केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), एक सांविधिक संगठन है। इसका गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अधीन सितंबर, 1974 में किया गया था। इसके अलावा, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 के अधीन भी शक्तियां और कार्य सौंपे गए।
यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक फील्ड संघटन का काम करता है तथा मंत्रालय को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उपबंधों के बारे में तकनीकी सेवाएं भी प्रदान करता है। जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 में निर्धारित किए गए अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्य हैं, (i) जल प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण तथा न्यूनीकरण द्वारा राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में नदियों और कुओं की स्वच्छता को बढ़ावा देना, और (ii) देश की वायु गुणवत्ता में सुधार करना तथा वायु प्रदूषण का निवारण, नियंत्रण और न्यूनीकरण करना।
वायु गुणवत्ता की निगरानी वायु गुणवत्ता प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण भाग है। राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी) की शुरूआत वायु गुणवत्ता की मौजूदा स्थिति एवं रुझानों को जानने तथा उद्योगों और अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को विनियमित करने के उद्देश्य से की गई है, ताकि वायु गुणवत्ता के मानक प्राप्त किए जा सकें। यह उद्योगों के सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरण संबंधी प्रभावों के आकलन (इंडस्ट्रियल सिटिंग) एवं शहरी आयोजना के लिए जरूरी पृष्ठभूमि वायु गुणवत्ता डाटा भी उपलब्ध कराता है।
इसके अलावा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास नई दिल्ली में आईटीओ चौराहे पर एक स्वचालित निगरानी स्टेशन भी है। इस स्टेशन पर रेस्पिरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर यानी सांस में जा सकने वाले सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (RSPM), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओजोन (O3), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) तथा सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (SPM) पर नियमित रूप से निगरानी रखी जा रही है। आईटीओ पर वायु गुणवत्ता संबंधी यह जानकारी हर सप्ताह अद्यतन की जाती है।
मीठा पानी एक सीमित संसाधन है जो कृषि, उद्योग, वन्य जीवन और मत्स्य पालन को आगे बढ़ाने तथा मानव अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है। भारत एक नदियों का देश है। इसके पास 14 बड़ी नदियां, 44 मध्यम और 55 छोटी नदियां हैं। इसके अलावा, यहां अनेक झीलें, तालाब और कुएं हैं। इन सभी का उपयोग पीने के पानी के प्राथमिक स्रोत के तौर पर किया जाता है, यहां तक कि पानी का उपचार किए बिना भी। यहां की अधिकांश नदियां पानी के लिए मानसून पर निर्भर रहती हैं और यह वर्ष में केवल तीन महीने तक सीमित रहता है। ये नदियां वर्ष की शेष अवधि में सूखी रहती हैं जिनमें प्रायः अपशिष्ट जल, उद्योगों अथवा शहरों/कस्बों का बहिस्राव मिल जाता है जिससे हमारे दुर्लभ जल संसाधनों की गुणवत्ता खतरे में पड़ जाती है। भारत की संसद ने विचार करते हुए हमारे जल निकायों की आरोग्यता बहाल करने और उसे बनाए रखने के उद्देश्य से जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 पारित किया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास एक अधिदेश यह है कि वह जल प्रदूषण से संबंधित तकनीकी और सांख्यिकीय डाटा एकत्र करे, उसे समानुक्रमित करे और उसका प्रसार करे। इस प्रकार, जल गुणवत्ता की निगरानी (डब्ल्यूक्यूएम) और चौकसी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
जैव-रसायन आक्सीजन मांग (बीओडी) अपशिष्ट में विद्यमान जैव पदार्थ को जैव-रसायनिक रूप से ऑक्सीकृत करने के लिए ऐरोबिक सूक्ष्म-जीवों के लिए आवश्य क आक्सीजन की माप है और इसे मिग्रा/लिटर में व्यक्त किया जाता है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) अधिनियम, 2010 भारत के संसद का एक अधिनियम है जो पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान की देखरेख करने हेतु एक विशेष अधिकरण के गठन को सक्षम बनाता है।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत के संसद का एक अधिनियम है जिसे पौधों और पशुओं की प्रजातियों के संरक्षण के लिए लागू किया गया है।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ के वर्ष 1985 के 13029 मामले में निर्देश दिया और 2000 सीसी और उससे अधिक की इंजन क्षमता वाले डीजल वाहनों जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पंजीकृत किया जाएगा जैसा कि 12 अगस्त 2016 के उच्चतम न्यायालय के आदेश में दिया गया है, पर 1% पर्यावरण संरक्षण शुल्क लगाया। साथ ही माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार वाहन के डीलर/विनिर्माता को 2000 सीसी और उससे अधिक इंजन क्षमता वाले नए डीजल वाहनों जिन्हें दिल्लीं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पंजीकृत किया जाना है, के एक्स-शोरूम कीमत पर 1% ईपीसी का भुगतान करना पड़ेगा। वाहन के क्रेता को ईपीसी सीधे भुगतान करने का विकल्प है।
जी, नहीं। सीपीसीबी किसी सेंसर या विश्लेषक को न तो प्रमाणित करता है और न ही मूल्यांकन करता है। औद्योगिक ईकाई शर्तें पूरी करने वाले किसी स्वंदेशी उपकरण सहित किसी भी प्रकार बनावट वाले विश्ले्षकों का चयन करने के लिए स्वतंत्र है। यूनिट को अंशाकन प्रोटोकॉल, अंशाकन की अवधि आवृत्ति तथा विनिर्दिष्ट भिन्नता देने चाहिए जब उन्हें मैनुअल रूप से निगरानी किए गए परिणाम से मिलान किया जाए।
पीयूसी (प्रदूषण में नियंत्रण) प्रदूषण में नियंत्रण प्रमाणित करने के लिए जारी एक प्रमाणन चिन्ह है कि भारत के मोटर वाहन उत्सर्जन और प्रदूषण नियंत्रण मानकों को पूरा करते हैं।
प्रथम पंजीकरण की तारीख से एक वर्ष की अवधि के के समाप्त होने के बाद प्रत्येक मोटर वाहन के लिए वैध पीयूसी प्रमाण पत्र रखना अनिवार्य है तथा उसके बाद प्रत्येक 6 महीने पर यह रखना अनिवार्य है।
प्रदूषण स्तर की जांच करने तथा पीयूसी प्रमाण-पत्र (उत्सर्जन मानक पूरा करने वाले वाहनों के लिए) जारी करने के लिए कंप्यूटरीकृत सुविधाएं कई पेट्रोल पम्पों/कार्यशालयों पर उपलब्ध है।
प्रदूषण निवारण (पी2), जिसे ''स्रोत में कमी'' भी कहा जाता है, एक प्रकार की व्यवस्था है जो इसके स्रोत पर भी प्रदूषण को कम समाप्त या रोकथाम करता है।
पुनच्रक्रण, पुनर्चक्रण की जाने वाली सामग्रियों को इक्ट्ठा करने, अलग करने, संसाधित करने और बेचने की प्रक्रिया है ताकि उनको नए उत्पा्दों में परिवर्तित किया जा सके।
यूट्रोफिकेशन अशोधित मल-जल के सीधे निक्षेप के कारण पानी में पोषक तत्वों की अत्यधिक वृद्धि की प्रक्रिया है।
ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख रासायनिक यौगिक सीएफसी, क्लोरोफ्लूरोकार्बन या फ्रियॉन अन्य पदार्थ हैं जिनका पहले रेफ्रिजरेटरों, एयर कंडीशनरों और स्प्रे बर्तनों में उपयोग किया जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग वातावरण में कतिपय गैसों विशेषकर वैसे गैस जो पृथ्वी की सतह से प्रतिबिम्बित सौर ऊर्जा को रोक लेते हैं, के जमा होने के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि का होना है। प्रमुख गैस जिससे ग्लोबल वार्मिंग होता है, CO₂, (कार्बन डाइआक्साइड) है यद्पि अन्य गैस जैसे मीथेन CH₄, और नाइट्रस आक्साइड, N2O भी ''वार्मिंग गैस'' के रूप में कार्य करते हैं।
जीपीआई की वैसे उद्योगों के रूप में पहचान की गई है जो जल की धारा में निस्सारी प्रवाह कर रहे हैं तथा (क) खतरनाक पदार्थों का संचलन कर रहे है या (ख) 100 कि.ग्रा. प्रतिदिन या अधिक बीओडी भार वाले निस्सारी या (क) और (ख) के संयोजन को प्रवाहित कर रहे हैं।
जल गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) मानव स्वास्थय और पर्यावरण के संबंध में दिन प्रतिदिन की वायु गुणवत्ता की रिपोर्टिंग के लिए एक संख्यात्मक माप है। सीपीसीबी ने उस प्रकार से लोगों को वायु गुणवत्ता स्थिति के प्रभावी सम्प्रेषण के लिए वायु गुणवत्ता सूचकांक आरंभ किया जो समझने में आसान हो, जो विभिन्न संदूषकों के जटिल वायु गुणवत्ता आंकड़े को एकल संख्या (सूचकांक मांग), नामावली और रंग में परिवर्तित कर देता है। 6 सूचकांक श्रेणी हैं यथा अच्छा, संतोषजनक, सामान्य रूप से प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर।
व्यापक पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक (सीईपीआई) जो स्रोत, मार्ग और अभिग्राहक की प्रणाली को अपनाकर निश्चित स्थान पर पर्यावरण की गुणवत्ता की विशेषता बनाने की यौक्तिक संख्या है, विकसित किया गया है। यह सूचकांक वायु, जल और भूमि सहित पर्यावरण के विभिन्न स्वास्थय आयामों को प्राप्त करता है। पहचान किए गए 88 प्रमुख औद्योगिक क्लस्टरों में से 16 राज्यों के 43 औद्योगिक कलस्टरों जिनका सीईपीआई अंक 70 और उससे अधिक था, खतरनाक रूप से प्रदूषित औद्योगिक क्ल्स्टरों के रूप में चिन्हित किया गया जबकि 60 और 70 के बीच सीईपीआई अंक वाले औद्योगिक क्लस्टरों को गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों के रूप में श्रेणीकृत किया गया।
सीपीए खतरनाक रूप से प्रदूषित क्षेत्र हैं। इसका अर्थ उन क्षेत्रों से है जहां प्रदूषण का स्तर 70% से अधिक है।
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी) परिवेशी वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक देश व्यापी कार्यक्रम है। सीपीसी ने एनएएमपी की स्थापना की है जिसमें 29 राज्यों तथा 5 संघ शासित क्षेत्रां में 257 शहरों में 615 निगरानी केन्द्र है। एनएएमपी के अंतर्गत तीन प्रमुख संदूषकों जैसे पीएम 10 (पार्टिकुलेट पदार्थ जिसमें 10µm से कम या बराबर एयरोडायनायिक व्यास है), सल्फर डायक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन डायआक्साइड (NO2) की सभी केन्द्रों पर निगरानी हेतु पहचान की गई है।
राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एन डबल्यू एम पी( जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए राष्ट्रीयव्यापी कार्यक्रम है। सीपीसीबी ने संबंधित एसपीसीबी/पीसीसी के सहयोग से जल गुणवत्ता की निगरानी के लिए राष्ट्र व्यापी नेटवर्क की स्थापना की जिसमें 28 राज्यों और केन्द्रु शासित प्रदेशां में 2500 केन्द्र हैं।
सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट शोधन सुविधा (सीबीएम डबल्यू टीएफ) एक ऐसी व्यवस्था है जहां सदस्य स्वास्थय देखभाल सुविधाओं से निकले जैव-चिकित्सा- अपशिष्टों को मानव स्वास्थय और पर्यावरण को इस अपशिष्ट से होने वाले नुकसान के प्रभाव को कम करने के लिए आवश्यक बोधन किया जाता है।
निर्धारित मानदंड पूरा नहीं करने वाले नदी के क्षेत्रों को प्रदूषित नदी क्षेत्र के रूप में कहा जाता है। चूंकि नदी क्षेत्रों में बीओडी के स्तर में भिन्नता रहती है इसलिए इस प्रदूषित क्ष्त्रों को बीओडी भार के आधार पर पांच श्रेणियों अर्थात प्राथमिक वर्ग I से प्राथमिक वर्ग V में वर्गीकृत किया जाता है। 30 मि.ग्रा./लीटर से अधिक बीओडी, 20 और 30 मि.ग्रा./लीटर के बीच बीओडी, 10 और 20 मि.ग्रा./लीअर के बीच बीओडी, 6-10 मि.ग्रा./लीटर के बीच बीओडी तथा 3 और 6 मि.ग्रा./लीटर के बीच बीओडी
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कौन-कौन से कार्यक्रम/कार्यकलाप क्रियान्वित किए जाते हैं?
सीपीसीबी के 6 क्षत्रीय निदेशालय है -
यह अनुमान है कि जल प्रदूषण 75% से 80% मात्रा में घरेलू सीवेज के कारण होता है। जल प्रदूषण फैलाने वाले प्रमुख उद्योगां में शराब-कारखाना, चीनी, वस्त्र, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, कीटनाशक, भेषज, लुग्दी और कागज मिल, चर्मशोधनशाला, रंग और रंग मध्य्वर्ती, पेट्रो-रसायन, इस्पात संयंत्र आदि है। ग्रामीण क्षेत्रों में उर्वरक और कीटनाशक अपशिष्टे जैसे गैर-विन्दु स्रोत भी प्रदूषण के कारण है। रासायनिक उर्वरक का केवल 60% का मिट्टी में उपयोग हो पाता है तथा शेष मिट्टी में धूल जाता है जो भूमिगत जल को प्रदूषित करता है। अत्योधिक फॉस्फेट अपवाह से झीलों आर जलाशयों में यूट्रोफिकेशन होता है। शराब-कारखाना जैसे प्रमुख जल प्रदूषित करने वाल उद्योगों द्वारा शून्य तरल उत्सर्जन की अवधारणा कार्यान्वित और प्रचालित की जा रही है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के परामर्श से देश में 24 गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की है। वे हैं - भद्रावती (कर्नाटक), चेम्बूीर (महाराष्ट्र ), दिगबोई (असम), गोविन्दगढ़ (पंजाब), ग्रेटर कोचिन (केरल), काला-अम्ब (हिमाचल प्रदेश), परवान (हिमाचल प्रदेश), कोरबा (मध्य प्रदेश), मनाली (तमिलनाडु), उत्तरी आर्कोट (तमिलनाडु), पाली (राजस्थान), तलचर (उड़ीसा), वापी (गुजरात), विशाखापत्तनम ( आन्ध्र प्रदेश), धनबाद (बिहार), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), हावड़ा (प. बंगाल), जोधपुर (राजस्थान), नायदा रतलाम (मध्य, प्रदेश), नजफगढ़ नाला (दिल्ली), पतानचेरु बोल्लाराम (आन्ध्र प्रदेश), सिंगरौली (उत्तर प्रदेश), अंकलेश्वर (गुजरात), तारापुर (महाराष्ट्र)।
विभिन्न श्रेणी के क्षेत्रों (आवासीय, वाणिज्यिक, औद्योगिक) के लिए ध्वानि से संबंधित परिवशी मानक तथा शांत क्षेत्र पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित किए गए हैं। विनिर्माण के चरण में आटोमोबाईल, घरेलू उपकरणों तथा विनिर्माण औजार के लिए ध्वनि की सीमा निर्धारित की गई है। जेनसेट, पटाखों और कोयला खानों के लिए मानक तैयार और अधिसूचित किए गए हैं। विनियमक एजेंसियों का ध्वनि प्रदूषण नियंत्रित और विनियमित करने के लिए निदेश दिए गए हैं।
भारत सरकार ने दिनांक 1 फरवरी 2000 को सा.आ. 123(अ), के तहत ध्वकनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियमावली, 2000 अधिनियमित किया। यह नियम लाउडस्पीकरों और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली के कारण ध्वनि प्रदूषण नियंत्रित करने हेतु प्रावधानों से संबंधित है जो निम्नानुसार है -
लाउडस्पीकरों/जनोपयोगी संबोधन प्रणाली के उपयोग पर प्रतिबंध -
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के विशिष्ट कार्य क्या हैं ?
केन्द्रीय पदूषण नियंत्रण बोर्ड के कार्य -
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के कार्य -
प्रदूषकों के निर्माण में कमी के लिए विभिन्न श्रेणियों के उद्योगों द्वारा उठाए गए कदम निम्नलिखित हैं -
सुदृढ़ीकरण हेतु परियोजनाओं के अधीन शामिल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/समितियों के नाम -
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और इसके मंडल कार्यालयों के अलावा निम्न्लिखित 22 राज्यम प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/प्रदूषण नियंत्रण समितियों को परियोजनाओं के अधीन शामिल किया गया है -
आन्ध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, उड़ीसा, पांडिचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
जी हां, भारत ने प्रदूषण उपशमन कार्यनीति तैयार की है, जिसमें कानूनी ढांचा और पर्यावरण प्राधिकरण शामिल हैं।
पर्यावरण प्राधिकरण -
प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अलावा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण सहित 6 पर्यावरणीय प्राधिकरणों का गठन किया गया है। ये हैं-
निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं -
भारत सरकार ने पटाखों से होने वाले ध्वूनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में दिनांक 5 अक्टू्बर, 1999 के जी.एस.आर. 682(ई) के तहत पटाखों के लिए ध्वनि मानकों को अधिनियमित किया। हाल में मार्च 2001 में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल), दिल्ली के सहयोग से केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बाजार में उपलपब्ध पटाखों के ध्वनि के स्तरों की माप के लिए एक अध्ययन आरंभ किया। यह अध्ययन दर्शाता है कि 95 प्रतिशत पटाखों के नमूने में निर्धारित ध्वनि सीमा से अधिक ध्वनि थी। फलस्वरूप सीपीसीबी ने निर्धारित सीमा से अधिक ध्वनि वाले पटाखों का विनिर्माण नियंत्रित करने के लिए तत्काल कदम उठाने हेतु विस्फोटक विभाग, नागपुर को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत नोटिस जारी किया। सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/समितियों से अपने संबंधित स्थानीय प्रशासकों के परामर्श से अधिसूचित सीमा से अधिक के पटाखे की बिक्री नियंत्रित करने हेतु कदम उठाने के लिए अनुरोध किया गया।
इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर के सहयोग से केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने डीजल जेनरेटर सेटों तथा पेट्रोल/केरोसिन जेनरेटर सेटों से ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रणाली विकसित किया था। इसके आधार पर डीजल और पेट्रोल/केरोसिन जेनरेटर सेटों के लिए ध्वनि के स्तर विकसित और अधिसूचित किए गए।
जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 197 को लागू करने के लिए केन्द्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन किया गया। पिछले वर्षों में बोर्डों को अतिरिक्त जिममेदारी भी सौंपी गई है जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं -
औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण जिसमें दीर्घकालिक विकास की अवधारणा शामिल है, निम्नलिखित हैं -
विश्व बैंक की सहायता से चुनिंदा प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/समितियों की निगरानी तथा प्रवर्तन क्षमता सुदृढ़ करने और पर्यावरणीय नुकसान की रोकथाम करने हेतु विशिष्टं अध्यययन करने के लिए निम्नलिखित तीन पर्यावरणीय परियोजनाएं आरंभ की गई हैं -
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण को केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा पूर्ण रूप से वित्तपोषित किया जाता है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड संबंधित राज्य् सरकारों तथा संबंधित राज्य बोर्डों द्वारा संग्रहित जल उपकर (80 प्रतिशत तक) की प्रतिपूर्ति के माध्यम से केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय से वित्त प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, राज्य बोर्ड निस्सारी और उत्सर्जन उत्सर्जित करने के संबंध में सहमति निर्गत करने के लिए उद्योगों से आवेदनों की प्रक्रिया हेतु फीस प्राप्तव करते हैं। एसपीसीबी राज्य सरकारों से केवल अत्य्ल्प्/मामूली वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं। कुछ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में राज्य सरकारें बजटीय अनुदान नहीं दे रही हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सहमति और प्राधिकार शुल्क तथा उपकर की प्रतिपूर्ति जो उन्हें उपकर संग्रह से प्राप्त होता है, पर निर्भर है।
उद्योगों से निस्सारी/उत्सर्जन तथा खतरनाक अपशिष्ट के सीधे नियंत्रण को शामिल करते हुए आरंभ किए जाने वाले कार्यक्रम निम्नलिखित हैं -
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों ने राज्य सरकारों के अनुदान के अनुसार नियम तैयार किए हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा लागू किए जाने वाले प्रक्रिया और नियम कमोवेश समान हैं।
स्रोत: केन्द्री य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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