बेहतर लाभ के लिए सुस्थिर कृषि पद्धति
सराहनीय प्रयास: कृषक श्री अरुणाचलम् अपने केले के खेत में
जैविक कृषक श्री अरुणाचलम् (गोबिचेट्टिपलयम, इरोड ज़िला, तमिलनाडु) के अनुसार प्राकृतिक या दीर्घकालीन कृषि कम बजट वाली, आसानी से बनाई जाने वाली, कीट एवं बीमारियों से मुक्त एवं सुरक्षित प्रणाली है।
श्री अरुणाचलम् एवं उनके परिवार ने करीब आठ साल पहले तीन एकड़ ज़मीन खरीदी। चूंकि मिट्टी अत्यंत क्षारीय थी एवं उस ज़मीन का भाव बहुत कम था। लोगों ने उन्हें कहा कि ऐसी मिट्टी में कोई भी फसल पैदा नहीं हो सकती।
सुस्थिर कृषि पद्धतियां जो असरदार साबित हुईं
- बहु बीज बुआई : श्री अरुणाचलम् ने पहले बहु-बीज बुआई की। बहु-बीज बुआई एक पद्धति है जिसमें विभिन्न छोटी फलियां एवं अनाज के बीज जमीन में बोए जाते हैं। एक महीने के बाद अंकुरित बीज मिट्टी में वापस ढंक दिए जाते हैं।
- धान से आय: उन्होंने कुछ पारंपरिक धान की किस्में उसी जमीन में उगाकर, धान को बेचकर लगभग 1,90,000 रुपये कमाए।
- केले से आय: बाद में केले के लगभग 1,800 तने उसी खेत में बोए गए थे। फल लगभग आठ महीनों में एक बार तोड़े जाते हैं। फसल अपने 11वें चक्र में है। केले का प्रत्येक गुच्छा 100 से 190 रुपये के बीच बेचा जाता है तथा इससे लगभग 1,80,000 रुपये की आय हुई।
- केले का भूमिगत तना: हर बार तोड़ने केबाद केले का जो भूमिगत तना बचता है उसका ढेर मिट्टी के मूल स्तर से लगभग एक फीट ऊंचा हो गया है। श्री अरुणाचलम कहते हैं कि खरपतवार संबंधी कोई समस्या नहीं है एवं कोई निवेश या खर्च नहीं है क्योंकि यह सतत, स्वयं प्रबन्धित चक्र है जिसमें सिर्फ फसल कटाई की आवश्यकता होती है।
- साझा फसलें : भिंडी, बैंगन, मिर्च, तुरई एवं कद्दू, पपीता, हरा चना एवं काला चना, केले के खेत में साझा फसलों के तौर पर बोए जाते हैं एवं इनसे लगभग 10,000 रुपये की आय हुई है।
- मेंड़ एवं किनारे की फसलें : लट्ठा एवं चारा मूल्य के पेड़, खेत की सीमा पर मेड़ एवं किनारे पर उगाए जाते हैं।
- पशुपालन : 8,500 रुपये की दर से दो कंगायम (स्थानीय प्रजाति के) बैल खरीदे गए थे, जब उनकी आयु एक वर्ष थी। छ्ह महीनों के भीतर उन्हें स्थानीय वार्षिक पशु मेले में 50,000 रुपये में बेचा गया। जब उन्हें बेचा जाता है, तब तक ये पशु दक्षतापूर्वक बोझ ढोने के लिए प्रशिक्षित हो जाते हैं। बैलों एवं करीब 15 तेलिचेरी बकरियों का मल पानी में मिलाकर खेतों में सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। यह मिट्टी के लिए अच्छी खाद का काम करता है। बकरियों को बेचने से 60,000 रुपये की अतिरिक्त आय होती है। पपीते का फल एवं बीज उनके 6 मुर्गों को खिलाए जाते हैं। वे लड़ाकू मुर्गों के रूप में प्रशिक्षित किए जाते हैं और 1,000 रुपये में बेचे जाते हैं। इन पक्षियों को बेचकर एक साल में उन्हें 1,000 रुपये प्राप्त हो जाते हैं। इनमें से किसी भी पारंपरिक नस्ल का पशु (चाहे वह बैल, बकरियां या मुर्गे हों) किसी भी रोग के प्रति असुरक्षित नहीं है और इन्हें बाज़ार के लिए तैयार करने के लिए कोई खर्च नहीं आता।
“यदि मैं अपने तीन एकड़ से 365 दिनों में छह लाख रुपए कमा सकता हूं, बगैर कोई ज़्यादा खर्च के, तो दूसरे कृषक क्यों नहीं कमा सकते?”श्री अरुणाचलम पूछते हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें-
श्री वी.एस. अरुणाचलम, कुलविकाराडु,
पी. वेल्लालापालयम, पी.ओ- गोबिचेट्टिपलयम,
इरोड, तमिलनाडु, पिन: 638476
मोबाइल: 9443346323. ईमेल: elunkathir@gmail.com,
स्रोत: द हिन्दू, दिनांक 1 जनवरी, 2009
सामूहिक हित समूह व जीविका के नये स्रोत