जैविक खेती का नाम विदेशों से जैविक उत्पाद की मांग के साथ नीति निर्माताओं के माध्यम से कृषि से जुड़े वैज्ञानिकों और मांग अब किसानों तक पंहुच गया है| यदि इसे सिर्फ विदेशों की मांग पूरा करने का उपाय समझकर हम नीति निर्माण और कार्यक्रम चलायेंगे तो शायद एक दशक बाद ही हमें इस पर दोबारा विचार करना पड़ जाएगा और यदि इसे पर्यावरण व भूमि सुधार के साथ लागत कम करने और देश के हर व्यक्ति के लिए स्वस्थ्य भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से चलाया जाता है तो निश्चय ही यह ही लम्बे समय तक चलने वाला बहुउपयोगी प्रयास होगा|
सन 1990 से भारत में जैविक खेती के प्रचार प्रसार का कार्य शुरू हो गया था किन्तु सरकारी प्रयास सं 2000 में शुरू हुए, वह भी विदेशों से आ रही जैविक उत्पाद की भारी मांग को देखते हुए, अंतत: वाणिज्य मंत्रालय के अधीन विभाग, अपीडा ने 2001 में राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम शुरू किया|
हमेशा की तरह इसमें भी कई देशों खासकर यूरोपीय देशों के मानक व कानून बना दिए| इस सभी प्रयासों का सीधा अर्थ जैविक उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देना है| देश की भूमि सुधार, पर्यावरण का जन स्वास्थय हेतु जैविक खेती को बढ़ावा देने जैसी इच्छा इस पूरे कार्यक्रम में बहुत थोड़ी या कागजों में नजर आ रही है| इसलिए जैविक खेती कुछ निजी संस्थाओं, कम्पनियों द्वारा निर्यात के लिए बना कार्यक्रम होता जा रहा है| कुछ बड़ी कम्पनियों वर्मी कंपोस्ट व नीम के कीट नियंत्रक बनाकर मंहगे दामों पर किसानों को बेच रही है जिससे किसान को ऐसा महसूस हो रहा है की यूरिया की जगह वर्मीकंपोस्ट की बोरी और कीटनाशक की जगह नीम के तेल की बोतल खरीदनी पड़ रही है और यदि जैविक खेती की मूल विचार धारा ही समाप्त हो रही है और यदि जैविक खेती कार्यक्रम इसी अति-व्यवसायिकता की दशा में चलता रहा तो शीघ्र ही पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है| अत: समय रहते नीतिगत निर्णय लेना जिनमें दूरदर्शिता व किसान तथा उपभोक्ता का हित जुड़ा हो तथा उन नीतियों पर आधारित कार्यक्रमों को तन-मन-धन से लागू करने की आवश्यकता है| जैविक खेती के लिए नीतिगत निर्णय लेने की बहुत आवश्यकता है|
जैविक खेती सिर्फ निर्यात के लिए करना देश के किसानों और उपभोक्ता यानी आम जनता के हितों के अनदेखी करना है| कुल खाद्य उत्पादन का 5 प्रतिशत से बी कम का निर्यात होता है शेष 95 प्रतिशत तो देश के उपभोक्ता के लिए ही काम आता है जिससे भूमि किसान उपभोक्ता तीनों के ही स्वास्थय व आर्थिक सुधार से सीधा संबंध है अत: जैविक खेती को बड़े परिदृष्ट में देखते हुए –
अ. इसे स्वास्थय मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, वन व पर्यावरण मंत्रालय तथा वाणिज्य मंत्रालय का साझा कार्यक्रम घोषित करना चाहिए|
ब. एड्स, पोलियो अभियान की तरह जैविक भोजन की उपलब्धता व जागरूकता बढ़ाने के लिए सघन अभियान कार्यक्रम चलाने चाहिए तथा जैविक भोजन का कैंसर, मधुमेह, रक्तचाप, ट्यूमर, मानसिक विकार आदि के बचाव उपाय के रूप में प्रचारित करना चाहिए|
स. महिलाएँ चूंकि खेती का 60-70 प्रतिशत काम संभालती हैं तथा बच्चों पर कीटनाशकों व उर्वकों का ज्यादा दुष्प्रभाव होता है अत: केंद्र व राज्यों के “महिला व बाल विकास मंत्रालय” द्वारा हर गाँव में आंगनबाड़ी केन्द्रों द्वारा जैविक खेती-जैविक भोजन का लाभ व इसको अपनाने के तरीकों का प्रचार व सुविधाएँ देने का प्रबंध करना चाहिए|
द. किसानों को जैविक खेती अपनाने पर कृषि मंत्रालय, नाबार्ड, अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा विशेष आर्थिक सहायता का प्रावधान करना चाहिए|
जिस प्रकार रासायनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 60 व 70 के दशक में उर्वरकों के कारखाने लगाए गए और गाँव-गाँव तक पहूँचाने के लिए किसान सहकारी समितियाँ बनाई गई, राष्ट्रीय स्तर पर इफ्कों, कृभकों जैसी संस्थाएँ बनाई गई, इसी प्रकार के प्रयास आज जैविक खेती के उत्थान के लिए आवश्यक है| आज किसान जैविक अपनाने को तैयार हैं किन्तु उसे अच्छी गुणवत्ता वाली खाद, जीवाणु खाद, जैविक कीटनाशक ग्राम स्तर पर उपलब्ध नहीं है| फसलों की ऐसी किस्में उपलब्ध नहीं है, जो जैविक खाद से अच्छा उत्पादन ने सकें|
क. प्रत्येक गाँव या तहसील स्तर पर जैविक खाद खासकर अच्छी गुणवत्ता वाली जीवाणु खाद व जैविक कीटनाशकों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सहकारी तंत्र बनाने का प्रयास व सुविधा देनी चाहिए|
ख. रासायनिक खेती से जैविक खेती में बदलने के परिवर्तन काल में (2-3 वर्ष) कृषक को जैविक तकनीकों की सम्पूर्ण ज्ञान व आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रावधान करना|
जैविक खेती तकनीक की सम्पूर्ण जानकारी के लिए लेखक की पुस्तक “जैविक खेती: सिद्धांत तकनीक व उपयोगिता” का अध्ययन किया जा सकता है|
रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिवर्ष 16 अरब रूपये (160 बिलियन) की सब्सिडी दी जाती है| इसके अलावा कीटनाशक, ट्रैक्टर आदि की सब्सिडी मिलकर खरबों रूपये रासायनिक खेती के आदानों की सब्सिडी पर खर्च हो रहा है| इसी प्रकार जैविक खेती के लिए भी सब्सिडी की आवश्यकता है| हमारे देश में सब्सिडी का सीधा असर उस तकनीक के प्रसार पर होता है| हाल के वर्षों में जड़ी-बूटी की खेती में औषधीय पादप बोर्ड 25-30 प्रतिशत सब्सिडी देने से आज देश भर में जगह – जगह इनकी खेती शुरू हुई है हालाँकि सब्सिडी से स्थाई विकास नहीं होता है किन्तु प्रसार के लिए एक अच्छा उपाय है|
अत: जैविक खेती में सब्सिडी निम्न आदानों पर दी जा सकती है –
क. जैव, उर्वरक जैविक कीटनाशक निर्माण को लघु उद्योग के रूप में सब्सिडी|
ख. बैलों की जोड़ी खरीदने व बैल चलित हल व यंत्रों पर सब्सिडी| बायोगैस संयंत्र पर सब्सिडी बढ़ाना|
ग. जैविक खेती में परिवर्तन काल में फसल की उपज में कमी की भरपाई के लिए सब्सिडी या बीमा|
घ. किसान द्वारा जैविक खाद बनाने के लिए गोबर, रॉक फास्फेट, फसल अवशेष को खरीदने के लिए इन पर सब्सिडी|
जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर काफी लागत आती है और बिना प्रमाणीकरण के उपभोक्ता जैविक उत्पाद होने का विश्वास भी नहीं कर पाता है| अत: जैविक उत्पादों की विक्रय को सुनिश्चित करने के लिए सहकारी विपणन व्यवस्था व भारतीय खाद्य निगम से जैविक खाद्यान्न खरीदने के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए| इसके लिए –
1. ग्राम स्तर पर प्रमाणीकरण समिति बनाने के लिए प्रशिक्षण व अनुदान देना, साथ ही तहसील और जिला स्तर पर इन समितियों के कार्य पर निगरानी हेतु एक विशेषज्ञ समिति बनाना| ये समितियाँ देश में बेचे जाने वाले जैविक आहार को प्रमाणित कर सकती है, इसका प्रावधान करना|
2. बीज प्रमाणीकरण निगमों, मृदा परिक्षण प्रयोगशालाओं के देश भर/राज्यों के नेटवर्क (जाल) को इस प्रमाणीकरण कार्य में सहयोग के लिए अनुबंधित करना| कुछ राज्य सरकारें इस प्रकार की पहल कर चुकी है जैसे उत्तरांचल, राजस्थान आदि|
3. जैविक खाद्यान्नों के लिए विशेष समर्थन मूल्य का प्रावधान करना|
4. भारतीय खाद्य निगम व नाफेड जैसी संस्थाओं को जैविक, उत्पाद खरीदने के लिए प्रावधान करना, विशेषकर स्कूली बच्चों को दिए जाने वाले दोपहर के भोजन को पूर्णत: जैविक अगर बनाने के लिए इन संस्थाओं को पाबन्द करना| राष्ट्रीय पोषाहार कार्यक्रम के तहत आंगनबाड़ी केन्द्रों को जैविक खाद्यान्न उपलब्ध कराने में व्यवस्था करना|
5. शहरों में स्थिति सहकारी बाजारों, मेलों पर्यटक स्थलों पर जैविक उत्पादों उत्पादों के लिए अनुदानित (सस्ती) दरों पर दुकान उपलब्ध कराना|
6. जैविक फल, सब्जी के परिवहन पर रेलवे द्वारा रियायती दरों व वरीयता से परिवहन का प्रावधान करना|
इसी प्रकार जैविक खेती के लिए नीतियों में प्राथमिकता देकर व उसके लिए सघन कार्यक्रम चलाकर ही देश की भूमि- किसान – उपभोक्ता को स्वस्थ व आर्थिक रूप से मजबूत बनाकर स्थाई विकास व खुशहाली लाने का सपना साकार किया जा सकता है|
स्रोत : हलचल, जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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