औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड के पुत्न गुड्डू के साथ ब्रजिकशोर मेहता ने चिल्कीबीघा में ही चेरी की खेती करने की ठान ली। पिछले साल 13 कट्ठा यानी एक बीघा से भी कम जमीन पर चेरी लगाई। इससे करीब चार लाख रुपए की कमाई हुई। इसके बाद उन्होंने 2 बीघा खेत में चेरी लगाई।
बिहार में किसी किसान ने व्यावसायिक तौर पर पहली बार चेरी की खेती की है। इससे प्रभावित अन्य किसान भी चेरी की खेती का मन बनाने लगे हैं। कृषि विभाग भी चेरी की खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना बना रहा है। चटख लाल रंग और खट्टे-मीठे स्वाद वाली चेरी ने किसान ब्रजिकशोर मेहता की तकदीर ही बदल दी। इसे देख उनके रिश्तेदार (चाचा)रघुपत मेहता ने भी इस साल एक बीघा में लगाई है। चेरी की खेती के लिए फिलहाल योजना नहीं है। उद्यान उप निदेशक डॉ. श्रीकांत ने सूचित किया कि अनुदानित दर पर सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन और सेड नेट और मेल्टिंग आदि की सुविधाएं किसान को दिलाई गई है। औरंगाबाद के डीएम ने भी इसके लिए योजना बनाने के लिए कहा है।
ब्रजिकशोर मेहता ने बताया कि एक कट्ठा में चेरी के एक हजार पौधे लगाए जाते हैं। इस तरह एक बीघा में 20 हजार पौधे लगा रहे हैं। एक बीघा में 50 क्विंटल चेरी का उत्पादन होता है। जैविक विधि से खेती कर रहे हैं। इससे चेरी अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है। साथ ही पौधे भी अधिक दिनों तक बेहतर रहते हैं। सितंबर-अक्टूबर में पौधे लगाए जाते हैं, जबकि जनवरी से मार्च तक चेरी का उत्पादन होता है। किसान खुद पैकिंग कर पटना, बोकारो और कोलकाता के बाजारों में चेरी भेज रहे हैं। किसानों के खेतों से 200 रु पए किलो की दर से चेरी बेची जाती है, जबकि बाजार में खुदरा दुकानदार 400 से 500 रु पए किलो की दर से चेरी बेचते हैं। ब्रजिकशोर बताते हैं कि एक एकड की खेती में करीब एक लाख रु पए खर्च होता है और 7 से 8 लाख रुपए की कमाई होती है। ब्रजिकशोर से बताया कि पहले पंजाब से ही 7 पौधे लाकर अपने खेत में लगाया। बेहतर रजिल्ट के बाद 13 कट्ठे में लगाया। अब इसका क्षेत्न बढ रहा है। इसके पौधे से ही तना काटकर लत्तर तैयार कर खेतों में लगाया जाता है। महाराष्ट्र के महाबालेश्वर और पंजाब से इसके पौधे मंगाए जाते हैं। हालांकि, किसान खुद भी पौधे तैयार करने लगे हैं। एक पौधे की कीमत 10 रुपए है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बिहार में चेरी की खेती की भरपूर संभावना है। यह सेहत के साथ किसानों के लिए धन कमाने का भी खजाना है। चेरी की खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना बनाई जाएगी। आरकेवीवाई या अन्य किसी योजना के तहत चेरी की खेती करने वाले किसानों को सहायता दिलाने का प्रयास किया जाएगा। राज्य में पहली बार किसी किसान ने इस प्रकार की चेरी की खेती की है।
स्त्रोत : संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना, बिहार।
अंतिम बार संशोधित : 2/20/2020
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