भारत में जनसँख्या वृद्धि एक विकट समस्या हैं जहाँ एक और किसान के पास सीमित कृषक भूमि है वहीँ दूसरी और सीमित सांसदों के रहते किसान को आवश्यक है की कृषि से अधिक से अधिक उपज प्राप्त हो सके इसलिए रसायनो का उपयोग कृषि में बढ़ता जा रहा है जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। कृषि में फसलोत्पादन अधिकतर मौसम आधारित होने के कारण विपरीत मौसम परिस्थितियों में आशान्वित उपज प्राप्त नहीं हो पाती। इससे कृषक आय पर प्रभाव पड़ता है जो की आर्थिक व् सामाजिक दृष्टिकोण से भी कृषक को प्रभावित करता है। इस हेतु यह आवश्यक हो गया है की कृषि में फसल के साथ साथ अन्य घटको को भी समेकित किया जाए जिससे किसान को सतत आय मिलती रहे साथ ही विभिन्न घटको के अवशेषों को भी संसाधनों के रूप में पुनर्चक्रण किया जाए जो पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभकारी हो।
एकीकृत कृषि प्रणाली का तात्पर्य कृषि की उस प्रणाली से है जिसमे कृषि के विभिन्न घटक जैसे फसल उत्पादन, मवेशी पालन, फल तथा सब्जी उत्पादन, मधुमकखी पालन, वानिकी इत्यादि को इस प्रकार समेकित किया जाता हैं, वे एक दूसरे के पूरक हो जिससे संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभप्रदता में पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए वृद्धि की जा सके इसे एकीकृत कृषि प्रणाली कहते है। यह एक स्व-सम्पोषित प्रणाली है इसमें अवशेषों के चक्रीय तथा जल एवं पोषक तत्वों आदि का निरंतर प्रवाह होता रहता है जिससे कृषि लागत में कमी आती है और कृषक की आमदनी में वृद्धि होती है साथ ही रोजगार भी मिलता है।
एकीकृत कृषि प्रणाली में एक उद्यम की दूसरे उद्यम पर अंर्तनिर्भरता समन्वित कृषि प्रणाली की मूल-भावना एक उद्यम की दूसरे उद्यम अंर्तनिर्भरता पर आधारित है। अत: समेकित कृषि प्रणाली में विभिन्न घटकों को एक निश्चित अनुपात में रखा जाता है जिससे विभिन्न उद्यम आपस में परस्पर सम्पूरक एवं सहजननात्मक संबंध स्थापित करके कृषि लागत में कमी लाते हुए आमदनी एवं रोजगार में वृद्धि कर सके।
यह प्रणाली मूलतः इस सिद्धांत पर आधारित है की इसमें समेकित घटक के बीच में परस्पर प्रतिस्पर्धा अधिक न हो और परस्पर पूरकता अधिक से अधिक हो और इसमें कृषि-अर्थशास्त्रीय प्रबन्धन के परिष्कृत नियमों का उपयोग करते हुए किसानों की आमदनी, पारिवारिक पोषण के स्तर और पारिस्थितिकीय प्रणाली से मिलने वाले लाभ सतत और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल हो। इनके साथ ही जैव विविधता का संरक्षण, फसल/खेती की प्रणाली में विविधता और अधिकतम मात्रा में पुनर्चक्रण करना इस प्रणाली हेतु आवश्यक है।
मिट्टी की जीवन्तता को बनाए रखना और प्राकृतिक संसाधनों के कारगर प्रबन्धन से खेत को टिकाऊ आधार प्रदान करना। इसके अन्तर्गत जो बातें शामिल हैं, वे इस प्रकार हैं:
एकीकृत कृषि प्रणाली में फसल और इससे सम्बन्धित उद्यमों में सघनता से उपज और आर्थिक/इकाई समय का इजाफा होता है। भारत में किये गए कई अध्ययनों से पता चला है कि समन्वित कृषि दृष्टिकोण अपनाने से छोटे और सीमान्त किसानों की आजीविका में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है।
एकीकृत कृषि प्रणाली खेतों के स्तर पर अपशिष्ट पदार्थों का परिष्कार करके उसे दूसरे घटक को बिना किसी लागत या बहुत कम लागत पर उपलब्ध कराने का समग्र अवसर प्रदान करती है। इस तरह एक उद्यम से दूसरे उद्यम के स्तर पर उत्पादन लागत में कमी लाने में मदद मिलती है। इससे निवेश किये गए प्रत्येक रुपए से काफी अधिक मुनाफा मिलता है। अपशिष्ट पदार्थों के पुनर्चक्रण से आधानों के लिये बाजार पर निर्भरता कम होती है
खेती के साथ अन्य गतिविधियों को अपनाने से मजदूरी की माँग उत्पन्न होती है जिससे पूरे साल परिवार के सदस्यों को काम मिलता है और उन्हें खाली नहीं बैठे रहना पड़ता। पुष्प उत्पादन, मधुमक्खी पालन और प्रसंस्करण से भी परिवार को अतिरिक्त रोजगार प्राप्त होता है।
भोजन और पौष्टिक आहार की घरेलू आवश्यकता पूरा करना तथा बाजार पर निर्भरता घटाना।
अपशिष्ट पदार्थों का पुनर्चक्रण कृषि प्रणालियों का अभिन्न अंग है। यह खेती से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के टिकाऊ निपटान का सबसे उपयोगी तरीका है। इससे पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के साथ-साथ बहुत से सूक्ष्म पोषक तत्वो का भी खेतों में ही पुनर्चक्रण के माध्यम से उपयोग किये जा सकते हैं।
एकीकृत कृषि प्रणाली की उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिये भूमि और जल जैसे संसाधनों का विविधतापूर्ण उपयोग बेहद जरूरी है। वर्षा जल को जल संग्रहण संरचना बनाकर एकत्रित किया जा सकता है व् इस जल का उपयोग फल वृक्षों को लगाने में या सब्जी उत्पादन में पूरक सिचाई हेतु किया जा सकता है। जिससे छोटे काश्तकारों की आमदनी बढ़ाने, उनके पौष्टिक आहार के स्तर में सुधार और रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
छोटे और सीमान्त कृषकों के खेती के अपशिष्ट पदार्थों के फिर से इस्तेमाल की व्यवस्था करने से उर्वरकों का उपयोग कम करने में भी मदद मिलेगी जिसका सकारात्मक असर पड़ेगा।
एकीकृत कृषि प्रणाली दृष्टिकोण अपनाने से खेती के जोखिमों को कम करने, खासतौर पर बाजार में मंदी और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न खतरों से बचाव में भी मदद मिलती है। एक ही बार में कई घटकों के होने से एक या दो फसलों के खराब हो जाने का परिवार की आर्थिक स्थिति पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर किसान अपने खेतों में संग्रहित जल से फसल आच्छादन बढ़ा सकते है तथा उपलब्ध संसाधनों का भरपूर दोहन करते हुए अपनी आय में वृद्धि कर सकते है। समन्वित कृषि प्रणाली के अंतर्गत कृषि के विभिन्न उद्यम से किसानों को रोजाना आय प्राप्त हो सकती है जिससे वह अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति कर सकता है। छोटे एवं सीमांत किसान इस प्रणाली के द्वारा अपनी भूमि पर सालो भर रोजगार प्राप्त कर सकते है तथा बड़े किसान अपनी भूमि पर दूसरों को रोजगार मुहैया करा सकते है। अत: अच्छी आमदनी एवं रोजगार प्राप्त होने पर किसानों एवं मजदूरों का गाँवों से शहरों की तरफ होने वाले पलायन को रोका जा सकता है। साथ ही इस प्रणाली को अपनाकर हम मृदा-उत्पादकता को बरकरार रखते हुए अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते है।
लेखन: सीमा भारद्वाज, मृदा वैज्ञानिक, भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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