भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग द्वारा गठित जनसंख्या अनुमान संबंधी तकनीकी समूह की रिपोर्ट, मई 2006 के अनुसार 1 मार्च, 2001-2026 की स्थिति के अनुसार 60 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों की लिंगानुसार अनुमानित जनसंख्या निम्नानुसार है:- लाख में
वर्ष |
पुरूष |
महिला |
व्यक्ति |
2001 |
34.94 |
35.75 |
70.69 |
2006 |
40.75 |
42.83 |
83.58 |
2011 |
48.14 |
50.33 |
98.47 |
2016 |
58.11 |
59.99 |
118.10 |
2021 |
70.60 |
72.65 |
143.24 |
2026 |
84.62 |
88.56 |
173.18 |
वृद्ध जनसंख्या की प्रोफाइल दर्शाती है कि –
1 मार्च, 2001-2026 को कुल अनुमानित जनसंख्या में 60 वर्ष से अधिक की आयु वाले लोगों की लिंगानुसार अनुमानित जनसंख्या का प्रतिशत हिस्सा इस प्रकार है-
वर्ष |
पुरूष |
महिला |
व्यक्ति |
2001 |
6060 |
7.10 |
6.90 |
2006 |
7.10 |
8.00 |
8.50 |
2011 |
7.70 |
8.70 |
8.30 |
2016 |
8.70 |
8.90 |
9.30 |
2021 |
10.20 |
11.30 |
10.70 |
2026 |
11.80 |
13.10 |
12.40 |
माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 में माता-पिता/दादा-दादी को उनके बच्चों द्वारा आवश्यकता आधारित भरण-पोषण प्रदान करने की परिकल्पना की गई है। माता-पिता के भरण-पोषण दावों का समयबद्ध निपटान करने के प्रयोजनार्थ अधिकरणों की स्थापना की जाएगी। अधिकरण की कार्यवाही में किसी भी स्तर पर वकीलों को भागीदारी से प्रतिबंधित किया गया है। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 में वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा, बेहतर चिकित्सा सुविधाएं, प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रम स्थापित करने जैसे समर्थकारी प्रावधान भी शामिल हैं।
यह अधिनियम जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर लागू है तथा यह भारत से बाहर भारतीय नागरिकों पर भी लागू है। (धारा 1 (2))
यह अधिनियम राज्यों में उस तिथि से लागू होगा जब राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के जरिए इसे लागू करें। (धारा 1 (3))
अधिनियम ‘बच्चों’ को पुत्र, पुत्री, पोता, पोती के रूप में परिभाषित करता है जो नाबालिग नहीं हैं।
‘भरण-पोषण’ में भोजन, कपड़ा, चिकित्सकीय देखभाल तथा उपचार शामिल है।
‘वरिष्ठ नागरिक’ का तात्पर्य भारत का कोई नागरिक जिसकी आयु 60 वर्ष या उससे अधिक हो।
अधिनियम में प्रावधान है कि वरिष्ठ नागरिक सहित माता-पिता जो अपनी स्वयं की आय अथवा अपनी संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, भरण-पोषण का दावा करने के लिए आवेदन करने का पात्र है।
भरण-पोषण हेतु आवेदन किया जा सकता है -
अधिकरण इस धारा के तहत भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ते से संबंधित कार्यवाही के निर्णय आने तक माता-पिता सहित ऐसे वरिष्ठ नागरिक को अंतरिम भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ते की व्यवस्था करने हेतु ऐसे बच्चों या संबंधियों को आदेश दे सकता है तथा माता-पिता सहित ऐसे वरिष्ठ नागरिक को समय-समय अधिकरण के आदेशानुसार इसका भुगतान करने को कह सकता है।
भरण-पोषण और कार्यवाही के लिए खर्चों हेतु मासिक भत्तों के लिए उप-धारा (2) के तहत दायर आवेदन को ऐसे व्यक्ति को आवेदन का नोटिस देने की तिथि से 90 दिनों के भीतर निपटाया जाएगा। तथापि, अधिकरण उक्त अवधि को, लिखित में कारण दर्ज करते हुए अपवादात्मक मामलों में अधिकतम 30 और दिनों के लिए एक बार बढ़ा सकता है।
भारतीय संविधान की समवर्ती सूची (अनुसूची VII) की प्रविष्टि 23 के साथ पठित अनुछेद 41 के उपबंधों के अनुसरण में इस अधिनियम का अधिनियमन किया गया है। राज्य सरकारों से अधिनियम को अधिसूचित करने तथा अधिनियम के प्रावधानों का क्रियान्वयन करने के लिए नियम बनाना अपेक्षित हे। तथापि, अधिनियम की धारा 30 केन्द्र सरकार को अधिनियम के प्रावधानों को कार्यान्वित करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश देने के लिए समर्थ बनाती है। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 31 राज्य सरकारों द्वारा अधिनयिम के कार्यान्वयन की प्रगति की निगरानी और आवधिक समीक्षा का उपबंध करती है। मंत्रालय, राज्यों द्वारा अधिनियम के उपबंधों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, इन उपबंधों के अनुसार कार्य करेगी।
राज्य सरकारों से अपेक्षित है कि वे इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से 6 महीनों की अवधि के भीतर प्रत्येक उपमंडल में आवश्यकतानुसार एक या अधिक अधिकरण स्थापित करें।
अधिनियम के अंतर्गत दिए गए भरण-पोषण आदेश का प्रभाव दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय IX के तहत पारित आदेश के समान होगा और संहिता में निर्धारित आदेश क्रियान्वयन के अनुरूप ही इसका क्रियान्वयन किया जाएगा।
अधिकरण के आदेश से दुखी वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता, जैसा भी मामला हो, आदेश की तारीख से 60 दिनों के भीतर अपीलीय अधिकरण में अपील कर सकते हैं।
अपीलीय अधिकरण से अपील प्राप्त होने के एक माह के भीतर लिखित में अपना आदेश सुनाने का प्रयास करना अपेक्षित है।
जी, हां। अधिकरण द्वारा दिए गए भरण-पोषण आदेश का प्रभाव दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पारित भरण-पोषण आदेश जैसा ही होगा। इसमें 1 माह तक की कैद और जुर्माना लगाने के लिए प्रदत्त तरीके में देय धनराशि प्रभारित करने हेतु वारंट जारी करना भी शामिल है।
अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वरिष्ठ नागरिक कोई भी संपति प्रतिसंहरित कर सकते है, जो इस शर्त पर बच्चों/संबंधियों के पक्ष में अंतरित की जा चुकी है कि ऐसे बच्चे/संबधी उनको भरण-पोषण प्रदान करेंगे किंतु वे ऐसा नही कर रहे हैं। अधिकरण माता-पिता के आवेदन पर ऐसे अंतरण को निष्प्रभावी घोषित करने का अधिकार रखता है।
जी, हां। माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 में बच्चों द्वारा अपने माता-पिता को छोड़ने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए 3 माह तक की सजा तथा 5,000/रू. का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
कोई माता-पिता या तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत स्थापित न्यायालय या भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के अंतर्गत स्थापित अधिकरण से निर्धारित तरीके से भरण-पोषण का दावा कर सकता है यदि वह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है। इन्हें लागू करने के दण्डात्मक प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता/ भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गठित अधिकरण दोनो में समान हैं।
अधिनियम में प्रावधान है कि राज्य सरकारें सुनिश्चित करेगी कि-सरकारी अस्पताल या सरकार द्वारा पूर्णत: या अंशत: वित्तपोषित अस्पताल निम्न व्यवस्था करेगा; यथासंभव सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए बेड की व्यवस्था हो; वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग पंक्ति हो; वरिष्ठ नागरिकों को लम्बी बीमारी, टर्मिनल तथा क्षयकारी रोगों के उपचार की सुविधा प्रदान की जाए; लम्बी वृद्धावस्था की बीमारियों तथा भरण के लिए शोध कार्य-कलाप किए जाएं; जरा-चिकित्सा में अनुभव वाले चिकित्सा अधिकारी की अध्यक्षता में प्रत्येक जिला अस्पताल में जरा-मरीजों के लिए निश्चित सुवधाएं हों।
अधिनियम में पुलिस अधिकारियों और न्यायिक सेवा के सदस्यों सहित केन्द्र तथा राज्य सरकारों के अधिकारियों को अधिनियम से संबंधित मुद्दों पर आवधिक सुग्राहीकरण तथा जागरूकता प्राशिक्षण दिया जाना अपेक्षित है। इसके अलावा, राज्य सरकार वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और सम्पति की रक्षा के लिए व्यापक कार्य योजना निर्धारित करेगी।
अधिनियम में प्रावधान है कि वरिष्ठ नागरिक की देखभाल और सुरक्षा करने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसे वरिष्ठ नागरिक को पूर्णतया छोड़ने की भावना से किसी भी स्थान पर छोड़ता है तो 3 माह तक की कैद या पांच हजार रू. तक के जुर्माने या दोनों की सजा का भागी होगा।
केन्द्र सरकार राज्य सरकारों द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन की प्रगति की आवधिक समीक्षा तथा निगरानी कर सकती है।
स्त्रोत: सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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