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छत्तीसगढ़ में पशुपालन सम्बंधित सफलता की कहानियाँ

छत्तीसगढ़ में पशुपालन सम्बंधित सफलता की कहानियाँ

परिचय

रायपुर से 70 किमी दूर नगर पंचायत पलारी जहां के 30 से 40 परिवार पुराने पारंपरिक तरीके से सूकर पालन किया करते थे। वर्ष 2007 में शासकीय पशु चिकित्साली पलारी के द्वारा 15 नर सूकर प्रदाय किया गया एनएसएल सुधार हेतु विभिन्न पशु पालकों को किया गया।

परिवारों को जोड़ कर पाई सफलता

पशु पालकों के द्वारा ज्ञात हुआ पूर्ण में 30-40 परिवार के पास कुल 25-30 देशी नस्ल के सूकर थे जिन्हें 50-60 की वजन तक बढ़ाने में 2 वर्ष लग जाता था प्रमुख समस्या प्रजनन था जिसके लिए दूसरे स्थान ले जाना पड़ता था (नर सूकर के आभाव मे) देशी सूकरों को लीटर संख्या 6-8 तक होता था जिसमें 40-50% मृत्यु दर बताया गया बचे हुए सूकर से आर्थिक लाभ नहीं के बराबर हुआ करता था वर्ष 2007 में प्रदाय नर सूकरों को वितरण के साथ-साथ gri. Enrouin 5mlSurgile 30 उस प्रत्येक सूकर को दिया गया रखाव तथा सूकर का खान-पान के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी पशु पालकों को दिया गया वर्ष दोनों ही पहले सूकरों से अच्छा रहा जिससे कम समय में तथा कम लागत पर सूकर बाजार साइज़ पर तैयार हो गया जिससे आर्थिक मुनाफा हुआ FI मादा का लीटर साइज़ 12-15 तथा मृत्यु दर में कमी पाया गाया गाभिन मादाओं को कोढ़ा, पसिया, चावल तथा चरी पर भेजकर पालन किया गया जिससे गाभिन मादाओं का स्वास्थ्य अच्छा बना रहा तथा उनसे स्वस्थ बच्चों को जन्म दिया बच्चे का वजन 2-3 महीने में वजन 10 कि.ग्रा. के हो गए।

पशु पालकों को सूकर की प्रमुख बीमारी के बारे में जानकारी विभाग द्वारा दिया जाता रहा जिससे की बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार हेतु संपर्क किया जाता रहा है जिससे की बीमारी पशुओं का समय पर उपचार के कारण मृत्यु दर में कमी आई।

वर्ष 2009 जुलाई की स्थिति में इन पशु को पालकों के पास 150 के लगभग उन्न्त नस्ल के सूकर तथा 100 संकर नस्ल के सूकर हैं। वर्ष 2008 मध्य से प्रत्येक परिवार को आर्थिक लाभ-सुकर विक्रय  से होने लगा। वर्तमान में साप्ताहिक बाजार जिससे पलारी तथा आसपास के ग्रामो से 6000-7000 प्रति नग के दर से अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा रहा हैं। जिससे इन परिवारों के आर्थिक स्थिति मे बहुत परिवर्तन आया हैं।

स्त्रोत:छत्तीसगढ़ सरकार की आधिकारिक वेबसाइट

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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