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राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018

प्रस्तावना

1. डिजिटल अवसंरचना और डिजिटल सेवाएं उत्तरोत्तर रूप से किसी देश की उन्नति और संपन्नता के प्रमुख सामर्थ्य और निर्धारक के रूप में उभर रही हैं। दूरसंचार और साफ्टवेयर दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय रूप से उन्नत क्षमताओं से युक्त भारत अधिकांश देशों की अपेक्षा डिजिटल सेवाओं से वंचित और डिजिटल सेवाओं की कम पहंच वाले बाजार तक पहुंच बनाने के साथ-साथ उत्पादकता के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए नई डिजिटल प्रौद्योगिकियों और प्लेटफार्मों का उपयोग करके लाभ प्रदान करने के लिए तैयार है।

2. भारतीय नीति निर्धारकों को यह सुनिश्चित करना था कि नई प्रौद्योगिकी का लाभ सभी लोगों तक समान रूप से और किफायती दरों पर पहुंचे और इस क्षेत्र की मौजूदा तथा आने वाले खतरों से लोगों को सुरक्षित रखा जा सके। भारत को विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसकी संचार अवसंरचना समूची जनसंख्या को सपोर्ट करे क्योंकि जनसंख्या की जनसांख्यिकी प्रोफाइल साक्षरता, आर्थिक स्थिति और शहरीकरण जैसी विभिन्न सूचियों में बहुत व्यापक रूप से फैली हुई है। तदनुसार, इस नीति का लक्ष्य राजस्व आय को अधिकतम करने की अपेक्षा सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करना है।

3. डिजिटल भारत की अवधारणा पहले ही अनावृत हो चुकी है। भारत की डिजिटल प्रोफाइल और डिजिटल पहुंच विश्व में बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। एक बिलियन से अधिक मोबाइल फोन और डिजिटल आईडेंटिटी तथा आधे बिलियन इंटरनेट प्रयोक्ताओं के साथ भारत का मोबाइल डाटा उपभोग पहले ही विश्व में सबसे अधिक हो चुका है। 200 मिलियन से अधिक भारतीय नियमित रूप से सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं और केवल पिछले वर्ष में ही 200 मिलियन से अधिक लोगों ने मोबाइल बैंकिंग और डिजिटल भुगतान की सुविधा प्राप्त की है। डिजिटाइजेशन और डिजिटलीकरण की वर्तमान गति के आधार पर यह अनुमान है कि वर्ष 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था एक ट्रिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच जाएगी। भारत में मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया प्लेटफार्म में तीव्र और अभूतपूर्व वृद्धि, डिजिटल भुगतान की तीव्र वृद्धि, डाटा उपभोग और इसके सृजन से यह संकेत प्राप्त होता है कि डाटा अर्थव्यवस्था और डिजिटल प्रौद्योगिकी तथा सेवाएं अब कुछ विशेष लोगों का परमाधिकार नही रह गई हैं अपितु वास्तव में ये एक बिलियन से अधिक लोगों के लिए अभिगम और सशक्तिकरण के व्यापक यंत्र के रूप विकसित हो चुकी हैं।

4. इस दस्तावेज का लक्ष्य एक नीति और सिद्धांत फ्रेमवर्क तैयार करना है जो भारत की दीर्घाविधिक प्रतिस्पर्धा को सुदृढ़ बनाने के लिए एक व्यावसायिक प्रतिस्पर्धी दूरसंचार बाजार तैयार करने में सक्षम बनाएगा और हमारे महत्वाकांक्षी राष्ट्र की आवश्यकता को पूरा करेगा। व्यापक अनुमान लगाया गया है कि किसी देश में ब्राडबैंड की पहंच में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने पर उसके जीडीपी में लगभग 1 प्रतिशत की वृद्धि होती है। तथापि, भारत में किए गए अध्ययन से अनुमान है कि अर्थव्यवस्था को होने वाले उत्पादकता और दक्षता के संदर्भ में होने वाले लाभों में वृद्धि होने के कारण देश पर इसका प्रभाव महत्वपूर्ण रूप से और अधिक हो सकता है।

5. वर्तमान समय में भारत में लगभग 1.5 मिलियन कि.मी. ओएफसी है और एक तिहाई से कम टावर फाइबर से जुड़े हुए हैं। देश भर में मोबाइल और ब्राडबैंड कनेक्टिविटी का विस्तार करने के लिए यह आवश्यक है कि सेटेलाइट संचार सहित 5जी और अन्य अग्रणी नेटवर्क अभिगम प्रौद्योगिकियों जैसी अगली पीढ़ी नेटवर्क से उत्पन्न अवसरों की तलाश की जाए और इनका उपयोग किया जाए। भूमि पर और भूमिगत दोनो अवसंरचनाओं के लिए फाइबर बिछाने और मार्गाधिकार अनुमोदन से जुड़ी फिक्स अवसंरचना का विकास करने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक होगा क्योंकि ये अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों की आधारशिला तैयार करेंगे।

6. हांलाकि भारत ने ‘भारतनेट' नामक अपनी प्रमुख पहल के माध्यम ब्राडबैंड द्वारा अपने 600000 गांवों को कनेक्ट करने पर लक्षित विश्व की सबसे बड़ी ग्रामीण ऑप्टिक फाइबर रोल आऊट परियोजना शुरू की है; इसलिए 5जी, द क्लाउड, आईओटी और डाटा एनालिस्ट सहित क्रांतिकारी प्रौद्योगिकियों का समूह के साथ ग्रोइंग स्टार्ट-अप समुदाय, अपने डिजिटल कार्य को गति देने और इसे दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने के बीच सामंजस्य स्थापित करने से अवसरों के नए द्वार खुलेंगें। चूंकि संसार चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार हो रहा है इसलिए भारत और इसकी अर्थव्यवस्था के प्रत्येक एकल क्षेत्र को इस अवसर को अंगीकार करने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।

7. एक मजबूत, प्रतिस्पर्धा परिदृश्य जो नई संचार प्रौद्योगिकियों, सेवाओं और अनुप्रयोगों की उपलब्धता को सुनिश्चित करता हो, जीडीपी, उत्पादकता की वृद्धि और अर्थव्यवस्था में नई नौकरियों के सृजन के लिए जरूरी है। उपभोक्ताओं के लिए प्रतिस्पर्धा नवाचार, नई प्रौद्योगिकियों तक पहुंच, बेहतर गुणवत्ता, वहनीय कीमत और व्यापक विकल्प की ओर अग्रसर करती है। भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी दरों पर सेवाओं के व्यापक श्रेणी की आवश्यकता है और वे इसके लिए पात्र भी हैं। नीति में संचार और डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और इसकी रक्षा करने की संकल्पना है।

8. विनियमों में सुधार और सतत रूप से चलने वाले संरचनागत सुधार एक ठोस नीतिगत पहल के स्तंभ हैं। नियामकीय सुधार एकबारगी प्रयास नही है अपितु यह एक गतिशील, दीर्घावधिक और बहुआयामी प्रक्रिया है। इस नीति में भारत के नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु निवेश को आकर्षित करने और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए नियामकीय संरचना मे सतत सुधार के महत्व को स्वीकार किया गया है। इस क्षेत्र की पूंजी-उन्मुख प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इस नीति में दीर्घावधिक, उच्च गुणवत्तायुक्त और धारणीय निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए इस नीति में यह सुनिश्चित करने के लिए नियामकीय सुधार करने का लक्ष्य भी रखा गया है ताकि नियामकीय संरचना और प्रक्रियाएं प्रासंगिक, पारदर्शी, जवाबदेह और भविष्योन्मुख हों। इसके अलावा, इसनीति में नियामकीय बाधाओं को दूर करने और नियामकीय बोझ को कम करने का लक्ष्य भी रखा गया है क्योंकि ये निवेश, नवाचार और उपभोक्ता के हितों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस नीति में क्षेत्र की संस्थागत व्यवस्था और विधाई संरचना को सुदृढ़ करने के उपाय भी किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत की अर्थव्यवस्था और नागरिक अपनी डिजिटल संचार क्षेत्र की पूरी क्षमता का उपयोग कर सके।

9. यदि उभरती डाटा अर्थव्यवस्था में भारत के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक हित को प्रभावी ढंग से सुरक्षित करना है तो वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भागीदारी करते समय डाटा निजता, विकल्प और अपने नागरिकों की सुरक्षा सहित डिजिटल संप्रभुता को सर्वोच्च वरीयता दी जानी चाहिए।

10. डिजिटल संचार संबंधी राष्ट्रीय नीति का उद्देश्य देश और इसके नागरिकों को भविष्य के लिए तैयार करना है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह अपेक्षित होगा कि प्रमुख स्टेकधारक नामत: केंद्र, राज्य, स्थानीय सरकार और एजेंसियां, दूरसंचार सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता, अवसंरचना प्रदाता, हैंडसेट और उपस्कर विनिर्माता, शिक्षाविद समुदाय, इनोवेटर और स्टार्ट-अप को एक साथ आकर एक गठबधंन बनाकर इस राष्ट्रीय नीति और इसके मिशन को पूरा करना है।

11. डिजिटल संचार इकोसिस्टम में हुए बदलावों और प्रगति को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय दूरसंचार नीति को इसके बाद राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति कहा जाएगा। नीति को प्रभावी रूप से कार्यान्वित करने और इसकी प्रभावी रूप से निगरानी सुनिश्चित करने के लिए यह प्रस्ताव है कि दूरसंचार आयोग को डिजिटल संचार आयोग के रूप में पुन: डिजाइन किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र की उच्च आकांक्षाओं को निर्धारित समय-सीमा के भीतर प्राप्त किया जा सके।

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 का उद्देश्य डिजिटल सशक्तीकरण एवं भारत के लोगों की खुशहाली के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए डिजिटल संचार नेटवर्क की परिवर्तनकारी शक्ति को उजागर करना और इस प्रयोजनार्थ उद्देश्यों के समुच्चय, पहलों, कार्यनीतियों एवं अभीष्ट नीतिगत परिणामों को दर्शाने का प्रयास करना हैं।

राष्ट्रीय संचार नीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक निम्नलिखित कार्यनीतिक प्रयोजनों का अनुपालन करना है:-

1. सभी के लिए ब्रॉडबैंड का प्रावधान करना

2. डिजिटल संचार क्षेत्र में 4 मिलियन अतिरिक्त रोजगार सृजित करना

3. भारत की जीडीपी में डिजिटल संचार क्षेत्र के योगदान कोवर्ष 2017 में 6 प्रतिशत की तुलना में इसे बढ़ाकर 8 प्रतिशत करना

4. आईटीयू की आईसीटी विकास सूची में भारत का स्थान वर्ष 2017 में 134वां था, इसे सर्वोच्च 50 देशों में लाना

5. वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत के योगदान को बढ़ाना

6. डिजिटल संप्रभुता सुनिश्चित करना

विज़न

सर्वव्यापी, लचीली, सुरक्षित, अभिगम्य एवं किफायती डिजिटलीकृत संचार अवसंरचना तथा सेवाओं की स्थापना करके नागरिकों और उद्यमों की सूचना एवं संचार संबंधी जरुरतों की पूर्तिकरना एवं इस प्रक्रिया में भारत को डिजिटल रूप से सशक्त अर्थव्यवस्था तथा समाज के रूप में परिवर्तित करने में सहायता करना।

मिशन

वर्ष 2022 तक इन प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 में निम्नलिखित तीन मिशनों की परिकल्पना की गई है:-

1. भारत को जोड़ना: मजबूत डिजिटल संचार अवसंरचना का निर्माण करना सेवा गुणवत्ता और पर्यावरण संबंधी स्थायित्व सुनिश्चित करते हुए सामाजिक- आर्थिक विकास हेतु ब्रॉडबैंड को सभी के लिए तंत्र के रुप में विकसित करना।

2. भारत को आगे बढ़ाना: अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों एवं सेवाओं को निवेशों, नवपरिवर्तनों और आईपीआर सृजन के माध्यम से सक्षम बनाना। निवेशों, नवपरिवर्तनों एवं आईपीआर को बढ़ावा देते हए 5जी, एआई, आईओटी, क्लाउड एवं बिग डाटा सहित उभरती डिजिटल प्रौद्योगिकी की शक्ति के उपयोग, ताकि भविष्य में तैयार उत्पादों एवं सेवाओं के प्रावधान किया जा सके और चौथी औद्योगिक क्रांति को उत्प्रेरित किया जा सके।

3. भारत को सुरक्षित करना: डिजिटल संचार की संप्रभुता, बचाव एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करना। डाटा को महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन के रुप में स्वीकृति देते हुए वैयाक्तिक स्वायत्तता एवं विकल्प, डाटा स्वामित्व, निजता और सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देने के साथ नागरिकों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ध्यान देने के साथ नागरिकों के हितों की सुरक्षा करना तथा भारत की डिजिटल संप्रभुता को सुरक्षित रखना।

भारत को जोड़ना: मजबूत डिजिटल संचार अवसंरचना का निर्माण करना

वर्ष 2022 के लक्ष्य:

i. प्रत्येक नागरिक को 50 एमबीपीएस पर सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड कवरेज उपलब्ध कराना।

ii. भारत की सभी ग्राम पंचायतों का वर्ष 2020 तक 1 जीबीपीएस और 2022 तक 10 जीबीपीएस कनेक्टिविटी प्रदान करना।

iii. मांग पर सभी शैक्षणिक संस्थानों सहित सभी मुख्य विकास संस्थानों को 100 एमबीपीएस ब्रॉडबैंड समर्थित बनाना।

iv. 50 प्रतिशत घरों के लिए स्थिर लाइन ब्रॉडबैंड की पहुंच सक्षम करना।

v. वर्ष 2020 तक 55 और वर्ष 2022 तक 65 विशिष्ट मोबाइल उपभोक्ता घनत्व का लक्ष्य प्राप्त करना।

vi. वर्ष 2020 तक 5 मिलियन और वर्ष 2022 तक 10 मिलियन तक सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट का प्रविस्तारण करना।

vii. कवर न किए गए सभी क्षेत्रों के लिए कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना।

कार्यनीतियां:

1.1 सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड की पहुंच का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए नेशनल ब्रॉडबैंड मिशन-राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड अभियान स्थापित करना।

(क) निम्नलिखित ब्रॉडबैंड पहलों के कार्यान्वयन हेतु यूएसओएफ तथा सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से वित्त पोषणः

i. भारत नेट- ग्राम पंचायतों को 1 जीबीपीएस तक उपलब्ध कराना जिसे 10 जीबीपीएस तक अपग्रेड किया जा सकता है।

ii. ग्राम नेट- सभी मुख्य ग्रामीण विकास संस्थानों को 10 एमबीपीएस जिसे 100 एमबीपीएस तक अपग्रेड किया जा सकता है, से कनेक्ट करना।

iii. नगर नेट- शहरी क्षेत्रों में 1 मिलियन सार्वजनिक वाई-फाई हॉट स्पॉट स्थापित करना।

iv. जन वाई फाई- ग्रामीण क्षेत्रों में 2 मिलियन वाई फाई हॉट स्पॉट स्थापित करना।

(ख) टियर I, II एवं ।।। शहरों में घरों, उद्यमों और मुख्य विकास संस्थानों तथा ग्राम समूहों तक फाइबर ले जाने के लिए फाइबर फस्र्ट पहल कार्यान्वित करना।

i. दूरसंचार ऑप्टिक फाइबर केबलों को जन उपयोगी सुविधा का दर्जा प्रदान करना।

ii. राज्य, स्थानीय निकायों और निजी क्षेत्रों को शामिल करके सहयोगी माइँलों को बढ़ावा देना क्योंकि यह नगरपालिकाओं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में और राष्ट्रीय राजमार्गों पर डक्ट अवसंरचना का साझा उपयोग करने की व्यवस्था के लिए आवश्यक है।

ii. कम से कम 60 प्रतिशत दूरसंचार टावरों को फाइबर सुविधा से युक्त करने के लिए फाइबर-टू-द-टॉवर कार्यक्रम को सहायता देना ताकि 4जी/5जी सेवा में सेवाओं के अंतरण के कार्य में तेजी आ सके।

iv. कनेक्टिविटी, वहनीयता एवं स्थायित्व में सुधार करने हेतु ब्रॉडकास्टिंग तथा ऊर्जा क्षेत्र की मौजूदा परिसंपत्तियोंका उपयोग करना।

v. सभी नए विकासपरक निर्माणों के लिए फाइबर कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित एवं विकसित करना।

vi. भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के माध्यम से भारत के राष्ट्रीय भवन कोड (एनबीसी) में संशोधन करके सभी वाणिज्यिक, आवासीय और कार्यालय स्थानों पर दूरसंचार संस्थापना तथा संबद्ध केबल बिछाकर एवं इन-बिल्डिंग सोल्यूशन की अपेक्षा को अनिवार्य बनाना।

(ग) निम्नलिखित कार्यों के द्वारा राष्ट्रीय डिजिटल ग्रिड की स्थापना करना:

i. राष्ट्रीय फाइबर प्राधिकरण का गठन करना

ii. शहरों में बनने वाली सभी नई सड़कों एवं राजमार्ग सड़क परियोजनाओं तथा इससे जुड़ी संरचनाओं में सार्वजनिक सेवा डक्ट और सुविधा कॉरीडोर स्थापित करना।

iii. समान मार्गाधिकार, लागत एवं समय-सीमा मानक तथा अनुमोदन संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए केन्द्र, राज्यों तथा स्थानीय निकायों के बीच सहयोगी संस्थागत तंत्र सृजित करना।

iv. ऑपन एक्सेस नेक्स्ट जेनरेशन नेटवर्क के विकास में सहायता करना।

(घ) मोबाइल टॉवर अवसंरचना की स्थापना को सुलभ बनाना:

i. दूरसंचार टावरों के निर्माण हेतु प्रोत्साहन एवं छूट देना

ii. सरकारी परिसरों में दूरसंचार टॉवरों के लिए मार्गाधिकार अनुमति में तेजी लाना।

ii. दूरसंचार टावरों के लिए सौर एवं हरित ऊर्जा के परिनियोजन को बढ़ावा देना और प्रोत्साहित करना।

(इ.) अभिगम शुल्क को तर्कसंगत बनाकर एवं नियामकीय बाधाओं को दूर करके तथा वैश्विक प्रवृति के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय बैंडविड्थ की बेंचमार्किंग करके अंतरराष्ट्रीय केबल लैंडिंग स्टेशन की स्थापना में सहायता देकर अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी में सुधार लाना और अंतरराष्ट्रीय बैंडविड्थ की लागत को कम करना।

(च) अवसंरचना प्रदाताओं (आईपी) के कार्यक्षेत्र की बढ़ाकर सक्रिय अवसंरचना भागीदारी को प्रोत्साहन देना और निष्क्रिय एवं सक्रिय अवसंरचना की समान साझेदारी को बढ़ावा देना।

(छ) सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार तथा प्रसारण क्षेत्रों के अवसंरचना अभिसरण को सक्षम बनाना i. संबंधित मंत्रालयों के समन्वय से अभिसरणके प्रयोजनार्थ भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 तथा अन्य संबंधित अधिनियमों में संशोधन करना।

ii. प्रसारण एवं ब्रॉडबैंड प्रौद्योगिकियों के लिए एकीकृत नीति फ्रेमवर्क एवं स्पैक्ट्रम प्रबंधन व्यवस्था स्थापित करना।

iii. अभिसरण संबंधी लाभ उठाने के लिए विधिक, लाइसेंसीकृत और विनियामक फ्रेमवर्क पुनर्गठित करना।

iv. आईपी-पीएसटीएन स्विचिंग जैसे क्षेत्रों में अभिसरण के लाभों को अनुमति देना।

(ज) निवेशों को आकृष्ट करने एवं आरओडब्ल्यू संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में एक ब्रॉडबैंड तैयारी सूचकांक का निर्माण करना।

(झ) त्वरित अवमूल्यन तथा कर प्रोत्साहनों सहित राजकोषकीय प्रोत्साहनों के माध्यम से ब्रॉडबैंडों अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा देना, तथा फिक्स्ड लाइन ब्रॉडबैंडों को प्रोत्साहित करना।

(त्र) पुन: बिक्री तथा वर्चुअल नेटवर्क आपरेटरों (वीएनओ) के जरिए सहित अवसंरचना सृजन एवं अभिगम के नवाचारी उपायों की प्रोत्साहित करना।

(ट) नवाचारी तथा वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों के जरिए ब्रॉडबैंडों कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित करना।

1.2 भारत के सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने, उपलब्धता तथा उपयोग को निम्न द्वारा इष्टमीकृत करने के लिए मुख्य प्राकृतिक संसाधन के रूप में स्पेक्ट्रम की पहचान करना :

(क) स्पेक्ट्रम निर्धारण और आवंटन के लिए एक पारदर्शी, सामान्य और उचित नीति तैयार करना

(ख) नवीन ब्रॉडबैंड युग के लिए तैयारी रखने के लिए पर्याप्त स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराना:

i. 5जी नेटवर्क की समय पर शुरूआत तथा विकास के लिए एक्सेस एवं बैकहॉल खंडों के लिए नए स्पेक्ट्रम बैंडों की पहचान करना तथा उपलब्ध कराना।

ii. अगली पीढ़ी की अभिगम संबंधी प्रौद्योगिकियों की तैनाती के लिए आवश्यक सुसंगत एवं निकटस्थ स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराना।

iii. स्पेक्ट्रम शेयरिंग, लीजिंग एवं ट्रेड व्यवस्था को और अधिक उदार बनाना।

iv. कुशल तथा लाभकारी इस्तेमाल के लिए उपयोग किए गए स्पेक्ट्रम के साथ-साथ कम उपयोग किए गए/कम उपयुक्त स्पेक्ट्रम को मुक्त करने तथा इसे सौंपने के लिए सरकारी विभागों के साथ समन्वय करना।

v. डिजिटल संचार के लिए सतत एवं वहनीय अभिगम सुनिश्चित करने के लिए स्पेक्ट्रम का इष्टतम मूल्य निर्धारण

vi. कार्य क्षमता को प्रोत्साहित करने के लिए डब्ल्यूपीसी तथा एसएसीएफए जैसी विभिन्न एजेंसियों से अनुमति प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाना।

vii.ब्रॉडबैंडों के प्रसार के लिए लाइट टच लाइसेंस देने/स्पेक्ट्रम के लाइसेंस को वापस लेने को सक्षम बनाना

  1. स्पेक्ट्रम के सह-उपयोग/वितीयक उपयोग को बढ़ावा देना

ix. नवाचार तथा सक्षम स्पेक्ट्रम प्रबंधन को बढ़ाने के लिए नए बैंडों की पहचान, इस्तेमाल तथा सक्षमता उपायों की पहचान को सुकर बनाने के लिए विशेषज्ञों, उद्योग जगत एवं शिक्षाविदों वाली स्पेक्ट्रम सलाहकार टीम (एसएटी) गठित करना।

(ग) सक्षम स्पेक्ट्रम उपयोग एवं प्रबंधन:

i. हस्तक्षेप-मुक्त स्पेक्ट्रम के प्रबंधन एवं नई प्रौद्योगिकियों व एकीकरण को बढ़ावा देकर स्पेक्ट्रम के इष्टतम उपयोग को सुनिश्चित करना

ii. वाणिज्यिक तथा सरकारी दोनों ही संगठनों को आवंटित स्पेक्ट्रम की सुव्यवस्थित लेखापरीक्षा के द्वारा स्पेक्ट्रम के दक्षतापूर्ण उपयोग की निगरानी करना।

iii. आवंटन/हस्तक्षेप प्रबंधन के लिए गतिशील डाटा बेस प्रणाली तैनात करना।

iv. वायुयान एवं जलयान की संचार आवश्यकताओं सहित संचार जरूरतों के लिए वार्षिक स्पेक्ट्रम उपयोग तथा उपलब्धता संबंधी खाका प्रकाशित करना

(घ) निम्नलिखित उपायों के माध्यम से भारत में अगली पीढ़ी की अभिगम प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देनाः

i. लागत इष्टतमीकरण, सेवा तत्परता तथा नए राजस्व स्रोतों को सुनिश्चित करने के लिए अगली पीढी की अभिगम प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिए लाइसेंसी सेवा प्रदाताओं को प्रोत्साहित करना

ii. अगली पीढ़ी नेटवर्क के लिए भारत की रणनीति को मध्य में रखकर विशेष कर 3 गीगाहर्ट्ज

से 43 गीगाहर्टज तक के मध्य में मिड-बैंड स्पेक्ट्रम की पहचान करना

iii. श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय परिपाटी की तर्ज पर उच्च क्षमता वाले बैकहॉल ई-बैंड (71-76/81-86 गीगीहर्टज) तथा वी-बैंड (57-64 मेगाहर्ट्ज) स्पेक्ट्रम के कारगर उपयोग को प्रोत्साहित करना।

iv. बैकहॉल कनेक्टिविटी के लिए माइक्रोवेब लिंकों के लिए वार्षिक रॉयल्टी प्रभारों को सुसंगत बनाना

1.3 भारत में उपग्रह संचार प्रौद्योगिकियों को सुदृढ़ बनाना

(क) उपग्रह संचार के लिए विनियामक व्यवस्था की समीक्षा, जिनमें शामिल हैं:

i. स्पीड बैरियर, बैंड आवंटन आदि जैसे उपग्रह संचार के उपयोग को सीमित करने वाले लाइसेंस तथा विनियामक शर्तों को संशोधित करना

ii. त्वरित प्रसार सुनिश्चित करने के लिए वीएसएटी ऑपरेटरों के लिए अनुसरण संबंधी जरूरतों को सरल बनाना

iii. एकीकृत लाइसेंसिंग व्यवस्था के माध्यम से हाई थूपुट सेटेलाइट संचार प्रणाली के प्रभावी इस्तेमाल के लिए अनुमत्य सेवाओं के क्षेत्र का विस्तार करना

(ख) निम्नलिखित उपायों के माध्यम से भारत में उपग्रह संचार प्रौद्योगिकियों को इष्टतमीकृत करना:

i. अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों तथा देश की सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक लचीले, प्रौदयोगिकीय रूप से तटस्थ और प्रतिस्पर्धी कार्यक्षेत्र तैयार करने के लिए अंतरिक्ष विभाग के सहयोग से संचार सेवाओं के लिए सेटकॉम नीति की समीक्षा

ii. उपग्रह आधारित वाणिज्यिक संचार सेवाओं के लिए नए स्पेक्ट्रम बैंडों (जैसे Ka बैंड) को उपलब्ध कराना।

iii. उपग्रह ट्रांसपोंडर, स्पेक्ट्रम प्रभारों तथा डब्ल्यूपीसी को देय प्रभारों को सुसंगत बनाना

iv. पणधारियों के परामर्श से उपग्रह संचार के लिए प्रयुक्त विभिन्न उपग्रह बैंडों तक बैंडविड्थ मांगों का आकलन करना

v. स्पेक्ट्रम प्रबंधन, भारत में उपग्रह संचार को शामिल करते हुए, के मुद्दों पर आईटीयू के साथ अंतर्राष्ट्रीय संबद्धता को प्राथमिकता देना

(ग) निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देते हुए भारत में उपग्रह संचार इकोसिस्टम का विकास करना:

i. कार्य एवं आवंटन, उपग्रह संचार व्यवस्था से संबंधित स्वीकृति एवं अनुमति के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करना

ii. स्थानीय विनिर्माण एवं उपयुक्त नीतियों के माध्यम से उपग्रह संचार संबंधी अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देना

iii. राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संप्रभुता को उचित सम्मान देते हुए प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी को बढ़ावा देना

1.4 निम्नलिखित उपायों के माध्यम से कवर न किए गए क्षेत्रों तथा डिजिटल दृष्टि से समाज के पिछड़े वर्ग के समावेश को सुनिश्चित करना:

(क) सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि (यूएसओएफ) को उपयोग निम्न के लिए करना:

i. पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी क्षेत्रों, एलडब्ल्यूई क्षेत्रों, आकांक्षी जिलों, द्वीपीय तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में कवर न किए गए सभी क्षेत्रों के लिए कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए

ii. हाशिए पर खड़े समुदायों, महिलाओं और दिव्यांगजनों के लिए

iii. दूरस्थ क्षेत्रों के लिए नवाचारी, कारगर तथा मापनीय वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना

iv. सार्वभौमिक सेवा दायित्व को पूरा करने में समर्थ किसी संस्था द्वारा अभिगम का प्रावधान करने में सक्षम बनाने के लिए

(ख) यूएसओएफ के कार्य-क्षेत्र व तौर-तरीकों की समीक्षा करना:

i. शहरी क्षेत्रों में रहने वाले आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों को सार्वभौमिक ब्राडबैंड अभिगम में समर्थ बनाने के साथ-साथ सार्वभौमिक ब्रॉडबैंड अभिगम सुनिश्चित करने के लिए यूएसओएफ की पुनर्रचना करना तथा इसके उद्देश्यों को व्यापक बनाना

ii. कवर न किए गए, दूरस्थ तथा ग्रामीण इलाकों में सेवाओं की प्रभावी शुरूआत सुनिश्चित करने के लिए यूएसओएफ की संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ करना

1.5 ग्राहक संतुष्टि, सेवा की गुणवत्ता और प्रभावी शिकायत निवारण सुनिश्चित करना

(क) निम्न के सहित ग्राहकों के हितों के रक्षा के लिए कारगर संस्थागत तंत्र स्थापित करना

i. दूरसंचार लोकपाल

ii. केंद्रीकृत वेब आधारित शिकायत निवारण प्रणाली

(ख) नागरिकों के कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकों पर ध्यान केंद्रित करना:

i. पर्यावरण तथा सुरक्षा संबंधी मानकों को अपनाने तथा स्व-प्रमाणीकरण का अधिकार देकर भरोसा पैदा करने के लिए व्यापक नीति तैयार करना

ii. अंतर्राष्ट्रीय अनुभव तथा सर्वोत्तम परिपाटियों पर आधारित इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड इमिशन के बारे में जागरूकता सृजित करना

iii. ई-कचरे के खतरों के प्रति जागरूकता फैलाना तथा इस्तेमाल किए जा चुके उपकरण के समुचित निपटान प्रबंधन को बढ़ावा देना

(ग) संचार क्षेत्र में निम्न के सहित नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना:

i. ऊर्जा उपयोग क्षमता को बेहतर बनाने के लिए छोटे सेल वाले इंधन बैटरियों, लिथियम इयॉन बैटरियों या अन्य समान प्रकार की प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना

ii. सरकारी, औद्योगिक तथा शिक्षा क्षेत्र के पणधारियों की सक्रिय भागीदारी से हरित दूरसंचार के अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देना

iii. डिजिटल दूरसंचार प्रौद्योगिकियों के लिए विनिर्माण, उत्पादन तथा ऐसे उपकरणों के आयात पर कर एवं शुल्कों को सुसंसगत बनाना

2. भारत को आगे ले जाना: निवेश, नवाचार, स्वदेशी विनिर्माण तथा आईपीआर सृजन के माध्यम से अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों तथा सेवाओं को समर्थ बनाना

2022 के लक्ष्य:

क. डिजिटल संचार क्षेत्र में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश आकर्षित करना

ख. वैश्विक वैल्यू चेन में भारत के योगदान में वृद्धि करना

ग. डिजिटल संचार के क्षेत्र में नवाचार आधारित शुरूआत अर्थात स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना

घ. भारत में वैश्विक पहचान वाले आईपीआर की शुरूआत

इ. डिजिटल संचार प्रौद्योगिकियों में स्टैंडई इसेंसियल पेटेंट्स (एसईपी) का विकास

च. नये युग के कौशलों के निर्माण के लिए 1 मिलियन जनशक्ति को प्रशिक्षण/पुन: कुशल बनाना

छ. 5 बिलियन कनेक्टिड उपकरणों तक आईओटी पारिस्थितिकी का विस्तार करना

ज. उद्योग 4.0 तक त्वरित लेन-देन

कार्यनीतियां:

नई प्रौद्योगिकियों, सेवाओं, व्यापार मॉडलों तथा प्लेयरों के उभर कर आने से विगत वर्षों में डिजिटल संचार अवसंरचना एवं सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। अत: नई प्रौद्योगिकी की तैनाती को इष्टतमीकृत करने तथा उनका लाभ उठाने केलिए निवेश व नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए मौजूदा लाइसेंसिंग, विनियामक तथा संसाधन आवंटन संबंधी ढॉचे की समीक्षा करना अति आवश्यक है।

2.1 डिजिटल संचार क्षेत्र के लिए निवेश उत्प्रेरित करना:

(क) दूरसंचार अवसंरचना को महत्वपूर्ण तथा अत्यावश्यक अवसंरचना का दर्जा प्रदान करना

i. भारत के विकास के लिए संचार प्रणाली तथा सेवाओं को सड़क, रेल, जलमार्ग, वायुमार्ग आदि जैसे अन्य संपर्क अवसंरचना के समान मानकर तथा इस प्रक्रिया में संचार अवसंरचना के विकास के लिए कम लागत वाले वित्तपोषण को सक्षम बनाना

(ख) निवेश तथा नवाचार को तेज करने तथा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए लाइसेंसिंग तथा विनियमन व्यवस्था को निम्नलिखित उपायों द्वारा सुधारना:

i. लाइसेंस फीस, एसयूसी तथा एजीआर की परिभाषा सहित लेवी और शुल्क की समीक्षा करना तथा सार्वभौमिक सेवा लेवी को तर्कसंगत बनाना

ii. इनपुट लाइन क्रेडिट सिद्धांतों के अनुरूप पास थू प्रभारों को सुसंगत बनाने के लिए इसकी समीक्षा करना ताकि लेवी के दोहरीकरण से बचा जा सके

iii. डिजिटल संचार को प्रोत्साहित करने के लिए फिक्स लाइन राजस्व को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया की समीक्षा करना।

iv. डिजिटल संचार उपकरण, अवसंरचना तथा सेवाओं पर कर एवं लेवी को सुसंगत बनाना

v. विभिन्न लाइसेंसिंग के द्वारा विभिन्न परतों (उदाहरण स्वरूप अवंसरचना नेटवर्क, सेवा तथा एप्लीकेशन लेयर) को खोलने में समर्थ बनाना

vi. वाई-फाई/पब्लिक डाटा आफिस एग्रीगेटर्स और पब्लिक डाटा कार्यालयों के माध्यम से ओपन पब्लिक वाई-फाई अभिगम को बढ़ावा देना

vii. डिजिटल संचार प्रौद्योगिकियों में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए केबल लैंडिंग केंद्रों के आस-पास दूरसंचार समूह के विकास के लिए विभिन्न राजकोषीय तथा गैरराजकोषीय लाभों की शुरूआत करना

(ग) अनुपालन संबंधी दायित्वों को निम्नलिखित उपायों के माध्यम से सरल तथा सुविधाजनक बनाना:

i. श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय परिपाटियों को ध्यान में रखते हुए लाइसेंस तथा विनियामक अपेक्षाओं को कम करना

ii. लाइसेंस देने, अनुमोदन, स्वीकृतियों, अनुमतियों तथा एंड-टू-एंड व्यापक ऑनलाइन प्लेटफार्म विकसित करने के लिए मौजूदा तंत्र तथा प्रक्रियाओं को सरल बनाना

iii. संबंधित प्रशासनिक कार्यालयों द्वारा विभिन्न प्रकार के लाइसेंस, अनुमति तथा स्वीकृति प्रदान करने की समय-सीमा विनिर्दिष्ट करना।

iv. अन्य सेवा प्रदाताओं के लिए परिभाषा, अनुपालन जरूरतों तथा अंतर कनेक्टिविटी सीमाओं के लिए विनियम व शर्तों को बेहतर बनाना

v. अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाने तथा इसकी फास्ट-ट्रैकिंग में सक्षम बनाने हेतु बिलय और अभिग्रहण 2014' के दिशानिर्देशों को पुन: तैयार करना

vi. इज ऑफ डुइंग बिजनेस को सुविधाजनक बनाने के लिए बेतार आयोजना और समन्वय (डब्ल्यूपीसी) स्कंध का पुन: गठन करना

vii. समानता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए शास्ति के प्रावधानों की समीक्षा करना

viii. टॉल फ्री नंबर यूनिसर्वल एक्सेस नंबर तथा डीआईडी नंबरों पर पोर्टेबिलिटी सहित एक राष्ट्र-एक नंबर व्यवस्था को लागू करने के तय नंबर पोर्टेबिलिटी की व्यवस्था बनाना।

ix. कम शक्ति के रेडियो उपकरणों (< 1 वाट) के लिए ईटीए (एक्वियमेंट टाइप एप्रूवल) को सरल बनाना

x. बेतार आयोजना और समन्वय (डब्ल्यूपीसी) स्कंध की आयात लाइसेंसिंग अपेक्षा को सरल बनाना

2.2 उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए व्यापक तथा सुसंगत दृष्टिकोण सुनिश्चित करना:

(क) निम्नलिखित उपायों के माध्यम से नई एवं उभरती प्रौद्योगिकियों को स्थापित करना तथा अपनाना:

i. 5जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग तथा एम2एम जैसी संचार क्षेत्र की उभरती प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने के लिए खाका तैयार करना

ii. श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं को समाहित कर आईओटी/एम2एम/भावी सेवाओं तथा नेटवर्क अवयवों के लिए उपयुक्त सुरक्षा ढांचा सुनिश्चित करने के क्रम में लाइसेंसिंग एवं विनियामक फ्रेमवर्क को सरल बनाना

iii. आईओटी/एम2एम सेवाओं के लिए पर्याप्त लाइसेंसी तथा गैर-लाइसेंसी स्पेक्ट्रम अलग करना iv. उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए ओपन एपीआई के इस्तेमाल को बढ़ावा देना

(ख) ओवर द टॉप सर्विसिज के लिए नीतिगत ढांचा विकसित करके संचार सेवाओं तथा नेटवर्क अवसंरचना के सृजन में नवाचार को बढ़ावा देना

(ग) सभी मौजूदा संचार प्रणालियों, उपस्करों, नेटवर्क एवं उपकरणों के लिए पविवर्तन को आईपीवी6 के लिए सुनिश्चित करना।

(घ) 5जी प्रौद्योगिकियों की शुरूआत करके हाई-स्पीड इंटरनेट; इंटरनेट ऑफ थिंग्स तथा एम2एम को सक्षम बनाना

i. 5जी उपयोग तथा सेवाओं की शुरूआत के लिए कार्रवाई योजना का क्रियान्वयन

ii. 5जी जैसी अगली पीढ़ी के नेटवर्क के विकास में सहायता देने के लिए बैकहॉल क्षमता का संवर्धन करना

iii. <1 गीगाहर्ट्ज, 1-6 गीगाहर्ट्ज तथा > 6 गीगाहर्ट्ज बैंडों में 5जी के लिए स्पेक्ट्रम की उपलब्धता सुनिश्चित करना

iv. 5जी आधारित उपयोग तथा सेवाओं को प्रदान करने के लिए ट्राफिक प्रथिमिकीकरण के संबंध में उद्योग प्रैक्टिसों की समीक्षा करना

v. सुरक्षा की रक्षा तथा एम2एम उपकरणों के लिए रोक के क्रम में एम2एम सेवाओं की त्वरित शुरूआत के लिए ढांचा विकसित करना

vi. एम2एम उपकरण के लिए सरकार द्वारा वित्तपोषित तथा भारत विशिष्ट अनुसंधान को समन्वित करने के लिए संस्थागत ढांचे के साथ एम2एम उपकरणों हेतु ईएमई विकिरण नीति परिभाषित करना।

(ड) निम्न के द्वारा पर्याप्त संस्थागत संसाधन सुनिश्चित करना:

i. सभी एम2एम मोबाइल कनेक्शनों के लिए 13 अंकों वाले नंबर का आवंटन

ii. फिक्स्ड लाइन तथा मोबाइल सेवाओं के लिए एकीकृत नंबर की योजना का विकास करना

(च) क्लाउड कंप्यूटिंग, कंटेंट होस्टिंग तथा डिलीवरी तथा डाटा संचार प्रणाली एवं सेवाओं के लिए भारत को वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना

i. भारत में अंतर्राष्ट्रीय डाटा केंद्रों की स्थापना कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क तथा स्वतंत्र अंतर्संबद्ध विनियम को बढ़ावा देने के लिए सक्षमता प्रदान करने वाले विनियामक ढांचे का विकास करना ii. क्लाउड आधारित प्रणाली के प्रसार के लिए लाइट टच विनियमन को सक्षम बनाना

iii. कैप्टिव फाइबर नेटवर्क स्थापित करने के लिए क्लाऊड सेवा प्रदाताओं को सुविधा देना

(छ) सेवा की संपूर्ण गुणवत्ता, स्पेक्ट्रम प्रबंधन, नेटवर्क सुरक्षा तथा विश्वसनीयता में वृद्धि करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा बिग डाटा का समक्रमिक तथा कारगर तरीके से लाभ उठाना।

(ज) निम्नलिखित उपायों के माध्यम से स्मार्ट शहर के प्रमुख घटक के रूप में डिजिटल संचार को दर्जा प्रदान करनाः

i. शहरी विकास मंत्रालय के सहयोग से स्मार्ट शहरों के लिए साझा सेवा ढांचा तथा मानक विकसित करना

ii. चिन्हित स्मार्ट शहरों में नवाचारी समाधानों की तैनाती को सरल बनाना तथा सहायता प्रदान करना।

2.3 अनुसंधान और विकास

क) निम्नलिखित द्वारा डिजिटल संचार प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना:

i. स्वदेशी आवश्यकताओं के अनुसार देश में डिजिटल उत्पादों तथा सेवाओं को चिन्हित करने, विशिष्ट रूप से निर्माण और विकास करने के लिए सी-डॉट को प्रमुख दूरसंचार अनुसंधान और विकास केन्द्र के रूप में पुनर्गठित करना।

ii. अनुसंधान और विकास से संबंधित खरीद/आयात के लिए अनुमोदन/प्रक्रिया को सरल बनाना। ii. नए उत्पादों एवं सेवाओं के परीक्षण तथा प्रमाणन की रूपरेखा सृजित करना।

(ख) स्टार्ट-अप और उद्यमियों के लिए संचार की अग्रणी अवस्था, 5जी, सॉफ्टवेयर कन्टेंट, सुरक्षा तथा संबंधित प्रौदयोगिकियों और अनुप्रयोगों में नवाचार को अपनाने के लिए नई प्रौद्योगिकयों में अनुसंधान एवं विकास करने के लिए निधि का सृजन करना; और अनुदानों, छात्रवृत्तियों, उद्यम पूँजी आदि के माध्यम से उत्पादों और सेवाओं का वाणिज्यीकरण करना।

(ग) उत्कृष्टता केन्द्रों की स्थापना करना जिसमें स्पेक्ट्रम प्रबंधन, दूरसंचार सुरक्षा और अगली पीढ़ी अभिगम प्रौद्योगिकियां शामिल हैं।

(घ) निम्नलिखित द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने वाली एक बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था को प्रोत्साहित करना:

i. प्रतिलिप्याधिकार, पेटेंट तथा ट्रेडमार्क से संबंधित कानूनी व्यवस्था की समीक्षा सहित डिजिटल संचार से संबंधित राष्ट्रीय आईपीआर नीति की मुख्य सिफारिशों को कार्यान्वित करना।

ii. स्टार्ट-अप को प्रतिलिप्याधिकार, पेटेंट तथा ट्रेडमार्क से संबंधित आवेदन देने में सहायता प्रदान करना।

iii. डिजिटल संचार प्रौदयोगिकियों के क्षेत्र में मानक मौलिक पेटेंट का विकास करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।

iv. अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और मानक विकास प्रकियाओं तथा आईपीआर से संबंधित कार्यक्रमों में सक्रिय सहभागिता के माध्यम से भारतीय आईपीआर को प्रोत्साहित करना।

(ड्.) प्रयोगात्मक लाइसेंसों को प्राप्त करने और विनियामक व्यवस्था (सैंडबॉक्स) को स्थापित करने की प्रक्रिया को सरल बनाना; यथा:

  1. संरक्षा तथा सुरक्षा मामलों को ध्यान में रखते हुए नए उत्पादों तथा सेवाओं के परीक्षण के लिए उपयुक्त अवसंरचना के सृजन को सक्षम बनाना।
  2. अनुसंधान एवं विकास तथा प्रयोग के लिए वहनीय मूल्यों पर स्पेक्ट्रम के आंवटन को सुकर बनाना।
  3. लाइसेंस मुक्त करके तथा अन्य तंत्रों के माध्यम से प्रयोगात्मक उद्देश्यों के लिए उत्पादों और सेवाओं हेतु, सरल तथा शीघ्र अनुमोदन प्रदानकरना; तथा उद्योग और शैक्षणिक समुदाय के सहयोग से परीक्षण बेड, इन्क्यूबेटर्स, नवाचार केन्द्रों आदि की स्थापना को प्रोत्साहन देना।

2.4 स्टार्ट-अप और एसएमई को बढावा देना

(क) विभिन्न वित्तीय और गैर-वित्तीय लाभों के साथ स्टार्ट-अप को सहायता प्रदान करना जिसमें निम्नलिखित बातें शामिल हैं:

i. शैक्षणिक सहयोग, प्रयोगों तथा परीक्षणों के लिए अनुमति, आयात किए गए सॉफ्टवेयर पर छूट, मेंटरिंग सपोर्ट देना आदि।

ii. सरकारी खरीद में स्टार्ट-अप और एसएमई की सहभागिता को प्रोत्साहित करना

iii. यूएसओएफ के माध्यम से प्रायोगिक परियोजनाओं को वित्तपोषित करना

(ख) विशेष रूप से नए और अभिनव क्षेत्रों तथा सेवाओं के लिए प्रारंभिक लागत और अनुपालन संबंधी दबाव को कम करके स्टार्ट-अप हेतु प्रवेश संबंधी बाधाओं को कम करना।

2.5 स्थानीय विनिर्माण और मूल्य संवर्धन

(क) निम्नलिखित द्वारा घरेलू उत्पादन, निर्यात में वृद्धि और आयात संबंधी दबाव में कमी पर ध्यान केन्द्रित करते हुए वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत के योगदान को बढ़ाना:

i. घरेलू मूल्य संवर्धन की सीमा तक उपकरण, नेटवर्क और डिवाईस के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए कर, उगाही तथा अंतर-शुल्क को तर्कसंगत बनाना।

ii. डिजिटल संचार प्रौद्योगिकियों में चिन्हित उत्पाद खंडों के लिए चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम की शुरूआत करना।

iii. भारत में विनिर्माण आधार की स्थापना करने के लिए वैश्विक ओईएम तथा सामान्य संघटक कंपनियों को आकर्षित करना।

iv. स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए अपेक्षित निष्पक्ष, तर्कसंगत तथा गैर भेदभावपूर्ण (एफआरएएनडी) शर्तों में आवश्यक आधारभूत आईपीआर की उपलब्धता को सुनिश्चित करना।

v. स्वदेशी सॉफ्टवेयर/अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं का लाभ उठाकर भारत में डिजाईन

आधारित विनिर्माण को प्रोत्साहित करना।

vi. उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में नेटवर्क तथा डिवाईस के लिए चिप्स तथा चिप्स की प्रणाली (एसओसी) के फैब और/अथवा फैब-रहित डिजाईन तथा विनिर्माण को प्रोत्साहित करना।

vii. सर्वोच्च श्रेणी के उद्यम का सृजन करने के लिए भारतीय प्रवासियों में से वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करना।

(ख) अधिमान्य बाजार अभिगम आवश्यकताओं के लिए कठोर अनुपालन को सुनिश्चित करना: 1. विशेषकर सुरक्षा से संबंधित उत्पादों की खरीद सहित सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाने वाली खरीद में घरेलू स्वामित्व वाले आईपीआर रखने वाले घरेलू उत्पादों तथा सेवाओं को प्राथमिकता देना।

ii. घरेलू दूरसंचार उत्पादों को खरीदने के लिए निजी प्रचालकों को प्रोत्साहित करना।

2.6 क्षमता निर्माण

(क) डिजिटल संचार क्षेत्र में रोजगार के अवसरों उपलब्ध कराने के माध्यम से मानव संसाधन पूँजी का निर्माण करना:

i. महत्वपूर्ण दूरसंचार उपकरण के विनिर्माण सहित दूरसंचार सुरक्षा यंत्र, मानक तथा फोरेंसिक क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षमता तथा सांस्थानिक क्षमता का निर्माण करना।

ii. ऑडियो, विडियो तथा टेक्सट सहित इंटरऐक्टिव प्रारूप के माध्यम से आत्म-निर्देशित तथा सहयोगपूर्ण अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए संचार क्षेत्र से संबंधित शैक्षणिक संसाधनों का सृजन करना तथा उन्हें मुक्त और सुगम प्रारूप में उपलब्ध कराना।

ii. भावी प्रौद्योगिकीय आवश्यकताओं के अनुरूप क्षमता और कौशल विकसित करने के लिए उद्योग-शिक्षा-सरकार की भागीदारी को बढ़ावा देना

2.7 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को मजबत बनाना

(क) निम्नलिखित पहल के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाईयों के लिए तकनीकी विशेषज्ञता

और ज्ञान प्रबंधन के निर्माण पर बल देनाः

  1. सेवा की सुरक्षित और कुशल प्रदायगी, अवसंरचना विकास तथा घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के भीतर आंतरिक क्षमता का निर्माण करना।
  2. सेवा का प्रावधान करने, अवसंरचना का सृजन करने, अनुसंधान एवं विकास, मानकीकरण तथा विनिर्माण के क्षेत्र में प्रचालनात्मक सहक्रियाओं की पहचान करना तथा उनका पूरा लाभ उठाना।
  3. कौशल विकास के लिए दूरसंचार क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के पास उपलब्ध प्रशिक्षण अवसंरचना का उपयोग करना।
  4. कार्यनीतिक तथा प्रचालनात्मक सहक्रियाओं का प्रभावी उपयोग करने के लिए दूरसंचार विभाग के अधीन विनिर्माण के क्षेत्र में कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का स्तरोन्नयन करना।
  5. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रौद्योगिकीय स्तरोन्नयन को बढ़ावा देना।

2.8 उद्योग 4.0 को गति प्रदान करना

(क) इस क्षेत्र विशिष्ट की उद्योग परिषदों के साथ जुड़कर कार्य करते हुए वर्ष 2020 तक उद्योग 4.0 को गति प्रदान करने के लिए रोडमैप तैयार करना।

(ख) उद्योग 4.0 में परिवर्तन के साथ समन्वय करने के लिए एक मल्टी-स्टेकहोल्डर के नेतृत्व वाला सहयोगी तंत्र स्थापित करना।

(ग) आईओटी/एम2एम कनेक्टिविटी सेवाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रेष्ठ तरीकों को शामिल करते हुए विभिन्न क्षेत्रों जिसमें कृषि, स्मार्ट शहर, प्रज्ञ ट्रांसपोर्ट नेटवर्को, मल्टीमॉडल लोजिस्टिक्स, स्मार्ट इलेक्ट्रिसिटी मीटर, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं आदि के लिए बाजार को विकसित करना।

3. भारत को सुरक्षित करना: डिजिटल संचार की संप्रभुता, बचाव और सुरक्षा सुनिश्चित करना

2022 लक्ष्य:

(क)  डिजिटल संचार के लिए एक विस्तृत डाटा संरक्षण प्रणाली को स्थापित करना जिससे व्यक्तिविशेष की गोपनीयता, स्वायत्तता और रूचि की रक्षा होगी तथा वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्थामें भारत की प्रभावशाली भागीदारी की राह आसान होगी।

(ख)  यह सुनिश्चित करना कि अगली पीढ़ी अभिगम प्रौद्योगिकियों सहित सेवा अपेक्षाओं, बैंडविड्थ की उपलब्धता और नेटवर्क क्षमताओं के साथ नेट-निष्पक्षता के सिद्धांतों को कायम रखा गया और संरेखित किया गया है।

(ग)  एक सुद्दढ़ डिजिटल संचार नेटवर्क सुरक्षा ढांचे को विकसित करना तथा उसे लागू करना।

(घ)  सुरक्षा संबंधी परीक्षण के लिए क्षमता निर्माण करना और उपयुक्त सुरक्षा मानकों को स्थापित करना।

(ङ)   कूटलेखन और सुरक्षा की अनुमति से जुड़े सुरक्षा मुद्दों का समाधान करना।

(च)  नागरिकों को सुरक्षित और निरापद डिजिटल संचार अवसंरचना और सेवाओं का आश्वासन देने हेतु उपयुक्त संस्थागत तंत्र के माध्यम से जवाबदेही तय करना।

कार्यनीतिः

3.1 एक मजबूत, लचीली और सुद्दढ डाटा संरक्षण प्रणाली की स्थापना करना

(क) भारत में निजता और डाटा संरक्षण से जुड़े कानूनी ढांचे और न्यायशास्त्र को विकसित करने में संचार संबंधी विधि और नीति को तर्कसंगत बनानेसाथ- साथ निम्न उपाय करना:

i. निजता तथा डाटा सुरक्षा के संबंध में प्रावधानों को शामिल करने के लिए, जहां कहीं आवश्यक हो, विभिन्न लाइसेंसों तथा निबंधन एवं शर्तों को संशोधित करना।

(ख) निम्नलिखित द्वारा डिजिटल संचार क्षेत्र में डाटा संरक्षण और सुरक्षा संबंधी मुद्दों का समाधान करना:

i. सुनिश्चित करना कि मूल डाटा सुरक्षा तथा सुरक्षा सिद्धांतों को लागू किया जा रहा तथा उसका अनुपालन किया जा रहा है।

ii. स्वदेशी दूरसंचार उत्पादों तथा सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करना।

3.2 प्रत्येक नागरिक तथा उद्यम के लिए स्वायत्तता एवं विकल्प प्रदान करना

(क) नेट निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने की आवश्यकता को पहचानना:

i. उचित अपवर्जन तथा अपवाद, जहां कही आवश्यक हो, सहित कंटेंट के गैर-भेदभावपूर्ण निपटान के सिद्धांतों को शामिल करने के लिए लाइसेंस समझौतों में संशोधन करना।

ii. उचित प्रकटन तथा पारदर्शी आवश्यकताओं को शामिल करके नेट निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुपालन को सुनिश्चित करना।

3.3 डिजिटल संचार की सुरक्षा को सुनिश्चित करना

(क) विभिन्न स्तरों पर सुरक्षा मुद्दों का समाधान करना:

i. अवसंरचना की सुरक्षा (भौतिक अवसंरचना, साइबर-भौतिक अवसंरचना, हार्डवेयर तथा नेटवर्क घटक), प्रणालियों की सुरक्षा (उपकरण, यंत्र, वितरण प्रणालियां, वर्चुअल सर्वर्स)

ii. अनुप्रयोग तथा प्लेटफार्म की सुरक्षा (वेब, मोबाइल, यंत्र तथा सॉफ्टवेयर की सुरक्षा)।

(ख) उपकरणों तथा यंत्रों के लिए सुरक्षा मानकों का विकास करना:

i. डिजिटल संचार उत्पादों तथा सेवाओं के लिए सुरक्षा मानकों का विकास करने तथा उसे लागू करने हेतु दूरसंचार परीक्षण तथा सुरक्षा प्रमाणन (टीटीएससी) करना।

ii. संरक्षा तथा सुरक्षा के वैश्विक मानकों की तर्ज पर मानक विकसित करना।

iii. बीआईएस अधिनियम, इलेक्ट्रॉनिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी माल (अनिवार्य पंजीकरण के लिए आवश्यकताएं) आदेश, भारतीय तार अधिनियम आदि जैसे सुरक्षा मानकों पर लागू होने वाली कानूनी तथा विनियामक रूपरेखा के साथ सामंजस्य बनाना।

(ग) भारतीय संचार उद्योग की स्थानीय आवश्यकताओं पर विचार करने को सुनिश्चित करने के लिए वैशिवक मानक बनाने वाले संगठनों में सहभागिता करना।

(घ) निम्नलिखित द्वारा सुरक्षा परीक्षण प्रक्रियाओं को सुद्दढ़ करना:

i. अत्याधुनिक सुविधाओं सहित घरेलू परीक्षण केन्द्रों तथा प्रयोगशालाओं की स्थापना करने सहित परीक्षण करने के लिए सांस्थानिक क्षमता में वृद्धि करना।

ii. वैश्विक मानकों पर आधारित व्यापक सुरक्षा प्रमाणन व्यवस्था की स्थापना करना।

(ङ) संचार नेटवर्क और सेवाओं पर लागू वैश्विक मानकों के साथ क्रिप्टोग्राफी से संबंधित भारत में विधिक और विनियामक व्यवस्था को सुसंगत बनाकर, एनक्रिप्शन और डाटा प्रतिधारण के संबंध में नीति तैयार करना।

(च) निम्नलिखित द्वारा नागरिकों, संस्थानों तथा संपत्ति की सुरक्षा और संरक्षा को सुकर बनानाः

i. मोबाइल हैंडसेट की पहचान की रिप्रोग्रामिंग सहित सुरक्षा, चोरी तथा अन्य समस्याओं का

समाधान करने के लिए केन्द्रीय उपकरण पहचान पंजीकरण की स्थापना को सुकर बनाना।

ii. विधि और व्यवस्था तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को कार्यान्वित करने के लिए अत्याधुनिक वैध

अन्तरावरोधन अभिकरणों को सुकर बनाना।

iii. डिजिटल संचार नेटवर्क, यंत्रों तथा सेवाओं से संबंधित सुरक्षा मुद्दों के बारे में उपभोक्ताओं के

बीच जागरूकता बढ़ाना।

(छ) निम्नलिखित दवारा डिजिटल संचार क्षेत्र के लिए सुरक्षा दुर्घटना प्रबंधन और प्रतिक्रिया प्रणाली की स्थापना करना:

i. क्षेत्रीय साइबर सिक्योरिटी इंसीडेंस रिस्पांस सिस्टम (सीएसआईआरटी) की स्थापना करना।

ii. सीईआरटी-इन तथा क्षेत्रीय सीईआरटी सहित विभिन्न सुरक्षा अभिकरणों के बीच सूचना साझा करना तथा समन्वय में सुधार करना।

iii. विशेष मानदंडों के आधार पर प्राधिकारियों तथा प्रभावित उपभोक्ताओं को डाटा ब्रीच के बारे में सूचित करने के लिए सेवा प्रदाताओं पर दायित्व लागू करना।

iv. सुरक्षा लेखा परीक्षा प्रणाली को मजबूत करना।

3.4 नेटवर्क तत्परता, आपदा प्रतिक्रिया राहत, बहाली और पनर्निर्माण के लिए व्यापक योजना का विकास करना

(क) निम्नलिखित द्वारा नेटवर्क क्षमता को मजबूत बनाना:

i. विभिन्न सेवा प्रदाताओं पर लागू होने वाली आपदा प्रतिक्रिया के लिए क्षेत्रीय दिशानिर्देशों सहित आपदा तथा राष्ट्रीय आपदा के दौरान अनुसरण की जाने वाली मानक प्रचालन प्रक्रिया को तैयार करना तथा उसे लागू करना।

ii. कार्यकलापों की निगरानी करने, पूर्व चेतावनी आपदा अधिसूचना का शीघ्र प्रसार करने तथा भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सहित संबद्ध मंत्रालयों/विभागों के बीच बेहतर समन्वय तथा सहयोग करने को प्रोत्साहित करने के लिए सांस्थानिक रूपरेखा तैयार करना।

(ख) निम्नलिखित द्वारा एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र का विकास करना:

i. स्पष्ट रूप से परिभाषित भूमिकाओं तथा उत्तरदायित्वों, मानक प्रचालन प्रक्रियाओं तथा तकनीकी दिशानिर्देशों वाली सांस्थानिक रूपरेखा तैयार करना।

ii. भू-स्थलीय प्रौद्योगिकियों पर आधारित नेक्सट जेनरेशन 112 सेवाओं को सभी क्षेत्रों में कार्यान्वित करने तथा प्राधिकृत केन्द्रीय तथा राष्ट्रीय अभिकरणों को कॉलर की अवस्थिति तथा ब्यौरे पर ऑनलाईन अभिगम प्रदान करने के लिए लाइसेंस की निबंधन और शर्तों के तहत दायित्व को शामिल करना।

iii. अवसंरचना को साझा करने तथा आपातकालीन परिस्थितियों में नेटवर्क ऐग्नॉस्टिक, प्रचालक-ऐग्नॉस्टिक तथा प्रौदयोगिकी-ऐग्नॉस्टिक तरीके से अंतर-प्रचालकता को सुनिश्चित करने के लिए सेवा प्रदाताओं पर दायित्व को लागू करना।

(ग) निम्नलिखित द्वारा भारत के लिए जन सुरक्षा और आपदा राहत (पीपीडीआर) योजना को बेहतर बनाना:

i. जन सुरक्षा और आपदा राहत (पीपीडीआर) के लिए अखिल भारतीय नेटवर्क की स्थापना को सुकर बनाना।

ii. इनसैट सैटेलाईट-आधारित मोबाइल संचार प्रणाली की स्थापना करने सहित पीपीडीआर के लिए आवश्यक स्पेक्ट्रम को उपलब्ध कराना।।

iii. पीपीडीआर के लिए वैश्विक तथा क्षेत्रीय सामंजस्य वाली स्पेक्ट्रम योजना का कार्यान्वयन करना।

स्त्रोत: दूरसंचार विभाग, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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