देश में नहरों द्वारा देश के लगभग 17 मिलियन हैक्टर क्षेत्र में सिंचाई का प्रावधान है। इन नहरों को प्रवाहित जल में मछली उत्पादन के द्वारा नहरों के आसपास रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय के स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि की जा सकती है। नहरों में मत्स्य संचयन के साथ – साथ इन नहरों में विशेष प्रकार के केज या पेन लगाकर उनमें मत्स्य पालन सह – सिंचाई की नींव भी रखी जा सकती है। हालाँकि, विदेशों में नहरों से मच्छली पकड़ने की प्रक्रिया का प्रचलन है। स्थानीय मछुआरों तथा आखेटको को नहरों में मछली पकड़ने का अधिकार प्रदान किया जाता है और उसके लिए लाइसेंस प्रदान करने का भी प्रावधान है। भारत में भी लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करने क आवश्यकता है। इन नहरों में स्थानीय प्रजातियों की मछलियों के उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ – साथ कुछ नई प्रजातियों का संचयन कर नहरों द्वारा मत्स्य उत्पादन बढ़ाने की संभावनाओं पर जोर देने की आवश्यकता है।
यह सर्वविधित हा कि जहाँ जल होगा वहां मछलियों का वास अवश्य होगा। देश में, नहरों के रूप में उपलब्ध जल संसाधन का प्रयोग, मत्स्यिकी एवं मत्स्य पालन का क्षेत्र में, एक नयी सोच है और अहम दिशा प्रदान करता है।
वर्तमान में, मात्स्यिकी के क्षेत्र में इन नहरों के प्रयोग का चलन तो नहीं है पर भविष्य में इसकी संभावनाओं को नाकारा भी नहीं जा सकता है। इस लेख में मात्स्यिकी हेतु नहरों की उपलब्धता, उनके प्रकार, विश्व में प्रदत्त नहरों की मात्स्यिकी तथा मात्स्यिकी प्रदत्त पालन की संभावनाओं पर चर्चा की गई है।
मात्स्यिकी एवं मत्स्य पालन, कृषि का एक अभिन्न अंग है। कृषि सह मत्स्य पालन समेकित कृषि प्रणाली का एक अनूठा उदहारण है। बढ़ती आबादी के कारण जल एवं स्थल दोनों पर ही दबाब बढ़ रहा है। प्रोटीन स्रोत की मांग भी बढ़ रही है। देश में प्रोटीन की मांग की पूर्ति में मछलियों का महत्वपूर्ण योगदान है। पर, मांग के अनुसार पूर्ती नहीं हो पा रही है। नदियों का पानी नहरों में आता है। और इनमें नियंत्रित अवस्थाओं में मत्स्य पालन कर मत्स्य उत्पादन को बढ़ा पाना संभव है। इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए संबंधित सामाजिक, प्रशासनिक, तकनीकी एवं आर्थिक विषयों पर चर्चा करने और एकजूट होकर कार्य करने की आवश्यकता है। नहरों में मत्स्य बीज का संचयन करने के साथ – साथ आर्द्र क्षेत्रों एवं जलाशयों की तर्ज पर केज और पेन में मत्स्य पालन की संभावना भी आज विचारधीन है। नहरों में मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई, गैर सरकारी संस्थानों एवं स्थानीय निवासियों को एकजुट होकर इस प्रणाली के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा एवं अनुसंधान में भाग लेने की आवश्यकता है। नहरों में मत्स्य पालन के लिए विकास के रास्ते में कई समस्याएं भी निहित है, जैसे – नहरों में जल का अनियमित प्रभाव, जल पृथक्कीकरण, जल बहाव द्वारा लायी गई मिट/ रेत, जलीय अवांछित पौधों का पनपना, जल में कीटनाशकों का पाया जाना इत्यादि। मछलियों के मूलवास स्थान नदियों में प्रदूषण कारकों के कारण मत्स्य उत्पादन में गिरावट आ रही है। साथ ही बढ़ते तापमान के कारण मछलियों के वास स्थान में परिवर्तन देखा जा रहा है और ये मछलियां अपने लिए सुरक्षित वातावरण ढूंढकर अन्य स्थानों पर विस्थापित हो रही है। इसी धारणा को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि मछलियाँ बहाव के साथ नहरों में आ जाती है। ये मछलियाँ बदल हुए वास स्थान में अनुकूलन के द्वारा स्थापित हो जाती है और कुछ मछलियाँ तो प्रजनन द्वारा अपनी प्रजाति की प्राकृतिक आबादी बढ़ाने में समर्थ पाई गई है। परंतु भारत में इस विषय पर पर्याप्त वैज्ञानिक जानकारी का अभाव है। सूडान, यूरोप, बांग्लादेश, मिश्र जैसे देशों में नहरों से 50 – 50 किग्रा./हे./वर्ष मत्स्य उत्पादन प्राप्त करने की रिपोर्ट उपलब्ध है। थाईलैंड में तिलपिया, चन्ना एवं पूटियास जैसे मछलियों का संचयन कर और कृत्रिम आहार का प्रयोग बिना ही 350 किग्रा./हे./वर्ष मत्स्य उत्पादन की रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। कई वैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चलता है कि नहरों में अधिकांशत: छोटी आकार की मछलियाँ पाई जाती है। यह दर्शाता है कि या तो नहरें इन मछलियों के प्रजनन के लिए अनुकूल हैं या मूलवास स्थान जैसे – नदियाँ और जलाशय से बह कर छोटे आकार की मछलियाँ नहरों में आ जाती हैं और स्थापित हो जाती है।
भा. कृ. अ. नु. प.) केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मत्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, (सिफरी) नहरों में मत्स्य उत्पादन की दिशा में पहल की है। आदिवासियों क आर्थिक विकास हेतु सुंदरवन में उपलब्ध नहर संसाधनों का उपयोग किया गया। सागर आइलैंड स्थित खानसाहबाबाद एवं खासराभकर गांव तथा बाली, गोसाबा ब्लॉक के साथ - साथ कालीतला, हिंगलगंज ब्लॉक की नहरों में भारतीय मेजर कार्प (रोहू, कतला एवं मृगल) के साथ – साथ स्थानीय प्रजातियों एवं छोटी देशी मछलियों का भी पालन किया गया। इस प्रक्रिया में मत्स्य बीज का संचयन सीधे नहरों में किया गया तथा आवश्यकतानुसार आहार प्रदान किया गया। लागत मूल्य को नियंत्रित करके अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त करने की कोशिश की गई। स्थानीय लोगों की देख – रेख में इस कार्यक्रम को कार्यान्वित किया गया। संस्थान ने जन – जाग्रति एवं तकनिकी प्रशिक्षण द्वारा लोगों को जागरूक किया और उन्हें इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। वर्ष के अंत में इन नहरों से 500 – 800 किग्रा. प्रति हे. मत्स्य उत्पादन प्राप्त हुआ। सुंदरबन में प्राप्त सफलता को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने चिरस्थायी नहरों जल प्लावित नहरों में मत्स्य उत्पादन की तकनीक विकसित करने के लिए एक अनुसंधान परियोजना की भी शुरूआत की है। इस परियोजना में सुंदरबन के साथ – साथ पंजाब की नहरों का भी अध्ययन किया जा रहा है। सागर आइलैंड के कृष्णानगर में स्थित विशाल की नहर, नामखाना के मदनगंज में स्थित भेतकीमारी नहर तथा पंजाब के चंडीगढ़ में स्थित सरहिंद नहर का विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है ताकि इन नहरों में मत्स्य उत्पादन की तकनीकों का प्रयोग स्थानीय लोगों के आर्थिक विकास में मददगार साबित हो सके। नहरों के पानी का अधिक से अधिक उपयोग कर किसानों की आय की दोगुना करने की दिशा में संस्थान की यह महत्वपूर्ण पहल है।
नहरों के संचित मछलियों के प्रबंधन हेतु पुन: संचयन, नई प्रजातियों का संचयन, मत्स्य प्रग्रहण की प्रक्रिया, प्रग्रहण एवं आखेट के नियमों का सही तरह से पालन अनिवार्य है। नई प्रजातियों के संचयन के पहले, नहरों के जल की गुणवत्ता, नहरों का सामर्थ्य, प्रारंभिक उत्पदकता एवं नहरों में पाई जाने वाली मछलियों की जानकारी अतिआवश्यक है। एक अध्ययन के अनुसार जलीय खरपतवारों से ग्रस्त नहरों में आवंछित खरपतवारों की रोकथाम के लिए छोटे आकार की ग्रास कार्प का संचयन किया जाता है, परंतु एक निश्चित आकार तक बढ़ने के बाद उन्हें पकड़कर निकाल लिया जाता है ताकि अन्य मछलियों पर इनकी वृद्धि का प्रभाव न पड़े। इन मछलियों को पकड़ने के बाद पुनः छोटे आकार की ग्रास कार्प का संचयन नहरों में किया जाता है। मात्स्यिकी एवं मत्स्य पालन का प्रबंधन नहरों की प्राकृतिक पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए तंत्र के स्थिरीकरण को बरकरार रखते की सलाह दी जाती है। अत: नहरों में मत्स्य उत्पादन के प्रबंधन के लिए इनके जल एवं मिट्टी की जाँच, पारिस्थितिकी, संचयन की जाने वाली मछलियों के स्वभाव एवं जैविकी का गूढ़ अध्ययन आवश्यक है। मछलियों की प्रजातियों का चुनाव उनकी मांग को देखते हूए ही करना चाहिए। इससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त होने की संभावना होगी।
लेखन: अर्चना सिन्हा
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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