गुलदाऊदी एकशाकीय बहुवर्षीय पौधा है, जिसे क्म्पोजिर्ट फूल के अंतर्गत श्रेणीबद्ध किया गया है। वर्तमान में गुलदाउदी एक लोकप्रिय पौधे के रूप में उभरकर आई है। भारत में शोभाकारी पौधों में इसने तीसरा फूलदान में तथा अन्य सजाने के स्थान ग्रहण कर लिया है। उज्व्व्ल एवं आर्कषक रंगों से युक्त गुलदाउदी के पुष्प विभिन्न आकार एवं रूप से युक्त फूलदान में तथा अन्य सजाने के स्थान में लम्बे समय तक तरोताजा बने रहने के गुण ने इसको अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया है। इन गुणों से युक्त गुलादाऊदी आज हमारे सम्मुख एक नगदी फसल के रूप में व्यवसाय के लिए निखर लिए उपस्थित है। इसकी अनेक प्रजातियाँ हैं। मिर्ना, बटन, छोटी, मध्यम और बड़ी गुलदाऊदी लगभग सभी रंगों से युक्त एवं आकार में विभिन्नता लिए उगने के लिए उपलब्ध है। मुख्यतः यहाँ पर सफेद उअर पीले रंग की गुलदाऊदी की अधिक मांग है।
इसका प्रसारण बीज एवं वानस्पतिक दोनों विधियों द्वारा होता है। वानस्पतिक प्रसारण मुख्यतः जड़ से विकसित तनों, तनों की कटिंग द्वारा होता है। सकर में जब 5-6 पत्तियाँ निकल जाती आती है, उस समय इसे मातृ पौधे से अलग कर लिए जाता है। सकर को कम्पोस्ट खाद (गोबर की खाद: पत्ती की खाद तथा मिट्टी २:२:1 के अनुपात में मिलाकर एक चम्मच सुपर फास्फेट मिला देते हैं) गमले में भरकर सघन लगा देते हैं। सकर का नये पौधे में रूपांतरण, उसकी वृद्धि की प्रारंभिक अवस्था, तापमान, प्रकाश तथा बहुत कुछ प्रजाति विएश पर भी निर्भर करता है। कटिंग के द्वारा बनाना गुलदाऊदी की लगभग सभी प्रजातियों में प्रचलित है।
शीर्ष कटिंग (लम्बाई 5-6 से. में. था व्यास 3.२ -4.8 मी.मी.) के स्वस्थ पौधों से जून माह के मध्य सेजुलाई माह के अंत तक जड़ विकसित करने के लिए चयनित कर लिया जाता है। जड़ों के विकास के लिए इंडोल ब्यूटेरिक एसिड से कटिंग को उपचारित का 5x5 से. मी. की दुरी में क्यारियों में तथा गमलों में लगा दिया जाता है। कटिंग को समय-समय पर सिंचाई की जाती है। सूर्य के सीधे प्रकाश और गर्मी तथा वर्षा से भी कटिंग की रक्षा करनी पड़ती है। जड़ों का विकास दो सप्ताह के बाद आरंभ हो जाता है, जो कि वातावरण की आपेक्षिक आर्द्रता, ताप एवं प्रजाति विशेष पर बहुत कुछ निर्भर करता है। कटिंग से पौध बनने की प्रक्रिया 3-4 सप्ताह में पूरी हो जाती है। अब इन्हें प्रतिरोपित किया जा सकता है।
गुलदाऊदी को लगाने के लिए आर्दश क्यारी की नाप 1.25x6 मीटर होना चाहिए। कटिंग से तैयार पौधों को इन क्यारियों में प्रतिरोपित किया जाता है। गुलादाऊदी को लगाने के लिए आर्दश क्यारी की नाप 1.25X6 मीटर होना चाहिए। कटिंग से तैयार पौधों को इन क्यारियों में प्रतिरोपित किया जाता है। पहले खिलने वाले गुलदाऊदी की प्रजाति को 20 x20 सें.मी. की दुरी पर, मध्य में खिलने वाली गुलदाऊदी को 25x25 से. मी. की दुरी पर तथा देर से खिलने वाली प्रजाति को 30 x 30 से. मी. दुरी पर लगाया जाता है।
खिलने का माह |
लगाने का माह |
प्रतिरोपण माह |
अक्तूबर |
जून से अंत में |
जुलाई का अंतिम सप्ताह |
नबम्बर |
जुलाई के आरंभ |
अगस्त के आरंभ |
दिसबंर |
जुलाई के मध्य |
अगस्त के मध्य |
जवनरी |
जुलाई के अंत |
अगस्त के अंत |
गुलदाऊदी की कुछ प्रमुख प्रजातियाँ जिनके पुष्प विभिन्न महीनों में खिलते हैं:
फूल खिलने का माह |
प्रजाति का नाम |
प्रजाति का रंग |
अक्तूबर |
शरदमाला |
सफेद |
शदरहार |
पीला |
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अजय |
गुलाबी |
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नवम्बर |
नानको |
पीला |
पिंक जीन |
गुलाबी |
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काटन बाल |
सफेद |
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लाल परी |
लाल |
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सी-२ |
सफेद |
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दिसबंर |
कुंदन |
पीला |
जुबली |
सफेद |
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जयंती |
पीला |
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बीरबल साहनी |
सफेद |
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जनवरी |
पूजा |
गुलाबी |
सुनीता |
बैंगनी |
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जया |
लाल |
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नीलिमा |
बैगनी |
गुलादाऊदी की खेती में फास्फोरस की आपूर्ति सुपरफास्फेट (125 ग्राम पति वर्गमीटर) की बेसल डोज से की जाती है। नाइट्रोजन वृद्धि के पथम चरण में दिया जाता है। पोटेशियम की आवश्यकता पौधों की कलियों के उदभव के साथ पड़ती है। नीम की खल्ली का उपयोग टाप ड्रेसिंग के रूप में किया जाता है। गुलदाऊदी को शीघ्र खिलने वाली प्रजातियों में इसकी आवश्यकता एक बार परन्तु मध्य तथा देर से खिलने वाली प्रजातियों में नीम की खल्ली से टाप ड्रेसिंग दो बार करनी पड़ती है। उच्चस्तरीय उत्तम एवं उज्व्वल पुष्प और अच्छी पैदावार के लिए यूरिया 100 ग्राम प्रति वर्ग मी,. के हिसाबी दो विभक्त खुराकों में एक महीने के अंतराल तथा पोटाश 35 ग्राम प्रति मीटर आवश्यकता पौधों के कलियों के विकास के समय देना चाहिए।
निराई और गुडाई दो प्रमुख एंव आवश्यक प्रक्रियाएं हैं, जो फसल काल में गुलदाउदी की विभिन्न प्रजातियों को उगाने के लिए की जाती है। एक फसल काल के दौरान इसे 8-10 बार यह क्रिया करनी पड़ती है।
गुलदाउदी में सिंचाई बहुत कुछ वर्षा पर निर्भर करती है। इसकी खेती में क्यारियों का स्तर थोड़ा ऊँचा रखना चाहिए, जिससे वर्षाकाल में क्यारियों में पानी का भराव न हो। पानी के विकास की व्यवस्था भी समुचित ढंग से होनी चाहिए। समय –समय पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
गुलदाउदी के पौधों की सीधी और अच्छी वृद्धि के लिए सहारे की आवश्यकता पड़ती है, जिसे बांस की खपच्ची लगाकर किया जात है। यह विधि गमलों में न्पौध उगाने के लिए ठीक है, लेकिन व्यावसायिक स्तर की खेती में लागत को देखते हुए दूसरी सस्ती विधि का उपयोग करते हैं। क्यारियों के दोनों छोर पर लगभग 75 से.मी, ऊँचा बांस गाड़ देते है। अब महीन तार को एक छोर से दूसरे छोर में बांध देते हैं, जिससे पौधे पंक्तिबद्ध उर्प से उगें तथा उनकी शाखाएं भूमितल में न गिरें। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अक्तूबर माह तक हो जानी चाहिए। गुलदाउदी की बड़ी प्रजाति को उगाते समय पहला तार भूमि से 30 से. मी,. ऊंचाई पर और दूसरा तार 50 से. मी. की ऊंचाई पर बांधना पड़ता है। इससे पौधे सुचारू रूप से बढ़ते हैं तथा पाशर्व शाखाओं को भी भलीभांति बढ़ने का मौका मिलता है।
पिंचिंग प्रक्रिया करना भी आवश्यक होता है, चूँकि इसमें प्रति पौध अधिक पाशर्व शाखाओं का उदभव होता है इससे पौधा भरा हुआ प्रतीत होता है तथा इसमें फूलों की संखया भी अधिक प्राप्त होती है।
गुलादाऊदी में रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवी, कवक, जीवाणु और विषाणु प्रमुख हैं। मुख्यतः विल्ट (रस्ट, फ्लावर राट) प्रमुख हैं। विल्ट हेतु भूमि को डाईथेन एम्-45 से उपचारित कर देना चाहिए। रस्ट के बचाव के लिए खेतों में सल्फर युक्त दवा का छिड़काव करना चाहिए तथा फ्लावर राट लगने पर रोगग्रस्त पौधे को क्यारी से निकालकर नष्ट कर देना चाहिए तथा डाईथेन एम्-45 0.२% घोल का छिड़काव करना चाहिए।
कीड़ों में रेड स्पाइडर माईट एवं लीफ हापर प्रमुख हैं। इससे बचाव हेतु कीटनाशक दवा रोगर 30 ई.सी अथवा मेटासिस्टाक्स 25 ई.सी. का 0.1% घोल छिड़काव करना चाहिए।
उपज या आय
गुलदाउदी के फूल से लगभग 200 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त होती है। इसे 10 रूपये/किलो की दर से बेचा जा सकता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 6/23/2023
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