झारखण्ड में अधिकांश जमीन ढालू एवं पठारी है। यहाँ की जलवायु समशीतोष्ण होने के कारण यहाँ पर सालों भर सब्जियों की खेती होती है। इस प्रदेश में रांची, हजारीबाग, लोहरदगा, गढ़वा, संथालपरगना एवं सिंहभूम जिलों में सब्जियों की खेती अपना विशेष स्थान बनाये हुए हैं। यह पर टमाटर, बैंगन, खीरा, शिमलामिर्च मटर, गोभी, प्याज, फ्रेंचबीन, आदि की खेती बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक की जाती है। सब्जियों की खेती में कई तरह की समस्याएँ जैसे कीड़ों तथा रोगों के प्रकोप के फलस्वरूप 10-30% हानि होती है तथा कभी-कभी शत प्रतिशत फसल इसने बर्बाद हो जाते हैं। उग्ररूप धारण कर लेने पर रोगों पर नियंत्रण पाना कठिन होता है। वहीं पैदावार व गुणवत्ता पर कुप्रभाव पड़ता है। बैंगन की फोमोस्सम एवं अंगमारी था मिर्च एवं सेम वर्गीय फसलों में एन्थ्रेकनोज घातक बीमारियाँ हैं, जो बीज को संक्रमित कर अगली फसल को भी हानि पहुचाती है। अतः यह आवश्यक है कि इनका निदान उचित समय पर किया जाए। अनुशषित मात्रा से कम रसायनों का प्रयोग जहाँ रोगों में प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है। अतः कीटनाशक अथवा रोगनाशक दवाओं का प्रयोग करते समय पूरी सावधानी बरती चाहिए। इसलिए व्याधियों से राहत पाने के समेकित प्रबन्धन की आवश्कता है जो इस प्रकार है-
विभिन्न प्रकार के सब्जियों की रोगों के लक्षणों की जानकारी आवश्यक है जो इस प्रकार हैं तथा इनके रोकथाम के उपाय
यह टमाटर, गोभी, मिर्च मूली, गाजर, शलजम, के नर्सरी में गलने वाले एक मृदाजनित फफूंद जैसे पिथियम तथा राईजोक्तानियाँ से होता है। इसके लक्षण दो अवस्थाओं में पाए जाते हैं। पहली अवस्था में अंकुरित बीजों का जमीन की सतह से निकलने के पूर्व ही पौधा गल जाता तथा दूसरी अवस्था में बीज अंकुरण के 15 से 20 दिनों के अंदर जमीन की सतह से पौधों का गलना मुख्य लक्षण है।
यह रोग कद्दूवर्गीय सब्जियां जैसे (खीरा, लौकी, करैला) पत्तागोभी, फूलगोभी मूली, शलजम, मटर, भिन्डी, फ्रेंचबीन, बोदी, सेम, टमाटर, मिर्च बैंगन, प्याज पर मुख्य रूप से पाया जाता है। इसके लक्षण में सफेद मटमैले पाउडरनुमा फफूंद का पत्तों तथा पत्रवृन्तों, या फलों पर उपस्थित होना मुख्य है।
मटर के अर्का अजीत, सी.एच. पी. एम्.आर.-1. सी.एच. पी. एम्.आर.-२. डी.पी.पी. -9411, डी.पी.पी. -9414, जे.पी.-72 एवं खीरा के स्वर्णपूर्णा, स्वर्ण अगेती झारखण्ड के लिए उपयुक्त हैं।
यह कद्दू वर्गीय सब्जियों, गोभी परिवार के पौधा तथा पौधशाला के नवजात बिछड़ों या खेतों में बड़े पौधों के पत्तियों की निचली सतह पर कपास की तरह सफेद मटमैले रंग के फुफुदं का आक्रमण, पत्तों की ऊपरी सतह पर काले पीले धब्बों का अनगनित समूह होता है।
यह एक जीवाणुजनित रोग है है जो सोलनेसी परिवार की सब्जियों जैसे, टमाटर, बैगन, मिर्च एवं आलू में लगता है। इनके जीवाणु मृदा में रहते हैं। इसका प्रकोप गर्मी, बरसात में ज्यादा तथा जाड़े के मौसम में कम होता है। इसका मुख्य लक्षण फूलने के समय पौधे का अचानक मुरझाकर सुख जाना है। जिससे काफी नुकसान होता है। इसकी पहचान आसानी से तने के कटे भाग से दुधनुमा स्राव को पानी में (उज टेस्ट ) देखकर की जा सकती है।
रोग प्रतिरोगी किस्मों से उत्पादन : टमाटर की स्वर्ण लालिमा, स्वर्ण नवीन, अर्का आभा, अर्का आलोक, अर्का वरदान, बी.टी.-17, शक्ति (एल.ई.-79) बी.टी.-10 , बी.टी.-18, सकर किस्मों में अर्का श्रेष्ठ एवं अर्का अभिजीत जीवाणु मुरझा रोग प्रतिरोधी किस्मों की पहचान की गई है। इससे उत्पादन कर लाभ उठाया जा सकता है। इसी प्रकार बैगन की स्वर्ण श्री, स्वर्ण मणि, स्वर्ण प्रतिभा, स्वर्ण श्यामली, अर्का निधि, अर्का केशव या अर्का नीलकंठ, बी.बी.-7. बी.बी.-11 एवं बी.बी. 44 रोग प्रतिरोधी किस्में हैं।
क) अगेती अंगमारी: यह फफूंदजनित रोग है जो टमाटर एवं आलू फसलों में मुख्य रूप से होता है। इस रोग के आरंभिक लक्षणों में पत्तों तथा तनों पर काले भूरे रंग के 1-2 संकेद्रिय धब्बे बनना तथा रोग की उग्रता की स्थिति में अनगिनत धब्बे बनना है। उग्रता की स्थिति में धब्बों का एक दूसरे से मिलकर झुलसा सदृश फैलता तथा पत्तियों का पीला पड़कर झड़ना पाया जाता है। इसके काले भूरे रंग के धब्बे फलों पर भी दिखाई पड़ते हैं जिससे काफी नुकसान होता है।
ख) पिछेती अंगमारी: यह फफूंद जनित रोग है जो टमाटर एवं आलू फसलों में मुख्य रूप से लगता है। इस रोग के लक्षण में पत्तों के किनारों से काले रंग के जलसिक्त धब्बे पाए जाते हैं जिससे पत्ता झुलसा जाता हैं तनों एंव कच्चे फलों पर जलसिक्त धब्बे पाए जाते हैं जिनसे बरसात के मौसम में सड़न प्रांरभ होती है तथा काफी नुकसान होता है।
ग) फोमोपिसस झुलसा: यह बैंगन का मुख्य फफूंद जनित रोग है । यह रोग ग्रस्त बीजों से फैलता है। इसमें नर्सरी में पत्तों पर काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। तने और पत्तों पर मटमैले भूरे गोलाकार, धंसे धब्बे पाए जाते हैं तथा पत्तों का पीला पड़ना पाया जाता है। फलों पर धब्बा सड़न पैदा करता है जिसमें सड़े एवं सूखे भागों पर पिननुमा अनेकों आकृतियाँ देखती हैं। बैगन की बीज उत्पादन के फसल के लिए यह विशेषरूप से क्षतिकारक बीमारी है।
यह फफूंद जनित रोग है जो टमाटर, मिर्च, बैंगन, कद्दू एवं दाल कुल की सब्जियों में पाया जाता है। इनके भूरे काले रंग के धब्बे पत्तों तथा फलों पर पाए जाते हैं तथा पत्तियों का झड़ना एवं फलों का आकार बिगड़ना इनके मुख्य लक्षण हैं।
यह फफूंद जनित रोग है जिसके कारण पौधों में जड़ सड़नम पादगलन, तना सड़न तथा फल सड़न के अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं। बैंगन आदि में तना, सड़न, सेम कुल एवं गोभी कुल, के पौधों में फलियों की सड़न प्रमुख हैं। अधिक नम मौसम में यह रोग तेजी से फैलता है। रोगग्रसित भाग पर सफेद भूरे फफूंद की कपासनुमा उपस्थिति के बीच काले भूरे सरसों नुमा अनेकों स्क्लेरोशिया का होना इस रोग का विशेष लक्षण हैं।
यह फूलगोभी का जीवाणुजनित मुख्य रोग है जो बोरन तत्व की कमी की अवस्था में होता अहि। इसमें पत्तों के किनारों से V के आकार में पीला पड़ना, सुखना तथा शिराओं का काला पड़ना मुख्य लक्षण हैं तथा उग्रता की अवस्था में पत्तों का आंशिक या पूर्णरूप से सुखना एवं गोभी पर काले भूरे धब्बे दिखाई देना तथा सड़न की गंध होना मुख्य लक्षण हैं।
यह भिन्डी की मुख्य विषाणुजनित रोग है यह सफेद मक्खी से फैलता है। इसमें पत्तियों की शिराएँ चमकीली एवं पीली हो जाती है तथा उग्रता की अवस्था में पूरी पत्तियाँ एवं फल पीले पड़ जाते हैं। पत्तियों के आकार छोटे पड़ने लगते हैं तथा पैदावार घट जाती है।
अर्का अनामिका, अर्का अभय, प्रवनी क्रांति, वी, आर, ओ-5 तथा वी,आर.ओ.-6 प्रतिरोधी किस्में पायी गई हैं।
यह सेम वर्गीय एवं सोलनेसी परिवार का मुख्य विषाणुजनित रोग है और लाही से फैलता है। इसमें पत्तियों का सिकुड़ना, शिराओं का चमकीला पीला पड़ना तथा फलियों में विसंगतियों पैदा होना इनके मुख्या लक्षण हैं।
यह सोलनेसी परिवार टमाटर, आलू, मिर्च, तम्बाकू तथा सेम वर्गीय परिवार का मुख्य विषाणुजनित रोग हैं इसमें पत्तियों का सिकुड़ना, पौधों का बौना होना तथा पत्तियों का मोटा होना इसके मुख्य लक्षण हैं। यह सफेद मक्खी से फैलता है।
यह मुख्य जीवाणुजनित रोग है जो बैंगन, मिर्च, प्याज, आलू पतागोभी, फूलगोभी, कद्दू कुल की सब्जियों में लगता है। यह रोग गुद्देदार जड़ों तथा तनों को विशेष रूप से आक्रांत करता है। यह प्रायः भण्डार की सभी तरह की सब्जियों एवं फलों में मिलता है किन्तु घाव या चोट लगे, कटे-फटे फलों पर विशेष रूप से लगता है। पहले जलीय छोटे धब्बे बनते हैं ये जल्दी ही बड़े हो जाते हैं। इस प्रकार थोड़े ही समय में ग्रसित भाग सड़ जाता है। जड़ वाली फसलों जैसे गाजर, शलजम, आई की खेती में रोग लगने पर ऊपर की पत्तियाँ पीली पड़ने पर सुख जाती है तथा उकठा के लक्षण दिखाई देते हैं। टमाटर के पक रहे फल ग्रसित होने पर सड़कर गाढ़े रंग में बदल जाता है।
क) सौर ऊर्जा द्वारा मृदा उपचार:
तैयार किये हुए नर्सरी बेड को गर्मी के दोनों में 150-200 माइक्रोन मोटी पारदर्शी पालीथिन की चादर से 30- से 45 दिनों तक ढककर सौरीकरण करें। इसके कुए 400 ग्राम करंज की खल्ली तथा 5 किलोग्राम गोबर की खाद प्रति वर्गमीटर की दर से मिलाकर गहरी सिंचाई दें तथा पूरी अवधि तक क्यारी में नमी संरक्षित रखें। बीज बुवाई से पहले चादर हटा लें, फिर लाइंनों में पतली बुवाई करें।
ख) जैविक फफूंदनाशक द्वारा बीज उपचार:
जैविक फफूंदनाशक मुख्यतः ट्राईकोडर्मा विरिडी पर आधारित है। यह आलू, हल्दी, अदरक, प्याज, लहसुन, आदि फफूंदजनित फसलों के जड़ सड़न, तना गलन, झुलसा आदि रोगों में प्रभावकारी पाया गया है। साथ ही साथ टमाटर एवं बैगन के जीवाणुज मुरझा रोग के लिए भी यह लाभप्रद पाया गया है। इसे फसल बोने के समय २-4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए। बाजार में यह विभिन्न नामों से उपलब्ध है जैसे संजीवनी, बायोडर्मा, ट्राईकोडर्मा यह मोनिटर-डब्लू. पी. (२.5 कि.प्रति हे.) एवं मोनिटर-एस (75 कि.प्रति हे.)।
ग) रसायनिक फफूंद नाशकों के द्वारा:
बेविस्टीन या कैप्टान (२ ग्राम दवा प्रति किलो बीज) से बीज उपचार करें तथा नर्सरी में ब्लूकॉपर-50 (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी)यह डरियोमिल एम्. जेड (२ ग्राम प्रति लीटर पानी) से पौध की द्रचिग करें।
सब्जियों के रोगजनक एवं रोकथाम के उपाय
रोग के नाम |
रोगजनक |
रोकथाम |
डैम्पिंग ऑफ़ |
पिथियम के स्पेपसिस या राइजोक्टोनिया के स्पेसीस |
सौर उर्जा द्वारा भूमि का शोधन |
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जैविक फफूंदीनाशक का प्रयोग |
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बीजोपचार |
पाउडरी मुल्ड्यु |
लौकी कुल- स्यूडोपरनोस्पोरा क्यूबेसिंस मटर- सरिसाइफी पालूलिगोनाई |
अगेती फसल लगायें |
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नर्सरी में पौधे भूमि शोधन के उपरान्त बोयें |
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रोगग्रस्त पौधा उखाड़ कर नष्ट कर दें |
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बीज शोधित कर बोयें |
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बेविस्टीन या कैराथेन का 0.1% घोल का छिड़काव करें |
डाउनी मिल्ड्यू |
पैरेस्पोरा पारासिटिका |
जल निकासी का प्रबंध करें |
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रोगग्रसित पुराने पत्तों को तोड़कर जला दें |
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ब्लूकॉपर-50 या बलाईटाक्स के 0.3% या डायथेन एम्-45 (0.२%) या रिडोमिल एम्. जेड (0.२%) घोल छिड़काव करें |
मुरझा रोग |
राल्सटोनिया सोलेनिशरम |
प्रतिरोधी किस्में लगाएँ |
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फसल चक्र अपनाएं |
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करंज की खल्ली 10 किवंटल प्रति हेकटेयर के हिसाब से खेत तैयार करते समय अच्छी तरह मिलावें |
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पौधे को हिंग 1.0 ग्राम और हल्दी पाउडर 5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी घोल में आधा घंटा डुबोकर लगावें |
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जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें |
झुलसा रोग अगेती अंगमारी |
आल्टरनरिया |
दो-तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाएं |
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रोगग्रसित पुराने पत्तों को तोड़कर जला दें |
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बरसात के दिनों में टमाटर के पौधों में खूंटी का सहारा दें |
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रोग के लक्षण प्रकट होते ही ब्लूकॉपर-50 या बलाईटाक्स के 0.3% या डायथेन एम्-45 (0.२%) या रिडोमिल एम्. जेड (0.२0 %) घोल 10 दिनों के अन्तराल में तरल साबुन मिलाकर छिड़काव करें |
पिछेती अंगमारी |
फाईतोफथेरा इंफेसटेन्स |
रोगग्रसित पुराने पत्तों को तोड़कर जला दें |
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जाड़े के मौसम में समुचित सिंचाई करें |
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बरसात के दिनों में पौधों में खूंटी का सहारा दें |
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जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें |
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फफुदंनाशी जैसे ब्लूकॉपर-50 या बलाईटाक्स के 0.3% या डायथेन एम्-45 (0.२%) या रिडोमिल एम्. जेड (0.२0 %) घोल 10 दिनों के अन्तराल में तरल साबुन मिलाकर छिड़काव करें |
फोमोपिसस ब्लाईट |
फोमोपिसस वैक्ससेन्स |
गर्म पानी (52 से.) से 30 मिनट तक या |
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जैविक फफूंदनाशक से |
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बेविस्टीन २ ग्राम/किलो की दर से |
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रोगग्रसित पत्तियों एवं फलों को नष्ट करें |
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बेविस्टीन 0.1% 10 दिनों के अन्तराल में छिड़काव करें |
एंथ्रेक्नोज |
कालेटोट्राईकम लिंडेमुथियेनम एवं अन्य स्पेसीस |
रोगग्रसित पत्तियों एवं फलों को नष्ट करें |
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रोगरोधी प्रजाति स्वस्थ बीज बोयें |
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बीजोपचार फोमोपिसस ब्लाईट की तरह करें |
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बेविस्टीन 0.1% या कवच के 0.२% घोल का छिड़काव करें |
सक्लेरोटीनिया |
सक्लेरोटीनिया स्पेसिस |
फसल चक्र अपनाएं |
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जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें |
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रिडोमिल एम्. जेड (0.२ %) घोल 1 छिड़काव करें |
श्याम (काला) विगलन |
बेरोंत तत्व की कमी तथा जेंथोमोंनस कम्पेस्ट्रिस |
गर्म पानी से गर्म पानी (52 से.) से 30 मिनट तक या (52 से.) से 30 मिनट तक या |
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रोगग्रसित पत्तियों एवं फलों को नष्ट करें |
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रोपाई के 10 दिनों के बाद से बोरिक एसिड का 3 से 4 बार 25 ग्राम प्रति 20 लीटर पानी में घोल बनाकर तरल साबुन मिलाकर छिड़काव करें |
पीतशिरा मोजैक वाइरस |
वाई.बी.एम्.भी |
प्रतिरोधी किस्में लगाएँ |
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आरंभ से रोगग्रसित पत्तियों एवं फलों को नष्ट करें |
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कीटनाशक दवा जैसे नीम आधारित भेन गार्ड (4 मिली.) या रसायन आधारित डेमोक्रोन या मोनो क्रोटोफास या नुवाक्रोन यह मोनोसिल (1 मिली) या रोगर (1.25 मिली.) प्रति लीटर पानी 10 दिनों के अन्तराल में 3 छिड़काव करें |
मोजैक |
पोटोटो वाइरस एक्स |
पीतशिरा मोजैक वाइरस की तरह |
लीफ कर्ल या पत्र कुंचन |
पोटोटो वाइरस एक्स सी.एम्. वी. |
पीतशिरा मोजैक वाइरस की तरह |
बैक्टीरियल साफ्टराट |
इरविना कैरेटोवोरा तथा इरविना की स्पेसीस |
भंडार में कटे-फटे, रगड़े या चोट खाए फल न रखें |
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भंडार गृह की दीवारों फर्श को फर्मालीडहाइड की (12 मिली. प्रति लीटर पानी ) अथवा तूतिया (20 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल से अच्छी तरह धो लें) |
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भण्डार गृह का ताप 40 से. कम रखें |
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टमाटर की खड़ी फसल पर 0.25% ताम्ब्र युक्त रसायन का छिड़काव करें। |
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि विभाग , झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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