कारनेशन एक विश्व स्तर का महत्वपूर्ण फूल है। फूलों की पंखुड़ियाँ कागज-सी कटी-कटी अत्यंत सुंदर लगती हैं। फूलों में लौंग जैसी भीनी-भीनी सुगंध होती है। यह फूल अपने प्रकार, रंग एवं सुगंध के कारण गमले, क्यारियों, बगीचे में लगाने के लिए अत्यंत ही लोकप्रिय है। फूलों को काटने के पश्चात कई दिनों तक ताजा बने रहने के कारण कट-फ्लावर के रूप में ज्यादा उपयोग किया जाता है। इसके फूलों के विभिन्न रंगों में जैसे – लाल, गुलाबी, सफेद, पीला, चित्तीदार खिलने के कारण इन्हें गुलदस्ते में सजाने और पुष्पविन्यास के लिए ज्यादा पसंद किया जाता है।
कारनेशन की लगभग 250 जातियाँ पाई जाती हैं जिनमें डायंथस क्रायोफायलस, डायंथस बारबेट्स और डायंथस चायनेन्सिस जातियों को ही फूल के लिए लगाया जाता है। कारनेशन “क्रायोफायलेसी” कुल का पौधा है। डायंथस क्रायोफायलस जाति को अच्छे फूल उत्पादन के लिए महत्व दिया जाता है।
(क) स्टैंडर्ड कारनेशन: इसके फूल बड़े आकार के और मजबूत लम्बी टहनियों पर खिलते हैं। गर्म जलवायु में बीमारियाँ लगने की संभावना रहती है।
लाल: मास्टर, किलर, ग्रैन्डा, रेड विलियम, टॉगा, स्कैनिया, इम्पाला।
पीला: रागीओ दी सोल, पैलास, मुरसिया, ताहिती।
गुलाबी: लीना, शारिना, पिंक सिम, कैडी, ओरियाना, नुरा, कैस्टेलेरो, मेनोन, क्लेयोप्सो, पाओला।
सफेद: वाइट सिम, रोमा, कैन्डी वाइट, सोनसारा।
अन्य: सोलर, सन्टीगो, चारमर, टोलिडो, जिमाइका।
(ख) स्प्रे कारनेशन: इसके फूल ज्यादा संख्या में छोटे-छोटे खिलते हैं तथा गर्म जलवायु में भी अच्छे खिलते हैं।
लाल: रॉनी, कर्मा, इन्जो, इटना।
गुलाबी: करीना, मैलेडी, सिल्वर पिंक, बारब्रा, एनीलीस, मेडिया, नेटाली।
पीला: येल्लो ओडिओन, एलिसिटा, लियोर, कारटाउच।
सफेद: आइस लैण्ड, एक्सेल, टिब्ट, वाइट रॉयल्टी।
अन्य: किसी, लुना, मिराजी, माकारीना, स्कारलेट, इक्विस्टी।
कारनेशन की अच्छी वृद्धि, विकास और फूल उत्पादन के लिए दिन का तापमान 200 – 250 सें. और रात का तापमान 100-150 सें. के साथ 50 से 60% आर्द्रता होनी चाहिए।
कारनेशन अच्छी वृद्धि के लिए हल्की जल निकास वाली, अच्छे वायु संचार वाली मिट्टी पसंद करता है। बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उत्तम होती है। मिट्टी का पी. एच. मान 6-7 के बीच होना चाहिए।
कारनेशन का प्रसारण बीज और तना कर्त्तन द्वारा किया जाता है:
(क) बीज: कारनेशन के बीज को सीड वेड में डाल कर पौधा तैयार किया जाता है। इसके बीज 5 से 10 दिनों में अंकुर जाते हैं और 20-30 दिनों में पौधे तैयार हो जाते हैं। अंकुरण के लिए 210 सें. तापमान अच्छा होता है। सीड वेड में बालू, केचुआ खाद (1:1) का मिश्रण अच्छा होता है। बीजों को पत्ती से ढँकने से अंकुरण अच्छा होता है।
(ख) तना कर्त्तन: 10-12 सें.मी. के तनों के अग्र भाग से कटिंग लेकर 500 पी पी एम के इन्डोल व्युटारिक एसिड के घोल से उपचारित कर उसे बालू, केचुआ खाद, मॉस घास के मिश्रण वाले बेड में लगा दिया जाता है। एक महीने बाद अच्छी जड़ें निकल कर पौधे तैयार हो जाता हैं। कटिंग लगाने का सही समय फरवरी-मार्च का महीना होता है।
कारनेशन के पौधे को बाजार और सुन्दरता की दृष्टि से सितम्बर माह से अप्रैल माह तक लगाना चाहिए। इसके पौधे को ज्यादा गहराई पर नहीं लगाना चाहिए, नहीं तो जड़ सड़न रोग लगने की संभावना रहती है। कारनेशन को 15-20 सें.मी. पौधा से पौधा और कतार से कतार की दूरी पर लगाना चाहिए। अधिकतर 25-32 पौधे प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में लगाए जाते हैं।
कारनेशन अच्छी वृद्धि एवं पुष्पण के लिए अधिक खाद एवं उर्वरक चाहता है। मिट्टी जाँच के आधार पर अनुशंसित मात्रा में खाद एवं उर्वरक का व्यवहार करना चाहिए।
प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में खाद/उर्वरक की मात्रा:
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स्टैंडर्ड कारनेशन |
स्प्रे कारनेशन |
गोबर खाद |
5-10 किलो |
5-10 किलो |
नाइट्रोजन |
30 ग्राम |
40 ग्राम |
फास्फोरस |
20 ग्राम |
20 ग्राम |
पोटाश |
10 ग्राम |
10 ग्राम |
गर्मियों में 2-3 दिन बाद, जाड़े में 4-5 दिन बाद तथा वर्षा ऋतु में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। कारनेशन में स्प्रिंकलर द्वारा सिंचाई करने से पौधों का विकास अच्छा होता है।
पिन्चिंग क्रिया में पौधे और फूलों को काटते हैं जिससे कि पौधे का विकास ज्यादा हो और अच्छे फूल खिलें। साधारणत: 20-30 बार पौधों में पिंचिंग करते हैं। जमीन से 6 गाँठे छोड़ कर पौधे को काट देते हैं, जिससे ज्यादा शाखाएँ निकल कर पौधे घने हो जाते हैं और ज्यादा फूल खलते हैं।
खुली जगहों में खेती करने से प्रति वर्ग मीटर 150-200 फूल तथा ग्रीन हाउस में प्रति वर्ग मीटर 300-400 फूल प्राप्त होते है। पौधा लगाने के बाद लगभग 150-180 दिनों बाद फूल खिलने प्रारम्भ होते हैं। ग्रीन हाउस में 120-150 दिनों बाद फूल खिलना शुरू होता है।
(1) मुर्झा: यह रोग मिट्टी जनित रोग है जिसमें पौधा पीला होकर सूख जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइट दवा 8 ग्राम/ली. पानी में घोल कर जमीन को तर कर देना चाहिए तथा पौधे पर वेविस्टीन दवा का 2 ग्राम/ली. पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।
(2) तना सड़न: जमीन से सटे तने सड़ने लगते हैं और पौधा झुक जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइट दवा 4 ग्राम/ली. पानी में घोल कर जमीन को तर करना चाहिए।
(3) रस्ट: इस रोग में पत्तियों के ऊपर काले-भूरे रंग के दाग दिखाई देते हैं। फिर ये दाग तनों और फूलों पर भी बढ़ जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए वेवस्टीन दवा 2 ग्राम/ली. पानी में घोल कर या डायथेन एम-45 दवा 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(4) पर्ण दाग: जब मौसम का तापमान 23-80 सें. से बढ़ने लगता है तथा आर्द्रता अधिक होती है तो पत्तियों पर काले दाग दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए वेवस्टीन 2 ग्राम या डायथेन एम-45 दवा 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(1) लाही: यह कीट कारनेशन में सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाता है। रस चूस कर पौधे को कमजोर करने के साथ-साथ वायरस भी फैलाता है। इस कीट की रोकथाम के लिए रोगर दवा का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(2) थ्रिप्स: यह नन्हा कीट पौधे का रस चूस कर नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(3) निमेटोड: यह कीट पौधे की जड़ में रह कर गाठें बना देता है जिससे पौधा मिट्टी से पानी और पोषक तत्व नहीं ले पाता है और पौधा कमजोर हो जाता है। फूराडान या एल्डिकार्व दानेदार दवा 2-3 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलानी चाहिए।
स्त्रोत: रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, राँची।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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