उन्नत प्रभेद
उन्नत प्रभेद |
बुआई की दूरी का समय |
तैयार होने (क्विं./हें.) |
औसत उत्पादन |
विशेष गुण |
पंत जी-114 के. डब्ल्यू.आर. 108, के.पी.जी-59, एच.के. – 94134 (काबुली) |
30 x 10 सें.मी. |
130 से 135 |
15-20 |
बिलम्ब से बुआई के दिन लिए उपयुक्त एवं रोग अवरोधी |
कृषि कार्य
(क) जमीन की तैयारी: अगात खरीफ फसल एवं धान की कटनी के बाद खेत की अविलम्ब तैयारी जरूरी है। दो-तीन बार देशी हल से जुताई करके पाटा चला दें। चना की बुआई के लिए मध्यम जमीन, जिसमें पानी का जमाव नहीं होता हो, उपयुक्त होती है।
(ख) बुआई का समय: मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर।
(ग) बीज दर: 75 किलो प्रति हेक्टेयर।
(घ) उर्वरक: 25:50:25 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर।
उर्वरक |
मात्रा |
जीवाणु खाद |
यूरिया |
12 कि./हें. |
बुआई से पहले बीज को जीवाणु खाद (राईजोबियम कल्चर) से उपचारित करना लाभदायक है। |
डी.ए.पी. |
112 कि./हें. |
|
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश |
40 कि./हें. |
(ङ) निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई करना जरूरी है। पहली बार बुआई के 20-25 दिनों बाद एवं दूसरी 40-50 दिनों बाद।
(च) सिंचाई: दो हल्की सिंचाई करने से उपज में काफी वृद्धि हो जाती है। एक सिंचाई फूल आने से पहले एवं दूसरी फलियाँ निकलने पर।
(छ) कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: फसल तैयार होने पर फलियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा पौधा भी सूख जाता है। पौधों को हँसुए के द्वारा काट कर धूप में सूखा दें एवं दौनी कर दाना अलग कर लें। चना के दानों को धूप में अच्छी तरह सूखा कर ही भंडारण का काम करें।
उन्नत प्रभेद
उन्नत प्रभेद |
बुआई की दूरी |
तैयार होने का समय |
औसत उत्पादन (क्विं./हें.) |
विशेष गुण |
स्वर्ण रेखा |
25 x 15 सें.मी. |
90 दिन |
90 (हरी छिमी) |
जल्द तैयार होने वाली किस्म, रोग अवरोधी |
डी.डी.आर.-23 |
30 x 15 सें.मी. |
130 दिन |
20-22 (दाना) |
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कृषि कार्य
(क) जमीन की तैयारी: दो-तीन बार देशी हल से खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। मटर की खेती मध्यम जमीन में करें जहां पानी का जमाव नहीं हो।
(ख) बुआई का समय: बुआई के लिए उचित समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर है।
(ग) बीज दर: 75 किलो प्रति हेक्टेयर।
(घ) उर्वरक: 25:50:25 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर।
उर्वरक |
मात्रा |
जीवाणु खाद |
यूरिया |
12 कि./हें. |
बुआई से पहले बीज को जीवाणु खाद (राईजोबियम कल्चर) से उपचारित करना लाभदायक है। |
डी.ए.पी. |
112 कि./हें. |
|
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश |
40 कि./हें. |
(ङ) निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 25 दिनों बाद एवं दूसरी 40 दिनों बाद करना लाभप्रद है।
(च) सिंचाई: मटर की अच्छी उपज के लिए 2-3 हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है।
(छ) कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: हरी छिमी की तोड़ाई 60-65 दिनों में शुरू हो जाती है। बीज प्राप्त करने के लिए मटर के पौधों की कटाई उस समय करें जब फलियाँ एवं पौधे पूर्ण रूप से सूख जाएं। पौधों को धूप में अच्छी तरह सूखाकर दौनी करें। मटर के दानों को धूप में सुखाकर भंडारण करें।
उन्नत प्रभेद
उन्नत प्रभेद |
बुआई की दूरी |
तैयार होने का समय |
औसत उत्पादन (क्विं./हें.) |
स्वर्ण रेखा |
25 x 8 सें.मी. |
125 से 130 |
15 -20 क्विं. |
डी.डी.आर.-23 |
8 x 10 सें.मी. |
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कृषि कार्य
(क) जमीन की तैयारी: दो-तीन बार देशी हल से खेत की अच्छी तरह जुताई करके पाटा चला दें। अगात खरीफ की फसल एवं धान काटने के बाद मध्यम जमीन मसूर के लिए उपयुक्त है।
(ख) बुआई का समय: बुआई के लिए उचित समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर है।
(ग) बीज दर: 25-30 किलो प्रति हेक्टेयर।
(घ) उर्वरक: 25:50:25 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर।
उर्वरक |
मात्रा |
जीवाणु खाद |
यूरिया |
12 कि./हें. |
बुआई से पहले बीज को जीवाणु खाद (राईजोबियम कल्चर) से उपचारित करना लाभदायक है। |
डी.ए.पी. |
112 कि./हें. |
|
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश |
40 कि./हें. |
(ङ) निकाई-गुड़ाई: दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 20-25 दिनों बाद एवं दूसरी 40-45 दिनों बाद करना आवश्यक है।
(च) सिंचाई: दो हल्की सिंचाई करने से उपज में वृद्धि हो जाती है। पहली सिंचाई 25-30 दिनों बाद एवं दूसरी सिंचाई 40-45 दिनों बाद करना चाहिए।
(छ) कटनी, दौनी एवं बीज भंडारण: पौधे एवं फलियाँ जब पक कर पीली पड़ जाएँ तो हँसुए से कटाई करके फसल को धूप में सूखा कर दौनी करें एवं दाना अलग करके साफ़ कर लें। मसूर के दानों को धूप में सुखाकर भंडारण करें।
बुआई: अरहर-कतार से कतार की दूरी 75 सें.मी. तथा पौधा से पौधा की दूरी 30 सें.मी. । अरहर की दो पंक्तियों के बीच दो पंक्ति मूंगफली की लें (30 सें.मी. x 15 सें.मी.) ।
बीज दर: अरहर-20 कि./हें. तथा मूंगफली-75 किलो (छिला हुआ)/हें. ।
प्रभेद: अरहर (बी.आर.-65)
मूंगफली (ए.के. 12-24 तथा बिरसा मूंगफली-2)
उर्वरक: 15:30:15 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर (7 किलो यूरिया + 65 किलो डी.ए.पी. + 25 किलो म्युरियेट ऑफ़ पोटाश) प्रत्येक फसल में।
बुआई का समय: 15 जून से 30 जून तक।
खरपतवार नियंत्रण: बोने के एक माह के अंदर निकाई-गुड़ाई अवश्य करें, अन्यथा उपज में कमी आएगी।
जल प्रबंधन: खेत में पानी नहीं लगना चाहिए। पानी की निकासी जरूरी है। सूखा पड़ने पर सिंचाई करें।
पौधा संरक्षण: पौधा संरक्षण अनुच्छेद देखें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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