देश-विदेशों की विभिन्न प्रजातियों की मछलियों और अन्य जल जीवों को संरक्षित किया जाएगा। पर्यटकों के साथ राज्य के लोग इन मछलियों को देख कर लुत्फ उठा सकेंगे। इनके बारे में पूरी जानकारी ले सकेंगे। इसके लिए बेतिया के सरैया में मछली अभयारण्य बनेगा। अभयारण्य के लिए मत्स्य निदेशालय ने योजना बनाई है। विलुप्त होती मछलियों का यहां वैज्ञानिक और अत्याधुनिक तकनीक से प्रजनन भी कराया जाएगा। वाल्मीकिनगर टाइगर रिज़र्व आने वाले पर्यटकों को भी मछली अभयारण्य लुभाएगा
यहां मछली और अन्य जल जीवों के संरक्षण के लिए इनवेंटरी का निर्माण होगा। राष्ट्रीय मत्स्य आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो लखनऊ के वैज्ञानिक इसके लिए यहां अनुसंधान कर रिपोर्ट देंगे। ब्यूरो के निदेशक डॉ. कुलदीप के लाल, प्रधान वैज्ञानिक केडी जोशी, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संजीव कुमार सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संतोष कुमार, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी डॉ. अजय कुमार सिंह और
रमाशंकर साह अनुसंधान टीम में हैं। माना जा रहा है कि मार्च तक अनुसंधान कार्य पूरा होने के बाद अभयारण्य की तैयारी होगी। पुरानी कई प्रजातियों की मछलियां विलुप्त होती जा रही हैं। जिस प्रकार से अभी मछली बीज तैयार किया जा रहा है, उसमें मूल जाति की मछली के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। इसलिए ऐसी मछलियों को संरिक्षत करने का निर्णय लिया गया है। मछलियों के साथ अन्य विलुप्त होने वाले जल जीवों को भी यहां संरिक्षत रखा जाएगा। यहां आने वाले पर्यटकों को विभिन्न प्रकार की मछलियां खासकर जो लगभग विलुप्त हो चुके हैं, उन्हें देखने का मौका मिलेगा। यह वन विभाग की जमीन पर बनेगा।
बिहार में पाई जाने वाली मछलियों के साथ देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों में पाई जाने वाली मछलियों को भी यहां रखा जाएगा। पर्यटकों को जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रकार की मछलियों के बारे बोर्ड पर लिखा जाएगा। अभयारण्य में मछलियों की जानकारी देने के लिए कर्मचारी नियुक्त होंगे। मछली और जल जीवों के संरक्षण के लिए अपनी तरह का अनोखा अभयारण्य होगा।
तेघड़ा, देसी मांगूर , देसी सिंघी, तेंधडा, पलवा, खेसरा, चेचडा, इचना, बुल्ला, गैची, भल्ला, कवई, डेरवा, भुन्ना, बाधी मछली, सिंघी, मांगूर, टंगरा, चलवा, गवई, गैरई, नटवा धवाई आदि।
विलुप्त होते अन्य जलीय जीव :
कछुआ, मेढ़क की कुछ प्रजातियां, डॉल्फिन घड़ियाल आदि।
लेखन : संदीप कुमार, स्वतंत्र पत्रकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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