जार्डन घाटी के किसानों तथा प्रसार कार्यकर्ताओं ने अनुभव किया कि पॉलीथीन की परत बिछाने (पालीथीन मल्च) से भूमि के तापमान में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है। इसके पश्चात 19वीं शताब्दी के अंत में एजराइल के वैज्ञानिकों के एक समूह ने मृदा संक्रमण नियंत्रण के लिए मृदा सूर्यीकरण तकनीक का विकास किया। गत कई दशकों से उत्पादन वृद्धि हेतु रसायनों जैसे उर्वरकों, कीटनाशक एवं खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग बढ़ रहा है जो कि मानव समाज व पर्यावरण दोनों के लिए अत्यंत हानिकारक है। पर्यावरणविद एवं समाज सेवी संस्थाएं वातावरण में संतुलन हेतु मुख्यत: कृषि में रासायनीकरण का विरोध कर रहें हैं। इसी वजह से वर्तमान में प्राकृतिक एवं जैविक खेती पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। ऐसे में खरपतवार तथा मिट्टी में पाए जाने वाले अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों के नियंत्रण के लिए मृदा सूर्यीकरण तकनीक कारगर साबित होगी।
मृदा सूर्यीकरण तकनीक में पारदर्शी पालीथिन (प्लास्टिक मल्चिंग) से वर्ष के अधिक तापमान वाले महीनों (मई-जून) में सिंचाई उपरान्त खाली पड़े खेत को ढक देते हैं और पालीथीन के किनारों को मिट्टी से अच्छी तरह दबा देते हैं, ताकि मृदा में अवशोषित एवं संचयित ताप बाहर न निकल सकें। जिसके फलस्वरूप खेत की सतह पर तापमान में लगभग 8-12 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि हो जाती है। जो की मृदा को उसमें पाए जाने वाले हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं एवं खरपतवारों के बीजों के संक्रामकता दोष से शुद्धि करता है।
मृदा सूर्यीकरण तकनीक से विभिन्न मृदाओं के तापमान में वृद्धि का अवलोकन सारणी 1 में दिए गए आकड़ों से किया जा सकता है। इन आकड़ों से साफ़ विदित होता है कि सतह पर सामान्यदशा की तुलना में सूर्यीकृत दशा में मृदा का तापमान लगभग 8-10 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक होता है जो कि विभिन्न प्रकार के खरपतवारों व मृदा जनित सूक्ष्म जीवाणुओं, परजीवियों एवं सूत्रकृमि के विनाश के लिए काफी होता है। साथ ही साथ इसका भी पता चलता है कि काली मिट्टी हल्के गहरे रंग की तुलना में सौर ऊष्मा ज्यादा अवशोषित करती है।
दशा |
मृदा गहराई (सेंमी.) |
|||||
00 |
7.5 |
10.0 |
||||
|
भारी मृदा (काली) |
हल्की मृदा (दोमट) |
भारी मृदा (काली) |
हल्की मृदा (दोमट) |
भारी मृदा (काली) |
हल्की मृदा (दोमट) |
सामान्य दशा |
49 |
47 |
43 |
41 |
39 |
37 |
सुर्यीकृत दशा |
58 |
56 |
49 |
45 |
43 |
42 |
मृदा सूर्यीकरण द्वारा प्रभावी नियंत्रण हेतु महत्वपूर्ण कारक
1. खरपतवारों पर प्रभाव
खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय, महाराजपुर, जबलपुर (म.प्र.) में मुख्यत: खरपतवारों पर अध्ययन/शोध किया जाता है। हमारे अपने शोध कार्य तथा अन्य प्रयोग केन्द्रों पर किए गए अध्ययनों में पाया गया कि4-6 सप्ताह में मृदा सूर्यीकरण से बहुतायत खरपतवारों का पूर्ण नियंत्रण हो जाता है (सारणी 2) । कुछ खरपतवार जैसे नागर मोथा, दूबघास या कांस जिनका प्रजनन कंद या तने के गांठों से होती है पर मृदा सूर्यीकरण का कम प्रभाव पड़ता हैं क्योंकि जमीन के अंदर कंद या गांठे प्राय: अधिक गहराईयों में होती है साथ ही साथ कुछ खरपतवार जैसे सेंजी (मिलीलोटस इंडिका या अल्वा), हिरन खुरी (केनवालवुलस अरवेंसिस) जिसके बीज का आवरण काफी सख्त होता है पर भी सूर्यीकरण का प्रभाव कम पड़ता हैं।
प्रमुख खरपतवार |
सूर्यीकृत रहित |
सूर्यीकृत |
प्रतिशत नियंत्रण |
पथरचट्टा (ट्राइएन्थिमा पारचुलाकैस्ट्रम) |
173 |
3 |
98 |
लहसुआ (डाइजेरा अरवेंसिस) |
125 |
3 |
98 |
मकड़ा (डैकटीलोक्टेनियम इजिप्शियम) |
139 |
21 |
85 |
कनकौआ (कोमेलिना बेन्धालेन्सिस) |
14 |
0 |
100 |
जंगली जई (अवेना लुडोविसियाना) |
9 |
0 |
100 |
बथुआ (चिनोपोडियम एल्बम) |
30 |
0 |
100 |
गुल्लीडंडा (फेलेरिस माइनर) |
41 |
0 |
100 |
गाजरघास (पारथेंनियम हिस्टोफ़ोरस) |
3 |
0 |
100 |
दुधि (यूफोरविया जेनीकुलाटा) |
15 |
0 |
100 |
चूँकि मृदा सूर्यीकरण से मिट्टी में पाए जाने वाले परजीवी कवकों, जीवाणुओं, सूत्रकृमि व खरपतवारों पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: इनकी निष्क्रियता से फसलों को सीधा लाभ होता है। लाभकारी सूक्ष्म जीवों की सक्रियता, पोषण तत्वों की घुलनशीलता तथा उपलब्धता में वृद्धि एवं प्रभावकारी खरपतवार नियंत्रण आदि सभी कारकों के सम्मिलित प्रभाव से फसलों की बढ़वार तथा अंतत: पैदावार में प्रशंसनीय वृद्धि हो जाती है (सारणी 3)। मृदा सूर्यीकरण तकनीक से जहां एक ओर परजीवी कवकों, जीवाणुओं एवं सूत्रकृमि की संक्रात्मकता से दोषमुक्त देखा गया वही दूसरी ओर प्रभावी खरपतवार नियंत्रण से प्याज की पैदावार में 100 से 125 प्रतिशत, मूंगफली में 52 प्रतिशत एवं तिल में 72 प्रतिशत की वृद्धि भी रिकार्ड किया गया है।
3. मृदा में रासायनिक परिवर्तन
मृदा सूर्यीकरण से मिट्टी में घुलनशील पोषक तत्वों की मात्रा एवं इनकी उपलब्धता बढ़ जाती है। मृदा में कार्बनिक पदार्थ, अमोनियम नत्रजन, नाइट्रेट नत्रजन, कैल्शियम, मैग्निशियम तथा मिट्टी की विद्युत् चालकता में प्रशंसनीय वृद्धि पाई जाती है। हांलाकि सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा में सराहनीय वृद्धि नहीं दर्ज की गई है।
|
उपज (किग्रा./हें.) |
सकल आय (सोयाबीन अथवा गेहूं) |
|
दशा |
सोयाबीन |
गेहूं |
रूपये/हें. |
सामान्य दशा |
753 |
2274 |
25488 |
हाथ से निराई |
1470 |
3741 |
38350 |
शाकनाशी |
1287 |
2965 |
37381 |
मृदा सूर्यीकरण |
1952 |
3738 |
51583 |
सूर्यीकरण से प्रतिशत उपज में वृद्धि की तुलना |
|||
सामान्य दशा से |
160 प्रतिशत |
83 प्रतिशत |
|
हाथ की निराई से |
33 प्रतिशत |
10 प्रतिशत |
|
शाकनाशी से |
52 प्रतिशत |
25 प्रतिशत |
|
मृदा में हानिकारक सूक्ष्म जीवों की संक्रामकता की शुद्धिकरण की अन्य विधियों की तुलना में मृदा सूर्यीकरण तकनीक काफी प्रभावशाली है (सारणी 4) । सूर्यीकरण का प्रभाव मुख्यत: परजीवी या परपोषी प्रकार के सूक्ष्म जीवों पर ही पाया गया है। हालांकि इसका प्रभाव लाभदायक जीवाणुओं जैसे – राइजोबियम पर भी होता है, परन्तु बुवाई के समय राइजोवियम कल्चर से बीज उपचारित किया जाए तो पौधे के बढ़वार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
सारणी 4. कार्बोफ्यूरान (सूक्ष्म परजीवी नाशक), निराई तथा मृदा सूर्यीकरण का सोयाबीन की पैदावार (कि./हें.) पर प्रभाव
दशा |
अनुपचारित |
कार्बोफ्यूरान |
सूर्यीकृत |
सामान्य दशा |
57 |
473 |
1157 |
निराई |
1174 |
1190 |
2038 |
पेंडीमिथैलिन (1.5 कि./हें.) (स्टाम्प, पेंडीलिन, धानुटाप, पेंडीगोल्ड, पेंडीहर्ब) |
1288 |
1223 |
2054 |
मृदा सूर्यीकरण की प्रायोगिक उपयोगिता
वैसे तो मृदा सूर्यीकरण तकनीक काफी जाँची एवं परखी तकनीक हैं तथा किसानों के लिए अत्यंत उपयोगी एवं लाभकारी है। फिर भी इस तकनीक की निम्नलिखित सीमाएँ हैं।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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