फसल |
कीट का नाम |
क्षति के लक्षण |
रोकथाम के उपाय |
धान |
साँढा या गाँल मिज |
इस कीट के पिल्लुएँ (मैगोटस) धान के मुख्य तना एवं लीफ-शीथ के बदबार-बिन्दू का भक्षण करते हैं, जिसके कारण वे प्याज के पत्तियों के जैसा खोखली नली का आकार ले लेते हैं। इन्हें सिल्वर शूट कहते हैं। इन कीटग्रस्त पौधों से बालियाँ नहीं निकल पाती हैं। |
1. अवरोधी किस्मों जैसे आई.आर. 36 या राजेन्द्र धान 202 का प्रयोग करें। 2. बिचडों की जड़ों को 0.02 प्रतिशत क्लोरपारीफ़ॉस 20 ई.सी. (25 लीटर पानी में 25 मि.ली. क्लोरपारीफ़ॉस), जिसमें एक प्रतिशत यूरिया मिला हो, मैं चार घंटे डुबोकर रखें और तब रोपें। 3. धान रोपने के पांच दिन पहले बिचड़ा के खेतों में दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफूरान 3 जी (30 किलोग्राम/हेक्टेयर) या फारेट 10 जी (10 किलोग्राम/हेक्टेयर) का व्यवहार करना चाहिए। 4. आवश्यकतानुसार 40 दिनों बाद मोनोक्रोटोफ़ॉस 25 ई.सी. (1500 मि.ली./हें.) का छिड़काव करें। 5. नीम तेल 3 प्रतिशत साँढा किट के नियंत्रण में लाभदायक होता है। |
|
तना छेदक |
शिशु कीट (लारवा) पौधों के सनों में छेद करके उनके आंतरिक गूद्दे को खा डालते है। ग्रसित पौधों के प्रारंभिक अवस्था में डेड हार्ट, एवं बलियां निकल जाने पर हवाइट इयर हेड का निर्माण होता है। |
साँढ़ा कीट के नियंत्रण के लिए व्यवहार की गई दानेदार या तरल कीटनाशी से तना छेदक को भी रोकथाम हो जाती है। |
|
पत्तियाँ खाने वाले कीड़े |
पत्र-लपेटक, बकिया, कटुई कीट, सैनिक कीट एवं स्वार्मिग कैटर-पिल्लर धान के पत्तियों को खाकर उन्हें अधिक नुकसान करते हैं। |
पत्तियाँ खानेवाले कीड़ों जैसे पत्र लपटेक बकाया या केसवर्म, कटुई कीट या सैनिक कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरपारीफ़ॉस 1 लीटर या क्वीनालफ़ॉस 1.0 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। घोल में टिपोल (5 मि.ली./10 लीटर) अवश्य मिलाएं। बभनी के नियंत्रण के लिए मिथाइल डिमेटोन 0 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी या मोनोक्रोटोफ़ॉस 1 मि.ली./ली. पानी का छिड़काव करें। |
|
रसू चूसने वाले कीड़े |
मधुआ, दहिया कीट, थ्रिप्स इत्यादि प्रमुख रसचूसक कीट हैं जो धान के पत्तियों से रस चूस कर उनका नुकसान करते हैं। |
रस चूसने वाले कीड़ों में मधुआ, दहिया कीट, थ्रिप्स इत्यादि प्रमुख हैं। मोनोक्रोटोफ़ॉस (10 मि.ली./10 लीटर पानी) या मिथाइल डिमेटोन (मेटासिस्ट्रोक्स, 1 मि.मी. प्रति ली. पानी) या इमिडाक्लोप्रिड (1 मिली/ली. पानी) के व्यवहार से रस चूसने वाले कीड़ों का नियंत्रण हो जाता है। |
|
गंधी बग |
ये लंबे-लंबे टांग वाले छरहरे कीट होते है। इनका रंग हरा, भूरा एवं भूरा-काला होता है। इस कीट का वयस्क एवं शिशु नवजात बालियों के दानों के दूध को चूसकर क्षति पहुंचाते है। फलत: दाने भर नहीं पाते हैं। कीटग्रस्त खेत से खटमल जैसा गंध निकलता है। फलियों में छोटे-छोटे छिद्र दिखलाई पड़ते हैं। |
इस कीट के नियंत्रण के लिए इंडोसल्फान 4 प्रतिशत धुल या क्वीनालफ़ॉस 1.5 प्रतिशत धूल 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें। |
मक्का |
तना छेदक |
इस कीट के शिशु (पिल्लू/लार्वा) तना में छेद करके उसके आंतरिक भाग (कोशिका) को खा डालते हैं। अत: तना का बढ़वार अग्र भाग मुरझाकर सूख जाता है, जिसको ‘डेड हर्ट’ कहते हैं। |
दानेदार कीटनाशी का व्यवहार पत्तियों के उपरी चक्र करने से तना छेदक को नियंत्रित किया जा सकता है। फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी, फसल अंकुरण के सप्ताह बाद ऊपरी चक्र में 12-15 दाना डालना चाहिए आवश्यकता पड़ने पर मोनोक्रोटाफ़ॉस (10 मि.ली./ 10 ली. पानी) का छिड़काव करना चाहिए। |
अरहर |
फली छेदक |
इन कीड़ों के शिशु हरी फलियों में छेद करके दानों को खा डालते हैं। कीट ग्रस्त फलियों में छोटे-छोटे छिद्र दिखलाई पड़ते है। |
अरहर में अनेक तरह के फली छेदक का आक्रमण होता है। इनसे बचाव के लिए दो या तीन बार कीटनाशी दवा का छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव इंडो सल्फान तरल (2.0 मि.ली./लीटर पानी) का उस समय किया जाता है, जब फसलों में 50 प्रतिशत फूल आते है। दूसरा छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर मोनोक्रोटोफ़ॉस तरल (1 मि.ली./ली.पानी) से किया जाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर तीसरा छिड़काव 15 दिनों बाद पुन: इंडोसल्फान तरल या नीमयुक्त कीटनाशी का व्यवहार करें। एक-एक पंक्ति छोड़कर छिड़काव करने से मुनाफ़ा अधिक होता है तथा कीटनाशी की मात्रा भी कम लगता है। फलत: पर्यावरण को नुकसान भी कम होता है। मकई के साथ मिश्रित खेती द्वारा भी कीड़ों को नियंत्रित किया जाता है। |
मूंग, उड़द, सोयाबीन मूंगफली |
भुआ पिल्लू |
रोयेंदार पिल्लू फसल के पत्तियों को बुरी तरह खा जाते हैं। अत: पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है। उपज का नुकसान होता है। |
1. प्रारम्भिक अवस्था में ग्रसित पौधों को इकट्ठा कर मिटटी में दबा दें। 2. भूआ पिल्लू को प्रारम्भिक अवस्था में डायक्लोरभास (मि.ली./10 लीटर पानी) के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है। 3. बड़े एवं रोयेंदार होने पर (शरीर बाज से ढक जाने पर इस कीड़ा को नियंत्रित कर पाना बहुत कठिन होता है) इंडोसल्फान तरल (1.5 ली./हें.) के व्यवहार से कुछ लाभ हो सकता है। घोल में टिपोल (1/2 ली./हें.) अवश्य मिलाएं। सबसे बढ़िया तरीका है कि कीड़ा को चुनकर पैर से कुचल दें। |
मडुआ |
लाही |
ये समूह में रहने वाले कीट हैं, जो फसल की पत्तियों, कोमल डंठलों एवं तनों के रस चूस पर उन्हें कमजोर बना डालते हैं। पौधों पर चिंटियों की उपस्थिति लाही के आक्रमण को इंगित करता है। |
4. आवश्यकतानुसार फसलों पर डायमीथोएट या मोनोक्रोटोफ़ॉस या मिथाइल डिमेटोन (1 मि.ली./1 ली.पानी) का छिड़काव करें। |
गेहूँ जौ |
दीमक |
ये मिटटी में निवास करने वाले धू मिल-सफेद कीड़े हैं, जो अंकुरते हुए बीजों को एवं नवजात पौधों के जड़ों को खा डालते हैं। पौधे पीले पड़कर मुरझा जाते हैं और अंतत: सूख जाते है। |
1. क्लोरपारीफ़ॉस 20 ई.सी. से बीजोपचार करें। एक किलो गेहूँ के बीज के लिए 5 मि.ली. क्लोरपारीफ़ॉस कीटनाशी की आवश्यकता होती हैं। किन्तु एक किलोग्राम जौ के बीज के लिए 6 मि.ली. कीटनाशी की आवश्यकता होती है। 2. खेत की अंतिम तैयारी के समय करंज/नीम खली या लिन्डेन धूल (25 किलोग्राम/हें.) का व्यवहार करें। 3. खड़ी फसल में दीमक का आक्रमण होने पर क्लोरपारीफ़ॉस 20 ई.सी. (2.5 ली./हें.) का व्यवहार करें। |
चना |
दीमक |
ऊपर जैसा। |
दीमक से बचाव के लिए क्लोरपारीफ़ॉस कीटनाशी से बीजोपचार करें। 6 मि.ली. क्लोरपारीफ़ॉस तरल का 5 मि.ली. में घोल बना लें। इस घोल में एक किलो ग्राम बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लें। उसके बाद ही बुआई करें। |
|
फलीछेदक |
हरे-हरे पिल्लू (शिशु कीट) चना के हरी-हरी फलियों में छेद करके उनमें पड़े हुए दानों को खा डालते हैं। |
1. फली छेदक के नियंत्रण के लिए इंडोसल्फान तरल (1 मि.ली./लीटर पानी) या क्वीनालफ़ॉस तरल (1.2 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव करें। 2. नीम से निर्मित कीटनाशी के व्यवहार से भी फली छेदक को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। 3. जैविक कीटनाशी जैसे डेल्फिन (1 ग्राम/ली.पानी) के व्यवहार से भी इस कीट को नियंत्रित किया जाता है। 4. नीम सीड करनेल एक्सट्रेक्ट (5 प्रतिशत) भी इस कीड़ा को नियंत्रित करने में सक्षम होता है। फसलों पर छिड़काव प्राय: फूल आने पर यह फल बनने के समय करना चाहिए। 5. धनिया, सरसों, तीसी के साथ मिश्रित खेती करने से फली छेदक की रोकथाम की जा सकती है। |
तीसी |
गॉल मिज |
इस कीट के पिल्लू फसल के पुष्प-कलियों के अंदर रहते हुए आंतरिक भाग को खा जाते है। फलत: कीट ग्रसित कलियों से फूल एवं फली नहीं बन पाते हैं। |
6. इसके नियंत्रण के लिए मिथाइल डिमेटोन (10 मि.ली./10 ली. पानी) या मोनोक्रोटोफ़ॉस तरल (10 मि.ली./10 ली. पानी) का व्यवहार करें। |
सरसों तोरिया |
लाही |
ये हरे-काले रंग के छोटे-छोटे चिपचिपे कीट हैं, जो पौधों के पत्तियों कोमल डंठलों, फूलों एवं हरी-हरी फलियों के रस चूस कर उन्हें कमजोर बना डालते हैं। अत्यधिक आक्रमण की स्थिति में उपज में भारी नुकसान होता है। |
7. मिथाईल डिमेटोन या मोनोक्रोटोफ़ॉस के व्यवहार से इस कीट को भी नियंत्रित किया जा सकता है। |
पत्तागोभी- फूलगोभी |
गोभी का पतंगा |
इस कीट के हरे व फीके-गंदले रंग के छोटे-छोटे पिल्लू (लरवा) फसल के पत्तियों में छेद करके हरीतिमा (क्लोरोफिल) को बुरी तरह खा डालते हैं। फलत: उपज में कमी आ जाती है। |
1. बिचड़ों की रक्षा के लिए कार्बोफ्यूरान 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से व्यवहार करें। 2. रोपनी के 8-10 दिनों बाद पौधे के चारों ओर कार्बोफ्यूरान 3 जी का 1.0 ग्राम प्रति पौधा की दर से मिटटी में मिला दें एवं हल्की सिंचाई कर दें। 3. आवश्यकतानुसार जैविक कीटनाशी जैसे डेल्फिन (1 ग्राम/ली. पानी) या डिपेल (1 मि.ली./ ली. पानी) का छिड़काव करें। यदि दूसरे छिड़काव की आवश्यकता हो तो नीम से निर्मित कीटनाशी (अचूक, निम्बेसिडिन, नीमगोल्ड 2 मि.ली./ ली. पानी) का छिड़काव से अच्छा नियंत्रण होता है। 4. नीम सीड करनल एक्सट्रेक्ट 5 प्रतिशत के छिड़काव से अच्छा नियंत्रण होता है। 5. घोल बनाने की विधि: प्रारम्भिक अवस्था में नीम के बीज को एकत्रित कर ऊपर का छिलका हटा देते हैं, उसके बाद छाया में सुखा लेते हैं। एक किलोग्राम बीज को अच्छी तरह से पीस कर धूल के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। एक किलोग्राम धूल को 20 लीटर पानी में डालते हैं तथा रात भर के लिए छोड़ देते हैं। सुबह में घोल को अच्छी तरह मिलाकर पतला कपड़ा से छान लेते हैं। इस घोल में 20 ग्राम कपड़ा धोने वाला साबुन का घोल मिलाते हैं। इस घोल का छिड़काव करने से काफी फायदा होता है। 6. फूलगोभी एवं बंदगोभी के साथ धनिया एवं लहसून की मिश्रित खेती करने से भी इस कीट के प्रकोप को कम किया जा सकता है। 7. रासायनिक कीटनाशी का व्यवहार कम से कम करना चाहिए। आवश्यकतानुसार क्लोरपारीफ़ॉस (1 मि.ली./ ली. पानी) का छिड़काव करें। |
बैंगन, भिण्डी |
लाल मकड़ी माइट
शीर्ष एवं फल छेदक |
ये लाल-लाल सूक्ष्म आकार के अष्टपदी प्राणी होते है जो फसल के पत्तियों, कोमल डंठलों एवं पुष्प कलियों पर भारी संख्या में पाये जाते हैं। इनका आक्रमण गर्मी के मौसम में भयंकर रूप से होता है। ग्रसित पौधों पर सूक्ष्म जाला दिखलाई पड़ते है। ये पौधों के कोमल अंगों का रस चूस डालते है। पौधे कमजोर पड़ जाते हैं। अत: उपज में काफी कमी आ जाती है। इस कीट के पिल्लू (लरवा) नवजात फलों में प्रवेश कर उनके आंतरिक गुद्दे को खा डालते हैं। कीट ग्रसित फलों को बाजार में बेच पाना मुश्किल होता है। |
डायकोफाल या इथियान या ओमाइट (2.5 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव करें। 1. बैंगन या भिण्डी रोपने के 10-12 दिनों बाद कार्बोफ्यूरान 3 जी का 0.5-1.0 ग्राम प्रति पौधे की दर से व्यवहार करें एवं उसके बाद हल्का सिंचाई कर दें। 2. आवश्यकतानुसार नीम से निर्मित कीटनाशी (नीम सीड करनल एक्सट्रेक्ट 5 प्रतिशत) अचूक या निम्बेसिडिन या नीमोल नीमगोल्ड (2 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव करें। 3. नीम तेल (3 प्रतिशत) का छिड़काव लाभदायक होता है। 4. आवश्यकता होने पर मिथाइल डिमेटोन (10 मि.ली./10 ली.पानी) का छिड़काव करें। इंडोसल्फान तरल (1.0-1.5 मि..ली./ली.पानी) का व्यवहार करने से काफी लाभ मिलता है। |
लौकी |
रस चूसने वाले कीड़े |
|
मधुआ, लाही, बग इत्यादि के नियंत्रण के लिए नीम निर्मित कीटनाशी एवं मिथाइल डिमेटोन का व्यवहार करें। |
|
लाल भृंग |
इस कीट के शिशु (पिल्लू) फसल के पत्तियों को बुरी तरह खा डालते हैं। कीट ग्रस्त पत्तियों में कई छिद्र दिखलाई पड़ते हैं। |
1. लिन्डेन धूल 10 ग्राम प्रति थाला की दर से मिटटी में मिलाएं। उसके बाद ही बुआई करें। नीम या करंज की खली का भी व्यवहार करें। 2. इंडोसल्फान 4 प्रतिशत धूल या क्वीनालफ़ॉस 1.5 प्रतिशत धूल का भूरकाव 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करें। 3. आवश्यकता होने पर क्लोरपारीफ़ॉस (1.0 मि.ली./ 1 ली. पानी) या क्वीनालफ़ॉस (1.0 मि.ली./1 ली. पानी) का छिड़काव करें। |
|
फल मक्खी |
इस कीट के सफेद व गंदले सफेद रंग के पिल्लू (मैगोट) होते है; जो फलों में अनगिनत संख्या में घुस कर गुद्दे को खा डालते है। अंतत: कीट-गस्त फल सड़ जाते है। |
1. बेट ट्रेप का व्यवहार करें। बेट ट्रेप बनाना: 99 मि.ली. पानी + मिथाइज यूजीनोल 1 प्रतिशत का एक मि.ली. डायक्लोरभांस तरल का 2 मि.ली. । डायक्लोरभांस में 2 ग्राम गुड या छोआ प्रति ली. मिलाने से अधिक फायदा होता है। 2. नीम से निर्मित कीटनाशी (नीम सीड करनल एक्सट्रेक्ट 5 प्रतिशत, अचूक, निम्बसिडिन 2 मि.ली./ली. पानी) का व्यवहार करें। |
आलू |
आलू का पतंगा |
इस कीट के पिल्लू आलू के कंद को जहां-तहाँ खाकर उनमें छेद बनाते हैं, फलत: वे सड़ जाते हैं। इस कीट का प्रकोप खेत तथा भंडार दोनों में होता है। |
1. खेत की तैयारी के समय खेतों या करंज की खली (50 किग्रा./हें.) का व्यवहार करें। मिटटी में लिन्डेन धूल 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाने से मिटटी में रहने वाले कीड़ों की रोकथाम हो जाती है। 2. आलू पर अच्छी तरह से मिटटी चढ़ानी चाहिए, जिससे कोई आलू बाहर दिखाई नहीं पड़े। |
शकरकंद
मटर, फ्रेंचबीन |
वीमिल फली छेदक |
इस कीट के वयस्क एवं शिशु (ग्रब) दोनों ही फसल के पत्तियों, कोमल तनों तथा कंदों को खाकर क्षति पहुंचाते है। इस कीट के आक्रमण की तीव्रता अधिक तो जाने पर ऊपज में काफी कमी आ जाती है। शिशु कीट (पिल्लू) हरे फलियों में छेदक करके उनके दानों को खा जाते हैं। आक्रमण की तीव्रता अधिक होने पर ऊपज में कमी आ जाती है। |
लत्तर को लगाने के समय मोनोक्रोटोफ़ॉस 2 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर उपचारित करें।
1. नीम से निर्मित कीटनाशी का व्यवहार करें। 2. आवश्यकतानुसार इंडोसल्फान तरल 1.2 मि. ली./ली. पानी का छिड़काव करें। |
टमाटर, मिर्चा |
फल छेदक |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
पालक, लालसाग मूली, गाजर |
पत्तियाँ खाने वाले कीड़े |
ये पत्रभक्षी कीट पत्तियाँ में छेद करके उनका भक्षण करते है। कीटग्रस्त पत्तियाँ छलनी हो जाती है। |
नीम से निर्मित कीटनाशी, जैसे नीम सीड करनल एक्सट्रेक्ट 5 प्रतिशत अचूक या निम्बेसिडिन 2 मि. ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। छिड़काव के एक सप्ताह बाद ही सब्जियों को खाने के उपयोग में लायें। |
|
दीमक |
ये कीट रबी फसलों के अंकुरित बीजों एवं फसल के जड़ों को खा डालते है। |
दीमक का आक्रमण प्राय: सभी रबी फसलों में होता है। 1. जहाँ तक सम्भव हो क्लोरपारीफ़ॉस तरल (5-10 मि.ली./किलोग्रा. बीज) से बीजोपचार करें। 2. खेत की अंतिम तैयारी के समय लिन्डेन धूल (10 किलोग्रा./ एकड़) का व्यवहार करें। 3. करंज/नीम की खली का व्यवहार पौधा लगाने के 20-25 दिन पूर्व करें। 4. यदि खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप हो जाता है, तब क्लोरपारीफ़ॉस 2.5 मि.ली./ली. पानी में घोल बनाकर आक्रान्त भागों पर छिड़काव करें। |
आम |
शूट गॉल |
कीड़ों के शिशु (निम्फ) ही फसलों के कोमल कढवार डंठलों के अग्रसिराओं पर आक्रमण करते हैं एवं उनका भक्षण करते हैं। कीटग्रसित टहनियों व डंठलों में एक तरह की विकृति उत्पन्न होती है जिसके चलते इन पर हरे-हरे गुच्छे के रूप में कौनिकल कली-नुमा आकृति बन जाते हैं। जिसे शूट-गॉल कहते है। कीट ग्रसित टहनियों में पुष्पन एवं फलन नहीं होता है। |
मोनोक्रोटोफ़ॉस (1 मि.ली./ली.) या मिथाइल डिमेटोन (10 मि.ली./ 10 ली. पानी) या इमिडाक्लोप्रिड (1 मि.ली./ली. पानी) का घोल बनाकर अगस्त मध्य से 15 दिनों के अंतराल पर तीन बार छिड़काव करें। कीटनाशी बदल-बदल कर व्यवहार करने से काफी फायदा होता है। |
आम एवं अन्य फल वृक्ष |
मधुआ मिलीबग |
ये दोनों ही तरह के कीड़े फसलों के पत्तियों, कोमल डंठलों एवं पुष्पकलियों के रस को भारी मात्रा में चूस डालते है। अत: उपज का नुकसान होता है। |
उपरोक्त कीटनाशी के व्यवहार से मधुआ को नियंत्रित किया जा सकता है। 1. दिसम्बर माह में पेड़ के नीचे की जमीन को कोड़कर लिन्डेन धूल को मिटटी में मिला दें। 2. पेड़ के तने के ऊपर एक मीटर की ऊँचाई पर पोलीथिन चादर लपेट दें । ऊपर और नीचे शिरों का रस्सी से बाँध दें। धड़ के चारों ओर अलकतरा का लेप चढ़ा दें। इस तरह जमीन से कीड़े पेड़ पर नहीं जा सकेंगे। 3. आवश्यकतानुसार क्लोरपारीफ़ॉस तरल (1 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव करें। |
लीची |
माइट |
ये अति सूक्ष्म जाति के चतुष्पदी सफेद प्राणी होते है, जो अनेकानेक संख्या में रहकर लीची के पत्तियों के नीचले सतह के रस को चूसते हैं। पत्तियाँ सिकुड़ जाती है। |
लाल मकड़ी माइट यानी माइट (बरूथी) का आक्रमण प्रारंभ होते ही 10 से 15 दिनों के अंतराल पर डायकोफाल या इथियान ओमाइट (2 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव करें। |
|
बग |
ये बड़े-बड़े पंचकोणीय आकार के हरे रंग के कीड़े होते है। ये आसानी से हल्की उड़ान ले सकते हैं। इस कीट के वयस्क एवं निम्फ (शिशु) दोनों ही अवस्थाएं लीची के पत्तियों का रस चूसकर उनका नुकसान करते है। |
मिथाइल डिमेटोन (10 मि.ली./ 10 ली. पानी) में मोनोक्रोटोफ़ॉस (10 मि.ली./ 10 ली. पानी) का छिड़काव करें। |
नींबू |
मधुआ, लाही |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
|
माइट |
ऊपर जैसा |
आक्रमण होने पर डायकोफाल/ ओमाइट (2.0 मि.ली./ली.) का छिड़काव आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर करें। |
फसल |
माइट का नाम |
क्षति के लक्षण |
रोकथाम के उपाय |
मूंग एवं उड़द |
लाल मकड़ी (बरुथी) |
ये लाल व गहरे भूरे रंग के सूक्ष्मजीवी अष्टपदी प्राणी हैं जो पत्तियों के प्राय: नीचली सतहों पर अनगिनत संख्या में रहकर उनका रस चूसते हैं। ग्रसित पत्तियाँ सफेद होकर सूख जाते हैं। |
लाल मकड़ी आक्रमण के प्रारंभ होते ही डायकोफाल या ओमाइट या इथियान (2.5 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर करें। |
बोदी एवं फ्रेंचबीन |
लाल मकड़ी एवं पीली मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
बैंगन, भिण्डी |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
कद्दू, खीरा, नेनुआ, झींगी एवं कुम्हड़ा |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
गुलाब, गेंदा |
मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
जासमीन |
एरेनियम |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
नींबू |
साइट्रस माइट |
पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होकर सिकुड़ जाती है। |
ऊपर जैसा |
लीची |
गॉल माइट |
ये अनगिनत संख्या में रहकर पत्तियों के रस चूसते है। |
ऊपर जैसा |
पपीता |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
अश्वगंधा एवं सर्पगंधा |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
फसल |
माइट का नाम |
क्षति के लक्षण |
रोकथाम के उपाय |
मूंग एवं उड़द |
लाल मकड़ी (बरुथी) |
ये लाल व गहरे भूरे रंग के सूक्ष्मजीवी अष्टपदी प्राणी हैं जो पत्तियों के प्राय: नीचली सतहों पर अनगिनत संख्या में रहकर उनका रस चूसते हैं। ग्रसित पत्तियाँ सफेद होकर सूख जाते हैं। |
लाल मकड़ी आक्रमण के प्रारंभ होते ही डायकोफाल या ओमाइट या इथियान (2.5 मि.ली./ली. पानी) का छिड़काव आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर करें। |
बोदी एवं फ्रेंबीन |
लाल मकड़ी एवं पीली मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
बैंगन, भिण्डी |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
कद्दू, खीरा, नेनुआ, झींगी एवं कुम्हड़ा |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
गुलाब, गेंदा |
मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
जासमीन नींबू |
एरेनियम माइट साइट्रस माइट |
ऊपर जैसा पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होकर सिकुड़ जाती है। |
ऊपर जैसा ऊपर जैसा |
लीची |
गॉल माइट |
ये अनगिनत संख्या में रहकर पत्तियों के रस चूसते है। |
ऊपर जैसा |
पपीता |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
अश्वगंधा एवं सर्वगंधा |
लाल मकड़ी |
ऊपर जैसा |
ऊपर जैसा |
ट्राइकोग्रामा एक अत्यंत सूक्ष्म कीट (ततैया) है, जो अनेक प्रकार के शत्रु कीटों पर आक्रमण करता है। यह एक अंड-परजीवी है जो शत्रु कीट के अंडों में अपना अंडा देकर उन्हें नष्ट कर देता है। इस प्रकार यह एक जीवित कीटनाश़क का काम करता है जो सिर्फ अपने लक्षित शत्रु कीट को मारता है और मनुष्य व पशुओं के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव छोड़े बिना, पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है।
खेत में छोड़ने की विधि: इसके लिए ट्राइकोकार्ड को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर पत्तियों की निचली सतह पर स्टैपलर द्वारा लगा देते हैं। इस विधि से ट्राइकोग्रामा का समान वितरण।
पूरे खेत में हो जाता है। ट्राइकोग्रामा को शाम के समय छोड़ना चाहिए क्योंकि दिन का उच्च तापमान इन कीटों के प्रतिकूल होता है। लगाने के कुछ ही घंटों में ट्राइकोकार्ड स्थित परजीवित अंडों से ट्राइकोग्रामा के वयस्क निकलना शुरू हो जाते हैं।
शत्रु कीटों पर परजीवन: अंडों से निकलते ही वयस्क ट्राइकोग्रामा प्रजनन के लिए मिलते हैं, तत्पश्चात मात्र ट्राइकोग्रामा अंडे देने के लिए अपने शत्रु कीट के अंडों को खोजना शुरू करती है। जैसे-जैसे अंडे मिलते जाते है। वह इनमें एक-एक अंडा देती रहती है। एक मादा ट्राइकोग्राम 30 से लेकर 40 अंडों को परजीवित करती है।
फसल |
शत्रु कीट |
मात्रा |
धान |
तना छेदक |
1 लाख ट्राइकोग्रामा जैपिनिकम (5 ट्राइकोकार्ड)/हें./सप्ताह 3 बार |
|
पत्ता लपेटक |
1.5 लाख टी. जैपिनिकम (8 कार्ड)/हें./सप्ताह तीन बार |
मक्का |
तना छेदक |
1.5 लाख ट्राइकोग्रामा किलोनिस, अंकुरण के 12वें दिन पर तथा अंकुरण के 22वें दिन पर (8 कार्ड)/हें. |
टमाटर |
तंबाकू सुंडी |
50 हजार ट्राइकोग्रामा प्रीटियोसम/हें. लगाने के 45 दिन से प्रति सप्ताह 6 बार |
गोभी |
गोभी का पतंगा |
50 हजार ट्राइकोग्रामा बैक्ट्री/ हें. लगाने के 45 दिन से प्रति सप्ताह 6 बार |
सावधानियाँ
(1) इस कार्ड को परजीवी निकलने की तिथि से 1 दिन पहले प्रयोग करें।
(2) कार्ड के 16 टुकड़ों को फाड़ने के निशान से फाड़ कर अलग करें तथा धागे की सहायता से पत्तियों की निचली सतह पर बांधे ताकि सूर्य की सीधी किरन (अंडों वाली सतह जमीन की ओर हो) न पड़े।
(3) ट्राइकोकार्ड को शाम के समय खेत पर छोड़े।
(4) ट्राइकोकार्ड छोड़ने के एक सप्ताह पहले एवं एक सप्ताह बाद तक किसी तरह का रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग न करें।
(5) ट्राइकोकार्ड को एक समान रूप से खेत पर फैलायें।
नोट: अधिक जानकारी के लिए कीट विज्ञान विभाग से संपर्क करें।
1. नीम की पत्तियों से कीटनाशी बनाना
नीम की पत्तियों से एक बाल्टी को भरा जाता है। बाल्टी को पानी से भरकर चार दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है। पांचवें दिन पत्तियों को अच्छी तरह से मिलाकर छान लिया जाता है। उसके बाद, छिड़काव करने से पिल्लू, भृंग, फनगा, दीमक को नियंत्रित किया जा सकता है।
2. नीम की फली से कीटनाशी बनाना
एक किलोग्राम नीम बीज को धूल के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इस धूल को 20 लीटर पानी में डालकर मिला दिया जाता है। 10-12 घंटा पानी में भिगाने के बाद घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान लिया जाता है। छानने के बाद घोल में 20 ग्राम कपड़ा धोने वाला साबुन का घोल मिलाया जाता है। उसके बाद छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके छिड़काव से अनेक प्रकार के कीड़ों की रोकथाम की जा सकती है।
3. तम्बाकू (खैनी) के डंठल से कीटनाशी बनाना
एक किलोग्राम खैनी के डंठल को चूर्ण के रूप में बदलकर 10 लीटर पानी में गर्म करते हैं। आधा घंटा खौलने के बाद घोल को ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद घोल को छानकर उसमें कपड़ा धोने वाला साबुन का घोल 2 ग्राम प्रति लीटर मिलाया जाता है। इस घोल में पानी मिलाकर कुल 80-100 लीटर बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके छिड़काव से श्वेतमक्खी, लाही, मधुआ, फलीछेदक पिल्लू को नियंत्रित किया जा सकता है। इसका व्यवहार दो बार से अधिक नहीं करना चाहिए।
4. मिर्चा-लहसुन से कीटनाशी बनाना
तीन किलोग्राम हरा एवं तीता मिर्चा लेते हैं एवं उसके डंठल को हटाकर मिर्च को पीस देते हैं। पिसे हुए मिर्चा को 10 लीटर पानी में डालकर रातभर छोड़ देते हैं। सुबह में घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान दिया जाता है। दूसरे बर्तन में आधा किलोग्राम लहसुन को पीसकर 250 मिली. किरासन तेल में डालकर रातभर के लिए छोड़ दिया जाता है। सुबह में अच्छी तरह मिलाकर घोल को छान लिया जाता है। सुबह में एक लीटर पानी में 75 ग्राम कपड़ा धोने वाला साबुन का घोल बनाते हैं। अब इन सब घोल को एक साथ मिलाकर 3-4 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। घोल को पुन: छान लेते हैं। इस घोल में पानी मिलाकर कुल 80 लीटर बना लेते हैं। उसके बाद फसलों पर छिड़काव करना चाहिए। इस कीटनाशी के व्यवहार से चना के फलीछेदक एवं तम्बाकू के पिल्लू को नियंत्रित किया जा सकता है।
5. गोमूत्र से कीटनाशी बनाना
पाँच किलोग्राम ताजा गोबर + 50 लीटर गोमूत्र + 5 लीटर पानी का घोल बनाकर मिटटी के बर्तन में रखकर मुंह को ढक्कन से ढंक दिया जाता है। चार दिनों तक सड़ने के बाद घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान लिया जाता है। घोल में 100 ग्राम चूना मिलाकर कुल घोल को 80 लीटर बनाकर फसलों पर छिड़काव किया जाता है। इस कीटनाशी के छिड़काव से तितली फलों पर अंडा नहीं डे पाती है एवं रोग के नियंत्रण में भी सहायता मिलती है। इस घोल के छिड़काव से पौधे हरे-भरे हो जाते है।
6. जैविक कीटनाशी
(क) बैक्टीरिया से बना कीटनाशी जैसे वायोलेप, हाल्ट, डेल्फिन, डायपेल इत्यादि के व्यवहार (1.0 ग्राम/लीटर पानी) से गोभी का पतंगा, चना का फलीछेदक, तम्बाकू के पिल्लू को नियंत्रित किया जा सकता है।
(ख) वायरस से बना जैविक कीटनाशी जैसे हेलियो किल द्वारा चना के फलीछेदक एवं तम्बाकू के पिल्लू को नियंत्रित किया जा सकता है। वायरस के बने कीटनाशी जो बाजार में उपलब्ध हैं, वे इस प्रकार हैं:
1. हेलियोकिल/हेलिसाइड: यह चना के फलीछेदक, टमाटर एवं मिर्च के फल छेदक कीटों का नियंत्रण करता है।
2. स्पोडोसाइड: यह तम्बाकू के पिल्लू (जो कई अन्य फसलों को क्षति पहुंचाते हैं) के नियंत्रण के लिए काफी उपयुक्त कीटनाशी है।
(ग) नीम से बना कीटनाशी बाजार में उपलब्ध है जैसे अचूक, निम्बोसिडिन, नीमगोल्ड, नीमोल इत्यादि, जिसके व्यवहार से रस चूसनेवाले कीड़े एवं पिल्लू को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
भंडार में आलू का पतंगा |
अन्न भंडारण |
1. खेत में ही सावधानी बरतें। आलुओं को मिटटी से बाहर न छोड़ें। अच्छी तरह मिटटी चढ़ाएँ। 2. आलुओं को बाहर में रखने से पहले जितने आलू आँख वाले हो गये हों, उन्हें छांट कर अलग कर दें। 3. खानेवाले आलुओं पर कीटनाशक दवा न दें। |
1. भण्डारण में अन्न की सुरक्षा के लिए उन्हें खूब सुखाकर ही रखें। 2. भण्डारण की सफाई अच्छी तरह करें। भूसा आदि को इकट्ठा कर जला दें। 3. फर्श या दीवारों की दरारों को अच्छी तरह बंद कर दें। 4. भण्डारण में अन्न रखने से पहले मालाथियान 50 ई.सी. एक भाग एवं 300 भाग पानी में घोलकर अच्छी तरह भण्डारण में छिड़काव करें। 5. पुरानी बोरियां इस्तेमाल करने से पहले पानी में आधा घंटा उबालें। 6. बोरियों को भण्डार में सीधे फर्श पर न रखें। तख्ता या पोलीथिन की चादर बिछाकर रखें। 7. बीज के लिए रखी अन्न की बोरियों पर मालाथियान धूल का भुरकाव कर दें। 8. अगर कीड़े लग जाएँ तो अन्न को शीघ्र बेच दें या प्रधुमन करें। इसके लिए वायुरोधी बर्तन में ई.डी.बी. 3 मिली. प्रति क्विंटल की दर से काम में लायें। 9. उन्नत कोठियों, जैसे धातु की कोठी या पूसा बिन का प्रयोग करें। 10.चूहों के लिए जहरीले चारे का प्रयोग करें। 11.एक सौ किलोग्राम दलहनी बीज में 7 किलोग्राम तेल अच्छी तरह से मिलाकर रखने से कीड़ों का आक्रमण नहीं होता है। 12.एक सौ किलोग्राम अनाज में 5 किलोग्राम सूखी हुई नीम या सदाबहार या कनेर की पत्तियाँ अच्छी तरह से मिलाकर रखने से कीड़ों से बचाव होता है। |
|
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/28/2020
इस भाग में जनवरी-फरवरी के बागों के कार्य की जानकार...
इस पृष्ठ में अगस्त माह के कृषि कार्य की जानकारी दी...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...