पश्चिमी राजस्थान के मरू इलाके में चारा उत्पादन का विशेष महत्व है। इसका कारण यह है कि यह इलाका कृषि से ज्यादा पशुपालन पर निर्भर है। पश्चिमी राजस्थान में मुख्यतया बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर जिले पशुपालन व उसकी चारा व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन जिलों में वर्ष कम होती है और उसकी अनिश्चितता भी रहती है। इस क्षेत्र में प्राय: सूखा देखने को मिलता है। अत: वर्षा जल का संरक्षण और सिंचाई के अन्य स्रोतों से चारा उत्पादन महत्व है। इसी कारण इस इलाके में चारागाह से आय अर्जन संभव है।
मरू क्षेत्र में चारागाह विकास के लिए तीन बहुवर्षीय घासें उपयुक्त हैं, ये हैं : सेवण, धामन और मोडा धामन। सेवण घास बिकानेर और जैसलमेर जिलों हेतु उपयुक्त है। धामन घास व मोडा धामन सभी जगह उगाई जा सकती हैं, लेकिन इनकी पानी की आवश्यकता सेवण घास से अधिक होती है।
चारागाह स्थापित करने के लिए इनके बीज या पौधे का जड़ सहित कुछ हिस्सा काम में लिया जा सकता है। वर्षा ऋतु प्रारंभ होते ही चारागाह विकास करने वाली जमीन को जुताई करके तैयार कर लेते हैं। बीज की मात्रा सेवण घास के लिए 6 किग्रा./ हे. व धामन व मोडा धामन के लिए 5 किग्रा./हे. रखी जाती है। पंक्ति की दूरी सेवण घास में 75 सें. मी. व अन्य दो घासों में 50 सें. मी. रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 50 सें. मी. रखी जाती है। यदि इन घासों की जड़ सहित तने के हिस्से द्वारा चारागाह विकसित किया जाता है तो भी उपरोक्त पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी रखी जाती है। बीज द्वारा बुआई करने में बीज को एक दिन पहले पानी में भिगो देते हैं और दुसरे दिन भिगोये हुए बीजों को गीली रेत, गोबर व चिकनी मिट्टी में मिलाकर गोलियां बना अलीली जाती हैं। प्रत्येक गोली में 2 – 3 बीज रहने चाहिए। गीली रेट, गोबर व चिकनी मिट्टी के बराबर मात्रा लेते हैं। इन गलियों को सूखा लेते हैं। इन गोलियों को सूखा लेते हैं। बुआई के लिए पंक्तियों में हल चलाकर इन गोलियों को रख देते हैं और ऊपर थोड़ी मिट्टी डाल देते हैं।
बीज की गहराई जमीन में एक सें. मी. से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। रखी हुई गोलियों में बीजों को जमीन में नमी मिलने से उनका अंकुरण हो जाता है। जड़ वाले पौधे के हिस्से लगाने के लिए जड़ की लंबाई 5 -7 सें. मी. कम से कम होनी चाहिए। तने का हिस्सा करीब 20 सें. मी. होना चाहिए। अच्छा चारागाह विकसित करने के लिए जमीन में शुरूआत में 40 किग्रा. नाइट्रोजन व 20 किग्रा. फॉस्फोरस प्रति हे. की दर से देनी चाहिए। खरपतवार समय – समय पर निकलते रहना चाहिए। ये तीनों घास इस प्रकार की हैं कि वर्ष में वर्षा ऋतु के बाद भी इनकी और कटाई ली जा सकती है। एक से अधिक कटाई एक वर्ष में तभी संभव होती है, जब वर्षा होती है या किसान अपने संसाधनों से इनमें सिंचाई करते हैं। वर्षा के साथ लगातार सिंचाई देकर सेवण घास से एक वर्ष में 3 – 4 कटाई व धामन व मोडा धामन घास से 5 – 7 कटाईयां ली जा सकती हैं। प्रत्येक कटाई से 150 – 200 क्विंटल/हे. व मोडा धामन घास से लगभग 100 – 150 क्विंटल/हे. के चारे की पैदावार मिलती है। मोडा धामन घास भेड़ – बकरियों के लिए उपयुक्त है।
एक बार लगाये गये चारागाह से कई वर्षों तक अच्छा चारा प्राप्त होता रहता है। लगभग चार – वर्षों बाढ़ धामन व मोडा धामन घास के चारागाह से कम पैदावार मिलने लगे तो चारागाह में खाली स्थानों पर दुबारा बीज डालें। दलहनी पौधे चारागाह की मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाते हैं। दलहनी चारे चारे के लिए क्लीटोरिया टर्नेशिया पौधों को लगाया जा सकता है।
लेखन: के. एल. शर्मा, इ. के. इन्दोरिया, के. सम्मी रेड्डी और मुन्ना लाल
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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