वन एवं वनोसाधन विशेषकर लघुवनोत्पाद, समूचे भारतवर्ष में जंगलों के आस-पास रहने वाली जनसंख्या के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संरचना की उत्तरजीविका को निर्धारित करती हैं, क्योंकि लघुवनोत्पादों से न सिर्फ इनकी घरेलू दैनिक आवश्यकताएँ जैसे खाना, चारा, रेशा, दवाओं की पूर्ति होती है, बल्कि इनको स्थानीय बाजार में बेचने से नकदी आमदनी भी प्राप्त होती है। समूचे भारतवर्ष में करीब 41 मिलियन जनजाति समुदाय के लोग, कुल निष्कर्षित वनोत्पादों के 60 प्रतिशत अपनी दैनिक आवश्यकताओं में उपयोग के बाद बचे हुए 40 प्रतिशत लघुवनोत्पादों को बेचकर नकदी आमदनी कमाते है। इस प्रकार हम देखते है कि आज के दौर में गैर इमारती वनोत्पाद नुकसानदेह जलवायु परिवर्तन को दूर करने एवं शताब्दी विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
इनके अनेक प्रकार होते है जो ग्रामीण जनसंख्या के लिए काफी उपयोगी है। इसका वर्गीकरण इस प्रकार है – भोज्य पदाप, भोज्य पशु, औषधीय पौधे, अभोज्य पादप उत्पाद तथा अभोज्य पशु उत्पाद। लघुवनोत्पाद का वितरण इसके घरेलू चारा, सजावटी, कुटीर उद्योग एवं औषधीय महत्व के आधार पर किया जाता है। पादप हरिता, जंगली भोज्य पदार्थ, औषधीय एवं पौष्टिक आहार, प्राकृतिक भूदृश्य, आरोग्य लाभ उत्पाद, वन आधारित उद्योग एवं कला, विविध उत्पाद (आवश्यक तैलीय बीज, धूमन लकड़ी) तथा वन आधारित सांस्कृतिक एवं पर्यावरण-पर्यटन, गैर इमारती वनोत्पाद के सामान्य वर्गीकरण है। गैर इमारती वनोत्पाद को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
झारखंड के मुख्य लघुवनोत्पाद जो घरेलू स्तर पर संग्रहित, निजी उपभोग एवं व्यापार में उपयोग किये जाते है, इस प्रकार है –
– इसके सफल व्यापार के लिए तीन मुख्य पूर्व शर्त होती है-
गैर इमारती वनोत्पाद आधारित कुटीर उद्योग की स्थान के लिए भी तीन आवश्यक शर्त होती है।
लघुवनोत्पाद के सकारात्मक गुणों को बढ़ाने में अनेक प्रकार की समस्याएँ हैं। घटते प्राकृतिक साधन, पर्यावरण संरक्षण की असहायक नीति, प्रमाणण मुद्दे एवं बाजार तक कमजोर पहुंच कुछ प्रमुख मुद्दे हैं।
ग्रामीण इलाकों से गरीबी दूर करने के सापेक्ष में लघुवनोत्पाद के विकास को तीव्र करने हेतु निम्नांकित कदम उठाने की जरूरत है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 1/9/2020
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