दुख के बीच से ही सुख का रास्ता निकलता है। ईमानदारी और पूरे लगन से किया गया काम जरूर सफल होता है। वैजयंती देवी की कहानी ऐसी ही है। 10 साल पहले उन्होंने काम करना शुरू किया था। उसका सुखद परिणाम अब सामने आ रहा है। फर्श से अर्श तक पहुंचने वाली वैजयंती देवी पर संदीप कुमार की रिपोर्ट मिला मौका, दिखा दी योग्यता टेबल क्लॉथ, चादर, ऐप्लिक का काम। वैजयंती को इन तीनों पर काम करने में महारत हासिल हो चुकी है। कैसे शुरू किया काम? वैजयंती बताती हैं कि लगभग 10 साल पहले पटना के अम्बपाली स्वयं सहायता समूह से वह जुड़ी। उन्हे काम की तलाश थी। अम्बपाली महिला समूह की प्रमुख अर्चना सिंह ने उनको काम पर रख लिया। वैजयंती का काम ऑफिस की सफाई, पोंछा करने का था। वह कहती हैं, ऑफिस में चादर, ऐप्लिक का काम होता था। दिन में अपने काम को करते रहने के दौरान मेरी नजर उन महिलाओं पर भी रहती थी, जो वहां चादर पर काम करती रहती थी। इन सब काम में मेरी रुचि पहले से थी। मैं भी इन सब काम को करना चाहती थी लेकिन संकोच और डर के मारे बोल नहीं पाती थी। मैंने हिम्मत कर के उन महिलाओं से संपर्क बनाना शुरू कर दिया। मैं अपने काम को करने के साथ धीरे-धीरे मैं उन महिलाओं के पास बैठने लगी। अपने विचार को भी बताने लगी। इसमें मुङो डर भी लगता था लेकिन मैंने सोच लिया था कि मैं भी यह काम करूंगी। उन महिलाओं ने मेरे काम को सराहा और यह बात अर्चना सिंह तक पहुंची। उन्होंने मुझसे इसके बारे में पूछा। फिर उनकी सहमति मुङो मिली।
कपड़ों पर देती है कल्पना को आकार कपड़ों पर ऐप्लिक काम, टेबल क्लॉथ, चादर, तकिया का कवर। इन सब के ऊपर डिजाइन बनाने में वैजयंती को विशेष योग्यता हासिल है। वैजयंती कहती हैं, ऑफिस में अपना काम कर लेने के बाद मैं वहां काम कर रही दूसरी औरतों को जब अपने विचार को बताती थी तो वह सब मेरी सोच की तारिफ करती थी। उन महिलाओं ने भी अर्चना सिंह को यह बताया कि कपड़ों पर डिजाइन बनाने को लेकर मेरी सोच क्या-क्या रहती है? शुरू में मुङो यह कहा गया कि मैं अपने काम को करने के बाद ही इस काम को कर सकती हूं। मैं समय निकाल कर रोज शाम को उन महिलाओं के साथ काम करती थी। मुङो कपड़ों पर डिजाइन सोचने का जिम्मा दिया गया। मेरे द्वारा सोचे गये डिजाइन की सब प्रशंसा करते थे।
मिली नयी जिम्मेदारी मैडम ने एक दिन पूछा कि क्या मैं दूसरी महिलाओं को प्रशिक्षण दे सकती हूं? क्योंकि उस समय तक करीब पंद्रह और महिलाएं इस काम को सीखने के लिए संपर्क कर चुकी थी। इनमें से कुछ महिलाएं मेरे गांव के आस-पास के क्षेत्र और कुछ शहर की रहने वाली थी। इन महिलाओं का एक ग्रुप बना कर काम बताने की जिम्मेदारी मुङो मिली। मैंने पूरी ईमानदारी से यह काम किया। कपड़ा खरीदने के लिए पैसे कहां से मिलते थे? वह बताती हैं कि इन सब चीज के लिए संस्था ही पूरी मदद करती थी। हमारे ग्रुप के महिलाओं का काम लोगों को पसंद आ रहा है तो इन सामानों की बिक्री से ही सारी जरूरतें पूरी हो जा रही हैं। चादर, कैशमेट के कपड़े से बनता है। उस पर सूती के पॉपलिन को जोड़ कर ऐप्लिक का काम होता है। कच्चे सामानों को संस्था ही उपलब्ध कराती है। मेरा मुख्य काम डिजाइन को तैयार करना है। बाकी का काम महिलाओं का होता है।
पहले ताने सुने, अब होती है प्रशंसा वैजयंती बताती हैं कि यहां तक पहुंचने के लिए मुझे बहुत कुछ सुनना, सहना पड़ा है। मेरा घर पटना से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर है। जब भी मैं घर से काम करने के लिए निकलती थी। गांव के लोग ताने मारना शुरू कर देते थे। मैं सब कुछ सहती थी क्योंकि मेरे घर की आर्थिक हालत बहुत ही ज्यादा खराब थी। घर से निकलना मेरे लिए मजबूरी थी। पति एक प्राइवेट एजेंसी में नौकरी करते थे। उनको पैसा भी बहुत कम मिलता था। एक कमाने वाले के ऊपर सात लोगों का जिम्मा। वह आगे बताती हैं कि उनके चार बच्चे हैं। जिसमें से एक जन्म से ही दृष्टिहीन है। बड़ी बेटी और बेटे की पढ़ाई पैसे की कमी होने से प्रभावित हो रही थी। घर में एक ननद भी है जो विक्लांग है। उसकी भी परवरिश मेरे ही जिम्मे है। भोजन से लेकर रहन-सहन, हर बात की परेशानी थी। जो भी पैसा मेरे पति कमाते थे, उसमें से एक बड़ा हिस्सा इन लोगों के इलाज पर खर्च हो जाता था। घर में कुछ पैसों की आमदनी और हो, इसके लिए ही मैंने घर से निकलने का फैसला किया था। मेरे इस फैसले में मेरे पति ने मेरा हौसला बढ़ाया। अब, जब मेरे काम की पहचान बनी है और लोगों ने मेरे मेहनत को देखा तो ताना मारने की जगह मेरी तारिफ करते हैं।
स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार ।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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