बकरी पालन प्रायः सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव तथा पालन-पोषण के साथ संभव है। इसके उत्पाद की बिक्री हेतु बाजार सर्वत्र उपलब्ध है। इन्हीं कारणों से पशुधन में बकरी का एक विशेष स्थान है।
उपरोक्त गुणों के आधार पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी बकरी को ‘गरीब की गाय’ कहा करते थे। आज के परिवेश में भी यह कथन महत्वपूर्ण है। आज जब एक ओर पशुओं के चारे-दाने एवं दवाई महँगी होने से पशुपालन आर्थिक दृष्टि से कम लाभकारी हो रहा है वहीं बकरी पालन कम लागत एवं सामान्य देख-रेख में गरीब किसानों एवं खेतिहर मजदूरों के जीविकोपार्जन का एक साधन बन रहा है। इतना ही नहीं इससे होने वाली आय समाज के आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। बकरी पालन स्वरोजगार का एक प्रबल साधन बन रहा है।
बकरी पालन मुख्य रूप से मांस, दूध एवं रोंआ (पसमीना एवं मोहेर) के लिए किया जा सकता है। झारखंड राज्य के लिए बकरी पालन मुख्य रूप से मांस उत्पादन हेतु एक अच्छा व्यवसाय का रूप ले सकती है। इस क्षेत्र में पायी जाने वाली बकरियाँ अल्प आयु में वयस्क होकर दो वर्ष में कम से कम 3 बार बच्चों को जन्म देती हैं और एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती हैं। बकरियों से मांस, दूध, खाल एवं रोंआ के अतिरिक्त इसके मल-मूत्र से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। बकरियाँ प्रायः चारागाह पर निर्भर रहती हैं। यह झाड़ियाँ, जंगली घास तथा पेड़ के पत्तों को खाकर हमलोगों के लिए पौष्टिक पदार्थ जैसे मांस एवं दूध उत्पादित करती हैं।
संसार में बकरियों की कुल 102 प्रजातियाँ उपलब्ध है। जिसमें से 20 भारतवर्ष में है। अपने देश में पायी जाने वाली विभिन्न नस्लें मुख्य रूप से मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। यहाँ की बकरियाँ पश्चिमी देशों में पायी जाने वाली बकरियों की तुलना में कम मांस एवं दूध उत्पादित करती है क्योंकि वैज्ञानिक विधि से इसके पैत्रिकीविकास, पोषण एवं बीमारियों से बचाव पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। बकरियों का पैत्रिकी विकास प्राकृतिक चुनाव एवं पैत्रिकी पृथकता से ही संभव हो पाया है। पिछले 25-30 वर्षों में बकरी पालन के विभिन्न पहलुओं पर काफी लाभकारी अनुसंधान हुए हैं फिर भी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर गहन शोध की आवश्यकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली की ओर से भारत की विभिन्न जलवायु की उन्नत नस्लें जैसेः ब्लैक बंगला, बारबरी, जमनापारी, सिरोही, मारबारी, मालावारी, गंजम आदि के संरक्षण एवं विकास से संबंधित योजनाएँ चलायी जा रही है। इन कार्यक्रमों के विस्तार की आवश्यकता है ताकि विभिन्न जलवायु एवं परिवेश में पायी जाने वाली अन्य उपयोगी नस्लों की विशेषता एवं उत्पादकता का समुचित जानकारी हो सके। इन जानकारियों के आधार पर ही क्षेत्र विशेष के लिए बकरियों से होने वाली आय में वृद्धि हेतु योजनाएँ सुचारू रूप से चलायी जा सकती है। बकरी पालन व्यवसाय भी काफी प्रचलित हो रहा है। ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि यह कम लागत में ज्यादा मुनाफा देता है।
इस लेख में बकरी पालन से संबंधित सारी जानकारी को प्रस्तुत किया गया है, जो बकरी पालकों और उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जो इसमें अपना भविष्य बनाना चाहते है।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020