बिहार के बांका जिले में 100 से अधिक महिलाएं पलाश के फूल से हर्बल गुलाल बनाकर आत्मनिर्भर हो रही हैं। देश की राजधानी दिल्ली तक इस गुलाल की धूम मची है। पांच साल पूर्व जाधवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता के छात्रों व अध्यापकों की एक शोध टीम बांका आई थी। टीम के सदस्य यहां के पलाश के कुछ फूल विवि ले गए। वहां इनसे हर्बल गुलाल बनाया गया। इसके बाद उक्त टीम के मार्गदर्शन में पिरौटा वन समिति ने इसका निर्माण शुरू किया। उस समय से देश के विभिन्न शहरों में यह गुलाल अपनी धूम मचा चुका है। क्योंकि हर्बल गुलाल की मांग दिनों-दिन बैती जा रही है। बाजार में मिलने वाले अधिकांश गुलाल केमिकल से बनाए जाते है और यह रंग शरीर पर लगाने से हानि पहुंचाता है।
उपेंद्र यादव, वन समिति अध्यक्ष ने बताया की हर्बल गुलाल तैयार करने के लिए पलाश के फूल, टेल्कम पाउडर, अरारोट, फिटकिरी व इत्र की आवश्यकता होती है। पिरौटा, मोहनपुर, ढोढोरी, ललिमटया, दुधघिटया, राता, भीतिया सहित अन्य जंगलों में करीब 1200 एकड़ जमीन पर लगे पलाश के वृक्षों से 15 लाख हजार ¨क्विंटल फूल प्राप्त होते हैं। फुल्लीडुमर के पिरौटा में पलाश के फूल से गुलाल तैयार करती है महिलाएं। जागरणपलाश के फूल, सीमा के पत्ते एवं सिंदूर के फलों से अबीर बनाने को लेकर पुरस्कृत भी किया जा चुका है। 2014 में हर्बल क्षेत्र में रोजगार सर्जन के टिप्स देने के लिए बिहार के मुख्यमंत्नी नीतीश कुमार एवं हर्बल रंग की खोज के लिए 2004 में तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त ने भी सम्मानित किया है।
ललिमटया की राधा देवी, लाखो देवी, पिरौटा की मुन्नी देवी, छोटकी देवी, कुर्थीवारी की सरसती देवी, कुल्होड़ी की मुन्नी देवी आदि ने बताया कि गुलाल बनाने की कला ने उनकी तकदीर ही बदल दी। पहले कई घरों में रोटी के भी लाले पड़ते थे। अब स्वरोजगार से आर्थिक समृद्धि आई है। बांका का हर्बल गुलाल पिछले तीन-चार साल में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक अपनी हाजिरी लगा चुका है। वन समिति इसे खास लोगों के पास भेजती रही है।
लेखन : संदीप कुमार, स्वतंत्र पत्रकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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