धनी राम कुशवाहा उर्फ धनुआ गांव उबारो, तहसील निवारी, जिला टीकमगढ़ मध्यप्रदेश का एक किसान है, जिसके पास गांव से दूर जंगल के पास चार एकड़ क्षेत्रफल का खेत है। उसका खेत कम उपजाऊ, लाल मिट्टी की और कम पोषक तत्व वाला है। यही उसके जीवनयापन का एकमात्र स्रोत है। पुरानी खेती के तरीके तथा लगातार सूखे के कारण उसकी ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। सालाना 14,000 रुपए की कमाई से वह बहुत मुश्किल से गुजर बसर कर पाता था।
उसे जानकारी मिली कि कृषि वानिकी संस्थान का राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र एक कार्यक्रम के माध्यम से जल संग्रह, फसल प्रदर्शन और कृषि वानिकी की जानकारी दे रहा है। धनीराम ने संस्थान से संपर्क करके अपनी खेती देखने का अनुरोध किया। उसने अपने खेत के लिए कृषि वानिकी प्रणालीअपनाने का निर्णय लिया। वर्ष 2006 के खरीफ के मौसम में एक एकड़ भूमि में प्रदर्शन के लिए उसेकौशल नामक प्रजाति के मूंगफली के बीज और संतुलित मात्रा मे उर्वरक उपलब्ध कराए गए। इसतरीके से उसने 6 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन किया, जो उसकी खेती करने के पुराने तरीके से हुई पैदावार से 1.5 गुना अधिक थी।उसके बाद रबी के मौसम में अपने चार एकड़ खेत में गेहूं बोए। इसमें से एक एकड़ खेत पर उसने डब्ल्यूएच-147 प्रजाति के बीज तथा उसके अनुसार बताए गए उर्वरकों का प्रयोग किया।
तीन एकड़ खेत पर संस्थान द्वारा अमरूद और नींबू के पेड़ लगाए गए, जिसमें 68 अमरूद (इलाहाबाद सफेदा) और 42 नींबू (कागजी) के पौधों को 6 गुणा 8 मीटर की दूरी पर लगाया गया। गोबर की खाद के अनुप्रयोग, पानी देने और खाद देने के खर्चे को किसान ने खुद वहन किया। खरीफ और रबी के प्रदर्शन में मूंगफली के कौशल और गेहूं के डब्ल्यूएच-147 प्रजाति के बीज तथा सही मात्रा में खाद का प्रयोग किया गया। वर्ष 2007 के दौरान धनी राम के खेत के पास बनाए गए चेक डैम का पानी ओवर फ्लो हो गया। इसके फलस्वरूप कुएं के पानी का स्तर 2 मीटर बढ़ गया। पहले ही साल में फसल की वजह से उसकी आय दोगुनी हो गई। उसको सड़क के किनारे बोने के लिए लसोडा के बीज दिए गए तथा खेत को एक तरफ से सुरक्षित रखने के लिए करोंदे के पौधे लगाए गए जबकि जंगल वाले हिस्से को सुरक्षित करने के लिए टीक के पौधे लगाए गए। नाले के दूसरी तरफ कृष्णा प्रजाति का आंवला पौधा लगाया गया और नाले के दूसरी तरफ उपलब्ध आधे हैक्टर भूमि में उसने मीठी मिर्च बोई।
अच्छी वर्षा, भरपूर मात्रा में कुंए का पानी और एक साल पुराने उन्नत गेहूं के बीज की वजह से 35 क्विंटल/हैक्टर की गेहूं की बंपर पैदावार हुई। रबी की फसल के बाद उसने बैंगन, करेला, मिर्च आदि को 0.2 हैक्टर भूमि पर उगाया, जिससे उसको गर्मी में नियमित आय मिली। वर्ष 2009 में वह चैक डैम फिर से ओवरफ्लो हुआ और खरीफ और रबी की बंपर उपज हुई। अमरूद के पेड़ों ने इस दौरान 2 क्विंटल फल दिए, जिससे उसकी नियमित आय में काफी बढ़ोतरी हुई। खेत के एक छोटे से हिस्से (50 वर्ग मीटर ) में उसने बैलों के चारे के लिए घास उगाई। रबी 2009 के दौरान उसकी खेत पर 21 प्रकार की फसलें, सब्जी, मसालें और फल लगे वह अपने खेत को बिना फसल लिए नहीं छोड़ रहा था। खेत को उपजाऊ बनाने के लिए उसने जैविक खाद का प्रयोग किया। इससे उसके परिवार को पूरे साल नियमित काम तथा आय मिली। वह पिछले दो साल से अपनी खेती से 40-50 हजार रुपए प्रतिवर्ष की कमाई कर रहा है। इसकी वजह से धनी राम की मुस्कुराहट वापस लौट आई है।
स्त्रोत: मास मीडिया मोबलाइजेशन पर एनएआईपी उप परियोजना, डॉ एसके ध्यानी, निदेशक,कृषि वानिकी, राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र(भाकृअनुप),झांसी
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में झारखण्ड में समेकित कीट प्रबंधन पैकेज के...
इस भाग में अतिरिक्त आय एवं पोषण सुरक्षा हेतु वर्ष ...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...