प्राप्त अनुभवों के आधार पर हमारे कृषि चक्रों के विभिन्न अवस्थाओं के लिए आने वाले सूखों की चेतावनी भरे संकेतों की पहचान की गई है। ये निम्नलिखित हैं:
खरीफ़ के लिए ( जून से अगस्त तक बुआई)
- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून आने में विलंब
- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून के क्रियाकलापों में लंबी "अंतराल"
- जुलाई माह के दौरान कम वर्षा
- चारा के मूल्य में वृद्धि
- जलाशय स्तर में बढ़ने की प्रवृत्ति खत्म होना
- ग्रामीण पीने के पानी की आपूर्ति के स्रोतों का सूखना
- "सामान्य वर्षों" के संगत आंकड़ों की तुलना में सप्ताह दर सप्ताह की जाने वाली बुआई की प्रगति में कमी की प्रवृत्ति
रबी के लिए ( नवंबर से जनवरी तक बुआई)
- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून (30 सितंबर) के लिए समाप्त आँकड़ों में कमी,
- "सामान्य वर्षों" के आँकड़ों की तुलना में जमीन के अंदर के पानी के स्तर में गंभीर कमी,
- "सामान्य वर्षों" के संगत आँकड़ों की तुलना में जलागार के स्तर में कमी- दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून के बाद ठीक से नहीं भरा होने के लक्षण,
- चिह्नित मिट्टी की नमी के तनाव का लक्षण,
- चारा के मूल्य में वृद्धि,
- टैंकरों की मदद से पानी के फैलाव में वृद्धि,
- (तमिलनाडु और पांडिचेरी के लिए महत्वपूर्ण अवधि उत्तर पूर्वी मॉनसून - अक्टूबर से दिसंबर होती है)
अन्य मौसम
गुजरात, मध्य प्रदेश, मराठवाड़ा और उत्तरी आंतरिक कर्नाटक क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण अवधि मार्च/अप्रैल होती है जिस समय पानी संबंधी सूखा के कारण कई क्षेत्रों में पीने का पानी गंभीर रुप से कम हो जाता है।
कुछ विशेष राज्यों और खास फसलों के लिए वर्षा की कुछ खास अवधि होती है जिस समय वर्षा का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है। जैसे बागानी फसलों के लिए केरल में फरवरी में वर्षा होना।
स्त्रोत
अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020
© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.