वर्षा होने के तौर तरीकों, मानव व्यवहार और उसकी प्रतिबद्धता आदि जैसेविभिन्न विशेषताओं और विभिन्न क्षेत्रों पर इसके अलग-अलग प्रभाव के कारण सूखे की एक संक्षिप्त और सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य परिभाषा प्रदान करना बहुत कठिन है। सूखा एक सामान्यी, जलवायु का एक संभावित विशेषता है जो प्रत्येक जलवायु क्षेत्र में घटित होता है और आमतौर पर यह स्थानिक विस्तार, तीव्रता और इसकी अवधि के आधार पर निर्धारित होता है। सूखे के कारण आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं।
कृषि मंत्रालय सूखे की स्थितियों की निगरानी करने और उसका प्रबंधन करने के लिए नोडल मंत्रालय है और सूखे को मौसमी सूखा, जलीय सूखा और कृषि सूखे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। मौसमी सूखे को दीर्घावधिक अनुपात के संदर्भ में वर्षा में हुई कमी के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है यथा 25 प्रतिशत या इससे कम की दर पर वर्षा में कमी को सामान्य सूखा, 26 से 50 प्रतिशत की कमी को मध्यम सूखा और 50 प्रतिशत से अधिक की कमी को गम्भीर सूखे की स्थिति मानी जाती है।
जलीय सूखा सतह और अवसतह जल आपूर्ति में कमी होने के रूप में परिभाषित किया जाता है जिससे सामान्य और विशेष जरूरतों के लिए जल की कमी हो जाती है। ये स्थितियां उस समय भी उत्पन्न हो जाती हैं जब जल के बढ़े हुए उपयोग के कारण औसत वर्षा (या औसत से अधिक) वाले समय में भी आरक्षित जल समाप्त हो जाता है।
कृषि सूखा को चार लगातार सप्ताहों तक मौसमी सूखे के रहने पर निर्धारित किया जाता है। ऐसी स्थिाति तब उत्तापन्न होती है जब खरीफ के मौसम में 80 प्रतिशत फसल रोपी गई हो और सप्ताहिक जल वृष्टि 15 मई से 15 अक्तूबर के बीच 50 मिलीमीटर और शेष वर्ष में ऐसी जल वृष्टि 6 लगातार सप्ता1ह के दौरान हुई हो।
भारत में देश का लगभग 68 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न मात्राओं में सूखे से प्रभावित रहता है । भारत का 35 प्रतिशत हिस्सा ऐसा है जिसमें 750 मिलीमीटर और 1125 मिलीमीटर के बीच वर्षा होती है और उसे सूखा प्रभावित क्षेत्र माना जाता है, जबकि भारत के 33 प्रतिशत हिस्से में 750 मिलीमीटर से कम वर्षा होती है और इसे गम्भीर सूखा प्रभावित क्षेत्र माना जाता है।
कृषि मौसम विज्ञान प्रभाग (आई एम डी) सूखे की चेतावनी समय से पहले देने और इसका पूर्वानुमान करने के लिए नामोद्दिष्ट एजेंसी है। आई एम डी, पूणे वास्तकविक और संभावित मौसम और विभिन्न दैनंदिन कृषि कार्यकलापों के संबंध में इसके संभावित प्रभाव के बारे में समयबद्ध सलाह प्रदान करता है। सूखा अनुसंधान यूनिट फसल उत्पादन पूर्वानुमान प्रदान करती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा गठित राष्ट्रीतय मध्यम श्रेणी मौसम पुर्वानुमान केन्द्रर यूनिट आई एम डी, आई सी ए आर और राज्यी कृषि विश्वविद्यालयों के परामर्श से स्थान विशेष के बारे में मध्योम श्रेणी मौसम पुर्वानुमान के आधार पर किसान समुदायों को कृषि जलवायु अंचल की मात्रा पर कृषि मौसम विज्ञान परामर्श सेवाएं प्रदान करती हैं। केन्द्रीय मरूभूमि कृषि अनुसंधान संस्थान( सी आर आई डी ए) हैदराबाद और कृषि मौसम विज्ञान और मरू भूमि कृषि संबंधी अखिल भारतीय समन्विमत अनुसंधान परियोजना है और दोनों के पास पूरे देश में 25 केन्द्र हैं जो सूखा प्रभावित राज्यों के लिए सूखे का निर्धारण करने, उसको कम करने सूखे का जोखिम स्थानान्तरित करने और निर्णय समर्थित सॉफ्टवेयर विकसित करने से संबंधित सूखा अध्ययनों में भागीदार निभाते हैं। केन्द्रीय एरिड अंचल अनुसंधान संस्थान जोधपुर पश्चिमी राजस्थान के 12 एरिड जिलों में कृषि सूखे की स्थितियों का निर्धारण करता है और किसानों के लिए सप्ताह मे दो बार फसल मौसम संबंधी कृषि परामर्श बुलेटिन प्रसारित करता है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने आई सी ए आर की भागीदारी से मौसम की लघु और मध्यिम श्रेणी के 98 निगरानी और पुर्वानुमान केंद्र स्थापित किए हैं। अंतरिक्ष विभाग द्वारा कृषि और सहयोग विभाग के लिए विकसित राष्ट्रीय कृषि सूखा निर्धारण और निगरानी प्रणाली पिछले वर्षों के दौरान वानस्पतिक कवर का तुलानात्मक मूल्यांकन करके सूखे का निर्धारण करके सेटेलाइट डाटा आधारित सहायता प्रणाली के माध्यम से वानस्पतिक कवर की निगरानी करता है। यह राज्यावार मासिक रिपोर्ट तैयार करता है। राष्ट्रीरय और राज्य स्तर पर सूखे की निगरानी करना और समय से पहले इसकी चेतावनी देने के लिए संस्थागत तंत्र विद्यमान हैं। तथापि, ये सारे संस्थान सूखा प्रबंधन और उसकी क्षमता जरूरतों की मांग को पूरा करने में अपर्याप्त माने गए हैं। इन संस्थानों को डाटा संग्रहण, मूल्यांकन और सूचनाओं के संयोजन के उद्देश्य के लिए सुदृढ़ किया जाना है। केन्द्र सरकार का अंतर-मंत्रालयीय तंत्र अर्थात् फसल मौसम निगरानी समूह वर्षा ऋतु (जून - सितम्बर) के दौरान सप्ताह में एक बार बैठक करता है। सूखे की स्थिति में बैठकों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। सीसीडब्यूडब्यूजी का संयोजन और जिम्मे दारी के क्षेत्रों का विवरण निम्नानुसार है-
भागीदार |
कार्य |
अपर सचिव, कृषि मंत्रालय |
अध्ययक्ष समग्र समन्वयन को बढावा देता है। |
आर्थिक और सांख्यिंकी सलाहकार, कृषि मंत्रालय |
कृषि जलवायु व्यवहार और बाजार संकेतकों की रिपोर्ट देना |
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग |
वर्षा पुर्वानुमान और मानसून स्थितियों की प्रगति |
केन्द्री य जल आयोग |
महत्वपूर्ण जलाशयों में जल उपलब्धता की निगरानी |
पौध सुरक्षा प्रभाग |
कीट और बीमारी प्रकोप की निगरानी |
फसल विशेषज्ञ |
फसल स्थिति और उत्पादन संबंधी रिपोर्ट |
कृषि इनपुट आपूर्ति प्रभाग |
कृषि इनपुट की आपूर्ति और मांग |
कृषि विस्तार विशेषज्ञ |
फील्ड स्तरीय कृषि प्रचालन संबंधित रिपोर्ट |
विद्युत मंत्रालय |
भूमि जलनिकासी के लिए विद्युत ऊर्जा का प्रबंधन |
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद |
तकनीकी इनपुट और आकस्मिक योजना |
राष्ट्रीय मध्यम श्रेणी मौसम पुर्वानुमान केन्द्रक |
मध्यावधिक पुर्वानुमान देना |
सीडब्यू्डब्यूजी कृषि पर मौसमी घटनाओं के संभावित प्रभाव और पर्यावरण मानदंडों का निर्धारण करने के लिए आई एम डी और अन्य वैज्ञानिक और तकनीकी निकायों द्वारा प्रस्तुत सूचनाओं और आंकड़ों का मूल्यांकन करता है। इसके अलावा राष्ट्रीय और राज्य सूखा निगरानी केन्द्र् भी हो सकते हैं जो पूर्वानुमानों का समन्वयन करने, परामर्श और बुलेटिन जारी करने, आंकड़ों का मूल्यांकन करने और मीडिया के माध्यरम से परामर्शों और आंकड़ों का प्रसार करते हैं।
जल संसाधन मंत्रालय नीतिगत दिशा-निर्देश के संबंध में मुख्य रूप से सूखा प्रबंधन, सूखा रोकने वाली स्कीमों की निगरानी और तकनीकी तथा वित्तीयय सहायता देने के मामलों में शामिल रहता है।
राष्ट्रीय जल नीति 2012 में उल्लेख है कि स्थानीय, अनुसंधान और वैज्ञानिक संस्थांनों से प्राप्त भूमि, मृदा, ऊर्जा और जल प्रबंधन इनपुट को सूखा रोकने के लिए विभिन्न कृषि कार्य नीतियां विकसित करने और मृदा और जल उत्पादकता में सुधार करने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। सिंचित कृषि प्रणाली और गैर कृषि विकास को आजीविका सहयोग और गरीबी उन्मू लन के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए परियोजना अनुमोदन, वित्त पोषण आदि में छूट देने के लिए नीतिगत मध्यक्षेप भी अपनाए जाने चाहिए।
वर्षा, जलाशयों में भंडारण जल का स्तर, सतह और भू जल स्तंर और सूखे की परिस्थितियों में फसल की बुवाई आदि को सूखे का प्रमुख संकेतक माना जाता है। जल संसाधन मंत्रालय केन्द्रीय जल आयोग और केन्द्रीय भू जल बोर्ड के माध्यम से वैज्ञानिक डाटा, जलाशयों / तालाबों / झीलों में जल का भंडारण, नदी प्रवाह, भूजल उत्पादन और जलभर क्षेत्रों से जल निकास, वाष्पीकरण जल हानि, जल का टपकना, जल के रिसाव की निगरानी करता है।
सिंचाई को सूखा रोकने के सबसे प्रभावी तंत्र और कृषि उत्पादन में स्थिरता लाने के बड़े उपाय के रूप में माना जाता है। भंडारण बांधों का निर्माण करने से जरूरत के समय पानी का उपयोग करके सिंचाई करने में सुविधा मिलती है। इस प्रकार सिंचाई परियोजनाओं के कमान क्षेत्र के तहत आने वाले सूखा प्रभावित क्षेत्रों को पूरे वर्ष के दौरान सुनिश्चित सिंचाई जल आपूर्ति प्रदान की जाती है।
जल संसाधन मंत्रालय ने त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, कमान क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन कार्यक्रम तथा जल निकायों का सुधार, नवीकरण और प्रतिरक्षण करने जैसी स्कीमों के माध्यम से सिंचाई परियोजनाओं को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करके परियोजनाओं को समय से पहले पूरा करने के लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया है।
फोटो स्रोत: इंडिया वाटर पोर्टल
स्रोत: नदी विकास और गंगा संरक्षण, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 3/15/2023
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