पहचान: मादा मक्खी आकार में 2 मिमी लम्बी होती है। मक्खी का रंग पहले भूरा तथा बाद में चमकदार काला हो जाता है। मादा मक्खी अंडे पत्ती की निचली सतह पर देती है जो कि हल्के पीले सफेद रंग के होते है। इल्ली हमेशा तने के अंदर रहती है तथा बिना पैरों वाली एवं हल्के पीले सफेद रंग की होती है। शंखी भूरे रंग की एवं तने के अंदर ही पाई जाती है।
प्रकोप: प्रारंभिक अवस्था में प्रकोपित पौधे मर जातें है। बीज पत्रों में प्रकोप के कारण टेड़ी-मेढ़ी लकीरे बनती है। इल्ली पत्ती के शिरे में डंठल को अंदर से खातें हुए तने में प्रवेश करती है। कीट प्रकोप से प्रारंभिक वृद्धि अवस्था (दो से तीन पत्ती) में 20 -30 प्रतिशत पौधे प्रकोपित होते है। इल्ली का प्रकोप फसल कटाई तक होता है। फसल में कीट प्रकोप से 25-30 प्रतिशत उपज की हानि होती है।
जीवन चक्र: मादा मक्खी शंखी से निकलने के पश्चात पत्ती या बीज पत्रों के बीच 14 से 64 अंडे देती है। अंडकाल 2-3 दिनों का होता है। इल्ली काल 7-12 दिनों का होता है। इल्ली अपना इल्लीकाल पूर्ण करने के पूर्व तने में एक निकासी छिद्र बनाकर शंखी में बदलती है। शंखी 5-9 दिनों में वयस्क कीट में बदलती है। कीट की साल भर में 8-9 पीढियां होती है।
पोषक पौधे: रबी मौसम में मटर, सेम और गर्मियों में उड़द, मूंग आदि।
नियंत्रण
कृषिगत नियंत्रण: समय पर बुवाई करें। देर से बुवाई करने से पौधों में कीट प्रकोप बढ़ जाता है। बुआई हेतु अनुशंसित बीज दर का उपयोग करें। प्रकोपित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें।
रसायनिक नियंत्रण: थायोमेथाक्सम 70 डब्ल्यू.एस. 3 ग्राम/किलो ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. (5 मि.ली./किलो ग्राम) से बीजोपचार करें। भूमि उपचार फोरेट 10 जी. 10 कि.ग्रा./हे. अथवा कार्बोफ्यूरान 3 जी का 30 किलोग्राम/हे. की दर से बोआई के समय करें। एक या दो छिड़काव डायमिथोएट 30. ई.सी. 700 मि.ली. या एमिडाक्लोप्रिड 200 मि.ली. अथवा थायोमेथाक्सम 25 डब्लू.जी. का 100 ग्राम प्रीत हेक्टर की दर से छिड़काव करें। हमेशा होलोकोन नोजल का उपयोग छिड़काव हेतु करें।
चक्र भृंग (ओबेरिया ब्रेविस)
पहचान: वयस्क भृंग 7-10 मि.मी. लम्बा, 2 से 4 मि.मी. चौड़ा तथा मादा नर की अपेक्षा बड़ी होती है। भृंग का सिर एवं वक्ष नारंगी रंग का होता है। पंख वक्ष से जुड़ा होता है। पंख का रंग गहरा भूरा-काला, श्रृंगिकाएं काली तथा शरीर से बड़ी होती है। अंडे पीले रंग के लम्बे गोलाकार होते है, पूर्ण विकसित इल्ली पीले रंग की 19-22 मि.मी. लम्बी तथा शरीर खण्डों में विभाजित व सिर भूरा रंग का होता है।
प्रकोप: पौधे में जहाँ पर्णवृन्त, टहनी या तने पर चक्र बनाये जाते हैं, उसके ऊपर का भाग कुम्ल्हा कर सूख जाता है। मुख्य रूप से ग्रब(इल्ली) द्वारा नुकसान होता है। इल्ली पौधे के तने को अंदर से खाकर काटकर नीचे गिरा देती है जिससे अपरिपक्व फल्लियाँ उपयोग लायक नहीं होती है। प्रकोपित फसल में अधिक नुकसान होने पर करीब 50 प्रतिशत तक हानि होती है।
जीवन चक्र: चक्र भृंग कीट का सक्रीय समय जुलाई से अक्टूबर माह तथा अगस्त से सितंबर माह में अधिक नुकसान होता है। मादा कीट अंडे देने के लिये पौधे के पत्ती, टहनी या तने के डंठल पर मुखांगो द्वारा दो से 8 दिनों में इल्लियाँ निकलती है। जुलाई माह में दिये अण्डों से निकली इल्ली का इल्ली-काल 32 से 65 दिनों का होता है। तद्पश्चात इल्ली शंखी में परिवर्तित हो जाती है।
फसल कटने से पहले इल्लियाँ पौधों को भूमि के ऊपर से काट देती है तथा स्वयं ऊपरी कटे हुए पौधे के अंदर रह जाती है। कुछ दिनों पश्चात इल्लियाँ पुन: ऊपरी कटे हुए पौधों में से एक टुकड़ा 18 से 25 मि.मी. लम्बा काटती है। फिर ये इल्लियाँ इस टुकड़े में आ जाती है तथा भूमि दरारों में विशेषकर मेंड़ों के पास जमीन के अंदर टुकड़े का दूसरा छोर भी कुतरने से बंद कर सुसुप्तावस्था (248-308 दिनों हेतु) में इल्ली रूप में चली जाती है। जो कि पानी गिरने के पश्चात अगले साल इसमें से जून से जुलाई में पुन: निकलकर जीवन चक्र शुरू करती है। शंखी से वयस्क कीट 8-11 दिनों में निकलते है।
पोषक पौधे: मूंग, उड़द एवं खरपतवार, जंगली जूट, बुरवडा आदि।
नियंत्रण
कृषिगत नियंत्रण: जिन क्षेत्रों में कीट प्रकोप प्रतिवर्ष होता है वहाँ पर ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करें। मेढ़ों की सफाई करें तथा समय से खरपतवार नियंत्रण करें। फसल की बुआई समय से (जुलाई) करें। समय से पूर्व बुआई करने से कीट प्रकोप ज्यादा होता है। बुआई हेतु 70-80 कि.ग्रा./हे. बीज दर का उपयोग करें। फसल में उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा समय से डालें विशेषकर पोटाश की मात्रा जरुर डालें। अंतरवर्तीय फसल ज्वार या मक्का के साथ बुआई न करें।
यांत्रिक नियंत्रण: प्रभावित पौधे के भाग को चक्र के नीचे से तोड़ कर नष्ट कर दें।
रसायनिक नियंत्रण: फसल पर कीट के अंडे देने की शुरुआत पर निम्न में से किसी एक कीटनाशक का छिड़काव कीट नियंत्रण हेतु करें। ट्रायजोफ़ॉस 40 ई. सी. 800 मी.ली. अथवा इथोफेनप्रोक्स 10 ई.सी. 1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर।
पहचान: शलभ के अग्र पंखों पर दो छोटे चमकीले सफेद रंग के धब्बे होते है। जो कि अत्यंत पास होने के कारण अंग्रेजी के अंक आठ (8) के आकार के दिखते हैं। अंडे हल्के पीले रंग के एवं गोल होते है जो कि इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़ जाते है। इल्लियाँ दिन में समान्यत: पत्तियों के नीचे बैठी रहती हैं। पूर्ण विकसित इल्ली 37 से 40 मि.मी. लम्बी होती है एवं पश्च भाग मोटा होता है। इल्लियों के पृष्ठ भाग पर एक लम्बवत पीली तथा शरीर के दोनों ओर एक-एक सफेद धारी होती है। शंखी प्रारंभ में हल्के पीले रंग की तथा कालान्तर में भूरे रंग की होते है। शंखी 19 मि.मी. लम्बी तथा 7 मि.मी. चौड़ी होती है।
प्रकोप: इल्लियाँ पत्तियों, फूलों एवं फल्लियों को खा कर क्षति पहुंचाती है। बड़ी इल्लियाँ छोटी विकसित होती हुई फल्लियों को कुतर-कुतर कर खाती है तथा बड़ी फल्लियों में छेद कर बढ़ते हुए दानों को खाती है। अधिक प्रकोप होने पर करीब 30 प्रतिशत फल्लियाँ अविकसित रह जाती है तथा उनमें दाने नहीं भरते।
जीवन चक्र: मादा शलम अपने जीवन काल में 40 से 200 अंडे देती है, अत्याधिक ज्यादा प्रकोप होने पर पत्ती डंठल या तनों पर भी अंडे देती है। अंडे हल्के पीले रंग के एवं गोल होते है जो किइल्लियों के निकलने के पहले काले पद जाते है। अंडाकाल 3 से 5 दिनों का होता है।
पोषक पौधे: मटर, मूली, सरसों, मूंगफली, फूलगोभी, पत्तागोभी, आलू, कद्दूवर्गीय पौधे, करडी, बरसीम आदि।
नियंत्रण: पृष्ठ क्रमांक 16 अनुसार।
पहचान: वयस्क शलभ मध्यम आकार एवं सुनहरा पीले रंग की होती है। अग्र पंखों का रंग भूरा जिस पर बड़ा सुनहरा तिकोन धब्बा होता है। अंडे पीले रंग के एवं गोल होते है नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है। पूर्ण विकसित इल्ली 4 मि.मी. लम्बी होती है। शंखी का रंग भूरा होता है।
प्रकोप: अण्डों से निकलकर छोटी-छोटी इल्लियाँ सोयाबीन के कोमल पत्तियाँ को खुरच कर खाती है तथा ज्यादा होने की दशा में पत्तियों के डंठल, शाखा एवं तने पर भी अंडे देती है। अंडकाल 3-4 दिनों का होता है। इल्ली 12-15 दिनों में 4-5 बार त्वचा निर्मोचन करती हैं। शंखी काल 5-9 दिनों का होता है। वयस्क शलभ 2-7 दिनों तक जीवित रहती है। जीवन चक्र 27-30 दिनों में पूर्ण होता है।
पोषक पौधे: मटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, मूली, आलू, अलसी आदि।
नियंत्रण: पृष्ठ क्रमांक 15 अनुसार।
पहचान: शलभ की लम्बाई 7.3 मि.मी. तथा पंखा फैलाव पर 19.4 मि.मी. होती है। शलभ पीली भूरी रंग की, जिसके अगले पंख पर तीन लहरदार गहरे भूरी पट्टियाँ एवं पिछले पंख झिल्लीनुमा गहरे भूरे रंग के होते है। अंडे दूधिया सफेद, गोलाकार पर ऊपरी छोर पर कुछ अंदर दबा हुआ तथा ऊपर से नीचे धारियों तथा आकार में 0.32 मि.मी. के होते हैं। नवजात इल्ली अर्धपारदर्शी, दुधियाँ सफेद तथा 0.17 मि.मी. आकार में होती है। पूर्ण विकसित इल्ली 19 मि.मी. लम्बी तथा 2 मि.मी. चौड़ाई की होती है तथा पृष्ठ भाग पर लम्बवत शरीर के दोनों ओर एक-एक सफेद धारी होती है। शंखी 7 मि.मी. लम्बी तथा 2.5 मि.मी. चौड़ाई होती है।
जीवन चक्र: मादा शलभ एक-एक करके अंडे पत्ती की ऊपरी सतह पर देती है। मादा शलभ अपने जीवन काल में 160 अंडे देती है। सम्पूर्ण इल्ली अवस्था 11 दिनों की तथा शंखी अवस्था 5-9 दिनों की होती है। इल्लीकाल पूर्ण का सफेद रेशों एवं पत्ती से मिश्रित बने कोये में शंखी में परिवर्तित हो जाती है। पूर्ण जीवन चक्र 26-27 दिनों का होता है।
पोषक पौधे: मूंग एवं उड़द आदि।
प्रकोप: यह कीट सोयाबीन पर अगस्त के प्रथम सप्ताह से सितंबर के तृतीय सप्ताह तक सक्रिय रहता है। इल्ली अवस्था फसल की पत्तियाँ खाकर नुकसान पहुंचाती है। जिससे पत्तियों पर छोटे-छोटे छिद्र बनते है। तृतीय अवस्था की इल्ली के खाने से बड़े छिद्र बनते है। इल्लियाँ मोटी शिराये छोड़कर पूर्ण पत्तियाँ खाती हैं। छोटी इल्ली द्वारा पत्तियों में छोटे-छोटे छेद बनाकर खाती है जबकि बड़ी इल्लियों पत्तियों पर बड़े एवं अनियमित छेद करती है। अधिक प्रकोप अवस्था में फसल की पत्तियों के केवल शिराएं बची रह जाती है।
साधारणत: कीट इल्लियों द्वारा फूल एवं फल्लियाँ खाकर नष्ट करती है।
नियंत्रण: निरंतर फसल की निगरानी करते रहें। जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (तीन इल्ली/मी. कतार फूल अवस्था) से ऊपर होने पर सिफारिस अनुसार ही कीटनाशक का छिड़काव करें।
पहचान: वयस्क शलभ काले भूरे रंग के एवं आकार में अन्य अर्धकुण्डलक शलभ से बड़ी होती है। जिसका पंख फैलाव 35-45 मि.मी. होता है। अग्र पंखों पर तीन धुएँ के रंग की पत्तियाँ पाई जाती है। अंडे हल्के हरे रंग के गोल होते है। नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है। जिनके शरीर पर छोटे-छोटे रोयें पाये जाते हैं तथा सिर भूरे रंग का होता है। पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40-50 मि. मी. लम्बी, भूरे-काले रंग की तथा शरीर पर भूरी पीली या नारंगी लम्बवत धारियां होती है। शंखी भूरे रंग की एवं सफेद धागों तथा पत्तियों के मिश्रण से बने कोये में पाई जाती है।
जीवन चक्र: मादा अपने जीवन काल में 50-200 अंडे देती है। जिसमें से 3-5 दिनों में नवजात इल्लियाँ निकलती है। इल्लियाँ 6-7 बार त्वचा निर्मोचन कर 17-22 दिनों में अपना इल्लीकाल पूर्ण कर सफेद रेशों एवं पत्ती से मिश्रित बने कोये में शंखी में परिवर्तित हो जाती है। शंखी काल 8-17 दिनों का होता है। वयस्क कीट 7-20 दिनों तक जीवित रहते है। कीट का जीवन चक्र सितंबर में 31-35 दिनों का जबकि अक्टूबर से दिसम्बर में 38-43 दिनों का होता है।
पोषक पौधे: मूंग एवं सेम आदि।
प्रकोप: इसका कीट प्रकोप कम वर्षा या सूखे की दशा में ज्यादा होता है। यह कीट इल्ली अवस्था में अगस्त से अक्टूबर माह में सोयाबीन में नुकसान पहुंचाती है। प्रकोप ज्यादा होने की दशा में यह कीट पौधों को पत्ती विहीन कर देता है जिससे फल्लियाँ कम बनती है।
नियंत्रण हेतु: निरंतर फसल की निगरानी करते रहें। यदि कीट की संख्या कम होने पर कीटनाशक का छिड़काव न करें। कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर सिफारिस अनुसार कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें।
पहचान: वयस्क शलभ जिसका रंग मटमैला भूरा होता है। अग्र पंख सुनहरे-भूरे रंग के सिरों पर टेढ़ी-मेढ़ी धारियां तथा धब्बे होते है। पश्च-पंख सफेद तथा भूरे किनारों वाले होते है। नवजात इल्लियाँ मटमैले-हरे रंग की होती है पूर्ण विकसित इल्लियाँ हरे, भूरे या कत्थाई रंग होती है शरीर के प्रत्येक खण्ड के दोनों तरफ काले तिकोन धब्बे इसकी विशेष पहचान है। इसके उदर के प्रथम एवं अंतिम खण्डों पर काले धब्बे एवं शरीर पर हरी-पीली गहरी नारंगी धारियां होती है। पूर्ण विकसित इल्लियाँ 35-40 मि.मी. लम्बी होती है।
प्रकोप: यह कीट सामान्यत: अगस्त से सितंबर तक नुकसान करती है। नवजात इल्लियाँ समूह में रहकर पत्तियों का पर्ण हरित खुरचकर खाती है, जिससे ग्रसित पत्तियाँ जालीदार हो जाती है जो कि दूर से ही देख कर पहचानी जा सकती है। पूर्ण विकसित इल्ली पत्ती, कली एवं फली तक को नुकसान करती है।
जीवन चक्र: मादा शलभ द्वारा 1000-2000 तक अंडे अपने जीवन काल में देती है तथा 50-300 अंडे प्रति अंड-गुच्छ में पत्तियों की निचली सतह पर दिये जाते है। अंड-गुच्छों को मादा अपने शरीर के भूरे बालों द्वारा ढक देती है। अंडा अवस्था 3-7 दिनों की होती है। अण्डों से 2-3 दिनों में इल्लियाँ निकलती है। नवजात इल्लियाँ पीले-हरे रंग की होती है जो 4-5 दिनों तक पत्ती की निचली सतह पर ही समूह में रह पर्ण-हरित खुरच-खुरच कर खाती है। पूर्ण विकसित इल्ली 30-40 मि.मी. लम्बी होती है तथा 20-22 दिनों में शंखी में बदल जाती है। शंखी भूमि के भीतर कोये में पाई जाती है। शंखी में से 8-10 दिनों बाद वयस्क शलभ निकलते है। सोयाबीन फसल पर इस कीट का पूरा जीवन चक्र 30-37 दिनों का होता है। यह सर्वभक्षी कीट है।
पोषक पौधे: कपास, तम्बाकू, टमाटर, गोभी, गाजर, बैगन, सूर्यमुखी, अरंडी, उड़द, मूंगफली आदि।
आर्थिक क्षति स्तर: 10 इल्ली प्रति मीटर कतार।
नियंत्रण
कृषिगत नियंत्रण: बुआई हेतु अनुशंसित (70-100 कि.) बीज दर का उपयोग करें। नियमित फसल चक्र अपनाये।
यांत्रिक नियंत्रण: फिरोमोन ट्रेप 10-12/हे. लगाकर कीट प्रकोप का आंकलन एवं उनकी संख्या कम करें। अंडे व इल्लियों के समूह को इक्कठा कर नष्ट कर दें। 40-50/हे. खूटी लगायें।
रसायनिक नियंत्रण: पृष्ठ क्रमांक 15 अनुसार।
पहचान: शलभ का सिर, वक्ष व शरीर का निचला हल्का पीला एवं ऊपरी भाग गुलाबी रंग का, श्रंगिकायें व आखें काली तथा पंख हल्के पीले जिन पर छोटे-छोटे काले धब्बे पाये जाते है। शलभ पंख फैलाव पर करीब 40-60 मि.मी. होता है। अंडे पहले हल्के हरे तथा परिपक्व होने पर काले हो जाते है। नवजात इल्लियाँ पीली तथा शरीर पर रोएँ होते है। इल्ली की तीसरी अवस्था लगभग 20-25 मि.ली. लम्बी होती हैं जो कि इधर उधर घूमकर अत्यधिक नुकसान करती है। पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40-45 मि.मी. तक लम्बी होती है तथा भूरे लाल रंग की एवं बड़े रोएँ वाली होती है। पूर्ण विकसित इल्लियाँ अपने शरीर के बालों को लार से मिलाकर कोया (भांखी कवच) बनाती है। भांखी गहरे भूरे रंग की होती है।
प्रकोप: नवजात इल्लियाँ अंड-गुच्छों से निकलकर एक ही पत्ती पर झुण्ड में रह कर पर्ण हरित खुरच कर खाती है। नवजात इल्लियाँ 5-7 दिनों तक झुण्ड में रहने के पश्चात पहले उसी पौधे पर एवं बाद में अन्य पौधों पर फ़ैल कर पूर्ण पत्तियाँ खाती है। जिससे पत्तियाँ पूर्णत: पर्ण विहीन जालीनुमा हो जाती है। इल्लियों द्वारा खाने पर बनी जालीनुमा पत्तियों को दूर से ही देख कर पहचाना जा सकता है।
जीवन चक्र: मादा शलभ अपने जीवन काल में 3-5 अंड गुच्छों में 500 से 1300 अंडे पत्तियों की निचली सतह पर देती है। अंडकाल 3 से 15 दिनों का होता है। इल्लियाँ का जीवन काल 20-30 दिनों का होता है। शंखी भूमि के भीतर कोये में पाई जाती है। शंखी से 9-15 दिनों में शलभ निकलती है। कीट 35-42 दिनों में एक जीवन चक्र पूर्ण करता है। कीट की साल भर में 8 पीढियां होती है।
पोषक पौधे: मूंग, उड़द, सूर्यमुखी, अलसी, तिल, अरण्डी, पत्तागोभी आदि।
आर्थिक क्षति स्तर: 10 इल्लियाँ/मीटर कतार।
नियंत्रण: इल्ली के प्रांरभिक अवस्था के झुंड को इक्कठा कर नष्ट कर दें। आर्थिक क्षति स्तर से अधिक कीट प्रकोप होने पर कीटनाशक दवाई का छिड़काव करें।
पहचान: वयस्क शलभ मटमैला भूरा या हल्के कत्थाई रंग की जिसके अगले पंखों पर बादामी रंग की आड़ी-तिरछी रेखायें होती है। जबकि पिछले पंख रंग में सफेद तथा बाहरी किनारों पर चौड़े काले (यकृति जैसे) धब्बे होते है। वयस्क शलभ दिने में पत्तियों में छिपी रहती है तथा रात में फसल पर भ्रमण करती है। अंडे गोलाकार तथा चमकदार हरे-सफेद रंग के होतें है अण्डों की सतह पर तिरछी धारियां पायी जाती है। अंडे शुरू में चमकीले हरे-सफेद रंग के होते हैं जो इल्लियों के निकलने के एक दिन पहले काले हो जातें है। नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है। पूर्ण विकसित इल्ली करीब 3.5-4.0 मि.मी. लम्बी होती है जिनके शरीर के बगल में गहरे पीले रंग की टूटी धारी होती है। सिर हल्का भूरा होता है इल्ली का रंग अलग-अलग होता है।
प्रकोप: नवजात इल्लियाँ कली, फूल एवं फल्लियों को खाकर नष्ट करती है पर फल्लियों में दाने पड़ने के पश्चात इल्लियाँ फल्ली में छेद कर दाने खाकर आर्थिक रूप से हानि पहुंचाती है। फल्ली के समय 3-6 इल्लियाँ प्रति मीटर होने पर सोयाबीन की पैदावार में 15-90 प्रतिशत तक हानि होती है।
जीवन चक्र: मादा शलभ रात्रि में पत्तियों की निचली सतह पर एक-एक कर 1200 से 1500 तक अंडे देती है। अंडकाल 3-4 एवं इल्ली काल 20-25 दिनों का होता है। पूर्ण विकसित इल्ली भूमि में गहराई में जाकर मिट्टी में शंखी में परिवर्तित हो जाती है। शंखी काल 9-13 दिनों का होता है। कीट अपना एक जीवन चक्र 31-35 दिनों में पूर्ण करता है।
पोषक पौधे: कपास, चना, मटर, अरहर, तम्बाकू, टमाटर अन्य सब्जियाँ एवं जंगली पौधे।
नियंत्रण: ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कर इल्ली व शंखी को इक्कठा कर नष्ट करें (चने की इल्ली हेतु) फसल में 50 अंग्रेजी के टी एंड दोफनी आकार की खूंटियां (3-5 फीट ऊँची) पक्षियों के बैठने हेतु फसल की शुरुआत से ही लगाये। जिन पर पक्षी बैठ कर इल्लियाँ खा सके। कीट दिखाई देने पर 12 फिरोमोन ट्रेप/हे. के हिसाब से लगा दें।
रसायनिक नियंत्रण पत्ती खाने वाली एवं फली छेदक इल्लियों के लिए: यदि आर्थिक क्षति स्तर से अधिक नुकसान होता है, तो कीटनाशक दवाई का उपयोग करें। अचयनित दवाओं का उपयोग न करें। कीट वृद्धि नियंत्रण (आई.जी.आर) जैसे डायलूबेंरॉन 25 डब्लू.पी. 350 ग्रा./हे. या नोवेल्युरान 10 ई.सी. 375 मि.ली. या लेफेयूरॉन 10 ई.सी. 500 मि.ली./हे. अथवा जैविक कीट नाभाक, एन.पी.व्ही. 250 एल.ई./हे. अथवा डायपेल, वायोबिट या हॉल्ट 1 कि.ग्रा./हे. या बायोरिन या लावोसेल 1 कि.ग्रा./हे. अथवा रासायनिक कीट नाभाक जैसे क्लोरापाइरीफॉस 20 ई.सी. 1.5 ली. या प्रोफेनोफाम 50 ई. सी. 1.2 ली. या रायनेक्सीपार 10 एस. पी. 100 मि.ली. या एमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. 180 ग्रा. या मिथोमिल 40 एस. जी. 1000 मि.ली. या फोरफेनेफ़ॉस 50 ई.सी. 1.25 ली. या लेम्बडा सायलोहेथ्रिन 5 ई.सी. 300 मि.ली. या इंडोक्साकार्ब 14.8 एस. एल. 300 मि.ली./हे. के हिसाब से उपयोग करें। चूर्ण जैसे फैनवेलरेट 0.4 प्रतिशत 25 कि.ग्रा./हे. के हिसाब से उपयोग करें।
पहचान: वयस्क कीट लगभग 1 मि.मी. लम्बा होता है। जिसके पंख सफेद-पीले रंग के होते है, जो मोमयुक्त पर्तदार पंखों वाली मक्खी होती है। अंडे करीब 0.2 मि.मी. लम्बे, नाशपाती आकार के होते है, शंखी काली नाशपाती आकार की होती है। अण्डों का रंग सफेद होता है। लेकिन निकलने के पहले ये भूरे या काले रंग के हो जाते है। निम्फ (भिभु) नाभपाती आकार के हल्के पीले रंग के होते है। दूसरी एवं चौथी अवस्था में यह चल नही सकते है।
प्रकोप का तरीका: इसका प्रकोप पौधे के एक पत्ती अवस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है। जो कि फसल की हरी अवस्था तक प्रकोप करता रहता है। शिशु एवं वयस्क पौधे से रस चूसते है। यह पीला विषाणु रोग फैलाता है, जो कि फसल की मुख्य समस्या है।
जीवन चक्र: मादा मक्खी अपने जीवनकाल में 40-100 तक अंडे देती है। जिसका रंग पीला एवं पत्तियों के निचली सतह पर देती है। शिशु अवस्था 7-14 दिनों की होती है वयस्क 8-14 दिनों में निकलते हैं। कीट का एक जीवन चक्र 13-62 दिनों तक होता है।
पोषक पौधे: यह विभिन्न प्रकार के पौधों पर जैसे कपास, चना, मूंग, उड़द और तंबाकू, सब्जी वर्गीय पौधे जैसे टमाटर, भिन्डी बहुत से जंगली पौधों पर भी नुकसान पहुँचाता है तथा वर्ष भर किसी न किसी फसल पर जीवन निर्वाह करते है।
नियंत्रण: पीला विषाणु रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें। बोनी के पहले बीज को थायोमेथाक्सम 70 डब्ल्यू.एस. 3 ग्राम/कि.ग्रा. या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस. एल. 5 मि.ली./कि.ग्रा. की दर से बीजोपचार कर बोनी करें। फसल पर कीट का आक्रमण होने पर निम्नलिखित कोई एक कीट नाभाक दवा का छिड़काव करें। ट्रायजोफ़ॉस 40 ई.सी. 800-1000 एम.एल. या थायमेथेक्जेम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस. एल. 200 मि.ली. या मेथाइल डेमेटान 25 ई.सी. 800 मि.ली./हे. ।
पहचान: माइट या मकड़ी के वयस्क अंडाकार के लाल या हरे रंग के 0.4 से 0.5 मि.मी. लम्बे बालों वाले एवं आठ टांगों वाले होते है। प्रथम अवस्था में 3 जोड़ी पैर होते है तथा रंग गुलाबी होता है। द्वितीय तथा तृतीय अवस्था में 4 जोड़ी पैर होते है। सभी अवस्था ये पत्तियों की निचली सतह पर सफेद महीन पारदर्शी झिल्ली के नीचे पाई जाती है। अंडे आकार में गोल, सफेद रंग तथा 0.1 मि.मी. की गोलाई लिये होते है।
प्रकोप: इसका प्रकोप सोयाबीन फसल पर सामान्यत: सितम्बर से अक्टूबर माह में विभोष कर कम वर्षा की स्थिति में ज्यादातर देखने को मिलता है। वयस्क तथा शिशु दोनों अवस्थाएं पौधों के तना, शाखा, फल्लियाँ तथा पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते है। प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद एवं पारदर्शी झिल्ली पड़ी होती है। रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद कत्थाई धब्बे बनतें है तथा पत्तियाँ प्रकोप के कारण मुरझा जाती है। प्रकोपित पौधों की उपज में 15 प्रतिशत तक कमी होती है। ग्रसित पौधे के दाने सिकुड़ जाते है तथा उनकी अंकुरण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है।
जीवन चक्र: मादा अलग-अलग करके पत्ती के निचले सतह पर लगभग 60-65 अंडे देती है। 4-7 दिनों में अण्डों से शिशु निकलते है और पौधों का रस चूसने लगते है। 6-10 दिनों के बाद शिशु से वयस्क बनते है। शिशु और वयस्क एक महीन पारदर्शक जाले से ढकी रहती है।
पोषक पौधे: मूंग, उड़द, टमाटर, भिन्डी, कपास आदि।
नियंत्रण: खड़ी फसल पर अत्याधिक प्रकोप होने पर ही निम्नलिखित कोई एक कीट नाभाक जैसे इथियान 50 प्रतिशत ई.सी. 1.5 ली. या प्रोफेनोफास 50 प्रतिशत ई.सी. या ट्रायजोफास 40 ई.सी. 800 मि.ली. या डायफेन्थियूरान 50 डब्ल्यू.पी. 500 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें।
पहचान: भृंग का आकार में 7 मि.मी. चौड़ा तथा 18 मि.मी. लम्बा होता है। वयस्क भृंग नवविकसित अवस्था में पीले रंग का जो बाद में चमकदार तांबे जैसा हो जाता है। इल्ली या ग्रब (लट) अवस्था का रंग सफेद होता है। पूर्ण विकसित इल्ली का शरीर मोटा, रंग मटमैला-सफेद तथा आकार अंग्रेजी के “सी” अक्षर के सामान मुडा होता है। जिनका सिर गहरे भूरे रंग का तथा मुखांग मजबूत होते है।
प्रकोप का तरीका: कीट के लट (इल्ली) एवं वयस्क दोनों अवस्था हानि पहुंचाती है पर इल्ली अवस्था फसलों को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। वयस्क भृंग विभिन्न पौधों एवं कुछ झाड़ीनुमा वृक्षों की पत्तियाँ खाते हैं जबकि अण्डों से निकली नवजात इल्लियाँ शुरू में भूमि के अंदर पौधों की छोटी-छोटी जड़ों को खाती है तथा बड़ी होने पर मुख्य जड़ों को तेजी से काटती है। परिणामस्वरूप प्रकोपित पौधे पहले मुरझाते है फिर सूख कर नष्ट हो जाते है। जिससे खेतों में जगह-जगह खाली घेरे बन जाते है। इल्ली एवं शंखी भूमि में पाई जाती है।
जीवन चक्र: वयस्क भृंग वर्षा ऋतु की शुरुआत में जून-जुलाई में भारी वर्षा होने पर अपनी सुसुप्तावस्था तोड़कर भूमि से बाहर एक साथ काफी संख्या में निकलतें है। मादा कीट भुरभुरी और नमी युक्त मृदा में 1 से 6 इंच की गहराई में पौधे के पास अंडें देती है। अंडे लगभग 30-50 दिन में उचित तापमान होने पर फूटते है। इल्ली (कोया) बनाकर भूमि के ऊपरी सतह पर सुसुप्तावस्था में रहते है। कीट वर्ष में अपना एक जीवन चक्र पूर्ण करता है।
कृषिगत नियंत्रण: गर्मी में खेतों की गहरी जुताई एवं सफाई कर कीट की सुसुप्तावस्था तोड़ दें।
यांत्रिक नियंत्रण: प्रकाश प्रपंच की सहायता से प्रौढ़ कीट को इक्कठा कर नष्ट कर दें।
जैविक नियंत्रण: बेबेरीया बेसीयाना और मेटारहिजीयम एनीसोपली 5 किलो ग्राम को गोबर की खाद या केचुए की खाद (2.5 कि.) के साथ मिश्रण कर खेत में फैला दें।
रसायनिक नियंत्रण: भूमि में फोरेट 10 जी 25 किलो ग्राम/हे. के हिसाब से बुवाई के समय खेत में मिला दें।
स्त्रोत: कृषि विकास विभाग, मध्य प्रदेश
अंतिम बार संशोधित : 11/20/2019
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