पूर्वी घाट क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है और 176 लाख हेक्टेयर कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्र बारह (12) के अंतर्गत आता है। यह लगभग 21.3 लाख आबादी को भोजन मुहैया कराता है। मध्य पूर्वी घाट नम क्षेत्र उप-नम निचले इलाके से संबंधित है, जहां औसतन 1200-1600 मि.मी. वर्षा होती है और तापमान 5-28° सेल्सियस औसत रहता है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से लाल लेटराइट मिट्टी से आच्छादित है, जिसकी भूमि जोत मुख्य रूप से छोटी और सीमांत है। यह तीन अलग-अलग प्रकार के परिदृश्य में फैली है: खड़ी ढलान भूमि, मध्यम भूमि और पानीयुक्त झोला भूमि। ऊपरी जमीन का काफी हिस्सा प्रभावी कृषि उत्पादन प्रणाली के लिए क्षमता के बावजूद खाली पड़ा है।
मध्य पूर्वी घाट क्षेत्र में आदिवासी समुदाय पारंपरिक कृषि फसलों की खेती में लगे हैं, जो पारंपरिक उत्पादकता के साथ-साथ खेती की आय में भी कमी का कारण है। फसलविविधीकरण की कमी और वर्तमान जलवायु परिवर्तन आदिवासी किसानों को फसल की विफलता के लिए अधिक संवेदनशील बनाता है। पूर्वी घाट क्षेत्र का ढलान झूम (शिफ्टिंग) खेती के लिए लगातार इस्तेमाल किया जाता है। शिफ्टिंग खेती के पहले वर्ष के दौरान 84-170 टन/हेक्टेयर मृदा का क्षरण होता है। इसलिए यह परंपरा हानिकारक है। इस क्षेत्र में असुरक्षित ढलान क्षेत्र, उच्च तीव्रता के वर्षा जल बहाव और मृदा हानि की प्रक्रिया में तेजी आई है। इसने फसल उत्पादकता और कुल फार्म आय को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
राष्ट्रीय औसत की तुलना में इस क्षेत्र में औसत अपवाह और मृदा का नुकसान ज्यादा है। इन सभी कारकों ने आदिवासी किसानों को पर्याप्त बारिश और अनुकूल जलवायु के बावजूद कम कृषि उत्पादकता दी है। कृषक समाज को निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति में धकेल दिया है। हालांकि पर्याप्त बारिश और अनुकूल जलवायु उच्च कृषि क्रियाओं के लिए प्राप्त हुई, लेकिन किसान इसके उचित लाभ से वंचित हैं।
फसल कृषि वानिकी प्रणाली (एएफएस) का संबंध उस पुरानी पद्धति से है, जिसमें वृक्षों और फसलों को जानवरों के साथ या जानवरों के बिना संयोजन के साथ बेहतर आय के लिए खेती की जाती है। यह मूल रूप से एक मिश्रित फसल प्रणाली है। इसका अर्थ है कृषि फसलों और वृक्ष प्रजातियों का सह-अस्तित्व जिससे प्राकृतिक संसाधनों काप्रबंधन तथा सामाजिक-आर्थिक लाभ दोनों को अर्जित कर मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और वायुमंडलीय कार्बन को कम करना भी शामिल हैं।
मध्य पूर्वी घाट क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय जलवायु होती है और यहां पौधों की वृद्धि के लिए अच्छी पर्यावरण स्थिति प्रदान करने के लिए नियमित मानसून वर्षा होती है। इससे कृषि फसलों के साथ वृक्षों की खेती व्यावसायिक बारहमासी पेड़ के साथ उपयुक्त कृषि वानिकी प्रणाली को अपनाना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। पूर्वी घाट क्षेत्र में कृषि वानिकी तंत्र के विस्तार का प्राथमिक उद्देश्य समय-समय पर सुरक्षित आर्थिक प्रतिफल के साथ तत्काल भोजन की आवश्यकता को पूरा करता है। पहले से ही कुछ प्रगतिशील किसान इस क्षेत्र में विविध कृषि वानिकी प्रणाली का अभ्यास कर रहे हैं। इनमें से कछ प्रमुख कृषि वानिकी प्रणालियों का ब्यौरा प्रस्तुत है:
आम, भारत में एक महत्वपूर्ण व्यावसायिकफल की फसल है। यह दुनिया के आम उत्पादक देशों में पहले स्थान पर है। मध्य पूर्वी घाटों के क्षेत्र में आम के पेड़ अच्छी तरह से फलित होते हैं और अच्छी बढ़वार लेते हैं। आमतौर पर आम के पेड़ को पूर्ण लंबाई प्राप्त करने के लिए 8-10 साल का समय लगता है। किसान इस अवधि का उपयोग कृषि फसलों की खेती के लिए कर सकते हैं। आम की बढ़वार के बाद कृषि फसलों को उगाना लाभकारी नहीं होता है। इसलिए किसान घर की खपत और खरपतवारके नियंत्रण के लिए चारे और कम अवधि की कृषि फसलों का उत्पादन करते हैं। यह प्रणाली अत्यधिक लाभप्रद प्रणालियों और सभी प्रकार के भूमिधारकों द्वारा अपनाने योग्य है। पूर्वी घाटों के ऊबड़खाबड़ इलाकों की झूम खेती भूमि के सुधार के लिए भी इसकी सिफारिश की गई है।
कृषि आय में वृद्धि करने के लिए सफेदा (नीलगिरी) वृक्षारोपण मॉडल को पूर्वी घाटों के क्षेत्र में संतुलित किया गया है। ईंधन इस मॉडल में, नीलगिरी क्लोन की दो युग्म पंक्तियों को 6/8 मीटर चौडाई पर लगाया जाता है। दो युगल सफेदा की पंक्तियों के बीच कृषि पद्धति के साथ कृषि फसलों की खेती की जाती है। नीलगिरी की पंक्तियों के बीच की व्यापक रिक्तियां कृषि फसल उत्पादन के लिए पर्याप्त रोशनी आने देती हैं। नीलगिरी संकर क्लोन की ऊर्ध्वाधर और एकल तना वृद्धि सूर्य के प्रकाश में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करती है। यह कृषि फसलों की सामान्य वृद्धि और विकास में मदद करता है और कृषि फसलों को सामान्य पैदावार ओर ले जाती है। यह प्रणाली वार्षिक मिट्टी का आवर्त, गिरते पत्ते और छाल के मिश्रण में मदद करती है, जो अंततः सड़ने में और मिट्टी में जैविक पोषक तत्व को मिलाती है। इस प्रणाली में अलसी, रागी, सुआं, अदरक, मिर्च और मक्का जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं। कृषि उत्पादन के अलावा, चार साल के चक्र में नीलगिरी की लकड़ी की बिक्री भी ग्रामीण किसानों के लिए अच्छी आय प्रदान करती है। साथ ही नीलगिरी के पेड़ों की नई शाखाएं ग्रामीण आबादी के लिए ईंधन की लकड़ी प्रदान करती है। यह कृषि वानिकी मॉडल एकल फसल की तुलना में आय में वृद्धि करता है।
होम गार्डन उष्णकटिबंधीय देशों के नम और नम उप आर्द्र क्षेत्रों के सबसे महत्वपूर्ण मॉडल है, जो बहुआयामी जटिल उद्यान है। इसमें विभिन्न फसलों/संयोजनों के विभिन्न प्रकार के पौधे, लकड़ी, फल और मसाले के पेड़ वार्षिक बारहमासी फल और सब्जी की फसलें इत्यादि शामिल हैं। होम गार्डन की अन्य महत्वपूर्ण विशेषताओं में इसका घरों के आसपास होना, परिवार की गतिविधियों के साथ जुड़े रहना और परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए फसल और पशुधन प्रजातियों की एक विस्तृत विविधता का समाहित होना शामिल है। ये भोजन, लकड़ी, ईंधन और फाइबर के लिए घरेलू सुरक्षा में एक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। पूर्वी घाट क्षेत्र में कई प्रगतिशील किसानों द्वारा होम गार्डन को अपनाया जाता है, जिससे उनकी आमदनी बनी रहती है।
आवश्यकता और भूमि के आधार पर, अन्य कृषि वानिकी तंत्र का भी अभ्यास किया जा सकता है, जैसे—बांधों पर पेड़, खेत की सीमा पर वृक्ष और ब्लॉक वृक्षारोपण भी सूक्ष्म जलवायु बनाए रखने में मदद करते हैं। इस क्षेत्र में कृषि समुदाय के सुधार केलिए इस प्रकार के एएफएसएस को सुधारने और प्रोत्साहित करने और पारिस्थितिक स्थितियों में सुधार लाने का बहुत बड़ा अवसर है।
संतुलित वृक्षों और फसल संयोजनों के साथ कृषि वानिकी को अपनाने से वर्षभर आय प्रपट की जा सकती है। पेड़ के समुचित प्रबंधन और चयन के माध्यम से पर्यावरण में सुधार के दौरान किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। एकल फसलके मुक़ाबले एएफएसएस सकल आय को बढ़ाती है। पूर्वी घाटों में उपलब्ध प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के साथ कृषि वानिकी के व्यापक अनुकूलन से पर्यावरण स्वच्छता और परिवार के स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
गली फसल मॉडल में पौधों के पेड़ या झड़ियों पंक्तियों में मैदानी फसलों के साथ कृषि योग्य भूमि में समौछ रेखा के साथ लगाई जाती है। इस प्रणाली की विशेषता यह है की गलियों के जैविक उत्पादन (पत्ते और डालियों) को काटा जाता है। मरौदा की उर्वरता बढ़ाने के लिए रोपण से पहले मृदा में हरी खादके रूप में शामिल किया जाता है। इसका उद्देशय छायांकन को रोक्न और कृषि योग्य फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा को कम करना है। गली फसल उच्च फसल उत्पादन को सुनिश्चित करती है। जैसे वर्षा जल बहाव और मृदा के कटाव में कमी, मृदा की उर्वरता में सुधार, ईंधन की लकड़ी और चारा आपूर्ति में वृद्धि। यह मृदा, जैविक कार्बन भंडारण को ज़मीन के ऊपर और नीचे जैविक उत्पादन के माध्यम से बढ़ावा देती है और मिट्टी के कटाव और स्थानातरण में कमी करती है। बिना गली प्रणाली उत्पन्न हुई फसल की तुलना में लघु खाई के साथ ग्लाइरेसेडिया गली में 16.9-2.17 प्रतिशत अधिक फसल (रागी) उपज देती है, जबकि, लघु खाई के साथ ल्यूकेना गली 1.6-7.6 प्रतिशत तक रागी के बराबर उपज बढ़ाने में उपयुक्त है। गली फसल में बिना मैदान के मुक़ाबले 5-10 प्रतिशत ढलान पर रागी और धान की खेती,10 मीटर अंतराल पर ग्लाइरेसेडिया गली और लघु खाई के साथ 27.9-28.2 प्रतिशत की जल बहाव में कमी तथा 49.3-51.1 प्रतिशत की मिट्टी के कटाव में कमी पायी जाती है। उसी प्रकार, लघु खाई के साथ ल्यूकेना गली 18.3-18.7 प्रतिशत और मिट्टी के कटाव में कमी 37.2-43.0 प्रतिशत द्वारा अफवाह को कम कर सकते है।
इस क्षेत्र में कॉफी आधारित कृषि वानिकी एक महत्वपूर्ण व उपयुक्त कृषि प्रणाली है। आदर्श रूप से कॉफी फसल 500 मीटर (समुद्र तल से ऊपर) नाम और उप नम क्षेत्र की ऊंचाई पर होती है, जो कि औसत तापमान सीमा 23-28° सेल्सियस के साथ होती है। बहुस्तरीय कॉफी वानिकी (एग्रोफोरस्ट्री) प्रणाली में कई अन्य उत्पाद उपलब्ध हैं, जैसे कि काली मिर्च, दालचीनी इत्यादि जो कि किसानों को वर्ष भर आय देते हैं। प्राकृतिक छाया पेड़ों की अनुपस्थिति में, नए कॉफी पौधे सिल्वर ओक की छाया के नीचे उगाए जा सकते हैं। ये छाया वृक्ष एक साथ कॉफी पौधों के साथ बढ़ सकते हैं। सिल्वर ओक के पेड़ों की तेजी से वृद्धि के कारण, कॉफी आधारित कृषि वानिकी प्रणाली को 5-6 साल की छोटी अवधि के भीतर विकसित किया जा सकता है। मृदा और जल संरक्षण उपायों को अपनाकर कॉफी कृषि वानिकी प्रणाली में वृद्धि और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। इस प्रणाली का एक मात्र दोष है कि इसकी तैयारी अवधि 6 वर्ष की है, जिसमें 3 वर्ष तक कॉफी उत्पादन शुरू नहीं होता है। शुरूआती 6 वर्षों के दौरान किसानों को दूसरी आय उत्पादन गतिविधियों की तलाश करनी पड़ती है। वर्तमान में मध्यपूर्वी घाट में 1,50,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कॉफी उगाई जा रही है। इस प्रणाली से इस क्षेत्र में विस्तार करने की संभावनाएं 10 स्वच्छता लाख हेक्टेयर तक हैं।
कृषि वानिकी प्रणाली पेड़ों के घने ऊर्ध्वाधर खड़े तनों, हवा के तापमान, विकिरण प्रवाह, मृदा की नमी, मृदा उर्वराशक्ति, हवा की गति और परिवेश के तापमान को बनाए रखने से लिए सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों का निर्माण और नियंत्रण करती है। संशोधित जलवायु से फसल का प्रदर्शन बेहतर हो जाता है, अंतत: उपज और किसान की आय में सुधार होता है। कृषि वानिकी प्रणाली का उद्देश्य फल, सब्जियां, अनाज, दालों, औषधीय पौधों आदि के साथ-साथ घरेलू पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराना भी है। इन खाद्य पदार्थों के द्वारा ग्रामीण परिवारों के लिए पोषण सुरक्षा और अतिरिक्त आय का स्रोत भी मिलता है। फसलों के सहयोग और पेड़ों की बढ़वार से मृदा की गुणवत्ता में सुधार होता है व मृदा के क्षरण के जोखिम को भी कम किया जा है। कृषि वानिकी प्रणाली मृदा के स्वास्थ्य की स्थिति में भी सुधार करती है। इस तरह के सुधार दीर्घकालिक उत्पादकता और ऊष्ण कटिबंधों में मृदा की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
लेखन: होम्बे गौडा, प्रवीण जाखड़, कर्म बीर और एम. मधु
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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