खाद्यान उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के साथ ही अब संतुलित पोषण की आवश्यकता को महत्व दिया जाने लगा है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जहाँ शाकाहार को महत्व दिया जाता है, सब्जियों का महत्व और भी बढ़ जाता है। कुल जनसँख्या के आधार पर संतुलित पोषण की दृष्टि से सब्जियों का उत्पादन देश में काफी कम है। इसे उन्नत उत्पादन तकनीकों द्वारा बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं। अन्य फसलों की तुलना में सब्जियों की खेती से प्रति इकाई क्षेत्रफल अधिक आमदनी प्राप्त होती है।
विभिन्न सब्जियों की क्षेत्र के लिए उपयुक्त एवं अधिक पैदावार देने वाली किस्में तालिका-1 में दी गिया है:
तालिका-1: सब्जियों की अनुशंसित किस्में
फसल |
क्षेत्र के लिए अनुशंसित किस्में |
बैंगन |
स्वर्ण श्री, स्वर्णमणि, स्वर्ण प्रतिभा, स्वर्ण श्यामली, अर्का केशव, अर्का निधि, पन्त ऋतुराज, पन्त सम्राट क्रांन्ति, नरेन्द्र हाईब्रिड -२, पूसा हाईब्रिड -6 |
टमाटर |
स्वर्ण वैभव, स्वर्ण नवीन, स्वर्ण लालिमा, पूसा शीतल, बी.टी.-17. बी.टो-20.२.1, एन.डी.टी.-3, शक्ति, अर्का आभा, सी. एच आर. टी.-4, सी.एच.डी.टी.-1, अर्का वरदान, पूसा हाईब्रिड-1, के.एस.-११८, एन.डी.टी.-8 ए, सी.एच.डी.टी.- |
फूलगोभी |
अर्ली कुवारी, पूसा अर्ली सिंथेटिक, पूसा दीपाली, पूसा कातकी, पंत शुभ्रा, पूसा शुभ्रा, पूसा सिंथेटिक, पूसा स्नो वॉल, पूसा स्नो वॉल के. 1, स्नो वॉल-16, पूसा हाईब्रिड -२ |
बंदगोभी |
ग्रीन एक्सप्रेस, आई.ए.एच.एस.-5 गोल्डन एकर, प्राइड ओफ इंडिया, पूसा मुक्तता |
|
पूरा ड्रमहेड, अर्ली ड्रमहेड, लेट ड्रमहेडम सुवर्णा (बी.एस. एस.-115)श्री गणेश गोल |
फ्रांसबिन (झाड़ीदार) |
स्वर्णप्रिया, अर्का कोमल, पन्त अनुपमा कन्टेडर |
फ्रांसबिन (लत्तीदार) |
स्वर्णलता, बिरसा प्रिया |
भिन्डी |
अर्का अनामिका, अर्का अभय, परभनी क्रांति, वर्षा उन्नत, वर्षा उपहार |
मटर |
अर्केल, आजाद मटर-1, आजाद मटर-3, बोनबिले, वी.एल. अगेती मटर-7, विवेक-6 |
परवल |
स्वर्णरेखा, स्वर्ण औलिक |
लोबिया |
अर्का गरिमा, पूसा फाल्गुनी, पूसा दो फसली। |
व्याज |
अर्का निकेतन, अर्का कल्याण, पूसा माधवी, नासिक रेड, पटना रेड, अर्का कीर्तिमान, अर्का लालिमा |
मिर्चा |
अर्का लोहित, पूसा ज्वाला, पंजाब लाल, भाग्य लक्ष्मी, आन्ध्र ज्योति, बी.एस.एस.-१४१, बी.एस.एस.-138 |
शिमला मिर्च |
अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, बुलनोज, कैलीफोर्निया वंडर, भारत |
कोहड़ा |
अर्का सूर्यमुखी, अर्का चन्दन, पूसा विश्वास |
करेला |
अर्का हरित, प्रिया, कल्यानपुर सोना, एन.सी.-84, पूसा हाईब्रिड -1 |
खीरा |
स्वर्ण पूर्णा, स्वर्ण अगेती, स्वर्ण शीतल, पूसा संयोग |
नेनुवा |
पूसा चिकनी, सतपुतिया |
तरबूज |
अर्का मणिक, अर्का ज्योति, सुगर बेबी |
लौकी |
अर्का बहार, पूसा समर, प्रोलिफिक लॉग, पूसा समर, प्रालिफिक राउंड, पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी |
झीगी |
स्वर्ण मंजरी, स्वर्ण उपहार, पूसा नसदार, पूसा सुप्रिया |
मुली |
अर्का निशांत, जापानी सफेद, पूसा हिमानी, पूसा रशिम |
गाजर |
अर्ली नेन्तिस, पूसा केसर |
पालक |
पूसा ज्योति, आल ग्रीन |
मैथी |
पूसा अर्ली बनिच्ग, कसूरी |
सब्जी उत्पादन हेतु अच्छी उर्वरता वाली जैव पदार्थ युक्त मिट्टी का चुनाव करना चाहिए। भूमि की 3-4 बार जुताई करके पाटा लगाकर समतल कर लें सिंचाई की व्यवस्था के अनुसार उचित आकार की क्यांरियाँ बनाएँ।
बुआई/रोपाई का समय
विभिन्न सब्जियों के लिए बुआई का समय मौसम के अनुसार अलग-अलग होता है। अनुकूल अवधि में फसल उगाने पर अधिकतम पैदावार प्राप्त होती है। जबकि समय से पूर्व या देरी से बुआई/रोपाई करने से फसल का कुप्रभाव पड़ता है। विभिन्न सब्जियों की बुआई/रोपाई उचित समय है।
लत्ती वाली सब्जियों जैसे कोहड़ा करेला, खीरा, नेनुआ, तरबूज, लौकी, झींगी की अगेती फसल लेने के लिए पालीथीन का थैलियों में सड़ी हुई गोबर की खाद तथा मिट्टी की बराबर मात्रा से बने मिश्रण को भरकर बीज बोयें। थैलियों को धूप वाले स्थान पर रखें तथा पारदर्शी पालीथिन की चादर से ढक दें। छः से आठ सप्ताह में पौधे रोपाई योग्य हो जाते हैं। इनकी थालों में उचित दूरी पर रोपाई की जा सकती है।
बीज की मात्रा
अनुशंसित मात्रा में बीज का उपयोग करने से पैदावार में वृद्धि होती है। जबकि आवश्यकता से अधिक अथवा कम मात्रा में बीज का प्रयोग उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विभिन्न सब्जियों के लिए मौसम के अनुसार अनुशंसित बीज की मात्रा दी गई
बुआई/रोपाई की दूरी
बुआई/रोपाई की दूरी फसल अथवा किस्म एवं मौसम के अनुसार रखी जानी चाहिए। अधिक बढ़ने वाली किस्मों के लिए कम बढ़ने वाली किस्मों की अपेक्षा पौध तथा कतारों के बीच अधिक दूरी रखने की आवश्कता होती है। अनुशंसित दूरी से कम अथवा अधिक दूरी पर पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता अहि।
विभिन्न सब्जियों के उत्पादन हेतु अनुशंसित बुआई/रोपाई का समय, उपयुक्त दूरी तथा बीज का मात्रा
फसल |
बुआई/रोपाई |
बीज का मात्रा
|
बुआई/रोपाई की दूरी (सेमी.) |
बैंगन |
जुलाई-अगस्त |
|
|
टमाटर |
सितबर |
|
|
फूलगोभी |
अप्रैल-मई |
600-700 ग्रा. |
45x30 |
|
जून-जुलाई |
660-650 ग्रा. |
45x30 |
|
अगस्त-सितबर |
500-600 ग्रा. |
45x45 |
|
अक्तूबर-दिसबर |
350-400 ग्रा. |
60x45 |
बंदगोभी |
सितम्बर-अक्तूबर |
500-600 ग्रा. |
45x30 |
|
नवम्बर-दिसबर |
400-500 ग्रा. |
60x45 |
फ्रांसबिन (झाड़ीदार) |
सितम्बर-अक्तूबर |
80-100 किग्रा. |
40x10 |
फ्रांसबिन (लत्तीदार) |
जून-जुलाई |
60-70 किग्रा. |
75x10 |
भिन्डी |
जून-जुलाई |
80-10 किग्रा. |
40x20 |
मटर |
अक्तूबर- नवम्बर |
70-80 किग्रा. |
30x5 |
परवल |
|
|
|
लोबिया |
जून-जुलाई |
15-20 किग्रा. |
4-x10 |
प्याज |
दिसबर-जनवरी |
80-10 किग्रा. |
20x10 |
मिर्चा |
अगस्त-सितबर |
600-700 किग्रा. |
45x30 |
शिमला मिर्च |
अगस्त-सितबर |
600-700 किग्रा. |
45x30 |
कोहड़ा |
दिसबर |
6-7 किग्रा. |
250x125 |
करेला |
दिसबर-जनवरी |
5-6 किग्रा. |
100x75 |
खीरा |
दिसबर-जनवरी |
4-5 किग्रा. |
150x75 |
नेनुआ |
दिसबर-जनवरी |
5-6 किग्रा. |
150x100 |
तरबूज |
दिसबर |
3-4 किग्रा. |
200x125 |
लौकी |
दिसबर |
6-7 किग्रा. |
200x125 |
झींगी |
दिसबर-जनवरी |
5-6 किग्रा. |
150x75 |
मूली |
अक्तूबर-दिसबर |
10-12 किग्रा. |
30x5 |
गाजर |
नवम्बर-दिसबर |
5-6 किग्रा. |
30x5 |
पालक |
अक्तुबर/नवम्बर-दिसबर |
25-30 किग्रा. |
30 लाइनों में |
मेथी |
नवम्बर-दिसबर |
20-25 किग्रा. |
30x5 लाइनों में |
विभिन्न सब्जियों के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता अलग-अलग होती है। भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैव पदार्थ उपलब्ध न होने पर यह अत्यंत आवश्यक है कि उचित मात्रा में गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट (20-25टन/हे,) का प्रयोग किया जाए। इसके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है साथ ही उसकी जलध क्षमता बढ़ जाती है। खेत में हरी खाद अथवा खल्ली का प्रयोग करने से भी वांछित लाभ होता है। विभिन्न सब्जियों के लिए अनुशंसित उर्वरीकरण हेतु जानकारी दी गयी है।
सब्जियों के लिए अनुशंसित उर्वरीकरण की मात्रा
फसल |
(किग्रा./हे.में) |
||
|
नेत्रजन |
फास्फोरस |
पोटाश |
बैंगन |
120 |
80 |
60 |
टमाटर |
120 |
60 |
60 |
फूलगोभी |
150 |
75 |
50 |
|
175 |
75 |
50 |
|
200 |
100 |
60 |
|
225 |
100 |
60 |
बंदगोभी |
200 |
80 |
60 |
|
250 |
100 |
60 |
|
|
|
|
फ्रांसबिन (झाड़ीदार) |
120 |
50 |
60 |
फ्रांसबिन (लत्तीदार) |
75 |
50 |
50 |
भिन्डी |
120 |
80 |
60 |
मटर |
80 |
60 |
60 |
परवल |
|
|
|
लोबिया |
60 |
50 |
50 |
प्याज़ |
80 |
60 |
80 |
मिर्चा |
60 |
50 |
50 |
शिमला मिर्च |
60 |
100 |
50 |
कोहड़ा |
50 |
60 |
50 |
करेला |
50 |
60 |
50 |
खीरा |
50 |
40 |
40 |
नेनुआ |
50 |
60 |
50 |
तरबूज |
80 |
100 |
60 |
लौकी |
50 |
60 |
50 |
झींगी |
50 |
60 |
50 |
मूली |
60 |
60 |
50 |
गाजर |
60 |
50 |
75 |
पालक |
60 |
40 |
40 |
मेथी |
60 |
40 |
40 |
नियमित निकाई-गुड़ाई करने से फसल में खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है। इन क्रियाओं के करने से भूमि में वायुसंचार होता है तथा पौधों की उचित वृद्धि होती है। फसल की मांग मौसम के अनुसार नियमित रूप से सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
विकासशील देशों जैसे भारत में कुल सब्जी उत्पादन का 25% तक तुड़ाई उपरांत की विभिन्न अवस्थाओं में खराब हो जाता है। जिससे प्रति व्यक्ति सब्जियों की उपलब्धता और कम हो जाती है। अनुमान के अनुसार ये हानि सब्जियों की कटाई, परिवहन, भंडारण, परिरक्षण एवं विक्रय आदि अवस्थाओं में मध्य होते हैं।
तुड़ाई के पश्चात सब्जियों में आने वाले परिवर्तन
कटाई उपरांत रख-रखाव
सब्जियों की कटाई के समय प्रमुख रूप से दो बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्कता होती है:
दूर के बाजारों में भेजने हेतु सब्जियां रेल, सड़क, वायु तथा समुद्री मार्गों से भेजी जाती है। जिसमें काफी खर्च आता है। अतः जरुरी है कि उत्पाद अच्छे गुणयुक्त हो अर्थात् वह बीमारी से ग्रसित, चोट लगा हुआ, दाग, युक्त नहीं होनी चाहिए कटाई के समय उचित परिपक्वता का होना भी आवश्यक है।
गुणवत्ता में कमी आने के कारण
उत्पाद में नमी के ह्रास, फफूंद द्वारा सड़न, बाहरी चोट, अधिक तापमान, आवश्यकता से कम तापमान, अच्छी पैकिंग का आभाव, उठाने, एवं रखने में उदासीनता गन्तव्य स्थान तक पहूँचने में देरी आदि उत्पाद गुणवत्ता में कमी होने के लिए जिम्मेदार है।
कटाई उपरांत होने वाली हानि को कम करने हेतु उपाय
विभिन्न सब्जियों के भंडारण हेतु अनुशंसित तापमान, प्रतिशत नमी की मात्रा तथा भंडारण की अवधि
सब्जी |
भंडारण हेतु तापमान |
नमी की दशा |
भंडारण समय |
पत्तागोभी |
32 |
90-95 |
3-4 सप्ताह |
फूलगोभी |
32 |
90-95 |
2-3 सप्ताह |
बैंगन |
45-50 |
90-95 |
8-10 दिन |
गाजर |
32 |
90-95 |
4-5 दिन |
सेम |
45 |
85-90 |
8-10 दिन |
खीरा |
45-50 |
85-95 |
10-12 दिन |
भिन्डी |
50 |
70-75 |
10-12 दिन |
प्याज |
32 |
70-75 |
6-8 महीना |
मटर |
32 |
85-90 |
10-12 दिन |
आलू |
38-40 |
85-90 |
6-9 महीना |
टमाटर |
40-50 |
85-90 |
7-10 दिन |
प्रायः बहुतायत समय किसान को अपनी उपज कम दामों पर बेचनी पडती है। अगर सब्जी परिरक्षण को छोटे पैमाने पर अपनाया जाय तो विभिन्न पदार्थ निर्मित का उन्हें पूरे साल उपभोग में लाया जा सकता है। साथ ही इस समय होने वाली हानि से बचा जा सकता है। विकशित देशों में कुल उप्ताद का 20% तक भाग परिरक्षित का उपभोग में लाया जाता है वहीं भारत में यह मात्र 0.5-2.0% के मध्य सीमित है। अतः परिरक्षण को कुटीर उद्योग के रूप में अपनाया जाना चाहिए। विभिन्न सब्जियों से निम्न पदार्थ जैसे, जैम, चटनी, आचार, मुरब्बा आदि आसानी से बनाये जा सकते हैं।
सब्जियों को परिरक्षित करने हेतु प्रचलित विधियाँ
खरबूजे के फलों को छीलकर टुकड़ों में काट लें। टुकड़ों के वजन के आध पर ¾ भाग चीनी डालकर पकाएं और जब तापमान 105 सेल्सियस पर पहुंच जाए तो उतार लें। चौड़े मुख वाली बोतलों में भरकर रखें। अधिक तक संरक्षण हेतु 0.02% सोडियम बेनजोयेट अलग पानी में घोलकर मिलाएं। बोतलों को पानी में आधा घंटा उबाल कर प्रयोग में लायें बाद में मोम से सील करें। अधिक मीठे फलों में 3-4 ग्रा.प्रति कि.ग्रा. की दर से साइट्रिक एसिड प्रयोग करें।
टमाटर के रस को बोतलों में कई सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके लिए टमाटर के फलों को काटकर एवं गर्म करके रस निकालें। प्राप्त रस को गर्म करें और खौलने से पूर्व उतार लें स्वाद के लिए संतुलित मात्रा में चीनी एवं नमक का प्रयोग करें। रस को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए सोडियम बेनजोयेट नामक परिरक्षि का 0.02% की दर से प्रयोग करें।
पूर्ण पके टमाटर के फलों को धोकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। थोड़ी देर गर्म करें और रस निकालें एवं अच्छी तरह छान लें। जिससे छिलका एवं बीज न रहे।
कैचप बनाने के लिए इस प्रकार सामग्री की आवश्कता होती है- रस 10 ली, प्याज 250 ग्राम, लहसुन 20 ग्राम, लौंग 10 ग्राम, इलाइची 5 ग्राम, बड़ी इलाइची 10 ग्राम. दालचीनी 5 ग्राम, लाल मिर्च 5 ग्राम, नमक 100 ग्राम, चीनी 500 ग्राम, सिरका 500 मिली. या एसिटिक एसिड 10 मिली, । सभी मसालों को कुचल कर बारीक कपड़े की पोटली बनाएं एवं रस में डुबो दें। रस को उबालते रहें एवं आधी चीनी एवं सिरका मिला दें। जब रस गाढ़ा होकर 1/3 हिस्सा रह जाए जो कैचप तैयार हो जाता है। इसमें 0.02% की दर से सोडियम बेनजोयेट अलग से पानी में घोलकर मिलें तथा बोतलों में भरें। मोम से बोतलों को सील कर दें।
गोभी, शलजम, मूली मटर इत्यादि सब्जियों के परिरक्षण का यह बहुत ही सस्ता एवं सरल तरीका है। मटर के दानों के परिरक्षण हेतु फलियों से दाने निकाल लें। नमक का घोल निम्न प्रकार बनाएं। पानी 1 लीटर, नमक 50 ग्राम, पोटाशियम मेटा बाईस्ल्फाईट 1 ग्राम, एसिटिक एसिड 12 मि.ली.। प्रायः सब्जी की दुगनी मात्रा में घोल का व्यवहार होता है जबकि मटर के परिरक्षण में दानों की बराबर मात्रा में घोल लगता है। चौड़े मुंह की शीशी में सब्जी डालकर घोल को मुंह तक भरें। शीशी के मुंह पर रुई लगाकर ऊपर से मोम की परत डालकर ढक्कन बंद करें। आवश्यकतानुसार सब्जी निकालकर 3-4 घंटा पानी में रख कर धो लें। शीघ्र प्रयोग हेतु गर्म पानी में खर्च आता है।
सब्जी का नाम |
निर्मित पदार्थ |
टमाटर |
जैम, चटनी, प्यूरी, जूस, आचार, डिब्बाबंदी |
फूलगोभी |
चटनी, आचार, बोतलबंदी |
हरी मिर्च |
सॉस, आचार |
अदरक |
जिंजरेल, मुरब्बा, कैंडी, आचार, चटनी, जिंजर, टोनिक |
लहसुन |
सॉस, आचार |
प्याज |
सिरकायुक्त आचार |
लाल मिर्च |
आचार, |
मटर |
आचार, बोतलबंदी |
करेला |
आचार, सुखाना, बोतलबंदी |
ओल |
आचार, चटनी, |
शलजम |
आचार, |
परवल |
मुरब्बा, कैंडी, बोतलबंदी |
खीरा |
आचार, बोतलबंदी |
ककड़ी |
आचार, बोतलबंदी |
गाजर |
मुरब्बा, हलवा, आचार, बोतलबंदी |
पेठा |
मुरब्बा, कैंडी, |
लौकी |
बर्फी, कैंडी, चटनी |
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि विभाग , झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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