चावल गहनीकरण पद्धति ( एस आर आई )
धान की खेती : कुछ मिथक
प्रत्येक व्यक्ति यह मानता है कि चावल एक जलीय फसल है तथा स्थिर जल में अधिक वृद्धि करता है। जबकि सच्चाई यह है कि धान जल में जीवित अवश्य रहता है पर यह जलीय फसल नही है और न ही ऑक्सीज़न के अभाव में उगता है। धान का पौधा पानी के अंदर अपने जड़ों में वायु कोष (एरेनकाईमा टिश्यू) विकसित करने में काफी ऊर्जा व्यय करता है। 70% धान की जड़ें पुष्पावधि के समय बढ़ता है।
श्री के बारे में गलत अवधारणा
श्री खेती के अंतर्गत धान जलमग्न नहीं होता है परंतु वानस्पतिक अवस्था के दौरान मिट्टी को आर्द्र बनाये रखता है, बाद में सिर्फ 1 इंच जल गहनता पर्याप्त होती है। जबकि श्री में सामान्य की तुलना में सिर्फ आधे जल की आवश्यकता होती है।
वर्त्तमान में विश्वभर में लगभग 1 लाख किसान इस कृषि पद्धति से लाभ उठा रहे हैं।
श्री में धान की खेती के लिए बहुत कम पानी तथा कम खर्च की आवश्यकता होती है और ऊपज भी अच्छी होती है। छोटे और सीमान्त किसानों के लिए ये अधिक लाभकारी है।
1980 के दशक के दौरान श्री को मेडागास्कर में पहली बार विकसित किया गया। इसकी क्षमता परीक्षण चीन, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, थाइलैंड, बांगलादेश, श्रीलंका एवं भारत में किया गया। आँध्र प्रदेश में वर्ष 2003 में श्री के खरीफ फसल के दौरान राज्य के 22 जिलों में परीक्षण किया गया।
श्री प्रौद्योगिकी का उपयोग – न्यून बाह्य निवेश
श्री पद्धति से धान की खेती में 2 कि.ग्रा./एकड़ की दर बीज की और प्रति यूनिट (25x25 से.मी.) क्षेत्रफल की दर से कुछ पौधों की आवश्यकता होती है। जबकि धान की पारंपरिक सघन कृषि में प्रति एकड़ 20 कि.ग्रा. की दर से बीज की आवश्यकता होती है।
श्री में कम मात्रा में उर्वरक और पौधा सुरक्षा रसायन की जरूरत होती है।
जड़ वृद्धि
श्री पद्धति में धान का पौधा प्राकृतिक स्थिति में अच्छे ढंग से वृद्धि करता है और इसके जड़ भी बड़े पैमाने पर बढ़ते हैं। यह अपने लिए पोषक तत्व मिट्टी के गहरी परतों से प्राप्त करता है।
श्री : प्रारंभिक रूप में अधिक श्रम की आवश्यकता
निम्न बातें श्री धान के पौधे को अच्छी ढंग से वृद्धि करने में मदद करता है -
पौधों में काफी बढ़ोतरी
पुष्पण के प्रारंभ के साथ ही अधिक संख्या में पौधे का विकास। प्रति पुष्प अधिक भरे दाने निकलते हैं।
एस.आर.आई तकनीक के लिए दिशा-निर्देश
औपचारिक प्रयोग वर्ष 2002–2003 में प्रारंभ हुआ। अब तक इस पद्धति को आँध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात में प्रारंभ किया गया है।
आँध्र प्रदेश
श्री पद्धति का मूल्यांकन कार्य वर्ष 2006 के रबी मौसम में संयुक्त रूप से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ - अंगारु (ए.एन. जी. आर. ए. यू) द्वारा प्रारंभ किया गया। इस कार्यक्रम के द्वारा 11 जिलों के 250 किसानों को मदद पहुँचाई गई। इन क्षेत्रों का भ्रमण करने और किसानों के साथ चर्चा करने के बाद यह जानकारी मिली कि सिंचाई हेतु जल के उपयोग में कमी का सकारात्मक अनुभव रहा और उपज में वृद्धि हुई है (विनोद गौड़, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ - संवाद बुलेटिन, अंक – 15, माह- जून, 2005)। वर्ष 2003 के खरीफ़ मौसम में 22 ग्रामीण जिलों में श्री पद्धति से धान की खेती की गई। इसकी काफी अच्छी प्रतिक्रिया रही। इससे यह पता चला कि श्री पद्धति से खेती के माध्यम से 95 प्रतिशत बीजों की बचत हुई जिसमें मात्र 5 कि.ग्राम/हेक्टेयर बीज का प्रयोग ही पर्याप्त रहा। इस पद्धति से लगभग 50 प्रतिशत जल की बचत की गई और 2 टन/हेक्टेयर औसत की दर से अनाज़ उत्पादन में फायदा हुआ। श्री पद्धति से खेती करने वाले किसानों को रोटरी वीडर का प्रयोग करने, नये बीजों को लगाने एवं जल प्रबंधन में कुछ समस्याएँ थी। फिर भी, श्री पद्धति से की गई खेतों पर धान के स्वस्थ पौधे दिखाई पड़े।
श्री पद्धति से महबूबनगर जिले के दामोदर रेड्डी ने 30 बैग अधिक धान का उत्पादन किया जबकि श्रमिकों पर उसका निवेश पहले की तरह 3 हजार रुपये ही रहा। सुश्री उमा माहेश्वरी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ - ईक्रिसेट-संवाद परियोजना के प्रतिनिधि के अनुसार 10 मई को महबूबनगर जिले के रामागुंडम गाँव में आयोजित “श्री धान दिवस” के मौके पर किसान श्री पद्धति से अत्यंत खुश थे (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ संवाद बुलेटिन, अंक- 15 एवं जून, 2005)।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ - डायलॉग प्रोजेक्ट के सहयोग से वासन (डब्ल्यू.ए.एस.एस.ए.एन) एवं सीएसए पूरे आँध्र प्रदेश में 1000 से अधिक किसानों के साथ कार्य कर रहे है और श्री पद्धति में किसान उन्मुखी सुविधाएँ उपलब्ध करा रहे हैं।
आँध्र प्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य है जहाँ श्री पर एक अलग नीति बनाई गई है। श्री किसानों की सफलता से प्रोत्साहित होकर मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री ने श्री पद्धति को लोकप्रिय बनाने हेतु 4 करोड़ रुपये के कार्यक्रम की घोषणा भी की। यह घोषणा 15 नवंबर, 2005 को हैदराबाद के पास श्री के किसान नागरत्नम नायडू की खेत पर, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ – डायलॉग प्रोजेक्ट द्वारा आयोजित विभिन्न हिस्सेधारकों के साथ परिचर्चा कार्यक्रम में, बातचीत के बाद मुख्यमंत्री ने की। (दि हिंदू, 16 नवंबर, 2005, आँध्र प्रदेश)
प्रमुख पहल
तमिलनाडु
वर्ष 2003-04 के दौरान तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत कार्यरत एग्रीकल्चरल कॉलेज एंड रीसर्च इंस्टीट्यूट, किल्लकुलम् (तमिलनाडु) में प्रयोगों से पता चला है श्री पद्धति की खेती में औसतन 53 प्रतिशत कम सिंचाई जल का उपयोग किया गया। इन प्रयोगों में पारंपारिक खेती पर 21 दिन के पुराने बीज अंकुरण को 15x 10 से.मी. में रोपा गया। इसके लिए 2.5 से.मी. की जल उपलब्धता एवं उसके बाद सूखे की स्थिति, चक्रानुसार धान के फूटने या पुष्पित होने तक बनाये रखा गया। इसके बाद धान की कटाई तक 2.5 सेंमी का जल स्तर खेत में बनाये रखा जाता है। जबकि धान की पारंपरिक खती में जल की उपस्थिति 5 से.मी. तक होती है। पारंपरिक पद्धति की तुलना में श्री खेतों पर 3892 कि.ग्राम/हेक्टेयर की दर धान की ऊपज़ हुई जो पारंपरिक खेती से 28 प्रतिशत अधिक था।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दक्षिणी तमिलनाडु के तमिरपरानी बेसिन में दोनों पद्धति की खेतों पर की गई मूल्यांकन के परिणामस्वरूप पता चला कि श्री और पारंपारिक खेती से ऊपज क्रमशः 7,227 एवं 5,637 कि.ग्रा./हेक्टेयर रहा। लगभग 31 किसानों ने श्री पद्धति के अंतर्गत 8 टन/हेक्टेयर की दर से धान की ऊपज प्राप्त किया।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने श्री को राज्य में चावल की ऊपज़ बढ़ाने एवं जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के रूप में सिफारिश की है। राज्य के कृषि विभाग ने वर्ष 2004 के मौसम के दौरान राज्य के सभी धान उत्पादन क्षेत्र में प्रदर्शनी आयोजित किया।
पश्चिम बंगाल
प्रदान नामक गैर सरकारी संस्था ने वर्ष 2004 के खरीफ मौसम में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के झालदा और बलरामपुर खंड के 110 किसानों द्वारा श्री पद्धति से की जा रही धान की खेती के अनुभवों पर एक अध्ययन किया। अध्ययन से पता चला कि जिन खेतों में श्री पद्धति से धान की खेती की गई उसमें 32 प्रतिशत अधिक ऊपज़ दर्ज की गई। जबकि बलरामपुर में 59 प्लाटों पर इस पद्धति से की गई खेती में 6,282.62 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर धान की ऊपज प्राप्त हुई जो सामान्य पद्धति से होने वाली ऊपज 4,194.13 कि. ग्रा./ हेक्टेयर से 49.8 प्रतिशत अधिक थी। उसी प्रकार पारंपरिक खतों में 3,456.87 कि. ग्राम/हेक्टेयर की दर से प्राप्त होने वाली पुआल/चारा की तुलना में श्री खेतों में औसतन 5,150.1 कि.ग्राम/हेक्टेयर की दर से पुआल का उत्पादन हुआ।
यद्यपि, झालदा प्रखंड में यह वृद्धि मात्र 11.9 प्रतिशत रही। वहाँ इसके कई कारण थे- जिसमें सूखा एवं पुराने पौधे की रोपाई।
गुजरात
आनंद स्थित गुजरात कृषि विश्वविद्यालय में प्रयोगों के दौरान देखा गया कि पारंपरिक पद्धति से 5,840 कि. ग्राम/हेक्टेयर धान की ऊपज की तुलना में श्री पद्धति से 5,813.00 कि.ग्राम/हेक्टेयर की दर से धान की ऊपज हुई और 46% सिंचाई जल की बचत भी हुई।
पुड्डुचेरी में श्री पद्धति का प्रयोग औरविले में अन्नपूर्णा भूमि पर किया गया। इसके बाद एम.एस. स्वामीनाथन रीसर्च फाऊंडेशन ने जैविक गाँव में छोटे प्लाटों पर श्री पद्धति का प्रयोग किया। प्रदान ने श्री पद्धति को झारखंड में भी प्रारंभ किया है। कर्नाटक में मेलकोटे के कौलिगी किसानों ने श्री पद्धति द्वारा धान की खेती पर एक पुस्तिकाएँ भी प्रकाशित की है।
जे.डी.एम. फाऊंडेशन, लाधोवाल (जालंधर) के डॉ. सुधीरेंदर शर्मा के अनुसार पंजाब धान की खेती के लिए कम जल प्रयोग की पद्धति की ओर बढ़ रहा है। डा. शर्मा के अनुसार यह पद्धति पंजाब के जल समस्या का समाधान है जिससे धान के मौसम में 60-70% जल की बचत की जा सकती है।
धान हमारे दोश की महत्वपूर्ण खाद्यात्र फसल है। राष्ट्रीय स्तर पर धान की खेती करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर में की जाती है तथा वर्ष 2007-08 में अधिकतम उत्पादन 9.5 करोड़ टन हुआ है तथा चावल की उत्पादकता 21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। झारखण्ड राज्य में धान की खेती वर्ष 2007 में लगभग 16 लाख हेक्टेयर में की गयी थी तथा इसकी औसत उपज 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी। झारखण्ड राज्य में संकर धान की खेती चावल उत्पादन में वृद्धि के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
संकर धान की विभित्र किस्मों की उत्पादन क्षमता लगभग 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है जबकि धान की अधिक उपज देने वाली सर्वोत्तम किस्मों की उत्पादन क्षमता 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। संकर धान की 110 से 140 दिनों में तैयार होने वाली कई किस्में विकसित की गई है एवं देश के विभित्र क्षेत्रों में लगाने के लिए अनुशंसा की गयी है।
श्री (SRI) विधि
इस विधि में 10 से 12 दिन का बिचड़ा 25 x 25 सेंटी मीटर की दूरी पर एक विचड़ा प्रति हिल में मिट्टी सहित रोपाई करते हैं। कदवा किये गये खेत में 250 वर्ग मीटर में 5 किलो बीज समान रूप से अंकुरित बीज बिखेर देते हैं। रोपाई वाले खेत में हर 2 मीटर की दूरी पर एक जल निकास नाली बनाते हैं तथा कोनों या रोटरी वीडर का प्रयोग 5 बार रोपाई के 10 दिन बाद तथा प्रत्येक 10 दिन के अन्तराल पर करते हैं। इससे जड़ों का विकास ज्यादा होता है और ज्यादा कल्ले निकलते हैं। वीडर के प्रयोग के समय खेत में कम पानी रखना चाहिए। इससे उपज में 10 से 15 प्रतिशत सामान्य विधि से ज्यादा वृद्धि होती है। संकर धान या सामान्य धान की किस्मों को भी श्री विधि से खेती कर सकते हैं।
अनुशंसित किस्म
क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुसार संकर धान की किस्मों का चयन आवश्यक है। बोआई हेतु प्रति वर्ष संकर धान का नया बीज विश्वसनीय एवं अधिकृत बीज वितरक से प्राप्त करनी चाहिए। झारखण्ड राज्य के लिए संकर धान बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रो एग्रो 6444 किस्म का अनुमोदन किया गया है।
पौधशाला (Nursery) की तैयारी
मई-जून में प्रथम वर्षा के बाद, पौधशाला के लिए चुने हुए खेत की दो बार जुताई करें। खेत में पाटा चला कर जमीन को समतल बनायें। पौधशाला सूखे या कदवा किये गये खेत में तैयार की जाती है। कदवा वाले खेत में बढ़वार अच्छी होती है। पौधशाला ऊँची, समतल, तथा 1 मीटर चौड़ाई की होनी चाहिए। पानी की निकासी के लिए 30 सेंटी मीटर चौड़ाई की नाली बना दें। खेत की अंतिम तैयारी से पूर्व 100 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद तथा नेत्रजन, स्फुर, व पोटाश, 500:500:500 ग्राम प्रति 100 वर्ग मीटर की दर से डालें। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई हेतु 750 वर्गमीटर पौधशाला की आवश्यकता पड़ती है तथा प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में 20 ग्राम बीज डालनी चाहिए। श्री विधि में 250 वर्गमीटर में 5 किलो बीज नर्सरी में डालते हैं।
बीज दर
15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा श्री (SRI) विधि में 5 किलो प्रति हेक्टेयर
बीजोपचार
बीज को 12 घंटे तक पानी में भिंगोयें तथा पौधशाला में बोआई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम (बैविस्टीन) फफूदनाशी की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज में उपचारित कर बोयें। पौधशाला अगर कदवा किये गये खेत में तैयार करनी है तब उपचारित बीज को समतल कठोर सतह पर छाया में फैला दें तथा भींगे जूट की बोरियों से ढंक दें। बोरियों के ऊपर दिन में 2-3 बार पानी का छिड़काव करें। बीज 24 घंटे बाद अंकुरित हो जायेगा। फिर अंकुरित बीज को कदवा वाले खेत में बिखेर दें।
बुआई का समय
खरीफ मौसम की फसल के लिए जून माह के प्रथम सप्ताह से अन्तिम सप्ताह तक बीज की बोआई करें। गरमा मौसम में मध्य जनवरी से मध्य फरवरी तक बोआई करें।
पौधशाला की देखरेख
अंकुरित बीज की बोआई के 2-3 दिनों बाद पौधशाला में सिंचाई करें। इसके पश्चात आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें। पौधशाला को खरपतवारों से मुक्त रखें। बिचड़ों की लगभग 12-15 दिनों की बढ़वार के बाद पौधशाला में दानेदार कीटनाशी कार्बोफुरॉन– 3 जी, 250 ग्राम प्रति 100 वर्गमीटर की दर से डालें।
खेत की तैयारी
संकर धान की खेती सिंचित व असिंचित दोनों जमीन में की जा सकती है। पहली वर्षा के बाद मई में जुताई के समय तथा खेत में रोपाई के एक माह पूर्व, गोबर की सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। श्री विधि में 10 टन तक जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। नीम या करंज की खली 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के तीन सप्ताह पूर्व जुताई के समय खेत में बिखेर दें। रोपाई के 15 दिनों पूर्व खेत की सिंचाई एवं कदवा करें ताकि खरपतवार, सड़कर मिट्टी में मिल जायें। रोपाई के एक दिन पूर्व दुबारा कदवा करें तथा खेत को समतल कर रोपाई करें।
रोपाई
पौधशाला से बिचड़ो को उखाडने के बाद जड़ों को धोकर रोपाई से पूर्व बिचड़ो की जड़ों को क्लोरपायरीफॉस (Cholorpyriphos) कीटनाशी के घोल (1 मिली लीटर प्रति लीटर पानी) में पूरी रात (12 घंटे) डुबो कर उपचारित करें। रोपाई के लिए 15-20 दिनों की उम्र के बिचड़ों का प्रयोग करें। रोपाई पाटा लगाने के पश्चात समतल की गयी खेत की मिट्टी में 2 से 3 सेंटीमीटर छिछली गहराई में करें। यदि खेत में जल-जमाव हो तो रोपाई से पूर्व पानी को निकाल दें। रोपाई से पूर्व रासायनिक खाद का प्रयोग करें। कतारों एवं पौधों के बीच की दूरी क्रमश: 20 सेंटीमीटरx15 सेंटीमीटर रखते हुए एक स्थान पर केवल एक या दो बिचड़े की रोपाई करें। कतारों को उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर रखें।
रासायनिक उर्वरकों का उपयोग
संकर धान में नेत्रजन: स्फुर: पोटाश क्रमश: 150:75:90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। खेत में नेत्रजन की 1/4 मात्रा, स्फुर की पूरी एवं पोटाश की 3/4 मात्रा खेत से पानी निकालने के बाद डालें। नेत्रजन की शेष 3/4 मात्रा को तीन बराबर भागों में यूरिया द्वारा रोपाई के 3 व 6 सप्ताह बाद, एवं शेष बालियाँ निकलते समय डालें। पोटाश की बची हुई 1/4 मात्रा को भी बालियाँ निकलते समय खड़ी फसल में टॉपड्रेसिंग करें। स्फुर (सिंगल सुपर फॉस्पेट) के द्वारा प्रयोग करें जिससे सल्फर की कमी को दूर किया जा सके। डीएपी (DAP) के साथ 25 किलो प्रति हेक्टेयर सल्फर (जिप्सम) प्रयोग करें।
सिंचाई एवं निकाई-गुडाई
बिचड़ों की रोपाई के 5 दिनों बाद खेत की हल्की सिंचाई करें इसके बाद खेत में 5 सेंटीमीटर की ऊँचाई तक पानी दानों में दूध भरने के समय तक बनाये रखें। खाली स्थानों पर एवं मृत बिचड़ों की जगह पर रोपाई के 5 से 7 दिनों के अंदर पुन: बिचड़ो की रोपाई करें। खरपतवारों की निकाई-गुड़ाई रोपाई के 3 सप्ताह बाद, तथा दूसरी 6 सप्ताह बाद करें। लाईन में रोपी गयी फसल में खाद डालने के बाद रोटरी या कोनों वीडर का प्रयोग करें। यूरिया की टॉपड्रेसिंग करने से पहले निकाई गुड़ाई अवश्य करें।
कीट प्रबंधन
खेत में दानेदार कीटनाशी Carbofuran (Furadan) 3 जी (30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) या Phorate 10 जी ( 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) बिचड़ों की रोपाई के 3 सप्ताह बाद डाले। इसके पश्चात् मोनोक्रोओफॉस 36 ई.सी. (1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) या क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. (2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) का 15 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव करें ताकि फसल कीटों के आक्रमण से मुक्त रहें। एक हेक्टेयर में छिड़काव के लिए 500 लीटर जल की आवश्यकता पड़ती है। गंधी कीट के नियंत्रण के लिये इंडोसल्फॉन 4 प्रतिशत धूल या क्वीनालफॉस 1.5 प्रतिशत धूल की 25 किलोग्राम मात्रा का भुरकाव प्रति हेक्टेयर की दर से या मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. (1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें। उपरोक्त वर्णित दानेदार एवं तरल कीटनाशी के उपयोग से साँढ़ा (Gallmidge) एवं तना छेदक कीटों की भी रोकथाम होगी। पत्र लपेटक (Leaf folder) कीट की रोकथाम के लिए क्वीनालफॉस 25 ई.सी. (2 लीटर प्रति हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
रोग प्रबंधन
कवक-जनित झोंका (Blast) तथा भूरी चित्ती रोगों की रोकथाम के लिए या काब्रेन्डाजिम (वैविस्टीन 50 WP) 0.1 प्रतिशत या ट्राइसाय्क्लाजोल (0.06 प्रतिशत) का छिड़काव करें। फॉल्स स्मट (False Smut) रोग की रोकथाम के लिए बालियाँ निकलने से पूर्व प्रोपीकोनाजोल (Tilt) 0.1 प्रतिशत या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Blitox-50) 0.3 प्रतिशत का दो बार 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। पत्रावरण अंगमारी (Sheath Blight) रोग एवं जीवाणु- जनित रोगों के लिए खेत के पानी की निकासी करें। खेत में पोटाश की अतिरिक्त मात्रा (30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) टॉपड्रेसिग द्वारा डालें। नेत्रजन की बची किस्तों को बिलंब से डालें। सीथ ब्लाइट की रोकथाम के लिए हेक्साकोनाजोल (कोन्टाफ) 0.2 प्रतिशत या विलीडामाइसिन (Validamycin) का 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें।
फसल की कटाई, सुखाई एवं भंडारण:
बालियों के 80 प्रतिशत दाने जब पक जायें तब फसल की कटाई करें। कटाई के पश्चात् झड़ाई कर एवं दानों को अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करे।
1. शीघ्र रोपाई - 8-12 दिन वाले पौधे में जब दो छोटी पत्तियाँ हों (इसमें अधिक फैलने व बढ़ने की क्षमता), तभी इसकी रोपाई की जानी चाहिए।
2. सावधानी पूर्वक रोपाई - रोपाई में अभिघात को कम करें। धान के छोटे पौधे को नर्सरी से बीज, मिट्टी और जड़ सहित सावधानीपूर्वक उखाड़ कर कम गहराई पर उसकी रोपाई करें।
3. व्यापक दूरी - धान का पौधा समूह के बजाय अकेले में अधिक बढ़ता है। इसलिए इसे वर्गाकार रूप में 25x25 से.मी. की दूरी पर रोपा जाना चाहिए। इससे अधिक जड़ वृद्धि की संभावना होती है।
4. निराई और हवा की व्यवस्था - धान के फसल के लिए निराई और हवा अत्यंत आवश्यक होता है। धान के फूटने या पुष्पित होने तक कम से कम दो निराई आवश्यक (लेकिन 4 बार के निराई को उत्तम माना जाता है)। इसके लिए “चक्रीय कुदाली” का प्रयोग किया जा सकता है। पहली निराई रोपाई के 10 दिन बाद होनी चाहिए। घास की सफाई से धान के पौधों के जड़ों का अधिक विकास होता और पौधे को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीज़न एवं नाइट्रोज़न भी प्राप्त हो पाता है। दो निराई के बाद प्रत्येक अतिरिक्त निराई से 2 टन/हेक्टेयर की दर उत्पादन में वृद्धि संभव।
5. जल प्रबंधन - मिट्टी को आर्द्र बनाये रखने के लिए नियमित जल प्रयोग आवश्यक। लेकिन कभी-कभी पानी को सूखने भी दिया जाना चाहिए ताकि पौधों की जड़ में आसानी से हवा की आवाजाही हो सके।
6. खाद– खेत में रासायनिक खाद के स्थान पर या उसके अलावे खाद /एफवाईएम का उपयोग 10 टन/हेक्टेयर की दर से किया जाना चाहिए (बेहत्तर ऊर्वरा शक्ति एवं संतुलित पोषक तत्व से अधिक ऊपज संभव)।
श्री खेती में 8 से 12 दिन पुराने पौधों का पौधरोपण किया जाता है। इस वजह से इसमें जड़ों की वृद्धि भी बहुत अच्छी होती और यह 30 से 50 अतिरिक्त कोंपल देती है। खेती में जब उपरोक्त सभी 6 पद्धतियों का इस्तेमाल किया जाता है तो प्रत्येक पौधे से 50 से 100 कोंपल का विकास एवं उच्च उत्पादन की संभावना रहती है।
नर्सरी प्रबंधन
मुख्य खेत का निर्माण
रोपाई
सिंचाई और जल प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन
श्री से लाभ
हानियाँ
यह प्रणाली, चावल तीव्रीकरण पद्धति या श्री (System of Rice Intensification) की समझ एवं पद्धतियों के उपयोग से इस तरह विकसित की गई है कि यह कावेरी डेल्टा क्षेत्र की स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल हों।
रोपणकी श्री पद्धतिके बारे मेंकिसानों की चिंता: जब कम समय के बीज, श्री रोपण पद्धति की तरह रोपे जाते हैं तो तेज़ धूप एवं लगातार हवा की वज़ह सूख जाते हैं।
किसानों कीसमस्या कासंभावित हल : पहले दो हफ्तों में कम समय वाले अंकुरित बीज को पांच के गुच्छों में नर्सरी के बाहर रोपने से उन्हे धूप एवं हवा से कुछ बचाव मिलता है। दो हफ्तों बाद उन्हे अकेले पुनः रोपने से वे अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं एवं बिना नष्ट हुए तेज़ी से बढने में समर्थ होते हैं।
पद्धतिकी खामियाँ: दूसरी रोपाई के लिए अतिरिक्त श्रमिकों की आवश्यकता होती है। लेकिन किसान महसूस करते हैं कि बढ़ी हुई पैदावार, श्रमिकों पर अतिरिक्त व्यय की भरपाई कर देगी।
परिणाम: इस प्रणाली में मिली पैदावार औसतन 7.5 टन प्रति हेक्टेयर थी।
प्रणाली में प्रयुक्त तकनीक
नर्सरी की तैयारी
रोपाई
पहली रोपाई
दूसरी रोपाई
दूसरी रोपाई के लाभ
खरपतवार का प्रबन्ध:
दूसरी रोपाई के बाद दसवें दिन, पौधों की पंक्तियों के सहारे एवं लम्बवत दिशा में एक कोनो-वीडर, दोनों दिशाओं में 3 से 4 बार ठेलते हुए चलाया जाता है। इससे प्रति हेक्टेयर, 10 श्रम दिवस की बचत होती है क्योंकि एक बार का खरपतवार उन्मूलन पर्याप्त होता है।
सिंचाई
एक बार मिट्टी सूखे, उसके बाद ही सिंचाई करें ताकि वह नम रहे लेकिन अधिक गीली न हो। इससे सिंचाई के लिए आवश्यक जल में 500 मिमी की कमी होती है।
उर्वरक का उपयोग
तमिलनाडु राज्य के कावेरी डेल्टा ज़ोन के श्री एस. गोपाल द्वारा विकसित एवं गांव में प्रचलित
ध्यान दें: यह जानकारी कदिरमंगलम गांव के राजेश कुमार एवं सौरवनायक द्वारा दी गई, जो कृषि प्रसार कार्मिक हैं। उन्होंने यह भी प्रमाणित किया है कि चावल के इस गहनीकरण पद्धति का परीक्षण श्री गोपाल (बी.एस.सी. स्नातक) द्वारा किया गया जो तमिलनाडु के कावेरी डेल्टा क्षेत्र केलिए अनुकूल है।
आंध्र प्रदेश किसान श्री गुल्लानी महेश
श्री गुल्लानी महेश |
उम्र : 22 वर्ष |
संपर्क : श्री मधु बाबू, डीएएटीटीसी, नलगोंडा, आंध्र प्रदेश, फोन : 9889623715 |
धान की खेती
गुल्लानी महेश के पास खेती योग्य चार एकड़ जमीन है। इसमें से तीन एकड़ में वह धान उपजाते हैं। पानी के लिए उनका स्रोत बोरवेल है। वह प्रति एकड़ 75 किलोग्राम डीएपी, 75 किलोग्राम यूरिया और 25 किलोग्राम एमओपी डालते हैं। बाढ़ के तरीके का उपयोग कर वह 2.2 टन प्रति एकड़ की उपज हासिल करते हैं।
एसआरआइ अपनाना
उन्हें एसआरआइ के बारे में कृषि विभाग, समाचार पत्र और इटीवी से जानकारी मिली। उन्होंने 2006 के खरीफ मौसम में स्थानीय कृषि पदाधिकारी के निर्देशन में एसआरआइ को अपनाया। आरंभ में उन्होंने एक एकड़ में एसआरआइ को अपनाया। उन्होंने आइआर-64, एमटीयू-1010 और एमटीयू-1081 जैसी किस्मों का उपयोग किया। उन्होंने डीएपी (20 किलोग्राम), वर्मीकंपोस्ट (सात क्विंटल प्रति एकड़), अजोल्ला (चार टन), पंच गव्य (रोपने के 15 दिन बाद से पौधों में फूल आने तक 15 दिन में एक बार) जैसे अवयव का उपयोग किया। बीजों का उपचार कार्बनडेजिम और जिंक सल्फेट छिड़काव (0.2 प्रतिशत) से भी किया गया। इस किसान ने निकाई-गुड़ाई के लिए कोनोवीडर का उपयोग किया। उसे प्रति एकड़ 2.8 टन की उपज हासिल हुई।
खोज और सुधार
एफवाइएम के उपयोग के तुरंत बाद पंक्तियों के बीच में वीडर का संचालन किया गया, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो गयी और उसके जमने का प्रभाव कम हो गया। उन्होंने पुनर्रोपण के लिए मार्कर के बदले रस्सी का उपयोग किया।
लाभ और सीखे गये पाठ
लाभ |
सीखे गये पाठ |
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तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
खेती की लागत (एक एकड़) (रुपये) |
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पारंपरिक तरीका |
एसआरआइ तरीका |
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अवयव और संचालन |
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जुताई |
1,800 |
1,800 |
बीज |
400 |
50 |
पुनर्रोपण |
1,000 |
800 |
निकाई-गुड़ाई |
1,200 |
500 |
पौधा संरक्षण रसायन |
800 |
400 |
कटाई और कुटाई |
2,000 |
2,000 |
कुल |
7,200 |
5,550 |
उपज और आय |
|
|
उपज (टन प्रति एकड़) |
2.24 |
2.80 |
सकल आय 930- रुपये प्रति क्विंटल की दर से |
20,832 |
26,040 |
शुद्ध आय |
13,632 |
20,490 |
सुझाव
असम किसान श्री अनिल चांगमई
अनिल चांगमई |
उम्र : 42 वर्ष |
संपर्क : डॉ प्रदीप कुमार बोरा, वैज्ञानिक (अभियांत्रिकी), कृषि अभियंत्रण विभाग, असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट-13, असम फोन : 9435361070 |
धान की खेती
उनकी कुल छह एकड़ जमीन में से 3.7 एकड़ धान के खेत हैं। वह वर्षा आधारित कृषि करते हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने रबी फसलों की पूरक सिंचाई के लिए जल संचयन ढांचा बनाया है। चावल की उनकी फसल अब भी वर्षा आधारित ही है, लेकिन अनुकूल भौगोलिक स्थिति के कारण वह बारिश के मौसम में वर्षा जल का आसानी से विनियंत्रण कर सकते हैं। वह निम्नलिखित अवयव का इस्तेमाल करते हैं : एफवाइएम, यूरिया, एसएसपी और म्यूरेट ऑफ पोटाश। वह 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ (पारंपरिक किस्म) और 12-16 क्विंटल प्रति एकड़ (एचवाइवी) उपज प्राप्त करते थे।
एसआरआइ को अपनाना
अनिल चांगमई को श्री (एसआरआइ) के बारे में बताया गया और असम कृषि विश्वविद्यालय के डॉ प्रदीप कुमार बोरा द्वारा श्री (एसआरआइ) पर क्षेत्रीय भाषा में लिखा गया लेख दिया गया। उन्होंने डॉ मोहन शर्मा और डॉ प्रदीप कुमार बोरा द्वारा रेडियो पर श्री के बारे में संवाद को भी सुना। उन्होंने पतझड़ के मौसम में खुद से श्री का परीक्षण किया। इसके लिए उन्होंने सीवी लचित नामक किस्म का चयन किया, लेकिन पौधशाला के उचित प्रबंधन के अभाव के कारण वह प्रयास विफल हो गया। उनके असफल अनुभव के बाद डॉ बोरा ने उन्हें संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया। खरीफ 2008 के दौरान उन्होंने सीवी रंजीत किस्म से श्री तरीका अपनाया और बारिश आधारित स्थितियों में अपने मध्यम खेत में, जहां 0.6 टन प्रति एकड़ से अधिक उत्पादन नहीं होता था, पानी का समुचित नियंत्रण किया। जब उन्होंने 10 दिन के पौधों को 30 सेंटीमीटर गुणा 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पुनर्रोपण किया, उनके खेत के बगल से गुजरनेवाले ग्रामीणों ने उनकी खिल्ली उड़ायी और यहां तक कहा कि वह पागल हो गये हैं। उन्होंने 1.5 बीघा (करीब 0.48 एकड़) जमीन में श्री तकनीक अपनायी। फसल अब पकने के चरण में है और उन्होंने 32 से 55 तक की संख्या में पौधों की शाखाएं खोज निकाली हैं। उन्होंने रंजीत किस्म की पारंपरिक खेती भी श्री खेत के पास की है, जहां शाखाओं की संख्या 20 से अधिक नहीं हुई है। अब वह हर किसी को बड़े गर्व से अपना श्री खेत दिखाते हैं। हाल ही में चार गांवों के किसान एक धार्मिक समारोह के दौरान उनके खेत में आये। उन्होंने पाया कि श्री फसल पारंपरिक फसल से जल्दी पक गयी है (बीज के दोनों सेट एक ही दिन बोये गये थे)। श्री तरीके में उन्होंने किसी विशेष उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने असम सरकार के कृषि विभाग से जापानी वीडर हासिल किया, जिसका उपयोग खर-पतवार के नियंत्रण के लिए किया गया।
खोज और सुधार
उन्होंने कुछ श्री भूखंडों में 12 दिन के पौधों का पुनर्रोपण 35 गुणा 30 सेंटीमीटर से 35 गुणा 40 सेंटीमीटर की दूरी पर किया। लेकिन उन्हें शाखाओं की संख्या के मामले में कोई लाभ नहीं मिला, बल्कि उन्होंने पाया कि ये भूखंड खर-पतवार से भर गये हैं। 25 गुणा 25 सेंटीमीटर की दूरी के भूखंड में अधिक उपज का अनुमान है, क्योंकि प्रति इकाई क्षेत्र में प्रभावी शाखाओं की संख्या अधिक है।
लाभ
ग्रामीण कहते हैं कि उन्होंने उस खेत में इतनी स्वस्थ फसल पहले कभी नहीं देखी। मध्यम जमीन पर केवल खेत ही नहीं, बाढ़ जैसी स्थिति (पारंपरिक तरीका) की अनुपस्थिति के कारण फसल इतनी अच्छी कभी नहीं थी। पूरा गांव मध्यम जमीन पर स्थित है और चावल की उत्पादकता आमतौर पर काफी कम (6-7 क्विंटल प्रति एकड़) होती रही है। अब किसान श्री के बारे में बातचीत करने लगे हैं और आनेवाले वर्षों में अनिल चांगमई की नकल करने की योजना बनाने लगे हैं।
अपनाने में कठिनाइयां
चांगमई ने पुनर्रोपण और निकाई-गुड़ाई में कठिनाइयों की सूचना दी। डॉ बोरा जब चांगमई के श्री खेत में उनके पुत्र को एक ऐसा पाठ सिखाने गये, जिसके कारण महिलाओं को दिक्कत होती है, तो उनकी मां ने उन्हें बुरी तरह फटकारा, हालांकि बाद में उन्होंने इस खराब जमीन पर इतनी अच्छी फसल के लिए संतोष भी व्यक्त किया। चांगमई ने खर-पतवार नियंत्रण के लिए जापानी वीडर का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने इसे अधिक खर-पतवार वाले भूखंडों के लिए निष्प्रभावी बताया। उन्होंने दो भूखंडों में तीसरी बार निकाई-गुड़ाई नहीं की।
तुलनात्मक अध्ययन
संचालन |
पारंपरिक तरीका |
एसआरआइ तरीका |
पौधशाला |
पौधशाला में कम एफवाइएम दिया गया, बीज दर 120-150 ग्राम प्रति वर्ग मीटर |
अधिक एफवाइएम दिया गया, बीज दर 20 ग्राम प्रति वर्ग मीटर, अन्य रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया गया |
पौधों को उखाड़ना |
30-35 दिन के बाद पौधों को जोर लगाकर उखाड़ना, जड़ों की धुलाई, बांधना, गट्ठरों में ले जाना |
बुआई के 10-12 दिन बाद मिट्टी और बीज समेत उखाड़ना, टोकरियों में ले जाना |
पुनर्रोपण |
खेत में बाढ़ की अनुमति, जब पानी की कमी हो, फिर से सिंचाई की गयी |
पूरे मौसम के दौरान कभी भी पानी की अधिकता की अनुमति नहीं दी गयी, खेत को सूखने नहीं दिया गया |
जल प्रबंधन |
खेत में बाढ़ की अनुमति, जब पानी की कमी हो, फिर से सिंचाई की गयी |
पूरे मौसम के दौरान कभी भी पानी की अधिकता की अनुमति नहीं दी गयी, खेत को सूखने नहीं दिया गया |
निकाई-गुड़ाई |
निकाई-गुड़ाई नहीं की गयी |
पुनर्रोपण के 12 दिन बाद 10-15 दिन के अंतराल पर तीन बार निकाई-गुड़ाई की गयी |
छत्तीसगढ़ किसान श्री अमर सिंह पटेल
श्री अमर सिंह पटेल |
उम्र : 52 वर्ष |
संपर्क : श्री जैकब नेल्लीथानम, समन्वयक, रिचारिया कैंपेन, बी-3, पारिजात कॉलोनी, नेहरू नगर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़-485001, फोन: 9425560950 |
धान की खेती
वह मुख्य रूप से चावल उपजानेवाले किसान हैं, लेकिन जाड़े और गर्मियों में सबियां भी उगाते हैं। उनके पास धान की खेती करने योग्य करीब चार एकड़ खेत है, जिसमें करीब एक एकड़ जमीन नदी के किनारे की बलुआही है। इसकी सिंचाई एक छिछले कुएं से होती है। शेष जमीन असिंचित है। एक अच्छे वर्ष में वह सिंचाई करने के बाद 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ चावल उपजा लेते हैं। वह उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग करते हैं और नियमित रूप से खेतों के कचरों का ही उपयोग करते हैं।
एसआरआइ को अपनाना
उन्हें जन स्वास्थ्य सहयोग (जेएसएस), बिलासपुर के कार्बनिक खेती कार्यक्रम द्वारा 2006 में ग्रामीण बैठकों के दौरान एसआरआइ तरीके से परिचय कराया गया। लेकिन जेएसएस से बीज लेने के बाद वह परीक्षण से बचते रहे। गांव के दो किसानों द्वारा परीक्षण के उत्साहजनक परिणाम मिलने के बाद उन्होंने 2007 में 0.12 एकड़ की अपनी जमीन पर पहला परीक्षण किया। उन्होंने डीआरके नामक उत्तम किस्म का परीक्षण करने का फैसला किया। जेएसएस के खेती कार्यक्रम से प्रशिक्षित और परामर्श लेकर वह एसआरआइ तरीके का पूरी तरह पालन करने में सक्षम हुए। दो बार निकाई-गुड़ाई की गयी। निकाई करनेवाला रोटेरी वीडर जेएसएस ने उपलब्ध कराया। निकाई-गुड़ाई थोड़ी देर से हुई, केवल दो बार मशीन से और एक बार हाथों से। जमीन का समतलीकरण नहीं किये जाने के कारण फसल असमान थी। इसके बावजूद उत्पादन बहुत अच्छा रहा, करीब पांच बोरियां, जो लगभग 3.5 क्विंटल था। धान तैयार करने की मजदूरी कुल वजन का छठा हिस्सा होता है। इस तरह अनुमानित उत्पादन 3.2-3.5 टन प्रति एकड़ हुआ। खाद के रूप में केवल खेत के कचरे का ही इस्तेमाल किया गया और कोई कीटनाशक का उपयोग भी नहीं हुआ। 2008 के खरीफ मौसम में अलग-अलग भूखंडों में अलग-अलग समय पर करीब एक एकड़ में एसआरइ के तहत पौधे लगाये गये। 0.3 एकड़ के पहले भूखंड में समय पर पौधे लगाये गये और समय पर निकाई-गुड़ाई भी की गयी। कुछ भूखंडों में, जिनमें देर से पौधे लगाये गये थे, अच्छा नहीं कर सके। खड़ी फसल को देख कर अनुमान लगाया गया कि 0.3 एकड़ के सर्वश्रेष्ठ भूखंड में उत्पादन 3.5- 4 टन प्रति एकड़ हो सकता है। वर्षा सिंचित भूखंड, जिनमें देर से पौधे लगाये गये थे, में फसल में कम बारिश के कारण बड़ी मात्रा में कीड़े लग गये। एसआरआइ के तहत धान की उनकी औसत फसल 2.5 टन प्रति एकड़ है।
लाभ
सीखे गये पाठ
पौधे के पुनर्रोपण और निकाई-गुड़ाई का नया तरीका सीखा।
अपनाने में मुश्किलें
फसल असमान थी, क्योंकि जमीन को पूरी तरह समतल नहीं किया गया।
गुजरात किसान श्री गिरिश मानसीराव चौधरी
श्री गिरिश मानसीराव चौधरी |
आयु : 28 वर्ष |
संपर्क :श्री सचिन पटवर्द्धन, बीएआइएफ विकास अनुसंधान फाउंडेशन, ध्रुव-बीएआइएफ, लच्छाकाडी, गुजरात फोन : 9780869646 |
धान की खेती
गिरिश के पास सात एकड़ जमीन है। इसमें से एक एकड़ जमीन पर वह धान की खेती करते हैं। वह हाइब्रिड और उन्नत किस्म के बीज का उपयोग करते हैं और पारंपरिक तरीका अपनाते हैं। उन्हें प्रति एकड़ 15 क्विंटल की उपज प्राप्त होती है।
एसआरआइ को अपनाना
उन्हें एसआरआइ की जानकारी ध्रुव (डीएचआरयूवीए) से मिली, जो बीएआइएफ विकास अनुसंधान फाउंडेशन का सहयोगी है। उसने उन्हें एसआरआइ का प्रशिक्षण और खेत के स्तर का मार्ग-निर्देशन उपलब्ध कराया। उन्होंने इसका उपयोग एक मौसम में, 2007 के मानसून में, किया। उन्होंने पारंपरिक उपकरणों, मसलन लकड़ी के हल का उपयोग कर खेत की जुताई की और पौधों का पुनर्रोपण हाथों से किया। उनके द्वारा निम्नलिखित एसआरआइ तकनीक अपनायी गयी-
उन्होंने सुरुचि हाइब्रिड का उपयोग किया। पौधों में तना छेदक और पौधा कीट जैसे कीट और पत्ते का पीलापन जैसी बीमारियां देखी गयीं, लेकिन वे केवल कुछ समय के लिए रहीं। कोई बड़ा हमला नहीं हुआ। इसलिए पौधा संरक्षण के लिए किसी रसायन का उपयोग नहीं किया गया। फसल में प्राकृतिक घटनाएं, मसलन ब्लिस्टर बीटल्स और लेडीबर्ड बीटल्स हुईं, जिन्होंने पौधा कीट और अन्य छोटे कीटों का सफाया कर दिया।
खोज और सुधार
गिरिश के पास पंप, डीजल इंजन और पाइप लाइन की सुविधा है। पानी के संकट के समय में उन्होंने अनाज भरने की अवधि के दौरान एसआरआइ भूखंड में संकटकालीन सिंचाई की। इससे उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई और यह 38 क्विंटल प्रति एकड़ हो गयी। एसआरआइ तरीके का अधिकतम लाभ उठाने के लिए वर्षा आधारित ऊंचे खेत में, जहां एसआरआइ तरीका अपनाया गया है, इस तरह की संकटकालीन सिंचाई बहुत जरूरी है, ताकि जब फसल पानी की कमी महसूस करें, उसकी जरूरत पूरी की जा सके।
लाभ
उत्पादन में वृध्दि और बीज की आवश्यकता में कमी।
अपनाने में कठिनाइयां
पहले साल, जब बर्मी कम्पोस्ट के साथ-साथ एसआरआइ तरीका प्रोत्साहित किया जा रहा था, किसानों ने इसे अधिक समय लेनेवाला महसूस किया। उन्होंने यह भी महसूस किया कि परिवार के सदस्यों के स्तर पर, जो सदस्य चावल की फसल के विभिन्न चरणों से जुड़े हैं, भी कुशलता की जरूरत होगी।
सीखे गये पाठ
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारंपरिक तरीका |
एसआरआइ तरीका |
बीज के खेत |
हल्के ढलान वाली जमीन पर समतल सतह तैयार की जाती है, जहां कुछ सूखे जैव अपशिष्ट जलाये जाते हैं। |
चावल के पौधे उगाने के लिए ऊंचे उठाये गये खेत का उपयोग होता है। |
जैव खाद और उर्वरक |
अल्प या न के बराबर जैव खाद और उर्वरक का उपयोग |
बुआई के समय दो टन प्रति एकड़ की दर से बर्मीकम्पोस्ट का उपयोग। जैव खाद का उपयोग भी सुनिश्चित किया गया। |
रोपने के लिए पौधों की आयु |
25-30 दिन |
12-15 days |
12 से 15 दिन |
4-6 |
1 |
प्रति टीला पौधों की संख्या |
15 गुणा 15 वर्ग सेंटीमीटर |
25 गुणा 25 वर्ग सेंटीमीटर |
पुनर्रोपण के दौरान अन्य सावधानियां |
जड़ों के पास लगे कीचड़ को धो दिया जाता है, पुनर्रोपण गहरा किया जाता है |
जड़ों के पास लगे कीचड़ को उसी तरह छोड़ा जाता है, छिछला पुनर्रोपण किया जाता है |
निकाई-गुड़ाई |
अत्यंत कम या नहीं के बराबर निकाई-गुड़ाई |
रोटरी वीडर की अनुपस्थिति के कारण दो बार निकाई-गुड़ाई की गयी (पहली बार पुनर्रोपण के 15 दिन बाद और दूसरी बार पुनर्रोपण के 40 दिन बाद) |
उपज |
||
पौधों की ऊंचाई (सेंमी) |
84 |
90 |
प्रति वर्ग मीटर में पौधों की संख्या |
32 |
16 |
प्रति पौधे में बीज की संख्या |
12 |
17 |
प्रति पौधे में शीश की संख्या |
08 |
13 |
प्रत्येक शीश में बीज की संख्या |
102 |
144 |
अनाज उत्पादन (क्विंटल प्रति एकड़) |
11.8 |
21.5 |
सुझाव
हिमाचल प्रदेश किसान श्री चमरू राम
श्री चमरू राम |
उम्र : 65 वर्ष |
संपर्क : श्री देवाशीष, निदेशक (केलोनिवि) लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून, उत्तराखंड फोन : 9787080579 |
धान की खेती
उनकी कृषि योग्य कुल भूमि 20 करनाल, अर्थात् दो एकड़ है (एक करनाल= 400 वर्ग मीटर)। इसमें से 8 करनाल, अर्थात 0.8 एकड़ धान के खेत हैं। वह बारिश और कुहल (सिंचाई नहर) का उपयोग पानी के दोहरे स्रोत के रूप में करते हैं। वह अवयव के रूप में जैव कंपोस्ट (पंचगव्य, अमृतघोल और मटका खाद) तथा रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं। बाढ़ के तरीके से उन्हें 90 किलोग्राम प्रति करनाल (नौ क्विंटल प्रति एकड़) की उपज मिलती है।
श्री को अपनाना
चमरू राम को श्री की जानकारी हिमाचल प्रदेश के खुंदियां स्थित पर्यावरण एवं ग्रामीण जागरूकता सोसाइटी (इरा) से मिली। इरा देहरादून के लोक विज्ञान संस्थान (पीएसआइ) का सहयोगी संगठन है। उन्होंने 2006 में श्री को अपनाया और उन्हें पीएसआइ तथा इरा से प्रशिक्षण तथा निर्देशन मिला।
विवरण |
2006 |
2007 |
2008 |
श्री के अधीन क्षेत्र |
0.5 करनाल (0.05 एकड़) |
4.0 करनाल (0.4 एकड़) |
8 करनाल (0.8 एकड़) |
मौसम |
खरीफ |
खरीफ |
खरीफ |
किस्म |
परमल |
परमल |
परमल |
उपयोग किये गये अवयव |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद |
अपनाये गये तरीके |
दो बार वीडर का उपयोग किया गया |
तीन बार वीडर का उपयोग किया गया |
तीन बार वीडर का उपयोग किया गया |
उपयोग किये गये उपकरण, उनकी उपलब्धता और उपयोगिता |
पीएसआइ द्वारा उपलब्ध कराये गये वीडर और मार्कर |
इरा द्वारा उपलब्ध कराये गये वीडर और मार्कर |
इरा द्वारा उपलब्ध कराये गये वीडर और मार्कर |
उपज |
110 किलोग्राम प्रति करनाल (11 क्विंटल प्रति एकड़) |
160 किलोग्राम प्रति करनाल (16 क्विंटल प्रति एकड़) |
180 किलोग्राम प्रति करनाल (18 क्विंटल प्रति एकड़) |
लाभ
अपनाने में कठिनाइयां
सीखे गये पाठ
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारंपरिक तरीका |
श्री तरीका |
संचालन |
||
पौधशाला |
खेत के स्तर पर |
ऊंची की गयी पौधशाला |
खेत की तैयारी |
मार्कर का इस्तेमाल नहीं |
मार्कर का इस्तेमाल किया गया |
पुनर्रोपण |
दूरी तय नहीं |
10 इंच गुणा 10 इंच (10 दिन पुराने पौधों का पुनर्रोपण किया गया) |
निकाई-गुड़ाई |
मानवीय |
मांडवा वीडर- तीन बार |
पानी का प्रबंधन |
बारिश से सिंचाई |
एक इंच पानी, शेष को बहाया गया |
उर्वरक खाद |
यूरिया और एफवाइएम |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद, वर्मी कंपोस्ट |
उपज और आय |
||
टीलों कतारों की कुल संख्या |
6 |
17 |
पौधों की औसत ऊंचाई (सेंटीमीटर) |
75 |
120 |
उत्पादक कतार टीले |
4 |
15 |
शीश की औसत ऊंचाई (सेंटीमीटर) |
21 |
23 |
प्रति पौधा अनाज की औसत संख्या |
1,000 |
2,400 |
कुल अनाज उत्पादन |
90 किलोग्राम प्रति करनाल (8 क्विंटल प्रति एकड़) |
180 किलोग्राम प्रति करनाल (17 क्विंटल प्रति एकड़) |
कुल पुआल उत्पादन |
175 किलोग्राम प्रति करनाल (16.5 क्विंटल प्रति एकड़) |
278 किलोग्राम प्रति करनाल (26.7 क्विंटल प्रति एकड़) |
खेती का कुल खर्च |
550 रुपये प्रति करनाल (5,500 रुपये प्रति एकड़) |
500 रुपये प्रति करनाल (5,000 रुपये प्रति एकड़) |
शुद्ध अर्जित आय |
525 रुपये प्रति करनाल (5,250 रुपये प्रति एकड़) |
1200 रुपये प्रति करनाल (12,000 रुपये प्रति एकड़) |
सुझाव
* मार्किंग की सस्ती तकनीक को अपनाना
निकाई-गुड़ाई के अधिक सत्र से अधिक उपज मिल सकती है
उपकरणों (मार्कर और वीडर) की उपलब्धता निकटवर्ती क्षेत्रों में सस्ते दाम पर होनी चाहिए।
प्रत्येक सांस्कृतिक संचालन का समय उचित होना चाहिए
जम्मू और कश्मीर किसान श्री भारत भूषण
श्री भारत भूषण |
उम्र : 30 साल |
संपर्क : डॉ अनुराधा साहा, सहायक प्राध्यापक, कनीय वैज्ञानिक एआइसीआरआइपी, चावल, पीबीजी डिवीजन, मुख्य परिसर, एसकेयूएएसटी-जे. चाथा, जम्मू फोन : 9419235784 |
धान की खेती
भारत भूषण के पास 0.62 एकड़ कृषि योग्य जमीन है और वह पूरी जमीन का उपयोग धान उपजाने में करते हैं। वह सिंचाई के लिए नहर के पानी, कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध बीज और निजी वितरकों से प्राप्त उर्वरकों का उपयोग करते हैं। पहले उनकी उपज 18 क्विंटल प्रति एकड़ (सामान्य किस्म) और 10 क्विंटल प्रति एकड़ (बासमती) थी।
एसआरआइ को अपनाना
उन्हें एसआरआइ के बारे में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-आइसीआरआइएसएटी हैदाराबाद द्वारा वित्त प्रदत्त एसआरआइ पर एसकेयूएएसटी-जे परियोजना से जानकारी मिली और उन्हें सुश्री अनुराधा साहा और डॉ विजय भारती ने प्रशिक्षण तथा तकनीकी निर्देशन दिया। उन्होंने 2007 के खरीफ के मौसम में अपनी पूरी 0.62 एकड़ जमीन पर पहली बार एसआरआइ तकनीक का इस्तेमाल किया। फिर दूसरी बार 2008 के खरीफ के मौसम में उसे दोहराया। उन्होंने निम्नलिखित किस्में उपजायीं: शरबती, पीसी-18। इसमें उन्होंने निम्नलिखित अवयव का उपयोग किया: बीज (3.2 किलोग्राम प्रति एकड़), रासायनिक उर्वरक (यूरिया. डीएपी, एमओपी)। कोई कीट या बीमारी का आक्रमण नहीं हुआ और उपज 22 क्विंटल प्रति एकड़ (शरबती), 30 क्विंटल प्रति एकड़ (पीसी-18) हुई।
उन्होंने एएनजीआरएयू हैदराबाद से एक कोनोवीडर खरीदा, जिसके लिए उन्हें डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-आइसीआरआइएसएटी हैदाराबाद से राशि मिली। उन्होंने एसआरआइ के निम्नलिखित तरीके अपनाये:
खोज और सुधार
बीज दर को 3.2 किलोग्राम प्रति एकड़ पर स्थिर किया गया।
लाभ
अपनाने में कठिनाइयां
सीखे गये पाठ
कोनोवीडर से निकाई-गुड़ाई और पानी का कम उपयोग
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारंपरिक तरीका |
एसआरआइ तरीका |
संचालन |
||
पौधशाला |
प्रसारण |
ऊंचा सतह |
प्रबंधन |
बाढ़ जैसी सिंचाई, घास-फूस, कीट और बीमारियों पर रसायनों द्वारा नियंत्रण |
न्यूनतम सिंचाई, रसायनों को उपयोग नहीं और वीडरों का उपयोग |
उपज और आय |
||
प्रभावी शीशों की संख्या |
||
शरबती किस्म |
7-8 |
15-20 |
पीसी-19 किस्म |
10-12 |
20-25 |
प्रति शीश में अनाज की संख्या |
||
शरबती किस्म |
130 |
145 |
पीसी-19 किस्म |
110 |
140 |
1000 अनाज का वजन (ग्राम) |
||
शरबती किस्म |
18 |
20 |
पीसी-19 किस्म |
21 |
22 |
झारखंड किसान श्री जनेश्वर सिंह
श्री जनेश्वर सिंह |
आयु- 55 वर्ष |
सम्पर्क : श्री मनोज कुमार सिंह, विकास सहयोग केन्द्र, छतरपुर, पलामू, झारखंड. फोन: 9431715087 |
|
जनेश्वर सिंह अपने खेत में विभिन्न एस आर आय गतिविधियों में |
धान की खेती
कृषक सिंह के पास नौ एकड का एक खेत है, जिसमें से 2.5 एकड तक की ज़मीन धान के लिए है। वे अपने पिता, भीमेश्वर सिंह द्वारा दिए गए ज्ञान का उपयोग कर खेती करते हैं, एवं लगभग 10 क्विंटल/एकड की उपज लेते हैं। पलामू एक अनावृष्टि युक्त क्षेत्र है तथा वे सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर करते हैं।
श्री का अंगीकरण
अपनी उपज में वृद्धि को आतुर, उन्होंने 26 जून 2006 को कोकरो गांव में विकास सहयोग केन्द्र, छतरपुर द्वारा आयोजित श्री पद्धति से धान की खेती के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया जहां अन्य कई गांवों से भी किसान आए थे। उन्होंने आधा किलो बीज के उपयोग से नर्सरी लगाई। कुछ बीज उनकी मुर्गियों द्वारा खा लिए गए थे, लेकिन उन्होंने सावधानीपूर्वक बची हुई 0.12 एकड ज़मीन में बुवाई की एवं एक क्विंटल खाद डाली। विकास सहयोग केन्द्र के स्टाफ के देखरेख में उन्होंने निम्नलिखित चिह्निकरण प्रणाली से बीच रोपे। बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि पारम्परिक पद्धति की तुलना में उनकी उपज दुगुनी हो गई थी। उसी प्रकार उनकी श्री धान एक स्थानीय बीमारी ‘बंकी’ से बच गई थी।
लाभ
अपनाने में रुकावटें
अनुभव से प्राप्त सीखें
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारम्परिक विधि |
श्री विधि |
बीज-दर (2000 वर्ग फीट) |
2 किलोग्राम |
200 ग्राम |
बीज की चादर का आकार |
10’x10’ |
3’x4’ |
10’ x 10’ क्षेत्र में अंकुरों की संख्या |
448 |
182 |
प्रति अंकुरण खेतिहरों की संख्या |
6 |
25 |
प्रति पुष्प-गुच्छ दानों की संख्या |
184 |
296 |
प्रत्यारोपण के लिए मज़दूरों की संख्या (2000 स्क्वे.फीट) |
2 मज़दूर 1 दिन के लिए |
2 मज़दूर 2 घण्टों के लिए |
केरल किसान श्री ए. शशीधरन पिल्लै
श्री ए. शशिधरन पिल्लै |
आयु : 53 |
संपर्क : श्री जॉन जो वर्गीस, विषय वस्तु विशेषज्ञ (कृषि-विज्ञान), मित्र निकेतन, कृषि विज्ञान केन्द्र, थिरुवनंथपुरम, फोन: 9447010474 |
|
गणमान्य व्यक्तियों के साथ श्री शशिधरन उनके धान के खेत में |
धान की खेती
उनके पास कृषि योग्य 6 एकड भूमि है जिसमें से 3.5 एकड में धान उगाया जाता है। उनकी ज़मीन सिंचाई सुविधायुक्त है, जहां वे हरी पत्ती की खाद, अन्य खादों, पौधा-रक्षक रसायनों का उपयोग करते हैं। उन्हें फ्लडिंग पद्धति द्वारा 3-3.5 टन प्रति एकड़ उपज मिलती है।
श्री का अंगीकरण
उन्होंने 2003 में कृषि विभाग द्वारा कज़ाक्कुट्टोम क्षेत्रीय कृषि प्रशिक्षण केन्द्र में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। प्रशिक्षण कार्यक्रम श्री जॉन जो वर्गीस, विषयवस्तु विशेषज्ञ (कृषि-विज्ञान), मित्र निकेतन कृषि विज्ञान केन्द्र, थिरुवनंथपुरम द्वारा संचालित किया गया। व्याख्यान के बाद, वे खेती की नई पद्धति से बहुत प्रेरित हुए एवं रबी, 2003 के दौरान अपने धान के खेत के एक एकड़ में प्रायोगिक तौर पर श्री का प्रयास किया। उन्होंने समस्त 6 एकड में श्री अपना लिया है एवं पिछले 9 मौसमों से उसका अनुपालन कर रहे हैं। उन्होंने उमा, जया, हर्षा, पविज़ोम, एमटीयू-1, ऐस्वर्या आदि जैसी किस्मों का उपयोग किया।
श्री के अंतर्गत सभी पद्धतियों का पालन किया गया, सिवाय पौधों की वृद्धि के चरण के दौरान पानी पर कड़ाई से नियंत्रण के, क्योंकि उनकी ज़मीन पर पानी को आसानी से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। उन्होंने मित्रनिकेतन कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा प्रदत्त रोटरी मार्कर एवं रोटरी वीडर जैसे उपकरणों का उपयोग किया।
कीट प्रकोप के सन्दर्भ में, वह उनके श्री खेत में तुलनात्मक रूप से कम था। पौधों के बीच में छोड़ी गई जगह से मॉनिटरिंग सम्भव हुई, जिससे लीफ फोल्डर्स के प्रबन्ध में मदद मिली। स्यूडोमोनस फ्लुऑरेसेंस, एक कारगर बायो नियंत्रक का उपयोग बीज के उपचार, नर्सरी तथा खेत में भी किया गया था। इसकी वज़ह से फफून्द एवं बैक्टीरिया से सम्बन्धित बीमारियों को नियंत्रित किया जा सका। स्यूडोमोनस फ्लुऑरेसेंस को अपनाना आसान था, क्योंकि श्री में कम बीजों, कम नर्सरी क्षेत्र की आवश्यकता थी तथा पौधों के बीच छिड़काव के लिए पर्याप्त जगह थी।
श्री खेतों में 6 एकड़ से 6.5-7.5 टन उपज प्राप्त हुई, जो कि पारम्परिक विधि की तुलना में लगभग दोगुनी है।
नई सोच एवं संशोधन
अल्युमिनिअम की ट्रे, जो कि रबर लेटेक्स जमाने के लिए उपयोग की जाती थी, उसे नर्सरी से खेत तक अंकोरों को ले जाने के लिए उपयोग किया गया. चूंकि रबर केरल के अधिकतम भाग में उगाया जाता है, अंकुरों को लाने-लेजाने के लिए अल्युमिनिअम की ट्रे का उपयोग आदर्श पाया गया है।
लाभ
बीजों की आवश्यक मात्रा में 1/10 तक की कमी। उसी प्रकार, पहले की तुलना में नर्सरी के आवश्यक क्षेत्र की बजाय 1/10 क्षेत्र की ही आवश्यकता होती है। युवा अंकुरों के ज़्यादा अंतर पर रोपण से उनके उत्थान, परिवहन एवं रोपण की मशक्कत में अवश्य कमी हुई। रोटरी वीडर की मदद से खरपतवार हटाने के लिए सतही मिट्टी हटाने में मदद मिली, जिससे समय की बचत हुई। श्री खेत में कीट एवं बीमारियों में कमी हुई। श्री द्वारा ज़मीन की बराबर मात्रा में लागत कम करते हुए उपज दोगुनी हो गई।
अंगीकरण में रुकावटें
श्री कृषि तकनीक अपनाने के निर्णय से उनके क्षेत्र (नेल्लनाद पदसेखरा समिथी) के धान के किसानों में काफी शोरगुल हुआ क्योंकि वे उस क्षेत्र के किसानों के धान उपजाऊ संघ के अध्यक्ष थे। रोपण के बाद, हरेक व्यक्ति ने उसे युवा पौधों को इतनी जल्दी रोपने के निर्णय को आत्मघाती कार्य बताते हुए मूर्खतापूर्ण कहा। मित्रनिकेतन कृषि विज्ञान केन्द्र के कर्मचारियों के सतत सहयोग एवं दिशा-निर्देशों की वज़ह से उन्हें शुरुआती आलोचना का सामना करने में मदद मिली। 1-2 महीनों के बाद, उन्हीं आलोचकों ने उनके खेत में धान की बढत को नज़दीकी से देखना शुरू कर दिया। औसतन, 40 टिलर थे, जिनमें प्रति पुष्प-गुच्छ अधिक दाने थे।
हासिल सीखें
सुझाव
केरल कृषि विश्वविद्यालय ने खुले तौर पर श्री की अनुशंसा नहीं की है एवं कुछ ऐसे लोग हैं जो उसका सार्वजनिक तौर पर विरोध करते है। इसकी वज़ह से किसानों में भ्रम फैल रहा है तथा कृषि विभाग भी इसे लोकप्रिय बनाने में अनमना है। श्री को केरल में फैलाने के लिए इस मुद्दे का हल निकाला जाना चाहिए।
मध्य प्रदेश किसान श्री रामप्रसाद कार्तिकेय
रामप्रसाद कार्तिकेय |
आयु : 42 वर्ष |
सम्पर्क: : श्री सन्दीप खानवलकर, मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका परियोजना, भोपाल, म.प्र. फोन: 9425303566. |
|
रामप्रसाद कार्तिकेय उसके एस आर आय खेत मैं विभिन्न स्तर पे |
धान की खेती
श्री रामप्रसाद एक पारम्परिक किसान हैं। उनका पूरा परिवार मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कृषि पर ही निर्भर है। कुल ज़मीन की मल्कियत कवल 4.5 एकड है। खरीफ के मौसम में धान मुख्य खेती है और जाडे़ में वे गेहूं की फसल भी लेते हैं, यदि परिस्थितियां अनुकूल हों। कुल ज़मीन में से, वे धान 4 एकड़ में उगाते हैं जबकि बची हुई ज़मीन में वे मक्का, जवार-बाजरा आदि उगाते हैं। उनकी ज़मीन एक नहर के पास है, जो सिंचाई का मुख्य स्रोत है। पारम्परिक विधि द्वारा औसत उत्पादन केवल 6 से 7 क्विंटल प्रति एकड़ है। बीज दर भी काफी अधिक है जिसका नतीज़ा उनके खेत में ‘ऊंची लागत-कम लाभ’ है।
श्री का अंगीकरण
जब मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका परियोजना (MPRLP) द्वारा श्री लागू किया गया तो इसके बारे में किसानों के मन में कुछ शंकाएं थीं। श्री विधि के बारे में कुछ प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए गए, एवं एक प्रगतिशील किसान के चुनाव का अनुरोध किया गया जो यह विधि प्रदर्शित करने के लिए अपना खेत उपलब्ध करा सके।
श्री रामप्रसाद कार्तिकेय आगे आए। उन्हें कृषि विज्ञान केन्द्र तथा कृषि विभाग की सहायता से नियमित प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन दिए गए। शुरुआती अनुस्थापन के बाद वे लगभग 0.5 एकड़ भूमि श्री विधि प्रदर्शित करने के लिए हेतु देने के लिए राज़ी हो गए। यह भी तय किया गया कि लगभग 0.35 एकड़ भूमि को पारम्परिक विधि के अंतर्गत रखा जाएगा ताकि दोनो विधियों द्वारा प्राप्त उपज की तुलना की जा सके। अशोक-200 किस्म का चयन किया गया। उसे तुलनात्मक अध्ययन बनाने के लिए, विभिन्न चरणों में विस्तृत आंकडे एकत्रित किए गए।
बुवाई की तारीख |
02.07.08 |
प्रत्यारोपण की तारीख |
13.07.08 |
फसल कटाई की तारीख |
15.10.08 |
श्री के अंतर्गत क्षेत्र |
0.50 एकड |
पारम्परिक विधि के अंतर्गत क्षेत्र |
0.35 एकड |
श्री से प्राप्ति |
7.20 क्विंटल (0.50 एकड से) |
पारम्परिक विधि से प्राप्ति |
2.10 क्विंटल (0.35 एकड से) |
नई सोच तथा संशोधन
लाभ एवं रुकावटें
लाभ |
अपनाने में रुकावटें |
|
|
हासिल सीखें
धान की खेती में उत्पादकता वृद्धि के लिए यह सर्वोत्तम विधि है।
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
खेती में व्यय (रुपये/एकड़) |
|
पारम्परिक विधि |
श्री विधि |
|
प्रचालन |
||
खेत तैयार करना |
100 |
200 |
बीज |
320 |
32 |
एफ.वाई.एम |
0 |
50 |
डी.ए.पी |
0 |
150 |
यूरिया |
0 |
90 |
पी.एस.बी |
0 |
20 |
अज़ोटोबैक्टर |
0 |
16 |
फंगीसाइड |
0 |
28 |
नर्सरी तैयार करना एवं रखरखाव |
30 |
100 |
प्रत्यारोपण |
200 |
150 |
खरपतवार उन्मूलन |
0 |
150 |
आई.पी.एम (मोनोक्रोटोफास के साथ) |
0 |
90 |
फसल कटाई |
200 |
200 |
थ्रैशिंग |
150 |
150 |
कुल योग |
1,000 |
1,426 |
उपज एवं आय |
||
उपज (क्विंटल/एकड़) |
6 |
14.4 |
कुल प्राप्ति (रुपये) |
4,800 |
11,520 |
उपजाने पर कुल व्यय (रुपये) |
1,000 |
1,426 |
शुद्ध आय (रुपये) |
3,800 |
10,094 |
सुझाव
सिंचाई की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
उड़ीसा किसान श्री देबहरि गौड़ा
देबहरि गौड़ा |
आयु : 45 वर्ष |
सम्पर्क : डॉ.ए.घोष, वरिष्ठ वैज्ञानिक, एग्रोनॉमी, डिविज़न ऑफ क्रॉप प्रोडक्शन, सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI), कटक, उडीसा, फोन: 9437271328 |
धान की खेती
उनकी कुल कृषि योग्य भूमि चार एकड़ है, जिसमें से धान की ज़मीन 3.5 एकड़ है। वे वर्षा तथा नहर का पानी, दोनों को सिंचाई के स्रोत से रूप में इस्तेमाल करते हैं। प्रति एकड़ लागत होती है बीज (60 किलो), उर्वरक [आधार डोज़: ग्रोमोर (यौगिक उर्वरक जिसमें N एवं P प्रत्येक 28% हैं) 50 किलो, पहली ऊपरी ड्रेसिंग: यूरिया 50 किलो, म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलो, दूसरी टॉप ड्रेसिंग: यूरिया 25 किलो एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 25 किलो, पानी/बारिश की उपलब्धता के आधार पर)]। फ्लडिंग विधि द्वारा प्राप्त उपज 2.1 टन प्रति एकड़ है।
श्री का अंगीकरण
श्री के बारे में देबहरि गौड़ा को सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट एवं एक स्थानीय गैर सरकारी संस्था बेसिक्स से जानकारी मिली। उन्होंने श्री को 2007 में अपनाया एवं उन्हें सेंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट तथा बेसिक्स द्वारा प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन उपलब्ध कराया गया। श्री के अंतर्गत वर्ष 2007 में 0.1 एकड़ एवं 2008 में 0.6 एकड़ क्षेत्र था। उन्होंने जेके आरएच 401 किस्म का उपयोग करते हुए दो मौसमों में श्री फसल उगाई है। लागत में उन्होंने निम्नलिखित का इस्तेमाल किया: बीज (3 किलो) एवं उर्वरक (आधार डोज़: ग्रोमोर 60 किलो, म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो, पहली ऊपरी ड्रेसिंग: यूरिया 25 किलो, म्यूरेट ऑफ पोटाश 15 किलो)। उन्होंने निम्नलिखित श्री तरीके अपनाये, जैसे कि 15 दिन की आयु वाले अंकुर प्रत्यारोपित करना, 25 X 25 वर्ग सेंटीमीटर की दूरी, प्रत्यारोपण के एक महीने बाद वीडिंग, प्रत्यारोपण के बाद तक अतिरिक्त जल की निकासी। 2008 में उनकी फसल को किसी कीट/बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन 2007 में उन्होंने तना-छेदक कीडे़ के लिए फेरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल किया था। प्राप्त उपज लगभग 3.85 टन प्रति एकड़ थी।
लाभ एवं रुकावटें
लाभ |
अपनाने में रुकावटें |
|
अधिक दूरी बनाए रखने के कारण श्री में खरपतवार का अधिक प्रकोप |
हासिल सीखें
कम लागत की खेती में अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
तुलनात्मक अध्ययन
किस्म : जे.के आर.एच 401 |
||
विवरण |
पारम्परिक विधि |
श्री विधि |
पेनिकल्स की संख्या/वर्ग मीटर |
315 |
400 |
पेनिकल की लम्बाई से.मी. में |
30.8 |
31.8 |
प्रति पेनिकल दानों की संख्या |
195 |
220 |
1000 दानों का वज़न ग्राम में |
25 |
33 |
उपज |
2.43 टन प्रति एकड़ |
3.72 टन प्रति एकड़ |
पोंडेचेरी किसान श्री रामास्वामी
रामासामी |
आयु : 46 वर्ष |
सम्पर्क : कु.एस.पुस्पलथा, अध्यक्ष, इकोवेंचर, पॉण्डिचेरी, फोन : 0413-2275812 |
धान की उपज
कृषक रामासामी के पास 5 एकड़ कृषि योग्य भूमि है, जिसमें वे 4 एकड़ में धान उपजाते हैं। वे अपने बोरवेल पर निर्भर करते हैं। वे अपने खेत में एफ.वाई.एम, रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। उन्हें 2.6 से 3 टन प्रति एकड़ उपज प्राप्त होती है।
श्री का अंगीकरण
उन्हें श्री के बारे में एक स्थानीय गैर सरकारी संस्था इकोवेंचर से जानकारी मिली। उन्होंने इस 10 सेंट (0.2 एकड़) में मई 2002 के दौरान अपनाया एवं 33 क्विंटल की उपज प्राप्त की। इकोवेंचर की कुमारी पुष्पलथा द्वारा प्रशिक्षित होने के बाद धीरे-धीरे अब 2008 में उन्होंने क्षेत्र को 2 एकड़ तक बढ़ा लिया है। उन्होंने पिछले 12 मौसमों के दौरान श्री का पालन किया है। वे स्थानीय क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय किस्में जैसे कि चिन्ना पोन्नि, सफेद पोन्नि (सम्बा), ADT-37, अन्नलक्ष्मी उपजाते हैं। रासायनिक खादों के अलावा वे जैविक खाद भी उपयोग करते हैं। वे इकोवेंचर द्वारा अनुशंसित सभी श्री तरीकों का पालन करते हैं। वे प्रत्यारोपण के लिए निशान लगी हुई रस्सी का उपयोग करते हैं।
उन्होंने वर्तमान सम्बा मौसम में उपयोग के लिए इकोवेंचर से एक मार्कर लिया है तथा भारी मिट्टी की वज़ह से उसे खींचने में दिक्कत महसूस की है। रस्सी के साथ वे आरामदायक स्थिति में हैं। खरपतवार निकालने के लिए वे कॉनो वीडर का उपयोग करते हैं। उन्हें लीफ-फोल्डर, स्टेम-बोरर जैसे कीटों का सामना करना पड़ा तथा एक मौसम में उन्होंने कराटे कीटनाशक का उपयोग किया। उन्हें 3.5 से 3.8 टन प्रति एकड़ उपज प्राप्त हुई।
लाभ
अपनाने में रुकावटें
भारी मिट्टी की वज़ह से मार्कर का उपयोग कठिन था। कुछ मौसमों तक वे अनुपलब्धता की वज़ह से कॉनोवीडर का उपयोग नहीं कर सके जिसकी वज़ह से खरपतवार को हाथों से ही निकालना पडा।
क्या सीखा
घर के मज़दूरों के उपयोग से कई बारीक काम किए गए, जैसे नर्सरी की उठी चादर, प्रत्यारोपण एवं कॉनोवीडर द्वारा खरपतवार की सफाई। अधिक उपज के साथ-साथ 2000 रुपये प्रति एकड़ की बचत करना आसान है।
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारम्परिक विधि (रुपये प्रति एकड़) |
श्री विधि (रुपये प्रति एकड़) |
प्रचालन |
||
बीज |
500 |
60 |
नर्सरी की तैयारी |
350 |
150 |
मुख्य खेत की तैयारी |
1,500 |
1,750 |
अंकुर निकालना |
1,000 |
120 |
प्रत्यारोपण (रस्सी की मदद से) |
1,200 |
800 |
खरपतवार की सफाई |
1,200 |
900 |
खाद एवं कीटनाशक |
1,000 |
600 |
फसल कटाई |
1,500 |
1,500 |
कुलयोग |
8,250 |
5,880 |
सुझाव
बड़े क्षेत्र में श्री को अपनाने के लिए सरकार की ओर से मदद की अत्यंत आवश्यकता है।
पंजाब किसान श्री कपिल बहल
कपिल बहल |
आयु : 34 वर्ष |
सम्पर्क : : डॉ.अमरीक सिंह, उप-परियोजना निदेशक ATMA सह कृषि विकास अधिकारी, गुरदासपुर, पंजाब. फोन 9872211194 |
धान की खेती
उनकी कुल कृषि योग्य भूमि 17 एकड़ है, जिसमें से धान के लिए 15 एकड़ ज़मीन है। वे सिंचाई के लिए एक ट्यूबवेल का इस्तेमाल करते हैं। उपज प्राप्ति लगभग 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
श्री का अंगीकरण
कपिल बहल को श्री के बारे में डॉ. अमरीक सिंह, उप-परियोजना निदेशक, ATMA के माध्यम से अप्रैल 2006 में पता चला। उन्होंने श्री चार एकड़ में लिया है तथा तीन मौसम पूरे कर लिए हैं। वे एफ.वाई.एम, 25 किलोग्राम डी.ए.पी तथा 50 किलोग्राम यूरिया के उपयोग से निम्नलिखित किस्में उगाते हैं: शरबती-पुस्सा 1121, पीएयू- 201, चावल 6129, पीएचबी 71 एवं सुपर बासमती
नई सोच तथा संशोधन
ANGRAU कॉनोवीडर के साथ जुड़े बिअरिंग साइकल के एक्सल से बदल दिए गए। इससे कार्य-निष्पादन में सुधार हुआ।
लाभ
अपनाने में बाधाएं
मज़दूरों की उपलब्धता, क्योंकि धान का प्रत्यारोपण बिहार एवं उत्तर प्रदेश के अप्रवासी मज़दूरों द्वारा किया जाता है। अप्रवासी मज़दूर श्री पद्धति में रुचि नहीं दिखाते हैं क्योंकि युवा अंकुरों को बडे़ नाज़ुक तरीके से सम्भालना पड़ता है।
क्या सीखा
श्री का उपयोग कर, किसान चावल का उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ काफी मात्रा में पानी, बिजली व अन्य प्राकृतिक संसाधनों की बचत कर सकते हैं।
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारम्परिक विधि |
श्री विधि |
नर्सरी बोने की तारीख |
प्रत्यारोपण की तारीख |
फसल कटाई की तारीख |
3/7/2008 |
11/6/2008 |
|
1200 मि.लि. ब्यूटाक्लोर |
25/10/2008 |
13/10/2008 |
खरपतवार नियंत्रण |
1200 मि.लि. ब्यूटाक्लोर |
कॉनोवीडर से 3 बार खरपतवार का नाश |
एफ.वाई.एम (टन प्रति एकड़) |
कुछ नहीं |
4 |
खाद (यूरिया किलोग्राम प्रति एकड़ में) |
110 |
25 |
उत्पादक टिलर्स की संख्या /वर्ग मीटर |
240 (10 अवलोकनों का औसत) |
376 (10 अवलोकनों का औसत) |
दानों की संख्या/पैनिकल |
130 |
225 |
प्रति पैनिकल दानों का वज़न (ग्राम) |
3.65 |
7.35 |
पैनिकल की लम्बाई (सेमी) |
28.70 |
32.12 |
छिलकेदार दाने (%) |
26 |
21 |
पौधों की संख्या/स्क्वे.मी. ( 10 नमूनों का औसत) |
14 |
16 |
अनाज की उपज (टन प्रति एकड़) |
1.86 |
2.52 |
फसल की अवधि (दिन) |
139 |
136 |
सुझाव
तमिलनाडु किसान श्री जगथम्बल
जगथाम्बल |
उम्र - 50 साल, |
सम्पर्क करें:: सुश्री एस. पुष्पलता, अध्यक्ष, ईकोवेंचर, पुड्डुचेरी। फोन: 0413-2275812 |
धान की खेती
जगथाम्ब ल 2.5 एकड़ की कुल कृषि भूमि में से 2.0 एकड़ का इस्ते0माल धान की खेती में करती है। पानी के स्रोत के रूप में उसके पास एक बोरवेल है जिसमें तेल से चलने वाला इंजन लगा हुआ है। इसके साथ ही वह खेती के लिए एफवाईएम और रासायनिक उर्वरकों को इस्तेचमाल करती हैं। फ्लडिंग विधि से खेती करने से उन्हेंऔ 7.5-9.0 क्विंटल/एकड़ (10-12 बोरे) फसल प्राप्त हुई।
श्री (एसआरआई) को अपनाना
जगथाम्ब।ल को ग्रीन कोस्टर प्रोजेक्टर के अंतर्गत काम करने वाले ईकोवेंचर नामक एनजीओ से श्री (एसआरआई) के बारे में पता चला और उन्होंोने उसे 2006 में सम्बाो फसल के साथ 1.0 एकड़ भूमि पर अपनाया। उन्हें मार्गदर्शन करने और प्रशिक्षण देने का काम भी ईकोवेंचर की टीम ने ही किया। पिछले तीन सीजन से वे निम्नग किस्मेंर उगा चुकी हैं: 990001, एडीटी-39। निम्नक विधियों का इस्ते माल करते हुए उन्होंदने सफेद पोन्नी की गुणवत में भी सुधार किया: एफवाईएम (पांच कार्टलोड), ईएम (इफेक्टिव माइक्रोऑर्गेनिज्स् ), अमिरथाकरइसल, 500 किलोग्राम वर्मीकम्पो स्टे (खुद का), रासायनिक उर्वरक (यूरिया 25 किलोग्राम, फॉस्फोकरस 25 किलोग्राम, पोटाश 25 किलोग्राम और जैव उर्वरक तथा स्यूरडोमोना)। उसने अपनी फसल में लीफ-फोल्डेर, स्टे म-बोरर और पीलापन पाया जिसके बाद उसने उन पर एफपीई (फर्मेंटेड प्लां ट एक्सीट्रैक्ट्स ), नीमजल और रासायनिक कीटनाशकों (मोनोक्रोटोफास, कराटे) का छिड़काव किया।
उन्होंनने सभी श्री (एसआरआई) तरीकों को अपनाया और उन्हें ग्रीन कोस्टे प्रोजेक्टो से कोनोवीडर मिला है। इससे उसे 1.1 टन/एकड़ फसल प्राप्तो हुई जो पारम्पररिक तरीके से पांच बोरे अधिक थी।
नवाचार और संशोधन
कोनोवीडर को चलाने के लिए जब पानी की समस्याट थी तब इन्होंतने एक कुदाल का उपयोग कर हैंड-वीडिंग का काम दो सीजन तक किया।
फायदे
अपनाने में बाधा
क्या सबक मिले
तुलनात्मक अध्ययन
विवरण |
पारम्परिक विधि (रुपये/एकड़) |
एसआरआई विधि (रुपये/एकड़) |
कामकाज |
||
बीज |
600 |
50 |
नर्सरी की तैयारी |
350 |
150 |
मुख्य खेत की तैयारी |
1,500 |
1,500 |
अंकुर को हटाना |
1,000 |
120 |
उर्वरक वर्मीकम्पोस्ट (अपना) |
1,500 |
800 |
रोपण (800 रुपये वाले मार्कर का इस्तेमाल या फिर 840 रुपये वाली रोप का इस्तेमाल कर) |
1,200 |
800 |
वीडिंग (परिवार के सदस्यों द्वारा ही) |
1,200 |
1,000 |
कीटनाशक (मजदूरी मिलाकर)जैविक कीटनाशक |
800 |
300 |
कटाई |
1,500 |
1,500 |
कुल |
9,650 |
7,020 |
सुझाव
त्रिपुरा किसान श्री ह्रदय रंजन देबनाथ
हृदय रंजन देबनाथ |
उम्र: 63 वर्ष |
सम्पर्क करें: श्री बहारूल आई. मजूमदार, वरिष्ठ कृषि विज्ञानी, कृषि विभाग, त्रिपुरा सरकार, अगरतला- 799003, त्रिपुरा. फोन- 9436123659 |
धान की खेती
हृदय रंजन देबनाथ के पास 1.25 एकड़ भूमि है जिसमें से पूरी भूमि पर धान की खेती की जाती है। वह पानी के लिए ट्यूबवेल का और एफवाईएम (1 लीटर), यूरिया (10 से 12 किलोग्राम (0.4 एकड़ भूमि के लिए) और रॉक फॉस्फेट रसायन का प्रयोग करते हैं। पहले उन्हें प्रति एकड़ 1.4 से 1.7 टन धान की पैदावार हासिल होती थी।
एसआरआई को अपनाना
एसआरआई के बारे में पहले उन्हें अपने पड़ोसी किसान से और बाद में कृषि विभाग के स्थानीय फील्ड स्टाफ से पता चला। उन्होंने 2007-08 में बोरो फसल के साथ एसआरआई विधि को अपनाया और कृषि क्षेत्र के अधिकारी से मार्गदर्शन और तकनीकी अधिकारी और सर्किल वीएलडब्ल्यू से तकनीकी प्रशिक्षण लिया।
उन्होंने एसआरआई धान को 0.5 एकड़ में बोया और धान की विभिन्न किस्में - एमटीयू 7029, उपहार और अमन में पैजम तथा बोरो में शॉर्ट पैजम भी उगाईं। एसआरआई विधि को अपनाने के साथ उन्होंने 1.50 टन/कानी एफवाईएम, 15 किलोग्राम यूरिया, 11 किलोग्राम एसएसपी, 4 किलोग्राम एमओपी और 700 ग्राम जैव उर्वरक का प्रयोग किया। उन्होंने रोटरी-वीडर का इस्तेमाल भी किया।
वर्ष |
मौसम |
पैदावार (टन/एकड़) |
2007-08 |
बोरो |
7.5 |
2008-09 |
अमन |
3 टन/एकड़ (उपहार और हजारी पैजम)और 2.5 टन/एकड़ (एमटीयू 7029) |
नवाचार और संशोधन
धान की हजारी पैजम किस्मर पर एक परीक्षण किया गया जिसके परिणाम बहुत अच्छेृ निकले। रोपण की अपेक्षा सीधे डाले गए एसआरआई बीजों से उत्पषन्न हुए पौधों की वृद्धि सर्वोत्तलम थी, लेकिन भारी बारिश का जोखिम वैसे ही बरकरार था।
फायदे
अपनाने में बाधा
क्या सबक मिला
तुलनात्मक अध्यियन
विवरण |
पारम्परिक विधि |
एसआरआई विधि |
कामकाज |
||
नर्सरी में बुआई |
गीली जमीन |
सूखी |
नर्सरी में प्रबंधन |
अनुपयुक्त |
उपयुक्त |
भूमि का स्तर |
सामान्यत: नहीं अपनाया जाता |
इसे अपनाना होगा |
उर्वरक का प्रयोग एन पी केएफवाईएम |
32:16:16 टन /एकड़2-2.5 टन/एकड़ |
8.4:2.8:9.6 टन/एकड़5 टन/एकड़ |
जैव उर्वरक |
नहीं |
1.4 किलोग्राम/एकड़ |
पौध की उम्र |
25-35 दिन |
8-12 दिन |
रोपना |
||
पौध को जड़ से उखाड़ना |
जड़ों को नुकसान पहुंचता है |
जड़ों को कोई नुकसान नहीं होता |
प्रमुख खेत में रोपण और पौध के उखाड़ने के बीच का अंतराल |
1 से 24 घंटे |
30 मिनट के भीतर |
रोपण की गहराई |
1 से 2 सेमी से अधिक |
सतही |
रोपण के 3-4 दिन बाद पौधे का रंग |
पीलापन लिए हुए हरा |
हरा |
पौध की संख्या/मेढ़ |
2 से 3 पौध |
एकल |
स्पेसिंग |
10 से 15 सेमी |
25 सेमी |
जल प्रबंधन |
||
अंदरुनी और बाहरी सिंचाई /जल निकासी माध्यम |
नहीं |
हां (50 सेमी चौड़ा) |
जल निकासी मार्गों के बीच दूरी |
- |
4 मीटर |
निराई प्रबंधन |
||
रासायनिक वीडिंग |
हां |
नहीं |
मैकेनिकल वीडिंग (वीडर का इस्तेमाल कर) |
नहीं किया गया |
किया गया |
बीज का मूल्य/एकड़ |
12 किलोग्राम/एकड़ |
2 किलोग्राम/एकड़ |
पैदावार और आय |
||
पैदावार(टन/एकड़) |
1.5 |
2.5 |
खेती की लागत (रुपये/एकड़) |
6,375 |
5,750 |
कुल रिटर्न (रुपये/एकड़) |
9,500 |
18,750 |
शुद्ध रिटर्न (रुपये/एकड़) |
3,124 |
13,000 |
सुझाव
उत्तराखंड किसान श्री चैन सिंह
चैन सिंह |
उम्र- 52 वर्ष |
सम्पर्क करें: - श्री देबाशीष, निदेशक (सीपीडब्लयूडी), पीपुल साइंस इंस्टीट्यूट, देहरादून, उत्तराखंड। फोन 9897080579 |
धान की खेती
चैन सिंह की कुल कृषि भूमि 30 नाली है जो 1.5 एकड़ के बराबर है (1 नाली 200 वर्गमीटर के बराबर होती है) और जिसमें धान की खेती 8 नाली में होती है जो 0.4 एकड़ है। उनका पानी का स्रोत गुह्ल है (स्थानीय सिंचाई का माध्यम)। वे इसमें गाय के गोबर से बनी खाद और यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। फ्लडिंग तरीके से 110 किलोग्राम फसल प्रति नाली (22 क्विंटल/एकड़) प्राप्त होती है।
एसआरआई को अपनाना
उन्हें एसआरआई के बारे में उत्तराखंड में नैनबाग के गढ़वाल विकास केन्द्र से पता चला। जीवीके देहरादून के पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट की सहयोगी संस्था है। चैन सिंह ने 2007 में एसआरआई को अपनाया और उन्हें जीवीके द्वारा प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया गया।
|
2007 |
2008 |
एसआरआई के तहत क्षेत्र |
1 नाली (0.05 एकड़) |
2.5 नाली (0.13 एकड़) |
सीजन |
खरीफ |
खरीफ |
किस्म |
स्थानीय |
स्थानीय |
इस्तेमाल में लाई गई चीजें |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद, वर्मीकम्पोस्ट |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद, वर्मीकम्पोस्ट |
विधि अपनाई गईं |
सभी विधियों को अपनाया गया। निराई दो बार की गई। |
सभी विधियों को अपनाया गया। निराई तीन बार की गई। |
औजारों की उपलब्धता और उनका प्रयोग |
वीडर और मार्कर जीवीके द्वारा दिया गया |
वीडर और मार्कर जीवीके द्वारा दिया गया |
पैदावार |
180 किलोग्राम/नाली (36 क्विंटल/एकड़) |
220 किलोग्राम/नाली (44 क्विंटल/एकड़ |
फायदे
अपनाने में बाधा
क्या सबक मिला
इस तरीके में रोपण आसान है
तुलनात्म क अध्ययन
विवरण |
पारम्परिक विधि |
एसआरआई विधि |
कामकाज |
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नर्सरी |
आकार तय नहीं हैं |
आकार तय हैं, 3 वर्गमीटर |
खेत की तैयारी |
मार्कर का इस्तेमाल नहीं किया गया |
मार्कर का इस्तेमाल किया गया |
रोपण |
30 दिन की पौध लगाई गई |
10 दिन की पौध लगाई गई |
निराई |
हाथ से की गई |
वीडर का इस्तेमाल तीन बार किया गया |
जल का प्रबंधन |
2-4 इंच पानी दिया गया |
10 दिन के अंतराल पर 1-2 इंच पानी दिया गया |
उर्वरक/खाद |
एनपीके, यूरिया |
पंचगव्य, अमृतजल, मटका खाद, वर्मीकम्पोस्ट |
पैदावार और आय |
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टिलर की कुल संख्या |
10 |
40 |
पौधों की औसत ऊंचाई (सेमी) |
62 |
97 |
उत्पादक टिलर्स |
8 |
30 |
पुष्पगुच्छ की औसत लंबाई (सेमी) |
16 |
29 |
अनाज की औसत संख्या/ पुष्पगुच्छ |
80 |
190 |
कुल प्राप्त अनाज |
110 किलोग्राम/नाली (2.2टन/एकड़) |
180 किलोग्राम/नाली (3.6टन/एकड़) |
कुल प्राप्त भूसा |
137 किलोग्राम/नाली (2.74टन/एकड़) |
270 किलोग्राम/नाली (5.4टन/एकड़) |
खेती की कुल लागत |
1048 रुपये/नाली (20,960 रुपये/एकड़) |
731 रुपये/नाली (14,620रुपये/एकड़) |
शुद्ध आय |
3,780 रुपये/एकड़ |
26,780रुपये/एकड़ |
सुझाव
स्रोत: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, काँके, राँची– 834006
दूरभाष- 0651- 2450610, फैक्स- 0651- 2451011/2450850,
मोबाईल – 9431958566,
कॉरनेल इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर फूड, एग्रीकल्चर एंड डेवलपमेन्ट,
इक्रीसैट- डब्लयूडब्लयूएफ प्रोजेक्ट
इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टिटद्ययूट फॉर दी सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स,
पटनचेरु 502, 324, आंध्र प्रदेश
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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