भारत की औसत प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग 914 यूनिट/सालाना है, जबकि गुजरात का 1,800, चीन का 4,000 और अमेरिका का 14,000 यूनिट है। देश में बेशुमार सुप्त मांग है और आजादी के 67 सालों के बाद भी भारत में लगभग 30 करोड़ लोग बिजली के बगैर रह रहे हैं। यह बड़ी त्रासद स्थिति है। इसका परिवारों की उत्पादकता, खासकर महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बिजली की कमी आय बढ़ाने के अवसरों को सीमित कर देती है जिससे उनके गरीबी के जाल में स्थाई रूप से फंस जाने की आशंका बेहद मजबूत हो जाती है।
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरजीजीवीवाई) किसी गांव को ‘बिजली संपन्न’ मान लेता है जब केवल 10 फीसदी घरों, कुछ सार्वजनिक भवनों में बिजली के तार लग चुके हैं। उनमें वास्तव में बिजली आई है या नहीं, या वे बिजली का उपभोग कर रहे हैं या नहीं, इस पर विचार नहीं किया जाता। आधिकारिक रूप से ‘बिजली संपन्न’ किसी गांव के शेष घरों की स्थिति वांछनीय नहीं है।
अवरूद्ध पड़ी बिजली सृजन क्षमता
इस समस्या की जड़ 4 वर्षों (वित्त वर्ष 10-14) में कोयला आधारित बिजली सृजन क्षमता में 73 फीसदी की बढ़ोत्तरी (14.7 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर) रही जबकि इस अवधि के दौरान कोयला उत्पादन में केवल 6.1 फीसदी (1.5 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर) की बढ़ोत्तरी रही। कोयला उत्पादन पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में जटिलताओं और मनमानेपन की वजह से सुस्त पड़ा रहा। ठीक इसी प्रकार, लगभग 24,000 मेगावाट के गैस आधारित बिजली संयंत्र गैस की कमी की वजह से बाधित पड़े हैं। इसके परिणामस्वरूप अरबों डॉलर के निवेश रूके पड़े हैं।
हमारी विशाल पनबिजली क्षमताओं का अधिकतम क्षमता से कम उपयोग
पेशेवर तरीके से आंदोलन करने वाले अक्सर राज्य स्तरीय कानून व्यवस्था मुद्दों को हवा दे देते हैं। भारत के पनबिजली क्षेत्र के विकास में राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद बड़ी बाधा साबित हुए हैं। पर्यावरण मंजूरी के लिए थका देने वाले और लगभग अंतहीन देरी ने पनबिजली उत्पादकों की समस्याओं को और बढ़ा दिया है और इसके परिणाम स्वरूप कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू नहीं हो सकी हैं या बाधित पड़ी हैं। इस तरह से उत्पादित बिजली से लाभान्वित होने वाले लोगों की प्रतीक्षा लगातार जारी है।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र पर फोकस की कमी
नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम की साख को इस वजह से भी बड़ा धक्का लगा है कि 3,210 करोड़ रुपए के बराबर की सब्सिडी की प्रतिबद्धता की गई थी लेकिन अभी तक उसका व्यय नहीं किया गया है। आश्वासन के बावजूद फंड अनुपलब्धता के कारण कई मंजूरी प्राप्त योजनाएं अवरूद्ध पड़ी हैं और उन्हें क्रियान्वित नहीं किया गया है। इसने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को सभी नए प्रतिबंधों पर रोक लगाने और अब तक की दो प्रमुख योजनाओं को सब्सिडी दिए जाने पर संभावित रोक लगाने को बाध्य किया है। पुरानी सब्सिडियों का अलग से वितरण किया जा रहा है।
राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा फंड की शुरूआत नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के वित्त पोषण के लिए की गई थी। बहरहाल, जो धन जुटाया गया, उसका इस्तेमाल राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए किया गया और केवल एक छोटी सी राशि का उपयोग मूल उद्देश्यों के लिए किया गया। 10,254 करोड़ रूपए के बराबर की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई जबकि नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को केवल 4,84 करोड़ रूपए की मामूली रकम जारी की गई। इसकी वजह से देश में कई ऊर्जा उद्यमियों को भारी निराशा का सामना करना पड़ा। एक तरफ, भारत की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में है तो दूसरी तरफ कई ऐसे गलत कदम उठाए गए जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की प्रगति को बाधा पहुंचाई।
अंत:क्षेत्रीय पारेषण बाधाएं
पारेषण के लिए जरूरी निवेश बढ़ती मांग और सृजन क्षमता के साथ कदम मिलाकर नहीं रख सका। इसकी वजह से पारेषण में बाधाएं पैदा हुईं और अधिशेष वाले राज्यों (अर्थात् छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य जो खदान निकास के निकट हैं) से कमी वाले राज्यों (अर्थात् तमिलनाडु) को बिजली के प्रवाह में दिक्कतें आईं।
दयनीय वितरण बुनियादी ढांचा
सरकार ने सभी के लिए 24 घंटे और सातों दिन बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निम्न कदम उठाएं हैं-
बिजली संयंत्रों को पर्याप्त कोयला उपलब्ध कराया जायेगा ।
बिजली क्षेत्र में सुधारों का अगला सात महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हैं-
1. जून से अगस्त 2014 के दौरान कोयला आधारित बिजली उत्पादन में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में रिकॉर्ड 21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई।
2.सीआईएल ने और अधिक कोयला निकालने के लिए सैद्धांतिक रूप से 250 अतिरिक्त रैक (5000 करोड़ रूपए) खरीदने का फैसला किया। इसके अलावा सरकार, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में तीन महत्वपूर्ण रेलवे लाइन स्थापित करने का कार्य तेजी से कर रही है। इससे 2017-18 तक प्रतिवर्ष 60 मिलियन टन मुनाफा कमाने की क्षमता हो जाएगी, जो 2021-22 तक 200 मिलियन टन तक बढ़ जाएगी।
3.उसी मात्रा के कोयले से अधिक से अधिक बिजली पैदा करने के लिए पुराने और बेकार पडें संयंत्रों (> 25 वर्ष पुराने संयंत्र: 32500 मेगावॉट) को अतिआधुनिक महत्वपूर्ण संयंत्रों में बदलने के लिए संयोजन में स्वचालित परिवर्तन। कोयला संयोजन की तर्कसंगत व्याख्या करने पर भी कार्य चल रहा है। (गुजरात और छत्तीसगढ़ के बीच पूरा परिवर्तन हो चुका है), जिसका उद्देश्य नजदीकी खदानों से बिजली संयंत्रों को जोड़ना है। इस एकमात्र कदम से ही करोड़ों रूपये की बचत हो सकती है।
4.त्वरित पर्यावरण मंजूरी सुनिश्चित करना (समयबद्ध निगरानी के साथ क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण) और पर्यावरण सुरक्षा के लिए कदम।
5.सौर अवयवों के एंटी डम्पिंग शुल्क विवाद को आपसी सहमति से सुलझाना, ताकि भारत में निर्मित (मेड इन इंडिया) सौर ऊर्जा उपकरणों को अधिक प्रोत्साहन दिया जा सके।
6.पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के लिए त्वरित अवमूल्यन को बहाल करने पर जोर दिया गया, ताकि पवन ऊर्जा निर्माताओं को फायदा मिल सके।
7.ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और घरेलू अपशिष्ट पदार्थों को अलग-अलग करने और संचारण तथा वितरण के ढांचे को मजबूत बनाने के लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (अनुमानित लागत 43000 करोड़ रूपये)। शहरी क्षेत्रों में उप-संचारण और वितरण की मजबूती के लिए समेकित बिजली विकास योजना (अनुमानित लागत 32600 करोड़ रूपये)। इसमें सौ प्रतिशत मीटर लगाना और भूमिगत केबल लगाना शामिल है।
सरकार को ऊर्जा क्षेत्र में कई समस्याएं विरासत में मिली हैं। 30 करोड़ से अधिक भारतीयों तक बिजली की पहुंच नहीं है, जिसका विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और आय अर्जन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बिजली कटौती हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन गई है। बिजली की बढ़ती मांग के मद्देनजर कोयला और गैस आधारित ऊर्जा संयंत्रों में करोड़ों का निवेश करने के बावजूद ये बेकार पड़े हैं या अपनी क्षमता से कम कार्य कर रहे हैं। राज्य बिजली बोर्डों पर 3 लाख 4 हजार रूपये का कर्ज है और उनका घाटा 2 लाख 52 हजार करोड़ रूपये है। इस तरह के कई कारणों से नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर लाचार हो गया है।
सरकार ऊर्जा क्षेत्र में संरचनात्क बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है और सभी घरों, औद्योगिक और व्यापारिक प्रतिष्ठानों तथा कृषि क्षेत्र के लिए पर्याप्त ऊर्जा 24x7 उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेगी। पिछले 100 दिनों में सरकार ने प्रमुख मंत्रालयों (पर्यावरण एवं वाणिज्य, रेलवे, वित्त, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, स्टील, खनन आदि) वित्तीय संस्थानों, औद्योगिक संस्थानों, पारेषण एवं वितरण कंपनियों, ऊर्जा उत्पादकों एवं नवीकरणीय ऊर्जा आदि जैसे प्रमुख अंशधारकों के अलावा 18 राज्यों के साथ सरकार ने विस्तृत विचार-विमर्श किया है। सरकार ने इस सेक्टर की जटिलताओं को समझकर कई कदम उठाए हैं और इसके परिणाम अब सामने आने शुरू हो गए हैं।
सरकार ऊर्जा संयंत्रों के लिए पर्याप्त मात्रा में कोयला उपलब्ध कराने के लिए कई कदम उठा रही है और वर्ष 2019 तक उत्पादन लक्ष्य एक बिलियन टन है। कोयला आधारित बिजली उत्पादन में जून से अगस्त 2014 तक पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में रिकॉर्ड 21 प्रतिशत बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। अगस्त 2013 की तुलना में अगस्त 2014 में कोयला उत्पादन में 9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
कोयला आपूर्ति करने वाली प्रमुख कंपनी कोल इण्डिया लिमिटेड (सीआईएल) ने तीसरी पार्टी से सैम्पल लेने की व्यवस्था और वाशरीज़ तथा क्रेशर से स्वच्छ तथा बारीक कोयले की उपभोक्ताओं की मांग को देखते हुए कोयले को बेहतर गुणवत्ता के साथ आपूर्ति करने की बात कही। राख की कमी और सस्पेंडेंड पाटिर्कल से पर्यावरण क्षति को भी कम कर सकते है। बेहतर गुणवत्ता के कोयले को निकालने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये है, सीआईएल ने सैद्धांतिक रूप से 5 हजार करोड़ मूल्य के अतिरिक्त 250 रैकों की खरीददारी और छत्तीसगढ़, झारखण्ड तथा ओडिशा में तीन महत्वपूर्ण रेलवे लाइनों के तेजी से निर्माण करने का फैसला किया है, जिससे 2017-18 तक हर वर्ष 60 मिलियन टन और 2021-22 तक हर वर्ष 200 मिलियन टन कोयले की संभावित वृद्धि होगी।
पुराने एवं अक्षम संयंत्र (25 साल से पुराने संयंत्र-32,500 मेगावॉट) से अति आधुनिक एवं सुपर क्रिटिकल संयंत्र में लिंकेज का स्वत: परिवर्तन की मंजूरी दी गई है, ताकि उतने ही कोयले की खपत कर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके। कोल लिंकेज को युक्तिसंगत बनाने का काम जारी है (गुजरात और छत्तीसगढ़ में काम पूरा) जिसका मकसद ऊर्जा संयंत्रों को नजदीकी खदानों से जोड़ना है। यह कदम करोड़ों रुपये की बचत करने में सक्षम साबित होगा। व्यवस्थित तरीके से (आर एफ आई डी ऑफ कोल मूवमेंट, और नेशनल कोल डिस्पेच मॉनिटरिंग सेंटर की स्थापना) कोयला चोरी पर शिकंजा कसने के लिए भी कदम उठाए गए हैं।
बाधित पड़े गैस आधारित संयंत्र के मुद्दों के समाधान के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पीक समय की मांग को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से संयंत्रों को गैस से संचालित करने के लिए सक्षम बनाया गया है, ताकि आपात स्थिति में बहुत कम समय के नोटिस पर बिजली का उत्पादन किया जा सके।
पूर्वोत्तर राज्यों में पनबिजली के उत्पादन को बढ़ावा देने का लक्ष्य तय किया गया है, ताकि देश के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों को भी अधिक मात्रा में बिजली प्राप्त हो सके और इसकी बिक्री कर उनकी आमदनी बढ़ाई जा सके। समयबद्ध तरीके से पर्यावरण संबंधी मंजूरी लेने की कार्य योजना तैयार की गई है।
अक्षय ऊर्जा के लिए धन की व्यवस्था के वास्ते अधिक संसाधन जुटाने के लिए केन्द्र ने कोयले पर स्वच्छ ऊर्जा उप-कर की दर दुगुनी (50 रुपये प्रति टन से बढ़ाकर 100 रुपये प्रति टन) कर दी है, ताकि राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि में योगदान किया जा सके। अक्षय ऊर्जा संसाधनों के लिए बजट परिव्यय में 65.8 प्रतिशत (सौर ऊर्जा के लिए रु. 1000/- करोड़ की सीधे वित्त व्यवस्था सहित) की बढ़ोतरी की गई है, जो मुख्य रूप से सौर वाटर पम्पों और अति आधुनिक सौर ऊर्जा परियोजनाओं से संबंधित है। डम्पिंग शुल्क विरोधी मुद्दे का सदभावपूर्ण समाधान कर लिया गया है और मेक इन इंडिया (भारत में निर्मित) की धारणा पर बल देते हुए सौर विनिर्माण में घरेलू जरूरतों को प्राथमिकता दी जा रही है।
सरकार ने पवन-ऊर्जा निर्माताओं के लिए त्वरित अवमूल्यन लाभ भी बहाल कर दिया है ताकि पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता में तेजी से वृद्धि की जा सके। 2012 में तदर्थ आधार पर यह लाभ समाप्त किए जाने से 2013 में संस्थापन क्षमता में करीब 50% की गिरावट आई थी।
ग्रामीण भारत में कृषि और घरेलू उपयोग के लिए फीडर पृथक्करण के लिए करीब 43,000 करोड़ रुपये की संभावित लागत से दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और सब-ट्रांसमिशन और पारेषण ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए करीब 32,600 करोड़ रुपये के संभावित निवेश के साथ समेकित ऊर्जा विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत शहरी क्षेत्रों में मीटर लगाने और भूमिगत केबल लगाने जैसे कार्य भी शामिल हैं। ये कार्यक्रम चौबीसों घंटे और सातों दिन निरंतर बिजली उपलब्ध कराने की हमारी दिशा में एक बड़ा कदम सिद्ध होंगे। 12,272 करोड़ रूपये की लागत की दीर्घावधि से लंबित ट्रांसमीशन परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। नवीकरणीय ऊर्जा की व्यवस्था के लिए ग्रीन एनर्जी कोरिडोर पर भी तेजी से अमल किया जा रहा है।
विद्युत अधिनियम 2003 और टैरिफ नीति में संशोधन जैसे अन्य नियामक उपायों को भी अंतिम रूप दे दिया गया है। इनसे सुधारों के अगले चरण की शुरूआत होगी, जिनमें खुदरा बाजार में प्रतिस्पर्धा पैदा करना और नवीकरणीय खरीद दायित्व व्यवस्था लागू करना शामिल है।
सरकार ने अगस्त 2014 में ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी दी है जिसका खर्च 775 करोड़ रूपए है। बेहतर प्रौद्योगिकी के लिए निवेश बढ़ाने, उपक्रम पूंजी का सृजन करने और ऊर्जा संरक्षण के लिए नई संहिता बनाने के लिए अधिसूचना जारी की जाएगी।
स्रोत: पत्र सूचना कार्यालय
अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020
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