हमारे देश में उगाई जाने वाली तिलहनी फसलों में राई-सरसों का मूंगफली के बाद दूसरा स्थान है। खाने के तेल की वर्तमान उपलब्धता (8.5 किग्रा./व्यक्ति/वर्ष) के आधार पर वर्ष 2020 तक हमारे देश में लगभग 340 लाख टन वनस्पति तेल की आवश्यकता होगी, जिसमें से लगभग 140 लाख टन तेल राई-सरसों द्वारा होने का अनुमान है, अगर हम इस फसल का भोजन चुराते खरपतवारों पर नियंत्रण पा लें तो यह पैदावार और भी बढ़ाई जा सकेगी।
इस समय कुल खाद्य तेल उत्पादन का लगभग एक तिहाई तेल राई-सरसों द्वारा प्राप्त होता है इसकी खेती हमारे देश में लगभग 62.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है जिससे लगभग 59 लाख टन उत्पादन होता है। लेकिन इसकी औसत पैदावार विश्व की औसत पैदावार की तुलना में काफी कम है सिंचित क्षेत्रों में राई-सरसों के उत्पादन को बढ़ाने में आने वाली कठिनाईयों में सबसे महत्वपूर्ण हैं। इस फसल को नुकसान पहुँचाने वाले खरपतवार, जिसका यदि सही समय पर प्रभावी नियंत्रण न किया गया तो ये फसल की पैदावार एवं गुणवत्ता में भारी कमी ला देते हैं।
देश में राई-सरसों की खेती मुख्यत: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, असम, गुजरात, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों में की जाती है इसलिए भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु एवं भूमि के प्रकार में परिवर्तन के अनुसार इनमें खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति में भी बदलाव आ जाता है (सारणी-1)।
खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्व, नमी, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके राई-सरसों की पैदावार एवं तेल प्रतिशत में कमी कर देते है। एक सर्वेक्षण के अनुसार राई-सरसों की पैदावार में खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति के अनुसार 20-70 प्रतिशत तक कमी आंकी गई है। अनियंत्रित खरपतवार भूमि से 11-48 किग्रा. नाइट्रोजन, 2-14 किग्रा. फास्फोरस तथा 15-82 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर शोषण करके फसल को पोषक तत्वों से वंचित कर देते हैं। इसके अतिरिक्त सत्यानाशी नामक खरपतवार का बीज राई-सरसों के बीज के साथ मिलकर तेल की गुणवत्ता में कमी कर देता है तथा जिसके खाने में प्रयोग से “ड्राप्सी” नामक जानलेवा बीमारी का प्रकोप विगत वर्षों में देखा गया है।
खरपतवार नियंत्रण कार्यक्रम में समय का सर्वाधिक महत्व है। यदि खरपतवारों की रोकथाम खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था में न की गई तो उससे भरपूर लाभ नहीं मिल पाता है। राई-सरसों में यह अवस्था बुवाई के बाद 10 दिन से 40 दिन तक रहती है। इसलिए यह आवश्यक है कि यदि हम शाकनाशी रसायनों का उपयोग कर रहे है तो उनका असर भूमि में कम से कम बुवाई के बाद 40 दिन तक रहना चाहिए।
राई-सरसों में खरपतवार एक समस्या है यह पौधें मूल फसल की खुराक खा जाते है उनकी बढ़ोतरी पर प्रभाव डालते है। इनके नियंत्रण के लिए विभिन्न रूपों से कुछ विधियाँ हैं अगर किसान भाई इन्हें अपनाएं तो इन पर आसानी से काबू पाया जा सकता है साथ ही साथ फसल की गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
इस विधि में वें सभी क्रियाएं शामिल है जिसके द्वारा खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है। जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर या कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी और बुवाई के प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई आदि।
इस विधि द्वारा खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। फसल की प्रारंभिक अवस्था में बुवाई के 10 से 40 दिन के बीच का समय खरपतवारों की प्रतियोगित की दृष्टि से क्रांतिक समय है। अत: इसी बीच खुरपी या हैरो से दो बार निराई गुणाई, पहली बुवाई के 20 दिन बाद तथा दुसरी 40 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। इसके बाद उगने वाले खरपतवार फसल के नीचे दबकर रह जाते है तथा फसल से प्रतियोगिता नहीं कर पाते।
शाकनाशी रासायनों के प्रयोग से जहां एक ओर खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है वहीं दूसरी ओर लागत कम आती है तथा समय की बचत होती है। शाकनाशी रासायनों के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बात यह होती है कि उनका प्रयोग सही समय पर, उचित मात्रा में तथा ठीक ढंग से होना चाहिए, अन्यथा लाभ की बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है (सारणी-2) ।
राई-सरसों में उगने वाले प्रमुख खरपतवार |
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खरपतवार का प्रकार |
वनस्पतिक नाम |
हिन्दी नाम |
चौड़ी पत्ती वाले |
चेनोपोडियम एल्बम |
बथुआ |
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लेथाइरस अफाका |
जंगली मटर |
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मेडिकागो हिस्पिडा |
मरवारी |
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चिकोरियम इन्टाइब्स |
चिकोरी (कासनी) |
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एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस |
प्याजी |
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कानवालवुलस आरवेन्सिस |
हिरनखुरी |
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विसिया सेटाइवा |
अकरी |
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मेलीलोटस एल्बा |
सेजी |
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एनागेलिस आरबेन्सिस |
कृष्णनील |
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सिरसिया हारवेन्स |
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सोलेनम नाइग्रम |
मकोई |
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आरजेमोन मेक्सिकाना |
सत्यानाशी |
सकरी पत्ती वाले |
फेलारिस माइनर |
गेहूं का माँमा |
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साइनुडान डेक्टीलान |
दूब |
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अवेना सिटाइवा |
जंगली जई |
मोथाकुल |
साइपेरस रोटन्ड्स |
मोथा |
शाकनाशी रासायन का नाम |
मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व है) |
उपयोग का समय |
विधि |
आक्साडायजान (रोंस्टार) |
750 |
बोने के बाद परन्तु उगने के पूर्व |
खरपतवार नाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करना चाहिए। |
आइसोप्रोटुरान (एरीलान) |
1000 |
बोने के बाद परन्तु उगने के पूर्व |
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पेंडीमेथालिन (स्टाम्प) |
1000 |
बोने के बाद परन्तु उगने के पूर्व |
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फलूक्लोरलिन (बासालिन) |
1000 |
बुवाई के पूर्वं खेत में अच्छी तरह मिला दे |
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क्यूजेलोफ़ॉस (टरगासुपर) |
60 |
बुवाई के 20-25 दिन बाद |
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अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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