उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों – हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश में लगभग एक लाख हे. भूमि पर बासमती धान की खेती की जाती है, जिसका घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उच्च मूल्य मिलता है। किसी भी कीट – रोग के प्रति पूर्ण रोधकता न होने के कारण बासमती प्रजातियों जैसे पूसा बासमती – 1, तरावड़ी बासमती, देहरादूनी बासमती, पूसा बासमती – 1121 तथा पूसा बासमती – 1509 की उपज क्षमता में विभिन्न कीटों जैसे तना बेधक, पत्ती लपेटक, भूरा फुदका, गंधी बग एवं रोगों जैसे शीथ ब्लाइट, जीवाणु जनित अंगमारी, ब्लास्ट तथा बकाने तथा बकाने रोग के प्रकोप के कारण उल्लेखनीय कमी देखी गयी। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भाकृअनुप – राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिको द्वारा उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं उत्तराखंड में बासमती धान की प्रमुख प्रजातियों (क्रमश: पूसा बासमती – 1 तरावड़ी बासमती, देहरादून बासमती, पूसा बासमती – 1121 तथा पूसा बासमती – 1509) में कीट रोग के प्रकोप अनुसार आईपीएम मॉड्यूल में स्थानिक विशिष्ट बदलाव किया गया और उनका सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया गया।
बासमती धान में कीट – रोग के प्रकोप को ध्यान में रखते हुए विशेष के अनुसार समग्र आईपीएम मॉड्यूल विकसित एवं वैधीकरण कर सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया गया। इसमें कार्बोंडाजिम (2 ग्राम/ किग्रा. बीज) से बीज शोधन तना बेधक कीट की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप (5 ट्रैप/हे.) लगाना, तना बेधक एवं पत्ती लपेटक कीट के प्रबंधन हेतु ट्राईकोकार्ड का प्रयोग, भूरे फूद्के के नियंत्रण हेतु सिंचाई प्रबंधन के साथ मित्र कीटों का संरक्षण कीट – रोग का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर से अधिक होने पर सिर्फ प्रभावित फसल पर ही सुरक्षित कीटनाशकों के प्रयोग के साथ – साथ मुख्य सस्य क्रियाओं जैसे हरी खाद का प्रयोग, संतुलित उर्वरकों का उचित प्रयोग तथा निरंतर फसल निगरानी आदि शामिल किये गये। पूसा बासमती – 1121 में जो कि वर्ष 2005 में रिलीज हुई बकाने रोग के गंभीर प्रकोप के कारण किसानों को भारी हानि होती देखी गई, को ध्यान में रखते हुए इसे रोग का प्रबंधन हेतु समग्र आईपीएम रणनीति के रोपाई से पहले जैविक कारक स्यूडोमोनस (5 मि. ली./लीटर पानी)से पौध की जड़ों को शोधित करना शामिल किया गया। इसका वर्ष 2006 से 2016 तक गाँव छाजपुर, सिबोला, अटेरना (हरियाणा) तथा बम्बावड़ (उत्तरप्रदेश) सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया गया।
वर्ष 2012 से 2016 के दौरान गाँव बम्बावड़ में आईपीएम क्षेत्रों में गैर – आईपीएम क्षेत्रों की अपेक्षा रासायनिक कीटनाशकों के छिड़काव में काफी कमी रही। आईपीएम क्षेत्रों में औसतन 0.62 (सक्रिय तत्व 53.65 ग्राम/हे.) छिड़काव हुआ, जबकि गैर – आईपीएमक्षेत्रों में 1.98 छिड़काव (सक्रिय तत्व 73 किए गये। वर्तमान में चल रहे परिक्षण में पत्ती लपेटक एवं तना बेधक कीट के लिए किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं किया गया, क्योंकि इन कीटों का प्रकोप कभी भी आईपीएम क्षेत्रों में आर्थिक हानि स्तर से अधिक नहीं पहुँच पाया।
सभी क्षेत्रों के चयनित किसानों द्वारा इस केंद्र द्वारा विकसित समग्र आईपीएम तकनीकी अपनाने पर खेतों में कीट – रोग का प्रकोप गैर – आईपीएम प्रणाली की तुलना में काफी कम रख पाने में पाने में सफलता मिली।
गैर – आईपीएम की अपेक्षा आईपीएम प्रणाली अपनाने वाली फसल में मकड़ियों एवं अन्य मित्र कीटों जैसे ड्रैगन फ्लाई, केराबिड्स तथा परजीवी बीटल इत्यादि की संख्या में काफी वृद्धि पाई गई।
आईपीएम तकनीकी अपनाने पर गैर – आईपीएम की तुलना में उत्पादकता में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई, जो कि शिकोपुर, छाजपुर, तिलवाड़ी, अटेरना, सिबोली तथा बम्बावड़ा में गैर – आईपीएम की तुलना में असौतन क्रमश: 21.65, 21.37, 19.70, 14.52, 18.84 तथा 26.74 प्रतिशत अधिक थी (सारणी – 1) परिणास्वरूप आईपीएम अपनाने वाले सभी किसानों की आय के गैर – आईपीएम प्रणाली की तुलना में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। इसके साथ ही रासायनिक कीटनाशकों के बहुत कम इस्तेमाल से वातावरण, मृदा एवं पानी को प्रदूषित होने से बचाने में भी सहायता मिली। निष्कर्ष के आधार पर कहा जा सकता है कि आईपीएम तकनीकी बासमती धान उत्पादक किसानों की आय को दोगुना बढ़ाने की दिशा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
आईपीएम तकनीकी अपनाने से कीटनाशकों के छिड़काव में कमी, संतुलित मात्रा के उपयोग के कारण उर्वरकों के प्रयोग में कमी सिंचाई, एवं मजदूरी में कमी इत्यादि से कुल फसल लागत अनुपात बढ़ोतरी देखी गयी। रासायनिक कीटनाशकों को जहरीले कीटनाशक मुक्त उत्पाद मिले में आसानी के साथ – साथ किसानों में जहरीले कीटनाशकों द्वारा होने वाले स्वास्थ्य संबंधित जोखिम में कमी देखने में आई। चूंकि बासमती धान की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कमी मांग है। इसलिए जहरीले कीटनाशक मुक्त उत्पाद के कारण आईपीएम किसानों को बाजार मूल्य के अतिरिक्त प्रीमियम मूल्य मिलने से आय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी।
सारणी 1. विभिन्न स्थानों पर आईपीएम एवं गैर – आईपीएम प्रणाली में किया गया आर्थिक विश्लेषण
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पूसा बासमती – 1 |
तरावड़ी बासमती |
देहरादून बासमती |
पूसा बासमती – 1121 |
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शिकोहपुर (बागपत), उत्तर प्रदेश 2000 -02 |
छाजपुर (पानीपत), हरियाणा 2002 -04 |
तिलवाड़ी (देहरादून)उत्तराखंड 2005-07 |
अटेरना (सोनीपत), हरियाणा 2008 – 10 |
सिबोली (सोनीपत), हरियाणा 2008-10 |
बम्बावड़ (गौतमबुद्ध नगर) उत्तर प्रदेश 2010 -16 |
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औसत ऊपज (क्विं/हे.) |
आईपीएम |
गैर –आईपीएम |
आईपीएम |
गैर –आईपीएम |
आईपीएम |
गैर –आईपीएम |
आईपीएम |
गैर –आईपीएम |
आईपीएम |
गैर –आईपीएम |
आईपीएम |
गैर –आईपीएम |
55.68 |
45.77 |
27.09 |
22.32 |
22.72 |
18.98 |
41.0 |
35.8 |
44.6 |
37.53 |
38.06 |
30.03 |
|
लाभ लागत अनुपात |
2.85 |
2.01 |
2.80 |
1.86 |
3.18 |
3.08 |
6.4 |
5.3 |
6.27 |
4.77 |
3.79 |
2.35 |
कुल लागत में जमीन, की तैयारी, नर्सरी, बुआई, रोपण, श्रम लागत, बीज उर्वरक सिंचाई, कीटनाशक, जैविक कारक आदि जैसी सामग्री शामिल है। धान की कीमत उल्लेखित वर्ष में बाजार की कीमत के आधार पर गणना
सारणी 2. आईपीएम तकनीकी अपनाने पर किसानों को प्राप्त अतिरिक्त आर्थिक लाभ
गाँव का नाम |
आईपीएम के अंतर्गत क्षेत्र (हे.) |
गैर –आईपीएम की तुलना में अतिरिक्त आय (रूपये) |
शिकोहपुर (बागपत), उत्तर प्रदेश (पूसा बासमती – 1) |
400 |
52.48 |
छाजपुर (हरियाणा) (तरावड़ी बासमती) |
248 |
27.22 |
तिलवाड़ी उत्तराखंड (देहरादून बासमती) |
60 |
3.59 |
अटेरना (हरियाणा) (पूसा बासमती – 1121) |
40 |
10.07 |
सिबोली (हरियाणा) (पूसा बासमती – 1121) |
40 |
10.07 |
बम्बावड़ (उत्तर प्रदेश) (पूसा बासमती – 1121) |
415 |
83.85 |
किसान के अंतर्गत आने वाले स्थानों पर निरंतर 10 – 15 दिन के अंतराल एनपीआर किसान पाठशालाओं का आयोजन किया गया, जिसके फलस्वरूप तकनीकी को समझाने एवं उसके क्रियान्वयन में सहायता मिली। साथ ही किसानों एवं वैज्ञानिकों के मध्य महत्वपूर्ण संबंध स्थापित करने एवं विचार – विमर्श करने में सफलता मिली।
सभी स्थानों पर उन्नतशील किसानों को कीट रोग एवं उसके द्वारा हानि के लक्षणों की पहचान करने तथा कीट – रोग के आर्थिक हानि स्तर को जानने के लिए प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रक्रिया द्वारा किसानों को आवश्यक होने पर ही सही कीटनाशकों के छिड़काव के स्वयं के निर्णय लेने में सहायता मिली।
आईपीएम कार्यक्रम की सफलता के लिए गुणवत्ता युक्त जैविक कारकों की उपलब्धता स्थानीय बाजार/ब्लॉक स्तर पर होना अति आवश्यक है। वर्तमान कार्यक्रम में राज्यों कृषि विभाग/कृषि विश्वविद्यालय द्वारा स्थानीय ब्लॉक के माध्यम से जैव प्रयोगशालाओं द्वारा जैविक कारकों की उपलब्धता में सहायता की गई।
आईपीएम कार्यक्रम के क्रियान्वयन के दौरान केंद्र के धान टीम के सभी सदस्यों के मोबाईल फोन नम्बर क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों को दिए गये, जिससे वे आवश्यकता होने पर टीम के वैज्ञानिकों से संपर्क कर सही जानकारी प्राप्त कर सके।
लेखन: आर. के. तंवर, एस. पी. सिंह और विकास कंवर
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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