सीसा परियोजना सन् 2009 से केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के प्रायोगिक प्रक्षेत्र पर चल रही है। इसमें फसल प्रणाली की जुताई, फसल स्थापना के तरीके, फसल अवशेष प्रबंधन और फसल प्रबंधन के तरीकों के आधार पर अलग-अलग चारों परिदृश्यों (सिनेरियोज) का मूल्यांकन किया जा रहा है। प्रत्येक परिदृश्य को 2000 वर्ग मीटर के आकार के प्लाटों में रेंडेमाइज्ड कम्पलीट ब्लॉक डिजाइन में आयोजित उत्पादन पैमाने पर तीन बार दोहराया गया। परिदृश्यों को विभिन्न चालकों पर आधारित लंबी अवधि के लिए स्थायी रूप से बनाया गया है। इस अध्ययन में परिदृश्यों का विवरण तालिका 1 में वर्णित किया गया है।
परिदृश्य 1 : इस परिदृश्य का चुनाव किसानों द्वारा अपनाए जा रहे फसल चक्र और प्रबंधन के अभ्यास पर आधारित है। जिसके लिए 10-12 गांवों के 40 किसानों पर सर्वेक्षण करके धान-गेहूँ फसल प्रणाली में अपनाये जा रहे प्रबंधों को इस परिदृश्य में समावेशित किया गया। किसान मुख्यतः खेत को कद्दू करके धान का पौध रोपण करता है जबकि गेहूँ को पारम्परिक तरीके से खेत की जुताई करके बुवाई करता है। आमतौर पर किसान गेहूँ की बुवाई से पहले धान के अवषेशों को जला डालते हैं तथा धान को लगाने से पहले गेहूँ के सभी अवशेषों को भूमि से हटा दिया जाता है। इस परिदृश्य का उद्देश्य कृषि के परम्परागत सिद्धांतों पर आधारित फसल प्रणाली को सुचारु तरीके से चलाना है।
फसल प्रबंधन | परिदृश्य 1 | परिदृश्य 2 | परिदृश्य 3 | परिदृश्य 4 |
---|---|---|---|---|
परिवर्तन के चालक | किसानों के वर्तमान के अनुरूप व्यवसाय | गहन और सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं (एकीकृत फसल और संसाधन प्रबंधन) के माध्यम से उत्पादकता और आय बढाना | जल, श्रम और ऊर्जा की कमी तथा बिगड़ती मृदा स्वास्थ्य से निपटने के लिए बनायी गई प्रणाली | जल, श्रम और ऊर्जा की बढती कमी और बिगड़ते मृदा स्वास्थ्य से निपटने के लिए भविष्यवादी और विविध फसल प्रणाली |
फसल चक्र | धान-गेहूँ | धान-गेहूँ-मूंग | धान-गेहूँ-मूंग | मक्का-गेहूँ-मूंग |
फसल की बुआई | धान-पारंपरिक जुताई जुताई (कद्दू करके प्रतिरोपण) गेहूँ-पारंपरिक जुताई | धान-पारंपरिक (कद्दू करके प्रतिरोपण)गेहूँ तप्पड़ भूमि में जीरो-टिलेज,मूंग-जीरो-टिलेज | धान– तप्पड़ भूमि में जीरो-टिलेज (धान की सीधी बुआई) गेहूँ-जीरो-टिलेज, मूंग-जीरो-टिलेज | मक्का-जीरो टिलेज,गेहूँ-जीरो-टिलेज,मूंग-जीरो-टिलेज |
फसल स्थापना विधि | धान–प्रत्यारोपित गेहूँ-छिड़काव | धान–प्रत्यारोपित गेहूँ-ड्रिल से बोना मूंग-ड्रिल/रिले छिडकाव | धान-ड्रिल से बुआई गेहूँ-ड्रिल से बुआई मूंग-ड्रिल/रिले छिडकाव | मक्का-ड्रिल से बुआई गेहूँ-ड्रिल से बुआई मूंग-ड्रिल/रिले छिडकाव |
फसल अवशेष प्रबंधन | सम्पूर्ण अवशेषों को हटाया गया | धान के आंशिक (एकड) अवशेषों को सतह पर बनाए रखा, गेहूँ अवशेष(एंकड) सतह पर बनाए रखा मूंग अवशेषों को भूमि में मिलाया गया | धान तथा मूंग के सम्पूर्ण अवशेषों के (100 प्रतिशत) को तथा गेहूँ के एंकर्ड अवशेषों को भूमि सतह पर बनाए रखा गया | मक्का (65 प्रतिशत, भुट्टे नीचे का हिस्सा) तथा मूंग के सम्पूर्ण अवशेष (100 प्रतिशत) तथा गेहूँ के आंशिक (एंकर्ड) अवशेषों को भूमि भूमि सतह पर बनाए रखा गया |
कृषि सिद्धांतों पर आधारित प्रणाली | कृषि के परम्परागत सिद्धांतों पर आधारित प्रणाली | आंशिक रुप से कृषि संरक्षण सिद्धांतों पर आधारित प्रणाली | पूर्णरुप से वर्तमान कृषि संरक्षण सिद्धांतों पर आधारित प्रणाली | पूर्णरुप से भविष्य कृषि संरक्षण सिद्धांतों पर आधारित प्रणाली |
परिदृश्य 2 : इस परिदृश्य का उद्देश्य गहनता और बेहतर प्रबंधन के तरीकों के माध्यम से वर्तमान में उपस्थित धान-गेहूँ फसल प्रणाली की उत्पादकता और आय में वृद्धि करना है। इस परिदृश्य में धान-गेहूँ फसल प्रणाली में मूंग का समावेश किया गया है। यह परिदृश्य परिवर्तन के दौर वाला परिदृश्य है जिसमें पारंपरिक खेती एवं संरक्षण खेती का मिश्रण किया गया है। यह परिदृश्य उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जहां गेहूँ के अवशेषों को काटकर पशुओं को चारे के रुप में खिलाया जाता है। मूंग की फसल को गेहूँ के साथ रिले फसल के रूप में लगाया जाता है।
परिदृश्य 3 : इस परिदृश्य में फसलों एवं संसाधनों का प्रबंधन, सिंचाई जल, ऊर्जा और कृषि श्रमिकों की कमी की समस्या से निपटने तथा बढ़ती उत्पादन लागत और मृदा की खराब होती दशा से निपटने के लिए किया गया है। इस परिदृश्य में धान-गेहूँ-मूंग फसल प्रणाली को संरक्षण खेती के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुये लगाया गया जिसमें सभी फसलों को जीरो-टिलेज के तहत उगाया जाता है। इसमें मूंग को मौसम के अनुसार किसी वर्ष गेहूँ की कटाई के बाद ड्रिल करके व किसी वर्ष में रिले फसल के रूप में लगाया जाता है।
परिदृश्य 4 : इस परिदृश्य का उद्देश्य खाद्यान्न पर आधारित ऐसी भविष्यविद् तथा विविध फसल प्रणाली की पहचान करना है जो परिदृश्य 3 के मुद्दों जैसे सिंचाई जल, ऊर्जा और कृषि श्रम की समस्या से निपटने के लिए धान का एक उपयुक्त विकल्प हो। इस परिदृश्य में धान के स्थान पर मक्का को लगाया जाता है इसलिए इसमें धान-गेहूँ –मूंग की बजाय मक्का-गेहूँ-मूंग फसल चक्र अपनाया गया तथा सभी फसलों को जीरो-टिलेज के तहत ही उगाया जाता है। फसल अवशेषों का प्रबंधन तालिका 1 के अनुसार किया गया है।
स्त्रोत : केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान(भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद),करनाल,हरियाणा।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस पृष्ठ में मधुमक्खी पालन से संबंधित केस अध्ययन क...
इस भाग में अतिरिक्त आय एवं पोषण सुरक्षा हेतु वर्ष ...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस भाग में झारखण्ड में समेकित कीट प्रबंधन पैकेज के...