फलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में विभिन्न कीटों द्वारा होनेवाली क्षति के नियंत्रण हेतु किसानों द्वारा मुख्य रूप से जहरीले रसायनों का अत्यधिक व अविवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जा रहा है, जिससे कई प्रकार की समस्याओं में गौण कीटों का प्रमुख नाशक कीटों में परिवर्तन, कीटों में कीटनाशकों की बढ़ती प्रतिरोधकता, प्राकृतिक शत्रु (परजीवी/परभक्षी) कीटों व परागण करने वाले कीटों पर प्रतिकूल प्रभाव, प्रर्यावरण एवं खाद्य श्रृंखला में प्रदुषण तथा फलों में कीटनाशकों के अवशेष निश्चित मात्रा से अधिक होना इत्यादि प्रमुख है। कीटनाशकों द्वारा फलों के दूषित होने की सम्भावना अपेक्षाकृत अधिक होती है, क्योंकि इन्हे तुड़ाई के तुरन्त बाद उपयोग में लाया जाता है। कीटनाशकों के अत्यधिक व अविवेकपूर्ण प्रयोग करने से मित्र कीटों जैसे मधुमक्खियों, सारकोफेगा, रिफिया, ल्यूसीलिया, एरिस्टेलिस, सिर्फस फ्लाई, काक्सीनेलिड बीटिल, मक्खियों इत्यादि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परिणामत: फलों के परागण में विध्न उत्पन्न होने से फलों का उत्पादन कम होता है।
देश में किये गये सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ कि बहुत से किसानों को कीटों की सही पहचान, उनके नुकसान करने के तरीके व समय तथा उपलब्ध प्रबंधन तकनीकों का समुचित ज्ञान नहीं है परिणामस्वरूप कीटनाशकों का का प्रयोग करने से कीट नियंत्रण में अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है। अत: कीट नियंत्रण हेतु एक ऐसा सुनियोजित प्रबंधन कार्यक्रम (समेकित कीट प्रबंधन) अपनाने की आवश्यकता है जो पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित तथा क्षति को नियंत्रित करने में सक्षम हो।
समेकित कीट प्रबंधन, फल उत्पादन एवं फल सुरक्षा की मिली-जुली पद्धति है, जिसका मूल सिद्धांत उन्नत कृषि क्रियाओं को अपनाना एवं कीट नियंत्रण के जैविक और रासायनिक विधियों के बीच समन्वय स्थापित करना है। इन विधियों के साथ-साथ कीट नियंत्रण की अन्य वैकल्पिक तरीकों जो समाजिक, आर्थिक एवं प्रर्यावरण की दृष्टि से उचित हो तथा कीटों की संख्या को एक निर्धारित आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखने में मददगार हो, का समावेश ही समेकित/समन्वित या एकीकृत कीट प्रबंधन कहलाता है।
समेकित कीट प्रबंधन के अंतर्गत उद्यान स्थापित करते समय स्थान के चुनाव, गड्ढे की खुदाई तथा प्रजातियों के चयन से लेकर फलों की तुड़ाई तक उन सभी पद्धतियों/तकनीकों का प्रयोग इस प्रकार व्यवस्थित ढंग से किया जाता है, जिससे कीटों द्वारा फलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में होने वाली क्षति को नियंत्रित किया जा सके।
उद्यानों में समेकित प्रबंधन हेतु निम्नलिखित घटकों का प्रयोग किया जाता है-
कृषिगत क्रियाएँ, समेकित कीट प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण घटक है, जिनका सुनियोजित ढंग से पालन करने पर कीटों की वृद्धि, विकास और जीवन-चक्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप फसल में कीटों का प्रकोप कम होता है। उद्यान में विभिन्न शस्य क्रियाओं के प्रयोग से होने वाले लाभ का किसान समुदाय को समुचित ज्ञान नहीं है। यही कारण है कि समेकित कीट प्रबंधन का महत्वपूर्ण घटक होंते हुए भी कृषिगत क्रिया उपेक्षित है, जिसे प्रोत्साहित कर फलों में कीटनाशकों के प्रयोग को कम किया जा सकता है। फल उद्यानों को क्षति पहुँचाने वाले कीटों का प्रकोप कम करने में निम्नलिखित शस्य क्रिया प्रभावी सिद्ध हुई है-
आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कीटों के प्रकोप को यांत्रिक विधियों द्वारा कम किया जा सकता है-
जैविक नियंत्रण, समेकित कीट प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसका सफलतापूर्वक प्रयोग कीटों के प्रबंधन में प्रभावी, संतुलित एवं स्थाई सिद्ध हुआ है। इसके प्रयोग से पारिस्थितिक तंत्र के दूसरे तत्वों को हानि नही पहुँचती है। जैविक नियंत्रण में हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे परजीवी, परभक्षी और रोगाणुओं को खोजकर इक्ट्ठा कर तथा प्रयोगशाला में अधिक संख्या में उत्पादन कर, कीटों के विरुद्ध उचित समय पर छोड़ा जाता है, जो हानिकारक कीटों के अण्डों, सुंडियों तथा प्रौढ़ों को नष्ट कर देते है। जैविक नियंत्रण की सफलता के लिए किसानों को मौसम, फसल, कीट, परजीवी/परभक्षी तथा सुरक्षित कीटनाशकों इत्यादि के विषय का सही ज्ञान आवश्यक है।
फल वृक्ष |
कीट का नाम |
परजीवी |
प्रयोग विधि |
आम |
हॉपर
गॉल मीज |
पायरील्लोक्सेनोस पराकम्पक्ट्स
एनकार्सिया पार्निसिओसी |
2-3 पौड/हॉपर
2000 पौंड/ग्रसित पेड़ |
सेव |
सन्जोस
यूली एफिड
कोडलिंग |
एनकार्सिया पार्निसिओसी एफ़ाड्रिटिस प्रोक्लिआ
एफेलिन्स
ट्राइकोग्रामा
एम्बियोफेगम |
2000 पौंड/ग्रसित पेड़
50 पौंड/ग्रसित पेड़
1000 पौंड/ग्रसित पेड़
2000 पौंड/ग्रसित |
समेकित कीट प्रबंधन में प्राकृतिक शत्रुओं का प्रयोग अन्य विधियों के साथ किया जाय तो कीट नियंत्रण में अपेक्षित सफलता मिलती है तथा कीटनाशकों का प्रयोग भी कम करना पड़ता है। लेकिन अभी भी इन प्राकृतिक शत्रुओं की उत्पादन तकनीक को और अधिक कारगर बनाने की आवश्यकता है, जिससे इन्हे व्यवसायिक स्तर पर उत्पादित करके किसानों को आसानी से उपलब्ध कराया जा सकें।
प्राकृतिक शत्रुओं के प्रयोग के साथ-साथ इनका संरक्षण भी आवश्यक है। प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण हेतु उद्यानों में कृषि क्रियाओं को करते समय इनके आवासों एवं खाद्य पदार्थो को नष्ट होने से बचाना चाहिए। आम में फूल आने के समय मल्लादा बोनीनेनसीस एवं क्राइसोपा, लकीपरदा (परभक्षी) फरवरी से मार्च के मध्य प्रकृति में बहुत सक्रिय रहते हैं तथा इस अवधि में मधुआ कीट का भक्षण करते हैं। इसी प्रकार उत्तरांचल के पर्वतीय क्षेत्रों के सेवा में कोक्सिनेला संपटमपंकटाटा (परभक्षी) मार्च से जून के मध्य प्रकृति में बहुत अधिक सक्रिय होते हैं तथा इस अवधि में यूली एफिस एवं थ्रिप्स कीट का भक्षण (नियंत्रण) करते हैं। अत: इस अवधि में बहुत आवश्यक होने पर ही सुरक्षित कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे इन परभक्षी कीटों की सक्रियता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सकें।
आम |
हॉपरएव मिली बग |
कोक्सिनेला सेप्टमपंकटाटा |
30-50 पौड/ग्रसित पेड़ |
अमरुद |
ग्रीन साईलड स्केल ऐफिड |
क्राईप्टोलेमस मोनट्रोजाईरी कोक्कोफेगस सेरोप्लासटेट कोक्सेनेलिड एवं सरफीड्स प्रजाति |
10-20 विटिल/ग्रसित पेड़ 10-20 विटिल/ग्रसित पेड़ |
अंगूर |
ग्रीन सईलड स्केल |
कोक्सिनेला सेप्टमपंकटाटा |
30-50 पौड/ग्रसित पेड़ |
सेव |
सनजोस स्केल
यूली एफिड थ्रिप्स |
काईलोकोरस बिजुगस चीलोकोरस बिजुगस
कोक्सिनेला सेप्टमपंकटाटा एंथोकोरिस |
50 पौंड/ग्रसित पेड़ 20 पौंड/50 ग्रव प्रति ग्रसित पेड़ 30-50 पौंड/ग्रसित पेड़ 30 50 ग्रव/ग्रसित पेड़ |
नींबू |
मिली वग लीफ माइनर सफेद मक्खी तना पाइलीड वर्ग एवं एफिड |
ग्रीन लेस वींग (माल्लादा वोनोनेनसीस) |
30 लावा/ग्रसित पेड़ |
यह एक बहुभक्षी परजीवी है। इन परजीवियों के द्वारा प्राय: लिपीडोपटेरा वर्ग के कीटों का नियंत्रण होता है। फलों में कीट नियंत्रण हेतु इनका उपयोग अन्य फसलों की अपेक्षा बहुत ही कम हुआ है। ट्राइकोग्रामा हानिकारक कीटों के अण्डों में अपने अंडे देकर अपना जीवन चक्र उसी में पूरा करते है। अण्डों के निषेचन होने पर ट्राइकोग्रामा के लार्वा कीटों के अण्डों के भ्रूण को खाकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। ट्राइकोग्रामा का वयस्क अण्डों में छेदकर बाहर निकलता है। इस प्रकार कीटों को अंडें की अवस्था में ही समाप्त किया जा सकता है। ट्राइको ग्रामा की आपूर्ति कार्ड के रूप में होती है। एक कार्ड पर लगभग 20,000 अंडे होते है। यह कार्ड “ट्राइकोकार्ड” के नाम से जाना जाता है। ट्राइकोकार्ड विभिन्न नामों जैसे पारास्ट्रीप, इज्यनील, टी-कार्ड, ट्राइकोकार्ड, ई.वी. ट्राइकोकार्ड इत्यादि के नामों से उपलब्ध है। ट्राइको कार्ड प्रजाति के 50,000 से 100,000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से लेपीडोपटेरा वर्ग के कीटों के नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जाता है। आम के गॉल मींज कीटों के नियंत्रण हेतु ट्राइकोग्रामा मटीडई का प्रयोग प्रभावी सिद्ध हुआ है।
ट्राइकोग्रामा का प्रयोग सुबह या शाम के समय में करना चाहिए जब हानिकारक कीटों के अंडे पौधों पर मौजूद हों। ट्राइकोग्रामा प्रयोग के समय किसी रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
समेकित कीट प्रबंधन में सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु, विषाणु, प्रोटोजोआ, कवक, रिकेट्रसी और सूत्रकृमि का प्रयोग जैविक कीटनाशकों के रूप में किया जाता है।
बैक्टीरिया (जीवाणु)
कीटों में रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं में बैसिलस की प्रजातियाँ प्रमुख है। फल उद्यानों में कीट नियंत्रण हेतु बैसिलस थूरिनाजिएन्सिस का प्रयोग प्रभावी सिद्ध हुआ है। बी.टी. का सक्रिय तत्व क्रिस्टलीय डेल्टा-एंडोटाक्सिन है। यह लेपिडोपटेरा वर्ग के कैटरपीलर (लावी) की भक्षण क्रिया पर तुरन्त ही रोक लगाता है। अत: कीट 1-3 दिन के अंतर मर जाते है। बी.टी. व्यापारिक रूप बायोलेप, वायोसेप, बायोबिट, हाल्ट, डेल्फिन इत्यादि नामों से बाजार में उपलब्ध है। इनका उपयोग टैंट कैटर पिलर, इंडियन जिप्सी मॉथ, कोडलिंग मॉथ, आम एवं सेव का फल मॉथ आदि कीटों के नियंत्रण में किया जाता है। बी.टी. का प्रयोग लार्वा की प्रारंभिक अवस्था में (अर्ली इन्सटार कैटरपिलर) अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ है तथा इनकी 1.0-1.25 कि.ग्रा. मात्रा 500-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाता है।
वायरस (विषाणु)
यह भी कीटों में रोग उत्पन्न करता है। फलों में कीट नियंत्रण हेतु अब तक वायरस का प्रयोग अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम हुआ है। लेकिन हाल के वर्षो में सेव के कोडलिंग माथ कीट के नियंत्रण के लिए ग्रनुलोसिसवायरस का प्रयोग सफल सिद्ध हुआ है। इसका उपयोग 8 X 107 वायरस पाली हेड्रा/मि.ली. की दर से फस वृक्षों पर छिड़काव किया जाता है।
कवक
फल वृक्षों के कीटों में रोग उत्पन्न करने वाले कवक में मुख्यत: भरटीसेलियम लेकनी, वोभेरिया वेसियाना, इन्टोमोफथोरा प्रजाति एवं एक्टोमायसिस प्रजाति प्रभावी पाये गये हैं। जैसे- आम का मधुआ एवं मिली वग एवं अमरुद के माहू कीट के नियंत्रण हेतु भरटीसेलियम लेकनी का प्रयोग सफल सिद्ध हुआ है एवं इसका छिड़काव 1 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से किया जाता है।
पौधों से प्राप्त रसायन, जिनमें कीटनाशक गुण होते है, “वनस्पतिक कीटनाशक” के नाम से जाने जाते है। इन पौधों में नीम, तम्बाकू, करंज, महुआ इत्यादि प्रमुख है। लेकिन इनमें से नीम एवं करंज पर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग फलों के कीट नियंत्रण में प्रभावी सिद्ध हुआ है। यह बाजार में कई रूपों में जैसे – निमरिन, निम्बीसिडीन, अचूक, एजाडिट, निमेकटीन, नीमएजल, बायोनीम, रक्षक इत्यादि नामो से उपलब्ध है तथा इसकी 2-3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग में लाई जाती है। नीम पर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग भी जैविक कीटनाशकों की तरह लेपीडोपटेरा वर्ग के लार्वा की प्रारंभिक अवस्था में कारगर सिद्ध हुआ है। यदि जैविक कीटनाशकों का प्रयोग, नीम पर आधारित एवं सुरक्षित कीटनाशकों के साथ सुनियोजित ढंग से किया जाये तो न केवल कीटों को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे रखा जा सकता है, बल्कि जहरीले रसायनों के प्रयोग को भी कम किया जा सकता है। कीट प्रबंधन में वानस्पतिक कीटनाशकों के प्रयोग को व्यावसयिक स्वरूप देने हेतु और अधिक महत्व देने की आवश्यकता है, क्योंकि इनके प्रयोग से प्राकृतिक शत्रुओं और परागण करने वाले कीटों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है तथा फलों के प्रदूषित होने की सम्भावना भी नही रहती है।
यह सत्य है कि रासायनिक कीटनाशकों का कीट नियंत्रण के साथ-साथ फलों की उत्पादकता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान है तथा भविष्य में भी कीट प्रबंधन का एक प्रमुख घटक रहेगा। लेकिन विगत वर्षो में रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग उस समय किया जाये जब अन्य विधियों के प्रयोग से कीट नियंत्रण में अपेक्षित सफलता न मिले तथा फलों को आर्थिक नुकसान होने की सम्भावना हो। बगीचों में रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कम करना तभी सम्भव हो सकेगा जब किसान कीटों की सही पहचान तथा उनके नुकसान करने का समय व ढंग के संबंध में समुचित ज्ञान प्राप्त करें और उद्यानों की निरंतर निगरानी करते रहें। इससे कीटों के आगमन एवं प्रकोप के स्तर की जानकारी प्राप्त होती रहेगी, जो अंतत: कीटनाशकों के उचित समय पर छिड़काव, उनके विवेकपूर्ण प्रयोग तथा कीट प्रबंधन में पूर्णरूपेन सहायक सिद्ध होगा। कुछ कीटनाशक ऐसे पाये गये है जिनके विवेकपूर्ण प्रयोग से प्राकृतिक शत्रुओं (परजीवी/परभक्षी), मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना अपेक्षाकृत कम रहती है तथा हानिकर कीटों के प्रभावी नियंत्रण में भी अधिक सहायता मिलती है। जैसे इंडोसल्फान, फोसलोन, कार्वेरिल, मैलाथियान इत्यादि। अत: किसान भाईयों को इन्हीं कीटनाशकों के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए।
फल उद्यानों में कीट प्रबंधन हेतु रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग निम्न प्रकार से करना चाहिए -
बगीचों में कीटनाशकों का छिड़काव करते समय किसानों को निम्नलिखित विषयों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
उपरोक्त सभी तकनीकों का फल उद्यानों में समय से क्रियान्वयन सुनिश्चित करके कीट प्रबंधन में कीटनाशकों के प्रयोग कम करना ही अहम उद्देश्य है। इसे और अधिक प्रभावी बनाने हेतु विषय विशेषज्ञों और प्रसार-कर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है, जिससे प्रसार कार्यो के लिए संचालित किये जा रहे प्रदर्शनों, प्रशिक्षणों तथा साहित्य में कीट प्रबंधन तकनीकों का समावेश कर फलों की उत्पादकता व गुणवत्ता में वृद्धि की जा सके तथा फलों के निर्यात हेतु आदर्श मानक स्तर को प्राप्त कर सके।
स्रोत एवं सामग्रीदाता- समेति, कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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