कुल्थी का दलहनी फसल के उर्प में बहुतायत किसान खेती करते हैं। कुल्थी की खेती का रकबा बिहार में बहुत कम है। हलांकि इसमें संभावनाएं काफी अधिक है, क्योंकि कुल्थी में औषधीय गुण भी विद्यमान है। कुल्थी की खेती कुछ किसान पशुओं के लिए चारा के रूप में भी करते हैं। इसकी खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है।
अ) बुआई के 24 घंटे पूर्व २-2.5 ग्राम फफूंदनाशी दवा) जैसे डाईफाल्टान अथवा थीरम अथवा कैप्टान) से प्रति किलो ग्राम बीज का उपयोग करें।
ब) बुआई की ठीक पहले फफूंदनाशक दवा से उपचारित बीज से उपचारित बीज को उचित राइजोबियम कल्चर एवं पी.एस.बी. से उपचारित कर बुआई करनी चाहिए।
स) राईजोबियम कल्चर से बीज उपचार फफूंदनाशी दवा से उपचारित करने के बाद करना चाहिये।
बुआई की दुरी – पंक्ति से पंक्ति की दुरी 30 सें,मी, तथा पौधे से पौधे की दुरी 10 सेंमी,
उर्वरक प्रबन्धन : कुल्थी में उर्वरक की कोई खास आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी उत्तम पैदवार के लिए 20 किग्रा, नेत्रजन एवं 60 किग्रा, फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। उर्वरक को आवश्यकतानुसार एक बार अथवा दो बार सिंचाई के उपरांत देना चाहिए।
सिंचाई: कुल्थी में सिचाई की कोई खास आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि फली बनते समय एक सिंचाई करने से कुल्थी के दाने अधिक पुष्ट होते हैं।
निकाई-गुडाई एवं खरपतवार प्रबन्धन: एक निकाई-गुडाई बुआई के 26-30 दिनों बाद करें। निकाई-गुडाई से अनावश्यक खरपतवार खेत से बाहर निकल जाते हैं,और साथ ही मिट्टी मुलायम हो जाती है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।
कटनी, दौनी एवं भंडारण:कुल्थी की फलियाँ एक बार पक कर तैयार हो जाती है। पकने पर फलियों का रंग भूरा हो जाता है और पौधे पीले पड़ने लगते हैं। पके हुए पौधों को काटकर धूप में सुखाकर दौनी करके दाना अलग कर लें। कुल्थी के दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर ही भंडारित करें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, बिहार सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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