कर्नाटक राज्य में आम का प्रचुर उत्पादन है। यहां आम के बागों में कतारों के बीच खाली स्थान पर बहुवार्षिक चारा फसलों का उत्पादन किया जा सकता है। आम के बागों में साधारणतया 10 x 10 मी. की दूरी पर आम के वृक्ष लगाए जाते हैं। इस प्रकार 7-8 मीटर की खाली भूमि दो वृक्षों के बीच चारा फसलों के लिए उपलब्ध हो जाती है। कर्नाटक में लगभग 90,000 हैक्टर भूमि पर आम के बाग हैं। इस प्रकार आम के वृक्षों के बीच की खाली भूमि पर यदि चारा उगाया जाये तो कर्नाटक राज्य में प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख टन चारा का अतिरिक्त उत्पादन किया जा सकता है। इससे वर्ष भर लगभग 7 लाख पशुओं को हरा चारा खिलाया जा सकता है। किसानों की भागीदारी से भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान, दक्षिण क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र, धारवाड़ द्वारा उन्नत चारा किस्मों का सफलतापूर्वक उत्पादन किया गया। वर्ष 2013-14 में यह प्रायोगिक कार्य लगभग 5 एकड़ क्षेत्र में 5 आम उत्पादकों से शुरू किया गया। इसकी सफलता से उत्साहित होकर वर्ष 2014-15 में चारा उत्पादन प्रोजेक्ट को पशुधन आधारित स्वयंसेवी संगठनों से जोड़ दिया गया और किसानों को चारा किस्मों के चयन के बारे में प्रशिक्षण दिये गये। इसमें बीज और रोपण सामग्री भी प्रदान की गयीं।
इसके तहत दूसरे वर्ष कर्नाटक के 11 गांवों के 25 आम उत्पादकों ने लगभग 25 एकड़ भूमि पर आम के बागों में चारा फसलों का उत्पादन शुरू किया। लगभग 32 प्रतिशत आम उत्पादकों द्वारा तीन बारहमासी घासों (बाजरा नेपिअर संकर, गिनी घास, बारहमासी चारा ज्वार) के साथ चारे के लिए चना उगाया गया। लगभग 28 प्रतिशत आम उत्पादकों द्वारा दो घासें (बाजरा नेपिअर + गिनी घास); 12 प्रतिशत आम उत्पादकों द्वारा सिर्फ बाजरा नेपिअर और 8 प्रतिशत द्वारा दो घासें (बाजरा नेपिअर + ज्वार) या एक घास और एक फलीदार फसल (बाजरा नेपिअर + चना, ज्वार + चना) और 4 प्रतिशत द्वारा चने के साथ दो घासें भी उगायी गयीं।
प्रोजेक्ट की अवधि के दौरान 24 प्रतिशत किसानों की भागीदारी से 17 प्रतिशत पेड़ों के बीच खाली जगह पर चारा फसलें उगायी गयीं। इस तरह यह क्षेत्र बढ़कर 45 प्रतिशत हो गया, जिससे 25.05 एकड़ के चारा उत्पादक क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 36 एकड़ तक पहुंच गया। शुरूआती 5 एकड़ पायलट योजना से बढ़कर अब आम बागानों में चारा उत्पादन लगभग 41 एकड़ क्षेत्र में हो रहा है। प्रतिभागी किसानों को पशु पालन और आम बागान में कई और लाभ भी देखने को मिले। उन्नत चारा देने से पशु चारा लागत में कमी (88 प्रतिशत) और पशुधन स्वास्थ्य में सुधार (84 प्रतिशत) देखा गया। इससे पशुआहार लागत में 44 प्रतिशत की कमी आयी और लगभग एक लीटर प्रतिदिन औसतन दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई। इसके कारण प्रतिदिन औसतन 1.37 कि.मी.दूरी तक चारा लाने की दूरी तय करने से किसान को राहत मिली और एक मानव दिवस/प्रतिदिन की बचत हुई। बाग के तापमान (100 प्रतिशत), खरपतवार घनत्व (92 प्रतिशत), मृदा अपरदन (88 प्रतिशत), कीट (68 प्रतिशत) और रोग-व्याधियों (64 प्रतिशत) में भी कमी पायी गयी। इसके साथ ही बाग में 84 प्रतिशत तक जल उपलब्धता में सुधार हुआ।
इससे पूर्व ये किसान 22 प्रतिशत हरे चारे और 17 प्रतिशत सूखे चारे की कमी महसूस कर रहे थे। इस प्रोजेक्ट से उन्हें भरपूर चारा उत्पादन प्राप्त हुआ। 2.7 कटाई में औसतन हरा चारा उत्पादन 55.49 टन/हैक्टर पाया गया। बागानी फसलों की भूमि पर उन्नत चारा फसल उगाकर न केवल चारे की कमी को दूर किया जा सकता है, बल्कि पशु पालकों को बहुत से लाभ भी प्राप्त होते हैं।
स्त्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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