राज्यों की पर्यावरण रिपोर्ट
पर्यावरण की स्थिति पर प्रतिवेदन का मुख्य उद्देश्य है भारत में पर्यावरण की वस्तु-स्थिति प्रस्तुत करना जो मौलिक दस्तावेज के रूप में प्रयुक्त हों तथा युक्तिसंगत एवं सूचना आधारित निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में सहायता करे। पर्यावरण की दशा पर प्रतिवेदन का लक्ष्य आने वाले दशकों में संसाधन के निर्धारण हेतु पर्यावरण की दशा एवं प्रवृत्ति के विश्लेषण पर आधारित नीति-निर्देश उपलब्ध कराना तथा राष्ट्रीय पर्यावरणकारी योजना हेतु दिशा-निर्देश मुहैया कराना है।
भारत के लिए पर्यावरण स्थिति पर प्रतिवेदन के अंतर्गत पर्यावरण (भूमि, वायु, जल, जैव विविधता) की दशा एवं प्रवृत्तियाँ तथा 5 महत्त्वपूर्ण विषय, अर्थात् जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, जल सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा एवं शहरीकरण का प्रबंधन शामिल हैं। प्रतिवेदन में पर्यावरण की वर्तमान दशा एवं प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण में परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी दबाव तथा इन परिवर्तनों के प्रभाव से संबंधित अनेक प्राथमिक मुद्दे शामिल हैं। यह प्रतिवेदन, भविष्य में पर्यावरण क्षरण की रोकथाम एवं निगरानी के उत्तरदायित्व के रूप में कार्यक्रमों अथवा सरकार द्वारा लागू की गई वर्त्तमान एवं प्रस्तावित नीतिगत उपायों का मूल्यांकन भी करता है, साथ ही, नीतिगत विकल्प भी प्रस्तावित करता है।
पर्यावरण स्थिति पर प्रतिवेदन 2009 के महत्त्वपूर्ण बिंदु
- भारत में भूमि का लगभग 45% अपरदन, मृदा अम्लीयता, क्षारीयता एवं लवणीयता, जल जमाव तथा वायु अपरदन के कारण निम्निकृत है। भूमि के निम्नीकरण के मुख्य कारण हैं- वनों की कटाई, अ-धारणीय (असुस्थिर) कृषि, खनन एवं भू-जल का अत्यधिक दोहन। यद्यपि, 1470 लाख हेक्टेयर निम्नीकृत भूमि की दो-तिहाई को बड़ी सरलता से सुधारा जा सकता है। भारत में वन आच्छादन क्रमिक रूप से बढ़ रहा है (वर्तमान में लगभग 21%)।
- भारत के सभी शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। सांस लेने योग्य वायु में छोड़ गये कणों (कार्बन एवं धूल कण जो फेफड़े के अंदर पहुंचते हैं) की मात्रा का स्तर भारत के 50 शहरों में बढ़ गया है। शहर की हवा में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण वाहन एवं कारखाने हैं।
- भारत अपने उपयोग किये जा सकने वाले जल की मात्रा का 75% उपयोग में ला रहा है और यदि इसका उपयोग सावधानी से किया जाए तो यह भविष्य के लिए बस जरूरत भर की मात्रा है। घरेलू उपयोग हेतु जल की उचित कीमत निर्धारण की कमी, साफ-सफाई की खराब स्थिति, उद्योगों द्वारा भूमि जल का अनियंत्रित निष्कर्षण, कारखानों द्वारा विषैली तथा कार्बनिक गंदे जल का प्रवाह, अदक्ष सिंचाई व्यवस्था तथा रासायनिक ऊर्वरकों एवं कीटनाशियों का अत्यधिक प्रयोग, देश में जल संकट का मुख्य कारण है।
- यद्यपि भारत विभिन्न मानव प्रजातियों की संख्या की दृष्टि से विश्व के 17 समृद्धतम जैव विविधता वाले देशों में से एक है, किंतु इसके 10% वन्य जीव एवं वनस्पति का अस्तित्व खतरे में हैं। इसके मुख्य कारण हैं- पर्यावास का विनाश, शिकार, हमलावर प्रजाति, अत्यधिक विदोहन, प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन।
- भारत की शहरी जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई मलिन बस्तियों में निवास करती है।
- भारत विश्व में जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हरित गृह गैसों के कुल उत्सर्जन का केवल 5 प्रतिशत उत्सर्जित करता है। यद्यपि 70 करोड़ भारतीय प्रत्यक्ष रूप से भूमंडलीय तापन के खतरे का सामना कर रहे हैं क्योंकि यह कृषि को प्रभावित करता है, सुखाड़, बाढ़ और तूफानों को बार-बार उत्पन्न करता है तथा समुद्र के जलस्तर में वृद्धि करता है।
जल गुणवत्ता के मानदण्ड
निर्दिष्ट सर्वश्रेष्ठ उपयोग
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जल की श्रेणी
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मानदण्ड
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पेयजल का स्रोत, बगैर पारम्परिक उपचार के लेकिन कीटाणुनाशन के बाद
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A
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- कुल कॉलिफॉर्म जीव एमपीएन/100 मि.लि. में 50 या उससे कम होने चाहिए
- pH 6.5 से 8.5 के बीच
- घुला हुआ ऑक्सीजन 6 मि.ग्रा./लि या अधिक
- बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड 5 दिन 20°से, 2 मि.ग्रा./लि या उससे कम
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घर के बाहर स्नान (सुनियोजित)
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B
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- कुल कॉलिफॉर्म जीव एमपीएन/100 मि.लि. में 500 या उससे कम होने चाहिए
- pH 6.5 से 8.5 के बीच
- घुला हुआ ऑक्सीजन 5 मि.ग्रा./लि या अधिक
- बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड 5 दिन 20°से, 3 मि.ग्रा./लि या उससे कम
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पेयजल का स्रोत, पारम्परिक उपचार तथा कीटाणुनाशन के बाद
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C
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- कुल कॉलिफॉर्म जीव एमपीएन/100 मि.लि. में 5000 या उससे कम होने चाहिए
- pH 6 से 9 के बीच
- घुला हुआ ऑक्सीजन 4 मि.ग्रा./लि या अधिक
- बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड 5 दिन 20°से, 3 मि.ग्रा./लि या उससे कम
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वन्य जीवन तथा मछलीपालन का प्रसार
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D
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- pH 6 से 9 के बीच
- घुला हुआ ऑक्सीजन 4 मि.ग्रा./लि या अधिक
- मुक्त अमोनिया (N के रूप में) 1.2 मि.ग्रा./लि या उससे कम
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कृषि, औद्योगिक शीतलन, नियंत्रित कूड़ा निष्कासन
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E
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- pH 6 से 8.5 के बीच
- विद्युत चालकता 25° से पर माइक्रोम्हो/से.मी. अधिकतम 2250
- सोडियम अवशोषण अनुपात अधिकतम 26
- बोरॉन अधिकतम 2 मि.ग्रा./लि
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E से नीचे
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A, B, C, D एवं E मानदण्डों को पूरा नहीं करता है
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जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) को औपचारिक रूप से 30 जून 2008 को लागू किया गया। यह उन साधनों की पहचान करता है जो विकास के लक्ष्य को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही, जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लाभों को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय कार्य योजना के कोर के रूप में आठ राष्ट्रीय मिशन हैं। वे जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण, ऊर्जा दक्षता एवं प्रकृतिक संसाधन संरक्षण की समझ को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
आठ मिशन हैं:
- राष्ट्रीय सौर मिशन
- विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन
- सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
- राष्ट्रीय जल मिशन
- सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
- सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
- जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन
राष्ट्रीय सौर मिशन
इस मिशन का उद्देश्य देश में कुल
ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा के अंश के साथ अन्य नवीकरणीय साधनों की संभावना को भी बढ़ाना है। यह मिशन शोध एवं विकास कार्यक्रम को आरंभ करने की भी माँग करता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग को साथ लेकर अधिक लागत-प्रभावी, सुस्थिर एवं सुविधाजनक सौर ऊर्जा तंत्रों की संभावना की तलाश करता है। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना ने शहरी क्षेत्रों, उद्योगों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में सौर ऊर्जा के सभी निम्न तापमान (<150° सेंटीग्रेड) वाले अनुप्रयोगों के लिए 80% राशि तथा मध्यम तापमान (150° सेंटीग्रेड से 250° सेंटीग्रेड) के अनुप्रयोगों हेतु 60% राशि उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे हासिल करने के लिए समय-सीमा वर्ष 2017 तक 11वें एवं 12वें पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि तय की गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अनुप्रयोगों को सरकारी-निजी भागीदारी के तहत लागू किया जाना है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना ने वर्ष 2017 तक एकीकृत साधनों से 1000 मेगावाट/वर्ष फोटोवोल्टेइक उत्पादन का लक्ष्य रखा है। साथ ही, 1000 मेगावाट की संकेंद्रित सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करने का भी लक्ष्य है।
संवर्धित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन
भारत सरकार ने ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने हेतु पहले से ही कई उपायों को अपनाया है। इनके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य-योजना के उद्देश्यों में शामिल हैं:
- बड़े पैमाने पर उर्जा का उपभोग करने वाले उद्योगों में ऊर्जा कटौती की मितव्ययिता को वैधानिक बनाना एवं बाजार आधारित संरचना के साथ अधिक ऊर्जा की बचत को प्रमाणित करने हेतु एक ढाँचा तैयार करना ताकि इस बचत से व्यावसायिक लाभ लिया जा सके।
- कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा-दक्ष उपकरणों/उत्पादों को वहनयोग्य बनाने हेतु नवीन उपायों को अपनाना।
- वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक तंत्र का निर्माण तथा भविष्य में होने वाली ऊर्जा बचतों के दोहन हेतु कार्यक्रमों का निर्माण और इसके लिए सरकारी-निजी भागीदारी की व्यवस्था करना।
- ऊर्जा दक्षता बढ़ाने हेतु ऊर्जा-दक्ष प्रमाणित उपकरणों पर विभेदीकृत करारोपण सहित करों में छूट जैसे वित्तीय उपायों को विकसित करना।
राष्ट्रीय जल मिशन
राष्ट्रीय जल मिशन का लक्ष्य जल संरक्षण, जल की बर्बादी कम करना तथा एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के द्वारा जल का अधिक न्यायोचित वितरण करना है। राष्ट्रीय जल मिशन, जल के उपयोग में 20% तक दक्षता बढ़ाने हेतु एक ढाँचा का निर्माण करेगा। यह वर्षाजल एवं नदी प्रवाह की विषमता से निबटने हेतु सतही एवं भूगर्भीय जल के भंडारण, वर्षाजल संचयन तथा स्प्रिंकलर अथवा ड्रिप सिंचाई जैसी अधिक दक्ष सिंचाई व्यवस्था की सिफारिश करता है।
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006
- राष्ट्रीय पर्यावरण नीति वर्तमान नीतियों (उदाहरण के लिए राष्ट्रीय वन नीति, 1988; राष्ट्रीय संरक्षण रणनीति तथा पर्यावरण एवं विकास पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; तथा प्रदूषण निवारण पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000; राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000; राष्ट्रीय जल नीति, 2002 इत्यादि) का एकीकरण करती है।
- नियामकीय सुधार, पर्यावरणीय संरक्षण कार्यक्रम एवं परियोजना, केंद्र, राज्य व स्थानीय सरकार द्वारा कानूनों के पुनरावलोकन एवं उसके कार्यान्वयन में, इसकी भूमिका मार्गदर्शन देने की होगी।
- इस नीति की मुख्य विषयवस्तु है पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण सबके कल्याण एवं आजीविका सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक है। अतः संरक्षण का सबसे मुख्य आधार यह होना चाहिए कि किसी संसाधन पर निर्भर रहने वाले लोगों को संसाधन के निम्नीकरण की बजाय उसके संरक्षण के द्वारा आजीविका के बेहतर अवसर प्राप्त हो सकें।
- यह नीति विभिन्न सहभागियों जैसे सरकारी अभिकरणों, स्थानीय समुदायों, अकादमिक एवं वैज्ञानिक संस्थानों, निवेश समुदायों एवं अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोगियों द्वारा उनसे संबद्ध संसाधनों के उपयोग तथा पर्यावरण प्रबंधन के सशक्तीकरण हेतु उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
स्त्रोत: पर्यावरण और वन मंत्रालय,भारत सरकार