पूर्णिया गांव की गरीब महिलाओं को संगठित कर आत्मनिर्भर बनाना कोई साधारण काम नहीं है, लेकिन जिले की तीन लाख महिलाएं आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। अब ये महिलाएं अपना परिवार तो चला ही रही हैं, साथ ही दूसरी जगहों पर जाकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की ट्रेनिंग भी दे रही हैं। कमाल यह है कि कोई महिला जागरूक किसान है, तो किसी महिला को मुर्गी पालने में महारथ है। इन्हीं महिलाओं ने मक्के का व्यापार किया और पहले ही सीजन में बिजनेस को एक करोड़ बीस लाख पहुंचा दिया। इसमें शुद्ध मुनाफा हुआ साढ़े ग्यारह लाख रुपए का।
पूर्णिया जिले में ऐसा कोई प्रखंड़ नहीं है, जहां पर महिलाएं समूह बनाकर काम नहीं कर रही हैं। फिलहाल जिले में करीब 22 हजार स्वयं सहायता समूह है। ग्रामीण विकास बिहार विभाग की सोसाइटी जीविका गांव की गरीब महिलाओं को रोजगार के लिए अग्रसर कर रही है। योजना में गांव की बेटी को सदस्य नहीं बनाया जाता है। इससे जुड़ने के लिए जरूरी है कि महिलाएं गांव की बहू हो। महिलाएं समूह का निर्माण करती हैं। एक समूह में दस से बारह महिलाएं होती हैं। संचार प्रबंधक ने बताया कि चार स्तर में समूह की महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है। चौथे स्तर में इन लोगों को बताया जाता है कि गरीबी क्या है? इसे दूर करने के लिए समूह की जरूरत क्यों है? जब इन लोगों की ट्रेनिंग पूरी हो जाती है, तो सरकारी मदद से ये लोग रोजगार शुरू करती हैं। धमदाहा की मंजू देवी कहती हैं कि वह पांच साल से काम कर रही हैं। आज उनका वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम है। खुद ही खेती भी करती हैं। इनका अपना किचन गार्डन भी है। ये कहती हैं कि किचन गार्डन से सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि घर के लिए सब्जी नहीं खरीदनी पड़ती है। इससे हर दिन कम से कम 50 रुपए तो बच ही जाते हैं। इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट और खेती से तो फायदा होता ही है।
वह बताती हैं कि उनका अनुभव अब इतना हो गया है कि बांका, कुर्सेला और बखरी जाकर नई महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही हैं। इसके लिए उनको 500 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलता है। दमगारा धमदाहा की करुणा देवी कहती हैं कि वे 2007 से ही काम कर रही हैं। इलाके के लोग इनको जागरूक महिला किसान के रूप में जानते हैं। वर्मी कंपोस्ट पैदा करती हैं, अपना खेत है उसमें वर्मी कंपोस्ट के सहारे खेती भी करती हैं। मुर्गा पालन, पशुपालन में इन्हें खूब मजा आता है। करुणा को खेती के लिए अलग से ट्रेनिंग दी गई थी। ये बताती हैं कि पहले पति ही कमाते थे। घर मुश्किल से चलता था, लेकिन आज हम दोनों लोग मिलकर काम करते हैं। कुकरन धमदाहा की समसीदा खातून भी 2007 से ही काम कर रही हैं। किसानी भी करती हैं, लेकिन मुर्गी पालन में महारथ हासिल हो चुका है। क्वालर नस्ल का मुर्गी पालती हैं। इस काम से इनको दो तरीके से लाभ होता है। एक तो मुर्गा तैयार कर बेचती हैं और दूसरे अंडा भी तैयार करती हैं।
स्त्रोत: संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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