्रीय या राज्य अधिनियम के अधीन भी दंडनीय है, वहां तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे अपराध का दोषी पाया गया अपराधी ऐसे अधिनियम के अधीन हो, जो किसी दंड का उपबंध करता है, ऐसे दंड का भागी होगा जो मात्रा में अधिक हो।
(1) राज्य सरकार, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के प्रारंभ की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले के लिए] इस अधिनियम के अधीन देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक के संबंध में एक या अधिक बाल कल्याण समितियों का, ऐसी समितियों को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए गठन कर सकेगी।
(2) समिति, एक अध्यक्ष और चार ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी जिन्हें नियुक्त करना राज्य सरकार ठीक समझे और उनमें कम से कम एक महिला होगी और दूसरा अन्य, बालकों से संबंधित विषयों का विशेषज्ञ होगा।
(3) अध्यक्ष और सदस्यों की अहताएं और पदावधि जिसके लिए उन्हें नियुक्त किया जाए, ऐसी होगी जो विहित की जाए।
(4) समिति के किसी सदस्य की नियुक्ति, राज्य सरकार द्वारा जांच किए जाने के पश्चात् समाप्त की जा सकेगी, यदि—
(i) वह इस अधिनियम के अधीन निहित की गई शक्ति के दुरुपयोग का दोषी पाया गया हो;
(ii) वह किसी ऐसे अपराध का सिद्धदोष ठहराया गया हो जिसमें नैतिक अधमता अंतर्वलित है, और ऐसी दोषसिद्धि को उलटा नहीं गया है या ऐसे अपराध की बाबत उसे पूर्ण क्षमा प्रदान नहीं की गई है;
(iii) वह, किसी विधिमान्य कारण के बिना लगातार तीन मास तक, समिति की कार्यवाहियों में उपस्थित रहने में असफल रहता है या किसी वर्ष में कम से कम तीन चौथाई बैठकों में उपस्थित रहने में असफल रहता है।
(5) समिति, मजिस्ट्रेट की न्यायपीठ के रूप में कार्य करेगी और उसे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) द्वारा, यथास्थिति, महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रदत्त शक्तियां प्राप्त होगी।
(1) समिति अपनी बैठक ऐसे समय पर और अपनी बैठकों में कारबार के संव्यवहार की बाबत प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन करेगी जो विहित किए जाएं।
(2) देखरेख और संरक्षण के जरूरतमंद बालक को सुरक्षित अभिरक्षा में रखे जाने के लिए या अन्यथा तब जब समिति सत्र में न ही व्यष्टिक सदस्य के सामने पेश किया जा सकेगा ।
(3) किसी अंतरिम विनिश्चय के समय समिति के सदस्यों के बीच राय की किसी भिन्नता की दशा में, बहुमत की राय अभिभावी होगी किन्तु जहां कोई ऐसा बहुमत नहीं है वहां अध्यक्ष की राय अभिभावी होगी।
(4) उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, समिति, समिति के किसी सदस्य के अनुपस्थित रहते हुए भी कार्रवाई कर सकेगी और समिति द्वारा किया गया कोई आदेश, कार्यवाही के किसी प्रक्रम के दौरान केवल किसी सदस्य की अनुपस्थिति के आधार पर ही अविधिमान्य नहीं होगा।
(1) समिति का बालकों की देखरेख, संरक्षण, उपचार, विकास और पुनर्वास के मामलों का निपटारा करने तथा साथ ही साथ उनकी मूलभूत आवश्यकताओं और मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए उपबंध करने का अंतिम प्राधिकार होगा ।
(2) जहां किसी क्षेत्र के लिए समिति का गठन किया गया है, वहां तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अधिनियम में अभिव्यक्त रूप में जैसा उपबंधित है, उसके सिवाय, ऐसी समिति की देखरेख और संरक्षण के जरूरतमंद बालकों से संबंधित, इस अधिनियम के अधीन सभी कार्यवाहियों के संबंध में अनन्यत: कार्य करने की शक्ति होगी।
(1) देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद किसी बालक को निम्नलिखित किसी व्यक्ति द्वारा समिति के समक्ष पेश किया जा सकेगा
(i) कोई पुलिस अधिकारी या विशेष किशोर पुलिस एकक या कोई पदाभिहित अधिकारी;
(ii) कोई लोक सेवक;
(iii) एक रजिस्ट्रीकृत स्वैच्छिक संगठन, चाइल्ड लाइन या ऐसे अन्य स्वैच्छिक संगठन या किसी अभिकरण द्वारा जिन्हें राज्य सरकार द्वारा मान्यता दी जाए;
(v) कोई सामाजिक कार्यकर्ता या लोक भावना से युक्त नागरिक; या
(v) स्वयं बालक द्वारा ;परंतु बालक को समय नष्ट किए बिना चौबीस घंटे की अवधि के भीतर यात्रा में लिए गए आवश्यक समय को छोड़कर समिति के समक्ष पेश किया जाएगा।
(2) राज्य सरकार के जांच के लंबित रहने के दौरान समिति को रिपोर्ट देने की रीति का और बालक को बालगृह में भेजने और सौंपने की रीति का उपबंध करने के लिए इस अधिनियम से संगत नियम बना सकेगी।
(1) धारा 32 के अधीन रिपोर्ट की प्राप्ति पर समिति विहित रीति से जांच करेगा और समिति अपनी स्वयं की या धारा 32 की उपधारा (1) में वर्णित किसी व्यक्ति या अभिकरण से प्राप्त रिपोर्ट पर बालक को सामाजिक कार्यकर्ता या बाल कल्याण अधिकारी द्वारा शीघ्र जांच के लिए बालगृह भेजने के लिए आदेश करेगी।
(2) इस धारा के अधीन जांच को, आदेश की प्राप्ति के चार मास के भीतर या ऐसी कम अवधि के भीतर जो समिति द्वारा नियत की जाए, पूरा किया जाएगा; परन्तु जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए समय को, ऐसी अवधि के लिए बढ़ाया जा सकेगा जिसे समिति, परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और लेखबद्ध कारणों के आधार पर अवधारित करे।
(3) राज्य सरकार, प्रत्येक छह मास में समिति के समक्ष लंबित मामलों का पुनर्विलोकन करेगी और समिति को अपनी बैठकों की आवृत्ति को बढ़ाने के लिए निदेश देगी या अतिरिक्त समितियों का गठन करा सकेगी।
(4) जांच के पूरा हो जाने के पश्चात् यदि समिति की यह राय है कि उक्त बालक का कोई कुटुम्ब या उसका कोई दृश्यमान सहारा नहीं है या उसे देखरेख या संरक्षण की लगातार आवश्यकता है, तो वह बालक को तब तक बालगृह या आश्रयगृह में रहने की अनुज्ञा दे सकेगी जब तक उसका उपयुक्त पुर्नवास नहीं हो जाता या जब तक वह अठारह वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है।
(1) राज्य सरकार या तो स्वयं या स्वैच्छिक संगठनों से सहयोग करके किसी जांच के लंबित होने के दौरान देखरेख और संरक्षण के जरूरतमन्द बालक को रखने के लिए और तत्पश्चात् उनकी देखरेख, उपचार, शिक्षा, प्रशिक्षण, विकास और पुनर्वास के लिए, यथास्थिति, प्रत्येक जिले में या जिलों के समूह में बालगृह की स्थापना और उनका रखरखाव कर सकेगी।
(2) राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा, बालगृहों के प्रबंध की बाबत जिसके अंतर्गत उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के मानक और प्रकृति भी है तथा उन परिस्थितियों के लिए जिनके अधीन और वह रीति जिसमें किसी स्वैच्छिक संगठन को बालगृह का प्रमाणपत्र या मान्यता प्रदान की जा सकेगी या वापस ली जा सकेगी, उपबंध कर सकेगी।
(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सभी संस्थाएं, चाहे वे राज्य सरकार द्वारा या स्वैच्छिक संगठनों द्वारा देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के लिए चलाई जाती हैं, किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006 के प्रारंभ की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर इस अधिनियम के अधीन, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, रजिस्ट्रीकृत की जाएंगी।
(1) राज्य सरकार, यथास्थिति, राज्य, किसी जिले और नगर के लिए ऐसी अवधि और ऐसे प्रयोजनों के लिए जो विहित किए जाएं, बालगृहों के लिए निरीक्षण समितियां नियुक्त कर सकेगी (जिन्हें इसमें इसके पश्चात् निरीक्षण समितियां कहा गया है)।
(2) किसी राज्य, जिले या किसी नगर की निरीक्षण समिति में राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण, समिति, स्वैच्छिक संगठनों से उतनी संख्या में प्रतिनिधि होंगे और ऐसे अन्य चिकित्सा विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता होंगे जो विहित किए जाएं।
केन्द्रीय सरकार, या कोई राज्य सरकार, बालगृहों के कृत्यों का ऐसी अवधि पर और ऐसे व्यक्तियों और संस्थाओं की मार्फत जो उस सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं, मानीटर और मूल्यांकन कर सकेगी।
(1) राज्य सरकार, प्रतिष्ठित और समर्थ स्वैच्छिक संगठनों को मान्यता प्रदान कर सकेगी और उन्हें किशोरों या बालकों के लिए, जितने अपेक्षित हों उतने आश्रयगृहों के गठन और उनके प्रशासन के लिए सहायता प्रदान कर सकेगी।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट आश्रयगृह, ऐसे व्यक्तियों के, जो धारा 32 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट हैं, माध्यम से ऐसे गृहों में लाए गए जरूरतमन्द बालकों की तात्कालिक मदद के लिए मिलन केन्द्र के रूप में कार्य करेंगे।
(3) आश्रयगृहों में, जहां तक संभव हो, ऐसी सुविधाएं होंगी, जो नियमों द्वारा विहित की जाएं।
(1) यदि जांच के दौरान यह पाया जाता है कि बालक समिति की अधिकारिता के बाहर के स्थान से है, तो समिति, बालक के निवास के स्थान पर अधिकारिता वाले सक्षम प्राधिकारी को उस बालक को अंतरित करने का आदेश करेगी।
(2) ऐसे किशोर या बालक को उस गृह के कर्मचारिवृन्द की अनुरक्षा में ले जाया जाएगा, जिसमें वह मूल रूप से ठहराया गया है।
(3) राज्य सरकार, बालक को संदत किए जाने वाले यात्रा भत्ते के लिए उपबंध करने के लिए नियम बना सकेगी।
(1) किसी बालगृह या आश्रयगृह का प्राथमिक उद्देश्य बालक का प्रत्यावर्तन और संरक्षण होगा।
(2) यथास्थिति, बालगृह या आश्रयगृह, ऐसे कदम उठाएंगे, जो अस्थायी या स्थायी रूप से अपने कुटुम्ब के वातावरण से वंचित बालक के प्रत्यावर्तन और संरक्षण के लिए आवश्यक समझे जाते हैं, जहां ऐसा बालक, यथास्थिति, बालगृह या आश्रयगृह की देखरेख और संरक्षण के अधीन है।
(3) समिति को देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद किसी बालक को उसके, यथास्थिति, माता-पिता, संरक्षक, उचित व्यक्ति और उचित संस्था को प्रत्यावर्तित करने की शक्ति होगी और वह उन्हें उपयुक्त निदेश देगी।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिए ‘बालक का प्रत्यावर्तन और संरक्षण’ से,- (क) माता-पिता (ख) दत्तक माता-पिता, (ग) पोषक माता-पिता, (घ) संरक्षक, (ङ) उपयुक्त व्यक्ति; (च) उपयुक्त संस्था,
बालक का पुनर्वास और समाज में पुन; मिलाना बालगृह या विशेष गृह में बालक के ठहरने के दौरान आरंभ होगा और बालकों के पुनर्वास और समाज में पुन; मिलाना आनुकल्पिक रूप से
(i) दत्तक ग्रहण द्वारा,
(ii) पोषक देखरेख,
(iii) प्रायोजकता, और
(iv) पश्चात्वर्ती देखरेख संगठन में बालक को भेजकर किया जाएगा।
(1) बालकों की देखरेख करने और संरक्षण प्रदान करने का प्राथमिक उत्तरदायित्व उसके कुटुम्ब का होगा।
(2) ऐसे बालकों के पुनर्वास के लिए, जो अनाथ, परित्यक्त या अभ्यर्पित हैं, ऐसे तंत्र के माध्यम से, जो विहित किया जाए, दत्तक ग्रहण का सहारा लिया जाएगा।
(3) राज्य सरकार या केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन अभिकरण द्वारा समय-समय पर जारी किए गए और केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित दत्तक ग्रहण के लिए विभिन्न मार्गदर्शक सिद्धांतों के उपबंधों को ध्यान में रखते हुए, किसी न्यायालय द्वारा बालकों को, ऐसे बालकों को दत्तक में देने के लिए यथाअपेक्षित किए गए अन्वेषणों के संबंध में अपना समाधान हो जाने के पश्चात्, दत्तक गृह में दिया जा सकेगा ।
(4) राज्य सरकार, प्रत्येक जिले में अपनी एक या अधिक संस्थाओं अथवा स्वैच्छिक संगठनों को, विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरणों के रूप में, ऐसी रीति में जो उपधारा (3) के अधीन अधिसूचित मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार दत्तक ग्रहरण के लिए अनाथ, परित्यक्त या अभ्यर्पित बालकों के नियोजन के लिए विहित की जाए, मान्यता देगी;परंत देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के लिए, जो अनाथ, परित्यक्त या अभ्यर्पित हैं, राज्य सरकार या किसी स्वैच्छिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाले बाल गृह और संस्थाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि ये बालक समिति द्वारा दत्तक ग्रहण के लिए उपलब्ध घोषित किए गए हैं और सभी ऐसे मामले, उस जिले में दत्तक ग्रहण अभिकरण को, उपधारा (3) के अधीन अधिसूचित मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार दत्तक ग्रहण में ऐसे बालकों के नियोजन के लिए निर्दिष्ट किए जाएंगे।
(5) कोई भी बालक दत्तक ग्रहण के लिए तब तक
(क) जब तक समिति के दो सदस्य परित्यक्त बालकों की दशा में घोषणा नहीं कर देते कि बालक विधिक रूप से सौंपने के लिए स्वतंत्र हैं;
(ख) अभ्यर्पित बालकों की दशा में माता-पिता के पुनःविचार के लिए दो मास की अवधि बीत न गई हो; और
(ग) उस बालक की दशा में जो अपनी सहमति को समझ और अभिव्यक्त कर सकता है, उसकी सहमति के बिना,प्रस्थापित नहीं किया जाएगा।
(6) न्यायालय बालक को दत्तक ग्रहण में,-
(क) किसी व्यक्ति को उसकी वैवाहिक स्थिति को विचार में लाए बिना; या
(ख) जीवित स्वयं से उत्पन्न (जैविक) पुत्रों या पुत्रियों की संख्या को विचार में लाए बिना समान लिंग के बालक को दत्तक ग्रहण के लिए माता-पिता को; या
(ग) निःसंतान दंपति की, दिए जाने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा।
(1) ऐसे शिशुओं की, जिन्हें अन्ततोगत्वा दत्तक में दिया जाना है, अस्थायी रूप से रखे जाने के लिए पोषण देखरेख की जा सकेगी ।
(2) पोषण देखरेख के दौरान, बालक को किसी अल्पावधि या बढ़ाई गई अवधि के लिए किसी दूसरे कुटुंब के साथ रखा जा सकेगा, जो उन परिस्थितियों पर निर्भर करेगी जहां बालक के अपने माता-पिता प्राय; नियमित रूप से और कभी-कभी पुनर्वास के पश्चात् जहां से बालक अपने-अपने घरों को वापस जा सकेंगे, मिल सकेंगे।
(3) राज्य सरकार, बालकों की पोषण देखरेख कार्यक्रम की स्कीम के कार्यान्वयन के प्रयोजनों के लिए नियम बना सकेगी।
(1) प्रवर्तकता कार्यक्रम में, चिकित्सीय, पौषणिक, शैक्षणिक और जीवन स्तर में सुधार की दृष्टि से बालकों की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए कुटुंबों, बालगृहों और विशेष गृहों को अनुपूरक सहयोग देने का उपबंध किया जा सकेगा।
(2) राज्य सरकार, बालकों की व्यष्टिक प्रवर्तकता, समूह प्रवर्तकता या सामुदायिक प्रवर्तकता जैसी प्रवर्तकता की विभिन्न स्कीमों के कार्यान्वयन के प्रयोजनों के लिए नियम बना सकेगी।
राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा निम्नलिखित के लिए उपबंध कर सकेगी -
(क) पश्चात्वर्ती देखरेख संगठनों की स्थापना और मान्यता तथा इस अधिनियम के अधीन उनके द्वारा निर्वहन किए जा सकने वाले कृत्य;
(ख) किशोरों या बालकों की, उनके विशेष गृहों या बालगृहों को छोड़ने के पश्चात् देखरेख के प्रयोजन के लिए और उनको ईमानदार, कर्मठ और उपयोगी जीवन बिताने के लिए समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए ऐसे पश्चात्वर्ती देखरेख कार्यक्रम की कोई स्कीम;
(ग) प्रत्येक किशोर या बालक की बाबत, उसको विशेष गृहों, बालगृहों से निर्मुक्त किए जाने के पूर्व परिवीक्षा अधिकारी या उस सरकार द्वारा नियुक्त किसी अन्य अधिकारी द्वारा ऐसे किशोर या बालक की पश्चात्वर्ती देखरेख की आवश्यकता और उसकी प्रकृति, ऐसी पश्चात्वर्ती देखरेख की अवधि, उसके पर्यवेक्षण के संबंध में एक रिपोर्ट तैयार करने और प्रस्तुत करने तथा प्रत्येक किशोर या बालक की प्रगति की बाबत इस प्रयोजन के लिए नियुक्त परिवीक्षा अधिकारी या अन्य किसी अधिकारी द्वारा प्रस्तुत करना;
(घ) ऐसे पश्चात्वर्ती देखरेख संगठनों द्वारा बनाई रखी जाने वाली सेवाओं के मानक और प्रकृति;
(ड) ऐसे अन्य विषय जो किशोर या बालक की पश्चात्वर्ती देखरेख के कार्यक्रम की स्कीम के कार्यान्वयन करने के लिए आवश्यक हो;परन्तु इस धारा के अधीन बनाया गया कोई नियम ऐसे किशोर या बालक के पश्चात्वर्ती देखरेख संगठन में तीन वर्ष से अधिक तक ठहरने के लिए उपबंध नहीं करेंगे;परन्तु यह और कि सत्रह वर्ष से अधिक परन्तु अठारह वर्ष से कम का किशोर या बालक बीस वर्ष की आयु प्राप्त करने तक पश्चात्वर्ती देखरेख संगठन में रह सकेगा।
राज्य सरकार, बालक के पुनर्वास और उसे समाज में पुन; मिलाने को सुकर बनाने के लिए विभिन्न सरकारी, गैर-सरकारी, निगमित और अन्य सामुदायिक अभिकरणों के बीच प्रभावकारी संयोजन सुनिश्चित करने के लिए नियम बना सकेगी ।
कोई सक्षम प्राधिकारी जिसके समक्ष किशोर या बालक इस अधिनियम के किसी उपबंध के अधीन लाया जाता है, जब भी वह ऐसा करना ठीक समझे, किशोर या बालक का वास्तविक भारसाधन या उस पर नियंत्रण रखने वाले माता-पिता या संरक्षक से अपेक्षा कर सकेगा कि वह किशोर या बालक के बारे में किसी कार्यवाही में उपस्थित हो ।
यदि जांच के अनुक्रम में किसी प्रक्रम पर सक्षम प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि किशोर या बालक की हाजिरी जांच के प्रयोजनार्थ आवश्यक नहीं है तो सक्षम प्राधिकारी उसको हाजिरी से अभिमुक्ति प्रदान कर सकेगा और किशोर या बालक की अनुपस्थिति में जांच में अग्रसर हो सकेगा।
(1) जब किसी ऐसे किशोर या बालक के बारे में जो इस अधिनियम के अधीन सक्षम प्राधिकारी के समक्ष लाया गया है, यह पाया जाता है कि वह ऐसे रोग से पीड़ित है जिसके लिए लंबे समय तक चिकित्सीय उपचार की अपेक्षा होगी या उसे कोई शारीरिक या मानसिक व्याधि है जो उपचार से ठीक हो जाएगी, तब सक्षम प्राधिकारी किशोर या बालक को, ऐसे समय के लिए जिसे वह अपेक्षित उपचार के लिए आवश्यक समझता है किसी ऐसे स्थान को भेज सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार अनुमोदित स्थान के रूप में मान्यताप्राप्त स्थान है।
(1) जहां सक्षम प्राधिकारी को यह प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के उपबंधों में से किसी के अधीन उसके समक्ष (साक्ष्य देने के प्रयोजनार्थ से अन्यथा) लाया गया व्यक्ति किशोर या बालक है वहां सक्षम प्राधिकारी, उस व्यक्ति की आयु के बारे में सम्यक् जांच करेगा और उस प्रयोजन के लिए ऐसा साक्ष्य लेगा (किन्तु शपथपत्र नहीं) जो आवश्यक हो और उस व्यक्ति की आयु यथाशक्य निकटतम रूप से कथित करते हुए यह निष्कर्ष अभिलिखित करेगा कि वह व्यक्ति किशोर या बालक है या नहीं।
(2) सक्षम प्राधिकारी का कोई आदेश केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं समझा जाएगा कि तत्पश्चात् यह साबित हुआ है कि वह व्यक्ति, जिसके बारे में उसके द्वारा आदेश किया गया है, किशोर या बालक नहीं है और इस प्रकार उसके समक्ष लाए गए व्यक्ति की आयु के रूप में सक्षम प्राधिकारी द्वारा अभिलिखित आयु उस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उस व्यक्ति की सही आयु समझी जाएगी।
ऐसे किशोर या बालक की दशा में जिसका मामूली तौर पर निवास का स्थान उस सक्षम प्राधिकारी की, जिसके समक्ष वह लाया गया है, अधिकारिता के बाहर है वहां सक्षम प्राधिकारी, यदि सम्यक् जांच के पश्चात् उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना समीचीन है, उस किशोर या बालक को उस नातेदार या अन्य योग्य व्यक्ति के पास जो अपने मामूली तौर पर निवास स्थान पर उसे रखने के लिए और उसकी उचित देखरेख और उस पर नियंत्रण रखने के लिए रजामंद है, वापस भेज सकेगा, यद्यपि वह निवास स्थान सक्षम प्राधिकारी की अधिकारिता के बाहर है; और वह सक्षम प्राधिकारी, जो इस स्थान पर अधिकारिता का प्रयोग करता है जहां किशोर या बालक भेजा गया है, तत्पश्चात् उद्भूत होने वाली किसी बात के बारे में उस किशोर या बालक के संबंध में ऐसी शक्तियां रखेगा मानो मूल आदेश उसके द्वारा किया गया हो।
परिवीक्षा अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्ता की रिपोर्ट जिस पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा विचार किया गया है, गोपनीय मानी जाएगी ;परंतु सक्षम प्राधिकारी यदि वह ऐसा करना ठीक समझता है तो, उसका सार, किशोर या बालक को या उसके माता-पिता या संरक्षक को संसूचित कर सकेगा और ऐसे किशोर या बालक के माता-पिता या संरक्षक को इस बात का अवसर दे सकेगा कि वह रिपोर्ट में कथित बात से सुसंगत कोई साक्ष्य पेश करे।
(1) इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए इस अधिनियम के अधीन सक्षम प्राधिकारी द्वारा किए गए आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उस आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर, सेशन न्यायालय को अपील कर सकेगा;परन्तु सेशन न्यायालय उस अपील को उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् तब ग्रहण कर सकेगा जब उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय के अन्दर अपील फाइल करने में पर्याप्त हेतुक से निवारित हुआ था।
(2) (क) ऐसे किशोर के बारे में जिसके बारे में यह अभिकथित है कि उसने अपराध किया है, बोर्ड द्वारा किए गए दोषमुक्ति के किसी आदेश; या
(ख) इस निष्कर्ष के बारे में कि वह उपेक्षित किशोर नहीं है, समिति द्वारा किए गए किसी आदेश से, अपील नहीं होगी।
(3) इस धारा के अधीन की गई किसी अपील में सेशन न्यायालय द्वारा किए गए किसी आदेश के संबंध में द्वितीय अपील नहीं होगी।
उच्च न्यायालय या तो स्वप्रेरणा से या इस निमित्त प्राप्त किसी आवेदन पर, किसी भी समय, किसी ऐसी कार्यवाही के अभिलेख को, जिसमें किसी सक्षम प्राधिकारी या सेशन न्यायालय ने कोई आदेश पारित किया हो, आदेश की वैधता या औचित्य के संबंध में अपना समाधान करने के प्रयोजनार्थ मंगा सकेगा और उसके संबंध में ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे ; परन्तु उच्च न्यायालय इस धारा के अधीन किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कोई आदेश उसे सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किए बिना, पारित नहीं करेगा।
(1) इस अधिनियम में जैसा अभिव्यक्तत; उपबंधित है उसके सिवाय, सक्षम प्राधिकारी, इस अधिनियम के उपबंधों में से किसी के अधीन जांच करते समय ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जो विहित की जाए और उसके अधीन रहते हुए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में समन मामलों में विचारण के लिए अधिकथित प्रक्रिया का यावत्शक्य अनुसरण करेगा।
(2) इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन स्पष्टत; जैसा उपबंधित है, उसके सिवाय, इस अधिनियम के अधीन अपीलों या पुनरीक्षण कार्यवाहियों में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया, यावतसाध्य, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंधों के अनुसार होगी।
(1) इस अधिनियम के अधीन अपील और पुनरीक्षण के लिए उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना कोई सक्षम प्राधिकारी, इस निमित्त प्राप्त किसी आवेदन पर किसी आदेश को, जो उस संस्था के बारे में हो जिसमें किसी किशोर या बालक को भेजा जाना है या उस व्यक्ति के बारे में हो जिसकी देखरेख या पर्यवेक्षण में किसी किशोर या बालक को इस अधिनियम के अधीन रखा जाना है, संशोधित कर सकेगा ; परन्तु अपने किसी आदेश के संबंध में संशोधन पारित करने के लिए सुनवाई के दौरान कम से कम दो सदस्य और पक्षकार या बचाव पक्ष उपस्थित होंगे।
(2) सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित आदेशों में की लिपिकीय भूलों या उनमें किसी आकस्मिक चूक या लोप से उनमें होने वाली गलतियां किसी समय सक्षम प्राधिकारी द्वारा या तो स्वप्रेरणा से या इस निमित्त प्राप्त किसी आवेदन पर सुधारी जा सकेंगी।
सक्षम प्राधिकारी या स्थानीय प्राधिकारी, इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, किसी समय यह आदेश कर सकेगा कि देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक या विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर को, यथास्थिति, एक बालगृह या विशेषगृह से, बालक या किशोर के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए या तो आत्यन्तिक रूप से या ऐसी शर्तों पर जिन्हें अधिरोपित करना ठीक समझे, उन्मोचित किया जाए या किसी अन्य बालगृह या विशेषगृह को और उसके रहने के नैसर्गिक स्थान को अंतरित किया जाए ; परन्तु बालगृह में या विशेषगृह में या योग्य संस्था में या एक योग्य व्यक्ति के अधीन किशोर या बालक के ठहरने की कुल अवधि ऐसे अंतरण द्वारा नहीं बढ़ाई जाएगी।
राज्य सरकार, यह निदेश दे सकेगी कि कोई बालक या किशोर राज्य के भीतर किसी बालगृह या विशेषगृह से राज्य से बाहर किसी अन्य बालगृह, विशेषगृह या ऐसी ही प्रकृति की संस्था या ऐसी संस्थाओं को संबद्ध राज्य सरकार के परामर्श से, यथास्थिति, समिति, या बोर्ड की पूर्व सूचना से अंतरित किया जाए और ऐसा आदेश उस क्षेत्र के समक्ष प्राधिकारी के लिए, जहां बालक या किशोर को भेजा जाता है प्रवर्तन में माना जाएगा।
(1) जहां सक्षम प्राधिकारी को यह प्रतीत होता है कि इस अधिनियम के अनुसरण में किसी विशेषगृह या संप्रेक्षणगृह या बालगृह या आश्रयगृह या संस्था में रखा गया कोई किशोर या बालक, मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति या मद्य सार या अन्य ओषधि का ऐसा व्यसनी है, जिसके कारण किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है, वहां सक्षम प्राधिकारी, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) या उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के अनुसार उसको किसी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय परिचर्या गृह में, भेजने का आदेश दे सकेगा।
(2) यदि किसी किशोर या बालक को उपधारा (1) के अधीन मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय परिचर्या गृह में भेजा गया था, तो समक्ष प्राधिकारी, मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय परिचर्या गृह के उन्मोचन प्रमाणपत्र में दी गई सलाह के आधार पर ऐसे किशोर या बालक को व्यसनियों के लिए एकीकृत पुनर्वास केन्द्र या मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए (जिनके अंतर्गत स्वापक ओषधि या मन;प्रभावी पदार्थ के व्यसनी व्यक्ति भी हैं) राज्य सरकार द्वारा पोषित इसी प्रकार के केन्द्रों में भेजने का आदेश दे सकेगा और ऐसा भेजा जाना, केवल, ऐसे किशोर या बालक के आंतरिक रोगी उपचार के लिए अपेक्षित अवधि के लिए होगा।
(क) ‘व्यसनियों के लिए एकीकृत पुनर्वास केन्द्र’ का वह अर्थ होगा जो भारत सरकार के सामाजिक, न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा बनाई गई ‘मद्यपानता और पदार्थ (औषधि) दुरुपयोग निवारण के लिए तथा सामाजिक रक्षा सेवाओं के लिए सहायता की केन्द्रीय सेक्टर स्कीम" नामक स्कीम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य तत्समान स्कीम के अधीन है;
(ख) “मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति” का वह अर्थ होगा जो मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) की धारा 2 के खंड (ठ) में है ;
(ग) “मनश्चिकित्सीय अस्पताल' या “मनश्चिकित्सीय परिचर्यागृह” का वह अर्थ होगा जो मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) की धारा 2 के खंड (थ) में है।
(1) जब किशोर या बालक, बालगृह या विशेषगृह में रखा जाता है और, यथास्थिति, परिवीक्षा अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्ता की या सरकार या स्वैच्छिक संगठन की रिपोर्ट पर सक्षम प्राधिकारी ऐसे किशोर या बालक को उसके माता-पिता या संरक्षक के साथ या आदेश में प्राधिकृत ऐसे नामित व्यक्ति के पर्यवेक्षण के अधीन रहने के लिए अनुज्ञात करते हुए निर्मुक्ति पर विचार कर सकेगा जो किशोर या बालक को शिक्षित करने और उसके किसी उपयोगी व्यापार या आजीविका के लिए प्रशिक्षित करने या पुनर्वास के लिए उसकी देखरेख करने के लिए उसे लेने और उसका भार ग्रहण करने का इच्छुक है।
(2) सक्षम प्राधिकारी, किसी किशोर या बालक को विशेष अवसरों पर जैसे परीक्षा, नातेदारों के विवाह, परिचितों और निकट संबंधियों की मृत्यु या माता-पिता की दुर्घटना या गंभीर बीमारी या इसी प्रकृति के किसी आपात पर पर्यवेक्षण के अधीन, यात्रा में लिए गए समय को छोड़कर (ऐसी अवधि के लिए जो साधारणतया सात दिन से अधिक न हो,) अवकाश पर जाने के लिए अनुपस्थिति की अनुज्ञा भी प्रदान कर सकेगा।
(3) जहां अनुज्ञा प्रतिसंहृत या समपहृत हो जाए और किशोर या बालक संबद्ध गृह को जिसमें वापस जाने के लिए उसे निदेश दिया गया हो, वापस आने से इंकार कर देता है या असफल रहता है तो बोर्ड, यदि आवश्यक हो, तो उसको भारसाधन में दिलवाएगा और उसे संबद्ध गृह में वापस भिजवाएगा।
(4) वह समय, जिसके दौरान किशोर या बालक इस धारा के अधीन अनुदत्त अनुज्ञा के अनुसरण में संबद्ध गृह से अनुपस्थित रहता है, उस समय का हिस्सा समझा जाएगा जिसके दौरान वह विशेष गृह में रखे जाने का दायी हो ;परन्तु यदि किशोर अनुज्ञा के प्रतिसंहत या समपहृत हो जाने पर जब विशेष गृह को वापस जाने में असफल रहता है तो वह समय जो ऐसे वापस जाने में उसकी असफलता के पश्चात् व्यतीत हो उस समय की संगणना में, जिसमें वह संस्था में रखे जाने का दायी हो, अपवर्जित किया जाएगा।
(1) वह सक्षम प्राधिकारी, जो किशोर या बालक को बालगृह में या विशेषगृह में भेजने या योग्य व्यक्ति या योग्य संस्था की देखरेख में रखने के लिए आदेश करता है, माता-पिता या किशोर या बालक के भरण पोषण के दायी अन्य व्यक्ति को आय के अनुसार,यदि वह ऐसा करने में समर्थ है, उसके भरण पोषण के लिए विहित रीति से अभिदाय करने के लिए आदेश कर सकेगा ।
(2) सक्षम प्राधिकारी, यदि आवश्यक हो, गरीब माता-पिता या संरक्षक को, गृह के अधीक्षक या परियोजना प्रबन्धक द्वारा किशोर या माता-पिता या संरक्षक या दोनों के गृह से साधारण निवास के स्थान तक की यात्रा में किए खचों को, जो विहित किए जाएं,किशोर को भेजे जाने के समय संदाय करने के लिए निदेश दे सकता है।
(1) राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी, इस अधिनियम के अधीन वर्णित किशोर या बालक के कल्याण और पुनर्वास के लिए ऐसे नाम से जो वह ठीक समझे, एक निधि का सृजन कर सकेगा।
(2) निधि में ऐसे स्वैच्छिक संदान, अभिदाय या अभिदान जमा किए जाएंगे जो किसी व्यष्टि या संगठन द्वारा किए जाएं।
(3) उपधारा (1) के अधीन सृजित निधि का प्रशासन राज्य सलाहकार बोर्ड द्वारा ऐसी रीति से और ऐसे प्रयोजनों के लिए जो विहित किए जाएं, किया जाएगा।
(1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, उस सरकार को, गृहों की स्थापना और अनुरक्षण, साधनों को जुटाने, देखरेख और संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालक और विधि का उल्लंघन करने वाले किशोर की शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास की सुविधाओं की व्यवस्था करने और संबंधित विभिन्न शासकीय और अशासकीय अभिकरणों में समन्वयन से संबंधित विषयों पर सलाह देने के लिए, यथास्थिति, केन्द्रीय या राज्य सलाहकार बोर्ड का गठन कर सकेगी।
(2) केन्द्रीय या राज्य सलाहकार बोर्ड, ऐसे व्यक्तियों से जिन्हें, यथास्थिति, केन्द्रीय या राज्य सरकार ठीक समझे, मिलकर बनेगा और उसमें प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, बाल कल्याण के क्षेत्र में स्वैच्छिक संगठन और निगमित सेक्टर के प्रतिनिधि, शिक्षाविद्, चिकित्सा वृत्तिकों तथा राज्य सरकार के संबद्ध विभाग के प्रतिनिधि होंगे।
(3) इस अधिनियम की धारा 35 के अधीन गठित जिला या नगर स्तरीय निरीक्षण समिति भी जिला या नगर सलाहकार बोडों के रूप में कार्य करेगी ।
प्रत्येक राज्य सरकार, इस अधिनियम के कार्यान्वयन को, जिसके अंतर्गत गृहों की स्थापना और उनका अनुरक्षण, इन बालकों के संबंध में समक्ष प्राधिकारियों की अधिसूचना और उनका पुनर्वास तथा संबद्ध विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी अभिकरणों से समन्वय करना भी है, सुनिश्चित करने की दृष्टि से देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों और विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों से संबंधित मामलों पर विचार करने के लिए राज्य के लिए बालक संरक्षण एकक और प्रत्येक जिले के लिए ऐसे एककों का गठन करेगी, जिसमें ऐसी अधिकारी और अन्य कर्मचारी होंगे, जो उस राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएं।
(1) ऐसे पुलिस अधिकारियों को जो इस अधिनियम के अधीन बहुधा या आत्यंतिक रूप से किशोर या प्राथमिक रूप से किशोर अपराध के निवारण या किशोरों या बालकों से निपटने में लगे हुए हैं, अपने कृत्यों को अधिक प्रभावकारी रूप से करने के लिए समर्थ बनाने की दृष्टि से उन्हें विशेषतया अनुदेश और प्रशिक्षण दिया जाएगा।
(2) प्रत्येक पुलिस थाने में कम से कम ऐसे एक अधिकारी को जो अभिरूचि और समुचित प्रशिक्षण और स्थितिज्ञान रखता हो किशोर या बाल कल्याण अधिकारी के रूप में पदाभिहित किया जाएगा जो पुलिस के समन्वय से किशोर या बालक को संभालेगा।
(3) विशेष किशोर पुलिस एकक जिसके किशोर या बालकों के संबंध में कार्यवाही करने के लिए ऊपर उल्लिखित सभी पदाभिहित पुलिस अधिकारी सदस्य होंगे, प्रत्येक जिले या नगर में किशोर और बालकों के साथ पुलिस व्यवहार को समन्वित करने और उत्कृष्ट करने के लिए सृजित किए जा सकेंगे।
किसी भी क्षेत्र में जहां यह अधिनियम प्रवृत्त किया जाता है, राज्य सरकार या स्थानीय निकाय (यह निदेश देगा) कि कोई विधि का उल्लंघन करने वाला किशोर जो इस अधिनियम के प्रारंभ पर कारावास का दंडादेश भोग रहा है, ऐसा दंडादेश भोगने की बजाय उस दंडादेश की अवशिष्ट कालावधि के लिए विशेष गृह को भेज दिया जाएगा या ऐसी संस्था में ऐसी रीति से रखा जाएगा जिसे राज्य सरकार या स्थानीय निकाय उचित समझे और इस अधिनियम के उपबंध किशोर को ऐसे लागू होंगे मानो उसे बोर्ड द्वारा, यथास्थिति, ऐसे विशेष गृह या संस्था को भेजने का आदेश दिया गया हो या इस अधिनियम की धारा 16 की उपधारा (2) के अधीन संरक्षित देखरेख में रखने का आदेश दिया हो ;परंतु, यथास्थिति, राज्य सरकार या बोर्ड किसी ऐसे पर्याप्त और विशेष कारण से जो लेखबद्ध किया जाए, ऐसे कारावास का दंडादेश भोग रहे विधि का उल्लंघन करने वाले ऐसे किशोर के मामले का जो इस अधिनियम के प्रारंभ पर या उससे पूर्व किशोर नहीं रहा है पुनर्विलोकन कर सकेगा और ऐसे किशोर के हित में समुचित आदेश पारित कर सकेगा।
ऐसे सभी मामलों में जिनमें इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख को विधि का उल्लघंन करने वाला किशोर किसी भी प्रक्रम पर कारावास का कोई दंडादेश भोग रहा है, किशोरावस्था के विवाद्यक सहित उसका मामला इस अधिनियम में अधिनियम की धार 2 के खंड (ठ) में अंतर्विष्ट और अन्य उपबंधों तथा उसके अधीन बनाए गए नियमों के निबंधनानुसार इस तथ्य के होते हुए भी कि वह ऐसी तारीख को या उससे पूर्व किशोर नहीं रहा है विनिश्चित किया गया माना जाएगा और तद्नुसार वह दंडादेश की शेष अवधि के लिए, यथास्थिति, विशेष गृह या उपयुक्त संस्था में भेजा जाएगा किन्तु ऐसा दंडादेश किसी भी दशा में इस अधिनियम की धारा 15 में उपबंधित अधिकतम अवधि से अधिक का नहीं होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 33 के उपबंध, इस अधिनियम के अधीन लिए गए बंधपत्रों को यावत्शक्य लागू होंगे।
राज्य सरकार, साधारण आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि, इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा प्रयोक्तव्य कोई शक्ति उन परिस्थितियों में और ऐसी शतों के अधीन, यदि कोई हो, जो आदेश में विहित की जाएं, उस सरकार या स्थानीय प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी अधिकारी द्वारा भी प्रयोक्तव्य होंगी।
इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों या किए गए आदेश के अनुसरण में सद्धावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के बारे में कोई वाद या विधिक कार्यवाही राज्य सरकार या गृह चलाने वाले किसी स्वैच्छिक संगठन या इस अधिनियम के अनुसरण में नियुक्त किसी अधिकारी या कर्मचारिवृन्द के विरुद्ध नहीं की जाएगी।
(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी ;परंतु केन्द्रीय सरकार, उन सभी या किन्हीं विषयों के संबंध में जिनकी बाबत राज्य सरकार, इस धारा के अधीन नियम बना सकेगी, आदर्श नियम बना सकेगी और जहां ऐसे किसी विषय के संबंध में ऐसे आदर्श नियम बनाए गए हैं, वहां वे राज्य सरकार को लागू होंगे जब तक कि उस विषय के संबंध में राज्य सरकार द्वारा नियम नहीं बना दिए जाते और कोई ऐसे नियम बनाए जाते समय जहां तक व्यवहार्य हो वे ऐसे आदर्श नियम के अनुरूप होंगे।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी विषयों या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्
(i) बोर्ड के सदस्यों की पदावधि और वह रीति जिसमें ऐसा सदस्य धारा 4 की उपधारा (4) के अधीन पद त्याग सकेगाः
(ii) बोर्ड के अधिवेशनों का समय और धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन इसके अधिवेशन में कारबार के संव्यवहार की बाबत प्रक्रिया के नियम;
(iii) संप्रेक्षण गृहों का प्रबंध, जिसके अंतर्गत उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के मानक और विभिन्न किस्में भी आती हैं तथा वे परिस्थितियां जिनमें और वह रीति जिसमें संप्रेक्षणगृह का प्रमाणपत्र अनुदत्त किया जा सकेगा या वापस लिया जा सकेगा और ऐसे अन्य विषय जो धारा 8 में निर्दिष्ट हैं;
(iv) विशेष गृहों का प्रबंध, जिसके अंतर्गत उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के मानक और विभिन्न किस्में भी आती हैं तथा वे परिस्थितियां जिनमें और वह रीति जिसमें विशेषगृह का प्रमाणपत्र अनुदत्त किया जा सकेगा या वापस लिया जा सकेगा और ऐसे अन्य विषय जो धारा 9 में निर्दिष्ट हैं;
(v) वे व्यक्ति जिनके द्वारा विधि का उल्लंघन करने वाला कोई किशोर बोर्ड के समक्ष पेश किया जा सकेगा और ऐसे किशोर को धारा 10 की उपधारा (2) के अधीन किसी संप्रेक्षणगृह में भेजने की रीति;
(vi) धारा 19 के अधीन किशोर की दोषसिद्धि से लगी हुई उसकी निरहता को हटाने से संबंधित विषय;
(vi) अध्यक्ष और सदस्यों की अहताएं तथा पदावधि जिसके लिए उन्हें धारा 29 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त किया जा सकेगा;
(viii) समिति के अधिवेशनों का समय और धारा 30 की उपधारा (1) के अधीन इसके अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार की बाबत प्रक्रिया के नियम;
(ix) पुलिस को और समिति को रिपोर्ट करने की रीति तथा बालक को, धारा 32 की उपधारा (2) के अधीन जांच के लंबित रहते बालगृहों को भेजने और सौंपने की रीति;
(x) बालगृहों का प्रबंध जिसके अंतर्गत उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के मानक और उनकी प्रकृति और वह रीति जिसमें बालगृह का प्रमाणपत्र, या किसी स्वैच्छिक संगठन को मान्यता, धारा 34 की उपधारा (2)के अधीन अनुदत्त की जा सकेगी या वापस ली जा सकेगी और उपधारा (3) के अधीन संस्थाओं के रजिस्ट्रीकरण की रीति;
(xi) बालगृहों के लिए निरीक्षण समितियों की नियुक्ति, उनकी अवधि और वे प्रयोजन जिनके लिए निरीक्षण समितियां नियुक्त की जा सकेंगी तथा ऐसे अन्य विषय जो धारा 35 में निर्दिष्ट हैं;
(xii) धारा 37 की उपधारा (3) के अधीन आश्रय गृहों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधाएं;
(xii क) धारा 41 की उपधारा (2) के अधीन दत्तक ग्रहण में पुनर्वास तंत्र का प्रत्यावर्तित किया जाना; उपधारा (3) के अधीन मार्गदर्शक सिद्धांतों की अधिसूचना और उपधारा (4) के अधीन विशेषज्ञ दत्तक ग्रहण अभिकरणों को मान्यता की रीति
(xiii) धारा 42 की उपधारा (3) के अधीन बालकों के पोषण देखरेख कार्यक्रम की स्कीम को कार्यान्वित करना;
(xiv) धारा 43 उपधारा (2) के अधीन बालकों के प्रयोजन की विभिन्न स्कीमों को कार्यान्वित करना;
(XV) धारा 44 के अधीन पश्चात्वर्ती देखरेख संगठन से संबंधित विषय;
(Xvi) धारा 45 के अधीन बालक के पुनर्वास और समाज में पुन; मिलाने के लिए विभिन्न अभिकरणों के बीच प्रभावी संबंध सुनिश्चित करना;
(xvi) वे प्रयोजन और रीति जिनमें निधि को, धारा 61 की उपधारा (3) के अधीन प्रशासित किया जाएगा;
(xviii) कोई अन्य विषय जो विहित किए जाने के लिए अपेक्षित है या किया जाए।
(3) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् यह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(4) राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र उस राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा।
(1) किशोर न्याय अधिनियम, 1986 (1986 का 53) इसके द्वारा निरसित किया जाता है।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी, उक्त अधिनियम के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन की गई समझी जाएगी।
(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, ऐसे आदेश द्वारा, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो, उस कठिनाई को दूर कर सकेगी ; परन्तु ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा।
(2) तथापि, इस धारा के अधीन किया गया कोई आदेश किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
स्रोत: विधि और न्याय मंत्रालय, भारत सरकारअंतिम बार संशोधित : 2/23/2023
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