कृषि, उद्योग एवं पेयजल आपूर्ति हेतु विभिन्न योजनाओं में जल के उपयोग में अव्यस्था से जहाँ जल संसाधनों की मनाग में वृद्धि हुई है, वहीं इन संसाधनों में उपलब्ध जल स्तर में गिरावट भी आई है। निरंतर बढ़ती हुई जनसंख्या और जल स्रोतों के असीमित दोहन में इसी गति से वृद्धि होती रहती तो आश्चर्य नहीं कि आगामी दो-तीन दशकों में ही जल सकंट इतना गहरा हो जाएगा कि पेयजल आपूर्ति भी विकराल समस्या का रूप ले लेगी। परिणामस्वरूप कृषि के लिए जल की उपलब्धता निम्न स्तर की हो जाएगी। ऐसे परिपेक्ष्य में जल संसाधनों का सुव्यवस्थित एवं विवेकपूर्ण उपयोग कृषि के टिकाऊपन के लिए नितांत आवश्यक है। साथ ही यह समझा जाने लगा है कि जल का सिमित उपयोग करके अधिक क्षेत्र में फसलें लगाकर अधिकतम उत्पादन लिया जा सकता है।
सिंचाई की विभिन्न विधियों में (फव्वारा सिचाई) एक ऐसी पद्धति है जिसको अपनाकर जल प्रंबधन के लक्ष्य प्राप्त किया जा सकते हैं। यह सिंचाई की उन्न्त एवं आधुनिक विधि है। इस विधि में सिचाई क्यारियों में न करके पाईपों एवं नोजलों के माध्यम से वर्षा के रूप में की जाती है। इस पद्धति में प्लास्टिक अथवा एल्युमिनियम पाइपों का खेत में जाल बिछाकर ऊँचे-नीचे, रेतीले, पहाड़ी व पथरीली किसी भी प्रकार की जमीन में सहजता से सिंचाई की जा सकती है। यह विधि जल संरक्षण के साथ-साथ मृदा अपरदन रोकने तथा भू-संरक्षण में भी सहायम है, क्योंकि इस विधि से सिंचाई करते समय जल बहकर बाहर नहीं जाता है। इसके अतिरिक्त क्यारी विधि की तुलना में फव्वारा सिंचाई पद्धति कई तरह से लाभकारी है।
फव्वारा सिंचाई पद्धति का पिछले दशक में तेजी से प्रसार हुआ है परन्तु कुछ बिंदु ऐसे रहे हैं जिनपर अनुसन्धान द्वारा किसानों को जानकारी देना शेष है।
ऐसे कतिपय प्रश्नों का हल निकालने के उद्देश्य से राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के कृषि अनुसधान केंद्र, नौगावा (अलवर) पर गेंहू, जौ, सरसों व चना जैसे क्षेत्र की प्रमुख फसलों पर फव्वारा सिंचाई व सतही विधि से सिंचाई का वर्ष 1997-2003 में अध्ययन किया गया। इन प्रयागों के परिणामस्वरूप यह निष्कर्ष निकाला गया कि लगभग सभी फसलों (गेंहू, जौ, सरसों) का उत्पादन सिंचाई की दोनों विधियों में समान रहता है परन्तु फाव्वारा सिंचाई पद्धति में 35-40% पानी की बचत होती है। जिसका उपयोग, उतना ही सिंचित क्षेत्र बढ़ाने अथवा भूमिगत जल स्तर को सुदिढ़ करने में किया जा सकता है।
भरतपुर खंड में प्रतिवर्ष लगभग 3,62,720 हेक्टेयर (सिंचित क्षेत्र) में गेंहू की खेती की जाती है। इस क्षेत्र की मिट्टी हल्की दोमट से लेकर भारी दोमट तक होती है। गेंहू में 5-6 सिंचाई क्यारियां बनाकर की जाती है। इस विधि से सिंचाई करने पर कुल 425 मिमी. पानी की आवश्कता पड़ती है। फाव्वारा विधि से 7 सिंचाई, बुबाई एक 20,40,60,75,90,105,115 दिनों के बाद 6 घंटे फव्वारा चलाकर सिंचाई करके क्यारी विधि के बरावर उत्पादन लिया जा है।
बलुई मृदा में 4000 गैलन प्रति घटा के समान्यतः उपलब्ध बहाव, फव्वारा व् सतही सिंचाई पद्धतियों का आर्थिक तुलनात्मक विवरण
फसल का नाम |
सिंचाई पद्धति |
सिंचाई संख्या व अंतराल |
पानी की खपत (मिमी. में) |
सिंचाई में लगने वाला समय (घं/हे/ |
काबू काक्षेत्रफल (हे. |
उपज किग्रा. हे. |
पानी की बचत |
सकल आय रूपये |
वास्तविक वसूली रुपये |
गेहूं |
सतही विधि |
6( बुवाई के 25,45,65,85,100, 115 दिनों के बाद) |
425 |
35 |
8 |
4475 |
139350 |
66123 |
73227 |
|
फव्वारा विधि |
7 (बुआई के 20,40,60,75,90,105, 115 दिनों के बाद) |
273 |
25 |
14.5 |
3949 |
227225 |
104722 |
122502 |
जौ |
सतही विधि |
4 (बुआई के 30,60,90, 110 दिनों के बाद) |
270 |
35 |
12 |
4308 |
- |
171050 |
75590 |
|
फव्वारा विधि |
4 (बुआई के 30,60,90, 110 दिनों के बाद) |
176 |
34 |
16 |
4100 |
35 |
217200 |
94730 |
सरसों |
सतही विधि |
२ (बुआई के 45, 90, दिनों के बाद) |
105 |
35 |
13 |
2034 |
- |
211200 |
62395 |
|
फव्वारा विधि |
२ (बुआई के 45, 90, दिनों के बाद) |
91 |
29 |
22 |
1871 |
39 |
350400 |
100010 |
सतही सीधी से एवं फव्वारा सिंचाई से प्राप्त उपज में विशेष अंतर नहीं रहता है। इसके साथ ही 35% पानी की बचत भी की जा सकती है। सरसों की फसल में फाव्वारा सिंचाई उपयोगी पाई गई है। इस फसल में दो सिंचाई, फाव्वरे से बुआई एक 45, 90 दिनों के बाद करने पर 91 मिमी. पानी की आवश्कता पड़ती है जो सतही विधि की तुलना में 60 मिमी, कम है और उपज में भी कोई गिरावट नहीं है। सरसों की फसल में फाव्वारा सिंचाई पद्धति का उपयोग करने से 30% पानी की बचत की जा सकती है। बलुई दोमट मिट्टी में सतही व फाव्वारा सिंचाई पद्धति का 4000 गैलन प्रति घंटा के सामान्यतः उपलब्ध पानी के बहाव पर प्रतिदिन 8 घंटे सिंचाई करने पर गेंहू, जौ और सरसों जैसी फसलों से वास्तविक वसूली का तुलनात्मक विवरण सारणी में दर्शाया गया है।
विभिन्न अश्वशक्ति की क्षमता वाली मोटरों के अनुरूप फव्वारों की संख्या का निर्धारण :
फव्वारों की संख्या मूलतः मोटर की अश्वशक्ति पर निर्भर करती है। किसी भी मोटर के लिए फव्वारों की संख्या उपयुक्तता से कम अथवा अधिक दोनों परिस्थितियों में विपरीत प्रभाव देखने में आये हैं। इस पद्धति में ध्यान देने योग्य बात यह होती है कि फव्वारों द्वारा बरसाई जाने वाली बुँदे न तो बहुत बड़ी हों और न ही बहुत छोटी। बड़ी बूंदों से मिट्टी का कटाव व फसल को भी नुकसान हॉट है। अत्यधिक बारीक बूंदों से पानी जमीन तक पहुंचने के पहले ही वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाता है। अनुसन्धान परिक्षण द्वारा यह देखा गया है कि यदि नोजलों की रफतार पे चलाने के लिए 1.२-1.4 किग्रा/सेमी. क दाब रखना ठीक रहता है। परीक्षणों द्वारा यह भी देखा गया है कि इस दाब पर नोजलों की रफतार 3-4 कक्क्त्र प्रति मिनट रहती है। इस परिस्थति में ही 6 मीटर के अंतराल पर लगाये गये नोजलों की फ़ेंक का ओवर लूप 50% तथा 12 मीटर के अंतराल पर लगाये नोजलों का ओवर लैप 35% तक रहता है। 50% का ओवर लैप जलकी बलुई मिट्टी के लिए तथा 35% का ओवर लैप बलुई दोमट जमीन के लिए उपयुक्त पाया गया है। इन दोनों व्यवस्थाओं में नोजलों द्वरा बरसाई जा रही बूंद का आकार सर्वथा फाव्वरे लगाये जाने चाहिए कि एक एक पानी दूसरे को पार का जाए 12 मीटर पर उनते फव्वारा लगायें कि लगभग 35% का ओवर लैप एक दूसरे नोजल में हो सके। किसी भी क्षमता वाली मोटर के साथ फव्वारे की संख्या का पूर्वानुमान इस तरह से कर लेने से व उपयुक्त संख्या के फवारे लगाने ए उत्तम सिंचाई की जा सकती है।
आमतौर से फव्वारा सिंचाई पद्धति के लिए 6 मीटर लबे पाइप लगाये जाते हैं। इन पाइपों के प्रत्येक जोड़ पर अथवा 12 मीटर की दुरी पर फावारे लगाये जा सकते हैं। बलुई अथवा दोमट जमीन में फव्वारे से सिंचाई करते समय एक फव्वारे की फ़ेंक इतनी हो कि दूसरे नोजल को पार कर जाए। इस पाकर की व्यवस्था में 50% ओवर लैप आता है। इसी प्रकार कुछ भारी किस्म की जमीन में फावारे को 12 मीटर की दुरी पर लगाकर 35% का ओवर लैप उपयुक्त पाया गया है। 6 मीटर की दुरी पर लगाये गये फव्वारों से सिंचाई के लिए 3.4.5 घंटे समय सर्वथा उपयुक्त रहता है। यह समय भी सिंचाई के अतराल को प्रभावित करता है। कम समय तक फाव्वारा चलाने पर उससे अगली सिंचाई का अंतराल कम हो जाता है तथा सिंचाई की संख्या में श्रम बढ़ जाता है। 6 मीटर के अंतराल पर फाव्वारा लगाए जाने पर 4 घंटे का समय उपयुक्त पाया गया है। इससे कम अथवा अधिक समय तक पर फाव्वारा चलने से विपरीत प्रभाव देखा गया है। 12 मीटर फाव्वारों को लगाकर सिंचाई करने वाली परिस्थतियों में 6 घंटे का समय पर्याप्त रहता है।
फव्वारा सिंचाई पद्धति का विकास पानी की बहत की दृष्टि से किया गया है। यह उन सभी परिस्थितियों में जहाँ पर सतही विधि से सिंचाई नहीं की जा सकती है, के लिए उपयुक्त व लाभकारी पाया गया है। सिंचाई के ऐसे स्त्रोत व अनुसंधान जिनकी क्षमता आमतौर पर 4000 गैलन प्रति घंटा हो, फव्वारा सिंचाई पद्धति अपनाने से सतही सीधी की तपना में गेंहू में सकल वास्तविक वापसी 1,22,५०२ रु, जौ में 1,22,470 रु. तक की ली जा सकती है। यह सतही विधि की अपेक्षा गेंहू में 49,275 रूपये, जौ में 27,०१० रूपये तथा सरसों में 1,07,585 रूपये अधिक है। इन सभी फसलों में प्रति हेक्टेयर वसूली दोनों पद्धतियों में लगभग बराबर आंकी गई है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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